Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७३.६स.५ भाविभरतक्षेत्रीयमनुष्यावस्थानिरूपणम् ५७९ कहिं गच्छिहिति, कहिं उववज्जिहिति ?' कालमासे मरणसमये कालं कृत्वामरणधर्म प्राप्य कुत्र गमिष्यन्ति, कुत्र उत्पत्स्यन्ते ? भगवानाह-गोयमा ! ओसन्नं नरगतिरिक्खजोणिएमु उववज्जिहिति' हे गौतम ! अबसन्नं प्रायो नरकतिर्यग्योनिकेषु उत्पत्स्यन्ते । गौतमः पृच्छति-'ते णं भंते ! सीहा, वग्या. वगा, दीविया, अच्छा, तरच्छा, परस्सरा, निस्सीला तहेब जाव कहिं उवकिच्चा कहिंगच्छर्हिति कहिं उवजिहिति' काल अवसर काल करके कहांपर जावेंगे कहां उत्पन्न होंगे ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि 'गोयमा ! हे गौतम ! 'ओसन्नं नरगतिरिक्ख जोणिएसु उववजिहिति' ऐसे वे मनुष्य प्रायः करके नरक एवं तिथंच की योनिवालों में उत्पन्न होंगे। अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'तेणं भंते ! सीहा, बग्घा, बगा, दीविया, अच्छा, तरच्छा, परस्स। निस्सीला तहेव जाव कहिं उववज्जिहिति' हे भदन्त ! वे सिंह, व्याघ्र, वृक, द्वीपकचीता, ऋच्छ रीछ, तरक्ष गेंडा अथवा व्याघविशेष, एवं शरभ ये सब व्रतादि से रहित बने हुए यावत् मर्यादा रहित बने हुए कालमासमें मर करके कहां पर उत्पन्न होंगे ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'ओसन्न' प्रायः करके 'नरकतिरिक्खजोणिएसु उववज्जिहिंति' ये सबके सब इस स्थितिमें नरक
और तिर्यञ्च योनिवालोंमें उत्पन्न होंगे। अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'तेणं भंते ! ढंका, कंका, विलका, मद्दगा, सिही,
उत्तर " गोयमा " हे गौतम ! ओसन्नं नरगतिरिक्खजोणिएस उववज्जहिति मेवाते मनुष्यो भोट मागे न२४ गतिमा अथवा तिय योनीवा જેમાં ઉત્પન થશે.
गौतम स्वामीनप्रश्न :- " तेणं भंते सीहा वग्धा बगा दीविया अच्छा तरच्छा, परस्सरा निस्सीला तहेव जाव कहिं उववन्जिति "
मान्त ! ते सिड, वाघ, १३, ही५i, N७, तरस (गे) भने २२म, नि:la આદિ અશુભ ગુણોવાળા હોય છે તેમનામાં વ્રતે, પ્રત્યાખાને આદિને અભાવ હોય છે. તો હે ભદન્ત ! તેઓ કાળ અવસરે મરણ પામીને ક્યાં ઉત્પન થશે ?
महावीर प्रभुनी उत्तर :- " गोयमा " गौतम " ओसन्न" सामान्य शत at " नरगतिरिक्खजोणिएमु उववज्जिहिंति " न्य। मां न२४तिभा અને તિર્યંચ એનિઓમાં ઉત્પન્ન થશે.
गौतम स्वामीना प्रश्न:- " तेणं भंते ! ढंका, कंका, विलका, महगा.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫