Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.६ उ.८ सू.१ पथिवीस्वरूपनिरुपणम् १०१ गेहावणा इवा?' हे भदन्त ! सन्ति खलु अस्या रत्नप्रभायाः पृथिव्या अध: अयोमागे स्थिताया गेहाः गृाः इति वा ? गेहापणाः हटाः इति वा ! मगवानाह-गोयमा ! णो इणढे समडे' हे गौतम ! नायमर्थः समर्थः रत्नमायाम् अधः गेहा गेहापणा वा नैव सम्भवन्ति । गौतमः पुनः पृच्छति-'अत्थिर्ण मंते ! इमीसे रयणप्पभाए अहे गामा इवा, जाव-संनिवेसा इवा ?' हे भदन्त ! सन्ति खलु अस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्याम् अधोभागे स्थितायां ग्रामा इति चा, यावत्-सन्निवेशा इति वा ? यावत्करणात् आकराणि इति वा, नगराणि इति पन्भारा' रत्नप्रभा यावत् ईषत्प्राग्भारा सिद्धशिला यहां यावत् पदसे 'शकेरामभा' बालुकाप्रभा, पंकमभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा, तमतमःप्रभा' इन अवशिष्ट पृथिवियोंका संग्रह हुआ है। अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं कि 'अस्थि णं भंते। इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे गेहाइ वा गेहावणा इ वा' हे भदन्त ! इस रत्नप्रभापृथिवीके नीचे गृह और गृहापण हाट है क्या? इसके उत्सरमें प्रभु उनसे कहते हैं कि 'गोयमा ! णो इणढे समढे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् रत्नप्रभाके नीचे गृह एवं गृहापण नहीं है। अब गौतमपुनःप्रश्न करते हैं कि 'अस्थि णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए अहे गामाइ वा जाव संनिवेसाइ वा' अधोभागमें स्थित इस रत्नप्रभा पृथिवीमें क्या प्राम यावत् सन्निवेश हैं ? उत्तरमें प्रभु उनसे कहते हैं कि गौतम ! 'णो इणटे समढे' यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् रत्नप्रभा पृथिवीके नीचे ग्राम यावत् सन्निवेश नहीं हैं यहां यावत् पदसे (१) २त्नमला, (२) राप्रमा, (3) वायुप्रभा, (४) धूमप्रमा, (६) तम:प्रमा, भने (७) तमः तमः प्रना मने (८) पालास.
गौतम स्वामीन। प्रश्न-'अस्थि णं भंते ! इमीसे रयण्पभाए पुढयीए अहे गेहाइ वा गेहावणाइया?'348-d! मा २त्नमा पृथ्वी नीचे ७ (३२) अने Psipu (डाट) छे ? उत्तर-'गोयमा णो इमडे समटे 13 गौतम! या અર્થ સમર્થ નથી–એટલે કે ત્યાં ઘર, હાટ આદિ નથી. ગૌતમ સ્વામીને પ્રશ્ન'अवि गं भंते ! ईमीसे रयण्पभाए पुढवीए गामाइ वा संनिवेसाइ वा?' હે સદન! અભાગમાં રહેલી એવી આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીમાં શું ગામથી સન્નિવેશ
-तना स्थान समवित छ ? महावीर प्रभुने। उत्त२-'गोयमा णो इणटे समढे' गौतम या मालि स्याना नयी. जाव संनिचेसाइ वा'भार 'जा' VE साव छ तयी नीयन। स्थानविशेष अडर १२५॥ २७-'आकराणि इति
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫