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उदसिमवियाणमि जाविख्यजयवंदहिं असिमुर्णिदहिसाकहकमयमाणमिाजाअकलंककति लकणमरमयादिदरणयपुरंदरमयसमाशं दनिलविसादिलुहारियाई गनणादारिदबिमारि याई एउपायईपामजलिसलाचश्हासपुराणशनम्मलाश सावादिनसारहिसासुवासको हलुकोमलगिरकालिदास चवमुदसर्यमुसि रिहरिसुदाणु णालायउकसाएंचाए नउ धामणलिंगुणगणसमासु उकामकरणकि रिटाविससुणउसंधियाकारउपयसमति पाणियमश्वविविधि नखुशि उप्रायमसधाम सिधवलुजसव वलणामुपहरुद्दडुजरणिपासयारूपरिया लिनणालंकारसास विगलपचारुसमुहि। पडिला पक्याविमहारवितिचडिठ जसध्धु सिधुकल्लालसितु णकलाकोयलनिवउनि हिचा वापपिरकरकाखिमुख शाखसहिडमिचारुख अडॅपमुहोमहायुरिषु कुडए णमवश्कोजलनिहाएं अमरापुरगुरुयणमणदरहिर्जियासिक्यिमुणिगणदर्हि संदर मिकहमितीतरण किंमदमसमिजामडायरेणापडविपाठपयासिउसजशाह मुहिमसिक्कोप
देशी को नहीं जानता और जो कथा विश्ववन्द्य मुनीन्द्रों के द्वारा विरचित है उसका मैं किस प्रकार वर्णन पद-समाप्ति का, और न ही मैंने एक भी विभक्ति का ज्ञान प्राप्त किया। शब्दों के धाम, सिद्धान्तग्रन्थ धवल करूं?॥८॥
और जयधवल आगमों को भी मैंने नहीं समझा। जड़ता का नाश करनेवाले कुशल रुद्रट और उनके
अलंकारसार को भी मैंने नहीं देखा। न में पिंगल प्रस्तार के समुद्र में पड़ा। और न ही कभी यश से चिह्नित अकलंक (जैनाचार्य), कपिल (सांख्यदर्शन के प्रवर्तक), कणयर (कणाद-वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक) लहरों से सिक्त सिन्धु मेरे चित्त पर चढ़ा। और न मैंने कलाकौशल में अपने मन को लगाया। मैं बेचारा जन्मजात के मतों, द्विज (वेदपाठी-कर्मकाण्डी), सुगत (बौद्ध) और इन्द्र (चार्वाक) के सैकड़ों नयों, दत्तिल और मूर्ख हूँ। चर्म से आच्छादित वृक्ष (ठ)-सा मनुष्य के रूप में घूम रहा हूँ। महापुराण अत्यन्त दुर्गम होता विसाहिल के द्वारा रचित संगीतशास्त्र और भरत मुनि के द्वारा विचारित नाट्यशास्त्र को मैंने ज्ञात नहीं किया। है, बड़े से समुद्र को कौन माप सकता है? देवों, असुरों और गुरुजनों के लिए सुन्दर मुनियों एवं गणधरों पतंजलि के भाष्यरूपी जल को मैंने नहीं पिया। निर्मल इतिहास और पुराण, भावाधिष भारवि, भास, व्यास, ने जिस महापुराण की रचना की है, मैं भी भक्तिभाव से भरकर उसकी रचना करता हूँ। क्या आकाश में भ्रमर कोहल, कोमलवाणीवाले कालिदास, चतुर्मुख, स्वयम्भू, श्रीहर्ष, द्रोण, कवि ईशान और बाण का भी मैंने के द्वारा न घूमा जाये (क्या वह भ्रमण न करे)? यह विनय मैंने सज्जन लोगों के प्रति की है, दुर्जनों के मुख अवलोकन नहीं किया। न मैंने धातु, लिंग, गण, समास, न कर्म, करण, क्रियानिवेश, न सन्धि, कारक और पर तो मैंने स्याही की कूँची ही फेरी है।
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