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उकिनङजणाहएताघरघरेसमअसारखडमनगालाविवोकपर्दिकरलकमश्सो मोकलिउखडबालि लेउदोसनश्पेकशाणचारणावासकेलाससेलासि किसरीक्षण वाणागुणातामिठ सामवसासममापसमामुही आईदेवापदेवाहिस्त्राबहा गोखहोसमुहा। हाउजॉकोमदं चितयंतपण्यअमेवेकहै निग्धविहावणाचारुचकेसरी सञ्चसारंसक झोलमालासरी वेरिणिहारणासुराणा लणाशासिजम्मतरेहालियावसणी साह दाणेणसंजाश्याजकिणी माणसम्व
तागणावकिपीनिजायतकलाकाण जावासिमा सवसासासमूहसमवासिणीसुदरमदरकंदरकालिरामुग्नपायोपागडहि दोलिरी पिवमार्यदगहिदिसिभियं स यवताहसताचवूतापिय खवा विवयावहाचा sी अंविधागोरिंगधारिसिहाड्या योमक्ताहवतापावन्नासझणामसूडामणीदेखिपोमावडेका विचारबारमयेसही ठाउमर्शमुहद्वयासारदा हानुहामहास सामगिणी गरिसो ठेट नएसग्निपीयन मशिनिमियहोज्यारो सहगहोरदो जोपससनिबंधही जण
घत्ता-घर-घर में घूमता हुआ असार दुर्नय करनेवाला दुष्ट परोक्ष में क्या कहता है? खोटे बोलनेवाले जन्मान्तर में हिंसा करनेवाली और स्तम्भन विद्यावाली ब्राह्मणी थी, जो साधुदान के कारण, सम्यकदर्शन और दुष्ट को लो मैं मुक्त करता हूँ। यदि उसे दोष दिखाई देता है तो वह उसे ग्रहण करे॥९॥
ज्ञान से युक्त, गुणों की अपेक्षा करनेवाली यक्षिणी हुई। जो गिरिनार पर्वत पर निवास करनेवाली सर्वभाषासमूह
को प्रकाशित करनेवाली, ऊँचे वटवृक्षों पर निवास करनेवाली, हँसती हुई और प्रिय बोलनेवाली है। जो १०
क्षुद्रवादियों के विवेक का अपघात करनेवाली, वादिनी, अम्बिका, गौरी, गान्धारी, सिद्धायनी तथा कमलपत्रों जो मुनीश्वरों के निवासस्थान कैलास पर्वत के शिखर पर निवास करता है, किन्नरियों की वेणु-वीणाओं के समान मुखवाली, पवित्र सती, ज्ञान की चूड़ामणि, पद्मावतीदेवी पवित्र सती हैं, ऐसी वह, मेरे काव्य-विस्तार की ध्वनियों से सन्तुष्ट होता है, जो श्यामवर्ण पुण्यात्मा प्रसन्न शुभ है, आदिदेव ऋषभ का देवाधिभक्त और के इस दुस्तर मार्ग में सहायक हो, देवी भारती मेरे मुख में स्थित हो। मेरी बुद्धि महाशास्त्रों की सामग्री से बुध है, ऐसा वह गोमुख यक्ष इस अप्रमेय कथा का चिन्तन करते हुए मेरे सम्मुख हो। जो विघ्नों का नाश सहित हो।" इस प्रकार का छन्द सर्गिणी छन्द कहा जाता है। करनेवाली, शास्त्रों के साररूपी जलों की कल्लोलमालाओं पर चलनेवाली, शत्रुओं का विदारण करनेवाली, घत्ता-“मेरे द्वारा रचित उदार शब्द से गम्भीर निबन्ध (महाकाव्य) की जो मनुष्य निन्दा करता है,
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