Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 788
________________ - ৩৬০ भगवतीसूत्रे बहुजनः अन्योन्यम् एवम् उक्तप्रकारेण आख्याति यावत्-भाषते, प्रज्ञापयति, प्ररूपयति, "एवं खलु देवाणुप्पिया ! बहवे मणुस्सा जाव उववत्तारा भवंति' एवं खलु रीत्या भो देवानुप्रियाः ! बहवो मनुष्या यावत्-पूर्वोक्तमकारेण प्रत्याख्यानादिकं कृत्वा चरमोच्छासनिःश्वासैः कालगताः सन्तः देवलोकेषु देवत्वेन उपपत्तारो भवन्ति, नतु केवलं युद्धे मरणेन, इत्याशयः ॥मू. ५॥ ___ मूलम्-'वरुणे णं भंते ! णागणत्तए कालमासे कालं किच्चा कहिंगए, कहिं उववन्ने ? गोयमा ! सोहम्मे विमाणे, देवत्ताए उववन्ने । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता, तत्थ णं वरुणस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता । से णं भंते! वरुणे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं, भवक्खएणं ठिइक्खएणं जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, जाव अंतं करेहिइ । वरुणस्स णं भंते ! णागसुनकर और देखकर 'बहुजणो अन्नमन्नस्स एवं आइक्खइ, जाव परूवेई' अनेक मनुष्योंने आपसमें इस प्रकारसे कहा यावत् प्ररूपणाकी यावत् शब्दसे भाषण किया, प्रज्ञापित किया कि ‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! बहवे मणुस्सा जाव उववत्तारो भवंति' हे देवानुप्रियो, अनेक मनुष्य इस रीतिसे यावत् प्रत्याख्यानादिक करके चरम उच्छ्वास नि:श्वासोंके साथ २ कालगत होकर देवलोकोंमें देवकी पर्याय से उत्पन्न हुए हैं होते हैं और आगे भी होंगे। केवल युद्ध में मरकर कोई देवलोकोंमें देवको पर्यायसे न उत्पन्न हुआ है, न उत्पन्न होते हैं और न आगे भी उत्पन्न होंगे। सू० ५॥ नईने 'बहुजणो अन्नमन्नस्स एवं आइक्खइ, जाव परूवेई' भने भासाये એક બીજાને આ પ્રમાણે કહ્યું, આ પ્રમાણે પ્રતિપાદન કર્યું અને આ પ્રમાણે પ્રરૂપણ ४२॥ 3- 'एवं खलु देवाणुप्पिया! बहवे मणुस्सा जाव उववत्तारो भवति । હે દેવાનુપ્રિયે! અનેક માણસો આ રીતે શીલ, ગુણ, પ્રત્યાખ્યાનાદિ કરીને ચરમ ઉચ્છવાસ નિશ્વાસની સાથે સાથે જ કાળધર્મ પામીને દેવલોકમાં દેવની પર્યાયે ઉત્પન્ન થાય છે, ભૂતકાળમાં થયા હતા અને ભવિષ્યમાં પણ થશે. કેવળ યુદ્ધમાં મરીને કઈ દેવલોકમાં દેવની પર્યાયે ઉત્પન્ન થયું નથી, અને થશે પણ નહીં. સુ. પ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫

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