Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ.३ २.५ वेदनानिर्जरास्वरूपनिरूपणम् ४७५ नेरइया वि, जाव वेमाणिया' एवं समुच्चयजीववदेव नैरयिका अपि यावत्भवनपतिमारभ्य वैमानिकान्ताः यद् वेदयन्ति न तद् निर्जेरयन्ति, यद् निर्जरयन्ति न तदेव वेदयन्ति । अथ भविष्यकालमाश्रित्य प्राह-'से गूणं भंते ! जं वेदिस्संति, तं निज्जरिस्संति, जं निज्जरिस्संति तं वेदिस्संति ? हे भदन्त ! तत् नूनं निश्चयेन किम् यत् कर्म वेदयिष्यन्ति तत् निर्जरयिष्यन्ति, यत् कम निरयिष्यन्ति तदेव वदयिष्यन्ति ? भगवानाह-गोयमा ! णो इणटे समढे' हे गौतम ! नायमर्थः समर्थः यद् वेदयिष्यन्ति न तद् निर्जरयिष्यन्ति, इया वि जाव वेमाणिया' हे गौतम ! समुच्चय जीवकी तरह ही नैरयिकमें यावत् भवनपतिसे लेकर वैमानिक देवतकके २४ दण्डकों में भी इसी तरहसे जानना चाहिये अर्थात् नैरयिकसे लेकर यावत् वैमानिक तकके जितने भी देव हैं वे सब जिस कर्मका वेदन करते हैं उसी कर्म की वे निर्जरा नहीं करते हैं, और जिस कर्म की वे निर्जरा करते हैं उसी कर्म का वे वेदन नहीं करते हैं वेदन कर्म का करते हैं और निर्जरा नोकर्म की करते हैं। अब सूत्रकार भविष्यकाल को लेकर कहते हैं इसमें गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं कि से गूणं भंते ! जं वेदिस्संति, तं निज्जरिस्संति' ज निज्जरिस्संति तं वेदिस्संति' हे भदन्त ! यह निश्चित है क्या कि जीव जिस कर्मका वेदन करेंगे उसी कर्म की क्या वे निर्जरा करेंगे और जिस कर्म की वे निर्जरा करेंगे क्या उसी कर्मका वे वेदन करेंगे ? उत्तरमें जाव वेमाणिया' हे गौतम ! सभुश्यय अपना रे ॥ ४थन नायी ने વૈમાનિકે પર્યતને ૨૪ દંડકમાં પણ સમજવું. એટલે કે નારથી લઈને વૈમાનિકે સુધીના જેટલા દેવે છે તેઓ બધાં પણ જે કર્મનું વેદન કરે છે, એ જ કર્મની નિજર કરતા નથી, અને જે કર્મની નિર્ભર કરે છે, એ જ કર્મનું વેદન કરતા નથી. તેઓ કમનું દાન કરે છે અને કર્મની નિજર કરે છે.
હવે સરકાર ભવિષ્યકાળને અનુલક્ષીને જીવોની વેદના અને નિર્જરાનું પ્રતિપાદન ४२ - गौतम स्वामी महावीर प्रभुने सेवा प्रश्न पूछे छे - 'से गृणं भंते ! जं वेदिस्संति, तं निजरिस्संति, जं निजरिस्सात तं वेदिस्संति ?' महन्त ! શું એ વાત ખરી છે કે છે જે કર્મનું વેદન કરશે, એ જ કર્મની તેમના દ્વારા નિજર થશે, અને તેઓ જે કર્મની નિર્જરા કરશે, એ જ કર્મનું તેમના દ્વારા વેદન થશે?
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫