Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
४५८
भगवतीसूत्रे या वेदना सा निर्जरा, या निर्जरा सा वेदना ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-नैरयिकाणां या वेदना न सा निर्जरा, या निर्जरा न सा वेदना ? गौतम ! नैरयिकाणां कर्मवेदना, नो कर्मनिर्जरा, तत् तेनार्थेन गौतम ! यावत् न सा वेदना, एवं यावत्-वैमानिकानाम् । अथ नूनं भदन्त ! यत् अवेदिषुः तत् निरजारिषुः यत् निरजारिषुः तत् जा निज्जरा सा वेयणा) हे भदन्त ! नारकजीवोंकी जो वेदना है वह क्या निर्जरारूप है ? और जो उनकी निर्जरा है वह क्या वेदनारूप है ? (गोयमा) हे गौतम ! (णो इणठे समढे) यह अर्थ समर्थ नहीं है । (से केणटेणं भंते ! एवं घुचह, नेरइयाणं जा वेयणा न सा णिजरा, जा णिज्जरा, न सा वेयणा) हे भदन्त । ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि नैरयिक जीवोंकी जो वेदना है वह निर्जरारूप नहीं है और जो निर्जरा है वह वेदनारूप नहीं है ? (गोयमा) हे गौतम! (नेरइयाणं कम्मवेयणा णो कम्मंनिजरा, से तेण?णं गोयमा ! जाव न सा वेयणा) नारकजीवोंकी जो वेदना है वह कर्मरूप है और निर्जरा नोकर्मरूप है इसलिये हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है यावत् वह वेदनारूप नहीं है । (एवं जाव वेमाणियाणं) इसी तरहसे यावत् वैमानिकोंमें जानना चाहिये । (से णूणं भंते ! जं वेदेंसु तं निजरिंसु, जं (नेरइयाणं भंते ! जा वेयणा सा निजरा, जो निज्जरा सा वेयणा ?) હે ભદન્ત! નારક જીવની જે વેદના હોય છે તે શું નિર્જરારૂપ હોય છે? અને તેમની २ नि । हाय छे शु वेहना३५ डाय छे? (गोयमा !) हे गौतम! (णो इण? समडे) मे मनी शतु नयी. (से केणगुणं भंते ! एवं वुच्चइ, नेरइयाणं जा वेयणा न सा निज्जरा, जा निज्जरा न सा वेयणा?) हे महन्त ! मे भा५ । કારણે કહો છો કે નારક છવોની વેદના નિરારૂપ હોતી નથી ? (गोयमा !) हे गौतम ! (नेरइया कम्मवेयणा णो कम्मनिज्जरा, से तेणगुणं गोयमा! जाव न सा वेयणा) ना२४ ७वानी 2 वेहना ५ छे ते भ३५ हाय छ અને નિર્જર નેકર્મરૂપ હોય છે, તેથી હે ગૌતમ! મેં એવું કહ્યું છે કે નારકેની वना नि३५ हाती नथी मने निकश वहना३५ होती नथी. "एवं जाव वेमाणिया णं' में प्रभा वैमानि: पय-तना हेवानी वेदना भने निसर्नु કથન સમજવું.
(से गुणं भंते ! जं वेदेंसु तं निजरिंस, जं निजरिंसु तं वेदेमु ?
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫