Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 768
________________ भगवतीसूत्रे अशनपानखाद्यस्वाद्येन प्रातिहारिकेण च वस्त्रप्रतिग्रहकम्बलपादप्रोञ्छनेन पीठफलक शय्यासंस्तारकेण इति त्रिषष्टितमसूत्रे विलोकनीया, प्रतिअनिक्षिप्तेन निरन्तरेण तपःकर्मणा आत्मानं एषां व्याख्या - औपपतिके उत्तरार्द्धे लाभयन् षष्ठं - षष्ठेन भावयन् विहरति तिष्ठति, 'तर णं से वरुणे णागणत्तुए अन्नया कयाई ' ततः खलु स वरुणः नागनप्तृकः अन्यदा कदाचित् 'रायाभिओगेणं, गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं, रहमुसले संगामे आणते समाणे ' राजाभियोगेन = नृपाग्रहेण, गणाभियोगेन गणः=स्वजनादिसमुदायस्तदाग्रपूर्णिमा, अमावास्या इन पर्वदिनोंमें आहार, शरीर सत्कार, अब्रह्मचर्य तथा सावद्यव्यापार इनचारोंका यह त्याग कर देता था इस तरह इन शील आदिकोंसे पूर्ण पौषधका पालन करके श्रमण निर्ग्रन्थों को यह प्राशुक एषणीय अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य द्वारा, वस्त्र, पात्र, कम्बल, पादप्रोच्छन् द्वारा, औषध भैषज्य द्वारा एवं प्रातिहारिक पीठ, फलक, शय्या और संस्तारक आदि द्वारा मुनिजनोंको प्रतिलाभित किया करता था । निरन्तर छट्ठ छट्ठकी तपस्या से यह आत्माको भावित करता रहता था । 'तएण से वरुणे णागणत्तुए अन्नया कयाइ" एक दिनकी बात है कि इन वरुण नागपौत्रको (रायाभिओगेणं, गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं रहमुसले संगामे आणते समाणे' नृपके आग्रहसे, स्वजनादि समुदाय रूप गणके आग्रहसे, अथवा किसी बलिष्ठके आग्रहसे ऐसी प्रेरणा मिली कि उसे रथमुसल संग्राममें जाना चाहिये, सो यह પૂર્ણિમા, એકાદશી, અમાસ આદિ તિથિના પાષાપવાસ કરતા હતા – એટલે કે તે પર્વાદનામાં તે આહાર, શરીર સત્કાર, અબ્રહ્મચય અને સાવદ્ય વ્યાપારાને પરિત્યાગ કરી દેતે। હતા. આ રીતે શીલ આદિકાથી યુકત પૌષધનું પાલન કરીને તે ક્ષમણનિ થાને आसुड, शेषलीय अशन, पान, मद्य, खाद्य याहि यारे अहारना आहार, वस्त्र, यात्र, कुंजल, रमने पाओछन (रोहर ) द्वारा तथा भोषध-लैवल्य द्वारा, मने प्रातिहारि (સાધુઓને વાપરવા માટે આપવાની વસ્તુઓ કે જેના ઉપયોગ પતી જતાં શ્રાવકને पाछी सोचाय छे) પીઠ, ફૂલક (પાટ), શય્યા અને સસ્તારક દ્વારા પ્રતિલાભિત કરતા હતા તે નાગપૌત્ર વરુણ નિરંતર છઠ્ઠને પારણે છઠ્ઠની તપસ્યા વડે પેાતાના मात्माने आवित ४श्तो हुतो. 'तएण से वरुणे णागणत्तुर अन्नया कमाई 26वे पेठ हिवसे येवुं मन्यु ं द्वै ते नागपौत्र वरुथुने 'रायाभिओगेणं, बलाभिओगेणं, रहमुसले संगामे आणत्ते समाणे ' નૃપના આગ્રહથી, સ્વજનાદિ સમુદૃાયરૂપ , ७५० प्राशुकैषणीयेन औषधभैषज्येन - શ્રી ભગવતી સૂત્ર : પ

Loading...

Page Navigation
1 ... 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866