Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीने इति वा ? नायमर्थः समर्थः । अस्ति खल भदन्त ! उदारा बलाहकाः ! इन्त, अस्ति । देवः प्रकरोति, असुरोप प्रकरोति न नागः मकरोति। एवं स्तनितशब्दोऽपि । अस्ति खलु भदन्त ! बादरः पृथिवीकायः बादरोऽनिकायः! नायमर्थः समर्थः, अन्यत्र विग्रहगतिसमापनकेन । अस्ति खलु भदन्त ! चन्द्रमाः ? नायमर्थः समर्थः, अस्ति खलु भदन्त ! ग्रामाः इति वा० ? नायगेहावणाइ वा) हे भदन्त ! सौधर्मकल्प एवं ईशानकल्प के नीचे गृह या गृहापण हैं क्या ? (णो इणद्वे समढे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। (अस्थि णं भंते ! उराला बलाहया) हे भदन्त ! सौधर्मकल्प और ईशानकल्पके नीचे विशाल मेघ हैं क्या ? (हंता अत्थि) हां गौतम ! विशाल मेघ हैं। (देवो पकरेइ, असुरो वि पकरेइ, णो नागो पकरेइ) उन मेघोंको देव करता है । असुर भी करता है । पर नाग नहीं करता है । (एवं थणियसहे वि) इसी तरहसे स्तनित शब्दके विषयमें भी जानना चाहिये । (अस्थि णं भंते ! बायरे पुढवीकाए, बायरे अगणिकाए) हे भदन्त ! वहां पर वादर पृथिवीकाय और बादर अग्निकाय है क्या ? (णो इणद्वे समढे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। (अस्थिणंभंते चंदिम) हे भदन्त ! वहां चन्द्रमा आदि है क्या? (णो इणद्वे समढे) हे गौतम यह अर्थ समर्थ नहीं है। ( नण्णत्थविग्गहगइसमावन्नएणं) केवल विग्रहगत्ति समापनक जीवोंको छोडकर। (अस्थि णं भंते चंदिम) हे भदन्त वहां चन्द्रमा आदि है क्या? (णो इणद्वे समढे । हे गौतम यह अथ समर्थ नही है) (अस्थि णं भंते ! गामाइवा ?) गेहावणाइ वा ?) मह-त! सीधम अने ४ान ४६५नी नाय शुरु मया डा५५ (2) छे ? (णो इणने समते) 3 गीतम! त्या माहि ४४ ५९५ नथी. (अत्थिणं भंते ! उराला बहालयो ?) हे मह-त! शुमा विश भेध छ ? (हंता अत्थि) ७, गौतम ? त्या विशा मेघ हाय छे. (देवो पकरेइ, अमरो वि पकरेइ, णो नागो पकरेइ) ते भेधार्नु सरवहन मावि ५५ ४२ से सने ससुर पार ४२७, परन्तु नामा२ ४२ता नथी. (एवं थणिय सद्दे वि) मे प्रमाणे स्तनित श६ (मेघगन) ना विषयमा ५ समन्व॒. (अस्थि णं भंते! बायरे पुढवीकाए, बायरे अगणिकाए ?) हे महन्त! त्यां शुमार वी५ भने मा२ मानाय छ ? (णो इणष्ट्रे समटे) हे महत! त्यां मार पृवीय माहि नथी, (नण्णत्थ विग्गहरी समावन्नएणं) गौतम! त्या ७ विगतिमा त भान જીને જ સદ્ભાવ છે, તે સિવાયના બાદર પૃથ્વીકાય આદિ જીવેને ત્યાં સભાવ નથી. (अस्थिणं भंते! चंदिम.) सह-त! त्यो यन्द्रमा मा छे २i ? (णो इणद्रे समद्रे) हे गौतम! ii यन्द्रमा म यातिषिही नथी. (अत्थिणं भंते ! गामाइ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫