Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 738
________________ ७२० भगवतीसूत्रे गौतम ! रथमुसले खलु संग्रामे वर्तमानेपवर्तमाने सति एको रथः, 'अणासए' अनश्वः अश्वरहितोऽपि, 'असारहिए' असारथिका सारथिशून्योऽपि 'अणारोहए' अनारोहका आरोहवर्जितोऽपि योधवर्जितोऽपि केवलं समुसलः मुसलयुक्तः 'महया-महया जणक्खयं, जणवहं, जणप्पमई, जणसं बट्टकप्पं, रुहिरकद्दमं करेमाणे सवओ समंता परिधावित्था' तत्र 'महया-महया' महान्तं महान्तं 'जणक्खयं' जनक्षयं-जनविनाशम् 'जणवह' जनवधं जनमारणम् 'जणप्पमई' जनपमर्दम्-जनचूर्णनम्, 'जणसंवट्टकप्पं जनसंवर्तकल्पम् जनसंहारसदृशम् 'रुहिरकद्दमं' रुधिरकर्दमम् 'करेमाणे' कुर्वन ‘सबओ समंता' सर्वतः समन्तात् परिधावितवान् फ्लायितबानित्यर्थः । एको रथः केवलं मुसलेन युक्तः परिधावन महाजनक्षयादिकं कृतवान्, अत एव ‘से तेणटेणं जाव रहमुसले अणारोहए, समुसले' रथमुसलसंग्राम जब हो रहा था-तब उस में जो रथ होता है वह एक ही होता है उसमें खींचने के लिये घोडा नहीं होते हैं । सारथी नहीं होता है। वह अनारोहक-योद्धा से रहित होता है । उसमें केवल एक मुसल ही होता है 'मया महया जणक्खयं, जणवहं, जणप्पमई, जणसंवहकप्पं, रुहिरकदमं करेमाणे सव्वओ समंता परिधावित्था' वह बहुत बडें जनसमूहका विध्वंस करता हुआ, जन समूहका वध करता हुआ, जनसमूहको चूर २ करता हुआ, उसका प्रलय करता हुआ तथा चारों तरफ लोहूकी कीचड मचाता हुआ इधरसे उधर चारों तरफ दौडता फिरता है। तात्पर्य कहनेका यह है कि केवल एक रथ ही मुसल से युक्त होकर इधरसे उघर दौडता हुआ महाजन क्षयको कर देता है । 'से तेणअणारोहए, समसले २थभुसा सश्राम न्यारे यासत जाय छे, त्यारे तमामे એવો રથ ચારે દિશામાં દેડયા કરતા હોય છે કે જે રથને ખેંચવા માટે ઘડા જોડેલા હેતા નથી, જેને ચલાવનાર સારથી હેત નથી, અને તેમાં લડનારા દ્ધા પણ હતા नथी. परन्तु ते २थमा मात्र से भुश राय छे. 'महया महया जणक्खयं, जणवह, जणप्पमई, जणसं वहकप्प, रुहिरकद्दमं करेमाणे सव्वओ समंता परिधावित्था' ते २५ ५ भोट नसभृडन विश्वास , सनसनी સંહાર કરતો, જનસમૂહના ભૂકેભૂકા ઊડાડતે, તેમને પ્રલય કરતા અને રક્તની ધારાઓ રૂપી કીચડ ઉડાડતો ઉડાડતે આમ તેમ ચારે દિશામાં દેડે છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે આ પ્રકારના સંગ્રામમાં મુસળથી યુક્ત એ એક રથ જ દુશ્મનના સેન્યમાં મેર દેડાદોડ કરીને દુશ્મન દળને સંહાર કરે છે અને હાહાકાર મચાવી દે છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫

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