Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
________________
प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. ७ उ.३ म.५ वेदनानिर्जरास्वरूपनिरूपणम् ४८१ अण्णम्मि समए णिज्जरैति' अन्यस्मिन् समये वेदयन्ति, अन्यस्मिन् समये निर्जरयन्ति, 'अण्णे से वेयणासमए, अण्णे वे णिज्जरासमए' अन्यः स वेदनासमयः, अन्यः स निर्जरासमयः, तदुपसंहरति-'से तेणटेणं जाव न से वेयणासमए' हे गौतम ! तत् तेनार्थेन यावत्-एवमुच्यते नरयिकाणां यो वेदनासमयः ने स निर्जरासमयः, यो निर्जरासमयः न स वेदनासमयः 'एवं जाव-वेमाणियाणं' एवं नैरयिकवदेव यावत्-भवनपतिमारभ्य वैमानिक पर्यन्तानां यो वेदनासमयः न स निर्जरासमयः, यो निर्जरासमयः, न स वेदनासमयः सू० ५॥ उसकी निर्जरा करते है उस समयमें वे उसका वेदन नहीं करते हैं। 'अण्णम्मि समए वेदेति, अण्णम्मि समए णिजरेंति' किन्तु अन्य समयमें वेदन करते है और अन्य समयमें निर्जरा करते है। इस तरह 'अण्णे से वेयणासमए अण्णे से णिजरासम्मए' वेदना का वह समय भिन्न है और निर्जरा का वह समय भिन्न है। 'से तेणटेणं जावन से वेयणासमए' इस कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि नैरयिक्त जीवोंका वेदना का जो समय है, वह निर्जराका समय नहीं है
और जो निर्जरा का समय है वह वेदना का समय नहीं है । 'एवं जाव वेमाणियाणं' नैरयिक की तरह से ही भवनपति से लेकर बैमानिकतक देवों का जो वेदना समय है वह उनकी निर्जरा का समय नहीं है और जो निर्जरा का समय है वह उनका वेदना का समय नहीं है ॥सू० ५॥ નિજર કરતા નથી, અને જે સમયે તેઓ કમની નિર્જરા કરે છે, એ જ સમયે તેનું वहन ४२ता नथी. 'अण्णम्मि समए वेदेति, अण्णम्मि समए णिज्जति' પરંતુ જે સમયે વેદન કરે છે તેના કરતાં અન્ય સમયે નિર્જરા કરે છે. આ રીતે 'अण्णे से वेयणासमए, अण्णे से णिज्जरासमए' वहनाना के समय ते ५५ ભિન્ન છે. અને નિર્જરા સમય છે તે પણ ભિન્ન છે. એટલે કે અને એક જ સાથે थती नथी. 'से तेण ट्रेणं जाच न से वेयणासमए । गौतम! ते १२ મેં એવું કહ્યું છે કે નારક જીવોને જે વેદનાને જે સમય છે, એ જ નિર્જરાનો સમય नयी, मने निशन। २ समय छ, मेरी वहनानो समय नथी. 'एवं जाव बेमाणिया णं भवनपतिथी सधन वैमानि सुधान। वार्नु वहना भने निशर्नु કથન, નારકના વેદના અને નિર્જરાના કથન પ્રમાણે જ સમજવું એટલે કે તેમની વેદનાને અને નિજાને સમય એક જ હતા નથી, પણ જુદે જુદી હોય છે, એમ સમજવું સૂપા
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫