________________
श्रेणिकराज्ञाग्रेव नपाल समागम
* विबुलिदेऊ मर
दाह
जोईसरुहारोस हरिस गंधम्मथिदेविषरिषु जाणई विग्रडसंघाहा पंचश्याकरणमदाप हा सत्तेगु विपालकम) पण इफेडियमंदमेड (गोवालुवक थमहिशा सोड, मंडलियमनडा, परिचरण जियाला इवनिहिलणिराय सर॥घता वर्दि दिराण उसाची पाठ सिंहास करु वेन्त्रणदेवीमंडिन नंश्रवखंडिय चल रतस्य अलमल रखलैपल सका।। लु जाम श्मेणिसा मिसालु तामायनतः जाण बालू मिरसिहरचड़ा दिय वाकडाल सवस्य विहियसामेतसेव सोपा सोसोपिसु पिदेव कुसुमसरपसरपसमणसमनु पीसेस मंगला सउपसत्रु अ दिश्रमरखरमिवण मित्रपाठ तलाक्पाइनिपुवाय न श्रदंडलमिम्मिय समवसरण च देवणिकायाणंदकर
योगीश्वर के समान क्रोध और हर्ष को नष्ट करनेवाला है, मानो क्षात्रधर्म ही पुरुष रूप में स्थित हो गया हो। वह विग्रह और सन्धि के स्थान को जानता है, मानो वह महामुख्य वैयाकरण हो। वह सप्तांग राज्य का पालन इस प्रकार करता है जैसे प्रकृतियों से निबद्ध उसकी देह हो पवन के समान जिसने मन्दमेह (मन्द मेघ/ मेधा - बुद्धि) को नष्ट कर दिया है। गोपाल के समान जो महिषी ( पट्टरानी और भैंस) से स्नेह करनेवाला है। जिनके चरण माण्डलीक राजाओं के मुकुटों से घर्षित हैं ऐसा वह जिनेन्द्रनाथ के समान निखिल मनुष्य राजाओं की शरण है।
सु
१. सप्त धातुओं; २. लम्बे हाथोंवाला
Jain Education International
धत्ता - एक दिन लम्बी बाँहोंवाला वह राजा अपने सिंहासन पर बैठा हुआ था। चेलना देवी से शोभित देवों को आनन्द देनेवाले वह ऐसा जान पड़ता था मानो नवलताओं ने कल्पवृक्ष को आलिंगित कर लिया हो ॥ १७ ॥
१८
अतुलित बलवाला, शत्रुकुल के लिए प्रलयकाल के समान, धरती का श्रेष्ठ स्वामी वह राजा जब बैठा हुआ था कि इतने में जिसने सिररूपी शिखर पर अपनी बाहुरूपी डाल चढ़ा रखी हैं, ऐसा उद्यानपाल वहाँ आया। अनवरत सामन्तों की सेवा करनेवाला वह कहता है- "हे देव, सुनिए, कामदेव के बाणों के प्रसार को शान्त करने में समर्थ, समस्त मंगलों के आश्रय, प्रशस्त, सूर्य, विद्याधर और मनुष्यों के द्वारा वन्दनीयचरण, त्रिलोक स्वामी जिन, वीतराग, इन्द्र के द्वारा जिनका समवसरण बनाया गया है, जो चारों निकायों के
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org