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तदिदसणहि खुप्पशायाममायणपके तंबूलनालण्अणिमसंके अहिंगठखरेदएमाण डिन
अमरदिमापुनहाहपडिउ जविधमकरमणधियार जलदासंतिणपत्रातमोर जहिविजय बडहडंडहिसरहिं सबकपिणाराणरहिं णवदिपायरकरतेविणगोसे चितपण्जल्पिंगणय पसिाधना भिंडरजयसिरिसारहिं गमकमा हिचलचावाणहितादिन जणिलजणाणराज्य हिं पश्चायहिणावश्लानरमाडिठात हिंसामिपायकिरा मारुत्यरधविला , पाठ कोसुदहुसंजामवेन डिवंसदहणणा जाम
राजगृहनगरंथ विठ पायामणवरामाहिामु स्वरोश्वपरडवघा क्षमण
लिकराजाचलण
राणी णियसायणिसविमटकामु मावणिवपयंडामघामाप विदंडोश्वणिलियलाङमयमाररावणासियमनकाय यक्षवियुस्यणेमुक्कमाण सुखकरिष्यविदाणME
गजों के मद और घोड़ों के फेनों की कीचड़ में और शंका उत्पन्न करनेवाले ताम्बूलों की पीक में खप जाता
१७ है। जहाँ रत्नों से विजड़ित राजकुल ऐसा लगता है मानो आकाश में अमरविमान आ टपका हो। जिन्हें धूप उसमें श्रेणिक नाम का राजा है जो गारुड़ गुरु (गरुड़ विद्या का जानकार) के समान, विज्ञातणाय (नागों के धुएँ से मन में शंका उत्पन्न हो गयी है ऐसे मयूर जहाँ मेघों की भ्रान्ति से नृत्य करते हैं, जहाँ विजय- का जानकार/न्याय का जानकार) है, जो कार्यों में कुशल फुरतीबाज और मानो शत्रुओं के वंश को जलाने नगाड़ों और दुन्दुभियों के स्वरों के कारण नर-नारियों को कुछ भी सुनाई नहीं देता। जहाँ प्रांगण प्रदेश में में अग्नि है। सीता के मन के समान जो रामाभिराम (जिसे राम और रामा सुन्दर है) है जो सूर्य के समान नव दिनकर की किरणों से आरक्त प्रभात के फैलने पर
दूसरों के द्वारा अलंध्य है। जो अपने समय के अनुसार कार्यों को सम्पादित करनेवाला है, जो हनुमान् के समान
अपना स्थैर्य प्रकट करनेवाला है, वज्रदण्ड की तरह जिसने लोह (लोहा/लोभ) को नष्ट कर दिया है, जो घत्ता-विजयश्री में श्रेष्ठ राजकुमारों के द्वारा चंचल चौगानों से प्रताड़ित गेंद ऐसी मालूम होती है मानो व्याधा की तरह मयसमूह (मद/मृग समूह) को नष्ट करनेवाला है, व्रतधारी की तरह जो गुरुजनों के प्रति लोगों में अनुराग उत्पन्न करनेवाले पर-मत के वादी कवियों द्वारा लोगों को भ्रमित कर दिया गया हो॥१६॥ विनीत है, ऐरावत गज की भाँति जो अखण्डित दानवाला है,
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