Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ.७ सू.३ छद्मस्थादिनिरूपणम् बलेन, वीर्येण, पुरुषकार-पराक्रमेण विपुलान् भोगभोगान् मुञ्जानो विहर्तुम् ? तत् नूनं भदन्त ! एतमर्थम् एवं वदथ ? । गौतम ! नायमर्थः समर्थः । तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते । गौतम ! प्रभुः खलु स उत्थानेनापि,
__ छद्मस्थादिवक्तव्यता'छउमत्थेणं भंते !' इत्यादि । सूत्रार्थ-(छउमत्थेणे भंते ! मणूसे जे भविए अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववजित्तए) हे भदन्त ! जो कोइ छद्मस्थ मनुष्य किसी भी देवलोकमें देवरूप से उत्पन्न होने के योग्य हो (से गुणं भंते ! से वीणभोगी) वह क्षीणभोग दुर्बलशरीर होता हुआ हे भदन्त ! क्या (उत्थाणेणं कम्मेणं, बलेणं, वीरिएणं, पुरिसक्कारपरक्कमेणं विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए नो पभू) उत्थानद्वारा, कर्मद्वारा, बलद्वारा, वीर्यद्वारा, एवं पुरुषकार पराक्रमद्वारा विपुल भोगभोगों को भोगनेके लिये समर्थ नहीं हो सकता है (एयम₹ एवं वयह ) हे भदन्त ! आप क्या इस बातका समर्थन करते है ? (गोयमा) हे गौतम (णो इणढे समढे,) यह अर्थ समर्थ नहीं है । ( से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारणसे कहते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (पभू णं से उट्ठाणेण वि, कम्मेण वि बलेण वीरिएण वि, पुरिसक्कारपरक्कमेण वि अण्णयराइं विउ.
स्थाति तयता“ छउमत्थेणं भंते !" त्याह सूत्रार्थ- ( छउमत्थे णं भंते ! मणूसे जे भविए अन्नयरेसु देवलोएसु देवताए उववजित्तए ) महन्त ! छमस्थ मनुष्य आई मे मा १३५ उत्पन्न पाने योग्य डाय छ, ( से गूणं भंते ! से खीणभोगी ) तेनु शरीर दुमे यतi ( उत्थाणेणं कम्मेणं, बलेणं, वीरिएणं, पुरिसकारपरक्कमेणं विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए नो पभू ) शुत उत्थान ६, महारा, બળદ્વારા, વીર્યધારા અને પુરુષકાર પરાક્રમઠારા વિપૂલ ભોગ્ય ભેગોને ભેગવવાને સમર્થ डातेनयी. ? ( एयमद्रं एवं वयह ) महन्त ! २५ ते वातनुं समर्थ । छ। ? ( गोयमा ) गौतम ! ( णो इणट्रे समटे ) मे सवी शतु नथी. ( से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ ?) सह-त मा५ । २२ मे ४ छ। ? ( मोयमा ) 3 गौतम ! (पभूणं से उठाणेण वि, कम्मेण कि, बलेण कि, वीरिएण वि, पुरिसक्कारपरक्कमेण वि अण्णयराइं विउलाई भोगभोगाइं मुंजमाणे
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫