Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 804
________________ ७८६ भगवतीसूत्रे उपागच्छन्ति, तत्रैव उपागत्य भगवन्तं गौतमम् एवम् अवादिषुः-एवं खलु गौतम ! तव धर्माचार्यः, धर्मोपदेशकः श्रमणो ज्ञातपुत्रः पञ्च अस्तिकायान् प्रज्ञापयति, तद्यथा-धर्मास्तिकाय, यावत्-आकाशास्तिकायम्, तदेव यावत्रूपिकायम् अजीवकायम् प्रज्ञापयति, तत् कथमेतत् गौतम ! एवम् ? ततः खलु स भगवान् गौतमः तान् अन्ययूथिकान् एवम् अवादीत्-नो खलु वयं पूछे इस प्रकारसे उन सबने आपसमें एक दूसरेकी बातको मान लिया ( एयमटुं पडिसुणित्ता जेणेव भगवं गोयमे ! तेणेव उवागच्छंति) और एक दूसरे की बातको मान कर वे सबके सब जहां भगवान् गौतम थे, यहां पर आये (तेणेव उवागच्छित्ता भगव गोयम एवं वयासी एवं खलु गोयमा ! तव धम्मायरिए धम्मोवदेसए, समणे णायपुत्ते पंच अत्थिकाए पनवेइ) वहाँ आकर उन्होंने भगवान् गौतम ! से ऐसा कहा हे गौतम ! आपके धर्मोंपदेशक धर्माचार्य श्रमण ज्ञातपुत्रने पांच अस्तिकायोंकी प्ररूपणाकी है । (तंजहा) जो इस प्रकारसे है (धम्मत्थिकाय, जाव आगासस्थिकाय) धर्मास्तिकाय यावत् आकाशास्तिकाय (तं चेव जाव रूविकायं अजीवकायं पन्नवेइ) यह कथन 'पुद्गलास्तिकाय रूपिकाय अजीवकाय है यहां तक जानना चाहिये । (से कहमेयं गोयमा ! एवं) सो हे गौतम ! यह कथन किस प्रकारसे है (तएणं से भगवं गोयमे ते मा प्रमाणे ५२२५२नी पात तम) २८.६।३। लायी. (एयममु पडिमुणित्ता जेणेव भगवं गोयमे ! तेणेव उवागच्छति) 4. प्रमाणे अन्यान्यनी वातने मान्य प्रशने ते। मगवान गौतमनी पासे मा०या. (तेणेव उवागच्छित्ता भगवं गोयम एवं वयासी) त्या सापाने तेभए मगवान गौतमने 24प्रमाणे ४थु- (एवं खलु गोयमा! तव धम्मायरिए धम्मोवदेसए, समणे णायपुत्ते पंच अस्तिकाए पनवेइ) હે ગૌતમ ! તમારા ધર્મોપદેશક, ધર્માચાર્ય, શ્રમણ જ્ઞાતપુત્ર મહાવીરે પંચ અસ્તિકાની ५३५५५॥ ४॥ छ- (तजहा) 2 २॥ प्रभारीछ-(धम्मत्थिकायं, जाव आगासत्थिकाय) ધર્માસ્તિકાય, અધર્માસ્તિકાય, પુદગલાસ્તિકાય, જીવાસ્તિકાય અને આકાશાસ્તિકાય. (तचेव जाव रूविकाय अजीवकाय पनवेड) माथी २३ ४शन 'Yमास्तिय पि४।५ ५०१४ य छ' त्या सुधार्नु पूर्वात ४थन घड ४२j. (से कहमेय गोयमा! एवं) तडे गौतम ! २॥ ४थन वाशते मान्य ४२॥ २४ाय से छ? (तएणं से भगवं गोयमे ते अन्नउत्थिए एव वयासी) त्यारे भगवान गौतमे ते मन्य શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫

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