Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 750
________________ ७३२ भगवतीमत्रे यत्रैव मज्जनगृहं तव उपागच्छति, यथा कूणिकः यावत् स्नातः कृतबलि कर्मा कृतकौतुकमङ्गलप्रायश्चित्तः, सर्वालङ्कारविभूषितः, सनद्धबद्धवर्मितकवचः उत्पीडितशरासनपट्टिकः पिनद्धग्रैवेयकः विमलवरबद्धचितपट्टः गृहीतायुधप्रहरणः सकोरण्टकमाल्यदाम्ना छत्रेण ध्रियमाणेन चतुश्चामरबालवीजिताङ्गः, मङ्गलजयशब्दकृतालोकः मज्जनगृहात्मतिनिष्क्रामति, इस आज्ञाको सुनने के बाद उन कौटुम्बिक पुरुषोंने उस आज्ञाको यावत् स्वीकार करके छत्रसहित, ध्वजासहित, अश्वरथको तैयार किया एवं घोडा, हाथी, रथ और प्रवरयोधाओंसे युक्त सेनाको तैयार किया और तैयार करके जहां पर वरुण नामका नागपौत्र था वहांपर वे आये वहां आकरके उन्होंने वरुण नागपौत्रको उसकी आज्ञा यथावत् पालित हो चुकी है इसकी खबर दी (तएणं से वरुणे नागनत्तुए जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ) कौटुम्बिक पुरुषोंके मुखसे रथकी और सेनाकी तैयारी हुई सुनकर वह नागका नाती वरुण जहां पर स्नान घर था वहां पर आया (जहाकूणिए जाव पायच्छित्ते सव्वालकार विभूसिए, सन्नद्धबद्धवम्मियकवए, उप्पीलियसरासणपहिए, पिणद्धगेविजए विमलवरबद्धचिंधपट्टे, गहियाउहप्पहरणे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं चउचामरवालवीइयंगे, मंगलजयसहकयालोए मजणघराओ पडिणिक्खमइ) वहां आकर उसने कूणिककी तरह यावत् कौतुक एवं मंगलरूप प्रायश्चित्त कर समस्त अलंकारोंसे अपने સાંભળીને તેમને ઘણે હર્ષ થશે. તેમણે તે આજ્ઞા માથે ચડાવી. વરુણની અજ્ઞાનુસાર છત્રયુકત, ધ્વજાયુકત અધરથને તૈયાર કર્યો અને હાથી, ઘેડા, રથ અને ઉત્તમ યોદ્ધાઓથીયુકત ચતુરંગી સેનાને પણ તૈયાર કરી, આ રીતે સઘળી તૈયારીઓ કરીને તેઓ જ્યાં નાગપૌત્ર વરુણ વિરાજમાન હતા, ત્યાં આવ્યા. ત્યાં આવીને તેમણે નાગપૌત્ર વરુણને ખબર આપી કે “આપની આજ્ઞાનુસાર સઘળી વ્યવસ્થા થઈ ગઈ છે.' (तएणं से वरुणे नागनत्तुए जेणेव मजणघरे, तेणेव उवागच्छइ) त्या२०६ ते नागपौत्र १२९१ न्यो तेनुं स्नान तु त्यi गये. (जहा कूणिए जाव पायच्छित्ते, सवालंकारविभूसिए, सन्नद्धबद्धवम्मियकवए, उप्पीलियसरासणपट्टिए, पिणद्धगेविजए विमलवरबद्धचिंधपट्टे, गहियाउहप्पहरणे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं चउचामरबालवीइयंगे, मंगलजयसद्दकयालोए मजणघराओ पडिणिक्खमइ) त्या भावाने त४ि २०ी म शेतु भने શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫

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