Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 774
________________ ७५६ भगवतीसूत्रेच्छित्ता रहमुसलं संगामं ओयाओ' उपागत्य रथमुसलं संग्रामम् उपयातः प्राप्तः 'तए णं से वरुणे णागणत्तुए रहमुसलं संगामं ओयाए समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हई-ततः खलु वरुणो नागनतृकः स्थमुसलं संग्रामम् उपयातः सन अयम् एतद्रूपं वक्ष्यमाणप्रकारम् अभिग्रहं नियमम् अभिगृह्णातिस्वीकरोति यत्-'कप्पइ मे रहमुसल संगामं संगामेमाणस जे पुचि पहणइ से पडिहणित्तए' कल्पते युज्यते ग्वलु मे मम रथमुसल सग्रामं संग्रामयमाणस्य यः पूर्व प्रथम प्रहरति स प्रतिहन्तु, कल्पते इति मे स प्रतिहननयोग्यो भवतीतिभावः । तथाच संग्रामे यो मां प्रथमं प्रहरिष्यति तमेव अहं तदनन्तरं प्रहरिष्यामि-इत्यभिग्रहस्याकारः अवसे से नो कप्पइति, अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हइ' अवशेषः पूर्व जेणेव रहमुसले संगामे तेणेव उवागच्छइ' विशाल महाभटोंके समूह के साथ२ जहां रथमुसल संग्राम था वहाँ पर आये 'उवागच्छित्ता रहमुसलं संगामं ओयाओ' वहां आकर वे उस रथमुसल संग्राममें उपस्थित हुवे 'तएणं से वरुणे णागणतुए रहमुसलं संगामं ओयाए समाणे अयमेयारूबं अभिग्गहं अभिगेण्हइ' वहां उपस्थित होते ही उन नागपौत्र वरुणने ऐसा अभिग्रह ग्रहण किया कि 'कप्पइ मे रहमुसलं सगामं संगामेमाणस्स जे पुवि पहणइ से पडिहणित्तए' रथमुसल संग्राम करते हुए मेरे ऊपर जो कोई व्यक्ति योधा पहिले प्रहार करेगा मै उसी पर बादमें प्रहार करुगा 'अवसेसे नो कप्पई इ. इसके अतिरिक्त ओर किसी पर प्रहार नहीं करूँगा 'अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हइ' इस प्रकारका नियम उस नागतेणेव उवागच्छा' मने मडा सुभटीना विश समूहनी साथे न्यां २थभुसस संयाम यासतो तो त्या माव्या. 'उवागच्छित्ता रहमुसलं संगाम ओयाओ' त्या मावाने तमा ५९५ २यभुसण सयाममा 315 गया. 'तएणं से वरुणे णागणत्तए रहमुसल संगाम ओयाए समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हई' રથમુસળ સંગ્રામમાં દાખલ થતાં જ તે નાગપૌત્ર વરુણે એવો અભિગ્રહ ધારણ કર્યો કે 'कप्पइ मे रहमुसलं संगाम संगामेमाणस्स जे पुदि पहण इ से पडिहणित्तए' જે કઇ યોદ્ધો આ રથમુસળ સંગ્રામમાં લડતાં લડતાં મારા ઉપર પહેલાં પ્રહાર કરશે, तेना ५२०० त्या२ मा प्रडार ४३रीश. 'अवसेसे नो कप्पईडत सिवानी ५ यति ५२ प्रडार ४रीश नडी.' 'अयमेयारूचं अभिग्गहं अभिगेण्हई' શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫

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