Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती सूत्रे
तेनार्थेन यावत् रथमुसलः संग्रामः । रथमुसले खलु भदन्त ! संग्रामे वर्तमाने कति जनशतसाहरुयो हताः ? गौतम ! षण्णवतिः जनशतसाहख्यो हताः । ते खलु भदन्त ! मनुष्याः निश्शीलाः यावत् उपपन्नाः ? गौतम ! तत्र खलु दशसाहस्यः एकस्या मत्स्याः कुक्षौ उपपन्नाः, एके देवलोकेषु उपपन्नाः, ही रथ मुसल सहित होकर बहुत से मनुष्योंका संहार करता हुआ, वध करता हुआ उन्हें मर्दित करता हुआ, उनमें प्रलय मचाता हुआ एवं लोहूकी कीचडको उछालता हुआ इधर से उधर चारों तरफ दौड़ता रहता है इस कारण इस संग्रामका नाम रथमुसल ऐसा हुआ है । (रहमुसलेणं भंते ! संगामे वट्टमाणे कइ जणसय साहस्सीओ वहियाओ ? हे भदन्त ! जिस समय रथमुसल संग्राम हो रहा था तब उसमें कितने लाख मनुष्योंका संहार हुआ ? (गोयमा) हे गौतम ! (छण्ण Bf freeसाहसीओ ) ९६ वे लाख मनुष्यों का संहार उस रथमुसल संग्राममें हुआ है । (ते णं भंते ! मणुया निस्सीला, जाव उववन्ना) हे भदन्त ! इस रथमुसल संग्राममें शीलरहित आदि पूर्वोक्त विशेषणवाले मनुष्य यावत् कहां उत्पन्न हुए हैं ? ( गोयमा) हे गौतम ! (तत्थ णं दस साहस्सीओ एगाए मच्छीए कुच्छिसि उन्नाओ ) इनमें से दश १० हजार मनुष्य तो एक मछलीके उदरमें उत्पन्न हुए (एगे देवलोएस उववन्ना) कितनेक देवलोकोंमें उत्पन्न हुए સારથીથી રહિત અને ચેાદ્ધાથી રહિત એક જ રથ મુસળથી યુકત થઈને ઘણા માણસાને સંહાર કરતા, ઘણાં માણસને ઘાયલ કરતા, તેમનું માનમન કરતે, તેમનામાં પ્રલય મચાવતા, અને લેહીની ધારાઓને ઉડાડતે આમતેમ ચારે દિશાઓમાં દોડતા રહે છે. हे गौतम! ते आरशे ते संग्रामने 'स्थभुत संग्रभ' उडे छे. (रहमुसलेणं भंते ! संगामे वट्टमाणे कइ जणसयसाहस्सीओ वहियाओ ? ) हे महन्त ! न्यारे ચમુસલ સંગામ ચાલી રહ્યો હતેા, ત્યારે કેટલાં લાખ માણસાના સંહાર થયા હતા ? (गोपमा !) हे गौतम! ( छष्णउई जणसयसाहस्सीओ वहियाओ ) ते समभ दह साथ भाणुसो भार्यां गया हुता. (तेशं भंते ! मणुया निस्सीला जाव उववन्ना?) હું બદન્ત ! તે રથમુસલ સંગ્રામમાં માર્યાં ગયેલા નિઃશીલ આદિ વિશેષાવાળા મનુષ્યા ४४ गतिमां उत्पन्न थया छे ? (गोयमा !) हे गौतम! (तत्थणं दस साहस्सीओ एगाए मच्छीर कुच्छिसि उववन्नाओ ) तेमांना १० हुन्नर माणुसो तो भे भाछसींना उहरमां उत्पन्न थया हता. (एगे देवलोएस उववन्ना) डेटला हेवसेोऽभां
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : પ