Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसगे पारगतानि रूपाणि द्रष्टुम्, यः खलु नो प्रभुः देवलोकं गन्तुम्, यः खलु नो मभुः देवलोकगतानि रूपाणि द्रष्टुम्, एवं खलु गौतम ! प्रभुरपि प्रकामनिकरणं वेदनां वेदयति । तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ॥ सू० ५ ॥
टीका-'अस्थि णं भंते ! पभू वि पकामनिकरणं वेयण वेएइ ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! अस्ति संभवति खलु प्रभुरपि संज्ञित्वेन समनस्कतया रूपहे गौतम ! (जे णं नो पभू समुदस्स पारं गमित्तए, जे णं नो पभू समुदस्स पारगयाइं रूवाई पासित्तए, जे शं नो पभू देवलोगं गयाई रूवाई पासित्तए, एस णं गोयमा ! पभू वि पकामनिकरणं वेयणं वेएइ सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति) जो जीव समुद्रके पारको प्राप्तकरनेमें समर्थ नहीं है, जो जीव समुद्रके पारमें रहे हुए पदार्थों को देखने के लिये समर्थ नहीं है, जो जीव देवलोकमें जानेके लिये समर्थ नहीं है, जो जीव देवलोकमें रहे हुए पदार्थों को देखने के लिये समर्थ नहीं है हे गौतम ! ऐसा वह जीव समर्थ होते हुए
भी तीव्र इच्छापूर्वक वेदनाका वेदन करता है। हे भदन्त ! आपके द्वारा कहा गया यह सब विषय सर्वथा सत्य है, हे भदन्त ! आपके द्वारा कहा गया यह सब विषय सर्वथा सत्य है। ऐसा कहकर गौतम यावत् अपने स्थान पर विराजमान हो गये।
टीकार्थ-जीवका अधिकार होने से यहां पर सूत्रकारने संजी जोवोंके ही प्रकामनिकरण वेदनाके विषयमें कहा है इसमें गौतमने (गोयमा ) 3 गौतम ! (जे णं नो पभू समुदस्स पारं गमित्तए, जे ण नो पभू समुदस्स पारगयाइ रूबाई पासित्तए, जेणे नो पभू देवलेागं गमित्तए जे शं नो पभू देवलेोगायाई रूवाई पासित्तए, एसणं गोयमा ! पभ्र विपकामनिकरणं वेयणं वेएड) मे समुद्रने पा२ वाले समय नथी, જે જીવ સમુદ્રને પાર પેલે પાર રહેવા પદાર્થોને જોઈ શકવાને સમર્થ હેતા નથી. જે જીવ દેવલેકમાં જવાને સમર્થ નથી, અને જે જીવ દેવલોકમાં રહેલા પદાર્થોને જેવાને સમર્થ નથી, એ છવ સમર્થ હોવા છતાં પણ તીવ્ર ઈચ્છાપૂર્વક વેદનાનું वहन ४२ छ. (सेवं भते ! सेवं भते! ति) हे महन्त ! २ मापे ते सवथा सत्य छे. હે ભદન્ત ! આ વિષયનું આપે જે પ્રતિપાદન કર્યું તે સર્વથા સત્ય છે, આ પ્રમાણે કહીને પ્રભુને વંદણ નમસ્કાર કરીને ગૌતમ સ્વામી પિતાને સ્થાને વિરાજમાન થઈ ગયા
ટીકાથ– જીવને અધિકાર ચાલુ હોવાથી સવારે અહીં સંસી છોની પ્રકામ નિકરણ વેદનાનું નિરૂપણ કર્યું છે આ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી મહાવીર
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫