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परिंदा लमेलिसा अवसर इसरो वरदसपंत्ति चलधवला इंसपुरिस कित्ति जहिंसलिल ईमारुयपेल्लियाई रविसोसलपणन इल्लियाई जर्दिकमल हंसडलठिएसोड सससदरे एवहुउविरोड़ किरदोविताईम द्रणुझवाई आपतिमतं जड़सल वाइं अर्दिउकुवरसगझिणा इं गाव काकड हत्याएं जशतमदिस चमडलवाई मंथा मथियमथाणरवाई धवलुड सुरुवछाउलाई कालियगोवाल गोउला इं जहिंचरंगुल कोमल तणाई घणकणका मिसाल करिणा । घातहिन्द वलियमंदिरुयादिरु णमरु राजगिड रिहन कुलम दिदरथण दारिप वसुमारि एसइइ || १३ || संकेयागय विरहाय लाई सासोमपवद्दियकं चणाई वह लोखदि । घणाणाफलाई नावश्वलाइंमुजलाई जा दिमडगंड्स हिंसिनियां वितरिया दरण हिंदियाई सीमंतिणिपययोमा दमाई वियसंतविर डबुडी गयाई पिसमस्पियसद वाणासणाई जदिसंदरिसियवाणासालाई पडिखलिय सूरलावि यरणाई उजालावियरलाई उकलिवाल ईण व जोहलाई निरुस उन सन्रणमपाई जदिसीय
जैसे इन्द्रनील मणियों की विशाल मेखला हो सरोवर में उतरी हुई हंसों की कतार ऐसी मालूम होती है जैसे सज्जन पुरुष की चलती-फिरती धवल कीर्ति हो । जहाँ हवा से प्रेरित जल ऐसे मालूम होते हैं जैसे सूर्य शोषण के डर से काँप रहे हों। जहाँ कमल लक्ष्मी से स्नेह करते हैं लेकिन चन्द्रमा के साथ उनका बड़ा विरोध है। यद्यपि दोनों समुद्रमन्थन से उत्पन्न हुए हैं लेकिन जड़ (जड़ता और जल) से पैदा होने के कारण वे इस बात को नहीं जानते। जहाँ ईखों के खेत रस से परिपूर्ण हैं, मानो जैसे सुकवियों के काव्य हों। जहाँ लड़ते हुए भैंसों और बैलों के उत्सव होते रहते हैं, जहाँ मथानी घुमाती हुई गोपियों की ध्वनियाँ होती रहती हैं, जहाँ चपल पूँछ उठाये हुए बच्छों का कुल है, और खेलते हुए ग्वालबालों से युक्त गोकुल हैं। जहाँ चारचार अंगुल के कोमल तृण हैं और सघन दानोंवाले धान्यों से भरपूर खेत हैं।
धत्ता- उस मगध देश में चूने के धवल भवनोंवाला नेत्रों के लिए आनन्ददायक राजगृह नाम का समृद्ध नगर है, जो ऐसा लगता है मानो कुलाचलरूपी स्तनों को धारण करनेवाली वसुमतीरूपी नारी ने आभूषण धारण कर रखा हो । १२ ॥
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जिसके उद्यान- वन, कुलों के समान, संकेतागत विरहीजन [ संकेत से जिनमें बिरहीजन आते हैं / पक्ष में जिनमें संकेत से विरहीजन नहीं आते], अशोक सहित प्रवर्द्धितकंचन [जिनमें अशोक वृक्षों के साथ चम्पक वृक्ष बढ़ रहे हैं / पक्ष में, हर्ष के साथ स्वर्ण बढ़ रहा है], बहुलोक दत्त नाना फल (बहुत लोकों में नाना प्रकार के फल देनेवाले) और धर्मोज्वल (अर्जुन वृक्ष से उज्ज्वल, धर्म से उज्ज्वल) हैं। जहाँ उद्यान मधु (पराग और मद्य) के कुल्लों से सिंचित भावी रण के समान हैं। जो विंभरित (विस्मृत और विस्मित कर देनेवाले) आभरणों से अंचित हैं, जो सीमन्तिनियों के चरणकमलों से आहत हैं, जो बढ़ते हुए वृक्षों से वृद्धि को प्राप्त हो रहे हैं, जिनमें (उद्यानों में) कोयलों (कोकिलों) के द्वारा मान्य सुभग' आण' शब्द किया जा रहा है, (रण में) प्रियाओं के द्वारा मान्य सुभग आज्ञा शब्द (गजमुक्ता लाओ, युद्ध जीतकर आना इत्यादि) किया जा रहा है, जहाँ (उद्यानों में) बाण और अर्जुन वृक्ष दिखाई दे रहे हैं, जहाँ (रण में) धनुष और बाण दिखाई दे रहे हैं। जहाँ (उद्यानों और युद्ध में) सूर्य एवं शूरवीरों की प्रभा का विचरण अवरुद्ध हो रहा है, जहाँ का जल नवयौवन की तरह उत्कलित ( कल्लोलमाला से शोभित और कलि-रहित) है जो सज्जनों
के मनों की तरह अत्यन्त स्वच्छ है,
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