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लाईकासमापियाई पकजसमाणपाणिमाजहिंजणलंचणकंट्यकराल जलेपलिणेनिका। विमठमालावादिरनिहिहिदियसंबकसुलणुकोविनटकश्गुणहिंदीयुजदिलमरुतहिजसहिर सहाश्संगकसिरिणमएंजगहोणाशाचा कुसुमरेणुजहिमिलिमउ उद्दललियन कणयवघुम
सावदिशायरचूडामणिया नहकामिषिय एकंतुयरिदिनुपादांगाराजदिकीलागिरिम हरतरसाकमलदलवल्लिदरतरेखासिरको तिपखिदरदाविदाई विडमणियममा साथियाई जहिंपिकसालिनिधणेण
महिणनपरिक्षण गर्नेदापायले पाणिवतरितपलवचलेणा जदिसंबरशिवगोक्षणाईजवकंगमननपणुप्तिणाशा गोवालवालसदिमडपियति चलसलदोड़ा यलिमुदाति मायदवसमर्मजरिरपणादयतु] गणक्यमाणा जदिसायलसोहचाहियालिवाहणण्यानविकरचलिहरितामितिका मामणेहिं माणियणाईससासणेदि निरिणादकमाररादिणाणवणायकमारहिं रति मनासारिणहिंसामगयासाइरिणहिंासदारदितिसिरकादयाशणमणिवरगुणसिकावयाचा
मत्स्यों के द्वारा मान्य जो जल दूसरों के कार्य के समान शीतल है। जहाँ (सरोवरों में) कमल ने अपना काँटों शोभित है मानो उसने उपरितन वस्त्र के प्रावरण (दुपट्टे) को ओढ़ रखा हो। जो (प्रावरण) लम्बा, पीला से भयंकर, लोगों को नोचनेवाला नाल पानी में छिपा लिया है, तथा विकास को प्राप्त होता हुआ कोश बाहर और गिरते हुए शुकों के पंखों के समान चंचल है। जहाँ अनेक गोधन जौ, कंगु और मूंग खाते हैं, फिर घास रख छोड़ा है, बताओ कौन गुणों से अपने दोष को नहीं ढकता। जहाँ-जहाँ भ्रमर है, वहाँ-वहाँ पर वह लक्ष्मी नहीं खाते। जहाँ गोपालबाल रस का पान करते हैं और गुलाब के फूलों की सेज पर सोते हैं। जहाँ क्रोध के नेत्रों के अंजन के संग्रह के समान शोभित होता है।
करनेवाले शुक ने अपनी चोंच से आम्रकुसुम की मंजरी को आहत कर दिया है। जहाँ पर समतल राजमार्ग पत्ता-पवन से उड़ता हुआ, सुनहला, मिश्रित कुसुम-पराग मुझ कवि (पुष्पदन्त) को ऐसा लगता है शोभित है। उस पर वाहनों के पैरों से आहत धूल फैल रही है। जहाँ सईसों के द्वारा घोड़े घुमाये जा रहे हैं, मानो सूर्यरूपी चूड़ामणिवाली आकाशरूपी लक्ष्मी ने कंचुकी वस्त्र पहन रखा हो॥१३॥
जैसे खोटे शासनों से अज्ञानीजनों को घुमाया जाता है। महावतों के द्वारा हाथी वश में किये जा रहे हैं, जैसे १४
सपेरों के द्वारा साँप वश में किये जाते हैं। सवारों के द्वारा हाथी और घोड़े रोके जा रहे हैं, जैसे निराश आचार्यों जहाँ क्रीडापर्वतों के शिखरों के भीतर कोमल दलवाले लतागृहों में पक्षीगण थोड़ा-थोड़ा दिखना, और द्वारा शिष्यों को रोक लिया जाता है। खच्चरों को शिक्षा शब्द कहे जा रहे हैं, मानो मुनिवर गुणव्रतों और शिक्षा विटों के द्वारा मान्य काम की अव्यक्त ध्वनि करना सीख रहे हैं। जहाँ पके हुए धान्य के खेतों से भूमि ऐसी व्रतों को दे रहे हैं।
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