Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो सुयदेवस्स पंचम गणधर भगवत् सुधर्मा स्वामि-प्रणीत षष्ट आगम अंग सचित्र ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र द्वितीय भाग (मूल पाठ-हिन्दी, अंग्रेजी अनुवाद सहित) 9. 999:9:9:94949494949494-94444444 24:04:04AAAADA be.5050-50-50150-606@5086060460HQAb050.50-50-60ACAbob0-6045050500050b0.50 प्रधान सम्पादक उपप्रवर्तक श्री अमर मुनि सम्पादक श्रीचन्द सुराना 'सरस' प्रकाशक पद्म प्रकाशन पद्मधाम, नरेला मण्डी, दिल्ली-११००४0 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर भारतीय प्रवर्तक गुरुदेव भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज की चौंसठवीं पावन दीक्षा जयन्ती पर प्रकाशित सचित्र आगम माला का चतुर्थ पुष्प सचित्र ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (द्वितीय भाग) * प्रधान सम्पादक: उपप्रवर्तक श्री अमर मुनि सम्पादक: श्रीचन्द सुराना 'सरस' * अंग्रेजी अनुवादक : सुरेन्द्र बोथरा 9dAGAGADRAGED89899889898992989d9898989890989098989d984982989da ab@AMOAb0505050b0b0b0-5000-50-50-50-50-50-501005060050GOO2050AMCG0250-50 * चित्रकार: सरदार पुरुषोत्तमसिंह सरदार हरविंदरसिंह * प्रकाशक: पद्म प्रकाशन पद्मधाम, नरेला मण्डी, दिल्ली-११००४० दिवाकर प्रकाशन ए-७, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, आगरा-२८२ 00२ फोन : ३५११६५ * प्रथम आवृत्ति : वि. सं. २०५३ पौष ईस्वी सन् १९९७, जनवरी * मूल्य: पाँच सौ रुपया मात्र Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NAMO SUYADEVASSA THE SIXTH AGAM-ANGA BY THE FIFTH GANADHAR, BHAGAVAT SUDHARMA SWAMI ILLUSTRATED JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA SECOND PART E DOOOOOOOOOOOOOOSESEOCEOE dedededeldende (ORIGINAL TEXT WITH HINDI AND ENGLISH TRANSLATIONS) acabebeabeasca (azazvaloareascarcat calcaneaheancaneascarcarea cascabeancat eucarabe Blancascabeasca calablablablablablablablablablablablablablablablablablablablablablabe Editor-in-Chief UP-PRAVARTAK SHRI AMAR MUNI Editor SRICHAND SURANA 'SARAS' PUBLISHERS PADMA PRAKASHAN PADMADHAM, NARELA MANDI, DELHI-110 040 Q Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * Illustrated Jnätä Dharma Kathānga Sutra (Second Part) * Published on the occasion of the sixty fourth anniversary of the pious Diksha ceremony of Uttar Bharatiya Pravartak Gurudev Bhandari Shri Padmachandra ji Maharaj THE FOURTH NUMBER OF THE ILLUSTRATED AGAM SERIES * * Editor : Editor-in-Chief: Up-pravartak Shri Amar Muni Srichand Surana 'Saras' Translator: Surendra Bothara * Illustrator : Sardar Purushottam Singh Sardar Harvinder Singh * Publishers: PADMA PRAKASHAN Padmadham, Narela Mandi, Delhi-110 040 DIWAKAR PRAKASHAN A-7, Awagarh House, M. G. Road, Agra-282 002 Phone: 351165 * First Edition : Paush, 2053 Vikram January, 1997 * Price : Rupees Five Hundred only 米米香米米醋 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 34343 प्रकाशकीय इस संसार में बुद्धिमान् और विद्वान् तो हजारों-लाखों मिलेंगे, परन्तु ज्ञानी बहुत कम मिलेंगे। ज्ञानी होने का मतलब है - जीव और जगत् के प्रति संतुलित ज्ञान तथा आत्मा-परमात्मा, जड़-चेतन, अध्यात्म और विज्ञान की सही समझ और सही वर्तना । वही संतुलित जीवन जी सकता है और दूसरों को भी जीवन की संतुलित शैली सिखा सकता है। धर्मशास्त्र ज्ञान देता है, जीवन जीने की कला सिखाता है। इसलिए हम धर्मशास्त्र को कोरी पुस्तक या ग्रन्थ नहीं कह सकते, वह शास्त्र है और शास्त्र जीवन पर, मन पर शासन करने वाला होता है। इसलिए वह मानव का तृतीय नेत्र है। आज की भाषा में शास्त्र इंसान का ज़मीर है, आत्मा का विवेक है। और इसीलिए शास्त्र-स्वाध्याय का अपना खास महत्त्व है। उ. भा. प्रवर्त्तक गुरुदेव भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज सतत शास्त्र- स्वाध्याय की प्रेरणा देते रहते हैं। धर्मशास्त्र घर-घर में पहुँचें, पढ़े जायें, उनका स्वाध्याय हो-यही उनकी हार्दिक इच्छा है, जीवन की बहुत बड़ी अभिलाषा है। इसलिए वे पिछले तीस से अधिक वर्षों से सतत प्रेरणा एवं प्रचार करते रहे हैं। शास्त्र प्रकाशन के क्षेत्र में उनकी प्रेरणा एवं मार्गदर्शन से लगभग ३५ लाख रुपए से अधिक का साहित्य अब तक प्रकाशित/प्रचारित भी हो चुका है। यह हमारे लिए गौरव और प्रेरणा की बात है। गुरुदेव श्री के प्रधान शिष्य, विद्वद्रत्न और प्रबल धर्म प्रचारक, प्रवचन भूषण उपप्रवर्तक श्री अमर मुनि जी महाराज इस दिशा में बड़े उत्साह और निष्ठा के साथ प्रयत्न कर रहे हैं। आपश्री के प्रयत्नों से पहले श्री प्रश्नव्याकरणसूत्र ( दो भाग), श्री सूत्रकृतांगसूत्र ( दो भाग), भगवतीसूत्र (चार भाग) हिन्दी व्याख्या सहित प्रकाशित हुए। फिर आपश्री ने आगमों के सचित्र प्रकाशन की योजना पर कार्यारम्भ किया, जिसके अन्तर्गत अब तक अन्तकृद्दशासूत्र, उत्तराध्ययनसूत्र, कल्पसूत्र, तीर्थंकर चरित्र एवं ज्ञातासूत्र (प्रथम भाग) प्रकाशित हो चुके हैं। अब ज्ञातासूत्र का द्वितीय भाग पाठकों के हाथों में है। हम चाहते हैं चित्रों में रुचि लेकर पाठक इन शास्त्रों का स्वाध्याय करें। चित्रों के कारण कठिन विषय भी सरल बन जाने के कारण उन्हें समझने में भी सुविधा रहेगी। (5) For Private Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सचित्र आगम प्रकाशन के क्षेत्र में गुरुदेवश्री के आशीर्वाद तथा उपप्रवर्तकश्री की सबल प्रेरणा एवं प्रोत्साहन से प्रसिद्ध विद्वान् श्रीचन्द जी सुराना इस शास्त्र-सेवा के कार्य में निष्ठापूर्वक संलग्न हैं और उनके सत्प्रयासों से यह कार्य सुचारु रूप से आगे बढ़ रहा है। शास्त्र-सेवा के इस बहुत ही खर्चीले कार्य में गुरुदेवश्री के अनेक श्रद्धालु भक्तजनों ने अपनी अन्तःकरण की प्रेरणा से उदारतापूर्वक सहयोग किया है और कर रहे हैं। अनेक विदुषी श्रमणियों ने भी इस कार्य में सद्गृहस्थों को प्रेरणा प्रदान कर सहयोग का हाथ-बढ़ाया है और हमारी योजना को बल प्रदान किया है। हम आप सभी के सहयोग, सद्भाव का स्वागत करते हैं और आशा करते हैं कि भविष्य में भी इसी प्रकार सहयोग मिलता रहेगा। हम अपने पाठकों से भी अपेक्षा करते हैं कि वे स्वयं इन शास्त्रों को पढ़ें, दूसरों को पढ़ने की प्रेरणा देवें तथा विभिन्न ज्ञान भण्डारों, पुस्तकालयों आदि में भेंट करें ताकि अन्य लोग भी लाभ उठा सकें। विदेशों में बसे अपने प्रिय मित्रों को भी अमूल्य उपहार रूप में भेंट भेजें। इसी शुभ भावना के साथ महेन्द्रकुमार जैन अध्यक्ष, पद्म प्रकाशन GGGGGGGGGGGGGGGGGGGGGG Gospe-to-posteste:00:00:00:00:40:00:00:00age10:00:00:00:00:00、5000:00:00:00:00:40 (6) Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PUBLISHERS NOTE One may find thousands of intelligent and scholarly individuals in this world but it is hard to find even a few truly wise and sagacious ones. Balanced knowledge of life and matter; right understanding of soul, super-soul (the God), living and non-living, spiritualism and science, and other such concepts; and moulding ones life accordingly makes a person truly wise or sagacious. Only such an individual can lead a balanced life and inspire and guide others towards a balanced life style. Religious texts provide knowledge and teach the art of living. As such, religious texts are not mere books, they are Shastras or that which rules over life and soul. It is for this reason that they are known as the third eye of the humans. In modern idiom Shastra is the morality and rationality of man. That is why the study of Shastras is given so much importance. U. B. Pravartak Gurudev Bhandari Shri Padmachandra ji Maharaj always inspires his followers to study Shastras. It is his earnest desire that religious texts reach every house and, more and more people read and study them. In fact it is like an important ambition to him. He has been working whole heartedly towards this goal for more than thirty years. Thanks to his inspiration and guidance that in the field of publication alone, a large sum of thirtyfive lacs rupees has been spent till date. This is a matter of pride as well as encouragement for us. The principle disciple of Gurudev Shri, Up-pravartak Shri Amar Muni ji Maharaj, who himself is a great scholar, strong propagator, and eloquent orator, is working hard in this direction with all sincerity and enthusiasm. It was with his efforts that Shri Prashna-vyakaran Sutra (two volumes), Shri Sutra-kritanga Sutra (two volumes), and Shri Bhagavati Sutra (four volumes) were published. After this, he launched the (7) Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ project of publishing illustrated Agam literature. Under this project the already published works are Illustrated Antakritdasha Sutra, Illustrated Uttaradhyayan Sutra, Illustrated Kalpa Sutra, Illustrated Tirthankar Charitra and Jnata Sutra (First Part). We are now pleased to present the Jnata Dharma Katha Sutra (Second Part) to our readers. It is our earnest desire that the reader studies these texts with the help of the illustrations. Even difficult and hard subjects are made simple and easy to comprehend with the help of illustrations. Blessings of Gurudev Shri and continued inspiration by Up-pravartak Shri have drawn the famous scholar Srichand ji Surana and his team into this project and with his earnest efforts it is progressing satisfactorily. In this high cost project, many of Gurudev Shri's devotees have generously contributed and continue to do so. Many scholarly Shraman's have extended a helping hand by inspiring devotees to contribute and thus bolstered our involvement in this project. We gratefully welcome your good wishes and contributions and hope that it would continue in the future. ইউক্ষেGGGGGGGGGGGGGGGGGGGGG bebeascabeat @Ah @abbean Cabab caneascarcarea cascarcarea ea career carcaseareascale 9:9999999994949494949494949499 ಳನನನನನನನನನನನನನನನನನನನನನನನ We expect from our readers that they read, inspire others to read these attractive and informative publications, and send these as gift to various libraries and other such centres so that many others may be benefitted. These books may also be sent to friends living abroad. With the hope that you will respond Mahendra Kumar Jain President, Padma Prakashan (8) ನ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आत्म-कथ्य 9tAtledAddAtteAddAttAAAAAAAAAA9:9:9 abobosb0-5050sbobosbobosbob0-50-beabesb0b0-5050:50501050b050.60605050 आत्मा को पवित्र और विशुद्ध बनाने वाला साधन है-धर्म। शुद्धि (उपादान) की दृष्टि से धर्म का आधार है-आत्मा। किन्तु आत्म-शुद्धि के लिए साधना तप-जप आदि की क्रियाओं का सम्यक् ज्ञान होना भी जरूरी है और उस ज्ञान का निमित्त कारण है-शास्त्र। धर्म-ग्रन्थ। प्रत्येक धर्म-परम्परा में धर्म-ग्रन्थों का पठन-पाठन-स्वाध्याय-श्रवण इसलिए किया जाता है कि उनसे साध्य का, साधनों का ज्ञान भी होता है और जिन महापुरुषों व सत्पुरुषों ने धर्माचरण द्वारा अपना कल्याण किया है उनका प्रेरक पवित्र जीवन दर्पण की भाँति हमारे सामने उपस्थित हो जाता है, जिससे धर्माचरण की क्रिया सुविधाजनक हो जाती है। भगवान महावीर ने जो धर्मोपदेश दिया, आत्म-शुद्धि की साधना का मार्ग बताया, उन धर्म-वचनों का संकलित रूप आगम है। आगम वाणी उस समय की लोक-भाषा प्राकृतअर्धमागधी में है। किसी समय अर्द्धमागधी जनता की बोलचाल की भाषा थी, परन्तु आज वह अनजान और कठिन भाषा बन गई है। इसलिए शास्त्र पढ़ने से लोग कतराते हैं और केवल उनका अनुवाद अपनी भाषा में पढ़कर ही संतोष कर लेते हैं। भगवान महावीर के उपदेशों व तत्त्वज्ञान को विषयक्रम के अनुसार चार अनुयोगों में बाँटा गया है, जिनमें एक अनुयोग है-धर्म-कथानुयोग। कथा, उदाहरण, दृष्टान्त व रूपक के द्वारा उपदेश देना और धर्म का तत्त्व समझाना एक सरल और रोचक शैली है। इसलिए कथानुयोग की शैली सबसे अधिक रुचिकर व लोकप्रिय बनी है। कथानुयोग में जिन शास्त्रों/आगमों का नाम आता है उनमें ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सबसे अधिक प्रसिद्ध और सबसे अधिक रोचक तथा सबसे बड़ा है। यों तो अन्तकृद्दशासूत्र, उपासकदशांग, अनुत्तरोपपातिक, निरयावलिका, राजप्रश्नीय, विपाकसूत्र आदि भी कथा-प्रधान होने से कथानुयोग में ही गिने जाते हैं किन्तु ज्ञाताधर्मकथासूत्र का स्थान कुछ विशेषता रखता है। इस सूत्र की भाषा अन्य आगमों की अपेक्षा अधिक प्रौढ़, साहित्यिक और लालित्यपूर्ण है। अन्य कथाओं की अपेक्षा इसकी कथाएँ भी अधिक रोचक और विश्वस्तर की हैं। ज्ञातासूत्र की कुछ कथाएँ तो बौद्ध साहित्य में, वैदिक ग्रन्थों व विदेशी कथा साहित्य में भी मिलती हैं। जैसे मेघकुमार की कथा जातक के नन्द की कथा से, दो कछुओं की कथा गीता की टीकाओं में तथा रोहिणी ज्ञात की कथा बाइबिल की मेथ्यू और लूक की कथा से काफी समानता रखती है। इससे यह प्रतीत होता है कि ज्ञातासूत्र की सैकड़ों कथाएँ धीरे-धीरे सम्पूर्ण विश्व साहित्य में रूपान्तरित हो गई हैं। 9898989989d9890989898909d980899098909829890982909098290494 150505050bobosb0aQa5005015015015@abpmON505@abpm@amodbob0-50sbehosbobosbe (9) Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ tெtttttttteinted- 9999999999994E ADABO-50-0035090-10-testCatest.OsboatestCatestDatashest000:00ATORCA00ag0A0CA0040 अन्तरंग परिचय इस सूत्र का नाम ज्ञाता-धर्म-कथा है। जिस पर टीका करते हुए आचार्य श्री अभयदेवसूरि ने लिखा है-ज्ञात का अर्थ है उदाहरण और धर्मकथा से तात्पर्य है प्रसिद्ध धर्म-कथाएँ। दोनों शब्द मिलकर बनता है-ज्ञात-धर्म-कथा। किन्तु कुछ विद्वानों का मत है कि यहाँ 'ज्ञात' शब्द प्राकृत शब्द 'नाय' से बना है। भगवान महावीर का एक नाम है ज्ञातपुत्र । नायपुत्त। यहाँ 'ज्ञात' शब्द भगवान महावीर की ओर संकेत करता है और तब इसका अर्थ होता है-ज्ञात-धर्म-कथाएँ अर्थात् भगवान महावीर द्वारा कथित धर्म कथाएँ। यह अर्थ अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है। ज्ञाताधर्मकथा का सरल अर्थ यह भी कर सकते हैं कि ज्ञाता अर्थात् सर्वज्ञ, भगवान महावीर। उनकी कही हुई धर्म-कथाएँ। ज्ञातासूत्र के दो श्रुतस्कंध हैं। प्रथम श्रुतस्कंध में १९ अध्ययन हैं जबकि दूसरे श्रुतस्कंध के १० वर्ग हैं। प्रथम श्रुतस्कंध की सभी कथाएँ स्वयं उदाहरण हैं और फिर उपनय के साथ विषय को अधिक संगति देती हैं। इन कथाओं के माध्यम से अनेक प्रकार की शिक्षाएँ, तत्त्वज्ञान, प्रेरणा और साधक के लिए मार्गदर्शन मिलता है। सचित्र आगम प्रकाशन माला लगभग चार वर्ष पूर्व हमने पूज्य गुरुदेव उ. भा. प्रवर्तक भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज की साठवीं दीक्षा जयन्ती मनाई थी। तब मेरे मन में सचित्र आगम प्रकाशन की भावना मूर्तरूप ले रही थी। उसी वर्ष मैंने प्रयोग के रूप में भगवान महावीर की अन्तिम वाणी उत्तराध्ययनसूत्र का सचित्र सम्पादन प्रकाशन किया था। वह प्रयोग बहुत सफल रहा। सर्वत्र प्रशंसित हुआ और आगम के अध्ययन से दूर रहने वाले भी चित्रमय आगम होने से रुचिपूर्वक पढ़ने लगे। मेरे पास अनेक विद्वानों के, विज्ञ मुनिवरों के तथा अनेकानेक धर्म-प्रेमियों के पत्र आये और सभी ने इस प्रयास की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। युग की इस आवश्यकता और उपयोगिता को देखकर हमने इस योजना को और आगे बढ़ाने का संकल्प किया। जिसके अन्तर्गत सचित्र अन्तकृद्दशासूत्र, सचित्र कल्पसूत्र, सचित्र तीर्थंकर चरित्र, सचित्र ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र (प्रथम भाग) पाठकों के हाथों में पहुँच चुके हैं। ___ज्ञातासूत्र काफी बड़ा होने से उसे दो भागों में प्रकाशित किया जा रहा है। प्रथम भाग में आठ अध्ययन लिए गये हैं। दूसरे भाग में शेष संपूर्ण ज्ञातासूत्र लिया गया है। इस सूत्र की सम्पादन शैली में थोड़ा परिवर्तन भी किया है। आमुख में सर्वप्रथम अध्ययन के शीर्षक का स्पष्टीकरण किया है जिससे अध्ययन का विषय ज्ञात हो सके तथा इसी के साथ कथा-सार भी दिया है। मूल पाठ में सूत्र संख्या की कोई निश्चित परम्परा प्राचीन प्रतियों में नहीं अपनाई गई है अतः इस संस्करण में सूत्र संख्या कथा-प्रवाह की सुविधानुसार रखी गई है। मूल पाठ में अपेक्षाकृत लम्बे तथा संयुक्त शब्दों में संधि स्थलों पर विराम चिह्न (डैश) दिये हैं जिससे पठन तथा उच्चारण में सुविधा हो। (10) Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SESSESE ZET? मूल पाठ में वर्णनात्मक तथा विवरणात्मक अंशों को अनेकानेक बार दोहराए जाने की शैली का प्रयोग हुआ है। अनुवाद में इन्हें यथासंभव संक्षिप्त किया है तथा 'पूर्वसम' आदि इंगित का प्रयोग किया गया है। चित्रों को अधिक सुगमता से बोधगम्य बनाने के लिए चित्र - शीर्षक के स्थान पर प्रत्येक चित्र के पीछे तत्संबंधित कथा प्रसंग संक्षेप में दिया गया है। अध्ययन के अन्त में विशेष शब्दों का स्पष्टीकरण एवं उपसंहार तथा टीका में आई हुई उपनय गाथाएँ भी ले ली हैं। इस प्रकार सम्पादन में सर्वांगता लाने का प्रयास किया है। टिप्पण एवं परिशिष्ट की शैली मुझे कम पसन्द है, क्योंकि उससे पाठक को इधर-उधर पृष्ठ उलटने पड़ते हैं। अतः प्रत्येक अध्ययन से सम्बन्धित सभी सामग्री वहीं एक स्थान पर देने का प्रयास किया है। आशा है पाठकों को यह शैली अधिक सुन्दर व रुचिकर लगेगी। कृतज्ञता प्रदर्शन परम पूज्य गुरुदेव उ. भा. प्रवर्त्तक भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज के असीम आशीर्वाद से सचित्र आगम प्रकाशन का यह कार्यक्रम निर्विघ्न रूप से गति पकड़ रहा है यह मेरे लिए परम प्रसन्नता का विषय है। इस प्रकाशन संघ शिरोमणि स्व. श्री पद्मश्री जी म. की सुशिष्या उपप्रवर्तिनी श्री पवन कुमारी जी म. तथा साध्वी रत्नाश्री प्रवेश कुमारी जी म. की सुशिष्या तप-चक्रेश्वरी महासती उपप्रवर्तिनी श्री मोहनमाला जी के ११२ व्रतों (उपवास) के उपलक्ष्य में श्रुत-सेवा के शुभ कार्य हेतु अनेक गुरुभक्त उदार सद्गृहस्थों ने अपना सहयोग करके गुरुभक्ति और श्रुतभक्ति का परिचय दिया है तथा शास्त्र - सेवा का पुण्य उपार्जन किया है । यह सभी के लिए अनुकरणीय है। साहित्यकार श्रीचन्द जी सुराना ने सदा की भाँति इसके सम्पादन, मुद्रण में अपनी सम्पूर्ण बौद्धिक चेतना को नियोजित किया है तथा श्रीयुत सुरेन्द्र जी बोथरा ने सुन्दर सटीक अंग्रेजी अनुवाद के साथ संपादन सहयोग करके इसकी उपयोगिता में चार चाँद लगाये हैं। मैं सभी के प्रति हार्दिक भाव से कृतज्ञ हूँ । Wesen (11) -अमर मुनि 366366366 Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NOTE FROM THE EDITOR-IN-CHIEF The means of making the soul pious and pure is Dharma. The subjective basis of Dharma is soul. But in order to achieve the goal of purification it is essential to have the proper and working knowledge of the processes like penance, chanting, meditation, and other such practices. The source of this knowledge are Shastra or religious scriptures. In every religious tradition the reading, teaching, listening, and study of religious books is done for the purpose of acquiring knowledge about the means of upliftment and the goal; they also give us vivid description of the inspiring lives of great and pious souls who have attained high status with the help of religious conduct. All this helps us follow the right path or proper conduct. The religious teachings of Bhagavan Mahavir and the path of purification shown by him are compiled as Agams. These scriptures are in the then prevailing language of the common man, Ardhamagadhi-Prakrit. Some time in the past, Ardhamagadhi was the most popular language of the masses, but today it has become a lesser known and so a difficult language. That is why people avoid reading original texts and are content with reading translations in the language they know. The teachings of Bhagavan Mahavir have been divided subjectwise into four categories titled Anuyog. The first Anuyog or category is Dharma Kathanuyog or the category of religious stories. To preach religion and explain its fundamentals with the help of stories, examples, instances, and metaphors is a simple and absorbing style. As such, this category has proved to be the most accepted and popular one. Of the works listed in this category the most famous, interesting, and largest is Jnata Dharma Kathanga. Although Antakritdasha Sutra, Upasakdashang, Anuttaropapatik, Niriyavalika, Rajprashniya, Vipak Sutra etc. are listed in this category, Jnata Dharma Katha Sutra occupies a very special place. The language of this scripture is mature, refined, and flowery. As compared to the stories from other works those in this work are much more interesting and conforming to international standards. Some of the stories from Jnata Sutra have parallels in Buddhist, Vedic as well as foreign literature. For example the story of Megh Kumar has a parallel in the story of Nand from the Jatak literature; the story of two tortoises has parallels in commentaries on Gita; the (12) မောင် Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 49:2 : 49 @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ atestesposteatestestestestestosbespostespostestestpagesto.co.50:40:00:40:50.postest @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ story of Rohini has similarities with stories of Methew and Luke from the Bible. All this points toward the fact that many stories from Jnata Sutra have slowly spread all around the world and have been adapted and absorbed in the world literature. INTRODUCTION TO THE TEXT There are two sections in the Jnata Sutra. The first section contains nineteen chapters and the second has ten sub-sections. The name of this work is Jnata Dharma Katha. Acharya Abhaya Dev Suri has commented on this term-Jnata means example and Dharma Katha means popular religious tales. Both these combined meanexamples and religious tales. Some scholars say that the word Jnata has been derived from the Prakrit word Naya. One of the names of Bhagavan Mahavir is Naya-putta or Jnata-putra. Here the word Jnata points towards Bhagavan Mahavir. So according to this theory Jnata Dharma Katha means the religious stories told by Bhagavan Mahavir. This interpretation appears to be more appropriate. Another meaning is religious tales told by Jnata (omniscient or Bhagavan Mahavir). All the stories in the first section are based on examples. The verses drawing conclusion at the end of each story make it easy to grasp the lesson contained. These stories impart moral values, knowledge of the fundamentals, inspiration, and guidance for spiritual practices. THE ILLUSTRATED AGAM SERIES About four years back we had celebrated the sixtieth anniversary of the Diksha ceremony of revered Gurudev U. B. Pravartak Bhandari Shri Padma Chandra ji Maharaj. At that time the plan for publication of illustrated Agams was taking shape in my mind. The very same year I launched and concluded the editing and publication of the last sermon of Bhagavan Mahavir, Illustrated Uttaradhyayan Sutra. The experiment proved to be highly successful. It was widely acclaimed and even the unwilling started studying the illustrated Agam with interest. I received numerous letters from scholars, scholarly ascetics, and devotees freely praising this effort. I resolved to further this project looking at the prevailing need and usefulness of such works. Illustrated Antakritdasha Sutra, Illustrated Kalpa Sutra, Illustrated Tirthankar Charitra and Illustrated Jnata Dharma Kathanga Sutra (First Part) have already been published under this scheme. As the Jnata Sutra is a voluminous work, it is being published in two parts. First part contains eight chapters. The remaining all Jnata Sutra has been taken in this second part. Some changes have been incorporated in the style of editing. A section has been added before every chapter. This contains explanation about the title and topic of this chapter and, gist of the story. Cascade CAD Can can can can cababababababcabcabcabcablablablablablablablablabla 2 ( 13 ) Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ABC-Bestotoshoto-box00:00:00:00-4000:00:00:00:00:4040:30-4050-00:50:00:00:00-10 In the old copies of the original text no established rule has been followed regarding the numbering of the paragraphs or Sutras. As such, freedom has been taken in numbering the paragraphs according to the flow of the story. In the Prakrit text dash has been given to break the long combined words to facilitate reciting. In the original text the descriptive and elaborative passages are repeated verbatim again and again. This appears to be the writing style of that period. However, in the translation such passages have been made as brief as possible using the indicators like (etc.), (as mentioned earlier), etc. To make the illustration easily understandable relevant brief excerpts from the stories have been given on the back of every illustration. At the end of the chapter a glossary, conclusion and the verses indicating the message of the story have been given. Thus effort has been made to use an all enveloping editing style. I do not like much the use of foot notes and appendices unless it becomes essential. This is because in that style of editing the reader has to suffer breaks while reading, by repeatedly referring to foot notes and turning pages to look for appendices. As such, effort has been made to provide all possible reference material with the chapter itself. I hope that the readers would appreciate and like this style. ACKNOWLEDGEMENTS It is a matter of extreme pleasure for me that with the blessings of revered Gurudev U. B. Pravartak Bhandari Shri Padma Chandra ji Maharaj the project of publication of illustrated Agam literature is gathering speed. By extending whole hearted support to this publication Tap-Chakreshwari Mahasati Sangh Shiromani late Shri Padmashri ji Maharaj's pupil Up-Pravartini Shri Pawan Kumari ji M. and Sadhviratna Shri Pravesh Kumaari ji Maharaj's pupil Mahasati Up-Pravartini Shri Mohanmala ji M., many devoted and generous followers have revealed their devotion for the Guru and the word of the Lord. Such gesture is exemplary and should be emulated by all. As always, Srichand ji Surana, an author and scholar in his own right, has incorporated all his acumen in editing and printing this work. Shri Surendra Bothara has added to its utility by providing a comprehensive free flowing English translation as well as assistance in editing. I express my sincere gratitude to them all. --Amar Muni OOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO るるるるるるるるるるるるるるるるるるるるるるるる:ease Gate (14) Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवम अध्ययन : माकंन्दी आमुख यात्रा की अनुमति लवण समुद्र में तूफान रत्न- द्वीप में प्रवेश देवी की धमकी शक्रेन्द्र का आदेश उद्यान वर्णन दक्षिण दिशा में जाने का निषेध विषयानुक्रम वन में परिभ्रमण दक्षिण दिशा के वन का रहस्य शैलक पक्ष की शरण में शैलक द्वारा उद्धार देवी की धमकी मधुर प्रलोभन चंचल जिनरक्षित जिनरक्षित का अंग-भंग स्थिर जिनपालित उपसंहार उपसंहार उपनय गाथा परिशिष्ट दसवाँ अध्ययन : चन्द्रमा आमुख सुधर्मा स्वामी का उत्तर भगवान द्वारा समाधान उपसंहार उपनय गाथा १-४४ 9 ६ ८ १२ १४ १५ १६ १९ २१ २३ २६ २८ २९ ३१ ३४ ३६ ३७ ३९ ४१ ४१ ४३ ४५ ४७ ४८ ५१ ५१ CONTENTS NINTH CHAPTER: MAKANDI Introduction Permission of Voyage Storm in the Sea Coming to Ratnadveep Threat of the Goddess Shakrendra's Order Description of the Gardens. Prohibition to Go South Excursions ४५-५२ TENTH CHAPTER : THE MOON The Secret In Refuge of Shailak Deliverance by Shailak Threat from the Goddess Enticements Allured Jinarakshit Dismembering of Jinarakshit Composed Jinapalit Conclusion Conclusion The Message Appendix Introduction Sudharma Swami Narrated Mahavir's Explanation Conclusion The Message (15) 1-44 3 7 * 2 2 2 2 2 2 2 ** 8 14 16 21 23 26 28 30 31 35 36 38 40 41 43 44 45-52 46 47 49 51 52 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्यारहवाँ अध्ययन दावद्रव आमुख धर्मास्वामी का उत्तर आराधक विराधक सम्बन्धी जिज्ञासा देश -विराधक देश- आराधक सर्व-विराधक सर्वाराधक उपसंहार उपनय गाथा बारहवाँ अध्ययन : उदक ज्ञात आमुख सुधर्मा स्वामी का उत्तर भोजन की प्रशंसा वस्तु स्वभाव का कथन खाई का दुर्गन्धित जल जल का शोधन राजा का आश्चर्य जल - शोधन का प्रत्यक्ष प्रयोग राजा श्रावक बना वैराग्योदय तथा प्रव्रज्या उपसंहार उपनय गाथा परिशिष्ट तेरहवाँ अध्ययन मंडुक्म-दर्दुरज्ञात आमुख देव का आगमन गौतम स्वामी की जिज्ञासा नन्द की कामना पुष्करिणी निर्माण चित्र-सभा चिकित्साशाला ५३-६२ ५३ ५५ ५६ ५७ ५७ ५८ ५९ ६० ६० ६२-८३ ६३ ६५ ६६ ६८ ६९ ७१ ७३ ७६ ७७ ७९ ८२ ८२ ८३ ८४-१०९ ८४ ८७ ८७ ८९ ९१ ९२ ९४ ELEVENTH CHAPTER: THE DAVADRAV Introduction Sudharma Swami Narrated Curiosity about Aspirer and Decliners Partial Decliners Partial Aspirers Absolute Decliners Absolute Aspirers Conclusion The Message TWELFTH CHAPTER: THE WATER Introduction Sudharma Swami Narrated Praise of the Food Nature of Things Stinking Water Water Purification King's Surprise Demonstration of the Process The King Turns Shravak Detachment and Initiation Conclusion The Message Appendix THIRTEENTH CHAPTER: THE FROG Introduction Arrival of Dev Gautam Swami's Query Nand's Wish Construction of the Pool Hall of Entertainment The Hospital (16) 53-62 54 55 56 57 57 58 59 60 61 63-83 64 65 67 68 69 71 74 77 78 80 82 83 83 84-109 85 87 88 90 92 93 94 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नन्द की रुग्णता नन्द मणिकार की मृत्यु तथा पुनर्जन्म पुनः श्रावकधर्म स्वीकार मेंढक का वन्दनार्थ प्रस्थान देवपर्याय में जन्म उपसंहार उपनय गाथा परिशिष्ट ९७ 900 १०१ १०३ १०५ १०७ १०७ १०८ Ailment of Nand 98 Death and Rebirth of Nand Manikaar 100 A Shravak Again 102 Frog Moves to Pay Homage 104 Rebirth as God 105 Conclusion 107 The Message 108 Appendix 109 चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र ११०-१४५ FOURTEENTH CHAPTER : TETALIPUTRA_110-145 111 990 ११३ 114 ११६ 116 ११७ 118 ११९ 120 १२२ 122 124 आमुख तेतलिपुत्र का प्रस्ताव विवाह रानी की योजना अदला-बदली विमुख तेतलिपुत्र पोट्टिला का अनुरोध श्राविका पोट्टिला तेतलिपुत्र की शर्त कनकरथ का देहान्त राजा की उदासीनता आत्मघात का प्रयत्न पोट्टिल देव द्वारा प्रेरणा केवलज्ञान-प्राप्ति उपसंहार १२४ १२६ १२७ 127 Introduction Proposal of Tetaliputra The Marriage The Queen's Plan The Exchange Apathy of Tetaliputra Pottila Seeks Help Shravika Pottila Tetaliputra's Condition Kanak-rath Passes Away King's Apathy Suicide Attempt Inspiration by God Pottil Attaining Keval Jnana Conclusion The Message Appendix 128 १३० 130 133 933 934 136 १३९ 139 141 144 १४१ १४४ 988 १४५ 144 उपनय गाथा परिशिष्ट 145 पन्द्रहवाँ अध्ययन : नंदीफल १४६-१६१ FIFTEENTH CHAPTER : THE NANDI-FRUIT 146-161 १४६ 147 १४८ 148 आमुख सुधर्मा स्वामी का उत्तर धन्य सार्थवाह की घोषणा उपयोगी चेतावनी श्रद्धावान : अश्रद्धावान १४९ १५२ 948 Introduction Sudharma Swami Narrated Sudharma Announcement by Dhanya The Warning Believers : Non-believers 149 153 154 (17) Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धन्य का अहिच्छत्रा पहुँचना धन्य की प्रव्रज्या उपसंहार उपनय गाथा परिशिष्ट १५६ १५७ १५८ १५८ १६० Dhanya Reaches Ahicchatra Initiation of Dhanya Conclusion The Message Appendix 156 157 158 159 161 - . - . - . - . सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका १६२-२७५ SIXTEENTH CHAPTER : AMARKANKA 162-275 १६२ १६७ १६९ १७० १७१ १७४ १७६ १७७ १७९ १८१ १८२ १८४ १८६ १८७ आमुख कटु तुंबे का शाक स्थविर-आगमन कटु तुबे का दान स्वशरीर में प्रवेश गुरु की चिन्ता नागश्री की आलोचना नागश्री की दुर्दशा नरक यातना सुकुमालिका का कथानक विवाह-प्रस्ताव प्रथम विवाह कर्कश स्पर्श पति द्वारा परित्याग सागर नहीं लौटा सुकुमालिका का पुनर्विवाह पुनः परित्याग दीक्षा-ग्रहण सुकुमालिका का निदान सुकुमालिका का पृथक् विहार द्रौपदी-कथा नामकरण द्रौपदी का स्वयंवर स्वयंवर के लिए कृष्ण का प्रस्थान अन्य जनपदों में दूत भेजना अतिथि-स्वागत की तैयारी स्वयंवर की उद्घोषणा अतिथि-सत्कार राजाओं का परिचय पाँच पति वरण १८९ Introduction Curry of the Bitter Gourd Arrival of the Ascetic Giving Away the Bitter Gourd Pouring into His Own Body Anxiety of the Guru Criticisms of Naagshri The Plight of Naagshri Passage Through Hells Story of Sukumalika Marriage Proposal First Marriage Revolting Touch Abandoned by Her Husband Sagar Refuses to Return Remarriage of Sukumalika Deserted Again Diksha Sukumalika's Ambition Separation from the Group Story of Draupadi Naming Ceremony The Svayamvar Krishna Vasudev's Departure Messengers to Other States Preparations for Welcome Svayamvar Announced Greating the Guests The Introduction of Kings Choosing Five Husbands 164 168 169 170 172 174 176 178 180 181 183 185 186 188 190 192 195 १९१ १९४ १९७ १९८ २०१ २०३ २०३ २०५ २०८ २०९ 197 199 202 203 204 206 208 २१२ २१५ २१७ २१९ २२0 210 213 216 217 220 221 (18) Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२१ २२३ २२६ २२८ २२९ २३१ سه سد سه سه سه 222 223 227 228 229 232 233 236 238 239 241 २३७ 242 विवाह समारोह हस्तिनापुर में समारोह नारद आगमन अमरकंका से क्षुब्ध नारद अमरकंका में आगमन पद्मनाभ की आसक्ति द्रौपदी का अपहरण युधिष्ठिर द्वारा द्रौपदी की खोज कुन्ती का कृष्ण के पास जाना कृष्ण का आश्वासन नारद से सूचना कृष्ण का प्रयाण पद्मनाभ को चुनौती पाण्डवों की हार कृष्ण का नृसिंह रूप कपिल वासुदेव का आश्चर्य शंखनाद-मिलन पाण्डवों द्वारा कृष्ण-बल परीक्षा पाण्डवों का देश निकाला कुन्ती का कृष्ण के पास जाना पाण्डवों की दीक्षा यात्रा व तपस्या सिद्धपद-प्राप्ति उपसंहार उपनय गाथा परिशिष्ट २३९ २४० २४२ २४५ २४८ २५१ २५४ Marriage Ceremony Reception in Hastinapur Arrival of Narad Insult Irks Narad Arrival in Amarkanka Infatuation of Padmanaabh Kidnapping of Draupadi Search for Draupadi by Yudhishthir Kunti Goes to Krishna Krishna Gives Assurance News from Narad Krishna Marches Challenge to Padmanaabh Defeat of Pandavs Krishna's Ferocious Form Surprise of Kapil Vasudev Conch-Sound Greeting Pandavs Test Krishna Pandavs Exiled Kunti Goes to Krishna Diksha of Pandavs Travel and Penance Getting Liberated Conclusion The Message Appendix 246 248 251 २५६ 254 256 258 २५८ 260 REO २६२ २६५ २६८ 263 266 268 २७० 271 २७३ २७३ २७४ 273 274 275 सत्रहवाँ अध्ययन : आकीर्ण २७६-३०० SEVENTEENTH CHAPTER : THE HORSES 276-300 277 २७६ २७९ २८१ 280 281 283 286 आमुख उत्पातों से मुक्ति खनिज भण्डार और अश्व अश्वों की कामना अश्व-मोदक सामग्री जाल बिछाना अनासक्ति का लाभ आसक्ति का दुष्परिणाम उपसंहार इन्द्रियलोलुपता का दुष्फल २८५ २८६ २८८ २८९ २९२ २९२ Introduction Freedom from Troubles Mineral Wealth and Horses Desire for the Horses Allurements for Horses Fixing the Snares Benefit of Apathy Harms of Indulgence Conclusion Harms of Indulgence 287 289 290 292 292 (19) Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 295 इन्द्रियसंवर का सुफल २९५ Benefit of Containment कर्तव्य-निर्देश २९६ Directions 296 उपसंहार २९८ Conclusion 298 उपनय गाथा २९८ The Message 299 परिशिष्ट ३०० Appendix 300 -:-.-.-.-.-:-.-.-.-.-: अठारहवाँ अध्ययन : सुंसुमा ३०१-३२५ EIGHTEENTH CHAPTER : SUMSUMA 301-325 - 302 304 309 ३०४ ३०६ 308 ३१० 306 309 आमुख दास-चेटक : उसकी शैतानी दास-चेटक का निष्कासन चोर-सेनापति की शरण में चिलात सेनापति बना धन्य सार्थवाह के घर की लूट नगररक्षकों के समक्ष फरियाद सुसुमा का शिरच्छेदन धन्य का शोक प्राण-त्याग के प्रस्ताव अन्तिम निर्णय 310 312 ३११ 315 Introduction Chilat's Mischief Chilat Fired Under Vijay's Protection Chilat Becomes Chief Raid on Dhanya's House Report to the Guards Beheading of Sumsuma Grief of Dhanya Offers of Sacrifice Final Decision Conclusion Conclusion The Message 317 318 398 ३१६ ३१८ ३१९ ३२० ३२२ ३२४ ३२४ 319 321 उपसंहार 323 उपसंहार 324 उपनय गाथा 325 उन्नीसवाँ अध्ययन : पुण्डरीक ३२६-३४३ NINETEENTH CHAPTER : PUNDAREEK 326-343 - - 327 ३२६ ३२९ 329 ३३० 330 332 334 आमुख महापद्म राजा की दीक्षा : सिद्धि-प्राप्ति कण्डरीक की दीक्षा कण्डरीक की रुग्णता कण्डरीक मुनि की शिथिलता प्रव्रज्या का परित्याग कण्डरीक की पुनः रुग्णता पुण्डरीक की उग्र साधना उग्र साधना का सुफल उपसंहार ३३२ ३३३ ३३६ ३३८ ३३९ ३४० ३४३ ३४३ Introduction Diksha of King Mahapadma Initiation of Kandareek Kandareek's Ailment Laxness of Kandareek Abandoning the Ascetic Life Kandareek's Ailment Relapses Harsh Practices of Pundareek Fruits of Harsh Penance Conclusion The Message 337 338 339 341 343 उपनय गाथा 343 (20) Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय श्रुतस्कंध : धर्मकथा ३४४-३९१ THE SECOND PART : DHARMAKATHA 344-391 ३४४ ३४६-३६७ ३४६ ३४७ ३४८ ३५२ ३६३ ३६५ ३६६ ३६७ ३६८-३७० ३६८ ३७० ३७१-३७४ ३७१ ३७३ ३७३ ३७४ आमुख प्रथम वर्ग प्रथम अध्ययन : काली सुधर्मा स्वामी का उत्तर काली देवी का आगमन काली देवी का पूर्व-भव द्वितीय अध्ययन : राजी तृतीय अध्ययन : रजनी चतुर्थ अध्ययन : विद्युत् पंचम अध्ययन : मेघा द्वितीय वर्ग प्रथम अध्ययन : शुभा द्वितीय से पंचम अध्ययन तृतीय वर्ग प्रथम अध्ययन : इला २-६ अध्ययन ७-१२ अध्ययन १३-५४ अध्ययन चतुर्थ वर्ग प्रथम अध्ययन : रूपा पंचम वर्ग प्रथम अध्ययन : कमला षष्ठ वर्ग १-३२ अध्ययन सप्तम वर्ग १-४ अध्ययन अष्टम वर्ग १-४ अध्ययन नवम वर्ग १-८ अध्ययन दशम वर्ग १-८ अध्ययन उपसंहार उपसंहार परिशिष्ट Introduction 345 FIRST SECTION 346-367 First Chapter : Kali 346 Sudharma Swami Replies 348 Arrival of Goddess Kali 349 Earlier Incarnation of Goddess Kali 353 Second Chapter : Raji 363 Third Chapter : Rajni 365 Fourth Chapter : Vidyut 366 Fifth Chapter : Megha 367 SECOND SECTION 368-370 First Chapter : Shumbha 368 Chapters 2-5 370 THIRD SECTION 371-374 First Chapter : Ila 371 Chapters 2-6 373 Chapters 7-12 373 Chapters 13-54 374 FOURTH SECTION 375-376 First Chapter : Rupa 376 FIFTH SECTION 77-379 First Chapter: Kamala 377 SIXTH SECTION 380-380 Chapters 1-32 380 SEVENTH SECTION 381-382 Chapters 14 381 EIGHTH SECTION 383-384 Chapters 1-4 383 NINTH SECTION 385-386 Chapters 1-8 385 TENTH SECTION 387-388 Chapters 1-8 387 Conclusion 389 Conclusion 390 Appendix 391 ३७५-३७६ ३७५ ३७७-३७९ ३७७ ३८०-३८० ३८० ३८१-३८२ ३८१ ३८३-३८४ ३८३ ३८५-३८६ ३८५ ३८७-३८८ ३८७ ३८९ 380 ३९० (21) Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहयोग के प्रति आभाव ज्ञाता धर्मकथांग सूत्र के सम्पादन में पाठ-शुद्धि एवं अनुवाद आदि में निम्न पुस्तकों से सहयोग लिया गया उन आधारभूत आगम ग्रंथों के सम्पादकों-प्रकाशकों के प्रति हार्दिक आभार प्रकट करना हमारा कर्तव्य है। १. णाया धम्म कहाओ संपादक : मुनि जम्बूविजय जी प्रकाशक : श्री महावीर जैन विद्यालय, मुम्बई ज्ञाता धर्मकथांग सूत्र प्रधान सम्पादक : युवाचार्य श्री मधुकर मुनि संपादक : पं. श्री शोभाचन्द्र जी भारिल्ल प्रकाशक : आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर (22) Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ÅDAN ES ES UNABAR 卐 सचित्र ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र द्वितीय भाग ILLUSTRATED JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA SECOND PART Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फ्र‍ नवम अध्ययन : माकन्दी : आमुख शीर्षक–मायंदी–माकन्दी-नाम विशेष । माकन्दी नाम के सार्थवाह के दो पुत्रों की कथा के माध्यम से पाँच इन्द्रियों सम्बन्धी भोगोपभोगों के प्रति आसक्ति और अनासक्ति के गुण-दोष तथा लाभ-हानि का मर्म समझाया गया है। कथासार-चम्पानगरी में माकन्दी नाम का एक सार्थवाह रहता था। उसके दो पुत्र थे- जिनपालित व जिनरक्षित। वे ग्यारह बार समुद्र- यात्राएँ कर चुके थे और बारहवीं बार फिर जाना चाहते थे। उनके माता-पिता ने समझाया कि बारहवीं यात्रा दुःखदायी तथा अपशकुनी मानी गई है अतः उन्हें यह विचार छोड़ देना चाहिए । किन्तु पुत्रों ने ज़िद की और अन्ततः माता-पिता बिना मन के ही चुप रहे। उन्होंने अपने जहाज में माल भर यात्रा आरम्भ की। समुद्र में कई सौ योजन दूर निकल जाने के बाद उनका जहाज तूफान में फँस कर डूब गया। सारा माल और यात्री डूब गए किन्तु दोनों माकन्दी- पुत्रों ने लकड़ी के एक बड़े लड़े को पकड़ लिया और उसके सहारे तैरते हुए निकट के एक द्वीप पर जा पहुँचे। यह द्वीप रत्न - द्वीप कहलाता था। उस द्वीप पर एक विशाल भवन में एक नीच स्वभाव वाली देवी रहती थी, जिसका नाम रत्ना देवी था। अपने अवधिज्ञान से देवी ने माकन्दी पुत्रों को विषम परिस्थिति में घिरे देखा । वह तत्काल उनके पास पहुँची और कहा 'कि यदि वे अपने जीवन को अक्षुण्ण रखना चाहते हैं तो उसकी वासना इच्छा के आगे झुकना होगा । भयभीत माकन्दी - पुत्रों ने उसके प्रस्ताव को चुपचाप स्वीकार कर लिया । देवी उन्हें अपने महल में ले आई और उनके साथ भोग-विलास का आनन्द लेने लगी। कुछ दिनों के बाद लवण समुद्र के आरक्षक सुस्थित देव ने इस देवी को समुद्र की सफाई के काम पर लगा दिया। देवी ने माकन्दी पुत्रों को यह बात बताई और आदेश दिया कि जब तक वह अपना काम पूरा कर लौटती नहीं वे उस भवन की सुविधाओं का उपयोग करते रहें । ऊब जाने पर वे पूर्वी, उत्तरी और पश्चिमी उद्यानों में जा सकते हैं । किन्तु किसी भी परिस्थिति में दक्षिणी उद्यान में न जावें क्योंकि वहाँ एक विशाल विषैला सर्प रहता है जो उन्हें तत्काल नष्ट कर सकता है। यह चेतावनी देकर देवी अपने काम पर चली गई। कुछ समय बाद दोनों भाई ऊब गए और उन्हें एकाकीपन खलने लगा। एक के बाद एक, वे तीनों उद्यानों में गये पर वहाँ भी वे शीघ्र ही ऊब गये और तब वे दक्षिण दिशा वाले उद्यान की ओर बढ़ चले। वहाँ वे एक विशाल वध-स्थल पर पहुँचे तथा सूली पर चढ़े एक आदमी को रोते- कलपते देखा। उन्होंने उसका परिचय पूछा तथा इस कठिन परिस्थिति का कारण भी । सूली पर चढ़े आदमी ने बताया कि वह कालन्दी नगरी का एक अश्व व्यापारी है। उसका जहाज डूब गया था और वह तैरता हुआ रत्नद्वीप आ पहुँचा था । रत्नद्वीप की 'दुष्ट स्वभाव वाली देवी उसे अपने महल में ले जाकर अपनी वासना शान्त करने लगी। एक दिन वह उससे क्षुब्ध हो गई और उसे इस दशा में पहुँचा दिया। माकन्दी-पुत्रों ने भयभीत हो उस देवी के चंगुल से छूटने का उपाय पूछा। सूली पर चढ़े व्यक्ति ने बताया कि पूर्वी दिशा वाले उद्यान में शैलक-यक्ष का मंदिर है जो घोड़े के रूप में रहता है। प्रत्येक चतुर्दशी, पूर्णिमा, CHAPTER-9: MAKANDI (1) Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5(२) प्रणपण्ण्ण्ण्ण्ज) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ही 5 अमावस्या तथा अष्टमी के दिन वह प्रकट होकर समस्या ग्रसित लोगों की सहायता करता है। अतः उन्हें पूर्वी दा 5 उद्यान में जाकर उसकी सहायता माँगनी चाहिए। र माकन्दी पुत्र तत्काल पूर्वी उद्यान में गये और यथाविधि यक्ष की पूजा करने लगे। यथा समय यक्ष प्रकट हुआ 15 और उन्होंने उससे सहायता माँगी। २ शैलक ने कहा-“जब समुद्र में आधी दूरी पार कर लोगे तब वह देवी तुम्हें आकर्षित करने के लिए आएगी। र यदि तुमने उसकी बातों पर ध्यान दिया तो मैं तुम्हें अपनी पीठ से गिरा दूँगा। हाँ ! यदि तुमने उसकी चेष्टाओं पर र ध्यान नहीं दिया और तुम्हारा मन चंचल नहीं हुआ तो मैं तुम्हें उसके चंगुल से छुड़ा लूंगा।" 5 माकन्दी-पुत्रों ने यह शर्त स्वीकार कर ली। यक्ष ने एक विशाल घोड़े का रूप धारण कर लिया। माकन्दी पुत्रों 1 र ने उसकी वन्दना की और उसकी पीठ पर सवार हो गए। यक्ष ने उड़ान भरी और आकाश मार्ग से चम्पानगरी की र ओर यात्रा आरम्भ कर दी। 15 देवी जब महल में लौटी और माकन्दी पुत्रों को नहीं पाया तो उसने अपने अवधिज्ञान का उपयोग करके देखा द P कि वे दोनों शैलक यक्ष की सहायता से समुद्र पार कर भाग रहे हैं। वह तत्काल उनके निकट पहुँची और बोली, 2 "हे माकन्दी पुत्रो ! यदि तुम अपने जीवन की रक्षा करना चाहते हो तो मेरी इच्छा पूरी करो, मुझे प्यार करो। । र अन्यथा मैं अभी अपनी तलवार से तुम्हारे सर काट दूंगी।" 15 माकन्दी पुत्र उसके इस प्रदर्शन से उद्विग्न नहीं हुए। तब उस देवी ने अनेक प्रकार के प्रलोभनों से उन्हें ड आकर्षित करने की चेष्टा की, पर वे सभी व्यर्थ हो गई। इस पर उसने अपने अवधिज्ञान से जिनरक्षित के मन र झाँककर देखा। उसे जैसे ही वहाँ चंचलता, दुर्बलता दिखाई दी उसने विशेष प्रयत्नों से उसे लुभाया। जिनरक्षित का मन डिग गया और उसने देवी की ओर घूमकर देखा। शैलक को उसके घूमने और देवी की ओर देखने का 15 आभास हो गया उसने तत्काल जिनरक्षित को अपनी पीठ से गिरा दिया। र उस चण्डिका ने असहाय जिनरक्षित को शैलक की पीठ से गिरते हुए देखा तो तत्काल अपनी तलवार से S र उसके टुकड़े-टुकड़े कर समुद्र में चारों ओर फेंक दिये। इसके बाद उसने जिनपालित को लुभाने के प्रयत्न किये। 5 परन्तु उसके सभी उपाय विफल गये तो वह थककर अपने स्थान को लौट गई। 15 जिनपालित को लेकर शैलक चम्पानगरी जा पहुँचा। वहाँ जिनपालित ने नगर में प्रवेश किया और अपने घर र पहुँचा। वह अपने माता-पिता के पास गया और रोते-रोते जिनरक्षित की मृत्यु के समाचार बताये। समय बीतने पर र उसे शोक से मुक्ति मिली और वह सामान्य जीवन व्यतीत करने लगा। 5 कुछ समय बाद श्रमण भगवान महावीर चम्पानगरी पधारे। जिनपालित ने दीक्षा ले ली। अन्त समय आने पर उसने एक माह की संलेखना के पश्चात् देह त्यागी और देवलोक में जन्म लिया। वहाँ से वह महाविदेह में जन्म र लेकर मुक्ति प्राप्त करेगा। 15 (2) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA innnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NINTH CHAPTER: MAKANDI: INTRODUCTION Title Mayandi-Makandi-a name. Vices and virtues as well as the good and bad results of cravings and indifference for sensual pleasures have been explained with the help of the story of the two sons of the merchant named Makandi. GLA Gist of the story-A merchant named Makandi lived in Champa. He had two sons named Jinapalit and Jinarakshit. They had done eleven sea voyages and wanted to go on a twelfth. Their parents told them that a twelfth sea voyage is always inauspicious and painful and so they should abandon the idea. The sons persisted and at last the parents relented. They filled their ships with cargo and commenced their voyage. When they went hundreds of Yojans over the sea their ship was caught in a storm and it capsized. All the cargo and the passengers drowned, but the sons of Makandi caught hold of a large wooden plank and drifted to a nearby island named Ratnadveep. On that island, in a large mansion, lived the evil goddess of Ratnadveep. Through her magical powers she saw the sons of Makandi in their wretched state. She at once arrived near them and said that if they wanted to save their lives they would have to submit to her libidinous designs. The terror stricken sons of Makandi agreed to whatever she said. The goddess brought them to her palace and started satisfying her lust. After some days, god Susthit gave her the job of cleaning the sea. The goddess informed the sons of Makandi of this and said that as long as she was busy with this work they could enjoy the facilities of the large mansion. If they got bored they could proceed to the eastern, northern, or western gardens. But they should never go to the southern garden because in that garden lived a giant venomous serpent that could kill them instantaneously. The goddess proceeded for her job. Soon the two brothers got bored and lonely. One after the other, they went to the three gardens they were allowed to visit. But soon they got bored with these and proceeded in the direction of the southern garden. There they came to a large execution ground and saw a person on a gibbet. He was wailing pathetically. They enquired about him and his desperate condition. The man informed them that the execution ground belonged to the evil goddess and he was a horse trader from Kakandi. His ship had capsized and he had drifted to Ratnadveep. The goddess had taken him to her mansion and had indulged in her lewd enjoyments. One day she got extremely annoyed with him and put him into his current predicament. Ho The sons of Makandi got panicky and asked how could they save themselves from the clutches of the evil goddess? The man on the gibbet explained that in the eastern garden there was a temple of a demigod named Shailak, who was in the form of a horse. On the CHAPTER-9: MAKANDI (3) 47 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ T Tuntura 12 (8) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र SI 15 fifteenth, fourteenth and eighth days of every fortnight, he presented himself and offered a 15 help to the needy. They should go to the eastern garden and seek his help. " The sons of Makandi at once rushed to the eastern garden and started doing worship of 9 ► the deity in the prescribed manner. The Yaksha came and they sought his help. 5 Shailak said, "When you are half way through the sea with me the goddess will try to 15 distract you. If you give heed to her gestures, I will throw you off my back. However, if you L5 ignore her gestures I will free you from her clutches." The sons of Makandi accepted the condition. Shailak transformed himself into a giant 5 horse. The sons of Makandi saluted Shailak and rode his back. The Yaksha commenced its flight over the sea in the direction of Champa. 2 When the evil goddess returned and found no trace of them she used her Avadhi Jnana (extra sensory perception of the physical world) and saw them crossing the sea with Shailak. She lost her temper and arrived near them with divine speed. When she came near them she Kuttered, "O sons of Makandi! you can save yourselves only if you love and desire me. Otherwise I will behead you with this blue sword of mine." 15 The sons of Makandi did not lose their composure at this outburst. The goddess now 5 resorted to her enticements, but in vain. She then peeped into the mind of Jinarakshit through her Avadhi Jnana. When she saw some weakness there she at once tried to exploit it. Jinarakshit was allured and he looked at the goddess. Shailak became aware of his < » turning. He at once pushed Jinarakshit off of his back. The she-devil saw helpless Jinarakshit falling from the back of Shailak and with her s Psword she sliced Jinarakshit into pieces and threw them in all direction. Later the evilB goddess approached Jinapalit and tried to disturb him in vain and returned to her abode. Carrying Jinapalit over the sea, Shailak at last reached Champa city. Jinapalit went to 5 his parents and tearfully gave the news of the demise of Jinarakshit. Vanquishing his grief a 15 in due course, Jinapalit resumed his normal life. » When Shraman Bhagavan Mahavir arrived in the Champa city Jinapalit got initiated. ? He left his earthly body after a month long fast and reincarnated as a god. From there he will be reborn in the Maha-videh area and obtain liberation. Urrrrrruuuuuuuuuuuurrrrrrrrrrrrrrrrruuuur Uuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuu JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA A Sinnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णवमं अज्झयणं : मायंदी नवम अध्ययन : माकन्दी NINTH CHAPTER : MAYANDI - MAKANDI सूत्र १ : जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स णायज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते, नवमस्स णं भंते ! णायज्झयणस्स समणेणं के अट्ठे पण्णत्ते ? सूत्र १ : जम्बू स्वामी ने पूछा - "भंते ! श्रमण भगवान महावीर ने सूत्र के आठवें ज्ञाता अध्ययन का जो यह अर्थ बताया है वह मैंने सुना, कृपया बतायें उन्होंने नवम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? 1. Jambu Swami inquired, “Bhante! I have grasped the meaning of the eighth chapter of the Jnata as explained by Shraman Bhagavan Mahavir. Now please tell me what is the meaning of the ninth chapter according to him." सूत्र २ : एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था । तीसे णं चंपाए नयरी कोणि नामं राया होत्था । तत्थं णं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए पुण्णभद्दे नामं चेइए होत्था । सूत्र २ : सुधर्मा स्वामी ने उत्तर दिया - हे जम्बू ! उस काल के उस भाग में चम्पा नाम की एक नगरी थी । वहाँ कुणिक नाम के राजा राज्य करते थे । चम्पानगरी के बाहर उत्तरपूर्व दिशा में पूर्णभद्र नामक एक चैत्य था । 2. Sudharma Swami said - Jambu ! During that period of time there was a city named Champa. It was under the reign of a king named Kunik. In the north eastern direction of Champa there was a garden named Purnabhadra. सूत्र ३ : तत्थ णं माकंदी नामं सत्थवाहे परिवसइ, अड्ढे । तस्स णं भद्दा नामं भारिया होत्था । तीसे णं भद्दा भारियाए अत्तया दुवे सत्थवाहदारया होत्था । तं जहा - जिणपालिए य जिणरक्खि य । तए णं तेसिं मागंदियदारगाणं अण्णया कयाइ एगयओ इमेयारूवे मिहो कहासमुल्लावे समुपज्जित्था CHAPTER - 9 : MAKANDI For Private Personal Use Only (5) Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ STTUUTTUVUUTTUVUUUUUUU P(६) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ही 15 एवं खलु अम्हे लवणसमुदं पोयवहणेणं एक्कारस वारा ओगाढा, सव्वत्थ वि य णं लद्धट्ठा डा र कयकज्जा अणहसमग्गा पुणरवि निययघरं हव्वमागया। तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया! - 15 दुवालसमं पि लवणसमुदं पोयवहणेणं ओगाहित्तए।' त्ति कटु अण्णमण्णस्सेयमढे पडिसुणेति, ड र पडिसुणित्ता जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एवं वयासी15 एवं खलु अम्हे अम्मयाओ ! एक्कारस वारा तं चेव जाव. निययं घरं हव्वमागया। तं इच्छामो दी र णं अम्मयाओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणा दुवालसमं लवणसमुदं पोयवहणेणं ओगाहित्तए।' । 15 सूत्र ३ : चम्पानगरी में माकन्दी नाम का एक समृद्ध सार्थवाह (व्यापारी) रहता था। उसकी ड र भद्रा नाम की पत्नी थी। भद्रा के दो आत्मज पुत्र थे जिनके नाम थे-जिनपालित और जिनरक्षित। ड र दोनों माकन्दी पुत्रों ने एक बार परस्पर इस प्रकार विचार विनिमय किया15 "हमने जहाज द्वारा लवण-समुद्र की ग्यारह बार यात्रा की है। प्रत्येक बार हमने धन-लाभ ड र किया, करने योग्य अन्य सभी कार्य किये और अन्त में यथासमय निर्विघ्न घर लौटे। अतः हेड 15 देवानुप्रिय ! हम उसी प्रकार बारहवीं यात्रा भी करें तो अच्छा होगा।' दोनों ने परस्पर विमर्श कर दे 15 यह निर्णय ले लिया और अपने माता-पिता से बोले र “हे माता-पिता ! हम ग्यारह बार लवण-समुद्र की यात्रा से सफल व सकुशल लौट चुके हैं। टा 15 अब आपकी आज्ञा प्राप्तकर हम बारहवीं बार पुनः वैसी यात्रा करना चाहते हैं।" 2 3. A wealthy merchant named Makandi lived in Champa. The name of his B wife was Bhadra. The couple had two sons — Jinapalit and Jinarakshit. One ] 15 day these two sons of Makandi deliberated> "We have made eleven voyages across the sea. Every time we earned a lot 2 of money, enjoyed as much as we could, and returned in time without any problem. As such, Beloved of gods! It would be good if we go on a twelfth voyage." They both agreed and approached their parents for permission - "Mother and father! We have successfully and safely completed eleven sea 5 voyages. With your permission we want to go on a sea voyage again, for the 2 twelfth time.” र यात्रा की अनुमति 15 सूत्र ४ : तए णं ते मागंदियदारए अम्मापियरो एवं वयासी-'इमे ते जाया ! अज्जग जाव. डा र परिभाएत्तए, तं अणुहोह ताव जाया ! विउले माणुस्सए इड्डी-सक्कार-समुदए। किं भे सपच्चवाएणं ही 15 निरालंबणेणं लवणसमुद्दोत्तारेणं? एवं खलु पुत्ता ! दुवालसमी जत्ता सोवसग्गा यावि भवइ। तं द र मा णं तुब्भे दुवे पुत्ता दुवालसमं पि लवणसमुदं जाव ओगाहेह, मा हु तुब्भं सरीरस्स वावत्ती र भविस्सइ। vururrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr UUUUN 15(6) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA ynnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnns Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र नवम अध्ययन ः माकन्दी (७) टा 5 सूत्र ४ : तब उनके माता-पिता ने इस प्रकार कहा-“हे पुत्रो ! तुम्हारे पुरखों, दादा-परदादा र आदि की कमाई हुई अपार धन-सम्पत्ति हमारे पास है जो सात पीढियों तक हर प्रकार के उपभोग टा 15 तथा वितरण के लिये यथेष्ट है। अतः हे पुत्रो ! मनुष्योपयोगी इस विपुल ऋद्धि-सत्कार सामग्री का द 15 उपभोग करो। आपदाओं से भरे और आलम्बनरहित लवणसमुद्र में तैरने से क्या लाभ? और फिर S र बारहवीं बार लवण समुद्र की यात्रा सोपसर्ग (कष्टदायी) होती है, अतः तुम मत जाओ, ताकि 15 तुम्हारे शरीर को कष्ट न हो। UVUVITU ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्A PERMISSION OF VOYAGE 4. The parents replied, "Sons! We have unlimited inherited wealth. It is more than enough to last seven generations of consumption and distribution B by our family. Thus sons! enjoy this enormous means of grandeur, utility, and 15 charity fully. What is the use of floating adrift on the insecure and hazardous c 15 sea? Moreover, a twelfth sea voyage is inauspicious and dangerous So, in 15 order to avoid any affliction to your bodies you should abandon the idea." S र सूत्र ५ : तए णं मागंदियदारगा अम्मापियरो दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-‘एवं खलु द अम्हे अम्मयाओ ! एक्कारस वारा लवणसमुदं ओगाढा। सव्वत्थ वि य णं लद्धट्टा कयकज्जाड र अणहसमग्गा पुणरवि नियघरं हव्वमागया। तं सेयं खलु अम्मयाओ ! दुवालसंपि लवणसमुदं ट 15 ओगाहित्तए। र सूत्र ५ : माकंदी पुत्रों ने दुबारा-तिबारा फिर अपने माता-पिता से उन्हीं शब्दों में अपनी आग्रह 15 पूर्ण प्रार्थना की। हे माता-पिता ! हमने ग्यारह बार सफलता प्राप्त की है अतः अब बारहवीं बार ड र यात्रा करने की इच्छा है। (सू. ३ के समान) 5. The sons of Makandi persisted, again and again repeating their request 5 that having experienced eleven successful voyages they should be permitted 15 to go on the twelfth. (as in para 3) र सूत्र ६ : तए णं ते मागंदीदारए अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति बहूहिं आघवणाहि यद के पन्नवणाहि य आघवित्तए वा पन्नवित्तए वा, ताहे अकामा चेव एयम अणुजाणित्था। र सूत्र ६ : माता-पिता जब उन माकंदी पुत्रों को सामान्य बातों से अथवा विशेष बातों से दी २ समझाने-बुझाने में असमर्थ रहे तब इच्छा नहीं होते हुए भी उन्हें समुद्र यात्रा की अनुमति दे दी। र 6. When the parents failed in all their casual as well as persistent efforts, ट] 5 they reluctantly granted permission. र सूत्र ७ : तंए णं ते मागंदियदारगा अम्मापिऊहिं अब्भणुण्णाया समाणा गणिमं च धरिमं च । 5 मेज्जं च पारिच्छेज्जं च जहा अरहण्णगस्स जाव लवणसमुदं बहूई जोयणसयाइं ओगाढा। तए द 15 CHAPTER-9 : MAKANDI (7) Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn URETITE Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ज्ज् ( ८ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र णं तेसिं मागंदियदारगाणं अणेगाई जोयणसयाइं ओगाढाणं समाणाणं अणेगाई उप्पाइयसयाई पाउब्भूयाई । सूत्र ७ : माता-पिता से आज्ञा प्राप्त कर माकंदी पुत्रों ने अपने जहाजों में गणिम ( गिनती से बेचा जाने वाला), धरिम (तोल से बेचा जाने वाला), मेय ( नाप से बेचा जाने वाला), तथा पारिच्छेद्य (काटकर बेचा जाने वाला) माल भर दिया जैसे अर्हन्नक श्रावक के वर्णन में है ( अ. ८ ) देखें) और लवणसमुद्र में कई सौ योजन दूर निकल गए। वहाँ उनका अनेक प्रकार की आपदाओं से सामना हुआ। 7. Glad to get permission, the sons of Makandi filled their ships with all the four types of goods. The four types were — Ganim (sold by counting), Dharim (sold by weight), Meya (sold by measurement), and Paricched (sold in parts) as mentioned in the story of Arhannak Shravak, (as detailed in ch. 8, p. 48 ). They commenced their voyage. When they crossed hundreds of Yojans into the sea they faced a series of afflictions. लवण समुद्र में तूफान सूत्र ८ : तं जहा - अकाले गज्जियं जाव (अकाले विज्जुए, अकाले ) थणियसद्दे कालियवाए तत्थ समुट्ठिए । तए णं सा णावा तेणं कालियवाएणं आहुणिज्जमाणी आहुणिज्जमाणी संचालिज्जमाणी ) संचालिज्जमाणी संखोभिज्जमाणी संखोभिज्जमाणी सलिल - तिक्ख-वेगेहिं आयट्टिज्जमाणी आयट्टिज्जमाणी कोट्टिमंसि करतलाहते विव तेंदूसए तत्थेव तत्थेव ओवयमाणी य उप्पयमाणी य, उम्पयमाणी विव धरणीयलाओ सिद्धविज्जा विज्जाहरकन्नगा, ओक्यमाणी विव गगणतलाओ भट्ठविज्जा विज्जाहरकन्नगा, विपलायमाणी विव महागरुलवेगवित्तासिया भुयगवरकन्नगा, धामणी विव महाजण - रसियसद्दवित्तत्था ठाणभट्ठा आसकिसोरी, णिगुंजमाणी विव गुरुजणादिट्ठावराहा सुयण-कुलकन्नगा, घुम्मणी विव वीची-पहार - सत- तालिया, गलिय-लंबणाविव गगणतलाओ, रोयमाणी विव सलिलगठि- विप्पइरमाणथोरंसुवाएहिं णववहू उवरतभत्तुया, विलवमाणी विव परचक्करायाभिरोहिया परममहब्भयाभिदुयया महापुरवरी, झायमाणी विव कवडच्छोमप्पओगजुत्ता जोगपरिव्वाइया, णिसामाणी विव महाकंतार - विणिग्गयपरिस्संता परिणयवया अम्मया, सोयमाणी विव तव चरणखीण- परिभोगा चयणकाले देववरवहू, संचुण्णियकट्टकूबरा, भग्ग- मेढि - मोडिय सहस्समाला, सूलाइयबंक - परिमासा, (8) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्य र नवम अध्ययन : माकन्दी (९) टा ___ फलहंतर-तडतडेंत-फुटुंत-संधिवियलंत-लोहकीलिया, सव्वंग-वियंभिया, परिसडिय-रज्जु-भा र विसरंत-सव्वगत्ता, आमगमल्लगभूया, अकयपुण्ण-जणमणोरहो विव चिंतिज्जमाणागुरुई, हाहाकय-कण्णधार-नाविय-वाणियगजण-कम्मगार-विलविया, ___णाणाविह-रयण-पणिय-संपुण्णा, बहूहिं पुरिस-सएहिं रोयमाणेहिं कंदमाणेहिं सोयमाणेहिड र तिप्पमाणेहिं विलवमाणेहिं एगं महं अंतोजलगयं गिरिसिहर-मासायइत्ता संभग्ग-कूवतोरणा द मोडिय-झय-दंडा वलयसयखंडिया करकरस्स तत्थेव विद्दवं उवगया। 12 सूत्र ८ : वे (आपदाएँ) इसप्रकार हैं-असमय गर्जना होने लगी और बिजली चमकने लगी। 15 असमय ही तीव्र कडकडाहट जैसी ध्वनियों के साथ भयंकर आँधी चलने लगी। र और तब वह नाव काल तुल्य तूफानी हवा के प्रभाव से बार-बार काँपने लगी, इधर-उधर ट र डोलने लगी, डूबने-उतरने लगी, तीव्र वेग वाली लहरों से टकराकर चक्कर लगाने लगी, और धरती डा 15 पर पटकी हुई गेंद की तरह यहाँ-वहाँ उठने-गिरने लगी। र जैसे सिद्धि प्राप्त विद्याधर कन्या धरती की सतह से उछलती है उसी प्रकार वह नाव उछलने दा 15 लगी। ___ जैसे विद्याभ्रष्ट विद्याधरकन्या गगन से नीचे गिरती है वैसे ही वह नाव गिरने लगी। 15 जैसे विशाल गरुड से डरी हुई नागकन्या भागती है वैसे ही वह नाव इधर-उधर भागने लगी। B जैसे खोई हुई बछेरी (अश्वकन्या) भीड के शोर से भयभीत हो दौड़ती है वैसे ही वह नाव भी डा 5 दौड़ने लगी। 5 जैसे गुरुजनों द्वारा दोष जान लिये जाने पर कुलीन कन्या नीचे झुकने लगती है वैसे ही वह हे नाव झुकने लगी। र सैंकड़ों लहरों के निरन्तर प्रहार से वह थरथराने लगी। वह नाव आकाश में बिना सहारे रही डा 15 वस्तु के समान नीचे गिरने लगी। र उसके पानी भरे जोड़ों से जलधाराएँ बहने लगीं मानो पति की मृत्यु पर कोई नववधू आँसू 15 बहा रही है। र उस नाव से विलाप के स्वर यों उठ रहे थे कि मानो किसी शत्रु राजा की सेना से घिरी हुई 15 घोर महाभय से पीड़ित कोई श्रेष्ठ नगरी हो। र बगुले के समान कपट-सहित योग-साधनारत परिव्राजिका की तरह वह रह-रह कर स्थिर हो 15 जाती थी। र विशाल जंगल में से पैदल चलकर आई वृद्धा गर्भवती स्त्री के समान वह नौका हाँफने लगी टा 5 थी। PTER-9 : MAKANDI (9) Fennnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn म Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ( १० ) तपस्या के फलस्वरूप प्राप्त स्वर्ग के सुख समाप्त प्रायः हो जाने पर च्यवन के समय जैसे कोई देवी शोक करती है वैसे ही वह नौका शोक मग्न हो गई । उसके काठ से बने भाग चूर-चूर हो गये। उसकी मेढ़ी (मोटे लट्ठे का बना आधार ) तथा माल ( ऊपरी भाग), जहाँ सहस्रों यात्री बैठते थे, भग्न हो गये थे। उसका परिमास (नौका का काठ का एक भाग) सूली पर चढ़े व्यक्ति के समान मुड गया था। लकड़ी के पाटियों को जोड़ने वाले लोहे के कीले तडतडाकर निकल गये और जोड़ों के खुल जाने से उसके समस्त अवयव बिखर गये। रस्सों के गल जाने से उनसे बंधे जोड भी खुल गये । इस प्रकार वह नाव कच्चे सिकोरे जैसी हो गई । उसकी दशा पुण्यहीन व्यक्ति के मनोरथ जैसी दयनीय हो गई और चिंता से उसका भार बढ़ गया । उस पर सवार कर्णधार, नाविक, व्यापारी, कर्मचारी आदि हाय ! हाय ! कर रो रहे थे। अनेक प्रकार के रत्नों तथा बिक्री के माल से भरी रोने वाले, क्रन्दन करने वाले, शोक करने वाले और आँसू बहाने वाले सैंकडों लोगों से भरी वह नाव जल मग्न ( अदृश्य) एक पर्वत से टकरा गई। उसकी मस्तूल और तोरण टूट गये । ध्वज दंड मुड गया। उसके सैकड़ों काष्टखण्ड टूट गये । as - कs की ध्वनि के साथ वह नाव वहीं डूब गई। STORM IN THE SEA 8. Unexpected thunder and lightning started. Suddenly a terrible storm with ear shattering whiplash sounds engulfed them. The ship whipped by a murderous stormy gale started trembling, swaying to and fro, vanishing and reappearing, circling around caught in the tremendous force of whirling waves and going up and down like a ball tossed on the ground. It went up as a divine girl with her acquired power ascends from the surface of the earth into the sky. It fell as a divine girl deprived of her powers falls from the heavens. It started running from one place to another as runs a serpent goddess afraid of a giant eagle. 卐 It started galloping like a colt frightened by uproar of a large crowd. It started bowing down as a girl from a cultured family bows when her elders become aware of her misdeed. It started trembling under the continuous thrashing of hundreds of waves. That ship started falling down in the air like an unbound object. (10) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मज्ज र नवम अध्ययन ः माकन्दी (११) Water leaked from its joints in streams as if a newly wedded bride were shedding tears on the sudden death of her husband. Sounds of wailing came from that ship as if it were a gorgeous town under siege and deadly persecution by an attacking army. From time to time it became stable as if a phoney nun were meditating 5 like a preying heron. The ship appeared to be gasping like an aging pregnant woman after a S 2 long and hard walk through a forest. 5 It became mournful like a goddess about to descend to the earth at the C 5 end of her divine life-span earned by penance. Its wooden parts shattered, the main plank and the decks, where al 5 hundreds of passengers could alight, were damaged. Its mast bent like a c 15 condemned man on a gibbet. The iron nails and pins popped out and all its components held together a 5 by them were scattered. The decayed ropes also broke and all the joints 15 became loose. The ship became as fragile as an unbaked pot of clay. Its condition was as precarious as the wish of an ill fated person. The load of S 2 worry was added to its already heavy cargo. 1 Every one aboard the ship including the crew and passengers were crying 15 and wailing. 2 Heavy with a variety of valuable cargo and hundreds of crying, wailing, a 5 mournful, and weeping passengers that ship hit a submerged mountain. Its 15 sails and mast broke down and the flag pole doubled. With a loud noise the ship disintegrated into hundreds of pieces and capsized. __ सूत्र ९ : तए णं तीए णावाए भिज्जमाणीए बहवे पुरिसा विपुलपडिय-भंडमायाए दा 15 अंतोजलम्मि णिमज्जा यावि होत्था। तए णं मागंदियदारगा छेया दक्खा पत्तट्टा कुला मेहावी | 5 निउणसिप्पोवगया बहुसु पोतवहण-संपराएसु कयकरणा लद्धविजया अमूढा अमूढहत्था एगं महं द र फलगखंडं आसादेंति। 5 सूत्र ९ : नाव के डूबने के साथ अनेक लोग विपुल रत्न, व माल के साथ जल में डूब गये। द र किन्तु दोनों माकंदी पुत्र- चतुर, दक्ष, अर्थवान, कुशल, मेधावी, निपुण, शिल्प के ज्ञाता, नौका युद्ध ड र जैसे अनेक भयावह कार्यों में विजय के अनुभवी, मूढ़ता रहित तथा फुर्तीले थे। अतः उन्होंने लकड़ी ट 15 का एक बड़ा लट्टा पकड़ लिया। S 15 CHAPTER-9 : MAKANDI (11) G Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २(१२) . ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 9. With the boat all the valuable cargo and the passengers drowned. 115 However, the two sons of Makandi were wise, proficient, knowledgeable, cl sharp, skilled, artful, and experienced in naval war and other such fields, active, and agile. They did not panic like others and caught hold of a large wooden plank. र रत्न-द्वीप में प्रवेश 5 सूत्र १0 : जस्सिं च णं पदेसंसि पोयवहणे विवन्ने, तंसि च णं पदेसंसि एगे महं रयणद्दीवे 12 णामं दीवे होत्था। अणेगाइं जोअणाई आयामविक्खंभेणं, अणेगाइं जोअणाइं परिक्खेवेणं, ड 5 नानादुमसंड-मंडिउद्देसे सस्सिरीए पासाईए दंसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। तस्स णं बहुमज्झदेसभाए तत्थ णं महं एगे पासायवडेंसए होत्था-अब्भुग्गयमूसियपहसिए 15 जाव सस्सिरीभूयरूवे पासाईए दंसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। ___ तत्थ णं पासायवडेंसए रयणद्दीवदेवया नाम देवया परिवसइ, पावा, चंडा, रुद्दा, खुद्दा, 15 साहसिया। 5 तस्स णं पासायवडेंसयस्स चउद्दिसिं चत्तारि वणसंडा किण्हा, किण्होभासा। र सूत्र १० : जिस क्षेत्र में वह पोतवहन-जहाज नष्ट हुआ था उस क्षेत्र में निकट ही रत्न-द्वीप ड र नाम का एक विशाल द्वीप था। उसकी लम्बाई-चौड़ाई तथा घेरा अनेक योजन विस्तृत था। अनेक 5 प्रकार के वृक्षों के वनों से भर-पूर वह द्वीप सुन्दर सुषमा वाला, आनन्द देने वाला, दर्शनीय और के विविध रूप वाला था। र उस द्वीप के मध्य में एक उत्तम भवन था। वह अत्यन्त ऊँचा और सुन्दर था। उस भवन में रत्नद्वीप देवी नामकी एक देवी रहती थी। वह पापी, चंड, रौद्र, क्षुद्र व साहसी र प्रवृत्ति वाली थी। 15 उस भवन की चारों दिशाओं में चार उद्यान थे जो घने श्याम रंग तथा श्याम आभा वाले थे। ८ 5 COMING TO RATNADVEEP 10. Near the spot where the ship had capsized was a large island known as Ratnadveep. It was spread in an area of many Yojans. Full of vegetation, the island was beautiful, scenic, enchanting and full of diversions 15 There was a large mansion in the middle of that island. It was grand and 5 beautiful. 2 In this building lived the evil goddess of Ratnadveep who was sinful, S R violent, vicious, mean, and bold. 5 On four sides of that mansion there were four lush green gardens. JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA 2 15(12) Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SINGH 1001 1 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ E ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग : २) चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED लवण समुद्र- यात्रा : रत्नद्वीप देवी चित्र : १ १. चंपानगरी निवासी माकन्दी - पुत्र जिनपालित एवं जिनरक्षित बारहवीं बार समुद्र -यात्रा करते हुए लवणसमुद्र में अनेक योजन दूर चले गये। अचानक समुद्र में भीषण तूफान आया । नाव एक समुद्री पर्वत से टकराकर टूट गई । २. दोनों भाई तैरते हुए रत्नद्वीप के तट पर पहुँचे। वहाँ विश्राम कर रहे थे, तभी रत्नद्वीप की देवी वहाँ आई । अनेक प्रकार का प्रलोभन तथा भय दिखाकर वह उन्हें अपने महलों में ले गई। ३. एक बार माकन्दी - पुत्र पूर्व-पश्चिम दिशा के उद्यानों में घूमते हुए दक्षिणदिशा के भयानक वनखण्ड में पहुँच गये। वहाँ एक विशाल वधस्थल दिखाई दिया जहाँ चारों ओर हड्डियों के ढेर ( नर कंकाल ) पड़े थे। वहाँ सूली पर लटका एक पुरुष दिखाई देने पर भयभीत हुए माकन्दी - पुत्रों ने उससे पूछा - "तुम कौन हो ? तुम्हारी यह दुर्दशा किसने की ?” ( नवम अध्ययन ) THE SEA VOYAGE: THE GODDESS OF RATNADVEEP ILLUSTRATION: I 1. Jinapalit and Jinarakshit, the sons of Makandi of Champa, set out on their twelfth sea voyage. When they went hundreds of Yojans on the sea their ship was caught in a storm and capsized. 2. The two brothers drifted to an island named Ratnadveep. While they were taking rest the evil goddess of Ratnadveep arrived there. Using a variety of allurements and fear she took them to her palace. 3. Once the sons of Makandi went into the three gardens they were allowed to visit. Later they proceeded towards the southern garden. They arrived at a large and stinking execution ground littered with heaps of skeletons. There they saw a person on a gibbet. Terrified, the sons of Makandi inquired about him and his desperate condition. JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA (PART-2) (CHAPTER-9) Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ) 2 नवम अध्ययन : माकन्दी ( १३ ) S सूत्र ११ : तए णं ते मागंदियदारगा तेणं फलयखंडेणं उवुज्झमाणा उवुज्झमाणा SI र रयणदीवंतेणं संबूढा यावि होत्था। र सूत्र ११ : तब दोनों माकंदी पुत्र लढे के सहारे बहते-बहते रत्नद्वीप के निकट आ पहुंचे। 5 11. Drifting on the wooden plank the sons of Makandi arrived near C 5 Ratnadveep island. सूत्र १२ : तए णं ते मागंदिरादारगा थाहं लभंति, लभित्ता मुहुत्तंतरं आससंति, आससित्ता दी फलगखंडं विसज्जेंति, विसज्जित्ता रयणद्दीवं उत्तरंति, उत्तरित्ता फलाणं मग्गणगवेसणं करेंति, डा B करित्ता फलाइं गेहंति, गेण्हित्ता आहारेंति, आहारित्ता णालिएराणं मग्गणगवेसणं करेंति, 5 करित्ता नालिएराइं फोडेंति, फोडित्ता नालिएरतेल्लेणं अण्णमण्णस्स गत्ताइं अब्भंगति, अब्भंगित्ता S र पोक्खरणीओ ओगाहिंति, ओगाहित्ता जलमज्जणं करेंति, करित्ता जाव पच्चुत्तरंति, पच्चुत्तरित्ता टा 5 पुढविसिलापट्टयंसि निसीयंति, निसीइत्ता आसत्था वीसत्था सुहासणवरगया चंपानयरिं अम्मापिउआपुच्छणं च र र लवणसमुद्दोत्तारं च कालियवायसमुत्थणं च पोयवहणविवत्तिं च फलयखंडस्स आसायणं च डी रयणदीवुत्तारं च अणुचिंतेमाणा अणुचिंतेमाणा ओहयमणसंकप्पा जाव झियाएंति। र सूत्र १२ : उन माकंदी पुत्रों को (जिनपाल-जिनरक्ष) को तट मिला तो घडीभर विश्राम करके दी 15 लट्टे को छोड़ा और रत्नद्वीप में उतर गये। भूखे होने से वहाँ फल ढूंढे और तोडकर खाये। इसके स के बाद उन्होंने नारियल ढूंढे और फोड़कर उनका तेल निकाल कर परस्पर मालिश की। मालिश के डी र बाद वे एक बावड़ी में उतरे और स्नान किया। तब बावडी से बाहर निकलकर एक चट्टान पर बैठ ट 15 गए और शांत हो विश्राम किया। र फिर वे आराम से बैठे-बैठे चम्पानगरी, माता-पिता से आज्ञा, लवण-समुद्र की यात्रा, तूफान, ट 5 नौका टूट कर डूब जाना, लकडी के लट्ठे का मिलना और अन्त में रत्नद्वीप में आना, आदि का ड र बार-बार स्मरण करने लगे। फलस्वरूप भग्न-हृदय (उदास-हताश) हुये और हथेली पर मुख रखकर ही 5 चिन्ता में डूब गये। र 12. When they reached the shore they rested for a few moments and then 2 5 left the plank. They searched for some fruit bearing trees and satisfied their hunger. After filling their bellies they looked around for coconut trees, cl plucked and broke open some coconuts, squeezed out some oily juice and ? massaged each other's bodies. They entered a nearby fresh-water pond and I B took bath. Once these essentials were over they sat down on a nearby rock and rested calmly. 15 CHAPTER-9 : MAKANDI (13) टा FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA) Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प OUTU २ (१४) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र SH While resting they went over all the incidents of the recent past starting from the moment they got permission from their parents. All the horrifying details of the storm and capsizing of their ship flashed into their memory again and again. They were overwhelmed by fog of depression and, resting र their chins on the palms, they started brooding. र देवी की धमकी __सूत्र १३ : तए णं सा रयणद्दीवदेवया ते मागंदियदारए ओहिणा आभोएइ, आभोइत्ता | असिफलग-वग्ग-हत्था सत्तट्टतालप्पमाणं उड्ढं वेहासं उप्पयइ, उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए जाव 5 देवगईए वीइवयमाणी वीइवयमाणी जेणेव मागंदियदारए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता डी र आसुरुत्ता मागंदियदारए खर-फरुस-निठुरवयणेहिं एवं वयासी _ 'हं भो मागंदियदारगा ! अप्पत्थियपत्थिया ! जइ णं तुब्भे मए सद्धिं विउलाई भोगभोगाइं डा र भुंजमाणा विहरइ, तो भे अस्थि जीवियं, अहण्णं तुब्भे मए सद्धिं विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणाट 15 नो विहरइ, तो भे इमेणं नीलुप्पल-गवल-गुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेणं खुरधारेणं असिणा दा र रत्तगंडमंसुयाई माउयाहिं उवसोहियाइं तालफलाणि व सीसाइं एगते एडेमि।' 15 सूत्र १३ : उस समय रत्न-द्वीप की देवी ने अवधिज्ञान से माकन्दी पुत्रों को वहां आये देखा। द 12 उसने अपने हाथ में ढाल-तलवार ली और सात-आठ ताड जितनी ऊँचाई पर आकाश में उड कर ड 5 तीव्र दिव्यगति से चलती-चलती माकन्दी पुत्रों के निकट आई। उसने अपना क्रोध प्रकट कर तीखे, ट 5 कठोर और निष्ठुर वचनों में कहार “हे माकन्दी पुत्रो ! हे अनिच्छित (मृत्यु) की इच्छा करने वालो ! यदि तुम मेरे साथ विपुल टे 5 काम-भोग भोगने को तैयार हो तो तुम्हारा जीवन बचेगा। वैसा न करने पर नील कमल, भैंसे के द सींग, नीलम की मणि तथा अलसी के फूल के समान नीली और छुरे की धार के समान तीक्ष्ण इस ड तलवार से मैं तुम्हारे ये तरुणाई से गुलाबी, दाढी-मूंछों से शोभित और माता-पिता द्वारा संवार कर 5 सुन्दर बनाए मस्तक ताडफल की तरह काट कर एक और डाल दूंगी। THREAT OF THE GODDESS 13. The evil goddess of Ratnadveep saw the sons of Makandi, through her magical powers, in this state of depression. She at once got up, picked her sword and shield up and, flying with a divine speed at a height of eight to ten feet from the ground, arrived near the sons of Makandi. Expressing her anger she uttered in harsh, cruel and commanding voice - ____ “O sons of Makandi! O desirous of the undesired! If you want to save your 5 lives you will have to agree to enjoy libidinous and lusty pleasures of the 5 (14) JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SÜTRA Sannnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn) Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५ ) टी AYUSUTUR गणरायण 2 नवम अध्ययन : माकन्दी body with me. If you refuse I will behead you with my sword which is blue as the blue lotus, buffalo horn, blue sapphire and Alsi flower, and sharp as a 1 stiletto. These rosy young heads with mustache and beard, trimmed and 2 B powdered with loving care by your parents, will be sliced off and thrown like a 5 palm-fruits.” 5 सूत्र १४ : तए णं ते मागंदियदारगा रयणद्दीवदेवयाए अंतिए एयमहूँ सोच्चा णिसम्म भीया । र संजायभया करयल जाव एवं वयासी-जं णं देवाणुप्पिया वइस्ससि तस्स आणा-उववाय-द 5 वयणनिद्देसे चिट्ठिस्सामो। र सूत्र १४ : तब माकन्दीपुत्र देवी की यह बात सुन-समझकर डर गये। हाथ जोडकर वे बोले5 “देवानुप्रिये ! आपके कहे अनुसार हम आपकी आज्ञा, सेवा, आदेश व निर्देश का पालन करेंगे।" S ____14. These words of The evil goddess terrorized the sons of Makandi. Joining their palms and bowing before the evil goddess they submitted, 5 “Beloved of gods! As desired, we shall explicitly follow your orders, demands, 5 instructions and directions." र सूत्र १५ : तए णं सा रयणद्दीवदेवया ते मागंदियदारए गेण्हाइ, गेण्हित्ता जेणेव दे र पासायवडेंसए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असुभपुग्गलावहारं करेइ, करित्ता डा 5 सुभपोग्गलपक्वं करेइ, करित्ता पच्छा तेहिं सद्धिं विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरइ। र कल्लाकल्लिं च अमयफलाई उवणेइ। 5 सूत्र १५ : देवी ने माकन्दी पुत्रों को साथ लिया और उन्हें अपने महल में ले आई। वहाँ उनके र शरीर से अशुभ पुद्गलों (मैल, गन्दगी) को दूर किया और शुभ पुद्गलों का प्रक्षेपण किया ट र (लेप,सुगन्धादि द्वारा) और उनके साथ विपुल काम-भोग के सेवन में लीन हो गई। उनके लिए ड 5 प्रतिदिन अमृत जैसे मधुर फल लाने लगी। ___15. The evil goddess brought along the sons of Makandi to her palace. ट 5 Once in the palace she arranged for them to get rid of the slime and other cl 5 dirty particles from their bodies and to apply perfumes and other pleasant S 15 particles on their bodies. And then she indulged in satisfying her carnal ] 5 desires. Every day she would bring sweet and nutritious fruits for them. 5 शक्रेन्द्र का आदेश र सूत्र १६ : तए णं सा रयणद्दीवदेवया सक्कवयणसंदेसेणं सुट्टिएणं लवणाहिवइणा लवणसमुद्द 5ति-सत्त-खुत्तो अणुपरियट्टियव्वेति जं किंचि तत्थ तणं वा पत्तं वा कटुं वा कयवरं वा असुइंच र पूईयं दुरभिगंधमचोक्खं तं सव्वं आहुणिय आहुणिय ति-सत्त-खुत्तो एगते एडेयव्वं ति कटु 5 णिउत्ता। IAPTER-9 : MAKANDI (15) Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जफ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र सूत्र १६ : कुछ समय बाद लवणसमुद्र के अधिपति सुस्थित देव ने शक्रेन्द्र के निर्देशानुसार उस देवी को आज्ञा दी - " तुम्हे इक्कीस बार लवणसमुद्र का चक्कर काटना है। और हर बार उसमें रहे घास, पत्ते, काठ, कचरा, अशुचि, सड़ी-गली व दुर्गन्धित वस्तुओं को हिला डुलाकर समुद्र से निकालकर एकान्त स्थान में डाल देना है।” इस प्रकार कहकर उस देवी को समुद्र की सफाई के कार्य में नियुक्त कर दिया गया। 5 ( १६ ) SHAKRENDRA'S ORDER 16. After some days, on the direction of Shakrendra (the king of gods) the god of the sea, god Susthit, ordered the evil goddess, "You have to go around the sea twenty one times and every time you have to collect all garbage, including grass, leaves, pieces of wood, and other decayed and decomposed things, and dump it at some remote isolated spot." With these words he appointed the evil goddess to the job of cleaning the sea. सूत्र १७ : तए णं सा रयणद्दीवदेवया ते मागंदियदारए एवं वयासी - एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! सक्कवयणसंदेसेणं सुट्ठिएणं लवणाहिबइणा तं चेव जाव णिउत्ता । तं जाव अह देवाणुप्पिया ! लवणसमुद्दे जाव एडेमि ताव तुब्भे इहेव पासायवडिंसए, सुहंसुहेणं अभिरममाणा चिट्ठह । जइ णं तुब्भे एयंसि अंतरंसि उब्बिग्गा वा, उस्सुया वा, उप्पुया वा भवेज्जाह, तो तु पुरच्छिमिल्लं वणसंडं गच्छेज्जाह । सूत्र १७ : रत्नद्वीप की देवी ने तब माकन्दी पुत्रों से कहा- हे देवानुप्रियो ! शक्रेन्द्र की आज्ञा से सुस्थित देव ने मुझे लवण समुद्र की सफाई के काम में नियुक्त किया है। मैं जब तक लवण - समुद्र में जाकर इस कार्य में संलग्न रहूँ तब तक तुम इस श्रेष्ठ भवन में आनन्दपूर्वक रमण करना। इस बीच में यदि तुम ऊब जाओ, उत्सुक हो जाओ, अथवा कोई उपद्रव हो तो पूर्व दिशा के उद्यान में चले जाना। 17. The evil goddess came to the sons of Makandi and said, “Beloved of gods! On the direction of Shakrendra I have been appointed by Susthit god to clean the sea. As long as I am busy with this work you may enjoy the facilities of this large mansion. In case you get bored or want to break the monotony, or face some problem you may proceed to the eastern garden. उद्यान वर्णन सूत्र १८ : तत्थ णं दो उऊ सया साहीणा, तं जहा - पाउसे य वासारत्ते य । तत्थ उकंदल-सिलिंध-दंतो णिउर- वर- पुप्फपीवरकरो । कुडयज्जुण-णीव-सुरभिदाणो, पाउसउउ-गयवरो साहीणो ॥ १ ॥ JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA (16) For Private Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ड EUDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDU र नवम अध्ययन : माकन्दी ( १७ ) टी तत्थ य15 सुरगोवमणि विचित्तो, दरदुकुलरसिय-उज्झररवो। बरिहिणविंद-परिणद्धसिहरो, वासाउउ-पव्यतो साहीणो।।२।। तत्थ णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! बहुसु वावीसु य जाव सरसरपंतियासु बहुसु आलीघरएसु य टी 15 मालीघरएसु य जाव कुसुमघरएसु य सुहंसुहेणं अभिरममाणा विहरेज्जाह। र सूत्र १८ : उस उद्यान में पावस (आषाढ और श्रावण मास) तथा वर्षारात्र (भाद्रपद और टा 5 आश्विन) ये दोनों ऋतुएँ सदा विद्यमान रहती हैं। यथा12 नई लताएँ और सिलिंध्र (वर्षा ऋतु में फूटने वाला सफेद फूल वाला पौधा) जिसके दांत है; 15 निकुर-वृक्ष के श्रेष्ठ फूल जिसकी सूंड है; कुटज, अर्जुन तथा नीम नाम के वृक्षों के फूल जिसका डा र सुगंधित मदजल हैं ऐसा गजराज रूपी पावस उस उद्यान में सदा स्वाधीन विचरता है।।१।। 5 इन्द्रगोप (सावन की डोकरी) आदि कीड़ों रूपी माणक आदि मणियों से सुशोभित, मेंढकों की डा र टर्र-टर्र के समान निर्झरों की ध्वनि से भरा, मयूरों रूपी चोटियों (शिखरों) वाला यह पर्वत रूपी डी र वर्षारात्र उस वनक्षेत्र में सदा स्वाधीन रहता है।।२।। र अतः हे देवानुप्रियो ! पूर्व दिशा के ऐसे उद्यान में रही अनेक बावड़ियों में, अनेक सरोवरों की ट र पंक्तियों में, अनेक लतामण्डपों, कली मंडपों, पुष्प मंडपों आदि में तुम सुखपूर्वक रमण करना। भUUUUUUUUण्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज DESCRIPTION OF THE GARDENS 18. The two seasons of Pawas and Varsharatra (monsoon) always prevail P in the eastern garden: In that garden always roams free the elephant-like Pawas season with 5 new creepers and the Silindhra plant (seasonal plant with white flowers) as its tusks; the large flowers of the Nikur tree as its trunk; and fragrant flowers of Kutaj, Arjun, and Neem as its humor (rut-fluid). 11: 15 In that garden is always present the mountain-like Varsharatra season < 15 with the beetles and other insects as its embellishment of scattered gems; the » croaking of frogs as the crackling of its streams; and peacocks as its peaks. 2 9 ved of gods! move around in the eastern garden and enjoy its | 5 numerous pools, ponds, and dwellings covered with creepers, buds and 15 lowers. र सूत्र १९ : जइ णं तुब्भे एत्थ वि उविग्गा वा उस्सुया उप्पुया वा भवेज्जाह, तो णं तुब्भेट 15 उत्तरिल्लं वणसंडं गच्छेज्जाह। तत्थ णं दो उऊ सया साहीणा, तं जहा-सरदो य हेमंतो य। 15 CHAPTER-9 : MAKANDI 卐nnnnnnAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAE (17) टा Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २(१८) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा तत्थ उसण-सत्तवण्ण-कउओ, नीलुप्पल-पउम-नलिण-सिंगो। सारस-चक्कवाय-रवित-घोसो, सरयउऊ-गोवती साहीणो॥१॥ तत्थ यसियकुंद-धवलजोण्हो, कुसुमित-लोद्धवणसंड-मंडलतलो। तुसार-दगधार-पीवरकरो, हेमंतउऊ-ससी सया साहीणो॥२॥ तत्थ णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! वावीसु य जाव विहराहि। सूत्र १९ : यदि तुम वहाँ भी ऊब जाओ, उत्सुक हो जाओ, अथवा कोई उपद्रव हो जाये, तो द 5 तुम उत्तर दिशा के वन-खण्ड में चले जाना। वहाँ भी शरद व हेमन्त दो ऋतुएँ सदा विद्यमान रहती ड र हैं। यथा5 सन और सप्तपर्ण वृक्षों के फूल जिसका कुकुद (कंधे पर का उठा हुआ भाग) हैं; नीलोत्पल, र पद्म और नलिन फूल जिसके सींग हैं; और सारस तथा चकवा पक्षियों का कलरव जिसका घोष है ए ऐसा वृषभराज रूपी शरद वहाँ सदा स्वाधीन विचरता है ।।१।। र श्वेत कुन्द-पुष्प जिसकी धवल ज्योत्स्ना हैं; खिले हुए लोध्र (महुआ) फूलों वाला वनखण्ड र जिसका आभा मंडल है; और तुषार (हिम-बर्फ) के जल बिन्दुओं की धाराएँ जिसकी किरणें हैं ऐसा 15 चन्द्रमा रूपी हेमन्त वहाँ सदा स्वाधीन विचरता है।।२।। २ हे देवानुप्रियो ! उत्तर दिशा के ऐसे उद्यान में तुम सुख पूर्वक रमण/क्रीड़ा करना। (पूर्व वर्णन 15 समान) 2 19. In case there also you get bored or want to break the monotony, or face s some problem you may proceed to the northern garden. The two seasons of B Sharad and Hemant (winter) always prevail in the eastern garden: 15 In that garden always roams free the bull-like Sharad season with flowers > of San-tree and Saptaparna-tree as its hump; the flowers of Neelotpal, Padma, and Nalin as its horns; and the combined noise of flocks of cranes and ruddy-goose as its thunder. (1) 15 In that garden is always present the moon-like Hemant season with the 5 white Kund flowers as its soothing glow; the clump of thickets of blossoming Lodhra plants as its orb; and streaming dew drops as its rays. (2) 5 So, Beloved of gods! move around and enjoy the northern garden. सूत्र २० : जइ णं तुब्भे तत्थ वि उव्विग्गा वा जाव उस्सुया वा भवेज्जाह, तो णं तुब्भ ड 5 अवरिल्लं वणसंडं गच्छेज्जाह। तत्थ णं दो उऊ साहीणा, तं जहा-वसंते य गिम्हे य। तत्थ उ- ट 15(18) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA ? Annnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn UUUUUUUU U UD Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९ र नवम अध्ययन : माकन्दी सहकार-चारुहारो, किंसुय-कण्णियारासोग-मउडो। ऊसियतिलग बउलायवत्तो, वसंतउऊ-णरवई साहीणो॥१॥ तत्थ यपाडल-सिरीस-सलिलो, मलिया-वासंतिय-धवलवेलो. सीयल-सुरभि-अनल-मगरचरिओ, गिम्हउऊ-सागरो साहीणो॥२॥ सूत्र २० : यदि तुम वहाँ भी ऊब जाओ (आदि-सूत्र १९ के समान) तो तुम पश्चिम दिशा के दी 15 वन-खण्ड में चले जाना। वहाँ भी वसन्त (फाल्गुन-चैत्र) व ग्रीष्म (वैशाख-ज्येष्ठ) दो ऋतुएँ सदा डा र विद्यमान रहती हैं। यथा आम के फूलों का जिसके मनोहर हार है; पलाश, कनेर और अशोक के फूलों का जिसके दी 15 मुकुट है, ऊँचे-ऊँचे तिलक वृक्ष और बकुल वृक्ष के फूलों का जिसके छत्र है ऐसा बसन्त रूपी राजा वहाँ सदा विद्यमान रहता है।।१।। 15 पाटल और शिरीष के फूलों रूपी जल से जो परिपूर्ण है; मल्लिका और वासन्तिकी बेलों के 5 र फूल जिसका ज्वार है; शीतल और सुरभित पवन जिसके मगरों की हलचल है ऐसा ग्रीष्म ऋतु र रूपी सागर वहाँ सदा विद्यमान रहता है।।२।। $ 20. In case you get bored there also, etc. (as para 19) you may proceed to IP the western garden. The two seasons of Vasant (spring) and Greeshm 1P (Summer) always prevail in the western garden : In that garden always roams free the king-like Vasant season with mango cl flowers as his necklace; the flowers of Palash, Kaner, and Ashok as his crown; and the flowers of Bakul as his royal canopy. (1) 5 In that garden is always present the sea-like Greeshm season with the 15 Patal and Shirish flowers as its immense spread of water; the flowers of 15 Mallika and other seasonal creepers as its tide; and the cool fragrant wind as P the disturbance caused by marine creatures. (2) 15 दक्षिण दिशा में जाने का निषेध सूत्र २१ : जइ णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! तत्थ वि उव्विग्गा उस्सुया भवेज्जाह, तओ तुब्भ डा जेणेव पासायवडिंसए तेणेव उवागच्छेज्जाह, उवागच्छित्ता ममं पडिवालेमाणा पडिवालेमाणा B चिद्वेज्जाह। मा णं तुब्भे दक्खिणिल्लं वणसंडं गच्छेज्जाह। हे तत्थ णं महं एगे उग्गविसे चंडविसे घोरविसे महाविसे अइकाय-महाकाए। जहा तेयनिसग्गे मसि-महिस-मूसाकालए नयणविसरोसपुण्णे अंजण-पुंजनियरप्पगासे रत्तच्छे जमल-जुयल-चंचल दी 15 CHAPTER-9 : MAKANDI SAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn (19) दा Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र ( २०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र | 15 चलंतजीहे धरणियलवेणिभूए उक्कड-फुड-कुडिल-जडिल-कक्खड- वियड-फडाडोव-करणदच्छ डा र लोहागार-धम्ममाण-धमधमेंतगोसे अणागलिय-चंड-तिव्वरोसे समुहियं तुरियं चवलं धमधमंत टी 5 दिट्ठीविसे सप्पे य परिवसइ। मा णं तुब्भं सरीरगस्स वावत्ती भविस्सइ। सूत्र २१ : यदि तुम वहाँ भी ऊब जाओ (आदि-सूत्र १९ के समान) तो इसी अपने भवन में ड र लौट आना और यहीं ठहर कर मेरी प्रतीक्षा करना। किन्तु भूल कर भी दक्षिण दिशा वाले र वन-खण्ड में मत चले जाना। वहाँ उग्र, चंड, घोर तथा महा विषधारी और अन्य सब सों से विशाल काया वाला एक सर्प ड र रहता है। वह सर्प काजल, भैंसे और कसौटी के समान काला है। नेत्र-विष और रोष से भरा है।। र काजल के ढेर जैसी चमक है उसमें। उसकी आँखें लाल और दोनों जीभे लपलपाती रहती हैं। वह ट 5 पृथ्वी रूपी स्त्री की वेणी के समान है। वह सर्प उत्कट (दूसरों से नहीं रुकने वाला), स्फुट, कुटिल, ८ 15 जटिल, कर्कश तथा विकट है और फण फैलाने में दक्ष है। वह लुहार की धौंकनी की धम-धम डा र ध्वनि के समान घोष करता रहता है। उसका प्रचंड और तीव्र रोष कोई रोक नहीं सकता। वह कुत्ते डी 12 के भौंकने जैसी ध्वनि उत्पन्न करता रहता है। वह फुर्तीला और चपल है तथा उसकी दृष्टि विष कीट 15 तीव्रता से दपदपाती रहती है। अतः कहीं ऐसा न हो कि तुम वहाँ जा पहुँचो और तुम्हारे शरीर दी 15 नष्ट हो जाएँ। 5 PROHIBITION TO GO SOUTH 21. In case you get bored, etc. (as para 19) you should return to this s mansion and wait for me. But under no circumstance should you ever go to , 2 the southern garden. In that garden dwells a violent, ferocious, vicious and highly venomous 15 serpent. It is larger than any other snake. It is as black as soot, buffalo, or l > black granite. It is filled with anger and poison in its eyes. It shines like a s heap of lamp-black. It is coiled like the hairdo of a woman. That serpent is 12 indomitable, large, sly, wicked, harsh and fierce. It spreads its hood wide. It B emits hissing sound as loud as a blacksmith's bellow. Its violent anger is 5 impossible to pacify. It produces rattling sound as loud as the barking of a 15 dog. It is quick and agile and its eyes glow with the intensity of its eye-venom. 1 As such, ensure that you do not go there even accidentally and get your 2 bodies destroyed. 15 सूत्र २२ : ते मागंदियदारए दोच्चं पि तच्चं पि एवं वदइ, वदित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं डा र समोहणइ, समोहणित्ता ताए उक्किट्ठाए देवगईए लवणसमुदं ति-सत्त-खुत्तो अणुपरियट्टेउं पयत्ता 15 यावि होत्था। JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA SI CAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn 15 (20) Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 阿 ( २१ ) सूत्र २२ : देवी ने माकन्दी पुत्रों को यह चेतावनी दो तीन बार दी। फिर उसने वैक्रिय समुद्घात करके तीव्र गति से लवण समुद्र के इक्कीस चक्कर काटना आरम्भ कर दिया । 22. The evil goddess warned the sons of Makandi two three times and then she transformed herself into a form suitable for the task at hand and with divine speed commenced her scheduled twenty one trips around the sea. वन में परिभ्रमण नवम अध्ययन : माकन्दी सूत्र २३ : तए णं ते मागंदियदारया तओ मुहुत्तंतरस्स पासायवडिंसए सई वा रई व धिइ वा अलभमाणा अण्णमण्णं एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिया ! रयणद्दीवदेवया अम्हे एवं वयासी - एवं खलु अहं सक्कवयणसंदेसेणं सुट्ठिएणं लवणाहिवइणा जाव वावत्ती भविस्सइ, तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! पुरच्छिमिल्लं वणसंडं गमित्तए ।' अण्णमण्णस्स एयम पडिसुति, पडिणित्ता जेणेव पुरच्छिमिल्ले वणसंडे तेणेव उवागच्छंति । उवागच्छित्ता तत्थ णं वावी य जाव अभिरममाणा आलीघरएसु य जाव विहरति । सूत्र २३ : देवी के जाने के कुछ देर बाद ही उस भवन में मधुर कल्पना, रति (आनन्द), और धृति का अनुभव नहीं होने पर ऊबकर दोनों माकन्दी पुत्रों ने परस्पर बात की - " देवानुप्रिय ! रत्नद्वीप देवी ने हम से कहा है कि वह शक्रेन्द्र के इंगित पर लवणसमुद्र के अधिपति सुस्थित देव के आदेशानुसार कार्य हेतु जा रही है अतः हम दक्षिण दिशा के वन-खण्ड में न जावें अन्यथा वहाँ शरीर के नष्ट होने की संभावना है। इसलिए भाई ! हमें पूर्व दिशा के वनखण्ड में चलना चाहिए ।" दोनों भाई इस योजना से सहमत हो गये और पूर्व दिशा के वनखण्ड में चले आये। वहाँ वे बावड़ी आदि में क्रीड़ा करते हुए लता मंडपों आदि में घूमने लगे ( पूर्व सम - सू. १८) | EXCURSIONS 23. Some time after the departure of the evil goddess the two brothers felt the absence of pleasant feelings, physical pleasures, and satisfaction. They deliberated, "Beloved of gods! The evil goddess of Ratnadveep has informed us that she is going on an assignment entrusted to her by god Susthit, the lord of seas, on the direction of Shakrendra. She has prohibited us to go to the southern garden due to the fear of our destruction. As such, brother! we should go to the eastern garden." They both agreed and accordingly proceeded to the eastern garden and started roaming around and enjoying the water bodies, flower covered dwellings etc. (as detailed in para 18). सूत्र २४ : तए णं ते मागंदियदारया तत्थ वि सई वा जाव अलभमाणा जेणेव उत्तरिल्ले वणसंडे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तत्थ णं वावीसु य जाव आलीघरएसु य विहरति । ( 21 ) CHAPTER-9 : MAKANDI 5000 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मजप र ( २२ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र हा ___ सूत्र २४ : कुछ समय पश्चात् वहाँ भी मधुर कल्पना, सुख आदि (सू. २३) के अभाव में घूमते डा र घूमते वे उत्तर दिशा के वनखण्ड में चले गये और पूर्ववत् विचरने लगे (सू. १८)। 5 24. After some time, there also, they felt the absence of pleasant feelings, 5 etc. (as in para 23), proceeded to the northern garden, and started roaming S 2 around (as detailed in para 18). सूत्र २५ : तए णं ते मागंदियदारया तत्थ वि सई वा जाव अलभमाणा जेणेव पच्चत्थमिल्ल दे रवणसंडे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता जाव विहरंति। 5 सूत्र २५ : उत्तर दिशा के वनखण्ड में भी मन न लगने पर वे पश्चिम दिशा के वनखण्ड में से 5 गये और पूर्ववत विचरने लगे (सू. १८)। B 25. After some time, in the northern garden also, they felt the absence of a 5 pleasant feelings, etc. (as in para 23), proceeded to the western garden, and ट started roaming around (as detailed in para 18). र सूत्र २६ : तए णं ते मागंदियदारया तत्थ वि सई वा जाव अलभमाणा अण्णमण्णं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हे रयणद्दीवदेवया एवं बयासी-‘एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! र सक्कस्स वयणसंदेसेणं सुट्टिएणलवणाहिवइणा जाव. मा णं तुब्भं सरीरगस्स बावत्ती भविस्सइ।' तड र भवियव्वं एत्थ कारणेणं। तं सेयं खलु अम्हं दक्खिणिल्लं वणसंडं गमित्तए, त्ति कट्टा अण्णमण्णस्स एयमढे पडिसुणेति, पडिसुणित्ता जेणेव दक्खिणिल्ले वणसंडे तेणेव पहारेत्थ टा गमणाए। सूत्र २६ : माकन्दी पुत्रों को जब वहाँ भी शान्ति नहीं मिली तो उन्होंने परस्पर विचार किया-दा र “हे देवानुप्रिय ! रत्नद्वीप देवी ने हमसे यह कहा कि वह शक्रेन्द्र के निर्देशानुसार सुस्थित देव के डी र आदेश से कार्यवश जा रही है तथा हमें दक्षिण दिशा के वनखण्ड में नहीं जाना चाहिए अन्यथा ट 15 हमारे शरीर का नाश हो जायेगा (विस्तार सू. १७-२१ के समान)। तो इसका कोई कारण होना ? चाहिए। इसलिए हमें दक्षिण दिशा के वनखण्ड में भी जाना चाहिए।" इस बात पर सहमत हो दोनों । र दक्षिण दिशा की ओर चल दिए। 26. When the sons of Makandi could not get the desired mental satisfaction in the western garden also they again deliberated, “Beloved of > gods! The evil goddess of Ratnadveep has informed us that she is going on an 91 assignment entrusted to her by god Susthit, the lord of seas, on the direction, of Shakrendra. She has prohibited us to go to the southern garden due to the fear of our destruction (details as in para 17-21). There must be some purpose behind this and as such, we should go to the southern garden and 15 find out” Agreeing on this they both proceeded in the direction of the 15 southern garden. 15 (22) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA I 卐innnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ LEDUUUUUUUUUUUUUUUUUUU 12 नवम अध्ययन : माकन्दी ( २३ ) 2 15 दक्षिण दिशा के वन का रहस्य ___ सूत्र २७ : तए णं गंधे निद्धाति से जहानामए अहिमडेइ वा जाव अणि?तराए चेव। २ तए णं ते मागंदियदारया तेणं असुभेणं गंधेणं अभिभूया समाणा सएहिं सएहिं उत्तरिज्जेहि । B आसाइं पिहेंति, पिहित्ता जेणेव दक्खिणिल्ले वणसंडे तेणेव उवागया। 12 सूत्र २७ : कुछ दूर चलते-चलते दक्षिण दिशा से तीव्र दुर्गन्ध आने लगी। ऐसा लगता था जैसे 15 किसी मृत सर्प अथवा अन्य पशु की सड़ी देह से निकली सड़ांध हो या कि कोई उससे भी अधिक 15 अनिष्टकर अप्रिय दुर्गन्ध हो। र माकन्दी पुत्रों ने उस अशुभ गंध से घबराकर अपने उत्तरीय वस्त्रों से मुँह ढक लिये और आगे दी 15 दक्षिण दिशा वाले वनखण्ड में जा पहुंचे। 15 THE SECRET 27. After covering some distance an obnoxious stench came from the 15 south. It appeared to be the stench of the decomposed corpse of a snake or 5 some other animal. In fact, it was even more obnoxious and repelling than 5 that. 12. The sons of Makandi, disturbed by the stench, covered their faces with 5 their shawls and entered the southern garden. र सूत्र २८ : तत्थणं महं एगं आघायणं पासंति, पासित्ता अद्वियरासिसतसंकुलं भीमदरिसणिज्ज 15 एगं च तत्थ सूलाइतयं पुरिसं कलुणाई विस्सराई कट्ठाई कुव्वमाणं पासंति, पासित्ता भीया जाव द र संजायभया जेणेव से सूलाइयपुरिसे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं सूलाइयं पुरिसं एवं ड र वयासीर ‘एस णं देवाणुप्पिया ! कस्साघायणे? तुमं च णं के कओ वा इहं हव्वमागए? केण वा 5 इमेयारूवं आवई पाविए?' र सूत्र २८ : वहाँ उन्होंने एक विशाल वधस्थल देखा। हड्डियों के ढेरों से भरे उस भयावह स्थल ड र पर उन्होंने सूली पर चढ़ाए एक व्यक्ति को करुण, विरस और कष्टमय क्रन्दन करते देखा। इस द 15 दृश्य से वे बहुत घबरा गये। मन में बड़ा भय उत्पन्न हुआ। फिर भी वे उस सूली पर चढ़े व्यक्ति के डा र निकट जा कर बोले15 "हे देवानुप्रिय ! यह वधस्थल किसका है? तुम कौन हो और यहाँ क्यों आये थे? किसने तुम्हें द रे इस विपत्ति में डाला?" 5 28. There they saw a large execution ground. At that awesome place, 15 filled with scattered heaps of bones, they saw a person on a gibbet. He was 15 CHAPTER-9 : MAKANDI ___ (23) G Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - -- - - र ( २४ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र टा 15 wailing painfully, pathetically and woefully. This scene filled them with fear 12 and terror. However, they approached the individual and asked 5 “Beloved of gods! Who owns this execution ground? Who are you and what a 15 has brought you here? Who has put you into this predicament?'' र सूत्र २९ : तए णं से सूलाइयपुरिसे मागंदियदारए एवं वयासी-‘एस णं देवाणुप्पिया ! 15 रयण-दीवदेवयाए आघायणे, अहण्णं देवाणुप्पिया ! जंबुद्दीवाओ भारहाओ वासाओ कागंदीए द र आसवाणियए विपुलं पडियभंडमायाए पोतवहणेणं लवणसमुदं ओयाए। तए णं अहंड 15 पोयवहणविवत्तीए निब्बुड-भंडसारे एगं फलगखंडं आसाएमि। तए णं अहं उवुज्झमाण दे रेउवुज्झमाणे रयणदीवंतेणं संवूढे। तए णं सा रयणद्दीवदेवया ममं ओहिणा पासइ, पासित्ता ममं डा र गेण्हाइ, गेण्हित्ता मए सद्धिं विपुलाइं भोग-भोगाइं भुंजमाणी विहरइ। र तए णं सा रयणद्दीवदेवया अन्नया कयाई अहालहुसगंसि अवराहसि परिकुविया समाणी मम एयारूवं आवइं पावेइ। ___ तं णं णज्जइ णं देवाणुप्पिया ! तुम्हं पि इमेसिं सरीरगाणं का मण्णे आवई भविस्सइ? सूत्र २९ : शूली पर चढ़े उस पुरुष ने माकन्दी पुत्रों से कहा-“हे देवानुप्रियों ! यह रत्नद्वीप की डा र देवी का वधस्थल है। मैं जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में स्थित काकंदी नगरी का निवासी एक ड 5 अश्व-व्यापारी हूँ। मैं बहुत से अश्व और भाण्डोपकरण अपनी नाव में भर कर लवणसमुद्र में दी 15 निकला। जहाज के टूट जाने से मेरा सारा श्रेष्ठ माल समुद्र में डूब गया। मुझे लकडी का एक ड र पाटिया मिल गया, जिसके सहारे तैरता-तैरता मैं रत्नद्वीप के निकट आ पहुँचा। रत्नद्वीप की देवी ने 5 5 अपने अवधिज्ञान से मुझे देखा और ग्रहण कर लिया। फिर वह मेरे साथ विपुल काम-भोगों का ट 15 आनन्द लेने लगी। इसके कुछ समय बाद एक बार वह देवी किसी छोटे से अपराध के कारण मुझड र पर अत्यन्त कुपित हो गई और मुझे इस विपदा में डाल दिया। ___“देवानुप्रियो ! पता नहीं तुम्हारे इन शरीरों को भी किस आपत्ति का सामना करना पडे ?' 29. The man on the gibbet replied, “Beloved of gods! This execution 5 ground belongs to the evil-goddess of Ratnadveep. I am a horse trader from 15 the town of Kakandi in the Bharat area of the Jambu continent. I had filled a my ship with horses and various other merchandise and set out on a sea voyage. As my ship capsized all my merchandize drowned into the sea. I caught hold of a wooden plank and drifted to Ratnadveep. The evil goddess became aware of me through her super natural powers and took me to her mansion. There she had all her lusty enjoyments with me. After some time > she got extremely annoyed with me on some minor mistake and put me into this predicament. voorverriro 15 (24) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA A yonnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ UUUUUUUUUUUUण्ण्ण्ण्ण्य DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDU र नवम अध्ययन : माकन्दी ( २५ ) “Beloved of gods! Who knows what tortures your bodies may also have 2 suffer?" सूत्र ३0 : तए णं ते मागंदियदारया तस्स सूलाइयगस्स अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म र बलियतरं भीया जाव संजातभया सूलाइययं पुरिसं एवं वयासी-'कहं णं देवाणुप्पिया ! अम्ह दी रयणदीवदेवयाए हत्थाओ साहत्थिं णित्थरिज्जामो?' सूत्र ३0 : शूली पर टंगे उस पुरुष की यह कथा सुन-समझकर दोनों माकन्दी पुत्र और भी डी अधिक भयभीत और आक्रान्त हो गये। उन्होंने पूछा-“देवानुप्रिय ! रत्नद्वीप की इस देवी के चंगुल टा से हम अपने प्रयत्नों से कैसे निस्तार पा सकते हैं ?" 12 30. When they listened and comprehended what the man on the gibbet said, the terror and panic of the sons of Makandi increased. They asked, SI "Beloved of gods! How can we free ourselves from the clutches of the evil goddess of Ratnadveep?" सूत्र ३१ : तए णं से सूलाइयए पुरिसे ते मागंदियदारगे एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया ! 5 पुरच्छिमिल्ले वणसंडे सेलगस्स जक्खस्स जक्खाययणे सेलए नामं आसरूवधारी जखे परिवसइ। र तए णं से सेलए जक्खे चोद्दसट्टमुद्दिट्ट-पुण्णमासिणीसु आगयसमए पत्तसमए महया महया दे सद्देणं एवं वदइ-'कं तारयामि? कं पालयामि?' 5 तं गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! पुरच्छिमिल्लं वणसंड सेलगस्स जक्खस्स महरिह डा पुष्फच्चणियं करेह, करित्ता जण्णुपायवडिया पंजलिउडा विणएणं पज्जुवासमाणा चिट्ठह। 15 जाहे णं से सेलए जक्खे आगयसमए एवं वएज्जा-'कं तारयामि? कं पालयामि?' ताह र तुब्भे वदह-'अम्हे तारयाहि, अम्हे पालयाहि।' सेलए भे जक्खे परं रयणद्दीवदेवयाए हत्थाओ दी 15 साहत्थिं णित्थारेज्जा। अण्णहा भे न याणामि इमेसिं सरीरगाणं का मण्णे आवई भविस्सइ। ___ सूत्र ३१ : उस व्यक्ति ने माकन्दी पुत्रों को बताया-“देवानुप्रियो ! पूर्व दिशा के वनखण्ड में 5 र शैलक नाम के यक्ष का यक्षायतन है। जहां अश्व का रूप धारण किये वह यक्ष रहता है। ___“वह यक्ष चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन एक निश्चित समय पर उच्च स्वर डा र में पुकारता है-'किसका तारण करूँ? किसका पालन करूँ ?' __“अतः हे देवानुप्रियो ! तुम पूर्व दिशा के वनखण्ड में जाना और शैलक यक्ष की फूलों से उसी । र प्रकार पूजा करना जैसे महान लोगों की पूजा की जाती है। पूजा के बाद घुटने और पैर झुका कर, दी 15 दोनों हाथ जोड़कर विनय पूर्वक उसकी सेवा में खड़े हो जाना। 15 CHAPTER-9 : MAKANDI 卐nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnALI (25 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DDDDD DDDDDDDDD र (२६) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र र “जब निश्चित समय आने पर वह यक्ष पुकारे-किसका तारण करूँ? किसका पालन करूँ?' SI तब तुम कहना-'हमारा तारण करें ! हमारा पालन करें !' और तब वह शैलक यक्ष ही स्वयं इस टा 5 रत्नद्वीप की देवी के चंगुल से तुम्हार निस्तार करेगा। अन्यथा तुम्हारे शरीरों को क्या क्या कष्ट टा र भोगना पड़ेगा, मैं नहीं कह सकता।" 15 31. The man on the gibbet explained, “Beloved of gods! In the eastern garden there is a temple of a Yaksh (a demigod) named Shailak. He lives there in the form of a horse. "On the fifteenth, fourteenth and eighth day of every fortnight at a fixed a C time that Yaksh announces loudly-'Who needs my protection? Who needs ट freedom?' “So, Beloved of gods! Go to the eastern garden and worship Shailak Yaksh 9 2 with flowers as is done to other great souls. After this, stay there in a humble 5 posture with bent knees and joined palms. ___“When at.the fixed time he calls, 'Who needs my protection? Who needs c freedom?' you should say, 'Protect us! Free us!' And then Shailak Yaksh will himself free you from the clutches of the evil goddess of Ratnadveep. Otherwise it is hard to say what tortures your bodies may have to suffer." र शैलक यक्ष की शरण में सूत्र ३२ : तए णं ते मागंदियदारगा तस्स सूलाइयस्स अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म सिग्घ दा र चंडं चवलं तुरियं वेइयं जेणेव पुरच्छिमिल्ले वणसंडे, जेणेव पोक्खरिणी, तेणेव उवागच्छंति, डी 15 उवागच्छित्ता पोक्खरिणिं गाहंति, गाहित्ता जलमज्जणं करेंति, करित्ता जाइं तत्थ उप्पलाइं जावट 15 गेहंति, गेण्हित्ता जेणेव सेलगस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता र आलोए पणामं करेंति, करित्ता महरिहं पुष्फच्चणियं करेंति, करित्ता जण्णुपायवडिया टा 15 सुस्सूसमाणा णमंसमाणा पज्जुवासंति। र सूत्र ३२ : सूली पर टंगे उस व्यक्ति की यह बात सुन-समझकर माकन्दी पुत्र शीघ्र, प्रचण्ड, टे चपल, त्वरित वेगवाली गति से चल कर पूर्व दिशा के वनखण्ड में एक पुष्करिणी के निकट गये। द पुष्करिणी में उतरे, स्नान किया और वहाँ से कमल, उत्पल, नलिन, सुभग आदि कमल जाति के 5 र पुष्प एकत्र कर शैलक यक्ष के यक्षायतन में आए। यक्ष की ओर दृष्टि कर उसे प्रणाम किया और 5 यथाविधि पुष्प-पूजा की। इसके बाद घुटने और पैर नीचे झुका हाथ जोड उपासना में लग गए। IN REFUGE OF SHAILAK 5 32. On hearing and comprehending the advice of the man on the gibbete > the sons of Makandi at once rushed to the eastern garden. They stopped near 9 15 (26) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA I Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn SUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUN Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ acti नवम अध्ययन : माकन्दी ( २७ ) a stream, got into it and bathed. They collected different species of lotus flowers including Utpal, Nalin, Subhag, etc. and entered the Yaksh temple. Standing before the idol they offered salutations and then bending their knees and joining their palms they started worshiping the deity in the prescribed manner. सूत्र ३३ : तए णं से सेलए जक्खे आगयसमए पत्तसमए एवं वयासी - 'कं तारयामि ? कं पालयामि ? ' तए णं ते मागंदियदारया उट्ठाए उहेंति, करयल जाव एवं वयासी - ' अम्हे तारयाहि । अम्हे पालयाहि ।' तण णं से सेलए जक्खे ते मागंदियदारए एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया ! तुब्भे मए सद्धिं लवणसमुद्देणं मज्झमज्झेणं वीइवयमाणेणं सा रयणद्दीवदेवया पावा चंडा रुद्दा खुद्दा साहसिया बहूहिं खरएहि य मउएहि य अणुलोमेहि य पडिलोमेहि य सिंगारेहि य कलुणेहि य उवसग्गेहि य उवसग्गं करेहि । तं जइ णं तुब्भे देवाणुपिया ! रयणद्दीवदेवयाए एयमहं आढाह वा परियाणह वा अवएक्खह वा तो भे अहं पिट्ठातो विधुणामि । अह णं तुब्भे रयणद्दीवदेवयाए एयम णो आढाह, णो परियाणह, णो अवेक्खह, तो भे रयणद्दीवदेवयाहत्थाओ साहत्थि णित्थारेमि ।' सूत्र ३३ : तब वहाँ निश्चित समय आने पर शैलक यक्ष ने पुकारा - " किसका तारण करूँ ? किसका पालन करूँ ?" मादी पुत्र खडे हुए और हाथ जोड़कर बोले - " हमारा तारण करिए, हमारा पालन करिए !" इस पर शैलक यक्ष ने कहा, "देवानुप्रियो ! जब तुम मेरे साथ लवणसमुद्र के मध्य पहुँचोगे तब वह पापिनी, चण्ड, रुद्र, क्षुद्र और साहसी देवी तुम्हें अनेक प्रकार के कठोर, कोमल, अनुकूल, प्रतिकूल, सुन्दर तथा मोहक उपायों से डिगाने का प्रयत्न करेगी । हे देवानुप्रियो ! यदि तुम उस देवी के आग्रह का आदर करोगे, स्वीकार करोगे या आकर्षित भी हो जाओगे, तो मैं तुम्हें अपनी पीठ से नीचे गिरा दूंगा। और यदि तुमने वैसा नहीं किया, उसकी ओर आकर्षित नहीं हुए तो मैं अवश्य स्वयं ही रत्नद्वीप की देवी के चंगुल से तुम्हें छुटकारा दिला दूँगा।” 33. At the fixed time the Yaksh called-"Who needs my protection? Who needs freedom?" The sons of Makandi stood up and with joined palms submitted, "Protect us! Free us!" At this request Shailak Yaksh said, "Beloved of gods! When you are half way through the sea with me that sinful, violent, vicious, mean and bold evil ( 27 ) CHAPTER-9: MAKANDI For Private Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मIDDOODUDDDDDDDDDजज क(२८) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र SH 5 goddess will try to distract you by a variety of harsh and tender, favourable ci and unfavourable, and attractive and enchanting methods. Beloved of gods! If you honour, accept, or even give heed to her inviting gestures, I will throw » you off my back. However, if you do not do that and ignore her gestures I will 1 certainly free you from the clutches of the evil goddess of Ratnadveep." 5 सूत्र ३४ : तए णं ते मागंदियदारया सेलगं जक्खं एवं वयासी-जं णं देवाणुप्पिया ! र वइस्संति तस्स णं उववायवयणणिद्देसे चिट्ठिस्सामो। 5 सूत्र ३४ : माकन्दी पुत्रों ने उत्तर दिया--"देवानुप्रिय ! आप जैसा कहेंगे हम उसी के अनुसार र उपासना (सेवा), वचन (आदेश), तथा निर्देश (आज्ञा) पालन में ही रहेंगे।" 34. The sons of Makandi replied, “Beloved of gods! we shall strictly adhere ट 15 to your advice, instruction, and direction.” 5 शैलक द्वारा उद्धार र सूत्र ३५ : तए णं से सेलए जक्ने उत्तरपुरच्छिमं दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता 2 5वेउव्विय-समुग्घाएणं समोहणइ, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाई दंडं निस्सरइ, दोच्चं पि तच्चं द र पि वेउव्विय-समुग्घाएणं समोहणइ, समोहणित्ता एगं महं आसरूवं विउव्वइ। विउव्वित्ता ते ड र मागंदियदारए एवं वयासी-हं भो मागंदियदारया ! आरुह णं देवाणुप्पिया ! मम पिटुंसि।' 15 सूत्र ३५ : तब शैलक यक्ष उत्तर-पूर्व दिशा में गया और वैक्रिय समुद्घात कर अपने शरीर को 5 र संख्यात योजन के एक दंड में परिवर्तित किया। पुनः दो वार वही क्रिया करके उसने एक बड़े ट 5 विशाल अश्व का रूप धारण किया और माकन्दी पुत्रों से कहा-“हे माकन्दी पुत्रों ! मेरी पीठ पर द चढ जाओ।" ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ए UUUUN DELIVERANCE BY SHAILAK 35. Shailak Yaksh went in the north-eastern direction and with the help 15 of Vaikriya Samudghat transformed himself into an enormous rod. Going through the same process twice again he finally transformed himself into a 15 giant horse. He then called the sons of Makandi, “O sons of Makandi! come, S Pride on my back.” र सूत्र ३६ : तए णं से मागंदियदारया हट्टतुट्टा सेलगस्स जक्खस्स पणामं करेंति, करित्ता ८ सेलगस्स पिढेि दुरूढा 5 तए णं से सेलए ते मागंदियदारए पिट्टि दुरुढे जाणित्ता सत्तट्ठतालप्पमाणमेत्ताई उड्ढं वेहायं दी 15 उप्पयइ, उप्पइत्ता य ताए उक्किट्ठाए तुरियाए देवयाए देवगईए लवणसमुदं मझंमज्झेणं जेणेव जंबुद्दीवे दीवे, जेणेव भारहे वासे, जेणेव चंपानयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए। 7 (28) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA ynnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ pd TIRANA RON D . F ree AS 3 OGS NAS LOS ME SA Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ B ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग : २) चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED प्रलोभनों का दुष्परिणाम चित्र : २ सूली पर टँगे पुरुष के बताये अनुसार भयभीत हुए दोनों भाइयों ने देवी के चंगुल से छूटने के लिए शैलक यक्ष की पूजा एवं प्रार्थना की- “ इस दुष्ट देवी के चंगुल से हमारी रक्षा कीजिए | " यक्ष ने अपनी शर्त रखी - " मैं अश्वरूप धारणकर तुम्हें पीठ पर बैठाकर इच्छित स्थान पर पहुँचा सकता हूँ, किन्तु देवी के मायाजाल में लुभाकर जरा-सा भी मन विचलित कर दिया तो मैं पीठ पर से गिरा दूँगा । यदि तुम स्थिर चित्त रहे तो तुम्हें सुरक्षित पहुँचाऊँगा । " शर्त मान्य करने पर विशाल अश्वरूप धारणकर शैलक यक्ष ने उन्हें पीठ पर बिठाया और समुद्र के ऊपर से चंपानगरी की तरफ उड़ा। पता लगते ही देवी हाथ में तलवार लेकर पीछे दौड़ी। उसके मधुर वचनों से जिनरक्षित का मन कुछ विचलित हो उठा। उसने पीछे मुड़कर देखा । तभी शैलक यक्ष ने उसे पीठ पर से गिरा दिया। क्रूर देवी ने बीच में ही उसे झेल लिया और तलवार से टुकड़े-टुकड़े कर डाले । ( नवम अध्ययन ) THE CONSEQUENCES OF ATTRACTION ILLUSTRATION : 2 As advised by the man on the gibbet sons of Makandi started doing worship of Shailak Yaksh, "To free themselves from the clutches of the goddess." The Yaksh came and said, "When you are half way accross the sea the goddess will try to distract you. If you give heed to her gestures, I will throw you off of my back. However, if you ignore her gestures I will free you from her clutches." The sons of Makandi agreed. Shailak transformed himself into a giant horse, took them on his back, and commenced his flight over the sea towards Champa. When the evil goddess found them crossing the sea she rushed after them with her sword and tried to lure them with sweet words. Jinarakshit was lured and looked at the goddess. Shailak became aware of this and pushed him off of his back. The she-devil sliced Jinarakshit into pieces with her sword. Stable-minded Jinapalit reached home safely. ( CHAPTER-9) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SÜTRA (PART-2) Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवम अध्ययन : माकन्दी सूत्र ३६ : माकन्दी पुत्रों ने प्रसन्न और सन्तुष्ट होकर यक्ष को प्रणाम किया। फिर वे शैलक की पीठ पर चढ गए। 香 उन्हें अपनी पीठ पर चढा देख अश्वरूपी शैलक यक्ष आकाश में सात-आठ ताड की ऊँचाई पर उडा और उत्कृष्ट दिव्य गति से लवणसमुद्र के बीच से जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में स्थित चम्पानगरी की दिशा में रवाना हो गया। ( २९ ) 36. The happy and contented sons of Makandi saluted Shailak Yaksh and rode its back. Taking them on its back the Yaksha in the form of a horse jumped to a height of seven to eight palm trees and commenced its flight over the sea in the direction of Champa city in the Jambu continent with its divine speed. देवी की धमकी सूत्र ३७ : तए णं सा रयणद्दीवदेवया लवणसमुद्दं तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टइ, जं जत्थ तणं वा जाव एड, एडित्ता जेणेव पासायवडेंसए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ते मागंदियदारया पासायवडेंसए अपासमाणी जेणेव पुरच्छिमिल्ले वणसंडे जाव सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ, करित्ता तेसिं मागंदियदारागाणं कत्थइ सुइं वा अलभमाणी जेणेव उत्तरिल्ले वणसंडे, एवं चेव पच्चत्थिमिल्ले वि जाव अपासमाणी ओहिं पउंजइ, पउंजित्ता ते मागंदियदारए सेलणं सद्धिं लवणसमुद्दं मज्झंमज्झेणं वीइवयमाणे वीइवयमाणे पासइ, पासित्ता आसुरुत्ता असिखेडगं गेहइ, गेण्हित्ता सत्तट्ट जाव उप्पयइ, उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए जेणेव मागंदियदारगा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी ‘हं भो मागंदियदारगा ! अपत्थियपत्थिया ! किं णं तुब्भे जाणह ममं विप्पजहाय सेलएणं जक्खेणं सद्धिं लवणसमुद्दं मज्झमज्झेणं वीईवयमाणा ? तं एवमवि गए जइ णं तुब्भे ममं अवयक्खह तो भे अत्थि जीवियं, अहण्णं णावयक्खह तो भे इमेण नीलुप्पलगवल. जाव एडेमि । म सूत्र ३७ : उधर रत्नद्वीप की देवी ने लवण समुद्र के चारों ओर इक्कीस चक्कर लगाए और उसमें रहा समस्त कचरा आदि दूर कर दिया। यह कार्य सम्पन्न करके वह अपने भवन में आई। वहाँ जब उसने माकन्दी पुत्रों को नहीं देखा तो वह पूर्व दिशा के वनखण्ड में गई और सब जगह उनकी खोज की। वहाँ भी जब उनकी कोई आवाज तक सुनाई नहीं दी तो वह उत्तर दिशा के वनखण्ड में गई। फिर वह पश्चिम दिशा के वनखण्ड में भी गई, परन्तु वे कहीं भी नहीं दिखाई दिए । तब उसने अवधिं - ज्ञान प्रयोग से देखा कि माकन्दी पुत्र शैलक यक्ष के साथ लवण समुद्र के बीच से जा रहे हैं। यह देखते ही वह क्रुद्ध हो गई और अपनी ढाल-तलवार लेकर सात-आठ की ऊँचाई पर उड़कर दिव्य गति से वहाँ आई जहाँ माकन्दी पुत्र थे । वहाँ पहुँच कर बोली CHAPTER-9: MAKANDI ( 29 ) Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज ) र (३०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 “ओ माकन्दी पुत्रों ! अवांछित (मृत्यु) की वाँछा रखने वालों ! क्या तुम यह समझते हो कि दा र मुझे छोडकर तुम शैलक यक्ष के साथ लवण समुद्र के बीच से निकल जाओगे? इतनी दूर आ जाने S 15 के बाद भी यदि तुम मेरी अपेक्षा (इच्छा) रखते हो तो तुम जीवित रह सकोगे ! अन्यथा इस काली ट र तलवार से तुम्हारे मस्तक काटकर फेंक दूंगी।" B THREAT FROM THE GODDESS 15 37. After completing the twenty one circuits around the sea and removing Ć all the garbage the evil goddess of Ratnadveep returned to her mansion. When she did not find the sons of Makandi in the mansion she proceeded to 5 the eastern garden and searched them everywhere. When she did not hear 5 even a human whisper there she proceeded to the western garden. When she P found no trace of them anywhere she used her Avadhi Jnana and saw that I the sons of Makandi were crossing the sea with Shailak Yaksh. She lost her temper and taking her sword and shield jumped into the sky at a height of seven to eight palm trees and arrived near the sons of Makandi with divine D speed. As soon as she came near them she uttered5 “O sons of Makandi! O desirous of the undesired! Do you really think that a you can abandon me and with the help of Shailak Yaksh you can cross the sea? Even after covering so much distance you can save yourselves only if s you love and desire me. Otherwise I will behead you with this blue sword of G mine." र सूत्र ३८ : तए णं ते मागंदियदारए रयणद्दीवदेवयाए अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म अभीया | 5 अतत्था अणुव्विग्गा अक्खुभिया असंभंता रयणद्दीवदेवयाए एयमद्वं नो आढ़ति, नो परियाणंति, र नो अवेक्खंति, अणाढायमाणा अपरियाणमाणा अणवेक्खमाणा सेलएण जक्खेण सद्धिं S 15 लवणसमुहं मझमज्झेणं वीइवयंति। र सूत्र ३८ : माकन्दी पुत्र देवी के आक्रोशपूर्ण वचन सुनकर उद्विग्न, या भय-भ्रान्त नहीं हुए। 5 उन्होंने देवी की बात को न तो कोई महत्व दिया, न स्वीकार किया और न ही कोई परवाह की। वेट र बिना प्रभावित हुए शैलक यक्ष के साथ समुद्र के बीच चलते रहे। ____ 38. The sons of Makandi did not lose their composure at this outburst of टा the evil goddess. They did not give any importance, recognition or heed to her S warning. Unmoved, they continued their journey on the back of Shailak Yaksh. ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् 15 (30) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA I ynnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र नवम अध्ययन : माकन्दी ( ३१ ) SI र मधुर प्रलोभन र सूत्र ३९ : तए णं सा रयणदीवदेवया ते मागंदिया जाहे नो संचाएइ बहूहिं पडिलोमेहि य द 15 उवसग्गेहि य चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा लोभित्तए वा ताहे महुरेहि डा र सिंगारेहि य कलुणेहि य उवसग्गेहि य उवसग्गेउं पयत्ता यावि होत्थार 'हं भो मार्गदियदारगा ! जइ णं तुब्भेहिं देवाणुप्पिया ! मए सद्धिं हसियाणि य, रमियाणि य, ललियाणि य, कीलियाणि य, हिंडियाणि य, मोहियाणि य, ताहे णं तुब्भे सव्वाइं अगणेमाणाट र ममं विप्पजहाय सेलएणं सद्धिं लवणसमुदं मझमज्झेणं वीइवयह?' 15 सूत्र ३९ : जब वह देवी माकन्दी पुत्रों को ऐसे अनेक प्रतिकूल उपसर्गों द्वारा चंचल एवं क्षुब्ध दी र करने या पलटने व लुभाने में सफल नहीं हुई तब उसने अपने मधुर श्रृंगारमय और अनुराग उत्पन्न । 5 करने वाले अनुकूल उपसर्ग (प्रलोभन) करना आरम्भ कर दिया। र वह कहने लगी-“हे माकन्दी पुत्रों ! हे देवनुप्रियो ! तुमने मेरे साथ हँस खेल कर समय 5 बिताया है, रमण किया है, ललित मनोरंजन किए हैं, क्रीडाएँ की हैं, लीलाएँ की हैं, भ्रमण किये हैं, ट र काम-भोग किया है। उन सभी को भुलाकर आज तुम इस शैलक यक्ष के साथ जा रहे हो और मुझे दी निराधार को त्याग रहे हो?" SUUUUUUUUUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण 卐nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn ENTICEMENTS 39. When the evil goddess was unable to move or force or frighten or < change the sons of Makandi she resorted to her tender, enchanting, and lusty enticements. She uttered --- ____ “O sons of Makandi! O Beloved of gods! You have spent time with me ind playful and pleasant activities. You have enjoyed my company in a variety of entertainments, excursions, sports, etc. And besides all this you have made 15 love to me and enjoyed my body. Forgetting everything you are going away with this Shailak Yaksh and leaving me alone and helpless?” सूत्र ४0 : तए णं सा रयणदीवदेवता जिणरक्खियस्स मणं ओहिणा आभोएइ, आभोएत्ता | 15 एवं वयासी-'णिच्चं पि य णं अहं जिनपालियस्स अणिट्ठा, अकंता, अप्पिया, अमणुण्णा, दे र अमणामा, णिच्चं मम जिणपालिए अणिटे, अकंते, अप्पिए, अमणुण्णे, अमणामे। णिच्चं पि यह 5 णं अहं जिणरक्खियस्स इट्टा, कंता, पिया, मणुण्णा, मणामा, णिच्चं पि य णं ममं जिणरक्खिएट र इट्टे, कंते, पिए, मणुण्णे, मणामे। जइ णं ममं जिणपालिए रोयमाणिं कंदमाणिं सोयमाणिं डा र तिप्पमाणिं विलवमाणिं णावयक्खइ, किं णं तुमं जिणरक्खिया ! ममं रोयमाणिं जावटी णावयक्खसि? 15 CHAPTER-9 : MAKANDI (31) Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ JUL ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र सूत्र ४० : उस देवी ने फिर अपने अवधिज्ञान से जिनंरक्षित के मन में झांक कर देखा । वहाँ कुछ चंचलता देखकर वह बोली - " मैं जिनपालित के लिए तथा जिनपालित मेरे लिए सदा ही अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ और खेददायक रहे । परन्तु मैं जिनरक्षित के लिए और वह मेरे लिए सदा ही इष्ट, कान्त, प्रिय आदि रहे हैं । हे जिनरक्षित ! यदि मेरे रोने, क्रन्दन, शोक, अनुताप और विलाप करने पर जिनपालित ध्यान नहीं देता तो क्या तुम भी ध्यान नहीं दोगे ?" फज्ज्ज्ज् ( ३२ ) 40. The evil goddess then peeped into the mind of Jinarakshit through her Avadhi Jnana. When she saw some weakness there she at once tried to exploit it, “Indeed, I and Jinapalit had no liking, desire, or love for each other; in fact we were repulsive and painful to each other. But Jinarakshit and I always cared, liked, and loved each other. Darling Jinarakshit! It hardly matters if Jinapalit does not care for my pain, sorrow, crying, weeping, and wailing but would you also not care for me?" (In other words -) सूत्र ४१ : तए णं सा पवररयणदीवस्स देवया ओहिणा उ जिनरक्खियस्स मणं । नाऊण वधनिमित्तं उवरि मागंदियदारयाणं दोन्हं पि ॥ १ ॥ सूत्र ४१ : रत्नद्वीप की देवी ने अवधिज्ञान द्वारा जिनरक्षित का मन ( चंचल हुआ) भाँप कर अपने मन में दोनों माकन्दीपुत्रों का वध करने की ठान ली ॥ १ ॥ 41. Recognizing the weakness of Jinarakshit through her Avadhi Jnana the evil goddess of Ratnadveep decided to kill both the sons of Makandi. (1) सूत्र ४२ : दोसकलिया सलीलयं, णाणाविह - चुण्णवासमीसियं दिव्वं । घाण-मण- णिव्वुइकरं सव्वोउयसुरभिकुसुमवुद्धिं पहुंचमाणी ॥२॥ सूत्र ४२ : मन में द्वेष से भरी उस देवी ने लीला करते हुए तरह-तरह के सुगंधित चूर्ण सहित नाक और मन को तृप्त करने वाले, दिव्य, सर्व ऋतु में खिलने वाले सुगन्धित फूलों की वृष्टि की ॥२॥ 42. Filled with aversion, the evil goddess playfully sprinkled a variety of perfumed powders along with a shower of all season fragrant divine flowers that were pleasing to the senses and mind. (2) सूत्र ४३ : णाणामणि - कणग-रयण- घंटिय- खिखिणि णेउर- मेहल-भूसणरवेणं । दिसाओ विदिसाओ पूरयंती वयणमिणं बेति सा सकलुसा ।। ३ ।। ( 32 ) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA For Private Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवम अध्ययन : माकन्दी ( ३३ ) सूत्र ४३ : विभिन्न प्रकार के मणि, सुवर्ण व रत्नों की घंटियाँ, घुँघरू, नूपुर, करधनी आदि आभूषणों की मीठी ध्वनि से सब दिशाओं को गुंजाती हुई वह पापिनी बोली- || ३ || 43. Filling the surrounding space with the melodious sound of large and small jingle bells of beads, gold and gems attached to her anklets, girdle and other ornaments, that she devil said, -- ( 3 ) सूत्र ४४ : होल वसुल गोल णाह दइत, पिय रमण कंत सामिय णिग्घण णित्थक्क | छिण्ण निक्किव अकयण्णुय सिढिलभाव निल्लज्ज लुक्ख, अकलु जिरक्खि ! मज्झं हिययरक्खगा ॥४॥ सूत्र ४४ : "हे मुग्ध, सुकुमार, कठोर, नाथ! हे दयालु, प्रिय, रमण, कान्त, स्वामी ! हे स्नेह रहित, अवसर - ज्ञान शून्य, पाषाण हृदय, निर्दय, कृतघ्न, शिथिल - चित्त, निर्लज्ज, रूखे और करुणाहीन निरक्षित ! तुम ही मेरे प्राणों (हृदय) के रक्षक हो ! ॥४॥ 44. “0 possessed, tender but hard lord ! O compassionate, beloved, seductive and adorable darling! O apathetic, impractical, rock-hearted, cruel, thankless, listless, shameless, dry and pitiless Jinarakshit! you are my only guardian angel. (4) सूत्र ४५ : न हु जुज्जसि एक्कियं अणाहं, अबंधवं तुज्झ चलणओवायकारियं उज्झिउमहणणं । गुणसंकर ! अहं तु विहूणा, ण समत्था वि जीविउं खणं पि ॥ ५ ॥ सूत्र ४५ : "मुझ अकेली, अनाथ, बान्धवहीन और तुम्हारी हतभागिनी चरणसेवक को त्याग देना तुम्हारे लिए शोभनीय नहीं है। हे गुण-पुँज ! मैं तुम्हारे बिना क्षण भर जीवित रहने में भी समर्थ नहीं हूँ॥५॥ 45. “It is not befitting you to abandon me who is lonely, orphan, friendless and your ill fated slave. O abode of virtues! It is impossible for me to live in your absence even for a second. (5) सूत्र ४६ : इमस्स उ अणेग इस मगर - विविधसावय-सयाउल घरस्स रयणागरस्स मज्झे । अप्पाणं वहेमि तुझ पुरओ एहि, णियत्ताहि इ सि कुविओ खमाहि एक्कावराहं मे ॥ ६ ॥ CHAPTER-9 : MAKANDI (33) 25 Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ UUUUUUUUUUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्क र( ३४ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र दा 5 सूत्र ४६ : मैं इस सैकडों मत्स्य, मगर तथा अन्य छोटे जलचरों के घर रत्नाकर समुद्र के बीच द र तुम्हारे देखते-देखते अपने प्राण त्याग दूंगी। यदि तुम ऐसा नहीं चाहते तो आओ वापस लौट चलो। र यदि तुम कुपित हो गए हो तो मेरा एक अपराध क्षमा कर दो।।६।। 15 46. “Before you could act, I will end my life in this sea infested with S 12 crocodiles and other small and large marine creatures. If you don't want that, 5 please come back to me. If you are angry, please pardon this one mistake of a 15 mine. (6) सूत्र ४७ : तुज्झ य विगयघण-विमल-ससिमंडलगारसस्सिरीयं, सारय-नवकमल-कुमुद-कुवलयविमलदल-निकरसरिस निभनयणं। वयणं पिवासागयाए सद्धा मे पेच्छिउं जे अवलोएहि, ता इओ ममं णाह जा ते पेच्छामि वयणकमलं ॥७॥ सूत्र ४७ : “तुम्हारा मुख मेघ-विहीन विमल चन्द्र-मण्डल के समान है। तुम्हारे नयन शरदऋतु डा 12 के नव-पल्लवित कमल, कुमुद और कुवलय के पत्तों के समान अत्यन्त शोभा युक्त हैं। ऐसे नेत्रों ड 5 वाले तुम्हारे मुख-दर्शन की प्यास लिए मैं यहाँ आई हूँ। तुम्हारे मुख को देखने की मेरी अभिलाषा ट 15 को पूरी करो। हे नाथ ! मेरी ओर देखो जिससे मैं तुम्हारा मुख-कमल निहार लूँ''॥७॥ 15 47. “Your face is like the radiant orb of a full moon in cloudless sky. Your al 15 eyes are as divinely beautiful as petals of fresh and blooming lotus flowers including Kamal, Kumud and Kuvalay. I have come here craving to behold your enchanting face with such beautiful eyes. Please fulfill my desire of र beholding your face. O lord of my heart! Please look at me so that I may 5 behold your lotus-face.” (7) सूत्र ४८ : एवं सप्पणय-सरलमहुराई पुणो पुणो कलुणाई वयणाई। __ जंपमाणी सा पावा मग्गओ समण्णेइ पावहियया॥८॥ र सूत्र ४८ : इस प्रकार प्रेम पूर्ण, सरल और मधुर वचन बार-बार बोलती हुई वह पापिनी उस 5 मार्ग में पीछे-पीछे चलने लगी।।८।। र 48. Thus, uttering sweet, loving, and tender words again and again that 15 she devil persistently followed. (8) र चंचल जिनरक्षित 5 सूत्र ४९ : तए णं से जिणरक्खिए चलमणे तेणेव भूसणरवेणं कण्णसुह-मणोहरेणं तेहि य डा र सप्पणय-सरल-महुर-भणिएहिं संजायविउणराए रयणदीवस्सदेवयाए तीसे सुंदरथण-जहण-वयण2 (34) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA I Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ EDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDUT र नवम अध्ययन : माकन्दी ( ३५ ) SI कर-चरण-नयण-लावण्ण-रूव-जोव्वणसिरिं च दिव्वं सरभ-सउवगूहियाइं जाइं विब्बोय- ड 15 विलसियाणि य विहसिय सकडक्ख-दिट्ठि-निस्ससिय-मलिय-उवललिय- ठिय-गमण-पणयर खिज्जिय-पासादियाणि य सरमाणे राग-मोहियमई अवसे कम्मवसगए अवयक्खइ मग्गओ सविलियं। सूत्र ४९ : आभूषणों के ऐसे कर्णप्रिय और मनोहारी शब्द तथा देवी के प्रणय भरे सरल और टी 15 मधुर वचनों को सुन जिनरक्षित का मन चंचल हो उठा। उसे देवी पर पहले से दुगुना अनुराग उत्पन्नड र हो गया। वह देवी के सुन्दर स्तन, जंघाएँ, मुख, हाथ, पैर और नयनों के रूप और यौवन रूपी लक्ष्मी ट 15 का स्मरण करने लगा। देवी के द्वारा किये हर्ष और आवेग भरे आलिंगन, चेष्टाएँ, विलास, मुस्कान, ड र कटाक्ष, निश्वास, मर्दन, उपललित (क्रीडाविशेष), स्थिति, गति, प्रणय, कोप, रिझाने की चेष्टा, आदि । र को याद कर-कर के जिनरक्षित की मति अनुराग और मोह से परिपूर्ण हो गई। वह अवश हो गया 15 और कर्म के वश हुआ लज्जा सहित मुडकर देवी के मुख की तरफ देखने लगा। UUUUN Murrrrrrrrruuuuuuuu улуллол COUP 15 ALLURED JINARAKSHIT 5 49. Jinarakshit was allured by the sweet and enchanting sound of the ci 15 jingling ornaments and the loving, tender, and sweet appeal of the evil S 15 goddess. His love for the evil goddess doubled. He ruminated upon the 9 memories of the wanton youthful beauty of her breasts, thighs, face, arms, 5 legs and eyes. He was filled with infatuating lure of the memories of the 15 happy and lusty embraces, playful and sensuous activities, smiles, libidinous 15 glances, panting, rubbing, fore-play, holding, and movement, mixed with ? gestures of love, anger, and enticement. He lost his control over himself, 3 turned his head and started looking at the evil goddess shyly. हे सूत्र ५० : तए णं जिणरक्खियं समुप्पन्नकलुणभावं मच्चु-गलत्थल्ल-णोल्लियमई अवयक्खंत र तहेव जक्खे उ सेलए जाणिऊण सणियं सणियं उव्विहइ नियगपिट्ठाहि विगयसत्थं। र सूत्र ५0 : देवी के प्रति अनुराग उत्पन्न होते ही जैसे यमराज (मृत्यु रूपी राक्षस) ने उसके गले हा 15 में हाथ डाल उसकी मति भ्रष्ट करदी अर्थात् वह मृत्यु के मुँह में जाने लगा। उसने देवी की ओर ८ 15 देखा है यह बात अवधि-ज्ञान से जानकर शैलक यक्ष ने उस अस्वस्थ मन वाले जिनरक्षित को धीरे 5 र से अपनी पीठ से नीचे गिरा दिया। $ 50. The moment he was allured by the evil goddess the god of death 2 caught hold of him and drew him to his doom. With the help of his Avadhi BJnana, Shailak Yaksh became aware of his turning and looking at the evil a goddess. He at once pushed weak hearted Jinarakshit from his back. 15 CHAPTER-9 : MAKANDI ( 35 ) टा Snnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६ ) • जिनरक्षित का अंग-भंग सूत्र ५१ : तए णं सा रयणदीवदेवया निस्संसा कलुणं जिणरक्खियं सकलुसा सेलगपिट्ठाहि उवयंतं 'दास ! मओसि' त्ति जंपमाणी, अप्पत्तं सागरसलिलं, गेण्हिय बाहाहिं आरसंतं उड्ढं उव्वह अंबरतले ओवयमाणं च मंडलग्गेण पडिच्छित्ता नीलुप्पल-गवल-अयसिप्पगासेण असिवरेण खंडाखंडिं करेइ, करित्ता तत्थ विलवमाणं तस्स य सरसवहियस्स घेत्तूण अंगमंगाई सरुहिराई उक्खित्तबलिं चउद्दिसिं करेइ सा पंजली पहिट्ठा । सूत्र ५१ : वह निर्दय और पापिनी देवी दयनीय जिनरक्षित को शैलक की पीठ से गिरते 'देखकर बोली - " हे दास ! तू मरा !” और समुद्र के जल तक पहुँचने से पहले ही चिल्लाते जिनरक्षित को दोनों हाथों से पकडकर ऊपर उछाल दिया। जब वह वापस नीचे गिरने लगा तो उसे तलवार की नोंक पर झेल लिया । श्याम रंग की उस श्रेष्ठ तलवार से उसने रोते हुए जिनरक्षित के टुकडे टुकडे कर डाले। अभिमान से भरी देवी ने जिनरक्षित के रक्त से सने अंगोपांगों को अंजली में ले लिया और प्रसन्न चित्त हो देवताओं के निमित्त उछाली बलि की तरह चारों दिशाओं में फेंक दिया। ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र DISMEMBERING OF JINARAKSHIT 51. The cruel she-devil saw helpless Jinarakshit falling from the back of Shailak Yaksh and uttered, "Slave! This is your doom!" Before Jinarakshit could reach the surface of the sea she caught hold of his hands and tossed him in the sky. When he again fell she took him on the edge of her sword. With the blue sword she sliced wailing Jinarakshit into pieces. Filled with the ego of her power the evil goddess took the pieces of the body of Jinarakshit in her hands and happily threw them in all direction as is done with the offerings to the gods. सूत्र ५२ : एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए पव्वइए समाणे पुणरवि माणुस्सर कामभोगे आसायइ, पत्थयइ, पीहेइ, अभिलसइ, सेणं इह भवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाणं जाव संसारं अणुरिट्टिस्, जहा वा से जिणरक्खिए । छलिओ अवयक्खतो, निरावयक्खो गओ अविग्घेणं । तम्हा पवयणसारे, निरावयक्खेण भवियव्वं ॥१ ॥ भोगे अवयक्खता, पडंति संसार - सायरे घोरे । भोगेहिं निरवयक्खा, तरंति संसारकंतारं ॥ २ ॥ ( 36 ) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IP नवम अध्ययन : माकन्दी (३७) डा र सूत्र ५२ : इसी प्रकार हे आयुष्मान् श्रमणों ! जो साधु-साध्वी आचार्य-उपाध्याय के पास दीक्षा दी र ग्रहण करने के बाद भी मानवोचित कामभोगों का आश्रय लेता है, याचना करता है, उनकी स्पृहा डा र करता है, अथवा दृष्ट तथा अदृष्ट शब्दादि के भोग की इच्छा रखता है वह इस भव में अनेक ट 15 साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका आदि द्वारा निन्दनीय होता है तथा अनन्त-संसार में परिभ्रमण करता 8 1र है। उसकी गति जिनरक्षित जैसी हो जाती है। यथा15 पीछे देखने वाला छला गया और पीछे न देखने वाला निर्विघ्न पार उतर गया। इसलिए चारित्र डा र पालन (-प्रवचनसार) में आसक्तियों से दूर रहना चाहिए।।१।। र साधना पथ पर चलते हुए जो भोग की इच्छा रखते हैं, वे घोर संसार-सागर में गिर कर नष्ट ड र हो जाते हैं और जो भोग की इच्छा से परे रहते हैं वे पार उतर जाते हैं।।२।। 1 5 2. Long-lived Shramans! Those of our ascetics who, after getting S 3 initiated, resort to, beg for, or desire for indulging into lusty libidinous 15 activities and crave for real or vicarious carnal pleasures become the objects 15 of criticism, public contempt, hatred and disrespect in this life. And moreover 2 they also suffer misery in the next life and are caught in the cycle of rebirth र indefinitely. They end up just as Jinarakshit did. As is said15 He who turned back was caught in the web and he who did not, crossed Punhindered. As such, on the path of spiritual practice, one should be free of S 15 indulgences. (1) On the path of spiritual practices those who have desires for carnal C pleasures fall into the whirlpool of rebirths and those who are above these 5 desires cross the ocean. (2) र स्थिर जिनपालित सूत्र ५३ : तए णं सा रयणदीवदेवया जेणेव जिणपालिए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ताड 15 बहूहिं अणुलोमेहि य पडिलोमेहि य खर-महुर-सिंगारेहिं कलुणेहि य उवसग्गेहि या जाहे नो टा र संचाएइ चालित्तए वा खोभित्तए वा विप्परिणामित्तए वा, ताहे संता तंता परितंता निविण्णा डा 15 समाणा जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया। ___ सूत्र ५३ : इसके बाद वह रत्नद्वीप की देवी जिनपालित के निकट गई और बहुत से मनोनुकूल, डा 15 प्रतिकूल, कठोर, मधुर, शृंगार युक्त तथा करुणोत्पादक उपसर्ग करने लगी। किन्तु जब उसे चंचल ट र व क्षुब्ध कर उसका हृदय परिवर्तन करने में विफल हुई तो वह मन और शरीर से थक गई। पूरी ड 5 तरह ग्लानि तथा खिन्नता से भरी वह जिस दिशा से आई थी उसी दिशा की ओर लौट गई। IS CHAPTER-9 : MAKANDI ( 37 ) | ShnnnnnnnnAAAAAAAAAAAAAAAAAAAR voorouviuruvvarrivo ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्卐 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् (३८) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र SIL B COMPOSED JINAPALIT 5 53. Later the evil goddess of Ratnadveep approached Jinapalit and tried l 5 to disturb him with numerous favourable and unfavourable, harsh and S P sweet, lustful and pathetic displays. But when after all her efforts she failed S1 2 to disturb or allure him she got tired. At last, filled with disappointment and B dejection she returned to her abode. सूत्र ५४ : तए णं से सेलए जक्खे जिणपालिएणं सद्धिं लवणसमुदं मझं-मज्झेणं वीईवयइ, र वीईवइत्ता जेणेव चंपानयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चपाए नयरीए अग्गुज्जाणंसिट 5 जिणपालियं पिट्ठाओ ओयारेइ, ओयारित्ता एवं वयासी _ 'एस णं देवाणुप्पिया ! चंपा नयरी दीसइ' त्ति कटु जिणपालियं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता दी 5 जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। र सूत्र ५४ : शैलक यक्ष जिनपालित को लिए लवणसमुद्र के मध्य से चलता-चलता चम्पानगरी 5 पहुँचा। नगरी के बाहर श्रेष्ठ उद्यान में जिनपालित को अपनी पीठ से नीचे उतारा और बोला-“हे ट 15 देवानुप्रिय ! यह चम्पानगरी दिखाई देती है।'' यक्ष ने जिनपालित से विदा ली और अपने स्थान को 5 र लौट गया। 15 54. Carrying Jinapalit over the sea Shailak Yaksh at last reached 5 Champa city. Landing in the garden outside the town he put down Jinapalit C P and said, “Beloved of gods! This is Champa city." He took leave of Jinapalit Sh 2 and left for his abode. 5 सूत्र ५५ : ते णं जिणपालिए चंपं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणे सए गिहे, जेणेव दा र अम्मापियरो, तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता अम्मापिऊणं रोयमाणे जाव विलवमाणे र जिणरक्खियवावत्तिं निवेदेइ। तए णं जिणपालिए अम्मापियरो मित्तणाइ जाव परियणेणं सद्धिं रोयमाणा बहूई लोइयाइंड र मयकिच्चाई करेंति, करित्ता कालेणं विगयसोया जाया। सूत्र ५५ : जिनपालित ने चम्पानगरी में प्रवेश किया और अपने घर पहुंचा। अपने माता-पिताड र के पास जाकर उसने रोते-कलपते जिनरक्षित की मृत्यु का समाचार सुनाया। 15 जिनपालित, ने अपने माता-पिता तथा मित्र, स्वजातीय, तथा सम्बन्धियों के साथ शोक-संताप र सहित मृत्यु सम्बन्धी सभी लौकिक कृत्य पूर्ण किए। समय बीतने पर वे धीरे-धीरे शोक मुक्त हुए। ट 1555. Jinapalit entered Champa and reached his house. He went to his l > parents and tearfully gave the news of demise of Jinarakshit. B With his parents, relatives, and friends Jinapalit concluded the formal a 5 mourning rituals. With passage of time the family slowly won over the grief. JNĀTĀ DHARMA KATHÄNGA SŪTRA FinnnnnnnnnnnnAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAE र (38) Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवम अध्ययन : माकन्दी ( ३९ ) सूत्र ५६ : तए णं जिणपालियं अन्नया कयाइ सुहासणवरगयं अम्मापियरो एवं वयासी - 'कह णं पुत्ता ! जिणरक्खिए कालगए? सूत्र ५६ : कुछ दिनों बाद आराम करते हुए जिनपालित से उसके माता-पिता ने पूछा - "हे पुत्र ! जिनरक्षित की मृत्यु कैसे हुई ?" 56. After a few days rest when Jinapalit recovered, his parents asked, "Son! How did Jinarakshit die?" सूत्र ५७ : तए णं जिणपालिए अम्मापिऊणं लवणसमुद्दोत्तारं च कालियवाय- समुत्थणं च पोयवहण - विवत्तिं च फलगखंड आसायणं च रयणदीवुत्तारं च रयणदीवदेवयागिहं च भोगविभूई रयणदीवदेवयाघायणं च सूलाइयपुरिसदरिसणं च सेलगजक्ख आरुहणं 'रयणदीवदेवयाउवसग्गं च जिणरक्खियविवत्तिं च लवणसमुद्दउत्तरणं च चंपागमणं च सेलगजक्ख आपुच्छणं च जहाभूयमवितह-मसंदिद्धं परिकहेइ । च च सूत्र ५७ : जिनपालित ने लवणसमुद्र में यात्रा आरम्भ, तूफान का आना, जहाज का नष्ट होना, लकडी के लट्टे का मिलना, रत्नद्वीप में पहुँचना, वहाँ की देवी के घर जाना, वहाँ के भोग व वैभव तथा वधस्थल पर जाना, शूली पर टंगे पुरुष के दर्शन, शैलक यक्ष की पीठ पर चढना, देवी द्वारा उपसर्ग करना, जिनरक्षित की मृत्यु, लवण समुद्र को पार कर चम्पानगरी पहुँचना और शैलक की विदा आदि सभी घटनाएँ यथारूप ज्यों की त्यों और असंदिग्ध रूप में अपने माता-पिता को सुना दी। 57. Beginning from the commencement of the sea voyage Jinapalit narrated all the incidents in detail as they had occurred. सूत्र ५८ : तए णं जिणपालिए जाव अप्पसोगे जाव विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहर | सूत्र ५८ : तपश्चात् शोक मुक्त हो जिनपालित मानवोचित विपुल भोगोपभोग का आनन्द लेता जीवन व्यतीत करने लगा। 58. And then, overcoming his grief Jinapalit resumed his normal life enjoying all the pleasures of life. उपसंहार सूत्र ५९ : तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव जेणेव चंपा नयरी, जेणेव पुण्णभद्दे चेइए, तेणेव समोसढे । परिसा निग्गया । कूणिओ वि राया निग्गओ । जिणपालिए धम्म 'सोच्चा पव्वइए । एक्कारसअंगविऊ, मासिएणं भत्तेणं जाव सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववन्ने, दो सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता, जाव महाविदेह सिज्झिहिइ । CHAPTER-9: MAKANDI (39) Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7 (४०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 सूत्र ५९ : काल के उस भाग में श्रमण भगवान महावीर चम्पानगरी के पूर्णभद्र चैत्य में पधारे दी 15 और उनकी वन्दना हेतु परिषद निकली। कुणिक राजा भी आए। जिनपालित ने धर्मोपदेश सुनने के डा र बाद दीक्षा ग्रहण कर ली। क्रमशः ग्यारह अंग शास्त्रों का अध्ययन कर अन्त में एक मासक्षमण तप । एकर शरीर त्यागा और सौधर्म कल्प में देव रूप में जन्म लिया। उसकी आयुष्य दो सागरोपम की ट 15 बताई गई हैं। वहाँ से वह महा-विदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्धि प्राप्त करेगा। UUUUUUUए OUR > CONCLUSION 59. During that period of time Shraman Bhagavan Mahavir arrived in the a Purnabhadra Chaitya in Champa city. A delegation of citizens came to attend his discourse. King Kunik also came. Jinapalit accepted Diksha after 5 listening to the discourse. One after the other, he studied all the eleven CI canons and in the end he left his earthly body after a month long fast. Heç IZ reincarnated as a god in the Saudharm Kalp (dimension of gods). His life span there is said to be two Sagaropam (a superlative measure of time). From there he will be reborn in the Mahavideh area and get liberated. सूत्र ६0 : एवामेव समणाउसो ! जाव माणुस्सए कामभोगे णो पुणरवि आसाइ, से णं जावड 15 वीइवइस्सइ, जहा वा से जिणपालिए। सूत्र ६० : इसी प्रकार हे आयुष्मान् श्रमणों ! जो मनुष्य, धर्म में दीक्षित होने के पश्चात काम र भोगों की पुनः इच्छा नहीं करता वह जिनपालित की भाँति संसार समुद्र को पार करता है। 15 60. Long-lived Shramans! In the same way those of our ascetics who, after s getting initiated, do not desire for carnal pleasures are liberated like PJinapalit. सूत्र ६१ : एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं नवमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठ र पण्णत्ते त्ति बेमि॥ __सूत्र ६१ : हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने ज्ञात-अध्ययन का यह अर्थ बताया है। मैंने ड र जैसा सुना है वैसा ही तुम से कहता हूँ। 5 61. Jambu! This is the text and the meaning of the ninth chapter of the 15 Jnata Sutra as told by Shraman Bhagavan Mahavir. So I have heard, so I P confirm. ।। नवमं अज्झयणं समत्तं ॥ ॥ नवम अध्ययन समाप्त ॥ || END OF THE NINTH CHAPTER || UUUUUUUUUUUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् 6(40) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA I Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn ) Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - उपसहार ज्ञाताधर्म कथा की यह नवीं कथा इन्द्रिय-विषयों में लोलुपता के कारण कर्तव्यच्युत होने के टा र भंयकर परिणाम को प्रस्तुत कर संयम मार्ग पर एकाग्र रहने की प्रेरणा देती है। दो वणिक बंधुओं द 5 की व्यावसायिक यात्रा के आरंभ से ही मन की अनियंत्रित उड़ान के फल प्रस्तुत होने लगते हैं। र इन्द्रियाँ ठेलती हैं तो मन भागता है पर जब मन पर अंकुश लगता है तब इन्द्रियाँ स्वयं ही नियन्त्रण र में आ जाती हैं। दो भाइयों के आचरण की तुलनात्मक मार्मिक प्रस्तुति इस कथा की प्रेरक शक्ति द 5 को बढ़ा देती है। कथा की रूपक शैली उपनयगाथा से स्पष्ट होती है। भUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्卐 CONCLUSION This ninth story of Jnata Dharma Katha inspires us to remain resolute on B the path of discipline by presenting the terrible consequences of neglecting K our duty for indulgence in sensual pleasures. Right from the commencement of their journey the two merchant brothers have to face the consequences of the flights of their imagination. When the senses push, the mind runs around, but when mind is disciplined, the senses automatically follow suit. The comparison of the attitudes of two brothers enhances the strength of the 2 inspiration offered by this story. The allegorical style is revealed by the verses of the Message. | उपनय गाथा जह रयणदीवदेवी तह एत्थं अविरई महापावा। जह लाहत्थी वणिया तह सुहकामा इहं जीवा ॥१॥ जह तेहिं भीएहिं दिट्ठो आघायमंडले पुरिसो। संसारदुक्खभीया पासंति तहेव धम्मकहं ॥२॥ जह तेण तेसि कहिया देवी दुक्खाण कारणं घोरं। तत्तो च्चिय नित्थारो सेलगजक्खाओ नन्नत्तो॥३॥ तह धम्मकहा भव्वाण साहए दिट्ठअविरइसहावो । सयलदुहहेउभूया विसयाविरइ ति जीवाणं॥४॥ LS CHAPTER-9 : MAKANDI YAAAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnAAAAE Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण 5(४२) лелелулелелел ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र सत्ताण दुहत्ताणं सरणं चरणं जिणिंदपन्नत्तं। आणंदरूवनिव्वाणसाहणं तह य देसेइ ॥५॥ जह तेसिं तरियव्वो रुद्दसमुद्दो तहेव संसारो। जह तेसि सगिहगमणं निव्वाणगमो तहा एत्थ ॥६॥ जह भेलगपट्ठाओ भट्ठो देवीए मोहियमईओ। सावयसहस्सपउरमि सायरे पाविओ निहणं ॥७॥ तह अविरईए नडिओ चरणचुओ दुक्खसावयाइण्णे। निवडइ असारसंसारसायरे दारुणसरूवे ॥८॥ जह देवीए अक्खोहो पत्तो सट्ठाणजीवियसुहाई। तह चरणट्ठिओ साहू अक्खोहो जाइ निव्वाणं॥९॥ र रत्नद्वीप की देवी के स्थान पर महापापमय अविरति समझनी चाहिए और लाभार्थी वणिकों के स्थान पर सुख की कामना करने वाले जीव ॥१॥ र जैसे उन्होंने (माकन्दी पुत्रों ने) आघात-मण्डल (सूली पर) में एक पुरुष को देखा वैसे ही संसार 15 के दुःखों से भयभीत लोग धर्मकथा कहने वाले को देखते हैं॥२॥ र जैसे उसने उन्हें बताया कि देवी घोर दुःखों का कारण है और उससे निस्तार पाने का उपाय 15 शैलक यक्ष के अतिरिक्त नहीं है॥३॥ र वैसे ही अविरति के स्वभाव को समझने वाले उपदेशक भव्य जीवों को “इन्द्रियों के विषय 15 सभी दुःखों के कारण हैं," ऐसा कह कर जीवों को उनसे विरत करते हैं॥४॥ र और बताते हैं कि दुःखों से पीड़ित प्राणियों के लिए जिनेन्द्र द्वारा प्ररूपित चारित्र ही शरण है; 2 15 वही आनन्दरूप निर्वाण का साधन है॥५॥ र जैसे वणिकों को सागर पार करना था वैसे ही भव्य जीवों को विशाल संसार सागर पार करना 2 15 है। जैसे वणिकों को अपने घर पहुंचना था वैसे ही भव्य जीवों को मोक्ष प्राप्त करना है॥६॥ र जैसे देवी द्वारा मोहित मति (जिनरक्षित) शैलक की पीठ से गिर कर सहस्रों हिंस्र जन्तुओं से , 15 भरे सागर में मृत्यु को प्राप्त हुआ॥७॥ र वैसे ही अविरति से बाधा पाकर जो जीव चारित्र से भ्रष्ट हो जाता है वह दुःखरूपी हिंस्र 15 जन्तुओं से व्याप्त भयंकर और अपार संसार सागर में गिर पड़ता है॥८॥ र जैसे देवी के प्रलोभनों से निर्लिप्त रहने वाला (जिनपालित) अपने घर पहुँच कर जीवन के 15 सुखों को पा लेता है वैसे ही चारित्र में स्थिर और विषयों से निर्लिप्त साधु निर्वाण सुख को पा लेता है॥९॥ уллулло COOO 15(42) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA Ç 卐Annnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - नवम अध्ययन : माकन्दी (४३ टा | THE MESSAGE The goddess of Ratnadveep is the great evil of attachment and the profit Sl 5 mongering merchants are the pleasure seeking beings. (1) As the merchants saw the man on the gibbet the beings oppressed by the sorrows of the world see preachers. (2) As he told them that the goddess is the cause of all sorrows and there is no respite other than the help of Shailak Yaksha. (3) Same way preachers, who know the consequences of attachment, inform the seekers that sensual pleasures are the source of all sorrows and in the seekers to get detached from them. (4) They add that the code of conduct propagated by The Conqueror (Jina) is the only refuge for the oppressed, and that it is the means to attain the ultimate bliss, the state of Nirvana. (5) B As the merchants wanted to cross the ocean, the seekers want to cross the ocean of rebirths. As the merchants wanted to reach their home, the seekers want to attain liberation or Moksha. (6) Just as the one infatuated with the goddess fell from the back of Shailak and embraced painful death in the ocean infested with thousands of violenta creatures. (7) In the same way a being trapped by attachment falls from the path of right conduct and drowns in the endless ocean of rebirths infested with S infinite sorrows. (8) Just as the one unaffected by the enticing goddess reaches his home and regains happiness, the ascetic firm in the codes of conduct and uninvolved in sensual pleasures achieves the blissful state of Nirvana. (9) UUUUUUUUUUUUUUUUUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण परिशिष्ट काकंदी-इस स्थान के विषय में दो मत हैं। अठारहवीं शताब्दी के जैन यात्रियों में से कुछ तो इसे क्षत्रियकुण्ड ट] र से पाँच कोस दूरी पर बताते हैं और कुछ अस्पष्ट रूप से इसे बिहार से पूर्व में लगभग ४0 मील की दूरी पर।ट 15 एक अन्य यात्री दो काकंदी बताते हैं। एक तो क्षत्रियकुण्ड के निकट और दूसरी गोरखपुर से ५० मील लगभग टा 15 पूर्व में। यात्रा दर्पण के अनुसार गोरखपुर के पास जो काकंदी है उसे ही तीर्थ मानना चाहिए। इसका नाम खुखंदाड 15 बताते हैं और यह नोनवार स्टेशन से डेढ़ मील पर है। २ शकुन-भविष्य में शुभाशुभ होने के इंगित को शकुन कहते हैं। यह मूलतः प्राकृतिक संकेतों से जुड़ी घटनाओं र के रूप में आरम्भ हुआ और धीरे-धीरे विकसित होकर एक शास्त्र बन गया। पशु-पक्षियों आदि में नैसर्गिक रूप से CHAPTER-9 : MAKANDI ( 43 ) Annnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn) UUUUUण्णमा Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का ४४ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र दा र कुछ विशिष्ट ऐंद्रिक क्षमताएँ होती हैं जिनसे मनुष्य अछूता है। उन्हें इस क्षमता के कारण बहुत-सी घटनाओं का टा र संकेत या पूर्वाभास मिलता है और उसे वे शरीर की विभिन्न क्रियाओं/चेष्टाओं से प्रकट करते हैं। शकुन शास्त्र के ट 5 विकसित होने से ये सभी संकेत भी उसी में सम्मिलित हो गये। साथ ही समय के साथ इसमें अनेक भ्रान्तियों तथा ट 5 अंध-विश्वासों का भी समावेश हो गया। जो भी हो इस विषय का विशेष महत्त्व इसलिए रहा कि इसके आधार द 5 पर पूर्वाभास हो जाने से मनुष्य अशुभ से बचकर चलने का अवसर पा जाता है और शुभ के साथ चलने को G 5 तत्पर हो सकता है। शकुन किसी न किसी रूप में सारे संसार में विद्यमान रहा है-विशेष कर उस काल में जब 7 2 आवागमन आदि सामान्य क्रिया कलाप भी अत्यन्त दुरूह थे। । र जैन और जैनेतर साहित्य में तथा सम्पूर्ण लोक साहित्य में शकुन के सम्बन्ध में स्थान-स्थान पर विशद चर्चाएँ टा 5 उपलब्ध हैं। उदाहरण स्वरूप कुछ शुभ-अशुभ शकुन निम्न प्रकार हैं____ बहिर्गमन के समय-शुभ शकुन-घोड़ों का हिनहिनाना, नाचते मोर का कलरव, दाहिनी ओर हाथी का SI चिंघाड़ना, गधे का दाहिनी ओर मुडकर रेंकना, सुगंधित हवा का मंद-मंद प्रवाहित होना, आदि। बर्हिगमन के 5 र समय अशुभ-शकुन-गंदे वस्त्र धारण किये व्यक्ति का मिलना, सर पर लकड़ी का भारा लिए व्यक्ति का मिलना, र शरीर पर तेल मले व्यक्ति का मिलना, विकलांग, जैसे वामन या कुब्ज, का मिलना आदि। APPENDIX thly, a said to tra Dar FUTUPUTUUUU पEUUUUUUUHURURUPUTUUUUUN Kakandi-There are two opinions about this place. Some Jain travelers of the eighteenth century say that it is about ten miles away from Kshatriyakund. Other travelers of the same period vaguely say that it is roughly 40 miles east of Bihar. Other sources mention of two places bearing the same name. One is said to be near Kshatriyakund and the other about 50 miles east of Gorakhpur. According to Yatra Darpan, the Kakandi near Gorakhpur should be accepted as the pilgrimage center. Its modern name is Khakhunda and it is one and a half miles away from Nonwar railway station. Shakun-omen-That which gives indication of good or bad happenings of the future is 5 called omen (Shakun). It originated from the signs and indications preceding natural happenings, and gradually developed into a scripture or subject. All animals are endowed with some unique capacities human beings lack. With the help of this sixth sense, animals become aware of many happenings in advance, and they express these premonitions by certain gestures or activities. As the subject of augury evolved, all these indication were included in it. With passage of time a horde of misconceptions and superstitions also got included in this ever-expanding subject. Leaving aside the question of authenticity, the subject became popular because man is curious about his future and when he gets an inkling of the future he gets a chance to try and avoid the unfavourable and go along the favourable. This subject has always been popular throughout the world in some form or another especially during the period when even simple activities like covering distances were fogged with the unknown and unforeseen. Jain literature as well as other Indian literature, abounds in references to this subject and at many places examines it in great detail. A few popular omens are-good omens at the » time of moving out : whinnying of horses, cooing of dancing pea-cock, trumpeting of elephant on the right, braying of donkey after turning towards its right, gentle blowing of fragrant 15 wind, etc. Bad omens at the time of moving out---meeting a man wearing dirty clothes, meeting a person carrying a bundle of wood, meeting a person with oil rubbed all over his K body, meeting a disfigured person like a dwarf or hunchback, etc. UUUUUUUUUE1 P(44 JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SUTRA 卐nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnAAAAAAAE Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवाँ अध्ययन : चन्द्रमा: आमुख शीर्षक- चंदिम-चन्द्रमा - अन्तरिक्ष में रहा चन्द्रमा अपने क्रमिक विकास और हास की नियमित श्रृंखला के कारण विकास और ह्रास के क्रम का एक अनूठा उदाहरण है। भगवान महावीर ने इस उदाहरण के माध्यम से आत्मिक गुणों के विकास और हास को समझाया है। 52 कथासार - राजगृह में भगवान महावीर पधारे। गौतम स्वामी ने उनसे प्रश्न किया कि जीवों में गुणों की वृद्धि तथा हानि किस प्रकार होती है ? भगवान ने उत्तर दिया कि जैसे पूर्णिमा के चाँद की अपेक्षा कृष्ण पक्ष का चाँद अपने तेज, प्रभा, छाया आदि गुणों से उत्तरोत्तर क्षीण होता जाता है और अन्त में अमावस्या के दिन इन सभी गुणों से हीन हो जाता है उसी प्रकार दीक्षा लेने के पश्चात् हीनता प्राप्त करने वाला साधु या साध्वी क्षमा, मृदुता, सरलता आदि गुणों से क्रमश: हीन होता गुण-विहीन हो जाता है । दूसरी ओर शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा इसी प्रकार उत्तरोत्तर अपने तेज प्रभा आदि गुणों में वृद्धि पाता हुआ पूर्णिमा के दिन सम्पूर्ण बन जाता है उसी प्रकार जो साधु-साध्वी अपने क्षमा, मृदुता, ब्रह्मचर्य आदि गुणों में वृद्धि करते हैं वे शनैः शनैः परिपूर्ण गुण सम्पन्न बन जाते हैं। CHAPTER-10: THE MOON For Private Personal Use Only (45) 2005 Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Turnunun u UUTUUUUUUUUUU TENTH CHAPTER : THE MOON: INTRODUCTION Title Chandim--Chandrama--the moon. The moon hanging in space with its perpetual cycles of progressive growth and decline is a unique example of the sequences of growth and decline. Bhagavan Mahavir used this example to explain the growth and decline of the virtues of the soul. Gist of the story-Shraman Bhagavan Mahavir arrived in Rajagriha. Gautam Swami asked him how the virtues of a being grow and decline. Bhagavan replied that just as during the dark fortnight of a month the moon gradually declines in its attributes like its whiteness, glow, etc., and at last on the dark night (moonless night) is devoid of all its attributes, the ascetic who starts to decline in ascetic virtues like clemency, beneficence, etc. similarly goes on declining slowly and in the end is devoid of any virtue. Also, during the bright fortnight the moon grows every day in these attributes and on the full moon night it is at its best. Similarly, the ascetic who starts to progress in the prescribed virtues and continues to do so, at last acquires perfection. Vurvurururrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr EURUurrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr ( 46 ) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA Einnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयणं : चंदिम दसवाँ अध्ययन : चन्द्रमा TENTH CHAPTER : CHANDIM - THE MOON सूत्र १ : जइ णं भन्ते ! समणेणं जाव महावीरेणं णवमस्स नायज्झयणस्स अयमट्टे पण्णत्ते, दसमस्स णायज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेण के अट्ठे पण्णत्ते ? सूत्र १ : जम्बू स्वामी ने प्रश्न किया - "भंते ! श्रमण भगवान महावीर ने नवम ज्ञात अध्ययन का पूर्वोक्त अर्थ कहा है तो दसवें ज्ञात - अध्ययन का उन्होंने क्या अर्थ कहा है ?” 1. Jambu Swami inquired, “Bhante ! What is the meaning of the sixth chapter according to Shraman Bhagavan Mahavir?" सुधर्मा स्वामी का उत्तर सूत्र २ : एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णामं णयरे होत्था । तत्थ णं रायगिहे णयरे सेणिए णामं राया होत्था । तस्स णं रायगिहस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए एत्थ णं गुणसीलए णामं चेइए होत्था । सूत्र २ : जम्बू ! काल के उस भाग में राजगृह नाम का एक नगर था, जहाँ श्रेणिक नाम का ) राजा राज्य करता था। नगर के बाहर उत्तर-पूर्व दिशा में गुणशील नाम का एक चैत्य था । SUDHARMA SWAMI NARRATED 2. Jambu! During that period of time there was a city named Rajagriha. King Shrenik ruled over that city. Outside the city in the north-eastern direction there was a Chaitya named Gunasheel Chaitya. सूत्र ३ : तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे, गामाणुगामं दूइज्माणे, सुहं सुहेणं विहरमाणे, जेणेव गुणसीलए चेइए तेणेव समोसढे । परिसा निग्गया । सेणिओ वि राया निग्गओ। धम्मं सोच्चा परिसा पडिगया। 强 सूत्र ३ : उस समय में एक ग्राम से दूसरे ग्राम को जाते, अनुक्रम से विचरते हुए श्रमण ) भगवान महावीर गुणशील चैत्य में पधारे। श्रेणिक राजा सहित नगरवासियों की परिषद (समूह) भगवान का धर्मोपदेश सुनने निकली और सुनकर लौट गई। 3. During that period of time, going from one village to another, Shraman Bhagavan Mahavir arrived in the Gunasheel Chaitya. A delegation of CHAPTER-10: THE MOON ( 47 ) 35 Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ UUUUUUUUUUUUUUUUUUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्य प्रजएज्ज्ज्जा (४८) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ड 5 citizens led by king Shrenik came to attend his discourse. They returned after the discourse. 5 सूत्र ४ : तए णं गोयमसामी समणं भगवं महावीरं एवं वयासी-कहं णं भंते ! जीवा वटुंति 5 वा हायंति वा? 5 सूत्र ४ : इसके पश्चात गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर से प्रश्न किया-"भंते ! जीव र (आत्मा) किस प्रकार वृद्धि (निज के ज्ञानादि गुणों का विकास) को प्राप्त होता है और किस प्रकार र हानि को?” ____ 4. After that, Gautam Swami put forth a question before Shraman 2 Bhagavan Mahavir-"Bhante! How does a being grow and how does it B decline?” (here growing and declining refer to virtues like knowledge) 5 भगवान द्वारा समाधान सूत्र ५ : गोयमा ! से जहाणामए बहुलपक्खस्स पडिवयाचंदे पुण्णिमाचंदं पणिहाय हीणे, , 15 वण्णेणं; हीणे सोम्मयाए, हीणे निद्धयाए, हीणे कंतीए एवं दित्तीए जुत्तीए छायाए पभाए ओयाए द र लेस्साए मंडलेणं, तयाणंतरं च णं बीयाचंदे पाडिवयं चंदं पणिहाय हीणतराए वण्णेणं जाव मंडलेणं, तयाणंतरं च णं तइयाचंदे बिइयाचंदं पणिहाय हीणतराए वण्णेणं जाव मंडलेणं, र एवं खलु एएणं कमेणं परिहायमाणे परिहायमाणे जाव अमावस्साचंदे चाउद्दसिचंदं पणिहाय द उ नटे वण्णेणं जाव नढे मंडलेणं। र एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा जाव पव्वइए समाणे हीणे खंतीए ड र एवं मुत्तीए गुत्तीए अज्जवेणं मद्दवेणं सच्चेणं तवेणं चियाए अकिंचणयाए बंभचेरवासेणं, टे 15 तयाणंतरं च णं हीणे हीणतराए खंतीए जाव हीणतराए बंभचेरवासेणं, एवं खलु एएणं कमेणं ट र परिहीयमाणे परिहीयमाणे गढे खंतीए जाव णट्टे बंभचेरवासेणं। 5 सूत्र ५ : “गौतम ! जिस प्रकार कृष्णपक्ष की एकम (प्रतिपदा) का चन्द्र पूर्णिमा के चन्द्र की ट र तुलना में वर्ण (शुक्लता), सौम्यता, स्निग्धता, और कान्ति में हीन होता है। उसी प्रकार वह दीप्ति र (चमक), युक्ति (आकाश से संयोग), छाया, प्रभा, ओजस् (सामर्थ्य), लेश्या (किरण), और मण्डल 15 (गोलाई) से क्षीण होता है। __“कृष्णपक्ष की द्वितीया का चन्द्रमा इन सभी गुणों में एकम के चन्द्रमा से क्षीण होता है। "इसके बाद तृतीया का चन्द्रमा दूज के चन्द्रमा से भी क्षीण होता है। इसी तरह आगे भी द र प्रतिदिन क्रमशः हीन होता जाता है। अमावस्या का चन्द्रमा चतुर्दशी के चन्द्रमा से भी हीन होता है 5 र और उसके वर्ण आदि उपरोक्त सभी गुण नष्ट हो जाते हैं। 15 (48) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ प्रतिपदा अमावस्या ))))) Hah Im) 12hP Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग: २) PEO मा - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -- चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED चन्द्रमा का उपनय : गुण हानि-वृद्धि चित्र : ३ १. जिस प्रकार कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा का चन्द्रमा पूर्णिमा के चन्द्रमा से कान्ति, दीप्ति, प्रभा-मंडल आदि में कुछ हीन होता है। द्वितीया का चन्द्रमा उससे कुछ अधिक हीन होता हुआ क्रमशः घटता-घटता क्षीण, क्षीणतर दशा में पहुँचते हुए अमावस्या के दिन वह प्रभा, कांति, दीप्ति, ज्योत्स्ना आदि सभी गुणों से नष्ट हो जाता है। इसी प्रकार दीक्षित होने के पश्चात् जो साधु-साध्वी क्षमा, ऋजुता, आदि श्रमणधर्मों से हीन, हीनतर होता जाता है, वह एक दिन अमावस्या के चन्द्रमा के समान सर्वथा गुणहीन स्थिति को प्राप्त हो जाता है। २. जिस प्रकार शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का चन्द्रमा अमावस्या के चन्द्रमा की अपेक्षा शुक्लता, कांति, प्रभा-मंडल आदि में कुछ अधिक होता है और फिर द्वितीया, आदि को क्रमशः उससे श्रेष्ठ स्थिति प्राप्त होता हुआ पूर्णिमा के दिन प्रभा, ज्योत्स्ना, आदि गुणों में श्रेष्ठतम हो जाता है, उसी प्रकार दीक्षित होने के पश्चात् जो साधु-साध्वी अपने क्षमा आदि श्रमणधर्मों में वर्द्धमान रहता है वह एक दिन श्रेष्ठतम गुणों से परिपूर्ण बन जाता है। (दशम अध्ययन) THE MOON: GROWTH AND DECLINE OF VIRTUES ILLUSTRATION: 3 1. During the dark fortnight of a month the moon gradually declines in its attributes like its whiteness, glow, etc., and at last on the darkest night (moonless night) it is devoid of all its attributes. In the same way, the ascetic who starts to decline in ascetic virtues like clemency, beneficence, etc. goes on declining slowly and in the end is devoid of any virtue. 2. Also, during the bright fortnight the moon grows every day in these attributes and on the full moon night it is at its best. In the same way the ascetic who starts to progress in the prescribed virtues, and continues to do so, at last acquires perfection. (CHAPTER - 10) ces ve JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA (PART-2) Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ LEDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD क दसवाँ अध्ययन : चन्द्रमा (४९) SI र “उसी प्रकार आयुष्मान् श्रमणों ! जो साधु या साध्वी दीक्षा लेने के बाद क्षमा, मुक्ति (निर्लोभ), डा 15 आर्जव, मार्दव, लाघव, सत्य, तप, त्याग, अकिंचनता, ब्रह्मचर्य, आदि श्रमण-धर्मों से हीन होता है र वह उक्त क्षमा आदि गुणों से भी हीन, हीनतर होता जाता है। क्रमशः उसके क्षमा, निर्लोभता आदि टी 15 गुण नष्ट होते हैं और अन्ततः उसका ब्रह्मचर्य भी नष्ट हो जाता है। Annnnnnnnnnnnnnnnnnnny 15 MAHAVIR'S EXPLANATION 12 5. "Gautam! During the dark fortnight of a month the moon on the first K night is less white, soft, soothing, and glowing as compared to the moon of a 5 the previous night (the full moon night). Similarly it is low in its intensity, contrast, shadow, brilliance, radiance, rays, and orb. "In all these properties the moon of the second night of the dark fortnight 12 declines further as compared to the moon of the first night. 15. "After this the moon of the third night of the dark fortnight is even more cl 5 reduced as compared to the moon of the second night. Simi IP reducing gradually every day. The moon on the dark night (moon-less night) is inferior even as compared with the moon of the fourteenth night of the B dark fortnight and is devoid of all the above said properties. 15 “Similarly, O long living Shramans! The ascetic who after accepting S Diksha starts to decline in any or all of the prescribed virtues of ascetics like 12 clemency, beneficence, simplicity, humility, Laghav (extreme atrophy of ego and desire for possessions), truthfulness, asceticism, detachment, modesty, a I and Brahmacharya (absolute constancy of spiritual pursuit; also celibacy) ट 15 goes on declining in the said virtues. One after the other he continues to lose C 15 these virtues and in the end he loses his Brahmacharya also. र सूत्र ६ : से जहा वा सुक्कपक्खस्स पाडिवयाचंदे अमावसाए चंदं पणिहाय अहिए वण्णेणं से 15 जाव अहिए मंडलेणं, तयाणंतरं च णं बिइयाचंदे पडिवयाचंदं पणिहाय अहिययराए वण्णेणं जाव अहियतराए दी 15 मंडलेणं। 15 एवं खलु एएणं कमेणं परिवुड्ढेमाणे जाव पुण्णिमाचंदे चाउद्दसिं चंदं पणिहाय पडिपुण्ण द र वण्णेणं जाव पडिपुण्णे मंडलेणं। 15 एवामेव समणाउसो ! जाव पव्वइए समाणे अहिए खंतीए जाव बंभचेरवासेणं, तयाणंतरं च टा रेणं अहिययराए खंतीए जाव बंभचेरवासेणं। एवं खलु एएणं कमेणं परिवड्ढेमाणे परिवड्ढेमाणे र जाव पडिपुण्णे बंभचेरवासेणं, एवं खलु जीवा वड्ढंति वा हायंति वा। 15 CHAPTER-10 : THE MOON (49) टा SnnnnnnnnnnnnnnnnAAAAAAAAAAAAAAAALI ज्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ தில் ( ५० ) सूत्र ६ : " जैसे शुक्लपक्ष की एकम का चन्द्र अमावस्या के चन्द्र की तुलना में वर्ण से कान्ति, तथा दीप्ति यावत् मण्डल (पूर्व-सू ५ के समान) तक के सभी गुणों में श्रेष्ठ होता है और प्रतिदिन क्रमशः श्रेष्ठतर होता जाता है । अन्ततः पूर्णिमा का चन्द्र चतुर्दशी के चन्द्र की अपेक्षा परिपूर्ण वर्णादि गुणों वाला होता है। “उसी प्रकार हे आयुष्मान् श्रमणो ! जो साधु-साध्वी दीक्षा लेने के बाद क्षमा से ब्रह्मचर्य क के सभी गुणों (पूर्वसम-सू ५ के समान) में निरन्तर वृद्धि करता है वह निश्चय ही इन सभी गुणों से परिपूर्ण हो जाता है। "इस प्रकार जीव (आध्यात्मिक गुणों के विकास की दृष्टि से) वृद्धि को या हानि को प्राप्त होता है ।" 6. During the bright fortnight of a month the moon on the first night is more white, soft, soothing, and glowing as compared to the moon of the previous night (the moon less night). Similarly it is higher in its intensity, contrast, shadow, brilliance, radiance, rays, and orb. It goes on increasing gradually every day. The moon on the bright night (full moon night) is better even as compared to the moon of the fourteenth night of the bright fortnight and is at its best in all the above said properties. ज्ज्फ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र 66 Similarly, O long living Shramans! The ascetic who starts to progress in any or all of the prescribed virtues of ascetics (as mentioned in para 5) goes on progressing in the said virtues. One after the other he continues to gain perfection in these virtues and in the end he acquires perfection in all. This is how a being grows and how it declines. सूत्र ७ : एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महीवारेणं दसमस्स णायज्झयणस्स अयम पण्णत्तेति बेमि । सूत्र ७ : जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने दसवें ज्ञाता अध्ययन का यह अर्थ कहा है। जैसा मैंने सुना है, वैसा ही कहता हूँ । 7. Jambu! This is the text and the meaning of the tenth chapter of the Jnata Sutra as told by Shraman Bhagavan Mahavir. So I have heard, so I confirm. ( 50 ) | दसमं अज्झयणं समत्तं ॥ ॥ दसवाँ अध्ययन समाप्त ॥ || END OF THE TENTH CHAPTER || JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ LIUDDDDDDDDDDDDDDDDUUUUUUUUUUUजम उपसंहार 15 ज्ञाता सूत्र का यह दसवाँ अध्ययन कथा नहीं, एक सटीक उदाहरण है जिसके माध्यम से दी 15 क्रमिक विकास और क्रमिक ह्रास का महत्त्व समझाया है साथ ही आत्मिक विकास के पथ पर गुणों SI 12 की महत्ता को दिखाया है। साधना में शिथिलता साधक को निरन्तर ह्रास की ओर ले जाती है और टी 15 साधना में दृढ़ता निरन्तर विकास की ओर। इस प्रक्रिया की क्रमबद्धता में गूढ संकेत यह है कि दा 5 साधक शिथिलता को जिस स्तर पर भी पहचान ले अपनी दिशा को बदल सकता है। CONCLUSION 卐nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn 12 This tenth chapter of Jnata Dharma Katha is not a story. It is an a 5 appropriate example employed to explain the value of progressive growth 5 and decline. At the same time it also shows the importance of virtues on the 15 path of spiritual uplift. Laxity in practices pushes downhill and perseverance s in practices helps going uphill. The process is always gradual and this s 12 provides a hidden indication that the moment the practicer becomes aware of the direction of his movement he can try and change it toward the desired 5 goal. उपनय गाथा “जह चंदो तह साहू राहुवरोहो जहा तह पमाओ। वण्णाइगुणगणो जह तहा खमाई समणधम्मो॥१॥ पुण्णो वि पइदिणं जह हायंतो सव्वहा ससी नस्से। तह पुण्णचरित्तो वि हु कुसीलसंसग्गिमाईहिं ॥२॥ जणियपमाओ साहू हायंतो पइदिणं खमाईहिं। जायइ नट्ठचरित्तो तत्तो दुक्खाइं पावे ॥३॥ हीणगुणो वि हु होउं सुहगुरुजोगाइजणियसंवेगो। पुण्णसरूवो जायइ विवड्डमाणो ससहरो ब्व॥४॥ चन्द्रमा को साधु समझें और प्रमाद को राहु-ग्रहण। वर्ण, कान्ति, आदि चन्द्रमा के गुणों के । समान क्षमा आदि दस श्रमण धर्म है॥१॥ K CHAPTER-10 : THE MOON (51) टा FOODUUUUUUUUUUUU Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् र (५२) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ड 5 जैसे पूर्ण होने पर भी चन्द्रमा प्रतिदिन क्षीण होता होता सर्वथा लुप्त हो जाता है वैसे ही पूर्ण द र चारित्रवान साधु भी कुशीलों के संसर्ग से प्रमाद युक्त होने के कारणस्वरूप क्रमशः उन गुणों से ड र क्षीण होता होता चारित्रहीन हो जाता है, दुःखों को प्राप्त होता है॥२, ३॥ 5 जैसे लुप्त चन्द्रमा प्रतिदिन विकास पाकर पूर्ण बन जाता है वैसे ही हीन गुणों वाला साधु भी र सद्गुरु के संयोग से संवेग प्राप्त करता है और क्रमशः विकास पाकर पूर्ण चारित्रवान बन । 15 जाता है।॥४॥ THE MESSAGE The moon is the ascetic and the eclipse is illusion and lethargy. Such S Pattributes as colour, brilliance, etc. are the virtues of the ascetic, viz. S R forgiveness, humility, etc. (1) As a full moon gradually declines and vanishes in the end, an ascetic perfect in discipline, also gradually loses his virtues if he becomes lax under the influence of vices. In the end he loses all his virtues and begets 2 distress. (2,3) As the dark moon grows everyday and turns into full moon, so an ascetic 15 low in virtues starts progressing if, inspired by an able guru, he develops a 5 spiritual craving, and in the end he attains perfection. (4) 15 ( 52 ) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA SAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 ग्यारहवाँ अध्ययन : दावद्रव : आमुख । शीर्षक-दावदवे-दावद्रव-समुद्री हवाओं से शीघ्र प्रभावित होने वाला वृक्ष विशेष। पर्यावरण में विभिन्न परिवर्तन वृक्षों पर विभिन्न प्रभाव डालते हैं। जैसे प्रत्येक व्यक्ति का नैसर्गिक विकास उसकी संरचना में अन्तर्निहित बल के अनुरूप होता है वैसे ही प्रत्येक वृक्ष का विकास भी होता है। और इसी बल और विकास पर निर्भर करते हैं बाहरी प्रभावों के फल। कुछ वृक्ष इन प्रभावों को सह पाते हैं कुछ नहीं। प्रकृति में उपलब्ध इस सटीक उदाहरण का उपयोग इस अध्ययन में साधक की सहनशीलता को समझाने के लिए किया गया है। साधक की आत्मोन्नति के मार्ग में सहनशीलता एक आवश्यक और आधारभूत पाथेय है। कथासार-राजगृह में भगवान महावीर से गौतम स्वामी ने प्रश्न किया कि जीव आराधक तथा विराधक किस प्रकार बनता है ? भगवान ने समझाया कि समुद्र के किनारे दावद्रव नाम के हरे-भरे वृक्ष होते हैं। जब द्वीप की ओर से पवन चलती है तब अधिकतर वृक्ष खिल उठते हैं किन्तु कुछ ऐसे भी होते हैं जो कुम्हला जाते हैं। उसी प्रकार कुछ साधु-साध्वी अपने सम्प्रदाय (गण) वालों के कट्वचन तो सहन कर लेते हैं किन्तु अन्य सम्प्रदाय वालों के कटुवचन सहन नहीं कर सकते। ऐसे साधक देश-विराधक होते हैं। ___ अनेक वृक्ष ऐसे होते हैं जो समुद्र की ओर से चलने वाली वायु में कुम्हला जाते हैं पर कुछ ऐसे भी हैं जो खिल उठते हैं। उसी प्रकार से कुछ साधु अन्य सम्प्रदाय की कटूक्ति सहन कर लेते हैं पर अपने सम्प्रदाय (गण) की नहीं सह सकते। ऐसे साधक देश-आराधक होते हैं। जब समुद्र तथा द्वीप दोनों ओर से पवन बहना बन्द हो जाता है तब सभी वृक्ष कुम्हला जाते हैं। उसी प्रकार किसी भी सम्प्रदाय या गण की कटूक्ति सहन नहीं कर पाने वाले साथ सर्वविराधक होते हैं। जब द्वीप और समुद्र दोनों ओर से पवन बहती है तब सभी वृक्ष लहलहा उठते हैं। उसी प्रकार जो साधक किसी भी सम्प्रदाय की कटूक्ति सहन कर सकते हैं वे सर्व-आराधक होते हैं। 15CHAPTER-11 : THE DAVADRAV (53) SnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnA Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (54) ELEVENTH CHAPTER: THE DAVADRAV: INTRODUCTION Title-Davadave Davadrava species of tree that is highly sensitive to the coastal winds. Changes in environmental conditions have varying effects on trees. As the natural growth of every individual human being is governed by the inherent strength of his constitution, the same is true for trees. Some trees can tolerate the changes and others cannot. This appropriate example from nature has been used to explain the tolerance of a spiritual practicer. On the path of spiritual progress tolerance is a basic and essential element. Gist of the story-Gautam Swami asked Shraman Bhagavan Mahavir how a being becomes an aspirer or decliner? Bhagavan explained that on the seashore there are lush green Davadrav trees. When the wind blows from the island many of these trees remain unaffected but some wither. Similarly ascetics who tolerate criticism by people of their own school but fail to do so in case of criticism by people of other schools are partial decliners. There are many trees that wither away when the wind blows from the sea but some remain unaffected. Similarly, ascetics who tolerate the criticism by people of other schools but fail to do so in case of criticism by people of their own school are partial aspirers. When no wind blows either from the island or from the sea all the Davadrav trees wither. Similarly, those ascetics who cannot tolerate any criticism by anyone are absolute decliners. When winds blow from all directions all the Davadrav trees remain healthy. Similarly, ascetics who can tolerate any criticism by anyone are. absolute aspirers. Lio -- JNĀTA DHARMA KATHANGA SUTRA مممم 47 Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कारसमं अज्झयणं : दावदवे ग्यारहवाँ अध्ययन : दावद्रव ELEVENTH CHAPTER: DAVADAVE- THE DAVADRAV सूत्र १ : जइ णं भंते ! दसमस्स णायज्झयमस्स अयमट्ठे पण्णत्ते, एक्कारसमस्स णं भंते! समणं भगवया महावीरेण के अट्ठे पण्णत्ते? सूत्र १ : जम्बू स्वामी ने प्रश्न किया- “ भन्ते ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने दसवें ज्ञाता अध्ययन का पूर्वोक्त अर्थ बताया है तो ग्यारहवें ज्ञात - अध्ययन का क्या अर्थ बताया है ?" 1. Jambu Swami inquired, “Bhante ! What is the meaning of the eleventh chapter according to Shraman Bhagavan Mahavir?" सुधर्मा स्वामी का उत्तर सूत्र २ : एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णामं णयरे होत्था । तत्थ णं रायगियरे सेणि णामं राया होत्था । तस्स णं रायगिहस्स णयरस्स बहिया उत्तरपुरिच्छम दिसीभाए एत्थ णं गुणसिीलए णामं चेइए होत्था । सूत्र २ : जम्बू ! काल के उस भाग में राजगृह नाम का एक नगर था जहाँ श्रेणिक राजा राज्य करता था। नगर के बाहर उत्तर-पूर्व दिशा में गुणशील नाम का एक चैत्य था । SUDHARMA SWAMI NARRATED 2. Jambu! During that period of time there was a city named Rajagriha. King Shrenik ruled over that city. Out side the city in the north eastern direction there was a Chaitya named Gunasheel Chaitya. सूत्र ३ : तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे जाव गुणसीलए णामं चेइए तेणेव समोसढे । राया निग्गओ, परिसा निग्गया, धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया। सूत्र ३ : काल के उस भाग में एक ग्राम से दूसरे ग्राम को जाते, अनुक्रम से विचरते हुए श्रमण भगवान महावीर गुणशील चैत्य में पधारे। श्रेणिक राजा सहित नगरवासियों की परीषद धर्मोपदेश सुनने निकली और सुनकर लौट गई। 3. During that period of time, going from one village to another, Shraman Bhagavan Mahavir arrived in the Gunasheel Chaitya. A delegation of CHAPTER-11: THE DAVADRAV (55) For Private Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TUTTTTTTTTT P (५६) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 citizens led by king Shrenik came to attend his discourse. They returned after the discourse. 5 आराधक-विराधक सम्बन्धी जिज्ञासा र सूत्र ४ : तए णं गोयमो समणं भगवं महावीरं एवं वयासी-'कहं णं भंते ! जीवा आराहगा 2 15 वा विराहगा वा भवंति?' र सूत्र ४ : तब गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर से प्रश्न किया-“भंते ! जीव किस प्रकार से 15 आराधक और किस प्रकार विराधक होते हैं ?" » CURIOSITY ABOUT ASPIRER AND DECLINERS 4. After that, Gautam Swami put forth a question before Shraman ] 5 Bhagavan Mahavir ----"Bhante! how does a being become an aspirer and how 15 does it become a decliner?” र सूत्र ५ : गोयमा ! से जहाणामए एगंसि समुद्दकूलंसि दावद्दवा नामं रुक्खा पण्णत्ता-किण्हा 15 जाव निउरंबभूया पत्तिया पुफिया फलिया हरियगरेरिज्जमाणा सिरीए अईव उवसोभेमाणाडा र उवसोभेमाणा चिट्ठति। जया णं दीविच्चगा ईसिं पुरेवाया पच्छावाया मंदावाया महावाया वायंति, तदा णं बहवे B दावद्दवा रुक्खा पत्तिया जाव चिट्ठति। अप्पेगइया दावद्दवा रुक्खा जुन्ना झोडा परिसडिय-पंडुपत्त15 पुष्फ-फला सुक्करुक्खओ विव मिलायमाणा चिटुंति। __ सूत्र ५ : “गौतम ! समुद्र के तट पर दावद्रव नामक वृक्ष होते हैं। वे बादलों के समूह जैसे घने टा 5 और कृष्ण वर्ण के होते हैं। वे फल और पत्तों से भरपूर और अपनी हरियाली छटा से बड़े डी र मनोहारी और शोभनीय लगते हैं। ____ “जब जलकणों से स्निग्ध पुरवाई, पछाहीं, बयार या आँधी द्वीप की दिशा से चलती है तब टा र अनेक दावद्रव के वृक्ष तो अपने पत्तों समेत ज्यों के त्यों खड़े रहते हैं। पर कुछएक वृक्ष टूट जाते । र हैं, कुछ के पत्ते सड़ जाते हैं और वे पीले पत्तों, फूलों और फलों के झड़ जाने से ढूंठ जैसे मुरझाये 5 खड़े रहते हैं। 5. “Gautam! On the seashore there are trees of Davadrav (a species of a 5 trees, possibly rubber). They are thickly bunched and deep green like dark ट 15 monsoon clouds. Rich with leaves and fruits, their lush green beauty is Fenchanting. “When the humid eastern wind, western wind, a breeze, or a gale blows from the direction of the island many of these Davadrav trees remain AUUUUUUUNOV 5(56) TRA JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪ yinnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnAAG Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देश विराधक देश आराधक Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग : २) CMक AAHIDIA MAHAR 00APAN भा चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED दाव-द्रव वृक्ष का उपनय : देश आराधक-विराधक चित्र : ४ १. जब द्वीप की तेज हवाएँ समुद्र की दिशा में चलती हैं, तो तट पर खड़े हुए दाव-द्रव नामक हरे-भरे कुछ वृक्ष तो गिर जाते हैं, कुछेक के फल-फूल पत्ते झड़ जाते हैं किन्तु अधिकतर वृक्ष फल-फूल सहित खड़े रहते हैं। उसी प्रकार जो श्रमण-श्रमणियाँ दीक्षित होने पर साधु-साध्वीश्रावक-श्राविकाओं के कठोर प्रतिकूल दुर्वचनों को तो सह लेते हैं, किन्तु अन्यतीर्थिकों के दुर्वचनों को नहीं सह पाते। वे इस वृक्ष की भाँति देश-विराधक माने जाते हैं। २. जब तेज हवाएँ समुद्र से द्वीप की तरफ चलती हैं तब बहुत-से वृक्ष टूट जाते हैं, फल-फूल रहित हो जाते हैं किन्तु कुछेक वृक्ष फल-फूल सहित शोभायुक्त बने रहते हैं। उसी प्रकार कुछ साधु-साध्वी अन्यतीर्थिकों व गृहस्थों के दुर्वचन तो सह लेते हैं किन्तु स्व-तीर्थ साधु-साध्वीश्रावक-श्राविकाओं के प्रतिकूल वचन नहीं सह पाते। वे देश-आराधक कहे जाते हैं। (ग्यारहवाँ अध्ययन) DAVADRAV TREES : THE ASPIRERS AND DECLINERS ILLUSTRATION: 4 1. On the seashore there are lush green Davadrav trees. When the wind blows from the island many of these trees remain unaffected but some wither. In the same way the ascetics who tolerate criticism by people of their own school (Sadhus, Sadhvis, Shravaks, and Shravikas), but fail to do so in the case of criticism by people of other schools, are partial decliners. 2. There are many trees which wither away when the wind blows from the sea but some of these remain unaffected. In the same way, the ascetics who tolerate the criticism by people of other schools but fail to do so in case of criticism by people of their own school are partial aspirers. (CHAPTER - 11) JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SŪTRA (PART-2) Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - ए.DUDDDDDDDDDDDDDDDDDOO र ग्यारहवाँ अध्ययन ः दावद्रव (५७) डा unaffected. However, some of these trees fall down. The leaves of some trees decay; they shed their yellow leaves, flowers and fruits and look like dried cl stumps. देश-विराधक सूत्र ६ : एवामेव समणाउसो ! जे अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा जाव पव्वइए समाणे बहूण टा 5 समणाणं, बहूणं समणीणं, बहूणं सावयाणं, बहूणं सावियाणं सम्म सहइ जाव खमइ तितिक्खइ डा अहियासेइ, बहूणं अण्णउत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं नो सम्मं सहइ जाव नो अहियासेइ, एस ण । 15 मए पुरिसे देसविराहए पण्णत्ते समणाउसो ! सूत्र ६ : “उसी प्रकार हे आयुष्मान् श्रमणो ! जो साधु-साध्वी दीक्षा लेने के बाद अन्य अनेक साधु-साध्वियों तथा श्रावक-श्राविकाओं के प्रतिकूल वचनों को सम्यक् प्रकार से सहन करता है तथा ट सुनकर समभाव रखता है, किन्तु अन्यतीर्थिकों आदि के दुर्वचनों को सम्यक् रूप से नहीं सह पाता, र उनपर समभाव नहीं रखपाता ऐसे व्यक्ति को मैंने देश-विराधक कहा है। ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज PARTIAL DECLINERS 6. “Similarly, Long-lived Shramans! those of our ascetics who, after getting initiated, fully tolerate the criticism by other ascetics and laity of our school and remain equanimous, but fail to do so in case of criticism by S ascetics and laity of other schools I call partial decliners. देश-आराधक र सूत्र ७ : समणाउसो ! जया णं सामुद्दगा ईसिं पुरेवाया पच्छावाया मंदावाया महावाया टा 5 वायंति, तया णं बहवे दावद्दवा रुक्खा जुण्णा झोडा जाव मिलायमाणा मिलायमाणा चिट्ठति।दा र अप्पेगइया दावद्दवा रुक्खा पत्तिया पुष्फिया जाव उपसोभेमाणा चिट्ठति। सूत्र ७ : "जब जलकणों से स्निग्ध पुरवाई, पछाहीं, बयार या आँधी समुद्र की दिशा से चलती ड र है तथा अनेक दावद्रव के वृक्ष टूट जाते हैं, पत्ते सड़ जाते हैं और पीले पत्तों, फूलों और फलों के 5 5 झड़ जाने से वे ढूंठ जैसे मुरझाए खड़े रहते हैं। पर कुछ वृक्ष अपने फूल-पत्तों सहित शोभित बने टा रहते हैं। 5 PARTIAL ASPIRERS 7. "Long-lived Shramans! When the humid eastern wind, western wind, a breeze, or a gale blows from the direction of the sea many of these trees fall down. The leaves of many trees decay; they shed their yellow leaves, flowers and fruits and, look like dried stumps. However, some of these Davadravel trees remain un-effected. 15 CHAPTER-11 : THE DAVADRAV (57) AAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र (५८) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र 1 15 सूत्र ८ : एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पव्वइए समाणे बहूण | र अण्णउत्थियाणं, बहूणं गिहत्थाणं सम्मं सहइ, बहूणं समणाणं, बहूणं समणीणं, बहूणं सावयाणं, 7 5 बहूणं सावियाणं नो सम्मं सहइ, एस णं मए पुरिसे देसाराहए पण्णत्ते। 5 सूत्र ८ : “उसी प्रकार हे आयुष्मान् श्रमणो ! जो साधु-साध्वी दीक्षा लेने के बाद बहुत से अन्य ट 5 तीर्थकों व गृहस्थों के प्रतिकूल वचनों को तो सहन करलेता है और बहुत से साधु-साध्वियों तथा डी र श्रावक-श्राविकाओं के प्रतिकूल वचनों को नहीं सह पाता, ऐसे पुरुष को मैंने देश-आराधक कहा है। टे $ 8. “Similarly, Long-lived Shramans! those of our ascetics who, after S R getting initiated, fully tolerate the criticism by ascetics and laity of other , 5 schools and remain equanimous, but fail to do so in case of criticism by other 15 ascetics and laity of our school I call partial aspirers. र सूत्र ९ : समणाउसो ! जया णं नो दीविच्चगा णो सामुद्दगा ईसिं पुरेवाया पच्छावाया जाव । 15 महावाया वायंति, तए णं सब्वे दावद्दवा रुक्खा झोडा जाव मिलायमाणा मिलायमाणा चिट्ठति। दी र सूत्र ९ : “आयुष्मान् श्रमणों ! जब द्वीप की ओर या समुद्र की ओर किसी भी प्रकार की कोई 1 15 भी वायु नहीं बहती, तब समस्त दावद्रव वृक्ष मुरझाये हुए जीर्ण सरीखे तथा ढूंठ जैसे हो जाते हैं। ड र 9. “Long-lived Shramans! When no wind of any type blows either towards ] the island or towards the sea all the Davadrav trees become drooped and look 15 like old bare stumps. 15 सर्व-विराधक र सूत्र १0 : एवामेव समणाउसो ! जाव पव्वइए समाणे बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं ट 15 सावयाणं बहूणं सावियाणं बहूणं अन्नउत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं नो सम्मं सहइ, एस णं मए ड र पुरिसे सव्वविराहए पण्णत्ते। र सूत्र १० : "उसी प्रकार हे आयुष्मान् श्रमणो ! जो साधु-साध्वी दीक्षा लेने के बाद किसी के 5 र भी (विस्तार सूत्र ६ के समान) दुर्वचन को सहन नहीं करता उसे मैंने सर्व विराधक कहा है। 5 ABSOLUTE DECLINERS > 10. "Similarly, Long-lived Shramans! those of our ascetics who, after 9 getting initiated, cannot tolerate any criticism by anyone I call absolute , 5 decliners. सूत्र ११ : समणाउसो ! जया णं दीविच्चगा वि सामुद्दगा वि ईसिं पुरेवाया पच्छावाया जाव 5 वायंति, तदा णं सव्वे दावद्दवा रुक्खा पत्तिया जाव चिट्ठति। 15 (58) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAnnnnnn) Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । रा सब विराधक MANACHAukurtan . Sunandan a SIROHSAASPARAN ide ameeranasinikbimayimenttramar winiora vintrawadeinancy -handa RAMANANEED OMETRIERSPs S MARAutomatolance mate RESTRA ली . . . . : . Thum - सर्व आराधक - UN HIRECRUments Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ R ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग : २) चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED दाव-द्रव वृक्ष का उपनय : सर्वविराधक - सर्व - आराधक चित्र: ५ १. जब द्वीप या समुद्र, किसी भी ओर से किसी प्रकार की वायु नहीं बहती है तब भी समस्त दाव- द्रव वृक्ष मुर्झाये ठूंठ जैसे हो जाते हैं; उसी प्रकार जो साधु-साध्वी किसी के भी दुर्वचन आदि सहन नहीं कर पाते, वे अपने श्रमण-गुणों से हीन होकर उस वृक्ष की भाँति सर्वविराधक कहलाते हैं। २. जब द्वीप की ओर तथा समुद्र की ओर सभी प्रकार की वायु चलती है, तब भी सब वृक्ष अपने फल-फूल आदि से शोभित हरे-भरे रहते हैं । उसी प्रकार जो साधु-साध्वी स्व-तीर्थिक व अन्यतीर्थिक सभी के दुर्वचन आदि सह लेते हैं तथा अपने क्षमा आदि गुणों को धारण किये रहते हैं, वे सर्वआराधक कहे जाते हैं। (ग्यारहवाँ अध्ययन) THE ABSOLUTE ASPIRERS AND THE ABSOLUTE DECLINERS ILLUSTRATION: 5 1. When no wind blows from either side all the Davadrav trees wither. In the same way those ascetics who cannot tolerate any criticism by anyone are absolute decliners. 2. When winds blow from all directions all the Davadrav trees remain healthy. In the same way the ascetics who can tolerate any criticism by anyone are absolute aspirers. (CHAPTER-11) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA (PART-2) OTO BOCABID Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्यारहवाँ अध्ययन : दावद्रव ( ५९ ) सूत्र ११ : “ जब द्वीप की ओर तथा समुद्र की ओर सभी प्रकार की वायु चलती है तब सभी दावद्रव वृक्ष फलों-फूलों से शोभित रहते हैं। 11. “Long-lived Shramans! When all types of winds blow in all directions all the Davadrav trees remain healthy and loaded with flowers and fruits. सर्वाराधक सूत्र १२ : एवामेव समणाउसो ! जे अम्हं पव्वइए समाणे बहूणं समणाणं बहूणं समणीण बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाणं बहूणं अन्नउत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं सम्मं सहइ, एस णं मए पुरिसे सव्वाराहए पण्णत्ते समणाउसो ! एवं खलु गोयमा ! जीवा आराहगा वा विराहगा वा भवति । सूत्र १२ : “हे आयुष्मान् श्रमणो ! उसी प्रकार जो साधु-साध्वी दीक्षा लेने के उपरान्त साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका व अन्यतीर्थिकों आदि सभी के दुर्वचनों को सहन करता है उस पुरुष को मैने सर्वाधक कहा है। “गौतम ! इस प्रकार जीव आराधक अथवा विराधक होते हैं । " ABSOLUTE ASPIRERS 12. “Similarly, Long-lived Shramans! those of our ascetics who, after getting initiated, can tolerate any criticism by anyone I call absolute aspirers. Gautam! This is how a being becomes an aspirer or a decliner." सूत्र १३ : एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं एक्कारसमस्स णायज्झयणस्स अयम पण्णत्ते, त्ति बेमि । सूत्र १३ : हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने ग्यारहवें ज्ञात अध्ययन का यही अर्थ कहा है। ऐसा ही मैंने सुना है, ऐसा ही मैं कहता हूँ । 13. Jambu! This is the text and the meaning of the eleventh chapter of the Jnata Sutra as told by Shraman Bhagavan Mahavir. So I have heard and so I confirm. ॥ एक्कारसमं अज्झयणं समत्तं ॥ ॥ ग्यारहवाँ अध्ययन समाप्त ॥ || END OF THE ELEVENTH CHAPTER || CHAPTER - 11 : THE DAVADRAV যট फ ( 59 ) Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपसंहार र ज्ञाताधर्म कथांग का यह ग्यारहवाँ अध्ययन भी कथा नहीं एक प्राकृतिक उदाहरण है जिसके डा माध्यम से सहिष्णुता और समता के महत्त्व को समझाया है। समता सहन करने की क्षमता पर ड 15 निर्भर करती है और समता के बिना आत्मा का कालुष्य नहीं मिटता या कर्मों का क्षय नहीं होता। दी 15 अतः सहिष्णुता का साधना में महत्त्वपूर्ण स्थान है। देश (आंशिक) आराधक, सर्व आराधक, देश द र विराधक, सर्व विराधक इन चार स्तरों के साथ सहनशीलता को और भी स्पष्ट कर दिया है। UUUUUUUUUUUUU CONCLUSION 5 This eleventh chapter of Jnata Dharma Katha is also not a story but an a 15 example from nature which has been used to explain the importance of a 5 tolerance and equanimity. Equanimity depends on the capacity to tolerate and without equanimity the dirt within the soul cannot be cleansed or < Karmas cannot be shed. Thus tolerance plays a very important role B spiritual endeavour. The degree of tolerance has also been spelled out by 15 dividing it into four levels--partial aspirer, absolute aspirer, partial decliner, and absolute decliner. उपनय गाथा जह दावद्दीवतरुणो एवं साहू जहेह दीविच्चा। वाया तह समणाइयसपक्खवयणाई दुसहाई॥१॥ जह सामुद्दयवाया तहऽण्णतित्थाइ कडुयवयणाई। कुसुमाइसंपया जह सिवमग्गाराहणा तह उ॥२॥ जह कुसुमाइविणासो सिवमग्गविराहणा तहा नेया। जह दीववायुजोगे बहु इड्ढ ईसि य अणिड्ढ ॥३॥ तह साहम्मियवयणाण सहणमाराहणा भवे बहुया। इयराणमसहणे पुण सिवमग्गविराहणा थोवा ॥४॥ जह जलहिवायजोगे थेविड्ढ बहुयरा अणिड्ढओ। तह परपक्खक्खमणे आराहणमीपि बहु इयरं ॥५॥ 660) JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SŪTRA AnnnnnnrAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 卐ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण - ग्यारहवाँ अध्ययन : दावद्रव (६१) दा जह उभयवाउविरहे सव्वा तरुसंपया विणट्ठ त्ति। अनिमित्तोभयमच्छररूवेण विराहण तह य॥६॥ जह उभयवायुजोगे सव्वसमिड्ढी वणस्स संजाया। तह उभयवयणसहणे सिवमग्गाराहण पुण्णा ॥७॥ ता पुण्णसमणधम्माराहणचित्तो सया महासत्तो। सव्वेण वि कीरंतं सहेज्ज सव्वं पि पडिकूलं ॥८॥ 5 जैसे दावद्रव जाति के वृक्ष हैं वैसे साधु को समझना चाहिए। द्वीप सम्बन्धी वायु के समान द र अपने पक्ष के श्रमणों के दुस्सह वचन समझने चाहिए॥१॥ 15 जैसे समुद्री पवन है वैसे अन्य तीर्थकों (दूसरे मतावलम्बी) के कटु वचनों को समझना चाहिए। टा र वृक्षों की पुष्प आदि सम्पत्ति मोक्ष मार्ग की आराधना के समान है।।२।। इस सम्पत्ति का अभाव है मोक्ष मार्ग की विराधना। जैसे द्वीप सम्बन्धी वायु के सुप्रभाव से दा र समृद्धि अधिक और असमृद्धि कम होती है।॥३॥ __ वैसे ही साधर्मिकों के दुर्वचनों को सहन करने से बहुत आराधना होती है किन्तु अन्य-धार्मिकों द र के दुर्वचनों को सहन न करने से किंचित् विराधना भी होती है॥४॥ र जैसे सामुद्रिक वायु का संयोग मिलने पर किंचित् समृद्धि और अधिक असमृद्धि होती है वैसे ड र ही परपक्ष के वचन सहने से थोड़ी आराधना होती है और साधर्मिकों के वचन न सहने से 15 विराधना अधिक होती है॥५॥ र जैसे दोनों प्रकार के पवन के अभाव में पेड़ों की समस्त सम्पदा नष्ट हो जाती है वैसे ही बिना के कारण दोनों के प्रति मत्सरता होने से सर्व-विराधना होती है।॥६॥ __जैसे दोनों प्रकार के पवन के योग से पेड़ों की समस्त सम्पदा फलती-फूलती है वैसे ही दोनों 5 पक्षों के प्रति सहनशीलता रखने से सर्व-आराधना होती है॥७॥ 5 अतः जिसके मन में श्रमण धर्म की पूर्ण आराधना करने की इच्छा है वह सभी के प्रतिकूल टा र व्यवहार के प्रति सहनशील बना रहे॥८॥ .) | THE MESSAGE The Davadray trees are the ascetics. The wind blowing from the island is the criticism by the ascetics of the same school. (1) ज्ण्ण्ण्ण्ण्ण् 15 CHAPTER-11 : THE DAVADRAV (61) Snnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 55 ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र The wind blowing from the sea is the criticism by ascetics of other schools. The richness of the trees, including flowers, is the intensity of spiritual endeavour targeted at liberation. (2) ( ૧૨ ) The absence of the richness of the trees is the decline in the intensity of spiritual endeavour. As under the influence of the wind blowing from the island there is more enhancement and less decline in richness. (3) Similarly by tolerating criticism by people from the same school and not tolerating criticism by people from other schools there is more enhancement and less decline in the intensity of spiritual endeavour. (4) As under the influence of the wind blowing from the sea there is less enhancement and more decline in richness, in the same way by tolerating criticism by people from other schools and not tolerating criticism by people from the same school there is less enhancement and more decline in the intensity of spiritual endeavour. (5) As in the absence of wind from both the direction the richness of the trees is completely destroyed, similarly the presence of the feeling of jealousy for all for no apparent reason causes an absolute decline in the intensity of spiritual endeavour. (6) As in presence of wind from both directions the richness of the trees is fully enhanced, similarly tolerance for all causes absolute enhancement in the intensity of spiritual endeavour. (7) So, one desirous of absolutely sincere practice of the Shraman Dharma should have tolerance for any or all criticism and adverse behaviour. (8) (62) H JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 बारहवाँ अध्ययन : उदक ज्ञात : आमुख 卐UUUUUUUUUUUUUUUUUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् शीर्षक-उदए-उदगे-उदक-पानी। प्रदूषण अथवा गुण परिवर्तन का सबसे व्यापक उदाहरण है पानी। इस दा 15 उदाहरण के माध्यम से वस्तु की निरन्तर परिवर्तनशीलता को दर्शाकर इस अध्ययन में यह संकेत दिया है कि SI 12 वस्तु को समझने-स्वीकारने से पूर्व उसके गुण-स्वभाव तथा परिवर्तन का सूक्ष्म निरीक्षण करना चाहिए। निरन्तर E परिवर्तनशीलता को आत्मसात करना राग-द्वेष से बचने का प्रभावी उपाय है। एक जटिल विषय को खाई के जल टा 15 जैसे व्यापक उदाहरण से सहज बोध-गम्य बना दिया है इस अध्ययन में। र कथासार-चम्पानगरी में राजा जितशत्रु राज्य करता था। उसके मंत्री का नाम सुबुद्धि था और वह तत्त्वज्ञ 15 श्रमणोपासक था। एक बार बहुत स्वादिष्ट भोजन करने के बाद राजा ने उस भोजन की बहुत प्रशंसा की। अन्य द सभी उपस्थित जनों ने राजा का अनुमोदन किया किन्तु सुबुद्धि ने कहा कि इसमें उसे कोई आश्चर्यजनक बात नहीं की र लगी। संसार में सुन्दर लगती वस्तुएँ भी खराब हो जाती हैं और खराब लगने वाली वस्तुएँ भी अच्छी लगने लगती र हैं, यह तो वस्तु का परिवर्तनशील स्वभाव है। राजा सुबुद्धि मंत्री के इस व्यवहार से संतुष्ट नहीं हुआ। २ चम्पानगरी के बाहर एक खाई थी जिसका जल अत्यन्त प्रदूषित तथा दुर्गन्धपूर्ण था। एक बार राजा उसड र दुर्गन्ध भरे पानी वाली खाई के पास से निकला। वह वहाँ से शीघ्र ही आगे बढ़ गया और तिलमिला कर उस गंदे 15 पानी की निंदा करने लगा। इस बार भी अन्य सब ने राजा का अनुमोदन किया पर सुबुद्धि ने वही बात दोहराई। 15 राजा सुबुद्धि के कथन से क्षुब्ध होकर बोला कि उसे यथार्थ के विषय में मिथ्या प्रचार नहीं करना चाहिये। र सुबुद्धि ने मन ही मन सोचा कि किसी उपाय से राजा को जिन-प्रतिबोधित धर्म की बातें समझानी चाहिये। ट 15 यह सोचकर उसने खाई से गंदा पानी निकलवाकर साफ करके छनवाकर घड़ों में भरवाया। सात दिन बाद उसे द ३ पुनः नए घडों में छनवाकर राख आदि मिलाकर रख दिया। इस प्रकार सात-सात दिन के अन्तर से सात बार शद्ध र करवाने से वह पानी पीने योग्य निर्मल बन गया। फिर उसे सुगंध युक्त कर के राजा के जलसेवक को दिया और 15 कहा कि भोजन के बाद राजा को यही जल परोसा जाय। र भोजन के पश्चात् जब राजा ने वह पानी पीया तो उसके स्वाद तथा सुगंध से वह आनन्दित हो गया। उसने S र सेवक से पूछा कि यह पानी कहाँ से आया? सेवक ने जब बताया कि सुबुद्धि मंत्री ने भिजवाया है तो राजा ने 2 15 सुबुद्धि को बुलाकर पूछा। सुबुद्धि ने बताया कि यह जल तो वही खाई का गन्दा पानी था। राजा को विश्वास नहीं ट २ हुआ और उसने मंत्री द्वारा बताये तरीके से स्वयं पानी शुद्ध करवाकर जाँच की। मंत्री की बात सत्य सिद्ध होने ६ र पर उसे बुलवाकर जिन-धर्म का श्रवण किया। फिर राजा श्रमणोपासक बन गया। अन्ततः उसने मंत्री सहित दीक्षा र ग्रहण की और साधना कर मोक्ष प्राप्त किया। onnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn) CHAPTER-12 : THE WATER GAAAAAAAAAAAAAAAmarrrrrrrrrrrrAAR Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TWELFTH CHAPTER : THE WATER : INTRODUCTION T: Title-Udaye-Udage-Udak-water. The most common example of pollution and the change of properties in nature is water. Explaining the ever-changing nature of things with the help of this example, this story shows that before understanding and accepting a thing at a its face value, its properties and possibilities of transformation should be minutely a examined. Accepting the ever-changing nature of things is an effective way of avoiding a feelings of attachment and aversion. This story has made a complex subject easy to a understand with the help of a common example like water. Gist of the story-Jitshatru was the king of Champa. His prime minister was Subuddhi. He was a Shramanopasak having knowledge of the fundamentals. One day after a sumptuous meal the king liberally praised the food. Except for Subuddhi, all the guests present there agreed with the king. Subuddhi said that there was nothing unusual about food. Things that appear good turn bad, and vice versa. Transformation is the basic nature of all things. This behaviour of Subuddhi did not please the king. Outside the city there was a trench filled with stinking and polluted water. One day 5 King Jitshatru passed along that ditch with the stinking water. He rushed away from there s and cursed the dirty water. This time, too all his companions agreed with him, but Subuddhis repeated his earlier statement. King Jitshatru admonished Subuddhi saying that he should I not spread such illusions about the reality. Subuddhi thought that he should somehow try to explain the teachings of the Jina to the king and make him accept the same. He got some dirty water and filtered it into pitchers. After a week he filtered it once again and ash was mixed in it. This process of filtering and adding ash was repeated for seven weeks and the foul water turned pure. He then added some perfumes and gave the water to the man in charge of the king's water-shed with a instructions to serve only this water to the king. When the king drank that water he was extremely satisfied with its taste and smell. The king asked the manager of the water-shed from where he got the water. When he was informed that the water was sent by Subuddhi, the king called him and asked him the same question. Subuddhi informed that the water was from the stinking ditch. The king did not believe Subuddhi and got some more dirty water filtered and cleaned by the same process. When Subuddhi was proved right the king called him and listened to the word of the Jina. He then became a Shramanopasak. At last he renounced the world along with his minister and indulged in spiritual practices to attain liberation, Vurvuruvvvvvvvvuurrrrrrrrrrrr 5 vururururururu ( 64 ) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एU UUUUUUUUUUUUUUUUUUज बारसमं अज्झयणं : उदए बारहवाँ अध्ययन : उदक ज्ञात TWELFTH CHAPTER : UDAYE - THE WATER सूत्र १ : जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं एक्कारसमस्स र नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, बारसमस्स णं नायज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते ? हे सूत्र १ : जम्बू स्वामी ने पूछा. “भंते ! सिद्धि को प्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने ग्यारहवेंड र ज्ञात अध्ययन का पूर्वोक्त अर्थ कहा है तो बारहवें अध्ययन का क्या अर्थ कहा है?' र 1. Jambu Swami inquired, “Bhante! What is the meaning of the twelfth B chapter according to Shraman Bhagavan Mahavir?" र सुधर्मा स्वामी का उत्तर हे सूत्र २ : एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णामं णयरी होत्था। पुण्णभद्दा 15 चेइए। तीसे णं चंपाए णयरीए जियसत्तु णामं राया होत्था। तस्स णं जियसत्तुस्स रन्नो धारिणी डा र नामं देवी होत्था, अहीणा जाव सुरूवा। तस्स णं जियसत्तुस्स रन्नो पुत्ते धारिणीए अत्तए अदीणसत्तु णामं कुमारे जुवराया वि होत्था। सुबुद्धी अमच्चे जाव रज्जधुराचिंतए समणोवासए ड र अहिगयजीवाजीवे। र सूत्र २ : हे जम्बू ! काल के उस भाग में चम्पा नाम की नगरी थी जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था। चम्पाड 5 नगरी के राजा का नाम जितशत्रु था। उसके धारिणी नाम की रानी थी जो पंचेन्द्रिय परिपूर्ण और द र सुन्दर थी। जितशत्रु राजा का पुत्र और धारिणी का आत्मज कुमार अदीनशत्रु वहाँ का युवराज ए था। राजा के मंत्री का नाम सुबुद्धि था जो राज-काज का प्रभारी तथा राज्य का हित चिंतक था ट 15 और जीव-अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता श्रमणोपासक था। 1 SUDHARMA SWAMI NARRATED 15 2. Jambu! During that period of time there was a city named Champa 5 outside which was a Chaitya named Purnabhadra. The name of the king of S 12 Champa was Jitshatru. His ideally beautiful queen was Dharini. The royal 5 couple had a son named Adeenshatru who was the heir to the throne. The al PTER-12 : THE WATER (65) दा FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAnnnnnnnnn Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र (६६) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 prime minister of the king was named Subuddhi. He was loyal to the king || > and looked after all the affairs of the state. Subuddhi was a Shramanopasak SI having knowledge of the fundamentals like soul and matter. 15 सूत्र ३ : तीसे णं चंपाए णयरीए बहिया उत्तरपुरच्छिमेणं एगे फरिहोदए यावि होत्था, डा र मेय-वसा-मंस-रुहिर-पूय-पडल-पोच्चडे मयग-कलेवर-संछण्णे अमणुण्णे वण्णेणं जाव फासेणं। से टा 15 जहानामए अहिमडेइ वा गोमडेइ वा जाव मय-कुहिय-विणट्ट-किमिण-वावण्ण-दुरभिगंध डा र किमिजालाउले, संसत्ते असुइ-वियग-बीभत्थ-दरिसणिज्जे, भवेयारूवे सिया ? णो इणढे समढे, टा 15 एत्तो अणिट्टतराए चेव जाव गंधेण पण्णत्ते। र सूत्र ३ : चम्पा नगरी के बाहर उत्तर-पूर्व दिशा में एक खाई थी जिसका पानी मेद, वसा, रक्त दी 5 और पीव का भंडार था। वह मृत शरीरों से अटा पड़ा था और वर्ण, गंध, रस और स्पर्श से दी 2 घिनौना, अमनोज्ञ था। वह सड़े, गले, कीड़ों से भरे और पशुओं द्वारा खाए गए मृत कलेवर जैसी डी र दुर्गन्ध वाला था, मानो सर्प, गाय आदि जीवों की लाशें सड़कर दुर्गन्ध फैला रही हों। वह कृमियों दी 5 तथा अन्य जीवों से भरा पड़ा था तथा अशुचि, विकृत और बीभत्स दिखाई देता था। क्या सचमुच द 5 वह इतना भयावह दिखता था? नहीं, वह जल तो इससे भी अधिक अनिष्ट बीभत्स दुर्गन्ध आदि डा र वाला बताया गया है। 15 3. In the north eastern direction of the city there was a trench filled with 5 grimy water polluted with marrow, fat, blood, and pus. Cadavers were heaped within this water body making it obnoxious to the senses of touch, र smell, taste, and sight. It was filled with a stench like that of a decomposed, decayed and vermin infested corpse as if the dead bodies of snake, cow, and other animals had decayed emitting a repulsive stench. Covered with a rawling insects it appeared messy, foul, and revolting. Was it really so I ater was obnoxious beyond describing. भोजन की प्रशंसा सूत्र ४ : तए णं से जियसत्तू राया अण्णया कयाइ ण्हाए कयबलिकम्मे जावट 5 अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे बहूहिं राईसर जाव सत्थवाहपभिइहिं सद्धिं भोयणवेलाए र सुहासणवरगए विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं जाव विहरइ, जिमिय-भुत्तुत्तरागए जाव सुईभूए । 5 तंसि विपुलंसि असण जाव जायविम्हए ते बहवे ईसर जाव पभिईए एवं वयासी5 'अहो णं देवाणुप्पिया ! मणुण्णे असणं पाणं खाइमं साइमं वण्णेणं उववेए जाव फासेणं र उववेए अस्सायणिज्जे विस्सायणिज्जे पीणणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे बिंहणिज्जे । र सव्विंदियगाय-पल्हायणिज्जे।' 5 (66) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny UUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUrNALI השחיתיהם Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारहवाँ अध्ययन : उदक ज्ञात ( ६७ ) सूत्र ४ : राजा जितशत्रु एक बार स्नान, बलिकर्म आदि से निवृत्त होकर हल्के, पर बहुमूल्य, आभूषण शरीर पर धारण कर अनेक राजाओं, राजकुमारों, सार्थवाहों (अ-१, सू. १९ के समान) आदि के साथ विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन कर रहा था। भोजन पूरा होने के बाद हाथ मुँह धोकर पूर्णतया स्वच्छ हो उस भोजन के स्वाद से चकित हो वह उपस्थित लोगों से कहने लगा “ अहो देवानुप्रियो ! यह भोजन जो हमने किया, वह उत्तम वर्णादि युक्त था और स्वाद ले लेकर खाने योग्य था। यह भोजन पुष्टिदायक, दीप्तिवर्धक (बल बढ़ाने वाला) दर्पवर्धक, मद-वर्धक, सर्व धातुवर्धक तथा देह तथा इन्द्रियों के लिए आनन्ददायक था । " PRAISE OF THE FOOD 4. One day the king got ready after his bath and other daily chores and adorned himself with light but costly ornaments. He then joined numerous princes, kings, and other guests (details as in Ch. 1. para 19 ) in a feast. After eating the sumptuous food and washing his hands and mouth, the king, impressed by the quality of the food, said to the guests "Beloved of gods! The food we ate was of best quality and worth enjoying. It was nourishing, invigorating, satisfying, intoxicating, and vitalizing. It was blissful to all the five senses of the body." सूत्र ५ : तए णं ते बहवे ईसर जाव सत्थवाहपभिइओ जियसत्तुं एवं वयासी - ' तहेव णं सामी ! जं णं तुब्भे वदह। अहो णं इमे मणुण्णे असणं पाणं खाइमं साइमं वण्णेणं उववेए जाव पल्हायणिज्जे ।' ― सूत्र ५ : राजा के इस कथन का वहाँ उपस्थित सभी सार्थवाह आदि उपस्थित अतिथियों ने एक स्वर से समर्थन किया- “स्वामिन् । आप जैसा कहते हैं, वह ठीक है। यह भोजन वास्तव में मनोज्ञ एवं पुष्टिदायक आदि है।” 5. All the guests present there unanimously attested the king's statement, "What you say is true Sire! this food is indeed gourmet and nutritious (etc. as in para 4).” सूत्र ६ : तए णं जितसत्तू सुबुद्धिं अमच्चं एवं वयासी - 'अहो णं सुबुद्धी ! इमे मणुणे असणं पाणं खाइमं साइमं जाव पल्हायणिज्जे । ' तणं सुबुद्धीजियसत्तुस्सेयमहं नो आढाइ, जाव तुसिणीए संचिट्ठा । सूत्र ६ : राजा जितशत्रु ने अपने मंत्री सुबुद्धि को इंगित कर भोजन सम्बन्धी अपने विचार दोहरा - " हे सुबुद्धि ! यह भोजन उत्तम वर्ण, रस आदि से युक्त तथा इन्द्रिय एवं शरीर को आल्हादजनक था ।" इस पर सुबुद्धि ने अपनी सहमति प्रकट नहीं की, वह मौन ही रहा । CHAPTER-12: THE WATER फ्र (67) 4 Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क(६८) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 6. King Jitshatru addressed his minister Subuddhi and repeated his 15 opinion about the food, "Subuddhi! This food was exceptional in taste, ट 5 nutritional value and other qualities and was exclusively enjoyable.” 5 Subuddhi did not attest to this opinion and remained silent. 15 वस्तु स्वभाव का कथन 15 सूत्र ७ : तए णं जियसत्तुणा सुबुद्धी दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे जियसत्तु रायं एवं र वयासी-'नो खलु सामी ! अहं एयंसि मणुण्णंसि असण-पाण-खाइम-साइमंसि केइ विम्हए। एव । खलु सामी ! सुब्भिसद्दा वि पुग्गला दुब्भिसद्दत्ताए परिणमंति, दुब्भिसद्दा वि पोग्गला टी र सुब्भिसद्दत्ताए परिणमंति। सुरूवा वि पोग्गला दुरूवत्ताए परिणमंति, दुरूवा वि पोग्गला ह र सुरूवत्ताए परिणमंति। सुब्मिगंधा वि पोग्गला दुब्भिगंधत्ताए परिणमंति, दुब्भिगंधा वि पोग्गला से 15 सुब्भिगंधत्ताए परिणमंति। सुरसा वि पोग्गला दुरसत्ताए परिणमंति, दुरसा वि पोग्गला सुरसत्ताए ड र परिणमंति। सुहफासा वि पोग्गला दुहफासत्ताए परिणमंति, दुहफासा वि पोग्गला सुहफासत्ताए 15 परिणमंति। . पओग-वीससापरिणया वि य णं सामी ! पोग्गला पण्णत्ता।' सूत्र ७ : राजा जितशत्रु ने जब अपनी बात बार-बार दोहरायी तो सुबुद्धि ने राजा से कहार “स्वामी ! मैं इस स्वादिष्ट भोजन से तनिक भी विस्मित नहीं हूँ। हे स्वामी ! शुभ शब्द वाले पुद्गल ट 15 अशुभ शब्द वाले पुद्गलों में परिवर्तित हो जाते हैं और अशुभ शब्द वाले शुभ शब्द वालों में। ठीक 5 र यही प्रकृति रूप, गंध, रस और स्पर्श के पुद्गलों की है। अर्थात् शुभ रूप, शुभ गन्ध, शुभ रस वाले पुद्गल अशुभ, अनिष्ट, अप्रिय रूप, गंध, रस व स्पर्श वाले पुद्गलों में परिणत हो जाते हैं। से "हे स्वामी ! सभी प्रकार के पुद्गलों में स्वभावतः (विस्मसा तथा जीव की चेष्टा प्रयोग) के SI र फलस्वरूप परिवर्तन होता ही रहता है।" E NATURE OF THINGS 15 7. When King Jitshatru repeated his views again and again Subuddhiç ) said, "Sire! I am hardly impressed by this tasteful food. Know sire! that S molecules with good accoustic quality transform into molecules with bad L accoustic quality, and vice versa. Same is the nature of the molecules of form, a 5 smell, taste, and touch. It means that the molecules with good form, good a 15 smell, good taste, and good touch are also transformed into molecules with l 15 bad, repulsive and obnoxious molecules of form, smell, taste, and touch. ? "Sire! Continued transformation, on their own or due to human ] interference is the basic nature of all molecules (matter)." EUUUUUUUUUUUuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuu 15 (68) JNĀTĀ DHARMA KATHÄNGA SŪTRA FinnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnAAAAAAAAAAA) Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ROTEIDZENANCE www Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग २) चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED उदक- उपनय : स्वादिष्ट भोजन की प्रशंसा चित्र : ६ चम्पानगरी का जितशत्रु राजा एक बार मंत्री, सार्थवाहों आदि के साथ भोजन कर रहा था। भोजन के पश्चात् राजा ने कहा - " अहा ! आज का भोजन कितना स्वादिष्ट और आनन्ददायक था ?” सभी लोगों ने राजा के कथन की पुष्टि की, परन्तु सुबुद्धि मंत्री मौन रहा। राजा ने पूछा - " क्यों मंत्रिवर ! यह भोजन स्वादिष्ट है न ?” मंत्री ने गंभीरतापूर्वक उत्तर दिया- "महाराज ! पुद्गलों का स्वभाव ही ऐसा है, शुभ पुद्गल अशुभ रूप में व अशुभ पुद्गल शुभ रूप वर्ण-गंध आदि में परिवर्तित होते रहते हैं। इसमें राग-द्वेष का कोई कारण नहीं ।" (बारहवाँ अध्ययन ) PRAISE OF TASTY FOOD ILLUSTRATION : 6 Jitshatru, the king of Champa, one day, after a sumptuous meal with his princes, ministers, and merchants, liberally praised the food. Except for Subuddhi, all the guests present there agreed with the king. When the king asked for Subuddhi's opinion he said that there was nothing unusual about it. Things that appear good turn bad and vice versa. Transformation is the basic nature of all things. Therefore it was hardly worth feeling happy or distressed about. (CHAPTER-12) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SUTRA (PART-2) Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क बारहवाँ अध्ययन : उदक ज्ञात ( ६९ ) SI 5 सूत्र ८ : तए णं जियसत्तू सुबुद्धिस्स अमच्चस्स एवमाइक्खमाणस्स एयमद्वं नो आढाइ, नो डा र परियाणइ, तुसिणीए संचिट्ठइ। 5 सूत्र ८ : राजा जितशत्रु ने अमात्य सुबुद्धि के इस कथन का न तो आदर किया और न र अनुमोदन। वह मौन ही रहा। 8. King Jitshatru neither accepted nor attested this statement of ŞI 2 Subuddhi; he remained silent. र खाई का दुर्गन्धित जल 5 सूत्र ९ : तए णं से जियसत्तू अण्णया कयाइ पहाए आसखंधवरगए महया भडचडगर पह- टा र आस-वाहणियाए निज्जायमाणे तस्स फरिहोदगस्स अदूरसामंतेणं वीईवयइ। 5 तए णं जियसत्तू राया तस्स फरिहोदगस्स असुभेणं गंधेणं अभिभूए समाणे सएणं र उत्तरिज्जेण आसगं पिहेइ, एगंतं अवक्कमइ, ते बहवे ईसर जाव पभिइओ एवं वयासी-'अहो णं दे 15 देवाणुप्पिया ! इमे फरिहोदए अमणुण्णे वण्णेणं गंधेणं रसेणं फासेणं। से जहानामए अहिमडे इ SI र वा जाव अमणामतराए चेव गंधेणं पण्णत्ते।' सूत्र ९ : एक बार जितशत्रु राजा स्नानादि करके उत्तम घोड़े पर सवार हो अपने अनेक र सैनिकों व सेवकों के साथ घुड़सवारी के लिए निकला। घूमते-घूमते वह उस खाई के निकट जाट 15 पहुँचा। र वहाँ उस खाई के गंदे पानी से निकली अशुभ-गंध से घबराकर राजा ने अपने उत्तरीय वस्त्र से टी 5 मुँह बँक लिया। एक तरफ जा कर वह अपने साथ आये अन्य राजा, राजकुमार आदि से बोला___“अहो देवानुप्रियो! इस खाई का पानी तो वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से अशुभ है अमनोज्ञ है। र यह तो सादि की मृत देह से भी अधिक दुर्गन्धपूर्ण है।" תתתתתתחתית OUP NKING WATER 9. One day, after his bath (etc. ) King Jitshatru set out for horse riding c with some of his personal staff and cavalry of guards. During his ride he ci came near the above detailed ditch. 5 Hit by the acute repulsive stink emanating from the slimy water in the ci ditch he became sick and covered his nose with his shawl. He rushed away from there and commented to the princes and other guests—“Beloved of gods! S The water of this ditch is foul and repulsive in colour, smell, taste, and touch. 5 Its stench is much more foul than that of animal carcasses." 5 CHAPTER-12 : THE WATER (69) टा SnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnAAAAAI Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - STTTTTTTUVUUVVvuosi R (७०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र टा 15 सूत्र १० : तए णं ते बहवे राईसर जाव सत्थवाहपिभइओ एवं वयासी-तहेव णं तं सामी ! र जं णं तुब्भे वयह, अहो णं इमे फरिहोदए अमणुण्णे वण्णेणं गंधेणं रसेणं फासेणं, से जहानामए डा 15 अहिमडे इ वा जाव अमणामतराए चेव गंधेणं पण्णत्ते। र सूत्र १० : तब राजा के साथियों ने एक स्वर में राजा के कथन का समर्थन किया-"स्वामी ड 15 जैसा आप कहते हैं वैसा ही है। यह खाई का पानी अमनोज्ञ एवं अत्यन्त दुर्गन्धपूर्ण है।" 10. All his companions unanimously attested the kings statement, “What you say is true Sire! the water of this ditch is foul and repulsive (etc. as in र para 9).” र सूत्र ११ : तए णं ते जियसत्तू सुबुद्धिं अमच्चं एवं वयासी-'अहो णं सुबुद्धी ! इमे फरिहोदए 5 अमणुण्णे वण्णेणं से जहानामए अहिमडे इ वा जाव अमणामतराए चेव गंधेणं पण्णत्ते। र तए णं सुबुद्धी अमच्चे जाव तुसिणीए संचिट्ठइ। 15 सूत्र ११ : जितशत्रु ने तब अमात्य सुबुद्धि से वही बात कही-“हे सुबुद्धि ! इस खाई का पानी र वर्ण आदि से अमनोज्ञ, मृतसर्प की गंध से भी अधिक दुर्गन्ध युक्त है। 15 सुबुद्धि ने राजा की इस बात का अनुमोदन नहीं किया। वह चुप ही रहा। 2 11. Jitshatru repeated his statement to Subuddhi, “Subuddhi! The water of this ditch is foul and repulsive in colour, smell, taste, and touch. Its stench is much more foul than that of animal carcasses." 15 Subuddhi did not attest to this opinion and remained silent. सूत्र १२ : तए णं से जियसत्तू राया सुबुद्धिं अमच्चं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-'अहो रणं तं चेव।' 5 तए णं से सुबुद्धी अमच्चे जियसत्तुणा रण्णा दोच्चं पि तच्चं पि एवं वृत्ते समाणे एवं २ वयासी-'नो खलु सामी ! अम्हं एयंसि फरिहोदयंसि केइ विम्हए। एवं खलु सामी ! सुब्भिसद्दा ड 5 वि पोग्गला दुब्भिसद्दत्ताए परिणमंति, तं चेव जाव पओग-वीससापरिणया वि य णं सामी ! 2 र पोग्गला पण्णत्ता। 15 सूत्र १२ : इस पर राजा ने वही बात दो तीन बार फिर कही-अहो सुबुद्धि ! यह पानी कितना 15 अमनोज्ञ है एवं दुर्गन्धयुक्त है। (सूत्र ९ के समान) र राजा के पुनः पुनः वही बात कहने पर सुबुद्धि ने कहा-"स्वामी! मुझे इस खाई के पानी के 5 5 विषय में कोई भी आश्चर्य नहीं है। क्योंकि शुभ पुद्गल अशुभ पुद्गल रूप में परिणत हो जाते हैं 12 और अशुभ पुद्गल शुभ रूप में परिणत हो जाते हैं। मनुष्य के प्रयत्न से और स्वाभाविक रूप में ड ॐ पुद्गलों में यह परिवर्तन होता रहता है।” (विस्तार-पूर्व सू. ७ के समान)। (70) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA Annnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnni Huvururururrrrrrrrrrrrrrrrrruuuuuuuuuuuuuuuuuu site Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ für Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग : २) ORRO 5. चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED - खाई का गन्दा पानी चित्र : ७ ___ एक बार राजा जितशत्रु संध्या के समय सेवकों के साथ नगर के बाहर भ्रमण करने निकला। वहाँ वह गन्दे पानी के नाले (खाई) की तरफ चला गया। गन्दे पानी की दुर्गन्ध से सभी ने नाक-मुँह बँक लिया। राजा ने कहा-“देखो, इस खाई का पानी कितना दुर्गन्धपूर्ण है ?" सभी ने राजा की हाँ में हाँ मिलाई, किन्तु तत्त्वज्ञ मंत्री ने वही उत्तर दिया“महाराज ! पुद्गलों का स्वभाव ही ऐसा है, इसमें राग-द्वेष नहीं करना चाहिए।" (बारहवाँ अध्ययन) THE DIRTY WATER OF THE DITCH ILLUSTRATION : 7 One evening King Jitshatru set out for a ride outside the town along with his ministers and guards. He passed along a ditch with stinking water. The king and his retinue, all covered their faces with their shawls. He rushed away from there and cursed that dirty water. This time also all his companions agreed with him but Subuddhi repeated his earlier statement. King Jitshatru was not happy with the minister's comment but he remained silent. (CHAPTER - 12) go JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA (PART-2) Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फ्रज र बारहवाँ अध्ययन : उदक ज्ञात (७१) 15 12. King Jitshatru repeated his views again and again, "The water of this डा 5 ditch is foul. . . . . (as para 9)." र When King Jitshatru repeated his views again and again Subuddhi said, टा 15 "Sire! I am hardly disturbed by this foul water of the ditch. Know sire! that molecules with good qualities transform into molecules with bad qualities, and vice versa. Continued transformation, on their own or due to human 2 interference is the basic nature of all molecules. (details as in para 7)." ___ सूत्र १३ : तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धिं अमच्चं एवं वयासी-मा णं तुमं देवाणुप्पिया ! डा अप्पाणं च परं च तदुभयं च बहुहिं य असब्भावुब्भावणाहिं मिच्छत्ताभिणिवेसेण य वुग्गाहेमाणे हा 15 वुप्पाएमाणे विहराहि। ___ सूत्र १३ : राजा जितशत्रु ने अमात्य सुबुद्धि से कहा-“देवानुप्रिय ! तुम असत् को सत् रूप में 15 प्रकट करने का मिथ्या अभिनिवेश (दुराग्रह) करके स्वयं तथा दूसरों को भ्रम में मत डालो। दी 15 अनभिज्ञ लोगों को ऐसी सीख मत दो। ___13. King Jitshatru admonished Subuddhi, “Beloved of gods! you should दा 15 refrain from trying to confuse yourself and others by perpetuating your > dogma of presenting a nonexistent concept as existent. You should not spread şi such illusion among ignorant masses." 15 जल का शोधन __ सूत्र १४ : तए णं सुबुद्धिस्स इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था-'अहो णं जितसत्तू दा र संते तच्चे तहिए अवितहे सब्भूते जिणपण्णत्ते भावे णो उवलभइ, तं सेयं खलु मम जियसत्तुस्स 5 रण्णो संताणं तच्चाणं तहियाणं अवितहाणं सब्भूताणं जिणपण्णत्ताणं भावाणं अभिगमणट्ठयाए र एयमढें उवाइणावेत्तए।' __ सूत्र १४ : राजा की बात सुनकर सुबुद्धि को विचार आया-“अहो ! राजा जितशत्रु जिनेन्द्र डा र द्वारा प्ररूपित सत् (विद्यमान) तत्त्व, तथ्य (वास्तविक), सत्य और प्रकट भावों से अनभिज्ञ है तथा ड र अंगीकार नहीं करता। अच्छा होगा कि मैं उसे जिन प्ररूपित ऐसा तत्त्वज्ञान बताऊँ, सत्य का ज्ञान दे 15 कराऊँ और उसे अंगीकार कराऊँ।" WATER PURIFICATION ___14. This rebuke from the king forced Subuddhi to reflect, “King Jitshatru is ignorant about the knowledge of existent fundamental reality, truth, and a concepts as propagated by Jinendra and thus does not accept the same. I should somehow try to explain and make him accept the same." 15 CHAPTER-12 : THE WATER (71) ynnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्र जम 7 (७२) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (1 15 सूत्र १५ : एवं संपेहेइ, संपेहित्ता पच्चइएहिं पुरिसेहिं सद्धिं अंतरावणाओ नवए घडए पडए । र य पगेण्हइ, पगेण्हित्ता संझाकालसमयंसि पविरलमणुस्संसि निसंतपडिनिसंतंसि जेणेव फरिहोदए । 5 तेणेव उवागए, उवागच्छित्ता तं परिहोदगं गेण्हावेइ, गेण्हावित्ता-नवएसु घडएसु गालावेइ, र र गालावित्ता नवएसु घडएसु पक्खिवावेइ पक्खिवावित्ता लंछियमुहिए करावेइ, करावित्ता सत्तरत्तं । र परिवसावेइ, परिवसावित्ता दोच्चं पि नवएसु घडएसु गालावेइ, गालावित्ता नवएसु घडएसुट 15 पक्खिवावेइ, पक्खिवावित्ता सज्जक्खारं पक्खिवावेइ, पक्खिवावित्ता लंछियमुद्दिए करावेइ, डा र करावित्ता सत्तरतं परिवसावेइ, परिवसावित्ता तच्चं पि नवएसु घडएसु जाव संवसावेइ। 15 सूत्र १५ : ऐसे विचार मन में आने पर सुबुद्धि अमात्य ने कुछ विश्वासपात्र जनों को साथ लेकर उस खाई के रास्ते में पड़ती एक कुम्हार की दुकान से कुछ नये कोरे घड़े खरीदे और कपड़ा 5 खरीदा। इसके बाद संन्ध्या के समय, जब लोग अपने घरों में विश्राम करने लगे थे, और मार्ग पर 5 आवागमन कम हो गया था, वह उस खाई के पानी के निकट आया। खाई से पानी निकलवा कर ड उसे नये घड़ों में छनवाया। घड़ों में भरवा कर उन घड़ों के मुँह ढक कर मोहर लगवा दी। सात रात-दिन उन्हें वैसे ही रहने दिया। फिर उस पानी को नये घड़ों में दुबारा छनवाया। घड़ों में भरकर 15 उनमें ताजा राख डलवाई और बन्द करके फिर मोहर लगवादी। सात रात-दिन तक वैसे ही रखने ड र के बाद तीसरी बार फिर वही क्रिया करवा कर फिर सात रात-दिन छोड़ दिया। 15 15. As soon as this idea came to him, Subuddhi took along some reliable ! 15 servants and went to a potter's shop located on the way to that ditch and C bought some fresh pitchers and a length of cloth. In the evening, when most of the people had returned home and the road was almost deserted, he came at the edge of the ditch. He got some dirty water collected and filtered it into 5 the pitchers he had brought. He got the pitchers sealed and left them like 15 that for a week. After a week he got the seals broken and filtered the water once again in new pitchers. Fresh ash was mixed with the water and the pitchers were sealed. After another week he got the same process repeated and left the pitchers like that for another week. सूत्र १६ : एवं खलु एएणं उवाएणं अंतरा गलावेमाणे अंतरा पक्खिवावेमाणे, अंतरा य द र विपरिवसावेमाणे विपरिवसावेमाणे सत्तसत्तराइंदिया विपरिवसावेइ। 15 तए णं से फरिहोदए सत्तमसत्तयंसि परिणममाणंसि उदयरयणे जाव यावि होत्था-अच्छे पत्थे दी र जच्चे तणुए फलिहवण्णाभे वण्णेणं उववेए, गंधेणं उववेए, रसेणं उववेए फासेणं उववेए, डी 5 आसायणिज्जे जाव सव्विंदियगायपल्हायणिज्जे। र सूत्र १६ : इस प्रणाली से बीच-बीच में छनवाकर, कोरे घड़ों में डलवाकर बार-बार सात र दिन-रात वह पानी रखा जाता रहा। UUUUUU 15 (72) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA innnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग : २) CA - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED ESO जलशोधन चित्र : ८ १. सुबुद्धि मंत्री ने अपने सेवकों से गंदे नाले (खाई) का पानी मँगाया। उसे कपड़ों से छान-छानकर घड़ों में भरवाया। २. फिर क्षार (राख) आदि शोधक तत्त्वों से पानी साफ कराया। पुनः घड़ों में छनवाया। इस प्रकार बार-बार जलशोधन की लम्बी प्रक्रिया द्वारा उस पानी को स्वच्छ कर सुगन्धित पदार्थों से एकदम स्वादिष्ट व मनोज्ञ बना दिया। (बारहवाँ अध्ययन) - WATER PURIFICATION ILLUSTRATION : 8 1. Subuddhi sent his servants to the ditch and got some dirty water collected and filtered it into pitchers. 2. After a week he got the water filtered once again and purifiers like ash were mixed in it. This long process of purification was repeated and the foul water turned pure. He than added some perfumes and made the water tasty and pleasant. (CHAPTER - 12) - JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA (PART-2) Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - भण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्य (७३) क बारहवाँ अध्ययन : उदक ज्ञात र इस प्रकार सात सप्ताह के बाद वह खाई का गंदला पानी उदकरत्न (श्रेष्ठ जल) बन गया। वह दी र स्वच्छ, पथ्य, जात्य (उत्तम जाति का) और हल्का हो गया। वह स्फटिक मणि जैसा चमकीला, मन , र को भाने वाली सुगन्ध, रस, स्पर्श और स्वादयुक्त हो गया। सभी इन्द्रियों तथा देह को आनन्द देने । 15 वाला हो गया। 2 16. This process of filtering and adding ash was repeated again and again. 2 5 After seven weeks the foul water turned pure. It became clean, potable, of 15 good quality, and light. It became crystal clear, and likeable in taste, touch S and smell. It became satisfying and pleasant to the body and the senses. Si 5 सूत्र १७ : तए णं सुबुद्धी अमच्चे जेणेव से उदयरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता द] र करयलंसि आसाएइ, आसाइत्ता तं उदयरयणं वण्णेणं उववेयं, गंधेणं उववेयं, रसेणं उववेयं, B फासेणं उववेयं, आसायणिज्जं जाव सव्विंदियगायपल्हायणिज्जं जाणित्ता हट्टतुढे बहूहिंद र उदगसंभारणिज्जेहिं दव्वेहिं संभारेइ, संभारित्ता जियसत्तुस्स रण्णो पाणियघरियं सद्दावेइ, ड सद्दावित्ता एवं वयासी-'तुमं च णं देवाणुप्पिया ! इमं उदगरयणं गेण्हाहि, गेण्हित्ता जियसत्तुस्स रण्णो भोयणवेलाए उवणेज्जासि। र सूत्र १७ : तब सुबुद्धि अमात्य ने उस स्वच्छ जल के पास जा उसे हथेली में लेकर चखा। उसे 15 मनोज्ञ वर्ण, गंध, रस आदि से युक्त पीने योग्य और शरीर व इन्द्रियों को सुखकारी जानकर प्रसन्न र और संतुष्ट हुआ। फिर उसने उस जल को और स्वादिष्ट बनाने वाले द्रव्यों से उसे अधिक र स्वादिष्ट और सुगंधित बनाया। राजा जितशत्रु के जल-गृह के कर्मचारी को बुलवाकर उससे कहा15 “देवानुप्रिय ! तुम यह श्रेष्ठ जल ले जाओ और भोजन करते समय राजा जितशत्रु को पीने के डा रे लिए देना।" 15 17. Minister Subuddhi went near the pitchers, took a handful of water and tasted it. He was contented to find it appealing to the senses, potable, and satisfying and pleasant to the body and the senses. He than got some additives mixed in that water to make it more tasty and fragrant. After all this, he called the caretaker of the king's water-shed and instructed, "Beloved of gods! Take this refined water and when the king takes his meals serve him 5 some of this water." र राजा का आश्चर्य सूत्र १८. तए णं से पाणियघरए सुबुद्धिस्स एयमढे पडिसुणेइ पडिसुणित्ता तं उदयरयणं । 15 गिण्हाइ, गिण्हित्ता जियसत्तुस्स रण्णो भोयणवेलाए उवढेवेइ। तए णं से जियसत्तू राया तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणे जाव विहरइ। תתתתת 15 CHAPTER-12 : THE WATER (73) टा Ennnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn) Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फज्ज‍ ( ७४ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र जिमियभुत्तुत्तराए णं जाव परमसुइभूए तंसि उदयरयणे जायविम्हए ते बहवे राईसर जाव ( एवं वयासी- 'अहो णं देवाणुप्पिया ! इमे उदयरयणे अच्छे जाव सव्विंदियगाय- पल्हायणिज्जे ।' तए णं बहवे राईसर जाव एवं वयासी - 'तहेव णं सामी ! जं णं तुब्भे वयह, जाव एवं चेव' पल्हायणिज्जे ।' सूत्र १८ : जलगृह के कर्मचारी ने सुबुद्धि की बात स्वीकार की और वह श्रेष्ठ जल ले जाकर राजा जितशत्रु को भोजन के समय परोसा । तब जितशत्रु राजा ने श्रेष्ठ स्वादिष्ट भोजन करने के बाद हाथ-मुँह धोकर वह पानी पीया । । पानी का स्वाद चखकर उसे आश्चर्य हुआ। उसने अपने निकट रहे राजा, राजकुमार आदि के सामने कहा - "हे देवानुप्रियो ! यह श्रेष्ठ जल स्वच्छ है । शरीर व इन्द्रियों को आल्हाददायक है । " ( पूर्व सू. १६ के समान ) उपस्थित लोगों ने राजा की बात का एक स्वर में अनुमोदन किया- “हाँ स्वामी, ऐसा ही है । " KING'S SURPRISE 18. The water-shed manager accepted Subuddhi's instructions and accordingly carried away the pitchers filled with water. When King Jitshatru arrived for his meals this same water was served to him. After his meals the king washed his hands and mouth and drank that water. He was surprised at the heavenly taste of that water. He conveyed to the guests around him, "Beloved of gods! This water is of the best quality. It is satisfying and pleasant to the body and the senses. (as para 16). All those present unanimously attested the kings statement, "What you say is true Sire!” सूत्र १९ : तए णं जियसत्तू राया पाणियघरियं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'एस गं तुभे देवाणुप्पिया ! उदयरयणे कओ आसाइए ? तए णं पाणियघरिए जियसत्तुं एवं वयासी - 'एस णं सामी ! मए उदयरयणे सुबुद्धिस्स अंतियाओ आसाइए।' तणं जियसत्तू राया सुबुद्धिं अमच्चं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - 'अहो णं सुबुद्धी ! केणं कारणं अहं तव अणि अकंते अप्पिए अमणुण्णे अमणामे, जेण तुमं मम कल्ला कल्लि भोयणवेलाए इमं उदयरयणं न उवट्टवेसि ? तए णं देवाणुप्पिया ! उदयरयणे कओ उवलद्धे ?' तणं सुबुद्धी जियसत्तुं एवं वयासी - 'एस णं सामी ! से फरिहोदए । ' (74) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारहवाँ अध्ययन : उदक ज्ञात ( ७५ ) तणं से जियसत्तू सुबुद्धिं एवं वयासी - 'केणं कारणेणं सुबुद्धी ! एस से फरिहोदए ?' तणं सुबुद्धी जियसत्तुं एवं वयासी एवं खलु सामी ! तुम्हे तया मम एवमाइक्खमाणस्स एवं भासमाणस्स पण्णवेमाणस्स परूवेमाणस्स एयमहं नो सद्दहह, तए णं मम इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - 'अहो णं जियसत्तू संते जाव भावे नो सद्दहइ, नो पत्तियइ, नो रोएइ, तं सेयं खलु ममं जियसुत्तस्स रण्णो संताणं जाव सब्भूयाण जिणपन्नत्ताणं भावाणं अभिगमणट्टयाए एयमहं उवाइणावेत्तए । एवं संपेहेमि, संपेहित्ता तं चेव जाव पाणियघरियं सद्दावेमि, सद्दावित्ता एवं वदामि - तुमं णं देवाणुप्पिया, उदगरयणं जियसत्तुस्स रन्नो भोयणवेलाए उवणेहि ।' तं एएणं कारणेणं सामी ! एस से फरिहोदए । ' सूत्र १९ : राजा ने जलगृह के कर्मचारी को बुलवाकर पूछा - "देवानुप्रिय ! तुमने यह श्रेष्ठ जल कहाँ से प्राप्त किया ?" कर्मचारी ने उत्तर दिया--"स्वामी ! मैंने यह श्रेष्ठ जल सुबुद्धि अमात्य से प्राप्त किया है।” राजा ने अमात्य सुबुद्धि को बुलाकर कहा - " अहो सुबुद्धि ! क्या बात है कि मैं तुम्हें अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ और अमणाम ( मन के प्रतिकूल ) लगता हूँ जिससे कि तुम भोजन के समय प्रतिदिन यह उत्तम जल मुझे नहीं भेजते ? देवानुप्रिय तुमने यह श्रेष्ठ जल कहाँ से पाया ?" सुबुद्धि ने उत्तर दिया- “स्वामी ! यह उसी खाई का पानी है । " जितशत्रु ने आश्चर्य के साथ कहा - " हे सुबुद्धि ! यह उस खाई का पानी कैसे हो सकता है ?” तब सुबुद्धि ने उत्तर दिया - " स्वामी ! मैंने उस समय आपसे पुद्गलों में होने वाले परिवर्तन परिणमन की बात कही थी पर आपको मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ था । तब मेरे मन में अध्यवसाय, चिन्तन, विचार और मनोगत संकल्प उठा कि राजा जितशत्रु सत्, यथार्थ आदि भावों पर श्रद्धा, प्रतीति (विश्वास) और रुचि ( उस विषय में दिलचस्पी ) नहीं रखते अतः अच्छा हो कि मैं उन्हें जिन प्ररूपित सत्, भूत भावों का रहस्य समझा कर पुद्गल में होने वाले परिवर्तन ) परिणमन को अंगीकार कराऊँ । तदनुसार मैंने खाई के पानी को स्वच्छ कर तैयार किया और आपके जलगृह के कर्मचारी को बुलाकर वह पानी भोजन के समय आपको देने को कहा । अतः यह वही खाई का पानी है । " 19. The king called the manager of the water-shed and asked, “Beloved of gods! Where did you get this pure water?” “Sire! I got this water from minister Subuddhi.” The king called minister Subuddhi and said, "Subuddhi! What is the matter? Am I so disgusting, loathsome, ugly and repulsive to you that you do not send such satisfying pure water to me everyday when I take my meals? Beloved of gods ! Where did you find this water?” CHAPTER-12: THE WATER फ्र For Private Personal Use Only (75) Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- - - URTUNURUTUU प्रज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज न २ (७६) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र | Subuddhi replied, “Sire! This water is from the same ditch." 12 King Jitshatru uttered in surprise, “How can this water be from that 12 ditch?" Subuddhi explained, “Sire! That day I told you about the molecular ) transformation, but you did not believe my statement. So I reflected and decided that as King Jitshatru does not have faith, belief, and interest in the knowledge of existent fundamental reality, truth, and concepts as propagated by Jinendra, I should somehow try to explain and make him accept the same. Accordingly I got the foul water of the ditch filtered and purified. Once it was done I instructed the water-shed manager of your palace to serve this water to you at the time of your meals. Thus, Sire! This water is from the same ditch." र जल-शोधन का प्रत्यक्ष प्रयोग 15 सूत्र २० : तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धिस्स अमच्चस्स एवमाइक्खमाणस्स ४ एयमद्वं नो डा र सद्दहइ, नो पत्तियइ, नो रोएइ, असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोयमाणे अब्भिंतरट्ठाणिज्जे पुरिसेड 15 सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'गच्छह णं तब्भे देवाणुप्पिया ! अंतरावणाओ नवघडए पडए यह र गेण्हह जाव उदगसंभारणिज्जेहिं दव्वेहिं संभारेइ।' ते वि तहेव संभारेंति, संभारित्ता जियसत्तुस्सा र उवणेति। र तए णं जियसत्तू राया तं उदगरयणं करतलंसि आसाएइ, आसायणिज्जं जाव सविदिय-S 5 गायपल्हायणिज्जं जाणित्ता सुबुद्धिं अमच्चं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी- 'सुबुद्धी ! एए णं टा 15 तुमे सच्चा जाव सब्भूआ भावा कओ उवलद्धा ?' 15 तए णं सुबुद्धी जियसत्तूं एवं वयासी-एए णं सामी ! मए संता जाव भावा जिणवयणाओ द र उवलद्धा।' 15 सूत्र २० : राजा जितशत्रु ने अमात्य की इस बात पर विश्वास नहीं किया, प्रतीति नहीं की। 15 विश्वास, प्रतीति और रुचि नहीं होने के कारण उसने अपने निजी सेवकों को बुलाकर कहा-दा र “देवानुप्रियो ! जाओ और खाई के रास्ते में पड़ने वाली कुम्हार की दुकान से नये घड़े तथा नया पए वस्त्र खरीदकर सुबुद्धि द्वारा बताई प्रणाली से खाई के जल को शुद्ध व स्वादिष्ट बनाओ।" सेवकों 15 ने राजाज्ञा का पालन किया और जल के शुद्ध व स्वादिष्ट होने पर राजा के पास ले आये। र राजा जितशत्रु ने वह श्रेष्ठ जल हथेली में लिया और चखा। उसे स्वादिष्ट और आनन्द्रदायक 5 पाकर राजा ने अमात्य सुबुद्धि को बुलाया और कहा-"सुबुद्धि तुमने ये सतादि भाव (वस्तु ट र स्वभाव, पुद्गल परिवर्तन आदि का तत्त्वज्ञान) कहाँ से प्राप्त किया?" 5 सुबुद्धि ने उत्तर दिया-“स्वामी ! मुझे ये भाव जिनवचनों पर श्रद्धा से उपलब्ध हुए हैं।" JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA 2 SAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnni 15 (76) Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ so * *** !! NE KOV YA.. PRWIDOKSING Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग : २) OSD AUDIO चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED जE अशुद्ध जल श्रेष्ठ जल बना : पुद्गल परिणमन चित्र : ९ १. एक बार जब राजा भोजन कर रहा था तो मंत्री सुबुद्धि के सेवक ने वह सुगंधित जल परोसा। जल पीकर राजा ने पूछा-"इतना स्वादिष्ट, मधुर जल कहाँ से आया?" सेवक ने कहा"सुबुद्धि मंत्री ने आपके लिये भेजा है।" २. राजा ने मंत्री से पूछा-"इतना मधुर सुगंधित जल आपने कहाँ से मँगाया ?" मंत्री ने उत्तर दिया-"यह उसी गंदे नाले का जल है ?" राजा के पूछने पर मंत्री ने जलशोधन की प्रक्रिया के विषय में विस्तारपूर्वक बताया। साथ ही मंत्री ने कहा-"अर्हत् दर्शन में यही कहा है-प्रत्येक पदार्थ का स्वभाव परिवर्तनशील है, अतः उनके शुभ-अशुभ परिणमन पर राग-द्वेष नहीं करना चाहिए।' (बारहवाँ अध्ययन) AN EXAMPLE OF THE TRANSFORMATION OF MATTER ILLUSTRATION : 9 ____1. One day after his meals the king was served this purified water. When he drank that water he was surprised at the extremely satisfying taste and smell of the water. He asked the servant, "From where had he gotten the water.” He was informed that "the water was sent by minister Subuddhi." 2. The king asked him, “From where did you get such sweet water?” Subuddhi informed him that “the water was from that stinking ditch." When the king gave him an enquiring look the minister explained in detail about the process of purification and added, "The Arhats have preached that transformation is the basic nature of all matter. Therefore attachment and aversion based on the appearance of things should be avoided." (CHAPTER-12) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA (PART-2) Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न (७७)ST ज्ज UuuuuuuUUU एण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्म 5 बारहवाँ अध्ययन : उदक ज्ञात 3 DEMONSTRATION OF THE PROCESS 15 20. King Jitshatru did not believe a word of what Subuddhi said. Because S of this lack of faith and belief he called his personal servants and instructed, S “Beloved of gods! Go and buy pitchers and cloth from the shop on the road to the ditch and purify the water of that ditch by the process detailed by Subuddhi and make it potable.” The servants did as told and when the water became pure and potable they brought it to the king. The king took that water in his cupped palms and tasted. When he found the water tasty and pleasant he called minister Subuddhi and said, "Subuddhi! From where did you acquire this knowledge of existent fundamental reality, truth, and other such concepts?" . Subuddhi replied, “Sire! I have acquired this knowledge due to my faith in the words of the Jina." __सूत्र २१ : तए णं जियसत्तू सुबुद्धिं एवं वयासी 'इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! तव अंतिए डा र जिणवयणं निसामेत्तए।' 15 तए णं सुबुद्धी जियसत्तुस्स विचित्तं केवलिपन्नत्तं चाउज्जामं धम्म परिकहेइ, तमाइक्खइ, ड जहा जीवा बज्झंति जाव पंच अणुव्वयाई। 5 सूत्र २१ : जितशत्रु ने सुबुद्धि से कहा-“देवानुप्रिय ! मैं तुमसे जिनवचन (जिनभाषित ई र तत्त्वज्ञान) सुनना चाहता हूँ।" तब सुबुद्धि ने राजा जितशत्रु के सामने केवलज्ञानी द्वारा प्ररूपित चतुर्याम रूपी अद्भुत डा र (अनूठे) धर्म का प्रवचन (विवेचन) दिया और बताया कि जीव कर्म-बन्धन कैसे करता है, पाँच । 5 अणुव्रत क्या हैं, आदि। 21. King Jitshatru said, “Beloved of gods! I want to hear from you about SI 2 the words of the Jina." Subuddhi then gave a discourse on the unique four faceted religion & propagated by The Omniscient and explained how a being acquires the dust 5 of karma, what are the five minor vows, and so on. ( राजा श्रावक बना सूत्र २२ : तए णं जियसत्तू सुबुद्धिस्स अंतिए धम्मं सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ठ सुबुद्धिं अमच्चड र एवं वयासी- सद्दहामि णं देवाणुप्पिया ! निग्गंथं पावयणं जाव से जहेयं तुब्भे वयह, तं इच्छामि द रणं तव अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्त सिक्खावइयं जाव उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए।' 5 'अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह।' 15 CHAPTER-12 : THE WATER 'DDDDDDDDDDDDDDDDD ( 77 ) Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज (७८) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डी 5 सूत्र २२ : जितशत्रु राजा ने सुबुद्धि अमात्य का प्रवचन सुना व मन में धारण किया और दी र प्रसन्न व संतुष्ट होकर बोला-"देवानुप्रिय ! मैं निर्ग्रन्थ भाषित धर्म पर श्रद्धा करने लगा हूँ। तुम जोड र कहते हो वह यथार्थ ही है। अतः मैं तुमसे पाँच अणुव्रत तथा सात शिक्षा व्रतों को ग्रहण करने की । 5 अभिलाषा करता हूँ।" सुबुद्धि-“हे देवानुप्रिय ! जिसमें सुख मिले वही करो, उसमें (विलम्ब) बाधा मत दो।" TUUUN 5 THE KING TURNS SHRAVAK 2 22. King Jitshatru attentively listened to the discourse of minister S B Subuddhi and absorbed its message. He became happy and contented and 5 said, “Beloved of gods! I now have faith on the word of the omniscient. What a 5 you say is, indeed, true. As such, now I desire to take the five minor and P seven disciplinary vows under your guidance.” . ___Subuddhi, “Beloved of gods! Do as you please without any delay." २ सूत्र २३ : तए णं से जियसत्तू राया सुबुद्धिस्स अमच्चस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं जाव SI 15 दुवालसविहं सावयधम्म पडिवज्जइ। तए णं जियसत्तू समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे र पडिलाभेमाणे विहरइ। 15 सूत्र २३ : राजा जितशत्रु ने अमात्य सुबुद्धि से पाँच अणुव्रत सहित बारह प्रकार का श्रावक ट र धर्म अंगीकार किया। जितशत्रु श्रावक बन गया और जीव-अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता हो गया। SI ए वह पौषध, श्रमण निर्ग्रन्थों को दानादि सुकृत करता हुआ जीवन बिताने लगा। 2 23. Under the guidance of Subuddhi, King Jitshatru accepted the said S Rtwelve vows of the Shravak Dharma. He became a Shramanopasak with the S 5 knowledge of the fundamentals including soul and matter. He started 5 observing the partial-ascetic vow, serving ascetics, and doing other टा 15 prescribed good deeds. र सूत्र २४ : तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरा जेणेव चंपा णयरी जेणेव पुण्णभद्दचेइए तेणेवट र समोसढे, जियसत्तू राया सुबुद्धी य निग्गच्छइ। सुबुद्धी धम्म सोच्चा जं णवरं जियसत्तू डा IS आपुच्छामि जाव पव्वयामि। अहासुहं देवाणुप्पिया ! र सूत्र २४ : काल के उस भाग में चम्पानगरी के बाहर स्थित पूर्णभद्र चैत्य में एक स्थविर मुनि ड 15 पधारे। राजा जितशत्रु और अमात्य सुबुद्धि उनको वन्दना करने निकले। धर्मोपदेश सुनने के बाद ट | सुबुद्धि ने स्थविरों से कहा-“मैं राजा जितशत्रु से आज्ञा ले लूँ तब दीक्षा लूँगा।" स्थविर मुनि ने दा र उत्तर दिया-“जिसमें सुख मिले वही करो।" 15(78) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA ynnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - AAAAAAAA फUDDDDDDDDDDDDDDDDDDजज 2 बारहवाँ अध्ययन : उदक ज्ञात ( ७९ ) | 24. During that period of time a great ascetic arrived in the Purnabhadra si Chaitya outside Champa city. King Jitshatru and minister Subuddhi went to pay their homage to the ascetic. After the discourse Subuddhi said to the ascetic, “I would like to get initiated after seeking permission from King a Jitshatru.” The ascetic replied, “Do as you please without any delay." ट सूत्र २५ : तए णं सुबुद्धी अमच्चे जेणेव जियसत्तू राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं डी र वयासी-‘एवं खलु सामी ! मए थेराणं अंतिए धम्मे निसंते, से वि य धम्मे इच्छिए पडिच्छिए दो 5 इच्छिय-पडिच्छिए तए णं अहं सामी ! संसारभउव्विग्गे, भीए जम्म-मरणाणं, इच्छामि णं तुब्भेहिं डी अब्भणुनाए समाणे जाव पव्वइत्तए।' 5 तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धिं अमच्चं एवं वयासी-अच्छामु ताव देवाणुप्पिया! कइवयाइंट B वासाइं जाव भुंजमाणा तओ पच्छा एगयओ थेराणं अंतिए मुंडे भवित्ता जाव पव्वइस्सामो। 5 सूत्र २५ : सुबुद्धि अमात्य राजा जितशत्रु के पास गया और बोला-"स्वामी ! मैंने स्थविर मुनि र का उपदेश सुना है और उस धर्म (आचरण) की इच्छा-आकांक्षा मन में उत्पन्न हुई है। हे स्वामी ! द 15 मैं इस अनन्त संसार तथा जन्म-मरण की निरन्तरता के भय से उद्विग्न हो उठा हूँ। आपकी आज्ञा डा र प्राप्त कर मैं स्थविरों के पास दीक्षा लेना चाहता हूँ।" र राजा जितशत्रु ने उत्तर दिया-“देवानुप्रिय ! अभी कुछ वर्षों तक और भोगमय जीवन बिताते डा रहो, उसके बाद हम दोनों ही साथ-साथ मुण्डित हो स्थविरों के पास दीक्षा ले लेंगे। र 25. Minister Subuddhi went to King Jitshatru and said, "Sire! I have ट 15 listened to the discourse of the great ascetic and now I desire to follow the 15 path elaborated by him. Sire! I am disturbed by the fear of the perpetuity of the cycles of rebirth in this world. After getting permission from you I want 2 to get initiated by the great ascetic into the order." 15 King Jitshatru replied, “Beloved of gods! Continue your mundane life for < 5 a few more years. After that we both shall shave our heads and get initiated together." 5 वैराग्योदय तथा प्रव्रज्या 5 सूत्र २६ : तए णं सुबुद्धी अमच्चे जियसत्तुस्स रण्णो एयमÉ पडिसुणेइ। तए णं तस्स डे 5 जियसत्तुस्स रन्नो सुबुद्धिणा सद्धिं विपुलाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं पच्चणुब्भवमाणस्स टा इ दुवालसवासाई वीइकंताई।. २ तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरागमणं, तए णं जियसत्तू धम्म सोच्चा एवं जं नवरं देवाणुप्पिया ! । सुबुद्धिं आमंतेमि, जेट्ठपुत्तं रज्जे ठवेमि, तए णं तुब्भं जाव पव्वयामि। 'अहासुहं देवाणुप्पिया !' । IS CHAPTER-12 : THE WATER (79) Hinnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ STTTTTTTTTTTTTTTUNUTTUU २ (८०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ड 15 तए णं जियसत्तू राया जेणेव सए गिहे (तेणेव) उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुबुद्धिं सद्दावेइ, टा र सद्दावित्ता एवं वयासी-‘एवं खलु मए थेराणं जाव पव्वज्जामि, तुमं णं किं करेसि ?' र तए णं सुबुद्धी जियसत्तुं एवं वयासी-'जाव के अन्ने आहारे वा जाव पव्वयामि।' र सूत्र २६ : सुबुद्धि ने राजा जितशत्रु की यह आज्ञा स्वीकार कर ली। धीरे-धीरे दोनों को 15 मनुष्योचित भोगोपभोग सहित जीवन बिताते बारह वर्ष बीत गये। र काल के उस भाग में वहाँ पुनः स्थविर मुनियों का आगमन हुआ। धर्मोपदेश सुनकर राजा 15 जितशत्रु ने प्रतिबोध पाया और उसने कहा-“देवानुप्रिय ! मैं अमात्य सुबुद्धि को दीक्षा के लिए र आमन्त्रित करूँगा और अपने ज्येष्ठ पुत्र को राज्य देकर आपके पास दीक्षा लूँगा।" स्थविर मुनि ने उत्तर दिया-“देवानुप्रिय ! तुम्हें जिसमें सुख प्राप्त हो वही करो।" र जितशत्रु अपने घर लौटा और सुबुद्धि को बुलवा कर कहा-“मैंने स्थविर मुनि का उपदेश सुनाई र है और दीक्षा की इच्छा रखता हूँ। तुम क्या करोगे?" सुबुद्धि ने उत्तर दिया-“आपके अतिरिक्त 15 मेरा कोई आधार नहीं है और फिर मैं भी संसार के भय से उद्विग्न हूँ-अतः मैं भी दीक्षा लूँगा।" ट [ DETACHMENT AND INITIATION 15 26. Subuddhi accepted the proposal of King Jitshatru. They both continued their normal mundane activities and, one after the other, twelve 2 years passed. 5 During that period of time once again the group of ascetics came. After , 5 listening to the discourse king Jitshatru got inspired and said, “Beloved of ट I shall invite minister Subuddhi to join me and get initiated. This I will d p do after I crown my eldest son as the king." B The great ascetic replied, “Beloved of gods! Do as you please without any 9 5 delay." 15 The king returned to his palace, called Subuddhi and said, “I have been to C the discourse of the ascetic and want to get initiated. What would you like to C 2 do?" Subuddhi replied, “I have no attachment besides you. Also, I too am S plagued by the fear of the cycles of rebirth. As such, I would also like to get 5 initiated." हे सूत्र २७ : तं जइ णं देवाणुप्पिया ! जाव पव्वयह, गच्छह णं देवाणुप्पिया ! जेट्टपुत्तं च डी र कुडुंबे ठावेहि, ठावेत्ता सीयं दुरुहित्ता णं ममं अंतिए जाव पाउब्भवेह। तए णं सुबुद्धी अमच्चे टा 15 सीयं जाव पाउब्भवइ। र तए णं जियसत्तू कोडुबियिपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'गच्छह णं तुब्भेडा 5 देवाणुप्पिया ! अदीणसत्तुस्स कुमारस्स रायाभिसेयं उवट्ठवेह।' जाव अभिसिंचंति, जाव पव्वइए। डी 15 (80) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA SAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA DUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUU Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - एUDDDDDDDDDUUUUUUUUUU कि बारहवाँ अध्ययन ः उदक ज्ञात ( ८१ ) SIL र सूत्र २७ : जितशत्रु ने कहा-“देवानुप्रिय ! तुम्हें दीक्षा लेनी है तो पहले घर जाकर अपने बड़े डा 15 पुत्र को कुटुम्ब का मुखिया बनाओ और फिर पालकी पर बैठ कर मेरे पास लौट आओ।" सुबुद्धि ड र राजा के कथनानुसार कार्य सम्पन्न कर लौट आया। 15 जितशत्रु राजा ने सेवकों को बुलाकर कहा-“देवानुप्रियो ! कुमार अदीनशत्रु के राज्याभिषेक ड र की तैयारी करो।" सेवकों ने राजाज्ञा का पालन किया। राजा ने कुमार का राज्याभिषेक कर ] र सुबुद्धि के साथ दीक्षा ग्रहण कर ली। 15 27. The king said, “Beloved of gods! If you want to get initiated first go S home and make your eldest son the head of the family. After that, ride a palanquin and return to me." Subuddhi followed the instructions and र returned as told. 15 King Jitshatru called his staff and instructed, “Beloved of gods! Make all ç necessary arrangements for the coronation of Prince Adeenshatru.” The 2 servants did as told. After the coronation King Jitshatru got initiated along र with minister Subuddhi. 5 सूत्र २८ : तए णं जियसत्तू एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, बहूणि वासाणि परियायं पाउणित्ता डा र मासियाए संलेहणाए सिद्धे. र तए णं सुबुद्धी एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, बहूणि वासाणि परियायं पाउणित्ता मासियार डी र संलेहणाए सिद्धे। 5 सूत्र २८ : दीक्षा के बाद मुनि जितशत्रु तथा मुनि सुबुद्धि ने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और ड र अनेक वर्षों तक मुनि जीवन बिताने के बाद एक महीने की संलेखना पालन कर सिद्धि प्राप्त की। 115 28. After the Diksha ascetics Jitshatru and Subuddhi studied the eleven anons and for many years followed the disciplined ascetic life. In the end they si observed the ultimate vow of one month duration and attained liberation. 5 सूत्र २९. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं बारसमस्स णायज्झयणस्स अयमढे ट 15 पन्नत्ते, त्ति बेमि। E सूत्र २९ : हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने बारहवें ज्ञाता अध्ययन का यह अर्थ कहा है। ट 15 मैंने ऐसा ही सुना है, ऐसा ही मैं कहता हूँ। र 29. Jambu! This is the text and the meaning of the twelfth chapter of the P Jnata Sutra as told by Shraman Bhagavan Mahavir. So I have heard, so I 5 confirm. ॥ बारसमं अज्झयणं समत्तं ॥ ॥ बारहवाँ अध्ययन समाप्त ॥ JJ END OF THE TWELFTH CHAPTER 1). Jururrrrrrrrrr K CHAPTER-12 : THE WATER (81) टा Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Turva उपसंहार - UUUUUT - ज्ञाता धर्मकथासूत्र की यह बारहवीं कथा पदार्थ के वास्तविक रूप का दिग्दर्शन कराती है तथा दा र उस प्रणाली से परिचय कराती है जिससे वह वास्तविक रूप समझा जा सके। दुर्गन्धपूर्ण तथा स्वच्छ | 15 जल का उदाहरण प्रस्तुत कर एकान्तिक दृष्टिकोण की तुलना में अनेकान्तिक दृष्टिकोण की महत्ता दी र को पुष्ट किया है। इन सभी बातों से पदार्थ का परिवर्तनशील स्वभाव सहज ही समझ में आता है 5 र और परिवर्तनशील पदार्थ की एक स्थिति के प्रति मोह जनित आग्रह को त्यागने की भूमिका बनती टा 15 है। राग-द्वेष पर विजय पाने की दिशा में यह आवश्यक चरण इस कथा से गहन चिन्तन या चर्चा दा र के बिना सुगमता से बोधगम्य बन पड़ा है। CONCLUSION This twelfth story of Jnata Dharma Katha reveals the true nature of matter and the process by which that can be understood. Giving the 115 example of polluted and pure water the importance of relativity of truth as c compared to the singularity of truth has been emphasized. All this makes cl the ever-changing nature of matter very easy to understand. This paves Bway for emerging out of the prejudice caused by fondness for a particular state or form of matter. To understand this essential step towards 5 victory over attachment and aversion has been made so very simple with the 5 help of this story that there is hardly any need for profound discussion or 5 contemplation. उपनय गाथा मिच्छत्तमोहियमणा पावपसत्ता वि पाणिणो विगुणा। फरिहोदगं वा गुणिणो हवंति वरगुरुपसायाओ॥१॥ __ जिनका मन मिथ्यात्व के कारण मूढ़ बना हुआ है, जो पापों में अत्यन्त लिप्त हैं और गुणों से दा र शून्य हैं वे प्राणी भी श्रेष्ठ गुरु का प्रसाद पाकर गुणवान बन जाते हैं, जैसे खाई का गन्दा पानी डा ( शुद्ध व श्रेष्ठ जल बन गया॥१॥ UUUUUU 15 (82) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 बारहवाँ अध्ययन : उदक ज्ञात ( ८३ ) SIL THE MESSAGE Even he whose mind is numbed by illusion, and who is deeply involved in 5 sinful activities, and devoid of virtues, is made virtuous by the blessings of 15 an accomplished Guru, in the same way the polluted water of the ditch was 15 made pure and good quality water. (1) परिशिष्ट चातुर्याम धर्म-चार महाव्रत वाला धर्म। भगवान पार्श्वनाथ के समय में चातुर्याम धर्म प्रचारित था। इसके र अंतर्गत चार महाव्रत थे-अहिंसा, सत्य, अस्तेय तथा अपरिग्रह। इसमें परिग्रह के त्याग में स्त्री व परिवार का त्याग टा 15 स्वाभाविक रूप से सम्मिलित है। भगवान महावीर ने अपरिग्रह में रही ब्रह्मचर्य सम्बन्धी अस्पष्टता को दूर करने के दी के लिए ब्रह्मचर्य को पृथक् कर महाव्रत के रूप में स्थापित किया। वह पंचयाम धर्म या पंचमहाव्रत वाला धर्म SI कहलाया। माना जाता है कि प्रथम एवं अन्तिम तीर्थंकर के समय पंच महाव्रत धर्म का प्रचलन रहता है। ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्य APPENDIX 17 Chaturyam Dharma-The four-fold Dharma. During the period of the influence of SI Bhagavan Parshvanath this four fold Dharma was popular. In it were four great vows Ahimsa, truth, non-stealing, and non-possession. Here non-possession naturally included not 2 possessing a wife and family. In order to clear the ambiguity about celibacy, Bhagavan S Mahavir separated it from non-possession and included it as an independent great vow. This new form became known as Panchayam or five fold Dharma, or the Dharma with five great 2 vows. It is believed that this five fold Dharma is prevalent during the periods of influence of S the first and the last Tirthankar of a time cycle. 15 CHAPTER-12 : THE WATER (83) टा FEAAAAAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज ) 1 तेरहवाँ अध्ययन : मंडूक-दईरज्ञात : आमुख । - शीर्षक-मंडुक्क-ददुरे-दर्दुर-मेंढक। मेंढक जैसे अल्पायु वाले छोटे से प्राणी के माध्यम से इस कथा में टा सुविधाओं के प्रति आकर्षण और आसक्ति के कारण आत्मिक अधःपतन का कारण स्पष्ट किया है। साथ ही दा र निर्मल हृदय से दिशा परिवर्तन कैसे अल्पकाल में ही कल्याणकारी हो जाता है यह समझाया है। मेंढक का SI 6 उदाहरण होने से इस अध्ययन का नाम ही मंडुक्क दगुरे प्रसिद्ध है। 5 कथासार-श्रमण भगवान महावीर एक बार राजगृह पधारे थे। उस समय दर्दुर नाम के देव ने आकर उनकी र भक्तिपूर्वक दैविक समृद्धि सहित वन्दना/उपासना की थी। तब गौतम स्वामी ने प्रश्न किया कि उस देव को ऐसी ड ए ऋद्धि कैसे प्राप्त हुई? भगवान ने बताया कि राजगृह नगर में नंद मणियार नाम का एक धनी रहता था। भगवान के पास धर्म र सुनकर वह श्रमणोपासक बन गया था। किन्तु कालान्तर में साधु समागम छूट जाने के कारण वह धीरे-धीरे धर्म र विमुख हो मिथ्यात्वी बन गया। एक बार गर्मी के मौसम में वह पौषधशाला में तेले का व्रत कर रहा था। उस 15 समय प्यास से पीड़ित होने के कारण उसके मन में एक सुन्दर मनोहर बावडी बनवाने का संकल्प उठा। व्रत समाप्त होने पर वह राजा श्रेणिक के पास गया और उनसे आज्ञा प्राप्त कर नगर के बाहर एक उचित स्थान पर द एक सुन्दर बावडी बनवाई और उसके चारों ओर विविध सुविधाओं सहित चार उद्यान भी बनवाए। इन सुविधाओं एका आनन्द लेते अनेक नागरिक नंद की प्रशंसा करते और वह आनन्दित होता। 5 एक बार नंद को महारोगों ने घेर लिया। अनेक उपचारों के बाद भी वह स्वस्थ नहीं हो सका और अन्त में टा र उस बावडी में आसक्ति लिए मृत्यु को प्राप्त हुआ। मृत्यु के बाद वह उसी बावडी में मेंढक के रूप में उत्पन्न हुआ। र वहाँ स्नान करते नागरिकों के मुँह से नंद मणियार की प्रशंसा सुनते-सुनते उसे लगा कि ये बातें उसने पहले भीड 5 कभी सुनी हैं। एकाग्र होने पर उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो आया और पूर्व जन्म की सभी बातें याद आ गईं। 5 उसे अहसास हुआ कि धर्म से विमुख हो जाने के कारण उसकी यह दशा हुई है। उसने तत्काल अपनी स्मृति के ट रे अनुरूप धर्म ग्रहण कर लिया और साथ ही बेले-बेले के तप का व्रत भी ले लिया। र उसी समय भगवान महावीर का राजगृह में पुनरागमन हुआ। यह समाचार लोगों की चर्चा से जान नंद मेंढक 5 भी भगवान के दर्शन करने के लिए बावडी से निकल राजमार्ग पर आ गया। वहाँ राजा श्रेणिक भी अपने ट २ प्रतिहारों सहित भगवान के दर्शन हेतु जा रहे थे। तभी नंद मेंढक पर एक घोड़े की टाप पड़ी और उसकी आँते ड र निकल आईं। अन्त समय निकट जान वह धीरे-धीरे एक ओर घिसट गया और वहीं भक्तिपूर्वक प्रभु का स्मरण करने लगा। अंत समय में शुद्ध भावनाओं के कारण वह सौधर्म देवलोक में ऋद्धि सम्पन्न दर्दुर देव के रूप में 5 उत्पन्न हुआ। वहाँ से वह महाविदेह में जन्म लेकर मोक्ष प्राप्त करेगा। UUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUU (84) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA EAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA) Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THIRTEENTH CHAPTER : THE FROG: INTRODUCTION Suuruuruuuurrrrruuuuuuuuuuuuuuuuuuuuu Title--Mandukk-Daddure-Dardur--a frog. With the example of a short lived 5 creature like a frog this story sheds light on one of the causes of spiritual decline-the ) 5 attraction for, and attachment to, mundane comforts. The chapter gets its name from the example it uses-the frog. Gist of the story--Once Shraman Bhagavan Mahavir had come to Rajagriha. At that time a god named Dardur had appeared before him with all his divine grandeur and paid his homage with devotion and reverence. Gautam Swami then asked about how the god had earned all this divine grandeur? Bhagavan said that a rich merchant named Nand Maniyar lived in Rajagriha. After listening to the discourse of Shraman Bhagavan Mahavir he had become a Shramanopasak. 5 But later, due to lack of interaction with ascetics he slowly turned away from the religious C 5 life and lost his virtues. Once during the summer season he was observing a three day fast i in the Paushadhashala. He suffered the pain of thirst and determined to construct a beautiful and attractive pond. After concluding his fast he sought permission from King Shrenik and got a beautiful pond constructed at a suitable place outside the town. On the 5 four sides of this pond he also created four facilities with gardens for public utility. S 5 Many citizens, after enjoying these facilities and the pond, praised Nand who enjoyed and took pride in it. Once Nand was plagued by fatal diseases. Even after all efforts at treatment he could not gain his health. He died taking his infatuation for the pond with him. He reincarnated as a frog in the very same pond. There he heard the praise of Nand Maniyar from the citizens bathing in the pond and felt as if he had heard these words earlier also. He concentrated to refresh his memory and this effort resulted in his acquiring Jatismaran Jnana. He realized that abandoning the path of religion had brought him to his present repugnant state. He > immediately resolved to follow the religious path according to his refreshed memory and took a vow of a series of two day fasts. Shraman Bhagavan Mahavir once again arrived in Rajagriha. Nand frog also heard Ć 5 about his arrival from people visiting the pond. In order to behold the Tirthankar, Nand frog 5 also came out of the pond and on to the highway. At that time King Shrenik was also going C 5 with his guards to pay homage to Shraman Bhagavan Mahavir. The frog was hit by che hoof CI of a horse and its entrails were exposed. Realizing that its end was near the frog dragged 5 itself on one side and started worship of Bhagavan Mahavir. As it breathed its last with purity of feelings and thoughts it reincarnated as a powerful god in the Saudharm C 5 dimension. From there he will re-incarnate in the Mahavideh area and attain liberation. vuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuu S CHAPTER-13 : THE FROG Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FUUUUUUUUUUUUUD) तेरसमं अज्झयणं : मंडुक्क ददुरणायं तेरहवाँ अध्ययन : मंडूक द१रज्ञात THIRTEENTH CHAPTER : MANDUKK DADDURE - THE FROG सूत्र १ : जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं बारसमस्स णायज्झयणस्स अयमढे द र पण्णत्ते, तेरसमस्स णं भंते ! णायज्झयणस्स के अढे पण्णत्ते? 15 सूत्र १ : जम्बू स्वामी ने पूछा-"भन्ते जब श्रमण भगवान महावीर ने बारहवें ज्ञाता अध्ययन र का पूर्वोक्त अर्थ बताया है, तब तेरहवें अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? B 1. Jambu Swami inquired, “Bhante! What is the meaning of the thirteenth 2 15 chapter according to Shraman Bhagavan Mahavir?" 12 सूत्र २ : एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णामं णयरे होत्था। तत्थ णंड 15 रायगिहे णयरे सेणिए णामं राया होत्था। तस्स णं रायगिहस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए द 15 एत्थ णं गुणसिलए नामं चेइए होत्था। 5 सूत्र २ : सुधर्मा स्वामी ने उत्तर दिया-हे जम्बू ! काल के उस भाग में राजगृह नाम का एक 15 नगर था, जहाँ श्रेणिक राजा का राज्य था। राजगृह के बाहर उत्तर-पूर्व दिशा में गुणशील नाम का डा र एक चैत्य था। Jambu! During that period of time there was a city named Rajagriha. 5 King Shrenik ruled over that city. Outside the city in the north-eastern 12 direction there was a Chaitya named Gunasheel Chaitya. 5 सूत्र ३ : तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे चउदसहिं समणसाहस्सीहिं जावट 15 सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे, गामाणुगामं दूइज्जमाणे, सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव डी र रायगिहे णयरे, जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव समोसढे। अहापडिरूवं उग्गहं गिण्हित्ता संजमेण ः 15 तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। परिसा निग्गया। र सूत्र ३ : काल के उस भाग में श्रमण भगवान महावीर चौदह हजार साधुओं आदि सहित एक टा 15 गाँव से दूसरे गाँव में अनुक्रम से विचरते, सुखपूर्वक विहार करते हुए राजगृह के गुणशील चैत्य में से र पधारे। यथायोग्य स्थान की याचना कर वे संयम और तप के अभ्यास में संलग्न हो समय बिताने डा र लगे। उनके वन्दनादि के लिए नागरिकों की परिषद् निकली। 5 3. During that period of time, going from one village to another comfortably, Shraman Bhagavan Mahavir with fourteen thousand ascetic 5 (86) JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SŪTRA Ć Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ou Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग : २) चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED दर्दुरदेव का ऋद्धि-प्रदर्शन चित्र: १० एक बार भगवान महावीर राजगृह के गुणशीलक उद्यान में पधारे। तब सौधर्मकल्प के दर्दुर नामक देव ने भगवान की वन्दना करके अपनी अद्भुत ऋद्धि का प्रदर्शन किया। जैसे - दाहिनी भुजा पसारकर एक साथ सुसज्जित एक सौ आठ देवकुमार प्रकट किये। फिर बायीं भुजा पसारी तो उससे सुसज्जित १०८ देव कुमारियाँ निकलीं। फिर ईहामृग, कुंजर-वृषभ, शशक आदि विविध रूपधारी ४९ प्रकार के वाद्य वादकों की विकुर्वणा की ओर नाना प्रकार की मुद्राएँ बनाकर अद्भुत विचित्र नाट्यकला का प्रदर्शन किया। गणधर गौतम स्वामी द्वारा पूछने पर भगवान ने दर्दुरदेव का पूर्वभव वृत्तान्त सुनाया। (तेरहवाँ अध्ययन ) DISPLAY OF THE GRANDEUR OF GOD DARDUR ILLUSTRATION : 10 Once Shraman Bhagavan Mahavir had come to Rajagriha. At that time a god named Dardur belonging to Saudharmakalp appeared before him with all his divine grandeur to pay him homage. After doing this he displayed his astonishing divine powers before Bhagavan Mahavir. He extended his right arm and 108 divine male dancers materialized. He extended his left arm and 108 divine female dancers materialized. Then he created 49 musicians in the forms of Thamrig, bull, rabbit, etc. with a variety of musical instruments. All these gave a spell-binding dance performance. (CHAPTER -13 ) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA (PART-2) For Private Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८७) हा र तेरहवाँ अध्ययन : मंडूक-द१रज्ञात 5 disciples and others arrived in the Gunasheel Chaitya. Formally asking for a c 5 place of stay, he commenced his practices of inner discipline and penance. A C » delegation of citizens came to attend his discourse. 5 देव का आगमन र सूत्र ४ : तेणं कालेणं तेणं समएणं सोहम्मे कप्पे ददुरवडिंसए विमाणे सभाए सुहम्माए टा र ददुरंसि सीहासणंसि ददुरे देवे चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं, चउहिं अग्गमहिसीहि, तिहिं ड र परिसाहिं एवं जहा सूरियाभो जाव दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणो विहरइ। इमं च णं केवलकप्पं ट र जंबुद्दीवं दीवं विपुलेणं ओहिणा आभोएमाणे आभोएमाणे जाव नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगए जहा ड 5 सूरियाभे। र सूत्र ४ : काल के उस भाग में सौधर्मकल्प में दर्दुरावतंसक, विमान की सुधर्मा सभा में दर्दुर । र नामक सिंहासन पर दर्दुर नामक देव अपने चार हज़ार सामानिक देवों, चार मुख्य रानियों और ट 15 तीन प्रकार की परिषदों के साथ सूर्याभ देव के समान दिव्य भोगोपभोगों का आनन्द लेता हुआ ड र समय व्यतीत कर रहा था। उसने अपने विपुल अवधिज्ञान से जंबूद्वीप को देखा और फिर राजगृह र नगर के गुणशील उद्यान में भगवान महावीर को देखा। वह अपने परिवार सहित भगवान के पास 5 आया और सूर्याभ देव के समान नृत्यादि का प्रदर्शन कर वापस लौट गया। > ARRIVAL OF DEV 4. During that period of time a god named Dardur was sitting on a throne named Dardur in the Sudharma assembly of the Darduravatansak space vehicle in the Saudharm Kalp (a dimension of gods). Surrounded by four thousand vehicle-based gods, four queens, and three types of assemblies heç was enjoying the divine pleasures like the Suryaabh god (for the details about the Suryaabh god and his activities see Raipaseniya Sutra). With his 5 all-enveloping Avadhi Jnana he first saw the Jambu continent and then 5 Shraman Bhagavan Mahavir in the Gunasheel Chaitya in Rajagriha city. He a descended and came near Shraman Bhagavan Mahavir. He performed divine dance and other acts like the Suryaabh god and returned back. 5 गौतम स्वामी की जिज्ञासा र सूत्र ५ : 'भंते' ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवंट र वयासी-'अहो णं भंते ! ददुरे देवे महिड्डिए महज्जुइए महब्बले महायसे महासोक्खे महाणुभागे, डा जए र १. विस्तृत वर्णन के लिए देखिए, रायपसेणियसूत्र में सूर्याभवर्णन। 115 CHAPTER-13 : THE FROG (87) टा Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र ( ८८ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र हा 5 ददुरस्स णं भंते ! देवस्स सा दिव्या देविड्डी दिव्वा देवजुई दिव्वे देवाणुभावे कहिं गया? कहिं डा अणुपविट्ठा?' र 'गोयमा ! सरीरं गया, सरीरं अणुपविट्ठा कूडागारदिटुंतो।' 15 सूत्र ५ : गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर को यथाविधि वन्दना नमस्कार करके पूछार “भंते ! दर्दुर देव महान ऋद्धि, महान द्युति, महान् बल, महान् यश, महान् सुख तथा महान् प्रभाव र के स्वामी हैं। तो हे भंते ! उनकी वह समस्त दिव्य देवऋद्धि कहाँ चली गई ? कहाँ समा गई?" 15 “गौतम ! वह देवऋद्धि शरीर में गई, शरीर में समा गई, कूटागार के दृष्टान्त के समान।''१ பபபபபபபபபப > GAUTAM SWAMI'S QUERY 5 5. After the formal obeisance to Shraman Bhagavan Mahavir Gautam 5 Swami asked, “Bhante! The Dardur god has great wealth, great splendour, 5great power, great fame, great happiness, and great influence at his » command. Then where did all these divine virtues go? Where did they vanish?" 15 "Gautam! All the divine virtues went in his body, vanished into his body 15 like the incident of Kutagar (camouflaged building)." र सूत्र ६ : दद्दुरेणं भंते ! देवेणं सा दिव्वा देविड्डी किण्णा लद्धा जाव अभिसमन्नागया? 15 सूत्र ६ : "भंते ! दर्दुर देव ने वह दिव्य देवऋद्धि किस प्रकार प्राप्त की? वह कैसे उसके समक्ष ड र आई?" 15 6. “Bhante! How did Dardur god acquire those virtues? How did he come 15 across them?” सूत्र ७ : ‘एवं खलु गोयमा ! इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहेवासे रायगिहे नाम नयरे होत्था, 7 15 गुणसीलए चेइए, तस्स णं रायगिहस्स सेणिए नामं राया होत्था। तत्थ णं रायगिहे णंदे णामंड र मणियारसेट्ठी परिवसइ। अड्डे दित्ते जाव अपरिभूए।' 15 सूत्र ७ : गौतम ! इस जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में राजगृह नाम का नगर था जहाँ गुणशील नाम डी र का चैत्य था और श्रेणिक राजा का राज्य था। वहाँ नन्द नाम का एक मणिकार (स्वर्ण आभूषण 15 बनाने वाला) सेठ रहता था। वह तेजस्वी और समृद्धि आदि में किसी से पराभूत होने वाला ट 15 नहीं था। 7. Jambu! In the Bharat area of the Jambu continent there was a city named Rajagriha. King Shrenik ruled over that city. Outside the city in the vvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvv UUUUUN 5 १. कूटागार के लिए अध्याय के अंत में परिशिष्ट देखें 15 (88) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA innnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'तेरहवाँ अध्ययन : मंडूक - दर्दुरज्ञात ( ८९ ) north-eastern direction there was a Chaitya named Gunasheel Chaitya. In the city lived an ornament manufacturer named Nand Manikaar. He was illustrious and second to none in affluence. सूत्र ८ : तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा समोसढे, परिसा निग्गया, सेणिए वि राया निग्गए । तए गंदे से णं मणियारसेट्ठी इमीसे कहाए लट्ठे समाणे व्हाए पायचारेणं जाव पज्जुवास, गंदे धम्मं सोच्चा समणोवासए जाए । तए णं अहं रायगिहाओ पडिणिक्खते बहिया वय - विहारं विहरामि । सूत्र ८ : हे गौतम ! काल के उस भाग में मैं गुणशील चैत्य में आया । वहाँ श्रेणिक राजा ह नागिरकों की परिषद् प्रवचन सुनने निकली। यह सूचना मिलने पर नन्द मणिकार स्नानादि से निवृत्त हो पैदल चलकर आया और उपासना करने लगा । उपदेश सुनकर नन्द श्रमणोपासक बन गया। फिर मैं राजगृह से प्रस्थान कर बाहरी जनपदों में विहार करने लगा। 点 8. Gautam! During that period of time I came to the Gunasheel Chaitya. A delegation of citizens lead by king Shrenik came to attend my discourse. On getting this news Nand Manikaar also took his bath, got ready, walked to the religious assembly, and commenced my worship. After the discourse he became a Shramanopasak. Later I left Rajagriha and resumed my itinerant life. सूत्र ९ : तए णं से णंदे मणियारसेट्ठी अन्नया कयाई असाहुदंसणेण य अपज्जुवासणाए य अणणुसासणाए य असुस्सूसणाए य सम्मत्तपज्जवेहिं परिहायमाणेहिं परिहायमाणेहिं मिच्छत्तपज्जवेहिं परिवढमाणेहिं परिवढमाणेहिं मिच्छत्तं विप्पडिवन्ने जाए यावि होत्था । सूत्र ९ : नन्द मणिकार को उसके बाद साधुओं के दर्शनों का अवसर प्राप्त नहीं हुआ। इससे उपासना और उपदेश का अभाव हो गया और धीरे-धीरे उपदेश सुनने की इच्छा भी समाप्त हो गई। फलस्वरूप उसके भीतर रहे सम्यक्त्व के गुण धीरे-धीरे क्षीण हो गये और मिथ्यात्व बढ़ने लगा । अन्ततः वह पूर्ण मिथ्यात्वी हो गया । 9. After that Nand Manikaar did not get any opportunity to meet ascetics. This resulted in lack of worship as well as attending discourses. Slowly the desire for the same also dulled. Consequently righteousness started fading and falsehood started becoming prominent. At last he became completely fallacious. नन्द की कामना सूत्र १० : तए णं णंदे मणियारसेट्ठी अन्नया गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूलंसि मासंसि अट्टमभत्तं परिगेण्हइ, परिगेण्हित्ता पोसहसालाए जाव विहरइ । CHAPTER - 13 : THE FROG For Private Personal Use Only (89) Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जजजज 5 (९०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 तए णं णंदस्स अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि तण्हाए छुहाए य अभिभूयस्स समाणस्स दे र इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था-'धन्ना णं ते जाव ईसरपभियओ जेसिं णं रायगिहस्स र बहिया बहूओ वावीओ पोक्खरणीओ जाव सरसरपंतियाओ जत्थ णं बहुजणो ण्हाइ य पियइ य 15 पाणियं च संवहति। तं सेयं खलु ममं कल्लं पाउप्पभायाए सेणियं रायं आपुच्छित्ता रायगिहस्सS नयरस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए वेभारपव्वयस्स अदूरसामंते वत्थुपाढगरोइयंसि 15 भूमिभागसि नंदं पोक्खरिणिं खणावेत्तए' त्ति कटु एवं संपेहेइ। र सूत्र १० : एक बार गर्मी के मौसम में ज्येष्ठ महीने में नन्द मणिकार सेठ ने अष्टम भक्त-तेले 15 का तप किया और पौषधशाला में जाकर नियमपूर्वक रहा। 15 जब तीन दिन के उपवास का तप पूर्ण होने को था तब भूख और प्यास की पीड़ा से क्षुब्ध ८ 15 उसके मन में विचार उठा-“वे राजकुमार, श्रेष्ठी आदि धन्य हैं जिनके पास राजगृह नगर के र बाहर अनेक बावड़ियाँ, पुष्करणियाँ, सरोवरों की पंक्तियाँ आदि हैं, जिनमें अनेक लोग स्नान करते टा 15 हैं, जल पीते हैं और जल भरकर ले जाते हैं। मैं भी कल प्रातःकाल श्रेणिक राजा की आज्ञा लेकर डा र राजगृह नगर के बाहर उत्तरपूर्व दिशा में वैभार पर्वत के निकट वास्तु शास्त्र के जानकारों की र सम्मति के अनुसार नंदा पुष्करिणी खुदवाऊँ तो अच्छा होगा।" 15 NAND'S WISH 10. Once during the month of Jyeshth in the summer season Nand Manikaar observed a three day fast as part of a penance and went to live as a partial ascetic in the Paushadh Shala (abode meant for ascetics). On the third day when the practice was in its last lap he was tormented 2 by thirst and hunger and thought, “Blessed are those princes, merchants, 15 and others who own many ponds, pools, streams and other such places where 15 people take their bath, drink water, and collect water to take home. It would S be commendable for me if tomorrow morning I also seek permission from ng Shrenik and dig a lake in the north eastern direction of Rajagriha near 15 the Vibhargiri mountain under the guidance of able architects." र सूत्र ११ : एवं संपेहित्ता कल्लं पाउप्पभायाए जाव पोसहं पारेइ, पारित्ता बहाए कयबलिकम्मेड र मित्तणाइ जाव संपरिवुड़े महत्थं जाव पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव सेणिए राया तेणेवट 15 उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव पाहुडं उवठ्ठवेइ, उवट्ठवित्ता एवं वयासी-'इच्छामि णं सामी ! डा र तुब्भेहिं अब्भणुनाए समाणे रायगिहस्स बहिया जाव खणावेत्तए।' र 'अहासुहं देवाणुप्पिया।' र (90) JNÄTI DHARMA KATHANGA SUTRA Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरहवाँ अध्ययन : मंडूक - दर्दुरज्ञात ( ११ ) सूत्र ११ : दूसरे दिन सूर्योदय के बाद उसने पौषध पारा ( यथाविधि संपूर्ण किया) और स्नान, बलिकर्म आदि कर मित्रों व स्वजनों को साथ लेकर राजा के योग्य बहुमूल्य उपहारों सहित श्रेणिक राजा के पास गया। राजा को उपहार भेंट कर उसने निवेदन किया- “स्वामी ! आपकी अनुमति प्राप्त कर मैं राजगृह नगर के बाहर एक पुष्करिणी खुदवाना चाहता हूँ ।" राजा ने उत्तर दिया- "जिसमें तुम्हें सुख मिले वह करो।" 11. Next morning he ritually concluded his penance and, after taking his bath and getting ready, made arrangements to visit the king. He took along some of his friends and relatives, collected some rich gifts suitable for the king and came to the palace. After offering the gifts he submitted, "Sire! If you grant me permission I want to construct a large pool outside the city." The king replied, "Do as you please." पुष्करिणी निर्माण सूत्र १२ : तए णं णंदे सेणिएणं रण्णा अब्भणुण्णो समाणए हट्ट तुट्ट रायगिहं मज्झमज्झेण निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता वत्थुपाढयरोइयंसि भूमिभागंसि णंदं पोक्खरिणिं खणावि पत्ते यावि था। तए णं सा णंदा पोक्खरिणी अणुपुव्वेणं खणमाणा खणमाणा पोक्खरिणी जाया यावि होत्था चाउक्कोणा, समतीरा, अणुपुव्वसुजाय वप्पसीयलजला, संछण्णपत्त-विस - मुणाला बहुप्पल-पमकुमुद-नलिणी- सुभग-सोगंधिय-पुंडरीय महापुंडरीय सयपत्त-सहस्सपत्त- पफुल्लके सरोववेय परिहत्थ-भमंत-मत्तछप्पय अणेग-सउणगण-मिहुण-वियरिय-सदुन्नइय-महुर-सरनाइया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा । सूत्र १२ : श्रेणिक राजा से आज्ञा प्राप्तकर नन्द मणिकार प्रसन्न व संतुष्ट हुआ। राजगृह नगर के मध्य से होता हुआ वास्तुकारों द्वारा चुने स्थल पर आया और पुष्करिणी की खुदाई का काम आरम्भ करवा दिया। धीरे-धीरे नंदा नाम की वह पुष्करिणी क्रमानुसार समचतुष्कोण अथवा वर्गाकार हो गई। उसके चारों ओर परकोटा बन गया । वह शीतल जल से भर गई । उसका जल पत्तों, तंतुओं और मृणालों से आच्छादित हो गया। विकसित उत्पल, कमल, पद्म (सूर्य विकासी), कुमुद (चन्द्र विकासी), नलिनी, सुभग, सौगंधिक, पुण्डरीक ( श्वेत कमल), महापुण्डरीक, शतपत्र और सहस्रपत्र आदि अनेक जाति के कमल-पुष्पों तथा उनकी केसर से वह शोभित हो गई। परिहत्थ नाम के जल-जन्तुओं, उड़ते हुए मदमत्त भँवरों और अनेक पक्षी - युगलों के उच्च व मधुर स्वर से वह गूँजने लगी। वह पुष्करिणी सबके चित्त को प्रसन्न करने वाली दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हो गई। CHAPTER-13: THE FROG For Private Personal Use Only (91) Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - %D २ ( ९२ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र 5 CONSTRUCTION OF THE POOL 12. Nand Manikaar was pleased and contented to get permission from the king. Passing through the city he went to the location selected by the architects and launched the project. With passage of time the large pool that was named Nand took a square shape. A boundary wall was erected around it. It was filled with cool water. The water surface got covered with leaves, creepers and plankton. Numerous species of lotus and their pollen enhanced its beauty; some of the species being-Utpal, Kamal, Padma, Kumud, Nalini, Subhag, Saugandhik, , Pundareek, Mahapundareek, Shatpatra, and Sahasrapatra. It was filled with echoes of loud but appealing sounds of Parihatth (a marine animal), flying bumble-bees, and a variety of birds. That pool became enchanting, pleasant, exquisite, and ideal for all. र सूत्र १३ : तए णं से णंदे मणियारसेट्ठी णंदाए पोक्खरिणीए चउद्दिसिं चत्तारि वणसंडं र रोवावेइ। तए णं ते वणसंडा अणुपुव्वेणं सारक्खिज्जमाणा य संगोविज्जमाणा य संवड्डियमाणा य । र वणसंडा जाया-किण्हा जाव निकुरंबभूया पत्तिया पुफिया जाव उवसोभेमाणा उवसोभेमाणा 15 चिट्ठति। र सूत्र १३ : नन्द मणिकार ने इसके बाद नंदा पुष्करिणी के चारों ओर चार वनखण्ड (बगीचे) टी 15 लगवाये। उनकी भली प्रकार सुरक्षा, सँभाल तथा संवृद्धि के प्रबन्ध करने से वे वनखण्ड सघन हो डी र गये। वे पत्तों, फूलों आदि से अत्यन्त शोभायमान हो गये। 15 13. Once this was done Nand Manikaar planted four gardens on all the c 15 four sides of the Nanda pool. With adequate protection, care, and nurturing, डा 5 these gardens became lush green. With abundant foliage, flowers, etc. they SI became very beautiful. 15 चित्र-सभा 15 सूत्र १४ : तए णं ते मणियारसेट्टी पुरच्छिमिल्ले वणसंडे एगं महं चित्तसभं कारावेइ, द र अणेगखंभसयसंनिविट्ठ पासादीयं अभिरूवं पडिरूवं। तत्थ णं बहूणि किण्हाणि य जावट र सुकिल्लाणि य कट्टकम्माणि य पोत्थकम्माणि य चित्तकम्माणि य लिप्पकम्माणि यट 15 गंथिम-वेढिम-पूरिम-संघाइमाइं उवदंसिज्जमाणाइं उवदंसिज्जमाणाई चिट्ठति। 5 सूत्र १४ : नन्द मणिकार ने पूर्व दिशा वाले वनखण्ड में एक विशाल चित्रसभा बनवाई। उसमें दी 15 सैंकड़ों खम्भे थे और वह प्रसन्नतादायक, दर्शनीय आदि (सू.१२ के समान) थी। उसमें अनेक कृष्ण, ड 12 नील, रक्त, शुक्ल आदि रंगों से पुती-काठ की सजावट, वस्त्रों की सजावट, चित्रों की सजावट, टे 0 15 (92) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA FAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 产 FARVANDER SUPE Oz 11 . Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकांग सूत्र (भाग : २) BARAO TASHAIR 160AM चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED नन्दन मणिकार द्वारा पुष्करिणी निर्माण चित्र : ११ १. राजगृह निवासी नन्दन मणिकार के मन में एक बार एक सुन्दर पुष्करिणी (बावड़ी) बनाने का संकल्प उठा। विविध प्रकार के उपहार लेकर नन्दन राजा श्रेणिक की सभा में उपस्थित हुआ और कहा-"महाराज ! मुझे नगर में एक सुन्दर पुष्करिणी बनाने की अनुमति प्रदान करें।" २. राजा की अनुमति मिलने पर नन्दन ने एक अतीव विशाल समचतुष्कोण पुष्करिणी बनवाई। पुष्करिणी के चारों कोनों पर चार सुन्दर वनखण्ड बनवाये। जैसे-पूर्व दिशा के वनखण्ड में चित्रसभा, दक्षिण दिशा के वनखण्ड में विशाल भोजनशाला, पश्चिम दिशा में चिकित्साशाला और उत्तर दिशा में अलंकारशाला। सैकड़ों, हजारों नागरिक व यात्री वहाँ आकर ठहरते थे। (तेरहवाँ अध्ययन) THE CONSTRUCTION OF A POOL BY NAND MANIKAR ILLUSTRATION: II ___ 1. A rich merchant named Nand Maniyar lived in Rajagriha. One day he desired to construct a beautiful and attractive pool. He went with rich gifts and sought permission from King Shrenik, “Sire! Please grant me permission to construct a beautiful pool outside the town.” 2. After getting permission from the king Nand got a beautiful square pond constructed. On the four sides of this pond he also created four gardens with facilities: an art gallery in the east, a restaurant in the south, a hospital in the west, and a beauty parlour in the north, Thousands of citizens and travellers came and enjoyed all facilities. (CHAPTER - 13) ORD SMS MADAO ANDA ED JNATA DHARMA KATHANGA SUTRA (PART-2) Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - र तेरहवाँ अध्ययन : मंडूक-द१रज्ञात (९३ ) टा 15 मिट्टी की सजावट, गुंथाई की सजावट, फूलों के गुच्छों की सजावट, धातु-प्रतिमाओं की सजावट तथा मिश्रित सजावट वाली कलाकृतियाँ थी। यह सब कलाकृतियों इतनी मनोरम थीं कि लोग उन्हें ट 15 एक दूसरे को दिखा-दिखा कर चर्चा कर रहे थे। HALL OF ENTERTAINMENT 14. Nand Manikaar constructed a large recreation facility in the eastern garden. It had hundreds of pillars and was pleasing, attractive, exquisite, a and ideal. It was richly decorated with works of art in wood, cloth, canvas, clay, thread, flowers, metal, and composite mediums using full spectrum of colours. These pieces of art were so attractive that the visitors pointed at k them and talked about them. सूत्र १५ : तत्थ णं बहूणि आसणाणि य सयणीयाणि य अत्थुयपच्चत्थुयाई चिट्ठति। तत्थ णंड है बहवे नडा य णट्टा य जाव दिन्नभइभत्तवेयणा तालायरकम्मं करेमाणा विहरंति। दी 5 रायगिहविणिग्गओ एत्थ बहू जणो तेसु पुव्वन्नत्थेसु आसणसयणेसु संनिसन्नो संतुयट्टोय सुणमाणो डा र य पेच्छमाणो य साहेमाणो य सुहंसुहेणं विहरइ। 5 सूत्र १५ : वहाँ पर बैठने सोने के लिए बहुत से आसन और शैय्याएँ सदा बिछे रहते थे। वहाँ डा र अनेक नट-नर्तक विदूषक, गायक आदि कलाकार आजीविका, (भोजन) भत्ता और वेतन पर ट 15 नियुक्त थे। वे अपनी कलाओं का प्रदर्शन कर दर्शकों का मनोरंजन किया करते थे। राजगृह से टा र बाहर सैर के लिए निकले अनेक लोग वहाँ पर आकर आसन और शैय्या ग्रहण कर कथा-वार्ता । र सुनते थे और नाटक आदि देखते थे। वे सब वहाँ की शोभा का आनन्द लेते हुए अपना मनोरंजन टी 15 करते थे। 15. There was an elaborate seating arrangement with chairs and beds for relaxing. A wide range of performing artists like gymnasts, dancers, clowns, 15 singers, etc. were appointed on remuneration, food, or salary. These artists दा entertained the visitors all the time with their performances. People going » out of Rajagriha for excursion came here, chose comfortable seats, and R enjoyed these performances. The exquisite beauty of that place added to their > entertainment. र सूत्र १६ : तए णं णंदे मणियारसेट्ठी दाहिणिल्ले वणसंडे एगं महं महाणससालं कारावेइ, हा 5 अणेगखंभसयसन्निविटुं. जाव पडिरूवं। तत्थ णं बहवे पुरिसा दिन्नभइ-भत्त-वेयणा विपुलं असणं-दी र पाणं खाइमं साइमं उवक्खडेंति, बहूणं समण-माहण-अतिहि-वणीमगाणं परिभाएमाणा र परिभाएमाणा विहरंति। EAAAAAAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn05 G PTER-13 : THE FROG (93) FAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ R (९४) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र 5 सूत्र १६ : नन्द मणिकार ने दक्षिण दिशा वाले उद्यान (वनखण्ड) में एक विशाल भोजनशालाड बनवाई। उसमें भी सैंकड़ों खम्भे थे और वह सुन्दर प्रसन्नतादायक आदि थी। वहाँ भी अनेक र कर्मचारी आजीविका भत्ता, वेतन आदि पर रखे गये थे। वे विपुल अशन-पानादि सामग्री पकाते थेट 15 और अनेक श्रमणों, ब्राह्मणों, अतिथियों, दरिद्रों और भिखारियों को देते रहते थे। र 16. In the southern garden Nand Manikaar constructed a large C restaurant. This also had hundreds of pillars and was pleasing, attractive,ट 15 exquisite, and ideal. There too, a wide range of workers were employed. They cooked large quantities of savoury food and served it to numerous Shramans, » Brahmans, guests and even the destitute and beggars. 15 चिकित्साशाला र सूत्र १७ : तए णं णंदे मणियारसेट्ठी पच्चथिमिल्ले वणसंडे एगं महं तेगिच्छियसालं कारेइटी 15 अणेगखंभसयसन्निविट्ठ जाव पडिरूवं। तत्थ णं बहवे वेज्जा य, वेज्जपुत्ता य, जाणुया य,डा र जाणुय-पुत्ता य, कुसला य कुसलपुत्ता य, दिनभइ-भत्त-वेयणा बहूणं वाहियाणं, गिलाणाण य, 15 रोगियाण य, दुब्बलाण य, तेइच्छं करेमाणा विहरंति। अण्णे य एत्थ बहवे पुरिसाड 12 दिनभइ-भत्त-वेयणा तेसिं बहूणं वाहियाणं य रोगियाणं य, गिलाणाण य, दुब्बलाण या 5 ओसह-भेसज्ज-भत्त-पाणेणं पडियारकम्मं करेमाणा विहरंति। सूत्र १७ : पश्चिम दिशा के वनखण्ड में नन्द मणिकार ने एक विशाल चिकित्साशाला बनवाई । 15 उसका निर्माण भी पूर्व दो की भाँति सुन्दर हुआ था। (सू. १४)। यहाँ अनेक चिकित्सक वेतनादि टा 15 पर नियुक्त किये गये थे-यथा-वैद्य, वैद्यपुत्र (आयुर्वेद स्नातक); ज्ञायक, ज्ञायकपुत्र (स्व-अनुभव के ड के आधार पर चिकित्सा करने वाले); तथा कुशल, कुशलपुत्र (अपने तर्क के आधार पर चिकित्सा टा 5 करने वाले)। वे अनेक चित्त-भ्रमित, पाण्डु रोगी तथा दुर्बल व्यक्तियों की चिकित्सा करते रहते थे। 5 चिकित्साशाला में अन्य अनेक कर्मचारी भी रखे गये थे जो रोगियों के लिए औषध, भेषज, भोजन, डा पानी आदि की व्यवस्था कर उनकी सुश्रूषा किया करते थे। ज्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्U THE HOSPITAL 17. Nand Manikaar constructed a large hospital in the western garden. This was also as beautifully constructed as the other two (as para 14). Many healers were appointed in this hospital; these included senior and junior Vaidyas (qualified Ayurvedic doctors), senior and junior Jnayaks (those who learned and practiced the art of healing through their own experience), and senior and junior Kushals (those who practiced the art of healing purely on the basis of logical deductions). They treated many a patient including mentally sick, anaemic and weak patients. There were other nursing 15 (94) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA AAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny UUUUUUU Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ज्ज तेरहवाँ अध्ययन : : मंडूक - दर्दुरज्ञात ( ९५ ) cleaning and cooking staff as well as pharmacists, chemists and other helpers employed in the hospital to look after all the needs of the patients. सूत्र १८ : तए णं णंदे मणियारसेट्ठी उत्तरिल्ले वणसंडे एगं महं अलंकारियसभं कारेइ, अणेगखंभसयसन्निविठ्ठे जाव पडिरूवं । तत्थ णं बहवे अलंकारियपुरिसा दिन्नभइ भत्त-वेयणा बहूणं समणाण य, अणाहाण य, गिलाणाण य, रोगियाण य, दुब्बलाण य अलंकारियकम्मं करेमाणा कमाणा विहरति । सूत्र १८ : अन्त में नन्द मणिकार ने उत्तर दिशा के वनखण्ड में एक विशाल अलंकार (शरीर की शोभा बढ़ाने का कार्य, आज की भाषा में ब्यूटीपार्लर) सभा बनवाई। इसका निर्माण भी पूर्व वर्णित रूप से हुआ था (सू. १४) । उसमें अनेक अलंकारिक पुरुष ( शरीर का शृंगार आदि कार्य करने वाले) वेतनादि पर नियुक्त किये गये थे। वे सभी प्रकार के रोगी, दुर्बल, अनाथ आदि अतिथियों का अलंकारकर्म करते थे । 18. In the end, Nand Manikaar constructed a huge beauty parlour in the northern garden. This was also beautifully constructed as the earlier ones. Many expert beauticians were employed there. They provided all the required services to the guests, patients, as well as the poor and needy ones. सूत्र १९ : तए णं तीए णंदाए पोक्खरिणीए बहवे सणाहा य, अणाहा य, पंथिया य, पहिया य, करोडिया य, कारिया य, तणाहारा य, पत्ताहारा य, कट्ठाहारा य अप्पेगइया ) हायंति, अप्पेगइया पाणियं पियंति, अप्पेगइया पाणियं संवहंति अप्पेगइया विसज्जियसेयजल्ल-मल्ल-परिस्सम- निद्द-खुप्पिवासा सुहंसुहेणं विहरति । रायगिहविणिग्गओ वि जत्थ बहुजणो, किं ते? जलरमण - विविह-मज्जण - कयलि-लयाघरयकुसुमसत्थरय - अणेगसउणगण-रुयरिभितसंकुलेसु सुहंसुहेणं अभिरममाणो अभिरममाणो विहरइ । सूत्र १९ : नंदा पुष्करिणी में अनेक सनाथ, अनाथ, पथिक, पांथिक, कोरटिका (कावड उठाने वाले), घसियारे, पत्ते उठाने वाले, लकड़हारे आदि आते थे। उनमें से कुछ स्नान करते, कुछ पानी पीते और कुछ पानी भर कर ले जाते थे। कोई शरीर का पसीना, मल, जल्ल, थकान, नींद, भूख, प्यास आदि का निवारण करते थे । क्या राजगृह से आये लोग भी नंदा पुष्करिणी का उपयोग करते थे ? हाँ, वे वहाँ जल से रमण करते थे; विविध प्रकार के स्नान करते थे; कदलीगृहों, लतागृहों, पुष्पशय्या आदि का आनन्द लेते थे; अनेक प्रकार के पक्षियों के मधुर स्वरों से गूँजती उस पुष्करिणी तथा चारों वनखण्डों में क्रीड़ा करते घूमते थे। 19. Many employed, unemployed, passersby, travellers, water carriers, grass cutters, leaf pickers, wood-cutters, and others came to the Nanda lake. CHAPTER-13: THE FROG For Private Personal Use Only (95) Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ UUUUUUU धण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् - 5(९६) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा Some of them took their bath, others drank water and carried it home. Many 5 of them relieved and cleaned themselves, and satisfied their needs of rest, टा 5 sleep, hunger and thirst. Did the people of Rajagriha also use the Nanda lake? Yes, they also came B and enjoyed the water sports, took a variety of baths, entertained themselves 5 using resting places covered with foliage and creepers and provided with flower beds. They entertained themselves moving around that beautiful pool Ş filled with melodious twittering of a variety of birds; and the facilities available in the four gardens. 15 सूत्र २० : तए णं णंदाए पोक्खरिणीए बहुजणो ण्हायमाणो य, पीयमाणो य, पाणियं च ८ र संवहमाणो य अन्नमन्नं एवं वयासी-'धण्णे णं देवाणुप्पिया ! णंदे मणियारसेट्टी, कयत्थे जाव ! | 5 जम्मजीवियफले, जस्स णं इमेयारूवा गंदा पोखरिणी चाउक्कोणा जाव पडिरूवा, जस्स णंद र पुरथिमिल्ले तं चेव सव्वं, चउसु वि वणसंडेसु जाव रायगिहविणिग्गओ जत्थ बहुजणो आसणेसुड 5 य सयणेसु य सन्निसन्नो य संतुयट्टो य पेच्छमाणो य साहेमाणो य सुहंसुहेणं विहरइ, तं धन्ने द 15 कयत्थे कयपुन्ने, कया णं लोया ! सुलद्धे माणुस्सए जम्मजीवियफले नंदस्स मणियारस्स।' 15 तए णं रायगिहे संघाडग जाव बहुजणो अन्नमन्नस्स एयमाइक्खइ-धण्णे णं देवाणुप्पिया! णंदे द २ मणियारे सो चेव गमओ जाव सुहंसुहेण विहरइ।। 15 तए णं णंदे मणियारे बहुजणस्स अंतिए एयमढे सोच्चा हट्टतुढे धाराहयकलंबगं पिव डा र समूससिय-रोमकूवे परं सायासोक्खमणुभवमाणे विहरइ। 5 सूत्र २० : नंदा पुष्करिणी में स्नान करते, पानी पीते और जल भरकर ले जाते अनेक लोग र परस्पर बातें करते थे “हे देवानुप्रिय ! नन्द मणिकार सेठ धन्य है, कृतार्थ है। उसका जीवन सफल 15 है जिसने यह चौकोर और मनोहर नंदा पुष्करिणी और उसके चारों ओर के सुन्दर उद्यान बनाये टा 15 हैं। राजगृह से बाहर निकले अनेक लोग इस स्थान का लाभ उठाते हैं (वर्णन पूर्व सम)। अतः नन्द ड र मणिकार का मनुष्यजन्म तथा जीवन सराहनीय है सफल है।' 15 राजगृह नगर के भीतर शृंगाटक (तिराहे) आदि विभिन्न स्थानों पर भी लोग यही चर्चा करते थे। ई र लोगों के मुँह से अपनी ऐसी प्रशंसा सुनकर नन्द मणिकार प्रसन्न व संतुष्ट हुआ। वर्षा से भीगे ट 15 कदम्ब पुष्प के समान उसका रोम-रोम विकसित हो उठा। वह साताजनित परम सुख का अनुभव ड र करने लगा। 15 20. These visitors of the Nanda pool while indulging in various activities 5 like washing, drinking, and carrying water chatted, “Beloved of gods! Blessed is the merchant Nand Manikaar. His life is purposeful and successful that he (96) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SUTRA Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A VARERO TAXA SWM VEDETRAK TARSASCA 12 316 ROMA in Education International Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग : २) PrasR चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED आसक्ति का फल : मेंढक जन्म चित्र : १२ १. नन्द मणिकार अपने भवन के ऊपरी कक्ष में बैठा लोगों के मुँह से जब अपनी बावड़ी व खुद की प्रशंसा सुनता तो बहुत आनन्दित हो उठता। २. एक बारं नन्द मणिकार बीमार हुआ और धीरे-धीरे वह सोलह महारोगों से ग्रस्त हो गया। उसके मन में अपनी बनाई पुष्करिणी के प्रति बहुत गहरी आसक्ति थी। ३. इसी आसक्ति के वश हुआ प्राण त्यागकर वह उसी पुष्करिणी में एक मेंढकी के गर्भ से मेंढक रूप में जन्म लेता है। ४. वहाँ पर आने-जाने वाले लोगों के मुँह से नन्द मणिकार की प्रशंसा सुनता है। प्रशंसा सुनते हुए उसे अपना पूर्व-जन्म याद आता है। पर एक बार कुछ लोग पुष्करिणी के किनारे बैठे बतिया रहे थे-“आज नगर में भगवान महावीर पधार रहे हैं चलो हम उनके दर्शन कर प्रवचन सुनेंगे।" नन्द जीव मेंढक ने लोगों की यह बात सुनी तो वह भी भगवान महावीर की वन्दना करने के लिए निकल पड़ा। (तेरहवाँ अध्ययन) THE FRUITS OF ATTACHMENT : THE BIRTH AS A FROG ILLUSTRATION: 12 1. Nand Manikar is sitting in an upper floor chamber in his house with a number of guests and enjoying the praise of the pool and himself. 2. Nand is plagued by sixteen terrible diseases. He dies taking his infatuation for the pond with him. 3. As the result of this extreme attachment he reincarnates as a frog in the very same pond. 4. There he hears the praise of Nand from the citizens bathing in the pond and concentrates to refresh his memory. This effort results in his acquiring Jatismaran Jnana. He immediately resolves to follow the religious path. One day some people sitting at the edge of the pool were saying, “Bhagavan Mahavir is in the town, let us go behold him and listen to his discourse." Nand frog heard this and came out of the pond on the highway and proceeded toward the congregation. (CHAPTER-13) ROR JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SÜTRA (PART-2) Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ LIGUDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDU र तेरहवाँ अध्ययन : मंडूक-द१रज्ञात ( ९७ ) 2 3 has constructed this square and beautiful Nanda pool with four gardens around it. People coming out of Rajagriha avail of the facilities provided here 15 (as already detailed). Thus the life and deeds of Nand Manikaar are ] commendable." People in every nook and corner of the city also talked on the same topic. S Nand Manikaar was happy and contented to hear all this praise. Like a Brain drenched Kadamb flower, every single pore of his body became ecstatica 15 with joy. He experienced the intense pleasure derived out of the contentment. र नन्द की रुग्णता र सूत्र २१ : तए णं तस्स नंदस्स मणियारसेट्टिस्स अन्नया कयाई सरीरगंसि सोलस रोगायंका टै 15 पाउब्भूया, तं जहा सासे कासे२ जरे३ दाहे, कुच्छिसूले५ भगंदरे६। अरिसा अजीरए दिट्टि-मुद्धसूले१० अकारए११ ॥१॥ अच्छिवेयणा१२ कन्नवेयणा१३ कंडू १४ दओदरे१५ कोढे १६। तए णं से णंदे मणियारसेट्ठी इमेहिं सोलसहि रोगायंकेहिं अभिभूते समाणे कोडुबियपुरिसेडा र सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! रायगिहे नयरे सिंघाडग जावटी 5 महापहपहेसु महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणा उग्घोसेमाणा एवं वयह-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! र णंदस्स मणियारसेट्टिस्स सरीगंसि सोलस रोगायंका पाउब्भूया, तं जहा-सासे य जाव कोढे। 15 तं जो णं इच्छइ देवाणुप्पिया ! वेज्जो वा वेज्जपुत्तो वा जाणुओ वा जाणुअपुत्तो वा कुसलो | र वा कुसलपुत्तो वा नंदस्स मणियारस्स तेसिं च सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकंटा 15 उवसामेत्तए, तस्स णं देवाणुप्पिया ! नंदे मणियारे विउलं अत्थसंपयाणं दलयइ त्ति कट्ट दोच्चं पिड र तच्चं पि घोसणं घोसेह। घोसित्ता जाव पच्चप्पिणह।' ते वि तहेव पच्चप्पिणंति। 15 सूत्र २१ : कुछ समय पश्चात् एक बार नंद मणिकार सेठ के शरीर में सोलह प्रकार के रोगों की र पीड़ा उत्पन्न हुई। वे रोग इस प्रकार हैं-(१) श्वास, (२) कास-खांसी, (३) ज्वर, (४) दाह-जलन, टी 5 (५) कुक्षिशूल- कांख का शूल, (६) भगंदर, (७) अर्श-बवासीर, (८) अजीर्ण, (९) दृष्टि-शूल, डा 5 (१०) मात्रक शूल-सरदर्द, (११) भोजन में अरुचि, (१२) आँखों की वेदना, (१३) कानों की हा र वेदना, (१४) कंडू-खाज, (१५) दकोदर- जलोदर, और (१६) कोढ। 5 नंद मणिकार सेठ इन सोलह रोगों से पीड़ित होने पर अपने सेवकों को बुलाकर बोला-"हेड र देवानुप्रियो, तुम राजगृह नगर के चौराहों, राजमार्गों आदि पर यह उद्घोषणा करो-- (97) C 15 CHAPTER-13 : THE FROG Snnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DUDUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् VVVVVVAL STUOTTUVUUTTUU र( ९८ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र हा 15 -'हे देवानुप्रियो ! नन्द मणिकार के शरीर में सोलह रोग-आतंक एवं उनकी पीड़ा उत्पन्न हुए डी 12 हैं। जो कोई वैद्य या वैद्य पुत्र आदि (पूर्वसम, सूत्र १७ के समान) उन सोलह रोग-आतंक में से भी र एक का भी शमन कर देगा नन्द मणिकार उसे विपुल धन-सम्पत्ति प्रदान करेगा।' यह घोषणा ट 5 अनेक बार करो, और वापस लौटकर मुझे सूचना दो।" सेवकों ने इस आज्ञा का पालन कर उसे ड र सूचना दी। 2 AILMENT OF NAND 5 21. After some time Nand Manikaar came down with sixteen different ailments. They were (1) asthma, (2) bronchitis, (3) fever, (4) burning sensation, (5) infection in armpits, (6) fistula of the anus, (7) bleeding piles, ? (8) indigestion, (9) Glaucoma, (10) headache, (11) lack of appetite, (12) pain in the eyes, (13) pain in the ears, (14) eczema, (15) dropsy, and (16) leprosy. When he suffered from these ailments he called his servants and 15 instructed, “Beloved of gods! Go and make this announcement at every corner, road, etc. in the city R O Beloved of gods! Nand Manikaar is suffering from the pain of sixteen different ailments. Any Vaidya, (etc. as detailed in para 17) who is able to cure even one of these diseases will be amply and richly rewarded by him.' 2 Make this announcement many times and report back to me.” The B servants did as told and reported back. 5 सूत्र २२ : तए णं रायगिहे णयरे इमेयारूवं घोसणं सोच्चा णिसम्म बहवे वेज्जा यह र वेज्जपुत्ता य जाव कुसलपुत्ता य सत्थकोसहत्थगया य सिलियाहत्थगया य गुलियाहत्थगया य ८ 15 ओसह-भेसज्जहत्थगया य सएहिं सएहिं गेहेहितो निक्खमंति, निक्खमित्ता रायगिहं मझमज्झेणं र जेणेव णंदस्स मणियारसेहिस्स गिहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता णंदस्स मणियारसेडिस्स B सरीरं पासंति, तेसिं रोगायंकाणं नियाणं पुच्छंति, णंदस्स मणियारसेहिस्स बहूहिं उव्वलणेहि य द 15 उव्वट्टणेहि य सिणेहपाणेहि य वमणेहि य विरेयणेहि य सेयणेहि य अवदहणेहि य अवण्हाणेहि ड र व अणुवासणेहि य वत्थिकम्मेहि य निरूहेहि य सिरावेहेहि य तच्छणाहि य पच्छणाहि यट 5 सिरावेढेहि य तप्पणाहि य पुढट वाएहि य छल्लीहि य वल्लीहि य मूलेहि य कंदेहि य पत्तेहि य ड र पुप्फेहि य फलेहि य बीएहि य सिलियाहि य गुलियाहि य ओसहेहि य भेसज्जेहि य इच्छंति तेसिंह र सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसमित्तए। नो चेव णं संचाएंति उवसामेत्तए। र सूत्र २२ : यह घोषणा सुन-समझकर राजगृह नगर के अनेक चिकित्सक (वैद्यादि-सू. १७ के 5 र समान) अपने साथ उपकरणों की पेटी, धार देने की शिला, औषधि की गोलियाँ, औषधियाँ और टा 15 भेषज आदि अपने साथ ले अपने घरों से निकले। नगर के बीच होते हुए वे नन्द के घर आए। ड E (98) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAnnnnnnn Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरहवाँ अध्ययन : : मंडूक - दर्दुरज्ञात ( ९९ ) उन्होंने नंद के शरीर की जाँच की और नंद से रोग के निदान हेतु प्रश्न किये। फिर अनेक प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों से एक-एक कर सभी ने रोगों की चिकित्सा करने का प्रयत्न किया। वे चिकित्सा पद्धतियाँ हैं - ( १ ) उद्बलन ( लेप विशेष), (२) उद्वर्तन ( उबटन), (३) स्नेहपान ( औषधियुक्त घी, तेल आदि पिलाना), (४) वमन, (५) विरेचन, (६) स्वेदन ( पसीना निकालना ), (७) अवदहन (गर्म धातु से दागना ), ( ८ ) अपस्नान ( औषधियुक्त जल से स्नान करना ), (९) अनुवासना (अपान मार्ग द्वारा यंत्र की सहायता से तैलादि पहुँचाना), (१०) वस्तिकर्म (वस्ति द्वारा मल त्याग करवाना), (११) निरूह ( औषधियुक्त तेल द्वारा विस्वेदन करवाना), (१२) शिरावेध (नस द्वारा विकृत रक्त निकालना, (१३) तक्षण ( चमड़ी छीलना), (१४) प्रवक्षण ( चमड़ी काटना ), (१५) शिरावेष्ट (नस पर औषधियुक्त कपड़ा बाँधना ), (१६) तर्पण (चिकना पदार्थ चुपड़ना), (१७) पुटपाक ( आग में पकाई औषधियों का सेवन ), (१८) विभिन्न वनस्पतियों से (छाल, बेल, मूल, कंद, फूल, बीज, घास आदि), तथा (१९) विभिन्न औषधियों से ( गोली, औषधि, भेषज आदि) द्वारा । इन सब प्रयत्नों से वे किसी एक रोग का भी उपचार नहीं कर सके । 22. Hearing and understanding this announcement many healers (as detailed in para 17 ) collected their instrument boxes, honing stones, pills and other medicines, and other accessories and left their homes. They passed through the streets of Rajagriha and came to the residence of Nand Manikaar. They thoroughly examined and questioned the patient. After diagnosis they selected different methods and regimens of treatment and tried to cure the ailments one by one. The methods and processes employed were - (1) Udvalan or application of medicinal pastes, (2) Udvartan or rubbing with medicinal pastes, (3) Snehapan or giving medicated oils, (4) Vaman or emesis, (5) Virechan or purgation, (6) Swedan or perspiring, (7) Avadahan or cauterizing with hot metal, (8) Apasnan or washing with medicated water, (9) Anuvasana or enema of medicated oils, (10) Vastikarma or common enema, (11) Niruha or to cause sweating by applying medicated oil, (12) Shiravedh or bleeding toxic blood by cutting nerve-end, (13) Takshan or scraping of the epidermis, (14) Pravakshan or cutting of the epidermis, (15) Shiraveshta or dressing of the nerve-end, (16) Tarpan or pouring of medicated oils, ( 17 ) Putpaak or use of cooked medicines, (18) use of medicines and other accessories of vegetable origin, and (19) use of other medicines. However, in spite of all these methods of treatment they could not cure even one single ailment. CHAPTER-13: THE FROG For Private Personal Use Only (99) Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०० ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा इनन्द मणिकार की मृत्यु तथा पुनर्जन्म र सूत्र २३ : तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य कुसला य कुसलपुत्ता य जाहे नो संचाएंति तेसिं सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायकं उवसामेत्तए ताहे ट 15 संता तंता जाव परितंता निविण्णा समाणा जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया। 5 तए णं णंदे तेहिं सोलसेहिं रोगायंकेहिं अभिभूए समाणे नंदा पोखरिणीए मुच्छिए तिरिक्खजोणिएहिं निबद्धाउए, बद्धपएसिए अट्टदुहट्टवसट्टे कालमासे कालं किच्चा नंदाए हा B पोक्खरिणीए ददुरीए कुच्छिसि ददुरत्ताए उववन्ने। हे तए णं णंदे ददुरे गब्भाओ विणिम्मुक्के समाणे उम्मुक्कबालभावे विनायपरिणयमित्ते रजोव्वणगमणुपत्ते नंदाए पोक्खरिणीए अभिरममाणे अभिरममाणे विहरइ। हे सूत्र २३ : वे सभी चिकित्सक, वैद्य, वैद्यपुत्र आदि अपने परिश्रम से थक गये तथा एक भीड र रोग ठीक नहीं कर सकने की असफलता से खिन्न और उदास हो अपने-अपने घर लौट गए। . 15 नन्द मणिकार अपने रोगों से अभिभूत-पीड़ित हो नन्दा पुष्करिणी के प्रति अत्यधिक आसक्ति र वाला हो गया। अत्यधिक आसक्ति के कारण उसने तिर्यंच योनि की आयुष्य व भव का बन्धन 15किया। आर्तध्यानपूर्वक मृत्यु प्राप्त कर उसी नन्दा पुष्करिणी में रही एक मेंढकी की कोख में मेंढक 15 के रूप में उसका गर्भाधान हुआ। र नन्द मेंढक ने यथा समय जन्म लिया, धीरे-धीरे बाल्यावस्था से मुक्त हो ज्ञानवान युवावस्था को 15प्राप्त हुआ और नन्दा पुष्करिणी में क्रीड़ा करता जीवन व्यतीत करने लगा। DEATH AND REBIRTH OF NAND MANIKAAR 12 23. After all this hard work all the doctors got tired and left thoroughly a 5 disappointed and dejected. 5. While suffering the agony of all these ailments Nand Manikaar's S attachment for Nanda pool increased. The intensity of this attitude of 12 extreme attachment became instrumental in his acquiring the Tiryanch Ayushya and Bhava karma (the karma responsible for a life and life-span as 5 a lower animal). He died with melancholic attitude during his last moments, 15 and his soul descended into the womb of a she-frog in the Nanda pool. 2 In due course Nand frog was born and crossing the age of infancy it became a fully grown frog. It spent all its time playing around in the Nanda 5 pool. हे सूत्र २४ : तए णं णंदाए पोक्खरिणीए बहू जणे व्हायमाणो य पियमाणो य पाणियं डा रसंवहमाणो य अन्नमन्नस्स एवं आइक्खइ-"धन्ने णं देवाणुप्पिया ! णंदे मणियारे जस्स णं टी (100) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SÜTRA I STUUvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvv Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ LIDUDDDDDDDDDDDDDDDDDDU तेरहवाँ अध्ययन : मंडूक-द१रज्ञात ( १०१) डा 15 इमेयारूवा गंदा पुखरिणी चाउक्कोणा जाव पडिरूवा, जस्स णं पुरथिमिल्ले वणसंडे चित्तसभा र अणेगखंभसयसन्निविट्ठा तहेव चत्तारि सहाओ जाव जम्मजीविअफले।" .. 5 सूत्र २४ : नन्दा पुष्करिणी में अनेक लोग स्नानादि करते, पानी पीते, पानी भरकर ले जाते हुए 5 २ नन्द मणिकार की प्रशंसा किया करते थे और पुष्करिणी बनाने के लिए बार-बार उसे धन्यवाद देते ४ थे। (विस्तार पूर्व-सू. २० के समान) 15 24. Many visitors of the Nanda pool while indulging in various activities 12 like washing, drinking, and carrying water used to praise Nand Manikaar 5 and thank him for constructing the complex. (details as para 20). र सूत्र २५ : तए णं तस्स ददुरस्स तं अभिक्खणं अभिक्खणं बहुजणस्स अंतिए एयमझेंड र सोच्चा णिसम्म इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जेत्था-“से कहिं मन्ने मए इमेयारूवे सद्दे द 15 णिसतपुचे" त्ति कटु सुभेणं परिणामेणं जाव जाइसरणे समुप्पन्ने, पुव्वजाइं सम्मं समागच्छइ। 5 सूत्र २५ : अनेक लोगों के मुखों से इस प्रकार प्रशंसा सुन उस मेंढक को लगा जैसे उसने ये 15 शब्द पहले भी सुने हैं। इन विचारों के साथ शुभ परिणामों के कारण वह गहन विचारणा में डूबा 5 र और उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया। पूर्व जन्म की सभी घटनाएँ पूरी तरह याद हो आईं। ट 15 25. Hearing these words of praise from so many people the frog felt as if it çl Ş had heard all this earlier also. Inspired by these thoughts and the consequent purity of attitude, it went into a state of deep contemplation that K led to its acquiring Jatismaran Jnana (the knowledge of the earlier births) 5 and it remembered the incidents from its earlier birth. र पुनः श्रावकधर्म स्वीकार र सूत्र २६ : तए णं तस्स ददुरस्स इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जेत्था-"एवं खलु अहं टा 5 इहेव रायगिहे नगरे णंदे णामं मणियारे अड्ढे। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे द र समोसढे, तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइए सत्तसिक्खावइए जाव टा पडिवन्ने। तए णं अहं अन्नया कयाई असाहुदंसणेण य जाव मिच्छत्तं विप्पडिवन्ने। तए णं अहं ८ अन्नया कयाई गिम्हकालसमयंसि जाव उवसंपज्जित्ता णं विहरामि। एवं जहेव चिंता आपुच्छणा र नंदा पुक्खरिणी वणसंडा सहाओ तं चेव सव्वं जाव नंदाए पुक्खरिणीए ददुरत्ताए उववन्ने। र तं अहो ! णं अहं अहन्ने अपुन्ने अकयपुन्ने निग्गंथाओ पावयणाओ नढे भट्ठे परिब्भटे, तं सेयं ही 15खलु ममं सयमेव पुव्वपडिवन्नाइं पंचाणुव्वयाई सत्तसिक्खावयाई उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।" डा र सूत्र २६ : जातिस्मरण ज्ञान होने से उस मेंढक के मन में विचार आया-“मैं इसी राजगृह नगर ट में नन्द नाम का मणिकार सेठ था। काल के उस भाग में श्रमण भगवान महावीर का आगमन हुआ 8 5 CHAPTER-13 : THE FROG (101) टा FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र ( १०२) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र दा 5 और मैंने उनके पास पाँच अणुव्रत तथा सात शिक्षाव्रत युक्त श्रावक धर्म अंगीकार किया। किन्तु दी र साधुओं का सान्निध्य न होने से धीरे-धीरे मैं सम्यक्त्व से पतित हो मिथ्यात्वी बन गया।" 15 “गर्मी में तेले के व्रत के समय मुझे पुष्करिणी खुदवाने का विचार आया और राजाज्ञा से मैंने ट र वनखण्डों और सभाओं सहित नन्दा पुष्करिणी बनवाई। मृत्यु पश्चात्, पुष्करिणी के प्रति आसक्ति डा र के कारण, मैं यहीं मेंढक के रूप में उत्पन्न हुआ। अतः मैं अधन्य हूँ, पुण्यहीन हूँ, अकृतपुण्य हूँ। मैं 15 निर्ग्रन्थ वचन से भ्रष्ट होते-होते पूर्ण भ्रष्ट हो गया। अब मेरे लिये यही हितकर होगा कि एक बार टा ) फिर वे पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत मैं स्वयं अंगीकार करके तदनुसार जीवन बिताऊँ।" दा 15 A SHRAVAK AGAIN ___26. Once it acquired the Jatismaran Jnana it thought, “I was the SI merchant Nand Manikaar and lived in Rajagriha. During that period of time Shraman Bhagavan Mahavir came and I became a Shramanopasak. But 15 later I did not get any opportunity to meet ascetics and consequently my righteousness faded and I became misguided. “During a summer season while observing a three day fast I thought of constructing a pool and after seeking permission from the king I got the Nanda pool constructed. After my death I was born as a frog due to my extreme attachment for this pool. Thus I am a wretched, ill fated, and 5 virtueless individual. I have fallen from my grace and lost my faith in the c! word of the omniscient. Now it would be good for me if I once again take the five minor vows and seven disciplinary vows and spend the rest of my life र observing them. 15 सूत्र २७ : एवं संपेहेइ, संपेहित्ता पुव्वपडिवन्नाइं पंचाणुव्वयाइं सत्तसिक्खावयाइं आरुहेइ, टा र आरुहित्ता इमेयारूवे अभिग्गहं अभिगिण्हइ-“कप्पइ मे जावज्जीवं छठें छठेणं अणिक्खित्तेण । 5 अप्पाणं भावमाणस्स विहरित्तए। छट्ठस्स वि य णं पारणगंसि कप्पइ मे गंदाए पोक्खरिणीए 5 परिपेरंतेसु फासुएणं ण्हाणोदएणं उम्महणालोलियाहि य वित्तिं कप्पेमाणस्स विहरित्तए।" इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हइ जावज्जीवाए छटुं छटेणं जाव विहरइ। सूत्र २७ : यह विचार आने पर उसने बारह व्रतों को पुनः अंगीकार किया और साथ ही यह ट र अभिग्रह धारण किया-“आज से जीवन पर्यन्त मैं बेल-बेले की तपस्या से आत्मा को भावित करते डा र हुए ही जीवन बिताऊँगा। बेले के पारणे में भी नन्दा पुष्करिणी के तट भाग के प्रासुक जल द्वारा 5 स्नान कर मनुष्यों द्वारा उतारे गए मैल के इधर-उधर गिरे टुकड़ों मात्र से अपना काम चलाऊँगा।" । ऐसा निश्चय कर वह तदनुसार तपस्या करता हुआ जीवन बिताने लगा। 5 27. Once he got the idea he immediately took the twelve vows and also a 5 resolved, “Starting from today I shall purify my soul by doing the penance of 6 (102) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA , SAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn UUUUUUUUUN पाएसपएण्ण्ण्ण्ण्ण्य Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र तेरहवाँ अध्ययन : मंडूक-द१रज्ञात ( १०३ ) SIL 5 a two day fast followed by a day of eating and so on throughout the rest of my s 5 life. Also, on the day of eating I shall take only the fallen crumbles of slime s shed by human beings who take bath with the clean water of this pool on its shore." And it commenced the penance and the disciplined life immediately र after the resolve. 15 सूत्र २८ : तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा ! गुणसीलए चेइए समोसढे। परिसा रणिग्गया। तए णं णंदाए पुक्खरिणीए बहुजणो ण्हायमाणो य पियमाणो य पाणियं संवहमाणो यद 5 अन्नमन्नं एवमाइक्खइ-जाव समणे भगवं महावीरे इहेव गुणसीलए चेइए समोसढे। तं गच्छामो ण र देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वंदामो जाव पज्जुवासामो, एयं मे इहभवे परभवे य हियाएट 15 जाव आणुगामियत्ताए भविस्सइ। र सूत्र २८ : हे गौतम ! काल के उस भाग में मैं गुणशील चैत्य में आया और परिषद निकली। द 15 उस समय नन्दा पुष्करिणी में स्नानादि करते लोग परस्पर बातें करने लगे-"श्रमण भगवान र महावीर का समवसरण गुणशील चैत्य में है अतः हे देवानुप्रिय ! हम चलकर उनकी वन्दनार उपासना करें। यह हमारे वर्तमान और भविष्य के लिए श्रेयस्कर होगा।" र 28. Gautam! During that period of time I arrived in the Gunasheel 2 Chaitya and a delegation of citizens came there. The citizens taking bath in the Nanda pool talked among themselves, "Shraman Bhagavan Mahavir is 15 giving discourses in the Gunasheel Chaitya. So Beloved of gods! we should go 15 their and pay our homage. This would be beneficial for us in the present as ŞI well as future." 15 मेंढक का वन्दनार्थ प्रस्थान 5 सूत्र २९ : तए णं तस्स ददुरस्स बहुजणस्स अंतिए एयमढं सोच्चा णिसम्म अयमेयारूवे इ र अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जेत्था-“एवं खलु समणे भगवं महावीरे जावट समोसढे, तं गच्छामि णं वंदामि" जाव एवं संपेहेइ, संपेहित्ता णंदाओ पुक्खरिणीओ सणियं दे P सणियं उत्तरइ, उत्तरित्ता जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ताए उक्किट्ठाए । 5 ददुरगईए वीइवयमाणे वीइवयमाणे जेणेव ममं अंतिए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। र सूत्र २९ : अनेक लोगों से यह समाचार सुन और समझकर उस मेंढक के मन में विचार, ड र चिन्तन, अभिलाषा और मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ-"श्रमण भगवान महावीर यहाँ पधारे हैं, दे 5 निश्चय ही मैं भी जाऊँ और भगवान की वन्दनादि करूँ।" यह विचार आने पर वह धीरे-धीरे ड P नन्दा पुष्करिणी से बाहर निकला, राजमार्ग पर आया और अपनी तेज चाल से चलता हुआ मेरे ही E पास आने लगा। भएण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण LI CHAPTER-13 : THE FROG (103) G SanAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAALI Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ --- - - - - जाण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्U प्रज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज 12 ( १०४ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 FROG MOVES TO PAY HOMAGE 12 29. When the frog heard about this from many a people it thought, S contemplated, desired and resolved, "Shraman Bhagavan Mahavir has 15 arrived in the town. I should also go and pay my homage.” It slowly came out 15 of the Nanda pool, reached the highway, and moved in leaps and bounds in C 5 the direction of my camp. 15 सूत्र ३0 : इमं च णं सेणिए राया भंभसारे ण्हाए कायकोउय जाव सव्वालंकारविभूसिए द र हत्थिखंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामरेहि य उद्धव्यमाणेहि र महया हय-गय-रह-भड-चडगर-कलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडे मम पायदए दे 15 हव्यमागच्छइ। तए णं से ददुरे सेणियस्स रण्णो एगेणं आसकिसोरएणं वामपाएणं अकंते र समाणे अंतनिग्घाइए कए यावि होत्था। र सूत्र ३0 : इधर राजा (भंभासार बिम्बसार) श्रेणिक स्नानादि कृत्यों से निवृत्त हो वस्त्रालंकारों ड र से विभूषित हुआ और श्रेष्ठ हाथी पर सवार हुआ। कोरंट के फूलों की माला वाले छत्र तथा सफेद ट] 15 चामरों से शोभित हो घोड़े, हाथी, रथ और महारथियों सहित अपनी चतुरंगिणी सेना से घिरा वह द र मेरी चरण-वन्दना हेतु शीघ्रता से चला आ रहा था। तब वह मेंढक श्रेणिक राजा के एक तरुण S 15 चंचल घोड़े की बाईं टाँग से कुचला गया और उसकी आँतें बाहर निकल आईं। र 30. On the other side, King Shrenik Bimbasar got ready after his bath etc. S and rode his best elephant. Surrounded by his four pronged army of elephants, horses, chariots and foot soldiers and with all his regalia he was 15 also coming for my obeisance at a fast speed on the same highway. It so > happened that the little frog was trampled under the hoof of a horse of the 12 kings guards and its entrails came out. 15 सूत्र ३१ : तए णं से दद्दुरे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसकार-परक्कमे ट र अधारणिज्जमिति कटु एगंतमवक्कमइ, करयलपरिग्गहियं तिक्खुत्तो सिरसावत्तं मत्थए अंजलिंड 15 कटु एवं वयासी र नमोऽत्थु णं अरहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं, नमोऽत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्सट 15 मम धम्मायरियस्स जाव संपाविउकामस्स। पुट्विं पि य णं मए समणस्स भगवओ महावीरस्स दा 12 अंतिए थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए, जाव थूलए परिग्गहे पच्चक्खाए, तं इयाणिं पि तस्सेव । 15 अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि, जाव सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि, जावज्जीवं सव्वं असणं टा र पाणं खाइमं साइमं पच्चक्खामि जावज्जीवं जं पि य इमं सरीरं इ8 कंतं जाव मा, फुसंतु एवं हा 5 पिणं चरिमेहिं ऊसासेहिं 'वोसिरामि' त्ति कट्ट। 15 (104) JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SÜTRA I 卐nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnAAAAAAAAAAAA UU Vurvuurrrrrrrrrrrrrrrrr Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PORTALI 4348132 TE 13 Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग २) चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED मेंढक का भव- उद्धार चित्र : १३ १. नन्द जीव मेंढक भगवान महावीर की वन्दना करने राजमार्ग पर फुदक-फुदककर चलता जा रहा है। उसी समय राजा श्रेणिक भी उसी रास्ते से भगवान की वन्दना करने जा रहा है। २. एक सैनिक के घोड़े की टाप अचानक मेंढक पर गिरती है। नन्हा सा मेंढक कुचल जाता है, आँतें बाहर निकल आती हैं। मेंढक राजमार्ग के एक किनारे चला आता है और सोचता है - अब मैं शक्तिहीन हो गया हूँ। भगवान के समवसरण तक नहीं पहुँच सकता। ३. मेंढक वहीं से अत्यन्त भक्तिभाव के साथ भगवान को भाव-वन्दना करता है। ४. अत्यन्त शुद्ध भावपूर्वक शरीर त्यागकर वह नन्द मेंढक सौधर्मकल्प के दर्दुरान्तक विमान में ऋद्धिशाली देव बनता है। (तेरहवाँ अध्ययन ) 8 LIBERATION OF THE FROG ILLUSTRATION: 13 1. Nand frog proceeds hopping on the highway on his way to pay homage to Bhagavan Mahavir. At that time King Shrenik is also proceeding with his guards to pay homage to Bhagavan Mahavir. 2. Suddenly the frog is hit by the hoof of a guard's horse and its entrails are exposed. It drags itself to one side and thinks that it has not enough energy left to reach the Samavasaran. 3. From that very spot it starts worship of Bhagavan Mahavir with all devotion. After that it reviews its conduct and atones for misdeeds and accepts the five great vows as well as the ultimate vow of fasting till death. 4. Because it breathed its last with purity of feelings and thoughts he reincarnated as a powerful god in the Saudharm dimension. He comes to pay homage and display his grandeur before Bhagavan Mahavir. (illustration - 10) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SUTRA (PART-2) For Private Personal Use Only (CHAPTER-13) Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्U U.APUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUजान रितेरहवाँ अध्ययन : मंडूक-द१रज्ञात ___ ( १०५ ) 5 सूत्र ३१ : कुचले जाने से वह मेंढक शक्तिहीन, निर्बल, निर्वीय और पौरुषविहीन हो गया। यह द र समझकर कि अब उसमें जीवन धारण की शक्ति नहीं रही, वह एक ओर चला गया। वहाँ दोनों । हाथ जोड़कर तीन बार मस्तक पर फिराकर ललाट पर लगाये और बोला-“अरिहंतों को, भगवन्तों दी 15 को नमस्कार हो (शकेन्द्र स्तुति के समान)। मेरे धर्मगुरु धर्माचार्य, मोक्ष-प्राप्ति के लिए अभिमुख डा र श्रमण भगवान महावीर स्वामी को नमस्कार हो। मैंने पहले भी श्रमण भगवान महावीर के पास 15स्थूल अहिंसादि पाँच अणुव्रत स्वीकार किए थे। अब मैं उन्हीं भगवान के निकट (साक्षी भाव से) सम्पूर्ण अहिंसादि पाँच महाव्रत स्वीकार करता हूँ। जीवन पर्यंत समस्त अशनादि आहार का त्यागी र करता हूँ। जिस शरीर के लिए सदा कामना की कि इसे रोगादि स्पर्श न करें उस इष्ट व कान्त दे 15शरीर का मोह भी अन्तिम साँस तक त्यागता हूँ।" र 31. On being trampled the frog lost its energy, strength, power, and 2 15 valour. Realizing that the life force was fast ebbing out, it dragged itself to one side. It joined its front paws, moving them in a circle near its head three times and touching its forehead it uttered, “I bow and convey my reverence to Pthe Arhats, Bhagavants, . . . . . (the Shakra panegyric). My reverence also to (my preceptor, Shraman Bhagavan Mahavir. Earlier I took the five minor 5 vows before him, and now I take the five great vows in his name, in his spiritual presence. I resolve to abandon intake of any and all food till the last Pbreath of my life. I also abandon the fondness for the loved and treasured mundane body of which I always wished that no ailment may touch it." र देवपर्याय में जन्म 5 सूत्र ३२ : तए णं से ददुरे कालमासे कालं किच्चा जाव सोहम्मे कप्पे ददुरवडिंसए ड र विमाणे उववायसभाए ददुरदेवत्ताए उववन्ने। एवं खलु गोयमा ! ददुरेणं सा दिव्या देविड्ढी टा लद्धा पत्ता जाव अभिसमन्नागया। 5 सूत्र ३२ : उसके बाद यथासमय वह मेंढक मृत्यु को प्राप्त हो सौधर्मकल्प में दर्दुरावतंसक नाम ट 5 के विमान की उपपात सभा में दर्दुर देव के रूप में उत्पन्न हुआ। हे गौतम ! दर्दुर देव ने वह दिव्य ड र देवर्धि लब्धि इस प्रकार पूर्ण रूप से प्राप्त की है। 3 REBIRTH AS GOD 5 32. In due course the frog breathed its last and was reincarnated as SI Dardur god in the Upapata assembly of the Darduravatansak space vehicle S Bin the Saudharm Kalp (a dimension of gods). Gautam! This is how the 2 5 Dardur god acquired all his divine virtues and powers. UUUUUUUR 5 CHAPTER-13 : THE FROG (105) टा VE Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DUU ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र "टा र सूत्र ३३ : ददुरस्स णं भंते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? 15 गोयमा ! चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता। से णं ददुरे देवे आउक्खएणं भवक्खएणं, र ठिइक्खएणं, अणंतरं चयं चइत्ता महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, बुज्झिहिइ, जाव अंतं करिहिइ। 5 सूत्र ३३ : गौतम स्वामी-"भंते दर्दुर देव की उस देवलोक में कितनी स्थिति है ?" 15 भगवान महावीर ने कहा-“गौतम ! उसकी देवलोक स्थिति चार पल्योपम कही गई है। उसके दा र बाद यह दर्दुर देव आयु, भव और स्थिति के क्षय होने पर तत्काल च्यवन कर महाविदेह क्षेत्र में र जन्म लेकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो समस्त दुःखों का अन्त करेगा।" > 33. “Bhante! What is the divine life-span of Dardur god?" 5 “Gautam! It is said that his divine life-span will be four Palyopam (a 5 superlative count of time). After that, on the termination of the divine life span, life, and form, it will descend and take birth in the Mahavideh area P and be enlightened, end all sorrows, and be liberated.” 15 सूत्र ३४ : एवं खलु समणेणं भगवया महावीरेणं तेरसमस्स नायज्झयणस्स अयमठे र पण्णत्ते, त्ति बेमि। 15 सूत्र ३४ : जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने तेरहवें ज्ञात अध्ययन का यह अर्थ कहा है। मैंने ड र जैसा सुना है वैसा ही कहता हूँ। 15 34. Jambu! This is the text and the meaning of the thirteenth chapter of S 12 the Jnata Sutra as told by Shraman Bhagavan Mahavir. So I have heard, so I Econfirm. ॥ तेरसमं अज्झयणं समत्तं ॥ ॥ तेरहवाँ अध्ययन समाप्त ॥ JI END OF THE THIRTEENTH CHAPTER 11 15(106) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA 卐innnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् उपसंहार ___ज्ञाताधर्म कथा की इस तेरहवीं कथा में सुविधाओं में आसक्ति के परिणाम स्वरूप अधःपतन । 15 और आत्मालोचना द्वारा संयम की पुनर्स्थापना को एक सहज बोधगम्य उदाहरण द्वारा प्रस्तुत किया द 5 है। राग व मोह हर स्थिति में पथ भ्रष्ट करता है चाहे उससे प्रेरित क्रियाकलाप जनोपयोगी ही क्यों ड र न हो। अतः जन सेवा के कार्य स्वानुकम्पा से नहीं परानुकम्पा से प्रेरित होने चाहिए। आत्मालोचना 2 5 वह प्रहरी है जो पग-पग पर ऐसे सूक्ष्म अटकाव से रोकता है और सम्यक् मार्ग को अपनाने को दे 15 प्रेरित करता है। सुसाधु समागम इस आत्मालोचना को पुष्ट करता है। CONCLUSION This thirteenth story of the Jnata Dharma Katha presents the downfall 12 caused by attachment to comforts and the regaining of self discipline through critical self-review. This is done with the help of a simple and easy to grasp example. Attachment and fondness always lead one astray from the spiritual 5 path whether or not the inspired activity is humanitarian. And so. any द humanitarian activity should be inspired by the desire to benefit others and not oneself. Self criticism acts as a guard that clears such subtle hurdles at every step and helps maintain the right direction on the spiritual path. Interaction with accomplished ascetics helps this practice of self criticism. | उपनय गाथा । सम्पन्नगुणो वि जिओ सुसाहुसंसग्गिवजिओ पायं। पावइ गुणपरिहाणिं दद्दरजीवो व्व मणियारो॥१॥ तित्थयर वंदणत्थं चलिओ भावेण पावए सग्गं। जह ददुर देवेणं, पत्तं वेमाणियसुरत्तं ॥२॥ र गुण सम्पन्न होने पर भी कभी-कभी सुसाधु के सम्पर्क का अभाव होने पर आत्मा गुणों की हानि टी 15 को प्राप्त होता है जैसे नन्द मणिकार का जीव मेंढक के रूप में उत्पन्न हुआ॥१॥ र तीर्थंकर वन्दना हेतु प्रस्थान करने वाला प्राणी भक्ति भावना के कारण स्वर्ग प्राप्त करता है ट 15 (चाहे वह दर्शन कर पावे या नहीं) जैसे मेंढक मात्र भावना प्रबल होने के कारण वैमानिक देव भव द र प्राप्त कर सका॥२॥ UUUUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ज CHAPTER-13 : THE FROG - Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०८) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा THE MESSAGE A virtuous one, too, loses virtues in the absence of continued interaction 5 with accomplished ascetics, in same way that the being that was Nand d 15 Manikaar was born a frog. (1) 12 The being who proceeds to pay homage to the Tirthankar attains Moksha due to the depth of his devotion (whether or not he is actually able to behold the Lord), in same way that the frog was born a god because of the intensity 15 of his feeling of devotion only. (2) - परिशिष्ट र अणुपविट्ठा-समा गई। दर्दुर देव ने अपनी ऋद्धि का जो प्रदर्शन किया उसके अन्तर्गत अपनी दैविक शक्ति से ये 15 अनेक नर्तकों, नर्तकियों, वादकों आदि को प्रकट करना भी सम्मिलित है। प्रदर्शन समाप्त होते ही ये सभी अनायास टा 15 ही अदृश्य हो जाते हैं अतः सामान्य व्यक्ति को लगता है कि वे सभी कहीं समा गये हैं। जिसे समझाने के लिए र कूटागार का दृष्टान्त दिया है। 15 कूटागार-एक ग्राम में एक पर्वताकार विशाल भवन था। वह बहुत दृढ़ व सुरक्षित था तथा उसकी संरचना टा 5 ऐसी थी कि भीतर सभी सुविधायें होते हुए भी बाहर से यह जान पाना असम्भव था कि उसके भीतर कौन है- S| र क्या है। उसके भीतर प्रवेश पाना या उसकी थाह पाना कठिन था। एक बार जब एक प्रचण्ड तूफान आया तो र सुरक्षा हेतु गाँव के सभी लोग उसमें प्रवेश कर गये। उस समय वह क्षेत्र ऐसा हो गया मानो जनशून्य क्षेत्र में कोई 15 पर्वत खड़ा हो। इसी प्रकार देव की प्रकट प्रद्धि उसके शरीर में यों समा गई जैसे उस कूटागार में ग्राम का दी 15 जनसमूह। र रोगातंक-आतंक स्वरूप रोग या तीव्र वेदनादायक रोग जिनका उपचार कठिन साध्य हो। यहाँ सोलह रोगों 15 का नाम दिया है। इसी प्रकार अन्य अंग शास्त्रों में भी रोगों की सूची उपलब्ध है। आचारांग सूत्र में भी 15 सोलह रोगों की सूची है-कण्ठमाल, कुष्ट, क्षय, अपस्मार, अक्षी रोग, जड़ता, हीनांगता, कुबड़ापन, उदर रोग, र गंजापन, शरीर-शून्यता, भस्मक रोग, रीढ़ की बांद, श्लीपद तथा मधुमेह। ज्ञातासूत्र की तुलना में यह सूची र अधिक प्रामाणिक लगती है क्योंकि उसमें कुछ रोग विभिन्न नाम से दो बार आ गये हैं तथा कुछ रोग सामान्य - 15 रोग हैं। र (108) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA) Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ o Sivuvvurini र तेरहवाँ अध्ययन : मंडूक-द१रज्ञात (908) APPENDIX Anupavitha—Vanished into. During his devotional demonstration Dardur god made a number of dancers and musicians materialize through his divine powers. When the K demonstration ended they all instantaneously vanished. This is astonishing for the common man, and so the question. Kutagar-A camouflaged house. In a village there was a large house made in the shape SI 5 of a hill. It was extremely strong and of such a design that although it had all the facilities and provisions it was also impossible to know from outside that who or what was within. It was difficult to enter. Once during a storm all the villagers took shelter in it. At that time it looked just like a hill in an uninhabited land. This has been used as a metaphor to convey the idea that all the power displayed by the god vanished into the body of the god, just as the K population of the village vanished into the Kutagar. Rogatank-Grave ailment; an ailment that causes great pain and is difficult to treat. 5 Sixteen diseases have been listed here. Similar lists are also given in other scriptures. The 5 list from Acharang is-Kanth-maal (goitre), Kusht (leprosy), Kshaya (tuberculosis), C 5 Apasmar (epilepsy), Akshi Rog (eye diseases), Jadata (dementia), Heenangata (dwarfism), 5 Kubadapan (hunched back), Udar Rog (gastrointestinal diseases), Ganjapan (balding), 5 Sharir Shunyata (paralysis), Bhasmak Rog (hyperphagia or over eating), Reedh ki Baank 5 (spondylosis), Shleepad (elephantiasis), and Madhumeh (diabetes). As compared to the list in 5 Jnata Sutra this appears to be more authentic because in the former some of the diseases 5 have been mentioned twice and some others are simple ailments. Esuuruuuuuuuuu vuus Turvavarur K CHAPTER-13 : THE FROG ( 109 ) Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र : आमुख शीर्षक-तेयली-तेतली नाम विशेष। सद्गुण होने पर भी सुख-सुविधाएँ मनुष्य को लुभाए रखती हैं और वह द 15 आत्मोत्थान की राह पर अग्रसर होने का मानस नहीं बना पाता। भव्यात्मा में यह आवरण बड़ा झीना होता है और डा 15 दुःख की मार उसे तोड़ कर उसका मार्ग प्रशस्त कर देती है। पूर्वोपार्जित सत्कर्म इस दिशा परिवर्तन के निमित्ता र बनते हैं। तेतली पुत्र अमात्य की यह रोचक कथा इस दिशा परिवर्तन को प्रभावी रूप से प्रकट करती है। 5 कथासार-तेतलीपुर नगर में राजा कनकरथ का राज्य था। तेतलिपुत्र उनके अमात्य थे। राजा कनकरथ की दा 15 अपने राज्यादि पर इतनी आसक्ति थी कि वह अपने पुत्रों के जन्म लेते ही उनके अंग-भंग कर देता था जिससे वेडा २ राज-सिंहासन के योग्य न हो सकें। रानी पद्मावती ने इस बात से चिन्तित हो अमात्य तेतलीपुत्र से मिलकर योजना P बनाई। तेतलीपत्र की पत्नी थी पोट्टिला। एक बार राजा और अमात्य पलियाँ दोनों ने एक साथ प्रसव किया। रानी दा के पुत्र हुआ और पोट्टिला के मृत पुत्री। अमात्य ने पूर्व योजनानुसार गुप्त रूप से रानी के पुत्र को अपनी मृत पुत्री ट 5 से बदल दिया और राजकुमार का लालन-पालन करने लगा। र कुछ समय बाद तेतली पुत्र का अपनी पत्नी के प्रति प्रेम समाप्त हो गया। पोट्टिला श्रमणियों के संसर्ग में आई । 2 और उसे वैराग्य हो आया। जब उसने तेतलीपुत्र से आज्ञा माँगी तो उसने इस शर्त पर आज्ञा दी कि अपनीट र तपस्या के फलस्वरूप पोट्टिला देवयोनि में उत्पन्न हो तो वहाँ से आकर उसे सद्धर्म का प्रतिबोध दे। पोट्टिला ने ट 15 दीक्षा ली और दीर्घ तपस्या के बाद देह त्याग देव रूप में जन्मी। २ इधर कनकरथ राजा की मृत्यु के पश्चात् सभी मंत्रियों ने तेतलीपुत्र से राज्यारूढ होने योग्य व्यक्ति बताने का । र आग्रह किया। अमात्य ने कनकरथ के पुत्र कनकध्वज को प्रकट किया और उसके जन्मादि की कथा सुनाई। 5कनकध्वज राजा बना तो उसकी माँ पद्मावती ने अमात्य तेतलीपुत्र का आभार प्रकट करने हेतु उन्हें यथोचित ८ 5 सम्मान देने के लिए अपने पुत्र से आग्रह किया। र तेतली पुत्र अमात्य सम्पूर्ण राज्य सम्मान सहित सुखी जीवन बिताने लगा। पोट्टिल देव ने कई बार प्रयत्न किया है ए पर तेतलीपुत्र को धर्म के मार्ग की प्रेरणा नहीं दे सका। अन्ततः उसने निश्चय किया कि दुःख की मार के बिना 5 तेतलीपुत्र की आँखें नहीं खुलेंगी। उसने राजा को अमात्य से विमुख कर दिया। तेतलीपुत्र को जब राजा से वांछित ड 5 आदर सत्कार नहीं मिला तो उसका मन दुःख से भर गया। उसने कई बार आत्महत्या का प्रयास किया पर विफल र हो गया। तब देव ने प्रकट हो उसे प्रतिबोध दिया। तेतलीपुत्र को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ और उसने जाना र कि पूर्व भव में वह पुंडरीकिनी नगरी का महापद्म नामक राजा था। दीक्षा लेकर, चौदह पूर्यों का अध्ययन कर वह देवलोक में जन्मा था और वहाँ से फिर तेतलीपुत्र के रूप में। उसे अपना पूर्व भव में अर्जित ज्ञान स्मरण हो ट 5 आया और उसने स्वयं ही दीक्षा ग्रहण कर ली। ध्यान-साधना कर केवलज्ञान प्राप्त कर लिया और अन्ततः मोक्ष में Stuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuu गया। 4 (110) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA CI FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ EU (FOURTEENTH CHAPTER : TETALIPUTRA : INTRODUCTION ruuuuuuuuu 2 Title Teyali-Tetali-a name. Even if he is virtuous, mundane pleasures and 2 conveniences can entrap man and make it impossible for him to make up his mind to step on 12 the path of spiritual upliftment. In the case of a righteous person this veil is very thin. Just a Z blow of sorrow is enough to destroy it and pave his way. The pious Karmas from the past 2 become the means of this change of direction. The absorbing story of minister Tetaliputra I effectively reveals this process of change of direction. 5 Gist of the story--King Kanakrath was the ruler of Tetalipur. Tetaliputra was his 5 minister. The king was so possessive of his kingdom and wealth that he used to mutilate his 5 sons as soon as they were born so that none of them could claim his throne. Queen 5 Padmavati was worried. With the help of minister Tetaliputra she made a plan. Pottila was the wife of Tetaliputra. Once both the ladies, the queen and the minister's wife, gave birth at 5 the same time. The queen gave birth to a son and the minister's wife to a dead girl. As per 5 the plan the minister secretly exchanged the king's son with his dead daughter. He took the 15 prince under his care. 5 After some time Pottila lost the favour and love of her husband. She came in contact 5 with Shramanis and became detached from the mundane life. When she sought permission > to become a Shramani from Tetaliputra he consented with the condition that, if she reincarnated as a god as a result of her penance, she would return to him and preach the righteous path. Pottila got initiated and after prolonged penance reincarnated as a god, 2 When King Kanak-rath died, all his ministers approached Tetaliputra to suggest a 2 suitable heir to the throne. The minister presented Prince Kanakdhvaj and related the story Rof his birth and bringing up. When Kanakdhvaj ascended the throne his mother asked him Z to give due respect and honour to Tetaliputra as a gesture of returning his obligation. 5 Tetaliputra led a happy and contented life with all state honours. Time and again God 5 Pottil tried his best to inspire the minister to accept the spiritual path but in vain. At last he 5 decided that Tetaliputra could not be awakened without the blow of sorrow. He made the king apathetic towards the minister. When Tetaliputra did not get the usual and due honour Kand respect from the king he was overwhelmed with sorrow. He tried to commit suicide 5 many a time but failed. Then the god appeared and showed him the right path. Tetaliputra 5 acquired Jati-smaran Jnana and remembered that in his earlier birth he was Mahapadma, 5 the king of Pundarikini city. He had become an ascetic and acquired the knowledge of the 5 fourteen sublime canons. After death he had reincarnated as a god and from there as Tetaliputra. He remembered all the knowledge he had acquired during his earlier 55 incarnation and got initiated himself. After long spiritual practices he attained omniscience 5 and at last liberation. rrrrrrrrrrrrrrrrrr RCHAPTER-14 : TETALIPUTRA (111) nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोदसमं अज्झयणं : तेयलिपुत्ते चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र U FOURTEENTH CHAPTER : TEYALIPUTTE - TETALIPUTRA सूत्र १ : जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं तेरसमस्स नायज्झयणस्स अयमढे टा 15 पण्णत्ते, चोद्दसमस्स णायज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अढे पन्नत्ते ? र सूत्र १ : जम्बू स्वामी ने प्रश्न किया-भंते ! जब श्रमण भगवान महावीर ने तेरहवें ज्ञात 15 अध्ययन का पूर्वोक्त अर्थ बताया है, तो चौदहवें ज्ञात अध्ययन का क्या अर्थ कहा है? र 1. Jambu Swami inquired, “Bhante! What is the meaning of the 15 fourteenth chapter according to Shraman Bhagavan Mahavir?" र सूत्र २ : ‘एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं तेयलिपुरे णामं णयरे होत्था। तस्स णंड र तेयलिपुरस्स बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए एत्थ णं पमयवणे णामं उज्जाणे होत्था। 15 तत्थ णं तेयलिपुरे णयरे कणगरहे णामं राया होत्था। तस्स णं कणगरहस्स रण्णो पउमावई ड र णामं देवी होत्था। तस्स णं कणगरहस्स रण्णो तेयलिपुत्ते णामं अमच्चे होत्था साम-दंड-ट 15 भेय-उवप्पयाण-नीति-सुपउत्त-नयविहिण्णू। र सूत्र २ : सुधर्मा स्वामी ने उत्तर दिया-हे जम्बू ! काल के उस भाग में तेतलीपुर नाम का एक 15 नगर था। नगर के बाहर उत्तर-पूर्व दिशा में प्रमदवन नाम का एक उद्यान था। र उस नगर के राजा का नाम कनकरथ था और रानी का नाम पद्मावती देवी। कनकरथ राजा 15 के अमात्य का नाम तेतलिपुत्र था और वह साम, दाम, दण्ड व भेद नीति के प्रयोग में निष्णात था। द > 2. Sudharma Swami replied-Jambu! During that period of time there B was a city named Tetalipur. Outside the city in the north-eastern direction 5 there was a garden named Pramadvan. 15 The name of the king of that city was Kanak-rath and that of the queen I was Padmavati. The king had a minister named Tetaliputra who was an expert in all the four branches of political strategy-conciliation, graft B punishment, and clandestine activity. 15 सूत्र ३ : तत्थ णं तेयलिपुरे कलादे नाम मूसियारदारए होत्था, अड्ढे जाव अपरिभूए। तस्स डा र णं भद्दा नामं भारिया होत्था। तस्स णं कलायस्स मूसियारदारयस्स धूया भद्दाए अत्तया पोट्टिला । र नाम दारिया होत्था, रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा। र (112) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA - Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GOUTTMur u र चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र ( ११३ ) ड 15 सूत्र ३ : तेतलीपुर में एक स्वर्णकार था जिसका नाम मूषिकारदारक था। वह बड़ा धनवान र और सामर्थ्यवान था। स्वर्णकार की पत्नी का नाम भद्रा था। भद्रा की कोख से जन्मी स्वर्णकार की 5 पुत्री का नाम पोट्टिला था। रूप, यौवन, लावण्य और देहयष्टि में वह श्रेष्ठ थी। 12 3. In Tetalipur lived a goldsmith named Mushikardarak. He was very 5 wealthy and resourceful. The name of his wife was Bhadra. The couple had a 15daughter named Pottila. She was extremely beautiful, youthful, and 2 charming and had a perfect figure. 15 सूत्र ४ : तए णं पोट्टिला दारिया अन्नया कयाइ ण्हाया सव्वालंकारविभूसिया चेडिया- दा र चक्कवाल-संपरिवुडा उप्पिं पासायवरगया आगासतलगंसि कणगमएणं तिंदूसएणं कीलमाणी में 5 कीलमाणी विहरइ। र इमं च णं तेयलिपुत्ते अमच्चे पहाए आसखंधवरगए महया भडचडगरआसवाहणियाएट 5 णिज्जायमाणे कलायस्स मूसियारदारगस्स गिहस्स अदूरसामंतेणं वीईवयइ। र सूत्र ४ : एक बार पोट्टिला स्नानादि कर, वस्त्राभूषण पहनकर, दासी-वृन्द से घिरी भवन की स 15 छत पर सोने की गेंद से खेल रही थी। । तभी अमात्य तेतलिपुत्र श्रेष्ठ अश्व पर सवार हो अनेक अंगरक्षकों के साथ घुड़सवारी को र निकला। वह मूषिकारदारक स्वर्णकार के घर के पास से गुजरा। 5 4. One day, after taking her bath and getting dressed, Pottila was playing with a golden ball with her maid servants. Just then, minister Tetaliputra set out for a ride on the back of a graceful 5 horse accompanied by his bodyguards. He passed along the house of the 15 goldsmith. तेतलिपुत्र का प्रस्ताव र सूत्र ५ : तए णं से तेयलिपुत्ते मूसियारदारगगिहस्स अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे वीईवयमाणे हे पोट्टिलं दारियं उप्पिं पासायवरगयं आगासतलगंसि कणगतिंदूसएणं कीलमाणिं पासइ, पासित्ता र पोट्टिलाए दारियाए रूवे य जोव्वणे व लावण्णे य अझोववन्ने कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता दी 15 एवं वयासी-“एस णं देवाणुप्पिया ! कस्स दारिया किंनामधेज्जा वा ?" 15 तए णं कोडुंबियपुरिसे तेयलिपुत्तं एवं वयासी-“एस णं सामी ! कलायस्स मूसियारदारयस्स र धूआ, भद्दाए अत्तया पोट्टिला नामं दारिया रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा र उक्किट्ठ-सरीरा।" ULLLL 15 CHAPTER-14 : TETALIPUTRA (113) Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र ( ११४) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 सूत्र ५ : वहाँ से गुजरते समय उसने गेंद खेलती पोट्टिला को देखा और उसके रूप, यौवन द र आदि पर मोहित हो गया। उसने अपने सेवकों को पास बुलाकर पूछा-“देवानुप्रियो ! यह किसकी 51 र लड़की है और इसका नाम क्या है?' 5 सेवकों ने उत्तर दिया-"स्वामी ! यह मूषिकारदारक सुनार की पुत्री है और भद्रा की आत्मजा र है। इसका नाम पोट्टिला है और यह रूपादि में श्रेष्ठ है।" B PROPOSAL OF TETALIPUTRA 5. When he was passing from there he saw Pottila playing with her ball and was attracted by her beauty, youth, charm, and figure. He called his servants and asked, “Beloved of gods! Whose daughter is she? and what is her name?" 5 The servants replied, "Sire! She is the daughter of goldsmith a » Mushikardarak and his wife Bhadra and her name is Pottila. She is cl र extremely beautiful (etc. ).” 15 सूत्र ६ : तए णं से तेयलिपुत्ते आसवाहिणियाओ पडिनियत्ते समाणे अभिंतरट्ठाणिज्जे पुरिस टा र सद्दावेइ, सदावित्ता एवं वयासी-“गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! कलादस्स मूसियारदारगस्स धूयं र भद्दाए अत्तयं पोट्टिलं दारियं मम भारियत्ताए वरेह।" र तए णं ते अभिंतरद्वाणिज्जा पुरिसा तेयलिणा एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठा जावड 5 करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट ‘एवं सामी !' तह त्ति आणाएट 15 विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता तेयलियस्स अंतियाओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता डा र जेणेव कलायस्स मूसियारदारयस्स गिहे तेणेव उवागया। तए णं कलाए मूसियारदारए ते पुरिसेट 15 एज्जमाणे पासइ, पासित्ता हट्टतुढे आसणाओ अब्भुढेइ, अब्भुद्वित्ता सत्तद्वपयाइं अणुगच्छइ, दी र अणुगच्छित्ता आसणेणं उवनिमंतेइ, उवनिमंतित्ता आसत्थे वीसत्थे सुहासणवरगए एवं वयासी- र “संदिसंतु णं देवाणुप्पिया ! किमागमणपओयणं ?" हे सूत्र ६ : घुड़सवारी से वापस लौटने पर तेतलिपुत्र ने बाहर का काम करने वाले सेवकों से र बुलाकर कहा-“देवानुप्रियो ! तुम लोग जाकर मूषिकारदारक की पुत्री पोट्टिला से मेरी मँगनी तय 15 करो।" र सेवकों ने प्रसन्नचित्त हो यथाविधि हाथ जोड़ विनयपूर्वक आज्ञा स्वीकार की और तेतलिपुत्र के । 5 घर से निकलकर मूषिकारदारक के घर पहुंचे। सुनार इन लोगों को आते देख प्रसन्न हुआ और द 15 उसने आसन से खड़ा हो आगे बढ़ उनका स्वागत कर उन्हें आसन ग्रहण करने को कहा। जब वेड ? आसनों पर बैठ विश्राम कर स्वस्थचित्त हुए तो मूषिकारदारक ने पूछा-“देवानुप्रियो ! कहिये, ड र आपके आने का क्या प्रयोजन है?'' 5(114) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SÚTRA Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र ( ११५ ) 6. When he returned from the ride Tetaliputra called the members of his staff who worked as messengers and instructed, "Beloved of gods! Go and arrange for my betrothal with Pottila the daughter of Mushikardarak." The messengers formally joined their palms, humbly and happily accepted the order, and went to the residence of Mushikardarak. The goldsmith was pleased to see them coming, got up from his seat, greeted them and offered them seats. When the messengers took there seats and made themselves comfortable Mushikardarak asked, "Beloved of gods! Tell me what brings you here?" सूत्र ७ : तए णं ते अब्भिंतरट्ठाणिज्जा पुरिसा कलायस्स मूसियारदारयस्स एवं वयासी"अम्हे णं देवाणुप्पिया ! तव धूयं भद्दाए अत्तयं पोट्टिलं दारियं तेयलिपुत्तस्स भारि यत्ताए वरेमो, तं जइ णं जाणसि देवाणुप्पिया ! जुत्तं वा पत्तं वा सलाहणिज्जं वा सरिसो वा संजोगो, ता दिज्जउ णं पोट्टिला दारिया तेयलिपुत्तस्स, तो भण देवाणुप्पिया ! किं दलामो सुक्कं ?” सूत्र ७ : अमात्य के सेवकों ने सुनार से कहा - "देवानुप्रिय ! हम आपकी पुत्री पोट्टला का हाथ तेतलिपुत्र के लिए माँगने को आए हैं । देवानुप्रिय ! यदि आप समझते हैं कि यह सम्बन्ध उचित है, प्राप्य तथा वांछित है, प्रशंसनीय है और संयोग योग्य है तो तेतलिपुत्र को पोट्टिला प्रदान करने की अनुमति दें। यदि आपकी अनुमति है तो बतावें कि इसके लिए क्या शुल्क वांछित है ?" 7. The messengers of the minister said, “Beloved of gods ! We have come to ask for the hand of your daughter Pottila in marriage for our master minister Tetaliputra. Beloved of gods! If you feel that the match is seemly, appropriate, desirable, commendable and worth a union, please give your consent to marry Pottila to Tetaliputra. If you agree to our proposal please tell us the desired dowry?" सूत्र ८ : तए णं कलाए मूसियारदारए ते अब्धिंतरट्ठाणिज्जे पुरिसे एवं वयासी - "एस चेव णं देवाणुप्पिया ! मम सुक्के जं णं तेयलिपुत्ते मम दारियानिमित्तेणं अणुग्गहं करेइ ।” ते अब्भिंतर-ठाणिज्जे पुरिसे विपुलेणं असण- पाण- खाइम - साइमेणं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारित्ता संमाणित्ता पडिविसज्जेइ । तए णं कलायस्स मूसियारदारगस्स गिहाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव तेयलिपुत्ते अमच्चे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तेयलिपुत्तं एयमहं निवेयंति । सूत्र ८ : मूषिकारदारकं ने उत्तर दिया – “देवानुप्रियो ! तेतलिपुत्र मेरी पुत्री का हाथ माँगकर मुझ पर जो अनुग्रह कर रहे हैं, मेरे लिए वही शुल्क है।" फिर उसने आगन्तुक लोगों का विपुल आहार, पुष्प, वस्त्र, गंध, माला और वस्त्रालंकार से सत्कार-सम्मान किया और उन्हें विदा किया। CHAPTER-14: TETALIPUTRA For Private Personal Use Only ( 115 ) Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - STTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTT ( ११६ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र दा र वे लोग स्वर्णकार के घर से निकल अमात्य के घर आए और तेतलिपुत्र से यह सब समाचार 15 कहे। R 8. Mushikardarak replied, “Beloved of gods! By asking the hand of my daughter the minister has bestowed honour on me and, that is more than enough as dowry." And he sent them away after offering them food and honouring them with flowers, apparels, perfumes, garlands, and ornaments. The messengers returned to Tetaliputra and informed him in details about the acceptance of the proposal. Our र विवाह र सूत्र ९ : तए णं कलाए मूसियारदारए अन्नया कयाइं सोहणंसि तिहि-नक्खत्त-मुहत्तंसि र पोट्टिलं दारियं ण्हायं सव्वालंकारविभूसियं सीयं दुरुहइ, दुरुहित्ता मित्तणाइसंपरिवुडे साओ टा 15 गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सव्विड्ढीए तेयलिपुरं मझमज्झेणं जेणेव तेयलिपुत्तस्स डा र गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोट्टिलं दारियं तेयलिपुत्तस्स सयमेव भारियत्ताए दलयइ। टी 15 सूत्र ९ : मूषिकारदारक सुनार ने शुभ तिथि और मुहूर्त में अपनी पुत्री पोट्टिला को यथाविधि ड र तैयार कराया और पालकी में बैठाकर मित्रों और स्वजनों सहित अपने पूरे वैभव से नगर के बीच 15 होता हुआ तेतलिपुत्र के घर पहुँचा। वहाँ स्वयं अपनी पुत्री पोट्टिला का तेतलिपुत्र को कन्यादान कर 15 दिया। UUUUUUUUuA > THE MARRIAGE 9. On an auspicious date and at an auspicious moment Mushikardarak got his daughter ready and dressed as a bride. Displaying all his wealth and a glory and accompanied by all his friends and relatives, he took her in a palanquin to the residence of Tetaliputra. There he gave away his daughter 12 to Tetaliputra in marriage. र सूत्र १0 : तए णं तेयलिपुत्ते पोटिलं दारियं भारियत्ताए उवणीयं पासइ, पासित्ता पोट्टिलाए ट र सद्धिं पट्टयं दुरुहइ, दुरुहित्ता सेयापीएहिं कलसेहिं अप्पाणं मज्जावेइ, मज्जावित्ता अग्गिहोमंड र करेइ, करित्ता पोट्टिलाए भारियाए मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधि-परिजणं विपुलेणं असण-पाण15 खाइम-साइमेणं पुष्फ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारिता सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ। दा र सूत्र १० : तेतलिपुत्र ने पोट्टिला को अपनी पत्नी के रूप में आई देखा और उसके साथ पट्ट । 5 पर बैठा। सोने-चाँदी के कलशों में भरे पानी से स्नान किया और अग्नि में होम किया। तत्पश्चात् टा 15 अपनी पत्नी पोट्टिला के मित्र, स्वजन, सम्बन्धी आदि को भोजनादि से सत्कार सम्मान कर विदा ड र किया (पूर्व सू. ८ के समान)। र (116) JNĀTĀ DHARMA KATHÄNGA SÚTRA SAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn - Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XXXIX 14 Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग २) चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED पोहिला के साथ तेलीपुत्र का पाणिग्रहण चित्र : १४ १. तेतलीपुर के राजा कनकरथ का अमात्य (मंत्री) था तेतलीपुत्र । पोट्टिला वहाँ के मूषिकारदारक नामक धनाढ्य सुनार की कन्या थी । पोट्टिला एक बार अपने महल की छत पर खड़ी खेल रही थी कि घोड़े पर चढ़े तेतलीपुत्र की उस पर नजर पड़ी। पोट्टिला को देखते ही वह उस पर मुग्ध हो गया। २. फिर तेलीपुत्र पता लगाकर उसके पिता के घर पहुँचा । स्वर्णकार ने खूब धूमधाम से तेतलीपुत्र अमात्य के साथ पोट्टिला का विवाह कर दिया। (चौदहवाँ अध्ययन ) THE MARRIAGE OF POTTILA AND TETALIPUTRA ILLUSTRATION : 14 1. Tetaliputra was the minister of King Kanakrath of Tetalipur. Pottila was the daughter of a rich goldsmith named Mushikardarak. Once when Tetaliputra was passing along the house of the goldsmith he saw Pottila playing on the roof and was entranced by her beauty. 2. After making enquiries he arrived at the goldsmith's house and expressed the desire to marry Pottila. Mushikardarak agreed and married his daughter to Tetaliputra with all glitter and glory as well as plenty of dowry. (CHAPTER - 14 ) JNĀTA DHARMA KATHANGA SUTRA (PART-2) For Private Personal Use Only Orego य Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FUTUUUUUUU क चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र (११७ ) डा र 10. When Tetaliputra saw Pottila as a bride he sat on a platform with her ट and performed the marriage rituals by anointing himself with water poured from gold and silver urns and putting offerings into the sacred fire. After the S 2 marriage ceremony he liberally offered food and gifts to the guests from the Sil र brides side and bade them farewell. (detailsas para 8) हे सूत्र ११ : तए णं से तेयलिपुत्ते, पोट्टिलाए भारियाए अणुरत्ते अविरत्ते उरालाइं जावडी 5 विहरइ। र सूत्र ११ : तेतलिपुत्र अपनी भार्या पोट्टिला के प्रति अनुरक्त और आसक्त हो मानवोचित भोग टा 5 भोगता हुआ जीवन बिताने लगा। 11. Tetaliputra then commenced his married life with Pottila, showering 3 5 all love and care on her and enjoying all mundane pleasures with her र सूत्र १२ : तए णं से कणगरहे राया रज्जे य रढे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे य टी र अंतेउरे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे जाए, पुत्ते वियंगेइ, अप्पेगइयाणं हत्थंगुलियाओ द है छिंदइ, अप्पेगइयाणं हत्थंगुट्ठाए छिंदइ, एवं पायंगुलियाओ पायंगुट्ठए वि कन्नसक्कुलीए विड 5 नासापुडाई फालेइ, अंगमंगाई वियंगेइ। र सूत्र १२ : राजा कनकरथ अपने राज्य, राष्ट्र, सेना, वाहन, कोष, कोठार, अन्तःपुर आदि में ट्र 5 अत्यन्त आसक्त, लोलुप और लालसामय था। इस कारण वह अपने पुत्रों को विकलांग कर देता ट 5 था। किसी के हाथ की अंगुलियाँ तो किसी के हाथ का अंगूठा, किसी के पैर की अंगुलियाँ तोड र किसी के पैर का अंगूठा और किसी के कान की झिल्ली तो किसी की नाक कटवा देता था। इस ट 5 प्रकार उसने अपने सभी पुत्रों को विकलांग कर दिया था। - 12. King Kanak-rath was excessively possessive, covetous, and rapacious ट 5 about his kingdom, state, army, conveyance, treasury, store, harem, etc.; so di much so that he made it a habit to disfigure his sons (a disfigured person 2 being traditionally considered unfit to be a king). He got their fingers or toes amputated, or cut out ear-lobes, or disfigured the nose. Thus, one way or the other he had disfigured all his sons. र रानी की योजना र सूत्र १३ : तए णं तीसे पउमावईए देवीए अन्नया पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अयमेयारूवेडा र अज्झथिए समुप्पज्जित्था-“एवं खलु कणगरहे राया रज्जे य जाव पुत्ते वियंगेइ जाव अंगमंगाइं टा र वियंगेइ, तं जइ अहं दारयं पयायामि, सेयं खलु ममं तं दारगं कणगरहस्स रहस्सियं चेवड र CHAPTER-14 : TETALIPUTRA (117) Sl FAAAAAAAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnn UMuFUNuTUR PAR Rameramananesamaka Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ज्D 卐UUUUUUUUUUUUUUUUUUUUU र ( ११८ ) ___ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ! 5 सारक्खमाणीए संगोवेमाणीए विहरित्तए' त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता तेयलिपुत्तं अमच्चं 5 र सद्दावेइ, सदावित्ता एवं वयासी र “एवं खलु देवाणुप्पिया ! कणगरहे राया रज्जे य जाव वियंगेह, तं जइ णं अहं । 15 देवाणुप्पिया ! दारगं पयायामि, तए णं तुमे कणगरहस्स रहस्सियं चेव अणुपुव्वेण सारक्खमाणे द र संगोवेमाणे संवड्ढेहि, तए णं से दारए उम्मुक्कबालभावे जोव्वणगमणुपत्ते तव य मम यह 15 भिक्खाभायणे भविस्सइ।' तए णं से तेयलिपुत्ते अमच्चे पउमावईए देवीए एयमद्वं पडिसुणेइ, टी र पडिसुणित्ता पडिगए। 15 सूत्र १३ : रानी पद्मावती देवी को एक बार मध्य रात्रि के समय विचार आया-“राजा ट र कनकरथ अपनी राज्यासक्ति के कारण सभी पुत्रों को विकलांग कर देता है। अतः यदि मेरे अब डा ए कोई पुत्र उत्पन्न हो तो अच्छा यह होगा कि मैं उसका पालन-पोषण राजा से छुपाकर करूँ।" यह ही 15 सोचकर उसने अमात्य तेतलिपुत्र को बुलाया और कहार “हे देवानुप्रिय ! राजा कनकरथ अपनी राज्यासक्ति के कारण अपने पुत्रों को विकलांग बना ही 5 देता है, इस कारण यदि अब मैं किसी पुत्र को जन्म दूँ तो राजा से छुपाकर ही उसका संरक्षण, द र संगोपन और संवर्धन करना। इसके फलस्वरूप वह बालक जब युवा होगा तो हमारा पालन-पोषण ड र करेगा।" अमात्य ने रानी के इस प्रस्ताव को स्वीकार किया और लौट गया। THE QUEEN'S PLAN 13. One day, around midnight queen Padmavati thought, “Because of his 13 covetous attitude King Kanak-rath disfigures all our sons. So, if I give birth 5 to a son in the future it would be good to bring him up covertly." Later she called minister Tetaliputra and said - “Beloved of gods! Because of his covetous attitude King Kanak-rath disfigures all our sons. So, If I give birth to a son in future I would like you to keep, protect, and bring him up covertly. So that when he becomes young he 15 will look after us.” The minister accepted the queen's proposal and returned टी home. ___सूत्र १४ : तए णं पउमावई य देवी पोट्टिला य अमच्ची सममेव गब्भं गेहंति, सममेव गब्भं दी र परिवहंति, सममेव गब्भं परिवड्ढंति। तए णं सा पउमावई देवी नवण्हं मासाणं पडिपुण्णाणं र जाव पियदंसयणं सुरूवं दारगं पयाया। र जं रयणिं च णं पउमावई देवी दारयं पयाया तं रयणिं च पोट्टिला वि अमच्ची नवण्हं 15 मासाणं पडिपुणाणं विणिहायमावन्नं दारियं पयाया। 15 (118) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA 2 'AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA) UUUUUUUUUUUUUUU UUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUU Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए תעתעתעתעתעתעתעתעתעת UDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD र चौदहवाँ अध्ययन ः तेतलिपुत्र ( ११९ ) SI 5 सूत्र १४ : रानी पद्मावती तथा अमात्य-पत्नी पोट्टिला ने एक ही समय में गर्भधारण, गर्भवहन ढ र और गर्भवृद्धि की। नौ महीने के बाद पद्मावती देवी ने प्रिय और सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। 5 जिस रात रानी ने पुत्र को जन्म दिया उसी रात अमात्य-पत्नी ने एक मरी हुई बालिका को दी 15 जन्म दिया। 14. After some time Queen Padmavati and the minister's wife, Pottila, conceived, carried, and cared for the fetus at and during the same time. After nine months Queen Padmavati gave birth to a beautiful and lovely son. 2 The day the queen gave birth to a son the minister's wife gave birth to a 13 dead girl. सूत्र १५ : तए णं सा पउमावई देवी अम्मधाई सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-“गच्छह णं र तुमे अम्मो ! तेयलिपुत्तगिहे, तेयलिपुत्तं रहस्सियं चेव सद्दावेह।" 15 तए णं सा अम्मधाई तह ति पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता अंतेउरस्स अवदारेणं निग्गच्छइ, र निग्गच्छित्ता जेणेव तेयलिपुत्तस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल जाव एवं टा 15 वयासी-“एवं खलु देवाणुप्पिया ! पउमावई देवी सद्दावेइ।" 12 सूत्र १५ : पद्मावती देवी ने अपनी धायमाता को बुलाया और कहा-“माँ ! तुम गुप्त रूप से ट र तेतलिपुत्र के घर जाओ और उन्हें बुला लाओ।" र धायमाता ने 'बहुत अच्छा' कहकर रानी का आदेश स्वीकार किया और अन्तःपुर के पिछले ड र द्वार से निकलकर तेतलिपुत्र के घर पहुँची। तेतलिपुत्र को यथाविधि हाथ जोड़ अभिवादन कर दी 15 उसने कहा-“हे देवानुप्रिय ! आपको पद्मावती देवी ने बुलावा भेजा है।" 2 15. Queen Padmavati called her mid-wife and said, “Mother! Go to the S B house of Tetaliputra stealthily and ask him to come here." 15 The mid-wife accepted the queen's order and coming out of the back door CT of the palace went to the residence of Tetaliputra. After due greetings she said, “Beloved of gods! The queen has summoned you." 15 अदला-बदली 15 सूत्र १६ : तए णं तेयलिपुत्ते अम्मधाईए अंतियं एयमढे सोच्चा णिसम्म हट्ठ-तुढे अम्मधाईए द र सद्धिं साओ गिहाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता अंतेउरस्स अवद्दारेणं रहस्सियं चेव अणुपविसइ, SI र अणुपविसित्ता जेणेव पउमावई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं जाव एवं दी 5 वयासी–“संदिसंतु णं देवाणुप्पिया ! जं मए कायव्यं।" र सूत्र १६ : तेतलिपुत्र धायमाता की बात सुन-समझकर प्रसन्न हुए और धायमाता के साथ अपने ट 15 घर से निकल चुपके से रानी के अन्तःपुर के पिछले द्वार से महल के भीतर आए। पद्मावती देवी टी R CHAPTER-14 : TETALIPUTRA (119) टा Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्य பபபப र ( १२० ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र 15 के पास जाकर हाथ जोड़ यथाविधि अभिवादन कर बोले “देवानुप्रिये ! आज्ञा दीजिये मुझे क्या डा र करना है।" THE EXCHANGE 5 16. Tetaliputra was pleased to hear and understand the message the mid> wife had brought. He left his house and accompanied the mid-wife to the queen's palace furtively through the back door. He went to Queen Padmavati s र and after due greetings asked, “Beloved of gods! Tell me what I have to do?" 15 सूत्र १७ : तए णं पउमावई देवी तेयलिपुत्तं एवं वयासी-“एवं खलु कणगरहे राया जावद र वियंगेइ, अहं च णं देवाणुप्पिया ! दारगं पयाया, तं तुमं णं देवाणुप्पिया ! तं दारगं गिण्हाहि 15 जाव तव मम य भिक्खाभायणे भविस्सइ, त्ति कटु तेयलिपुत्तस्स हत्थे दलया। र तए णं तेयलिपुत्ते पउमावईए हत्थाओं दारगं गेण्हइ, गेण्हित्ता उत्तरिज्जेणं पिहेइ, पिहित्ता 15 अंतेउरस्स रहस्सियं अवदारेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सए गिहे, जेणेव पोट्टिला भारिया द र तेणेव उवामच्छइ, उवागच्छित्ता पोट्टिलं एवं वयासीर सूत्र १७ : पद्मावती देवी ने कहा-“तुम जानते ही हो कि महाराज कनकरथ अपने पुत्रों को दी 5 विकलांग बना देते हैं। हे देवानुप्रिय ! मैंने एक पुत्र को जन्म दिया है। तुम इस बालक का दायित्व द र सँभालो। यह बालक हमारा पालक-पोषक बनेगा।" रानी ने शिशु को तेतलिपुत्र के हाथों में दे दिया। > 15 तेतलिपुत्र ने बालक को लिया और अपने उत्तरीय से ढंक लिया। फिर वह गुप्त रूप से द र अन्तःपुर के पिछले द्वार से निकलकर अपने घर लौट आया। पोट्टिला के पास जाकर बोला5 17. Queen Padmavati replied, “You are already aware that King Kanak- ८ 15 rath disfigures all our sons. Beloved of gods! I have given birth to a son. You t take charge of him. When he grows up he will become our mentor." With | these words the queen handed over the new born to Tetaliputra. 5 Tetaliputra covered the infant with his shawl and stealthily returned to C 15 his residence the way he came. He went to Pottila and said, र सूत्र १८ : “एवं खलु देवाणुप्पिया ! कणगरहे राया रज्जे य जाव वियंगेइ, अयं च णंट 15 दारए कणगरहस्स पुत्ते पउभावईए अत्तए, तेणं तुमं देवाणुप्पिया ! इमं दारगं कणगरहस्स द र रहस्सिययं चेव अणुपुवेणं सारक्खाहि य, संगोवेहि य, संवड्ढेहि य। तए णं एस दारए SI र उम्मुक्कबालभावे तव य मम य पउमावईए य आहारे भविस्सइ, त्ति कट्ट पोट्टिलाए पासे टा 15 णिक्खिवइ, पोट्टिलाए पासाओ तं विणिहाय-मावन्नियं दारियं गेण्हइ, गेण्हित्ता उत्तरिज्जेणं पिहेइ, डा र पिहित्ता अंतेउरस्स अवद्दारेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव पउमावई देवी तेणेवटी 5 उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पउमावईए देवीए पासे ठावेइ, ठावित्ता जाव पडिनिग्गए। 15(120) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SUTRA Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Siswa n.co W ww SA ISIA HARSHO 15 Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग : २) - DARILALB चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED पुत्रघातक पिता चित्र : १५ १. राजा कनकरथ के मन में राज्य सत्ता के प्रति अत्यधिक आसक्ति थी। इस कारण वह पुत्र के जन्म लेते ही छुरी आदि से अंगुली काटकर उसे विकलांग कर डालता। रानी पद्मावती अपने सामने जन्म लेते ही पुत्रों को यों विकलांग किया जाता देखकर विलख-विलख कर रोने लग जाती। एक बार पद्मावती ने मंत्री तेतलीपुत्र को अपनी व्यथा बताई। और इस बार की सन्तान की रक्षा करने का वचन लिया। २. जब रानी ने पुत्र को जन्म दिया उसी समय पोट्टिला ने एक मृत कन्या को जन्म दिया। मंत्री जन्म लेते शिशु को छुपाकर अपने घर ले जाता है। और पोट्टिला की मृत कन्या को लाकर रानी के पास सुला देता है। (चौदहवाँ अध्ययन) THE FATHER WHO MUTILATES HIS SONS ILLUSTRATION : 15 1. King Kanak-rath was so possessive of his kingdom and wealth that he used to mutilate his sons as soon as they were born so that none of them could claim his throne, Queen Padmavati cried and became sad seeing this dastardly act again and again. But the avaricious king did not change his attitude. The queen expressed her feelings to minister Tetaliputra and made him promise to somehow save his next son from being mutilated. 2. After some time, by chance the queen and the minister's wife gave birth at the same time. The queen gave birth to a son and the minister's wife to a dead girl. As per the plan the minister secretly exchanged the king's son with his dead daughter. He took the prince under his care and thus saved the heir to the throne. (CHAPTER-14) Qafi JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA (PART-2) Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ UUUUUUU - LADUDDDDDDDDDDDDDDDDDUUUUUUU 5 चौदहवाँ अध्ययन तेतलिपुत्र ( १२१) SI र सूत्र १८ : “देवानुप्रिये ! राजा कनकरथ राज्यासक्ति के कारण अपने पुत्रों को अपंग कर देता दी 15 है (पूर्वसम)। यह बालक राजा का पुत्र और रानी पद्मावती का आत्मज है। इस कारण हे ड र देवानुप्रिये ! इस बालक का लालन-पालन राजा से छुपाकर करना है। यही बालक बड़ा होकर र तुम्हारा, मेरा और रानी पद्मावती का जीवन-आधार बनेगा।" इन शब्दों के साथ तेतलिपुत्र ने उस द 5 नवजात शिशु को पोट्टिला के पास रख दिया और उसके पास से उसकी मृत कन्या को उठा लिया। ड र मृत बालिका को उत्तरीय से ढक वह अन्तःपुर के पिछले छोटे से द्वार से प्रवेश कर पद्मावती देवी ही र के पास पहुँचा। मरी हुई लड़की को रानी के पास रखकर वह वापस लौट आया। 15 18. “Because of his covetous attitude King Kanak-rath disfigures all his s 5 sons. This new born is the son of King Kanak-rath and Queen Padmavati. That is why, Beloved of gods! we have to take his care and bring him up without allowing the king to know. This infant is going to be your, mine, and the queen's mentor when he grows up." With these words Tetaliputra placed 5 the infant near Pottila and picked up her dead daughter. Covering it with his 5 shawl he took the body stealthily into the palace, placed it near the queen 15 and returned back. र सूत्र १९ : तए णं तीसे पउमावईए अंगपडियारियाओ पउमावइं देविं विणिहायमावन्नियं च 15 दारियं पयायं पासंति, पासित्ता जेणेव कणगरहे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागछित्ता करयल र जाव एवं वयासी-“एवं खलु सामी ! पउमावई देवी मइल्लियं दारियं पयाया।" 15 सूत्र १९ : रानी की परिचारिकाओं ने रानी और उसके पास पड़ी मृत कन्या को देखा और डा 15 राजा कनकरथ के पास जा अभिवादन कर बोलीं-“स्वामी ! पद्मावती देवी ने मृत कन्या को जन्म S र दिया है।" 19. When the maid servants of the queen saw the dead infant lying near 5 the queen they rushed to King Kanak-rath and informed him, "Sire! Queen 15 Padmavati has given birth to a dead daughter.” र सूत्र २0 : तए णं कणगरहे राया तीसे मइल्लियाए दारियाए नीहरणं करेइ, बहूणि दा 15 लोइयाइं मयकिच्चाई करेइ, कालेणं विगयसोए जाए। र सूत्र २० : राजा कनकरथ ने मृत कन्या का परम्परानुसार अन्तिम संस्कार किया और कुछ द 5 समय के बाद शोकमुक्त हो सामान्य जीवन बिताने लगा। ? 20. King Kanak-rath performed the traditional last rites of the infant. 2 3 With passage of time the pangs of sorrow dulled and he resumed his normal ? life. 5 सूत्र २१ : तए णं तेयलिपुत्ते कल्ले कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सदावित्ता एवं वयासी-ड "खिप्पामेव चारगसोधनं करेह जाव ठिइवडियं दसदेवसियं करेह कारवेह य, एयमाणत्तियंट PCHAPTER-14 : TETALIPUTRA (121) टा FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAR Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२२ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र पच्चप्पिणह।” जम्हा णं अम्हं एस दारए कणगरहस्स रज्जे जाए, तं होउ णं दारए नाणं कझ जाव अलं भोगसमत्थे जाए । सूत्र २१ : दूसरे दिन तेतलिपुत्र ने सेवकों को बुलाकर कहा - "हे देवानुप्रियो ! जल्दी से जाकर कारागार से बंदियों को मुक्त करो और दस दिन का पुत्र - जन्मोत्सव आयोजित करो। ये सभी कार्य सम्पन्न करके मुझे सूचित करो।" बालक ने राजा कनकरथ के राज्य में जन्म लिया अतः उसका नाम कनकध्वज रखा गया । वह क्रमशः विकसित होकर युवा हो गया । 21. Next morning Tetaliputra called his servants and instructed, "Beloved of gods! Go to the prison and get the prisoners released and also make arrangements for a ten day long birth ceremony. Do all this and report back to me.” (details as in Ch. 1). As the boy was born under the reign of King Kanak-rath he was named Kanak-dhvaj. Years passed and he became a young man. विमुख तेतलिपुत्र सूत्र २२ : तए णं सा पोट्टिला अन्नया कयाई तेयलिपुत्तस्स अणिट्ठा जाया यावि होत्था, च्छइ य यलिपुत् पोट्टिलाए नामगोत्तमवि सवणयाए, किं पुण दरिसणं वा परिभोगं वा ? तए णं तीसे पोट्टिलाए अन्नया कयाई पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि इमेयारूवे जाव समुज्जित्था - "एवं खलु अहं तेयलिपुत्तस्स पुव्विं इट्ठा आसि, इयाणिं अणिट्ठा जाया, नेच्छइ य तेयलिपुत्ते मम नामं जाव परिभोगं वा ।” ओहयमणसंकप्पा जाव झियाय । सूत्र २२ : कालान्तर में पोट्टिला तेतलिपुत्र को अप्रिय हो गई । तेतलिपुत्र उसके नाम से भी चिढ़ने लगा था तो देखने और छूने की तो बात ही क्या ? एक बार मध्य रात्रि के समय पोट्टिला के मन में विचार उठा - " तेतलिपुत्र को मैं कभी प्रिय थी, पर आज अप्रिय हो गई हूँ। वे मेरा नाम ही सुनना नहीं चाहते तो दाम्पत्य जीवन के भोगोपभोग का प्रश्न ही नहीं उठता।" और संकल्प-विकल्प में उलझकर पोट्टिला चिन्तामग्न हो गई । APATHY OF TETALIPUTRA 22. Later some time, Pottila lost her charm in the eyes of Tetaliputra. He got irritated just by the mention of her name, to say nothing of seeing or touching her. One day around midnight Pottila thought, "There was a time when Tetaliputra loved me, but now I have lost his favour. When he does not want to hear my name how can I expect a normal marital life and pleasures." These thoughts lead to a dejected and depressed state. ( 122 ) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA For Private Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कचौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र ( १२३ ) डा 15 सूत्र २३ : तए णं तेयलिपुत्ते पोट्टिलं ओहयमणसंकप्पं जाव झियायमणिं पासइ, पासित्ता एवं डी र वयासी-“मा णं तुम देवाणुप्पिया ! ओहयमणसंकप्पा, तुमं णं मम महाणसंसि विपुलं असणंड 5 पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेहि, उवक्खडावित्ता बहूणं समणमाहण जाव अतिहि-किवण-ट र वणीमगाणं देयमाणी य दवावमाणी य विहराहि।" 5 तए णं सा पोट्टिला तेयलिपुत्तेणं एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्टा तेयलिपुत्तस्स एयमढें पडिसुणेइ, हा र पडिसुणित्ता कल्लाकल्लिं महाणसंसि विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं जाव उवक्खडावेइ, हा 15 उवक्खाडावेत्ता बहूणं समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगाणं देयमाणी य दवावेमाणी य विहरइ। दी र सूत्र २३ : भग्न हृदया पोट्टिला को चिन्तामग्न देखा तो तेतलिपुत्र ने उससे कहा-“देवानुप्रिये ! डी 15 मन को दुःखी मत करो। तुम मेरी भोजनशाला में विपुल आहार सामग्री तैयार करवाकर अनेक दी र श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि तथा याचकों को दान दिया-दिलाया करो और सुख से जीवन व्यतीत किया डा एकरो।" 5 तेतलिपुत्र के इस कथन से पोट्टिला प्रसन्न और संतुष्ट हुई। वह अपने पति की बात स्वीकार ६ र कर उसी के अनुसार आहारदान देने-दिलाने लगी और सुख से जीवन बिताने लगी। 5 23. When Tetaliputra saw her in this sad condition he said, “Beloved of दा 5 gods! Don't get dejected. You can get large quantities of food cooked in my s kitchen and distribute it to numerous Shramans, Brahmans, guests and 3 beggars. Doing such charity you can spend your time happily." 5 This pleased Pottila. Accepting the advice of her husband she started 5 distributing food and enjoying the charitable act. र सूत्र २४ : तेणं कालेणं तेणं समएणं सुव्वयाओ नामं अज्जाओ ईरियासमियाओ जावट र गुत्तबंभयारिणीओ बहुस्सुयाओ बहुपरिवाराओ पुच्वाणुपुव्विं चरमाणीओ जेणामेव तेयलिपुरे डा र नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता, अहापडिरूवं उग्गहं ओगिण्हंति, ओगिण्हित्ता संजमेण 5 तवसा अप्पाणं भावमाणीओ विहरंति। 5 सूत्र २४ : काल के उस भाग में ईर्यासमिति आदि सभी नियमों का पालन करने वाली, ट 5 गुप्त-ब्रह्मचारिणी, बहुश्रुत और विशाल शिष्य परिवार वाली सुव्रता नाम की साध्वी एक स्थान से ई र दूसरे स्थान को विहार करती तेतलिपुर नगर में पधारी। वहाँ यथोचित अवग्रह आदि ग्रहणकर 5 उपाश्रय में ठहरी और संयम तथा तप की साधना में आत्मलीन हो रहने लगी। र 24. During that period of time a Sadhvi (female ascetic) named Suvrata, SI 2 moving from one village to another, arrived in Tetalipur town. She was an $ strict adherent of the ascetic disciplines including the discipline of movement and celibacy. She was well read and had a large family of disciples. She IS CHAPTER-14 : TETALIPUTRA (123) टा SAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnni Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ( १२४ ) stayed with her disciples at a suitable place and commenced her spiritual activities. पोट्टिला का अनुरोध सूत्र २५ : तए णं तासिं सुव्वयाणं अज्जाणं एगे संघाइए पढमाए पोरिसीए सज्झायं करे इ जाव अडाणीओ तेयलिपुत्तस्स गिहं अणुपविट्ठाओ । तए णं सा पोट्टिला ताओ अज्जाओ एज्जमाणीओ पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठा आसणाओ अब्भट्ठे, अब्भुट्टित्ता वंदइ नमसइ वंदित्ता सत्ता विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं पडिलाभेइ, पडिलाभित्ता एवं वयासी " एवं खलु अहं अज्जाओ ! तेयलिपुत्तस्स पुव्विं इट्टा कंता पिया मणुण्णा मणामा आसि, इयाणिं अणिट्टा अप्पिया, अकंता अमणुण्णा अमणामा जाया । नेच्छइ णं तेयलिपुत्ते मम नामगोयमवि सवणयाए, किं पुण दंसणं वा परिभोगं वा ? तं तुब्भे णं अज्जाओ बहुनायाओ, बहुसिक्खियाओ, बहुपढियाओ, बहूणि गामागर जाव आहिंडह, राईसर जाव गिहाई अणुविस, तं थाई भे अज्जाओ ? केइ कहिंचि चुन्नजोगे वा, मंतजोगे वा, कम्मणजोए वा, हियउड्डावणे वा, काउड्डावणे वा, आभिओगिए वा, वसीकरणे वा, कोउयकम्मे वा, भूइकम्मे वा, मूले कंदे छल्ली वल्ली सिलिया वा, गुलिया वा, ओसहे वा, भेसज्जे वा उवलद्वपुव्वे जेणाहं तेयलिपुत्तस्स पुणरवि इट्ठा भवेज्जामि । सूत्र २५ : सुव्रता आर्या के एक संघाडे ने प्रथम प्रहर में स्वाध्याय और दूसरे प्रहर में ध्यान किया। तीसरे प्रहर में भिक्षादि के लिए निकलीं और भ्रमण करती हुई साध्वियाँ तेतलिपुत्र के घर में आईं। पोट्टिला उन्हें आते देख प्रसन्न और सन्तुष्ट हुई, अपने आसन से उठ उन्हें वंदन - नमस्कार किया और यथेष्ट आहार सामग्री बहरायी। इसके बाद वह बोली “हे आर्याओ ! पहले मैं तेतलिपुत्र की इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और मणाम ( मनभावन ) थी किन्तु अब अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ और अमणाम हो गई हूँ । तेतलिपुत्र मेरा नाम भी सुनना नहीं चाहते, देखना और परिभोग करना तो दूर की बात है। हे आर्याओ ! आप तो बहुत विदान् हैं, शिक्षित हैं, अनुभवी हैं, अनेक नगर-ग्राम में भ्रमण कर चुकी हैं, अनेक राजाओं, युवराजों आदि के घरों में जा चुकी हैं। अतः आपके पास यदि कोई चूर्ण - योग, मंत्र - योग, कामण-योग, मन हरने का उपाय, शरीर को आकर्षित करने का उपाय, पराभूत करने का उपाय, वशीकरण का प्रयोग, मनमोहक हेतु अभिषेक, मंत्रित भभूत का प्रयोग अथवा सेल, कंद, छाल, बेल, घास, गोली, औषध या भेषज की जानकारी हो तो बतावें ताकि मैं फिर से तेतलिपुत्र की प्रिय हो सकूँ ।" POTTILA SEEKS HELP 25. During the first quarter of the day (three hours ) Arya Suvrata did her studies, during the second one she did her meditation, and during the third JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA ( 124 ) Fo For Private Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् UUUUU र चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र ( १२५ ) टा 5 one she set out to beg alms with her group and arrived at the residence of S Tetaliputra. Pottila was pleased when she saw them coming. She got up from 2 her seat, duly greeted them and offered them ample food. After this she र said Aryas! Earlier I was cherished, lovely, adored, charming, and beloved wife of Tetaliputra. But now in his eyes I have become opposite of that. When he does not want to hear my name, looking at me and enjoying my body are beyond expectation. Aryas! You are learned, experienced and scholarly; you have visited many towns and villages, and palaces and mansions of kings, princes and others. As such, if you have any knowledge of some concoction of powders, combination of Mantras, process of sorcery, method of bewitching, 5 inspiring physical attraction, ritual of exorcising, method of hypnotizing, S P process of anointing to cause a spell, use of magical ash made potent by incantation, or use of medicines and drugs like thorns, roots, bark, creeper, grass, pill, or mixture, please tell me so that I may once again gain favour & 5 and love of Tetaliputra." र सूत्र २६ : तए णं ताओ अज्जाओ पोट्टिलाए एवं वुत्ताओ समाणीओ दो वि कन्ने ठाइंति, हा र ठाइत्ता पोट्टिलं एवं वयासी-"अम्हे णं देवाणुप्पिया ! समणीओ निग्गंथीओ जावद 15 गुत्तबंभचारिणीओ, नो खलु कप्पइ अम्हं एयप्पयारं कन्नेहि वि निसामेत्तए, किमंग पुणड र उवदिसित्तए वा, आयरित्तए वा ? अम्हे णं तव देवाणुप्पिया ! विचित्तं केवलिपन्नत्तं धम्मंट 15 परिकहिज्जामो।" सूत्र २६ : पोट्टिला के इस कथन पर साध्वियों ने अपने दोनों कान बन्द कर लिये और कहा-ट 5 "देवानुप्रिये ! हम निर्ग्रन्थ श्रमणियाँ हैं, गुप्त ब्रह्मचारिणी हैं, अतः ऐसी बातें हमारे कानों में पड़ना ड 15 भी हमें नहीं कल्पता। इस विषय का उपदेश देना अथवा ऐसा आचरण करना हमारे लिए कैसे र संभव हो सकता है ? हाँ, देवानुप्रिये ! हम तुम्हें केवली द्वारा प्ररूपित अद्भुत धर्म का उपदेश भली 2 5 प्रकार से अवश्य दे सकती हैं।" । 15 26. At this outburst from Pottila the Sadhvi-s closed their ears with their palms and said, “Beloved of gods! we are Nirgranth Shramanis (Jain female ascetics) and we are strictly celibate; as such, it is sinful for us even to hear such talk. How could it be possible for us to indulge in activities like 15 preaching on the subject? However, we can certainly preach the unique 15 religion propagated by The Omniscient." र सूत्र २७ : तए णं सा पोट्टिला ताओ अज्जाओ एवं वयासी-“इच्छामि णं अज्जाओ ! तुम्हंटा 15 अंतिए केवलिपन्नत्तं धम्म निसामित्तए!" तए णं ताओ अज्जाओ पोट्टिलाए विचित्तं धम्म ड AUALIAL UUUUN PTER-14 : TETALIPUTRA (125) C Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - UUUUUA मज्ज २ ( १२६ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 परिकहेंति। तए णं सा पोट्टिला धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतट्ठा एवं वयासी-“सद्दहामि णं दा र अज्जाओ ! निग्गंथं पावयणं जाव से जहेयं तुब्भे वयह, इच्छामि णं अहं तुब्भं अंतिए डी 15 पंचाणुव्वइयं जाव सत्त सिक्खावइयं गिहिधम्म पडिवज्जित्तए।" 15 अहासुहं देवाणुप्पिए ! र सूत्र २७ : पोट्टिला ने उत्तर दिया-“हे आर्याओ ! मैं आपसे केवली प्ररूपित धर्म सुनना चाहती र हूँ।" इस पर उन साध्वियों ने पोट्टिला को उस अद्भुत धर्म का उपदेश दिया। पोट्टिला धर्मोपदेश 15 सुन-समझकर प्रसन्न व संतुष्ट होकर बोली-“आर्याओ ! मैं निर्ग्रन्थ के प्रवचन पर श्रद्धा करती हूँ। टी र जैसा आपने कहा वह वैसा ही है। इसलिए मैं आपके निकट अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत वाले ड र श्रावकधर्म को अंगीकार करना चाहती हूँ।" र आर्याओं ने उत्तर दिया-“देवानुप्रिये ! जिसमें सुख मिले वह करो।" 27. Pottila said, “Aryas! I would certainly like to hear the religion à propagated by The Omniscient." And the Sadhvis gave a discourse on the 5 unique religion. On listening and understanding the discourse Pottila | 2 became happy and contented. She said, “Aryas! I have faith in the word of The Omniscient; what you have said is true. As such, I would like to get 5 initiated into the Shravak Dharma (your order for laity) that includes the five minor vows and seven disciplinary vows." 2 The Aryas said, “Do as you please." र श्राविका पोट्टिला 15 सूत्र २८ : तए णं सा पोट्टिला तासिं अज्जाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं जाव धम्म पडिवज्जइ, दी र ताओ अज्जाओ वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता पडिविसज्जेइ। तए णं सा पोट्टिला समणोवासिया जाया. जाव समणे निग्गंथे पासुएणं एसणिज्जेण दा र असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएणं ही 15 पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणी विहरइ। र सूत्र २८ : पोट्टिला ने उन आर्याओं से पाँच अणुव्रतादियुक्त धर्म अंगीकार किया और टी 15 वन्दना-नमस्कार कर उन्हें विदा किया। र अब पोट्टिला श्रमणोपासिका हो गई और निर्ग्रन्थ श्रमणों को वांछित वस्तुएँ प्रदान करती जीवन टा 5 व्यतीत करने लगी। (वांछित वस्तुएँ-उचित तथा स्वीकार करने योग्य अशन, पान, खादिम, द र स्वादिम, आहार, वस्त्र, पात्र, कम्बल, पाँवपोंछ, औषध, भेषज तथा वापस करने योग्य पीढा, पाट, द्र र शय्या, उपाश्रय और संस्तारक का बिछावन आदि।) 5 (126) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA SAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn) Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ UUUUUUUN 15 uuriruur Lurrart 5 र चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र ( १२७ ) डा R SHRAVIKA POTTILA 28. Pottila took the prescribed vows and sent the Aryas away with 2 ceremony. B Now Pottila became a Shramanopasika and started spending her days 5 donating various things needed by the ascetics. (these things include - 2 consumables like food, apparel, utensils, rugs, towels, medicines, and other such things and returnable durables like seat, bench, bed, abode, and bedo made of hay, and other such things suitable and prescribed for an ascetic.) S 5 सूत्र २९ : तए णं तीसे पोट्टिलाए अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियंट जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुष्पज्जित्था-"एवं खलु अहं तेयलिपुत्तस्स पुब्बिं डा र इट्ठा ५ आसि, इयाणिं अणिट्ठा ५ जाया जाव परिभोगं वा, तं सेयं खलु मम सुव्वयाणं अज्जाणं 5 अंतिए पव्वइत्तए।" एवं संपेहेइ। संपेहित्ता कल्लं पाउप्पभायाए जेणेव तेयलिपुत्ते तेणेवट र उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट एवं वयासी-“एवं डा र खलु देवाणुप्पिया ! मए सुव्ययाणं अज्जाणं अंतिए धम्मे निसंते जाव से वि य मे धम्मे इच्छिए । 5 पडिच्छिए अभिरुइए। तं इच्छामि णं तुब्भेहि अब्भणुनाया पव्वइत्तए।" र सूत्र २९ : कुछ समय बाद एक बार अर्ध-रात्रि के समय जब पोट्टिला पारिवारिक चिन्ताओं में 2 5 डूबी जाग रही थी, उसके मन में विचार उठा-“पहले मैं तेतलिपुत्र को प्रिय थी (पूर्व-सू. २५ ट र के समान)। किन्तु अब अप्रिय अनिष्ट लगने लगी हूँ। अतः अच्छा होगा कि मैं सुव्रता आर्या के ड र पास दीक्षा ग्रहण कर लूँ।" दूसरे दिन प्रातःकाल वह तेतलिपुत्र के पास गई और यथाविधि । 5 अभिनन्दन करके बोली-“देवानुप्रिय ! मैंने सुव्रता आर्या से धर्म सुना है। वह धर्म मुझे इष्ट, अतीव टे र इष्ट और रुचिकर लगा है अतः आपसे आज्ञा पाकर मैं दीक्षा लेना चाहती हूँ।" 29. A few days later once again around midnight when Pottila was awake 5 and worrying about some domestic problem she thought, “There was a time 15 when Tetaliputra loved me, but now I have lost his favour. (as para 25). As ट such, it would be best for me to get Diksha and become an ascetic." Next morning she approached Tetaliputra and after greetings asked him, "Beloved of gods! I have listened to the discourse of Suvrata Arya and found it to be very much desirable. I want to accept Diksha after getting your permission." रे तेतलिपुत्र की शर्त र सूत्र ३० : तए णं तेयलिपुत्ते पोट्टिलं एवं वयासी-“एवं खलु तुमं देवाणुप्पिए ! मुंडा 15 भवित्ता पव्वइया समाणी कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववज्जिहिसि, तंद र जइ णं तुम देवाणुप्पिए ! ममं ताओ देवलोयाओ आगम्म केवलिपन्नत्ते धम्मे बोहेहि, तो हंड 15 विसज्जेमि, अह णं तुम ममं णं संबोहेसि तो ते ण विसज्जेमि।" 5 CHAPTER-14 : TETALIPUTRA (127) 卐nnnnnnnnnAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA FILLIUALALA FUUUUUY Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ UUUUUN प्रज्ज 5( १२८ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 तए णं सा पोट्टिला तेयलिपुत्तस्स एयमहूँ पडिसुणेइ। सूत्र ३0 : तेतलिपुत्र ने पोट्टिला से कहा-“देवानुप्रिये ! तुम मुंडन कराके दीक्षा लोगी और 2 अपने अन्त समय देह त्याग कर किसी देवलोक में जन्म लोगी। यदि तुम वचन दो कि उस देवलोक ८ 15 से आकर मुझे केवली प्रदत्त धर्म का प्रतिबोध दोगी तो मैं तुम्हें अनुमति देता हूँ अन्यथा नहीं।" र पोट्टिला ने तेतलिपुत्र का यह अनुरोध स्वीकार कर लिया। P TETALIPUTRA'S CONDITION 30. Tetaliputra replied, "Beloved of gods! You will get your head shaved > and become an ascetic. In the end when you breath your last you shall reincarnate in some dimension of gods. If you promise me that as god you will come to me and show me the path shown by The Omniscient then, and then only I will give you permission. 5 Pottila accepted Tetaliputra's request. र सूत्र ३१ : तए णं तेयलिपुत्ते विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, 15 उवक्खडावित्ता मित्तणाइ जाव आमंतेइ, आमंतित्ता जाव संमाणेइ, संमाणित्ता पोट्टिलं ण्हायं जावद र पुरिसहस्सवाहणीयं सीयं दुरुहित्ता मित्तणाइ जाव परिवुडे सव्विड्डीए जाव रवेणं तेतलिपुरस्स हा र मझंमज्झेणं जेणेव सुव्वयाणं उवस्सए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, सी 5 पच्चीरुहित्ता पोट्टिलं पुरओ कटु जेणेव सुव्वया अज्जा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वंदइ र नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी15 "एवं खलु देवाणुप्पिए ! मम पोट्टिला भारिया इट्ठा, एस णं संसारभउव्विग्गा जाव 2 पव्वइत्तए। पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिए ! सिस्सिणिभिक्खं दलयामि।" 5 “अहासुहं मा पडिबंधं करेह।" र सूत्र ३१ : तेतलिपुत्र ने प्रचुर अशनादि आहार सामग्री बनवाई और मित्रादि को निमंत्रण दिया। ट 5 अतिथियों का यथोचित आदर-सत्कार किया और पोट्टिला को स्नानादि करवा तैयार करवाया। फिर डा र हजार पुरुषों के उठाने योग्य पालकी पर पोट्टिला को सवार करा मित्रादि को साथ ले समस्त वैभव 12 सहित गाजे-बाजे के साथ वह तेतलिपुर के बीच होता हुआ सुव्रता साध्वी के पास पहुँचा। उन्हें टी 15 यथाविधि वन्दना-नमस्कार कर तेतलिपुत्र बोला-“देवानुप्रिये ! मेरी यह पोट्टिला भार्या मुझे प्रिय है। दा 15 यह संसार के भय से उद्विग्न हो गई है और दीक्षा लेना चाहिती है। अतः हे देवानुप्रिये ! मैं आपको डा र शिष्य-भिक्षा देता हूँ, इसे स्वीकार कीजिये।" 5 साध्वी ने उत्तर दिया-“जिसमें सुख मिले वह अविलम्ब करो।" 2 31. Tetaliputra made arrangements for a great feast and delicious and 5 savory dishes were prepared. He invited all his relatives and friends. After a र(128) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ L дело. एण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ज U DDDDDDDDDDDDDDDD) र चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र ( १२९ ) | 15 the feast, he honoured the guests with suitable gifts. He got Pottila ready after bath (etc.). Taking her in a Purisasahassa palanquin, displaying all his wealth and grandeur, and accompanied by all the guests he passed through 2 the streets of Tetalipur with all fan fare and arrived at the place whe Suvrata was staying. After offering his obeisance to the Arya he said, "Beloved of gods! This is Pottila, my wife. I love and cherish her. She has become fearful of the mundane life and desires to accept Diksha. As such, 15 Beloved of gods! I make a disciple-donation to you. Please accept." 12 The Sadhvi replied, “Do as you please.” 5 सूत्र ३२ : तए णं सा पोट्टिला सुव्वयाहिं अज्जाहिं एवं वुत्ता समाणा हट्ठ-तुट्ठा उत्तरपुरथिमे डा र दिसिभाए सयमेव आभरण-मल्लालंकारं ओमुयइ, ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, टे 5 करित्ता जेणेव सुव्ययाओ अज्जाओ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वंदइ नमसइ वंदित्ता डा नमंसित्ता एवं वयासी-"आलिते णं भंते ! लोए" एवं जहा देवाणंदा, जाव एक्कारस अंगाई, टा 15 बहूणि वासाणि सामन्नपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झोसित्ता सद्धिं डा र भत्ताइं अणसणेणं छेइत्ता, आलोइय-पडिक्कता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसुटी 15 देवलोएसु देवत्ताए उववन्ना। र सूत्र ३२ : सुव्रता आर्या के इस कथन पर पोट्टिला प्रसन्न और संतुष्ट हुई। उत्तर-पूर्व दिशा में ट 5 जाकर उसने स्वयं ही अपने आभूषण, माला व अलंकार उतार दिए और अपने हाथों से पंचमुष्टि ड र लोच किया। ये सब कार्य संपन्न कर वह सुव्रता आर्या के पास लौटी और वन्दनादि के पश्चात् S र बोली-'हे भगवती ! यह संसार चारों ओर से जल रहा है ........।" (दीक्षा का विस्तृत वर्णन टी 15 भगवतीसूत्र में वर्णित देवानन्दा की दीक्षा के समान है)। दीक्षा के बाद पोट्टिला ने ग्यारह अंगों का ड र अध्ययन किया और अनेक वर्षों तक चारित्र का पालन किया। अन्ततः एक माह की संलेखना कर र कृशकाय हो, साठ भक्त अनशन कर, प्रतिक्रमण व आलोचना कर समाधिमरण द्वारा शरीर त्याग टा 15 पोट्टिला ने देवलोक में देवरूप में जन्म लिया। 32. Pottila was pleased to hear this. She went in the north-eastern direction, put off her ornaments, garlands and other embellishments and pulled out her hair (Panchmushti Loach). After completing these formalities Ć 5 she returned to Arya Suvrata and after obeisance said, “Bhagavati! This C world is burning fiercely in the fire of aging and death. . . . . . . . ." Pleading thus she got initiated. (detailed description of the initiation is same as that of B Devananda in Bhagavati Sutra). With the passage of time she acquired the 5 knowledge of the eleven canons and lived a long and disciplined ascetic life. 5 In the end she took the ultimate vow of one month duration. She became UPL (129) टा 15 CHAPTER-14 : TETALIPUTRA PAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAI Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - धDDDDDDDDDDDDDDज्जन PP (१३०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा emaciated and after meditation and a last critical review of her life sh embraced a meditator's death and reincarnated as a god. 5कनकरथ का देहान्त 2 सूत्र ३३ : तए णं से कणगरहे राया अन्नया कयाई कालधम्मुणा संजुत्ते यावि होत्था। तए । 5 णं राईसर जाव णीहरणं करेंति, करित्ता अन्नमन्नं एवं वयासी-“एवं खलु देवाणुप्पिया ! र कणगरहे राया रज्जे य जाव पुत्ते वियंगित्था, अम्हे णं देवाणुप्पिया ! रायाहीणा, रायाहिट्ठिया, र रायाहीणकज्जा, अयं च णं तेतली अमच्चे कणगरहस्स रण्णो सव्वट्ठाणेसु सव्वभूमियासु 5 लद्धपच्चए दिनवियारे सव्वकज्जवड्डावए यावि होत्था। तं सेयं खलु अम्हं तेयलिपुत्तं अमच्चंद र कुमार जाइत्तए' त्ति कटु अन्नमन्नस्स एयमटुं पडिसुणेति, पडिसुणित्ता जेणेव तेयलिपुत्ते अमच्चे ड 5 तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तेयलिपुत्तं एवं वयासीर “एवं खलु देवाणुप्पिया ! कणगरहे राया रज्जे य रढे य जाव वियंगेइ, अम्हे य णंट 5 देवाणुप्पिया ! रायाहीणा जाव रायाहीणकज्जा, तुमं च णं देवाणुप्पिया ! कणगरहस्स रण्णो दी र सव्वट्ठाणेसु जाव रज्जधुराचिंतए। तं जइ णं देवाणुप्पिया ! अस्थि केइ कुमारे रायलक्खणसंपन्ने । 15 अभिसेयारिहे, तं णं तुमं अम्हं दलाहि, जा णं अम्हे महया रायाभिसेएणं अभिसिंचामो।" र सूत्र ३३ : इधर कालान्तर में राजा कनकरथ का देहावसान हो गया। राजाओं तथा राजकुमारों ड B आदि प्रतिष्ठितजनों ने यथाविधि उसका अन्तिम संस्कार किया। तत्पश्चात् उन लोगों ने परस्पर ट] 5 विचार किया-“देवानुप्रियो ! राजा कनकरथ ने अपनी राज्यासक्ति के कारण अपने पुत्रों को दी र विकलांग कर दिया है। हम सब तो राजा के आधीन रहे हैं, राजा के अधिष्ठित होकर रहने और ड र कार्य करने वाले हैं पर अमात्य तेतलिपुत्र सदा सभी भूमिकाओं में राजा कनकरथ के विश्वासपात्र, टे 15 परामर्शदाता और कार्य-संचालक रहे हैं। अतः हमें उनसे योग्य शासक की याचना करनी चाहिये।" र इस विचार पर सहमत हो वे सभी तेतलिपुत्र के पास आए और बोले15 “देवानुप्रिय ! आप सभी कामों में राजा कनकरथ के परम विश्वास पात्र एवं राज्य के हित टा चिंतक रहे हैं अतः हमने विमर्श कर आपसे योग्य शासक की याचना करने का निर्णय लिया है। अतः यदि कोई कुमार राज लक्षणों से युक्त और राज्याभिषेक के योग्य हो तो हमें बतावें जिससे डा 15 हम उसका उपयुक्त समारोह सहित राज्याभिषेक करें।" KANAK-RATH PASSES AWAY 33. Some years later King Kanak-rath died. Kings, princes and other prominent people performed his last rites. After that they conferred, र “Beloved of gods! Because of his covetous attitude King Kanak-rathi 5 disfigured all his sons. We have always remained as subjects of the king and a 5 worked under his guidance only. But minister Tetaliputra has always been a JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA J Sannnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr 15 (130) Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्卐 UUUN कचौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र ( १३१ ) SI Bhis confidante, advisor, and administrator on his behalf in all matters. As 5 such, we should request him to provide an able ruler.” Deciding thus, they all 15 came to Tetaliputra and said - "Beloved of gods! After due deliberations we have decided to request you 3 to provide an able ruler. If you know of some prince having virtues desired of 15 a king, please tell us so that we may arrange for a grand coronatio 5 ceremony." र सूत्र ३४ : तए णं तेयलिपुत्ते तेसिं ईसरपभिईणं एयमट्ठ पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता कणगज्झयंट 15 कुमार पहायं जाव सस्सिरीयं करेइ, करित्ता तेसिं ईसरपभिईणं उवणेइ, उवणित्ता एवं वयासी5 "एस णं देवाणुप्पिया ! कणगरहस्स रण्णो पुत्ते, पउमावईए देवीए अत्तए, कणगज्झए टा र कुमारे अभिसेयारिहे रायलक्खणसंपन्ने। मए कणगरहस्स रण्णो रहस्सियं संवड्डिए। एयं णं तुभेडा 5 महया महया रायाभिसेएणं अभिसिंचह।" सव्वं च तेसिं उट्ठाणपरियावणियं परिकहेइ। र तए णं ते ईसरपभिइओ कणगज्झयं कुमारं महया महया रायाभिसेएणं अभिसिंचंति। 5 सूत्र ३४ : तेतलिपुत्र ने उन प्रतिष्ठित जनों का अनुरोध स्वीकार किया और कुमार कनकध्वज डा 12 को वस्त्रालंकार से विभूषित कर उनके सामने लाकर कहा5 "देवानुप्रियो ! यह कनकरथ राजा का पुत्र और रानी पद्मावती का आत्मज कुमार कनकध्वज र है। यह राज्य कलाओं से युक्त और अभिषेक योग्य है। मैंने कनकरथ राजा से गुप्त रखकर इसका 5 लालन-पालन किया है। आप लोग इसका पूर्ण समारोह के साथ राज्याभिषेक करें।" यह कहकर 5 उन्होंने कुमार के जन्म और लालन-पालन का समग्र वृत्तान्त कह सुनाया। B 34. Tetaliputra accepted the request of those prominent citizens and after 5 due preparations presented prince Kanak-dhvaj before them. He said2 "Beloved of gods! This is prince Kanak-dhvaj. He is the son of late kingSI Kanak-rath and Queen Padmavati. He is endowed with all the virtues a king B should have and thus he may be crowned. I brought him up keeping it a secret from king Kanak-rath. You may crown him with all due ceremonies." 5 And Tetaliputra narrated in details all the incidents of the life of the prince. cl र सूत्र ३५ : तए णं ते ईसरपभिइओ कणगज्झयं कुमारं महया महया रायाभिसेएणं 15 अभिसिंचंति। तए णं से कणगज्झए कुमारे राया जाए, महया हिमवंत-महंत-मलय-मंदर-डी र महिंदसारे, वण्णओ, जाव रज्जं पसासेमाणे विहरइ। र तए णं सा पउमावई देवी कणगज्झयं रायं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-“एस णं पुत्ता ! डा तव (पिता कणग रहे राया) रज्जे य जाव अंतेउरे य तुमं च तेयलिपुत्तस्स पहावेणं, तं तुमं णं दी 5 CHAPTER-14 : TETALIPUTRA ( 131) टा FEAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAE Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३२ ) धर्म तेयलिपुत्तं अमच्चं आढाहि, परिजाणाहि, सक्कारेहि, सम्माणेहि, इंतं अब्भुट्ठेहि ठियं पज्जुवासाहि वच्चंतं पडिसंसाहेहि, अद्धासणेणं उवनिमंतेहि, भोगं च से अणुवड्ढे हि । सूत्र ३५ : वहाँ उपस्थित राजकुमार आदि प्रतिष्ठित जनों ने कुमार कनकध्वज का अपार वैभवयुक्त राज्याभिषेक किया, कनकध्वज राजा बन गया ( राजा का वर्णन औपपातिकसूत्र के अनुसार है) और राज्य का संचालन करता जीवन व्यतीत करने लगा। इस अवसर पर पद्मावती देवी ने राजा कनकध्वज को बुलाकर कहा - " पुत्र ! ( यद्यपि तुम्हारे पिता कनकरथ राजा थे ) किन्तु तुम्हें यह राज्य व अंतःपुर तेतलिपुत्र की कृपा से प्राप्त हुए है । अतः तुम अमात्य तेतलिपुत्र को अपना हितैषी जान उनका आदर करना, सत्कार करना और सम्मान करना। उनके आने पर खड़े होकर आवभगत और उपासना करना। वे जाने लगें तो उनके साथ जाकर विदा करना। वे बोलें तो उनके कथन की सराहना करना। उन्हें अपने साथ आसन प्रदान करना और उनकी सम्पन्नता में वृद्धि करना। 35. All those present there arranged for a grand coronation ceremony and Kanak-dhvaj became the king. ( details as per Aupapatik Sutra ). He commenced his life dispensing all his duties as a ruler. On this occasion Queen Padmavati called the new king and said, "Son! You have got this palace and the kingdom by the grace of Tetaliputra. As such, you should pay all due regards, respect and honour to him considering him to be your well wisher. When he comes, you should stand and greet him with due respect. When he leaves, you should accompany him to the gate. When he speaks, you should commend his statement. In protocol you should offer him a seat besides your own and above all, you should enhance his financial status. सूत्र ३६ : तए से कणगज्झए पउमावईए देवीए तह त्ति पडिसुणेइ, जाव भोगं च से वड्ढे सूत्र ३६ : कनकध्वज ने पद्मावती देवी की आज्ञा को शिरोधार्य किया और अमात्य तेतलिपुत्र को सभी सुविधाएँ व अधिकार प्रदान कर दिये । 36. Kanak-dhvaj accepted the instructions of Queen Padmavati with due regards and extended all the facilities and powers as told. सूत्र ३७ : तए णं से पोट्टिले देवे तेयलिपुत्तं अभिक्खणं-२ केवलिपन्नत्ते धम्मे संबोहेइ, नो चेव णं से तेयलिपुत्ते संबुज्झइ । तए णं तस्स पोट्टिलदेवस्स इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुपज्जित्था - " एवं खलु कणगज्झए राया तेयलिपुत्तं आढाइ, जाव भोगं च संवड्ढेइ तए णं से तेयलिपुत्ते अभिक्खणं अभिक्खणं संबोहिज्जमाणे वि धम्मे नो संबुज्झइ, तं सेयं खलु कणगज्झयं तेयलिपुत्ताओ विप्परिणामित्तए' त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता कणगज्झयं तेयलिपुत्ताओ विपरिणामेइ । ( 132 ) For Private JNĀTA DHARMA KATHĀNGA SŪTRA Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौदहवाँ अध्ययन: तेतलिपुत्र ( १३३ ) सूत्र ३७ : उधर पोट्टिल देव ने तेतलीपुत्र को बारंबार केवली प्रदत्त धर्म का प्रतिबोध दिया किन्तु तेतलिपुत्र को बोध जाग्रत नहीं हुआ । पोट्टिल देव के मन में विचार आया--" राजा कनकध्वज अमात्य का आदर, सत्कार आदि ( पूर्व - सूत्र ३५ के समान) करता है। इसी कारण बार-बार प्रतिबोध देने पर भी लिपुत्र पर कोई प्रभाव नहीं होता । अतः उचित होगा कि कनकध्वज को अमात्य के विरुद्ध कर दिया जाय।" यह विचार आने पर देव ने राजा को तेतलिपुत्र से विमुख कर दिया। 37. Meanwhile the god Pottil descended time after time and preached the word of The Omniscient but Tetaliputra failed to see the light. At last god Pottil decided, "King Kanak-dhvaj gives all due regards and facilities to Tetaliputra (as detailed in para 35). That is the reason that there is hardly any effect of repeated preaching on him. So it is required that Kanak-dhvaj be turned against the minister." And he immediately implemented his idea. राजा की उदासीनता सूत्र ३८ : तए णं तेयलिपुत्ते कल्लं पहाए जाव पायच्छित्ते आसखंधवरगए बहूहिं पुरिसेहिं संपरिवुडे साओ गिहाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कणगज्झए राया तेणेव पहारेत्थ गमणाए । सूत्र ३८ : दूसरे दिन स्नानादि सभी नित्य कर्मों से निवृत्त हो श्रेष्ठ अश्व पर सवार हो अनेक लोगों से घिरा तेतलिपुत्र अमात्य अपने घर से कनकध्वज राजा के पास जाने के लिए निकला। KING'S APATHY 38. Next day getting ready after his bath Tetaliputra set out to visit the king. He was riding a horse and was surrounded by many people. सूत्र ३९ : तए णं तेयलिपुत्तं अमच्चं से जहा बहवे राईसरतलवर जाव पभिइओ पासंति, ते तहेव आढायंति, परिजाणंति अब्भुट्ठेति, अब्भुट्ठित्ता अंजलिपरिग्गहं करेंति, करिता इट्ठाहिं कंताहिं जाव वग्गूहिं आलवेमाणा संलवेमाणा य पुरतो य पिट्टतो पासतो य मग्गतो य समणुगच्छति । सूत्र ३९ : राह में जो भी राजा राजकुमारादि प्रतिष्ठित व्यक्ति अमात्य तेतलिपुत्र को देखते वे सदा की भाँति उनका आदर करते और हितैषीजन खड़े हो हाथ जोड़ते और इष्ट, कान्त आदि वचनों से बार-बार अभिवादन करते । ये लोग अमात्य के आगे-पीछे अगल-बगल में साथ-साथ चलने लगे। 39. On the way many kings, princes, and other prominent people met Tetaliputra and, as usual, paid him due regards. His well wishers stood up CHAPTER-14: TETALIPUTRA ( 133 ) For Private 2 Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ UUUUUU मज्ज र ( १३४ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 and greeted him with joined palms and sweet and courteous words. Many of 5 them joined him moving at his front, back or flanks. र सूत्र ४0 : तए णं से तेयलिपुत्ते जेणेव कणगज्झए तेणेव उवागच्छइ। तए णं कणगज्झए । 5 तेयलिपुत्तं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता नो आढाइ, नो परियाणाइ, नो अब्भुढेइ, अणाढायमाणे र अपरियाणमाणे अणब्भुट्टायमाणे परम्मुहे संचिट्ठइ। 5 तए णं तेयलिपुत्ते अमच्चे कणगज्झयस्स रण्णो अंजलिं करेइ। तओ य णं कणगज्झए राया ड र अणाढायमाणे अपरिजाणमाणे अणब्भुट्टेमाणे तुसिणीए परम्मुहे संचिट्टइ। 5 तए णं तेयलिपुत्ते कणगज्झयं विप्परिणयं जाणित्ता भीए जाव संजायभए एवं वयासी-“रुटे डा रणं मम कणगज्झए राया, हीणे णं मम कणगज्झए राया, अवज्झाए णं कणगज्झए राया। तं ण 5 णज्जइ णं मम केणइ कु-मारेण मारेहि" त्ति कट्ट भीए तत्थे य जाव सणियं सणियं पच्चोसक्केइ, ८ र पच्चोसक्कित्ता तमेव आसखंधं दुरूहेइ, दुरूहित्ता तेतलिपुरं मझमझेणं जेणेव सए गिहे तेणेव 5 5 पहारेत्थ गमणाए। र सूत्र ४0 : तेतलिपुत्र अमात्य कनकध्वज राजा के निकट पहुँचा। राजा ने उन्हें आते देखा ए किन्तु उनका आदर नहीं किया, हितैषी जान खड़ा भी नहीं हुआ अपितु मुँह फेरकर बैठा रहा। २ तेतलिपुत्र ने जब राजा को हाथ जोड़े तब भी वह उनका अनादर करते हुए विमुख होकर बैठा रहा। रे राजा को अपने विरुद्ध हुआ जानकर तेतलिपुत्र के मन में बहुत भय उत्पन्न हुआ। उन्होंने मन रही मन कहा-"राजा कनकध्वज मुझसे रूठ गए हैं, मेरे प्रति हीन हो गए हैं और मेरे विषय में 5 बुरा सोचने लगे हैं। न जाने वे मुझे किस बुरी मौत मार देंगे।" इन विचारों से उनके मन में डरट 5 और त्रास उत्पन्न हुआ और वे घबराकर धीरे-धीरे वहाँ से सरक गए। अपने अश्व पर सवार हो दा 2 नगर के बीच होते हुए अपने घर की दिशा में चले। 5 40. Tetaliputra came to king Kanak-dhvaj. The king saw him coming but > he neither greeted him with usual respect nor stood up to honour him; he in C > fact turned away from him. When Tetaliputra joined his palms and greeted 2 the king he did not respond, conveying his feeling of apathy and neglect for the minister. 15 Tetaliputra observed this cold treatment meted out by the king and got fearful. He thought, "King Kanak-dhvaj is annoyed with me. He has gones against me and started thinking bad about me. In this state of mind he may deal some drastic punishment to me." These thoughts added to his fear and apprehension and he silently fled from there. He rode his horse and through the town started for his home. 15 (134) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SÜTRA RAAAAAAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnn Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - - - Sण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्स र चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र (१३५ ) डा 15 सूत्र ४१ : तए णं तेयलिपुत्तं जे जहा ईसर जाव पासंति ते तहा नो आढायंति, नो दी र परियाणंति, नो अब्भुटुंति, नो अंजलिपरिग्गरं करेंति, इटाहिं जाव णो संलवंति, नो पुरओ या 15 पिट्ठओ य पासओ य मग्गओ य समणुगच्छति। र तए णं तेयलिपुत्ते जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ। जा वि य से बाहिरिया परिसा भवइ, दी तं जहा-दासे इ वा, पेसे इ वा, भाइल्लए इ वा, सा वि य णं नो आढाइ, नो परियाणाइ, नो डा र अब्भुट्टेइ। जा वि य से अभिंतरिया परिसा भवइ, तं जहा-पिया इ वा माया इ वा जाव भाया था 15 इ वा भगिणी इ वा भज्जा इ वा पुत्ता इ वा धूया इ वा सुण्हा इ वा, सा वि य णं नो आढाइ, डा र नो परियाणाइ, नो अब्भुट्टेइ। 15 सूत्र ४१ : मार्ग में जाते हुए अनेक प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने तेतलिपुत्र को देखा पर उन्होंने डा र अमात्य का आदर नहीं किया, जैसे उन्हें पहचाना नहीं, न खड़े हुए, न हाथ जोड़े और न ही मधुर डी 15 वाणी में अभिवादन किया। वे उनके साथ-साथ उनके आगे-पीछे भी नहीं चले। 2 तेतलिपुत्र अपने घर पहुंचे। वहाँ भी बाहर की बैठक में रहने वाले दास, प्रेष्य, भागीदार आदि डी र ने भी उनका आदर आदि नहीं किया? इसी प्रकार उनकी भीतरी बैठक में रहने वाले माता, पिता, टी भाई, बहन, पत्नी, पुत्र, पुत्रवधू आदि ने भी उनका आदर सत्कार नहीं किया। र 41. On the way many kings, princes, and other prominent people sawal 15 Tetaliputra but did not recognize him, pay him due regards, stand and greet al him with joined palms and sweet and courteous words. None of them joined him and moved at his front, back or flanks. B Tetaliputra reached his residence. There also, in the outer section his ] slaves, servants, partners etc. did not greet him with usual regard. He got the same treatment in the inner section of his house by his parents, brothers, 2 sisters, wife, son, daughter-in-law, and others. 15 आत्मघात का प्रयत्न सूत्र ४२ : तए णं से तेयलिपुत्ते जेणेव वासघरे, जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, टा 15 उवागच्छित्ता सयणिज्जंसि णिसीयइ, णिसीइत्ता एवं वयासी-“एवं खलु अहं सयाओ गिहाओ र निग्गच्छामि, तं चेव जाव अभिंतरिया परिसा नो आढाइ, नो परियाणाइ, नो अब्भुढेइ, तं सेयं टा 15 खलु मम अप्पाणं जीवियाओ ववरोवित्तए, त्ति कट्ट एवं संपेहेइ, संपेहित्ता तालउडं विसंड र आसगंसि पक्खिवइ, से य विसे णो संकमइ। र तए णं से तेयलिपुत्ते नीलुप्पल जाव गवल-गुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असिं खधंसि डी र ओहरइ, तत्थ वि य से धारा ओपल्ला। 15 CHAPTER-14 : TETALIPUTRA (135) टा Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn CUUUUN Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DDDDDDDDDDDDDDजत र ( १३६ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 तए णं से तेयलिपुत्ते जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पासगं गीवाए डा र बंधइ, बंधित्ता रुक्खं दुरूहइ, दुरूहित्ता पास रुक्खे बंधइ, बंधित्ता अप्पाणं मुयइ, तत्थ वि य से दी 15 रज्जू छिन्ना। र तए णं से तेयलिपुत्ते महइमहालयसिलं गीवाए बंधइ, बंधित्ता अत्थाहमतारमपोरिसियंसिट 2 उदगंसि अप्पाणं मुयइ, तत्थ वि से थाहे जाए। 5 तए णं से तेयलिपुत्ते सुक्कंसि तणकूडसि अगणिकायं पक्खिवइ, पक्खिवित्ता अप्पाणं मुयइ, र तत्थ वि य से अगणिकाए विज्झाए। 5 सूत्र ४२ : तेतलिपुत्र अपने कमरे में आकर शय्या पर बैठा और विचार करने लगा-“मैं अपने दा र घर से निकल राजा के पास गया और उसने मेरा सत्कार नहीं किया। लौटते समय राह में भी ड र किसी ने आदर नहीं किया और घर में भी भीतर-बाहर किसी ने मेरा यथोचित आदर-सत्कार नहीं ट 5 किया। ऐसी स्थिति में अपना जीवन त्याग देना ही उचित है।" इस मनोदशा में उसने अपने मुँह में डा र तालपुट विष (तीव्र मारक विष) डाला किन्तु उसका कोई प्रभाव नहीं हुआ। 15 फिर उसने नीलकमल आदि (अ. ९, सू. १७) जैसी तलवार से अपने कंधे पर प्रहार किया ड र किन्तु उसकी धार कुंठित हो गई। 5 तत्पश्चात् तेतलिपुत्र अशोकवाटिका में गया और अपने गले में रस्सी से फंदा कसा। वृक्ष पर द र चढ़कर रस्सी के खुले छोर को डाल से बाँधा और स्वयं नीचे कूद पड़ा। पर उसे फाँसी नहीं लगी, ड 15 वह रस्सी टूट गई। र इसी प्रकार तेतलिपुत्र ने अपने गले में बड़ी-सी शिला बाँधी और गहरी और अथाह जलराशि S र में कूद पड़ा। पर वह डूबा नहीं, वह जलराशि छिछली हो गई। र अंत में उसने घास के सूखे ढेर में आग लगाई और उसमें कूद पड़ा। पर वह आग भी बुझड 15 गई। rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr 15 SUICIDE ATTEMPT र 42. Tetaliputra went into his room, sat down on the bed and started SI ? brooding, "I left my house and went to the king and he did not give me due 5 regard. On the way back as well as at home I got the same apathetic a 5 treatment from everyone. Under these circumstances it is best for me to end 5 my life.” In this depressed state, he put the Taalput poison (an extremely 2 strong and deadly poison) in his mouth but nothing happened. 5 After this he took his blue (as in Ch. 9 para 17) sword and hit at the base 5 of his neck but its sharp edge became blunt. 5 (136) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA I Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *** 2005 .cat SC W AY NA Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग २) चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED बुरे समय में मृत्यु भी साथ नहीं देती चित्र : १६ राज-सन्मान से आसक्त हुआ तेतलीपुत्र धीरे-धीरे धर्मध्यान से भी विमुख हो गया । पोट्टिला देवी ने उसे धर्म में अनुरक्त करने की बहुत बार प्रेरणा दी, परन्तु वह धर्मानुरागी नहीं बना। तब देवी ने राजा के मन में मंत्री के प्रति घृणा पैदा कर दी। राजा के द्वारा घोर अपमान होने पर दुःखी निराश तेलीपुत्र जीवन का अन्त करने का प्रयास करता है १. मंत्री ने तालपुट विष का भक्षण किया, किन्तु विष का कोई प्रभाव नहीं हुआ । २. मरने के लिए गर्दन पर तलवार का प्रहार किया, किन्तु तलवार की धार कुण्ठित हो गई। ३. गले में फाँसी का फंदा लगाकर वृक्ष से लटका, परन्तु रस्सी टूट गई । ४. गले में पत्थर की शिला बाँधकर अथाह जलराशि में छलाँग लगाई, परन्तु वह नहीं डूबा । ५. . अन्त में सूखे घास के ढेर में आग लगाकर उसमें कूद पड़ा तो आग ही बुझ गई । इस प्रकार आत्महत्या के सभी प्रयत्न व्यर्थ हो गये । (चौदहवाँ अध्ययन ) FOR THE UNLUCKY, EVEN THE DEATH-WISH MISFIRES ILLUSTRATION : 16 Entrapped in state honour and comforts Tetaliputra slowly drifted away from all religious activities. Time and again Goddess Pottila tried her best to inspire the minister to accept the spiritual path but in vain. At last she made the king hateful towards the minister. When Tetaliputra was insulted by the king he was overwhelmed with sorrow. He repeatedly tried to commit suicide. 1. Minister Tetaliputra took poison but the poison did not kill him. 2. He hit himself with the blue sword but it became blunt. 3. He tried to hang himself from a tree but the rope broke apart. 4. He tied a rock to himself and jumped in deep water but the waters became shallow. 5. He built a fire by collecting heaps of dry twigs and jumped in it, but the fire was extinguished. Thus all his attempts at suicide failed. (CHAPTER-14) JNATA DHARMA KATHĀNGA SUTRA (PART-2) For Private Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ chununeul DUDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD ) र चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र ( १३७ ) Tetaliputra now went into the Ashok garden. He took a rope, made a noose at one end, and put it around his neck. He climbed a tall tree and tied S the other end of the rope to a strong branch. He then jumped from the tree but the noose around his neck did not tighten, instead the rope broke apart. Similarly Tetaliputra tried to kill himself by tying a heavy rock around his neck and jumping into a deep lake. But the lake became shallow and he did not drown. * At last he collected a pile of dry twigs and leaves and ignited a fire. He 5 jumped into it but instead of turning him to ashes the fire extinguished itself. र सूत्र ४३ : तए णं से तेयलिपुत्ते एवं वयासी-“सद्धेयं खलु भो समणा वयंति, सद्धेयं खलु ट 5 भो माहणा वयंति, सद्धेयं खलु भो समणा माहणा वयंति, अहं एगो असद्धेयं वयामि, एवं खलु डा अहं सह पुत्तेहिं अपुत्ते, को मेदं सद्दहिस्सइ ? र सह मित्तेहिं अमित्ते, को मेदं सद्दहिस्सइ ? एवं अत्थेणं दारेणं जासेहिं परिजणेणं। एवं खलु तेयलिपुत्तेणं अमच्चेणं कणगज्झएणं रन्ना अवज्झाएणं समाणेणं तालपुडगे विसं P आसगंसि पक्खित्ते, से वि य णो संकमइ, को मेदं सद्दहिस्सइ ? 5 तेयलिपुत्ते नीलुप्पल जाव खंधंसि ओहरिए, तत्थ वि य से धारा ओपल्ला, को मेदं । सद्दहिस्सइ ? तेयलिपुत्तेणं पासगं गीवाए बंधेत्ता जाव रज्जू छिन्ना, को मेदं सद्दहिस्सइ ? . 5 तेयलिपुत्तेणं महासिलयं जाव बंधित्ता अत्थाह जाव उदगंसि अप्पा मुक्के तत्थ वि य णं थाहे डा र जाए, को मेदं सद्दहिस्सइ ? तेयलिपुत्तेणं सुक्कंसि तणकूडे अग्गी विज्झाए, को मेदं सद्दहिस्सइ ? र ओहयमणसंकप्पे जाव झियाइ। र सूत्र ४३ : तेतलिपुत्र मन ही मन सोचने लगा-"श्रमण श्रद्धा योग्य वचन बोलते हैं, ब्राह्मण ट] र श्रद्धा योग्य वचन बोलते हैं, श्रमण और ब्राह्मण सभी श्रद्धा योग्य वचन बोलते हैं। एक मैं ही हूँ जो द 15 अश्रद्धा योग्य (अविश्वसनीय) वचन बोलता हूँ। र मैं पुत्रों सहित होने पर भी पुत्रहीन हूँ, कौन इस कथन का विश्वास करेगा? पर मैं मित्रों सहित होने पर भी मित्रहीन हूँ, कौन विश्वास करेगा? 15 वैसे ही मेरे धन, स्त्री, दास और परिवार रहित होने की बात पर कौन विश्वास करेगा? E CHAPTER-14 : TETALIPUTRA (137) टा FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAL HUAAMIRITUAROO Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्य DUDOCUUUDजाज ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ड र और भी, राजा कनकध्वज द्वारा अपमानित अमात्य तेतलिपुत्र ने अपने मुख में विष डाला पर 15 विष प्रभावहीन हो गया, कौन विश्वास करेगा इस पर? र कौन विश्वास करेगा कि तेतलिपुत्र ने नीली तलवार से अपने पर प्रहार किया पर उसकी धार 15 कुंठित हो गई? र कौन विश्वास करेगा कि तेतलिपुत्र ने गले में फाँसी लगाई पर रस्सी टूट गई? र कौन विश्वास करेगा कि तेतलिपुत्र शिला बाँधकर अथाह जल में कूदा पर वह जल छिछला हो । र गया? र कौन विश्वास करेग कि तेतलिपुत्र आग में कूदा पर वह बुझ गई ? 15 ऐसी हताश मनोदशा में हथेली पर ठोडि टिकाए तेतलिपुत्र आर्तध्यान में डूब गया। 12 43. Tetaliputra thought, “What the Shramans utter is authentic, what the Brahmans utter is also authentic, what all the Shramans and Brahmans 15 utter is authentic. But only in my case it is so, that whatever I utter is > unauthentic. B. Even having a son I am without a son. Who will believe this statement of a 5 mine? 2 Even having friends I am friendless. Who will believe this statement of C mine? 5 Similarly, who will believe this statement of mine that I am without S wealth, wife, servants, and family? 5 Also, who will believe that after being insulted by the king, minister 15 Tetaliputra took poison but the poison did not kill him? ? Who will believe that Tetaliputra hit himself with the blue sword but it 5 became blunt? 5 Who will believe that Tetaliputra tried to hang himself but the rope broke र apart? 5 Who will believe that Tetaliputra tied a rock and jumped in deep waters S > and the waters became shallow? B Who will believe that Tetaliputra jumped in fire and the fire was a 15 extinguished? In this depressed condition Tetaliputra rested his chin on his palms and started brooding. र (138) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA 3 23 Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ( १३९) टा र चौदहवाँ अध्ययन ः तेतलिपुत्र हे सूत्र ४४ : तए णं से पोट्टिले देवे पोट्टिलारूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता तेयलिपुत्तस्स अदूरसामंते टा र ठिच्चा एवं वयासी-“हं भो तेयलिपुत्ता ! पुरओ पवाए, पिट्ठओ हत्थिभयं, दुहओ अचक्खुपासे, ड 5 मज्झे सराणि परिसंति, गामे पलत्ते, रन्ने झियाइ, रन्ने पलिते गामे झियाइ, आउसो तेयलिपुत्ता ! र कओ वयामी ?" सूत्र ४४ : उसी समय पोट्टिल देव ने विक्रिया द्वारा पोट्टिला का रूप धारण किया और र तेतलिपुत्र के निकट उपस्थित होकर कहा-“हे तेतलिपुत्र ! आगे खाई है और पीछे हाथी का भय। द 15 दोनों पार्श्व में ऐसा अंधकार है कि आँखों को कुछ दिखाई नहीं देता। बीच में वाणों की वर्षा हो । २ रही है। गाँव में आग लगी है तो जंगल धधक रहा है और जंगल में आग लगी है तो गाँव धधक र रहा है। आयुष्मान तेतलिपुत्र ! ऐसे में हम कहाँ जाएँ ? किसकी शरण में ?" 15 44. Just at that moment god Pottil took the form of Pottila and materialized there. The god said, “Tetaliputra! You are caught between the fire and a frying pan. In the center there is a rain of arrows and all sides are pitch dark. There is a forest fire and the village is also in flames. Long lived 5 Tetaliputra! Under such conditions where should one go? Where should one 5 take refuge?" 15 पोट्टिल देव द्वारा प्रेरणा र सूत्र ४५ : तए णं से तेयलिपुत्ते पोट्टिलं देवं एवं वयासी-"भीयस्स खलु भो पव्वज्जा ड 5 सरणं, उक्कंठियस्स सदेसगमणं, छुहियस्स अन्नं, तिसियस्स पाणं, आउरस्स भेसज्जं, माइयस्स र रहस्सं, अभिजुत्तस्स पच्चयकरणं, अद्धाणपरिसंतस्स वाहणगमणं, तरिउकामस्स पवहणं किच्चं, द 5 परं अभिओजितुकामस्स सहायकिच्चं, खंतस्स दंतस्स जिइंदियस्स एत्तो एगमवि ण भवइ।" र सूत्र ४५ : तेतलिपुत्र ने पोट्टिल देव को उत्तर दिया-अहो ! ऐसे पूर्ण भयभीत व्यक्ति के लिए द 15 दीक्षा ही एकमात्र आश्रय है। जैसे उत्कंठित के लिए स्वदेश, भूखे के लिए अन्न, प्यासे को पानी, ड र रोगी को औषध, मायावी को रहस्य, अभियुक्त को विश्वास उत्पन्न करना, क्लान्त को वाहन गमन, ट र जलयात्री को जलपोत और शत्रु का पराभव करने वाले को सहयोग आलम्बनस्वरूप है। किन्तु ड 5 क्षमावान, संयमी और जितेन्द्रिय को इनमें से एक की भी आवश्यकता नहीं होती।" 15 INSPIRATION BY GOD POTTIL र 45. Tetaliputra replied, “Oh! For a person in such panicky situation ट the only refuge is Diksha. As his motherland is the source of solace for a c 5 homesick so is food for hungry, water for thirsty, medicine for sick, 5 5 mystery for trickster, inspiring faith for an accused, conveyance for a tired, SI S ship to a sea farer, and support of a mighty warrior for one desirous of (139 15 CHAPTER-14 : TETALIPUTRA ynnnnnAAAAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnAKA Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ ए UUUUU DDDDDDDDDDDDDDDजन (१४०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 defeating an enemy. But one who is forgiving, disciplined, and Jitendriya as complete control over the senses) has no need of even a single 15 one of these." र सूत्र ४६ : तए णं से पोट्टिले देवे तेयलिपुत्तं अमच्चं एवं वयासी-“सुटु णं तुमं तेयलिपुत्ता ! 15 एयमटुं आयाणाहि त्ति कट्ट दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयइ, वइत्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव ड र दिसिं पडिगए। र सूत्र ४६ : पोट्टिल देव ने अमात्य तेतलिपुत्र से कहा-“हे तेतलिपुत्र ! तुम्हारा कहना ठीक है। र किन्तु इस बात को तुम गहराई से समझ आचरण में उतारो।" देव ने दो-तीन बार यह बात टा 15 दोहराई और अपने स्थान को लौट गया। र 46. God Pottil said to Tetaliputra, “Your statement is absolutely correct. But you should profoundly ponder it, understand it and adopt it in your 15 conduct." The god repeated this two or three times and then returned to his 15 abode. र सूत्र ४७ : तए णं तस्स तेयलिपुत्तस्स सुभेणं परिणामेणं जाइसरणे समुप्पन्ने। तए णं तस्स ट 15 तेयलिपुत्तस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पन्ने-“एवं खलु अहं इहेव जंबुद्दीवे दीवे डा र महाविदेहे वासे पोक्खलावतीविजए पोंडरीगिणीए रायहाणीए महापउमे नामं राया होत्था। तए । 15 णं अहं थेराणं अंतिए मुंडे भवित्ता जाव चोद्दसपुव्वाइं अहिज्जित्ता बहूणि वासाणि सामन्नपरियागं र पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए महासुक्के कप्पे देवे उववन्ने। 15 सूत्र ४७ : यह सुनकर शुभ परिणाम उत्पन्न होने से तेतलिपुत्र को जातिस्मरण ज्ञान प्राप्त हुआ। र उसके मन में विचार उत्पन्न हुआ-“मैं जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र की पुष्कलावती विजय की 15 राजधानी पुण्डरीकिणी नगरी में महापद्म नाम का राजा था। मैंने स्थविर मुनि के पास मुण्डित ट 15 होकर दीक्षा ली थी। फिर चौदह पूर्यों का अध्ययन करके, अनेक वर्षों तक श्रमण जीवन बिताकर र अन्त में एक मास की संलेखना करके शरीर त्याग किया था और महाशुक्रकल्प में देव रूप में जन्म 5 लिया था। 4 7. This urging by the god inspired Tetaliputra and with purifying Kattitude he acquired the Jatismaran Jnana. He remembered, "I was King 5 Mahapadma of Pundarikini city, the capital of Pushkalavati Vijaya in 15 Mahavideh area in the Jambu continent. I had shaved my head and got 5 initiated by a great ascetic. After studying the fourteen sublime canons and leading a long disciplined ascetic life I had taken the ultimate vow of one month duration. After death I reincarnated as a god in the MahashukraEkalp. 6 (140) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA Ennnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn UPDATAUDU 1 इ YOU Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ve LI NU AFT Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग : २) 00A 4m चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED धर्म ही एकमात्र सहारा है चित्र : १७ आत्महत्या के सब प्रयत्न निष्फल होने पर हताश तेतलीपुत्र आर्तध्यान में डूबा बैठा है। तभी पोट्टिला देवी ने अपना मूल रूप धारणकर आकाश में उपस्थित होकर करुण स्वर में पुकारा-"हे तेतलीपुत्र ! आगे खाई है, जिसमें मुँह फाड़े मगरमच्छ बैठे हैं। पीछे मदोन्मत्त हाथी खड़ा है। दोनों तरफ आग लगी है, जंगल धधक रहा है। ऐसे में हम कहाँ जायें ? किसकी शरण लेवें?" पुकार सुनकर तेतलीपुत्र ऊपर आकाश की ओर देखता है-"यह करुण दृश्य देखकर उसके अन्तर्मन से आवाज उठती है-ऐसे भयाक्रांत व्यक्ति के लिए धर्म ही एक आधार है, आश्रय है। सहारा है, शरण है।" ___ आकाश स्थित पोट्टिला कहती है-"तुम्हारा कथन सत्य है तेतलीपुत्र ! अपने विचार को स्वयं के जीवन में उतारो, इस पर आचरण करो।" (चौदहवाँ अध्ययन) RELIGION IS THE ONLY HOPE ILLUSTRATION: 17 Tetaliputra is sitting dejected when all his attempts at suicide failed. Just at that moment the goddess took the form of Pottila and appeared in the sky. In a sympathetic voice she said, “Tetaliputra! There is a river and crocodiles with open mouths wait there. In the center there is a rain of arrows and the only route to escape is blocked by a mad elephant. There is a forest fire and the village is also in flames. Under such conditions where should one go? Where should one take refuge?" Reacting to this call Tetaliputra looks up and the compassion of the goddess inspires him to utter--"Oh! For a person in such a hopeless situation the only refuge is Diksha. As food to the hungry and medicine to the sick are the only refuge, so is the Jin-Dharm to the sad and fearful." Goddess Pottila said, “Your statement is absolutely correct. But you should profoundly ponder it, understand it and adopt it in your conduct. Only then will all your sorrows end." (CHAPTER-14) बालपण JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA (PART-2) Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ UUUUUOY र चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र ( १४१) ड 15 केवलज्ञान-प्राप्ति र सूत्र ४८ : "तए णं अहं ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं इहेव तेयलिपुरे तेयलिस्सी 5 अमच्चस्स भद्दाए भारियाए दारगत्ताए पच्चायाए। तं सेयं खलु मम पुव्वुद्दिवाइं महव्वयाइंड र सयमेव उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए" एवं संपेहेइ, संपेहित्ता सयमेव महव्वयाइं आरुहेइ, 5 आरुहित्ता जेणेव पमयवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे ड 2 पुढविसिलापट्टयंसि सुहनिसन्नस्स अणुचिंतेमाणस्स पुव्वाहीयाइं सामाइयमाइयाइं चोद्दसपुव्वाइंट 15 सयमेव अभिसमन्नागयाइं। र तए णं तस्स तेयलिपुत्तस्स अणगारस्स सुभेणं परिणामेणं जाव पसत्थेणं अज्झवसाएणंट 15 लेस्साहिं विसुज्झमाणीहिं तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं कम्मरयविकरणकर अपुवकरणं डा र पविट्ठस्स केवलवरणाणदंसणे समुप्पन्ने। 5 सूत्र ४८ : “देवलोक की आयुष्य पूर्ण हो जाने पर मैं वहाँ से च्यवन कर यहाँ तेतलिपुर में ड र तेतलि अमात्य की भद्रा नामक पत्नी के पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ। अतः मेरे लिए यह अच्छा होगा टा 5 कि पूर्व-जन्म में किए महाव्रतों को स्वयं ही अंगीकार कर जीवन व्यतीत करूँ।" इस प्रकार विचार डा 5 कर तेतलिपुत्र ने स्वयं ही महाव्रत अंगीकार कर लिया। फिर वे प्रमदवन उद्यान में जा एक श्रेष्ठ SI र अशोक वृक्ष के नीचे शिला पर बैठ गए। वहाँ विचारमग्न हुए और पूर्व-जन्म में अध्ययन किये 15 चौदह पूर्व उन्हें अपने आप याद हो आए। . र फिर शुभ परिणाम आदि के प्रभाव से अवगत तेतलिपुत्र के आवरणीय कर्मों का क्षय और 5 उपशम हो गया। उन्होंने कर्मरज का नाश करके अपूर्वकरण स्तर में प्रवेश किया और चार घातिकर्मों का नाश कर उत्तम केवलज्ञान और दर्शन प्राप्त कर लिये। - > ATTAINING KEVAL JNANA र 48. “After completing the life-span in the dimension of gods I reincarnated & 5 as the son of minister Tétali and his wife Bhadra in this city of Tetalipur. As c 5 such, it would be good for me to take the five great vows as I had done during S my earlier birth and lead a disciplined ascetic life." And Tetaliputra on his own took the great vows. After that he went to the Pramadvan garden and sat down on a rock under an Ashok tree. He started his meditation and remembered the fourteen sublime canons that he had studied during his 5 earlier birth. P As a result of continuously purifying attitude (etc. ) he suppressed and 2 5 then shed the veiling Karmas. Consequently he attained the unprecedented 5 state of Apurvakaran (the eighth level of purity of soul described as C PTER-14 : TETALIPUTRA (141) ynnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ R ( १४२ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र का 5 Gunasthan) and then after shedding the four vitiating karmas he acquired 5 the supreme Keval Jnana, and Keval Darshan (state of omniscience). र सूत्र ४९ : तए णं तेतलिपुरे नगरे अहासंनिहिएहिं देवेहिं देवीहि य देवदुंदुभीओ टा ह समाहयाओ, दसद्धवन्ने कुसुमे निव्वाए, दिव्वे गीय-गंधव्वनिनाए कए यावि होत्था। र सूत्र ४९ : इस अवसर पर तेतलिपुर के निकट रहे वाणव्यन्तर देव-देवियों ने देव दुंदुभियाँ टा बजाईं, पाँच रंग के फूलों की वर्षा की और दिव्य गंधर्व गीतों का निनाद किया। र 49. On this occasion the Vanavyantar gods (a class of demigods) sounded 15 divine drums, showered multi-coloured flowers and sang divine songs. र सूत्र ५0 : तए णं से कणगज्झए राया इमीसे कहाए लद्धढे समाणे एवं वयासी-“एवं खलु ड 15 तेयलिपुत्ते मए अवज्झाए मुंडे भवित्ता पव्वइए, तं गच्छामि णं तेयलिपुत्तं अणगारं वंदामिद 5 नमसामि, वंदित्ता नमंसित्ता एयमटुं विणएणं भुज्जो भुज्जो खामेमि।" एवं संपेहेइ, संपेहित्ता 5 र हाए चाउरंगिणीए सेणाए जेणेव पमयवणे उज्जाणे, जेणेव तेयलिपुत्ते अणगारे तेणेवट 15 उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तेयलिपुत्तं अणगारं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एयमटुं च विणएणं र भुज्जो भुज्जो खामेइ, नच्चासन्ने जाव पज्जुवासइ। 15 सूत्र ५० : राजा कनकध्वज ने जब यह समाचार सुना तो उसके मन में विचार उठा, “अमात्य र तेतलिपुत्र ने मेरे द्वारा अपमानित किए जाने पर मुण्डित हो दीक्षा ली है। अतः मुझे जाकर 15 तेतलिपुत्र अनगार की यथाविधि वन्दना करनी चाहिये और अपनी भूल के लिए विनयपूर्वक टै 5 बार-बार क्षमा याचना करनी चाहिए।" यह विचार आने पर राजा ने स्नानादि से निवृत्त हो अपनी र सेना साथ ली और प्रमदवन उद्यान में तेतलिपुत्र अनगार के पास आया। अनगार तेतलिपुत्र को 5 इ यथाविधि वन्दना की और विनयपूर्वक क्षमा याचना की। फिर वह उनके सामने बैठ उपासना करने दी 15 लगा। र 50. When king Kanak-dhvaj came to know of this he thought, "Tetaliputra has become ascetic after being insulted by me. As such, I should go, pay my 15 homage, and seek his forgiveness with all humility again and again." He got < ready and with all his regalia came to ascetic Tetaliputra in the Pramadvan garden. After obeisance he humbly begged pardon and sat down to worship. सूत्र ५१ : तए णं से तेयलिपुत्ते अणगारे कणगज्झयस्स रन्नो तीसे य महइमहालियाए ट 5 परिसाए धम्म परिकहेइ। र तए णं कणगज्झए राया तेयलिपुत्तस्स केवलिस्स अंतिए धम्मं सोच्चा णिसम्म पंचाणुव्वइयं द र सत्तसिक्खावइयं सावगधम्म पडिवज्जइ पडिवज्जित्ता समणोवासए जाए जाव अहिगयजीवाजीवे। 51 5 तए णं तेयलिपुत्ते केवली बहूणि वासाणि केवलिपरियागं पाउणित्ता जाव सिद्धे। JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SŪTRA 2 Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny 15 (142) Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौदहवाँ अध्ययन ः तेतलिपुत्र । ( १४३ ) SI र सूत्र ५१ : तेतलिपुत्र अनगार ने कनकध्वज राजा और वहाँ उपस्थित विशाल जन परिषद् को दी 5 धर्म का उपदेश दिया। र राजा कनकध्वज ने धर्मोपदेश सुन-समझकर पाँच अणुव्रत और सात शिक्षा व्रत सहित 15 श्रावकधर्म स्वीकार किया और जीव-अजीवादि तत्त्वों का ज्ञाता श्रमणोपासक बन गया। अनेक वर्षों तक केवली अवस्था में रहकर तेतलिपुत्र सिद्ध हो गए। 5 51. Ascetic Tetaliputra gave his religious discourse to the large 2 assemblage including king Kanak-dhvaj. 5 King Kanak-dhvaj, after hearing and understanding the preaching 15 accepted the five minor vows and seven disciplinary vows to became a 5 Shramanopasak having knowledge of fundamentals like soul and matter. र After spending many years in the state of a Kevali (omniscient) K Tetaliputra became a Siddh (the state of the liberated). र सूत्र ५२ : एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं चोद्दसमस्स नायज्झयणस्स अयमढे 5 पन्नत्ते त्ति बेमि। र सूत्र ५२ : हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने चौदहवें ज्ञात अध्ययन का यही अर्थ कहा है। र मैंने जैसा सुना वैसा ही कहा है। 52. Jambu! This is the text and the meaning of the fourteenth chapter of the Jnata Sutra as told by Shraman Bhagavan Mahavir. So I have heard and so I confirm. ॥ चोद्दसमं अज्झयणं समत्तं ॥ । चौदहवाँ अध्ययन समाप्त ॥ || END OF THE FOURTEENTH CHAPTER || FennnnnnnnnnnnnAAAAAAAAAAAAAAAnn - E CHAPTER-14 : TETALIPUTRA (143) दा Earninnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फज्ज उपसंहार ज्ञाताधर्म कथासूत्र की यह चौदहवीं कथा सन्मार्ग की अभिलाषा और सन्मार्ग पर चलने के बीच बाधा स्वरूप प्रमाद को दर्शाती है। साथ ही प्रेरक निमित्ति का महत्त्व समझाती है । गुणवान होने पर भी, आंतरिक अभिलाषा होने पर भी सुख सुविधा में डूबे रहने का प्रमाद टूटता नहीं जब तक कि दुःख और निराशा का गहरा प्रहार प्रमाद के जाल को तोड़ नहीं देता और यथार्थ के दर्शन नहीं क़रा देता। और इस प्रहार का सर्जक होता है वह प्रेरक निमित्ति । एक बार प्रमाद टूटा कि राह प्रशस्त हुई। This fourteenth story of Jnata Dharma Katha affirms that Pramaad (illusion and inaction) is the hurdle between the desire for and indulgence in spiritual endeavor. At the same time it also explains the importance of the inspiring cause. In spite of being virtuous and having spiritual inclinations the Pramaad of mundane comforts and pleasures does not break as long as the blow of sorrow and disappointment does not clear the fog and reveal the reality. This blow is given by the inspiring cause. The moment the fog is cleared the right path becomes visible. CONCLUSION प्रायः ऐसा होता है कि मनुष्य को जब तक दुःख प्राप्त नहीं होता या मान मर्दन नहीं होता तब तक वह भावपूर्वक धर्म का ग्रहण नहीं करता जैसे आमात्य तेतली पुत्र ॥ १ ॥ ( 144 ) उपनय गाथा " जाव न दुक्खं पत्ता माणब्धंसं न पाणिणो पायं । ताव न धम्मं गेण्हंति भावओ तेयलीसुउ व्व ॥ १ ॥” It often happens that as long as man is not confronted by sorrow or his ego is not shattered he does not sincerely accept Dharma, as was the case with minister Tetaliputra. ( 1 ) THE MESSAGE JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA For Private Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फ‍ चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र परिशिष्ट अपूर्वकरण- आत्मोत्थान के पथ पर वह स्थिति जहाँ आत्मा इतनी निर्मल हो जाती है कि साधक को आत्म-साक्षात आत्म-संवेदन होता है। ऐसा इससे पूर्व कभी नहीं हुआ था इस कारण इस स्थिति को अपूर्वकरण का नाम दिया है। जैन दर्शन में क्रमबद्ध आत्मोत्थान की भूमिका को गुणस्थान नामक चौदह स्तरों से परिभाषित किया है। अपूर्वकरण आठवां गुणस्थान है। इस स्तर पर पहुँचने के पश्चात् कर्म क्षय की गति तीव्र हो जाती है। पूर्ण निर्मलता का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। CHAPTER - 14 : TETALIPUTRA 500 APPENDIX Apoorvakaran-Facing the unprecedented. On the spiritual path this is the state when the soul attains so much purity that the practicer sees his soul or has the vision or realization of the soul entity. As it is a unique experience this state is known as Apoorvakaran. In Jain philosophy progressive uplift has been defined as fourteen steps or levels named Gunasthan. Apoorvakaran is the eighth Gunasthan. When one ttains this state the speed of the shedding of Karmas increases and the gateway to absolute purity is revealed. फ ( १४५ ) " (145) Co Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पन्द्रहवाँ अध्ययन : नदीफल : आमुख । शीर्षक-णंदिफले-नंदीफल-फल विशेष। नन्दी नामक यह एक विषैला वृक्ष है तथा इसे प्रतीक बनाकर बाह्य-आकर्षण के प्रभाव से विवेकहीन बन जाने के मारक प्रभाव को प्रकट किया गया है। सुखों के आकर्षण में छुपे दुःख रूप विष की चेतावनी सद्समागम से मिलती है। पर जो विवेक खो कर चेतावनी भूल जाते हैं वे दुर्गति को प्राप्त होते हैं और जो अपना विवेक नहीं खोते वे आगे सद्गति की ओर बढ़ जाते हैं। कथासार-चम्पानगरी का धन्य सार्थवाह व्यापार हेतु अहिच्छत्रा नगरी जाने का संकल्प करता है। अपने साथ वह सभी समर्थ-असमर्थ लोगों को चलने का आमंत्रण देता है और सब के सख-सविधा का भार स्वयं ले लेता है। मार्ग में वह सभी को चेतावनी देता है कि आगे नंदीफल नामक वृक्षों से भरा जंगल आएगा। ये वृक्ष बहुत छायादार और सुन्दर फूलों तथा स्वादिष्ट फलों से लदे होने के कारण लुभावने दिखते हैं किन्तु इनकी छाया तथा फल-फूल सभी विषैले हैं। अतः कोई न तो इनके नीचे-विश्राम ले और न फल तोड़ कर खाए। सभी अन्य वृक्षों का उपयोग करें। जब सार्थ वहाँ पहुँचा तो धन्य ने पुनः अपनी चेतावनी दोहराई। __ इस चेतावनी के बावजूद बहुत से लोग उन वृक्षों से आकर्षित हो चेतावनी को भूल गये और छाया में जा बैठे तथा फल तोड़कर खा लिए। वे सभी लोग पहले तो बड़े आनन्दित हुए पर फिर विष के प्रभाव से मर गये। जिन लोगों ने अपने पर नियन्त्रण रखा वे इन वृक्षों से दूर अन्य वृक्षों की छाया में ही रहे। वे सभी आरम्भ में तो कष्ट पाते रहे पर फिर सन्तुष्ट हुए और प्राण रक्षा कर सके। धन्य अपने सार्थ सहित अहिच्छत्रा पहुँचा और वहाँ व्यापारादि कर पुनः चंपा लौट आया। कालान्तर में दीक्षा ली और संयममय जीवन बिता देवलोक में जन्म लिया। वहाँ से महाविदेह में जन्म लेगा और मोक्ष प्राप्त करेगा। र (146) JNĀTĀ DHARMA KATHÃNGA SÚ FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAM Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Livros FIFTEENTH CHAPTER: THE NANDI-FRUIT : INTRODUCTION Tiruvurruuurrruuuuuuuuuuuuuuu Title-Nandiphale--Nandiphal--a fruit. Nandi is a toxic tree. Using it as a metaphor, the fatal results of becoming irrational under the influence of mundane illusive attractions have been explained. The warning about the poison of sorrow camouflaged by pleasures is given by sagacious persons. Those who are devoid of reason and do not give heed suffer the grave consequences. Those who remain rational progress upward. Gist of the story-Dhanya merchant of Champanagari plans to go to Ahicchatra city for business. He invites all and sundry, rich and poor, to accompany him, accepting the responsibility of their needs and conveniences during the journey. On the way he warns everyone accompanying him about the forest of Nandi trees to be crossed. These trees appear inviting due to their lush green foliage, beautiful flowers and tasty fruits. But the fruits and leaves and even the shade of these trees are toxic. So, no one should rest under their shade or eat their fruits. Everyone should use other trees for their needs. When the caravan reached these trees he once again repeated the warning. In spite of the warning many people were attracted by the trees. They forgot the warning, took rest under these trees and consumed the fruits. All these persons were happy to start with, but later died of the poison. Those who could discipline themselves kept their distance from the trees. They were distressed in the beginning, but in the end were contented and safe. Dhanya reached Ahicchatra with his caravan and after conducting his business returned to Champa. In later part of his life he got initiated and lived a disciplined spiritual life. He reincarnated as a god and will attain liberation after taking birth in the Mahavideh area. vurarvutavaraviravimas 5 CHAPTER-15 : THE NANDI-FRUIT (147) U sinnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णरसमं अज्झयणं : णंदी-फले पन्द्रहवाँ अध्ययन : नंदीफल FIFTEENTH CHAPTER : NANDIPHALE - THE NANDI-FRUIT सूत्र १ : 'जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं चोद्दसमस्स नायज्झयणस्स अयमटेड 15 पण्णत्ते, पन्नरसमस्स णायज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अढे पन्नत्ते?' र सूत्र १ : जम्बू स्वामी ने पूछा- “भंते ! जब श्रमण भगवान महावीर ने चौदहवें ज्ञात अध्ययन टै 15 का पूर्वोक्त अर्थ बताया है तो उन्होंने पन्द्रहवें ज्ञात अध्ययन का क्या अर्थ कहा है। IF 1 Jambu Swami inquired, “Bhante! What is the meaning of the fifteenth : 5 chapter according to Shraman Bhagavan Mahavir?" 5 सुधर्मा स्वामी का उत्तर र सूत्र २ : एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णामं नयरी होत्था। पुनभद्दे नाम । 15 चेइए। जियसत्तू नामं राया होत्था। तत्थ णं चंपाए नयरीए धन्ने नामं सत्थवाहे होत्था, अड्डे जावद र अपरिभूए। हे सूत्र २ : "जम्बू ! काल के उस भाग में चम्पा नाम की एक नगरी थी। उसके बाहर पूर्णभद्र डी र नाम का एक चैत्य था। वहां जितशत्रु नाम का राजा राज्य करता था और धन्य नाम का एक सम्पन्न व समर्थ सार्थवाह रहता था। UUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्卐 SUDHARMA SWAMI NARRATED 2. Jambu! During that period of time there was a city named Champa. King Jitshatru ruled over that city. Outside the city in the north-eastern 5 direction there was a Chaitya named Purnabhadra Chaitya. A wealthy and C resourceful merchant named Dhanya lived in the city. 5 सूत्र ३ : तीसे णं चंपाए नयरीए उत्तरपुरछिमे दिसिभाए अहिच्छत्ता नाम नयरी होत्था, दी र रिद्धत्थिमियसमिद्धा, वन्नओ। तत्थ णं अहिच्छत्ताए नयरीए कणगकेऊ नाम राया होत्था, महया ड 5 वन्नओ। र सूत्र ३ : उस चम्पा नगरी से उत्तर-पूर्व दिशा में अहिच्छत्रा नाम की एक धन-धान्यादि से । (148) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA मा LnnnnnnnnnnnnnAAAAAAAAAAAAM Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र पन्द्रहों अध्ययन : नंदीफल ( १४९ ) डा 15 परिपूर्ण नगरी थी। वहां कनककेतु नाम के एक राजा का राज्य था, जो महा हिमवंत पर्वत के डा र समान ऐश्वर्यशाली था। (औपपातिक सूत्र के अनुसार)। 3. In the north-eastern direction of Champa there was a rich town named Ahicchatra. King Kanak-ketu of that city was as illustrious as the great Himalayas. (as in Aupapatik Sutra) 15 धन्य सार्थवाह की घोषणा 5 सूत्र ४ : तस्स धण्णस्स सत्थवाहस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि इमेयारवेदी र अज्झिथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-'सेयं खलु मम विपुलं । 5 पणियभंडमायाए अहिच्छत्तं नगरिं वाणिज्जाए गमित्तए' एवं संपेहेइ, संपेहित्ता गणिमं च धरिमंट 2 च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च चउव्विहं भंडं गेण्हइ, गेण्हित्ता सगडीसागडं सज्जेइ, सज्जित्ता B सगडीसागडं भरेइ, भरित्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावित्ता एवं वयासीर सूत्र ४ : एक बार मध्यरात्रि के समय धन्य सार्थवाह के मन में एक आकांक्षा, चिन्ता, इच्छा, 15 अभिलाषा या विचार उत्पन्न हुआ-"मुझे बहुत-सा माल लेकर व्यापार के लिए अहिच्छत्रा नगरी 12 जाना लाभदायक होगा।" दूसरे दिन उसने अपने इस विचार के अनुसार गणिम, धरिम, मेय तथा र परिच्छेद्य (अ. ९ सू. ८ के समान) चारों प्रकार का माल क्रय किया और गाड़ियों में भरा। 15 तत्पश्चात् उसने अपने सेवकों को बुलाकर कहा ANNOUNCEMENT BY DHANYA 4. Once around midnight, Dhanya merchant had an idea, "It would be profitable for me to collect a wide range of merchandise and proceed to Ahicchatra for trading." Accordingly he purchased enough stocks of the four categories of goods (Ganim or the goods that are sold in numbers, Dharim or 2 the goods that are sold by weight, Meya or the goods that are sold by measurement, and Paricched or the goods that are sold in pieces) and filled 5 many carts. After this he called his servants and said - र सूत्र ५ : ‘गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! चंपाए नयरीए सिंघाडग जाव पहेसु उग्घोसेमाणा | 15 उग्घोसेमाणा एवं वयह-एवं खलु देवाणुप्पिया ! धण्णे सत्थवाहे विपुले पणियं आदाय इच्छइदा र अहिच्छत्तं नगरिं वाणिज्जाए गमित्तए। तं जो णं देवाणुप्पिया ! चरए वा, चीरिए वा, 5 चम्मखण्डिए वा, भिच्छुड़े वा, पंडुरंगे वा, गोयमे वा, गोवईए वा, गिहिधम्मे वा, गिहिधम्मचिंतएट र वा अविरुद्ध-विरुद्ध-वुड्ढ-सावग-रत्तपड-निग्गंथप्पभिई पासंडत्थे वा गिहत्थे वा, तस्स णं धण्णेणंडा 5 सद्धिं अहिच्छत्तं नयरिं गच्छइ, तस्स णं धण्णे सत्थवाहे अच्छत्तगस्स छत्तगं दलयइ, अणुवाहणस्सटी CHAPTER-15 : THE NANDI-FRUIT (149) टा 卐nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५० ) उवाहणाओ दलयइ, अकुंडियस्स कुंडियं दलयइ, अपत्थयणस्स पत्थयणं दलयइ, अपक्खेवगस्स पक्खेवं दलयइ, अंतरा वि य से पडियस्स वा भग्गलुग्गस्स साहेज्जं दलयइ, सुहंसुहेण य णं अहिच्छत्तं संपावेइ ।' त्ति कट्टु दोच्चं पि तच्च पि घोसेह, घोसित्ता मम एयमाणत्तियं पच्चष्पिणह ।' सूत्र ५ : " देवानुप्रियो ! तुम जाओ और चम्पा नगरी के सभी चौराहों, राजमार्गों आदि स्थानों पर इस प्रकार घोषणा करो 'हे देवानुप्रियो ! धन्य सार्थवाह प्रचुर माल लेकर व्यापार के लिए अहिच्छत्रा नगरी जाना चाहता है। अतः जो भी व्यक्ति, चाहे वह चरक ( चरक भिक्षु), चीरक ( चिथड़े पहनने वाला), ) चर्मखंडिक ( चमड़े के टुकड़े पहनने वाला), भिक्षांड ( भिक्षाजीवी), पांडुरंक (शैव भिक्षु), गौतम (बैल ) के खेल दिखाने वाला), गोव्रती (गाय के अनुरूप कार्य करने का व्रती), गृहिधर्मा (गृहस्थ आश्रम को श्रेष्ठ माननेवाला), अविरुद्ध (विनय का पालन करनेवाला), विरुद्ध ( अक्रियावादी), वृद्ध ( तापस), श्रावक (ब्राह्मण), रक्तपट (परिव्राजक ), निर्ग्रन्थ आदि व्रत पालन करनेवाले हों अथवा सामान्य गृहस्थ हों, धन्य सार्थवाह के साथ अहिच्छत्रा नगरी को जाना चाहे उसका स्वागत है। जिसके पास छतरी नहीं होगी उसे धन्य सार्थवाह छतरी दिलाएगा। जिसके पास जूता नहीं हो उसे जूते, कमंडल विहीन को कमंडल, भोजन विहीन को भोजन, पथ्य समाप्त होने पर पथ्य ) दिलवायेगा । और जो गिर जायेगा, क्षीण हो जायेगा अथवा रुग्ण हो जायेगा उसकी सहायता करेगा। इस प्रकार वह सबको सुख-पूर्वक अहिच्छत्रा नगरी तक पहुँचायेगा ।' “यह घोषणा दो-तीन बार करो और लौटकर मुझे सूचना दो ।" 5. “Beloved of gods ! Go and make this announcement at all the crossings, highways, etc. of Champa city ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र `Beloved of gods! Dhanya merchant plans to go to Ahicchatra city with a large stock of merchandise for trading. So anyone who desires to go with him is welcome. He may be a Charak (a class of mendicants), Cheerak (a beggar who wears rags), Charmakhandik (a beggar who wears leather pieces), Bhikshand ( beggar), Pandurank (a Shaivite mendicant ), Gautam (ox trainer and performer), Gauvrati (one who moulds his life like that of a cow), Grihidharma (one who considers the normal house-holder's life as the best ), Aviruddha (theist), Viruddha ( atheist), Vriddha ( hermit ), Shravak (Brahman), Raktapat (ochre wearing Parivrajak), Nirgranth (Jain ascetic), and others following some austere discipline or those who are normal house-holders. Dhanya merchant will provide umbrellas to those who do not have one. Similarly he will provide shoes, utensils, food, and other allowances to those who do not have these. He will help all those who fall JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA (150) Foo For Private Personal Use Only 点 Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त ज्ज्ज्ज्ज्ज DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDE र पन्द्रहवाँ अध्ययन: नंदीफल ( १५१) 5 sick, become weak, or tumble. Thus he will take them to Ahicchatra with all convenience.' र “Repeat this announcement two three times and report back to me.” 5 सूत्र ६ : तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव एवं बयासी-हंदि! सुणंतु भगवंतोड| र चंपानगरीवत्थव्वा बहवे चरगा य जाव पच्चप्पिणंति। 5 सूत्र ६ : सेवकों ने आज्ञानुसार-“हे चम्पा नगरी निवासीजनों, सुनो"-आदि (सूत्र ५ केडी र समान) घोषणा कर दी और लौटकर धन्य सार्थवाह को सूचित किया। 6. The servants did as told and reported back to Dhanya merchant. __ सूत्र ७ : तए णं से कोडुबियघोसणं सुच्चा चंपाए णयरीए बहवे चरगा य जाव गिहत्था यदी 5 जेणेव धण्णे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छंति। तए णं धण्णे तेसिं चरगाण य जाव गिहत्थाण यड अच्छत्तगस छत्तं दलयइ जाव पत्थयणं दलयइ एवं वयासी-'गच्छह णं देवाणुप्पिया ! चंपाए टे 15 नयरीए बहिया अग्गुज्जाणंसि ममं पडिवालेमाणा चिट्ठह।' । र सूत्र ७ : यह घोषणा सुनकर चम्पा नगरी के अनेक चरक आदि व्यक्ति (पूर्व सूत्र ५ समान) टा 15 धन्य सार्थवाह के पास आये। धन्य ने उन्हें आवश्यकतानुसार सामग्री दिलवाई (सू. ५ के समान)। र और कहा- “देवानुप्रियो ! तुम लोग चम्पा नगरी के बाहर उद्यान में जाकर मेरी प्रतीक्षा करो। 15 7. On hearing this announcement a crowd of people (as mentioned in para 5 5) came to Dhanya merchant who provided them with all what they required, 12 and said, “Beloved of gods! Go and wait for me at the garden outside 12 Champa." 15 सूत्र ८ : तए णं चरगा य जाव गिहत्था य धण्णेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणा जाव चिट्ठति। द तए णं धण्णे सत्थवाहे सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्तंसि विउलं असणं पाणं खाइमं साइमंदा 15 उवक्खडावेइ, उवक्खडावित्ता मित्त-नाइ आमंतेइ, आमंतित्ता भोयणं भोयावेइ, भोयावित्ता || र आपुच्छइ, आपुच्छित्ता सगडीसागडं जोयावेइ, जोयावित्ता चंपानगरीओ निग्गच्छइ। निग्गच्छित्ता से 15 णाइविप्पगिटेहिं अद्धाणेहिं वसमाणे वसमाणे सुहेहिं वसहिपायरासेहिं अंगं जणवयं मज्झमझेणं ड र जेणेव देसग्गं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सगडीसागडं मोयावेइ, मोयावित्ता सत्थणिवेसंट 15 करेइ, करित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी र सूत्र ८. वे सभी चरक गृहस्थ आदि लोग धन्य सार्थवाह का आदेश सुन उद्यान में पहुँचकर दी 15 प्रतीक्षा करने लगे। र धन्य सार्थवाह ने शुभ तिथि, करण और नक्षत्र देख प्रचुर भोजन सामग्री बनवाई और अपने 15 मित्रों तथा स्वजनों को आमंत्रित किया। उन्हें भोजन कराकर उनसे यात्रा की अनुमति ली। गाड़ियाँ द APTER-15 : THE NANDI-FRUIT (151) 卐nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn улулуллулл Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्卐 STTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTT र ( १५२ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र हा 5 जुतवाईं और फिर चम्पा नगरी से बाहर निकला। अपनी इस यात्रा में वह थोड़ी-थोड़ी दूर पर डा र पड़ाव डालता था। सुख सुविधाजनक रात्रिवास के बाद प्रातःकाल का भोजन कर पुनः यात्रारम्भ 5 करता था। इस प्रकार यात्रा करता हुआ अंग देश को पार कर वह सीमा पर पहुंचा। गाड़ियाँ खोल ट 15 पड़ाव डाला और सेवकों को बुलाकर कहा5 8. All these people went to the garden outside Champa, as instructed by a 15 Dhanya merchant, and waited for him. Dhanya merchant got the goods loaded in the carts. He then looked for an B auspicious conjunction of planets, time, and moment. He invited his friends 5 and relatives on a feast and sought their permission for the proposed voyage. After these formalities he commenced his voyage. During this voyage heç 5 traveled a convenient distance and then camped. After a comfortable night's S stay and breakfast the next morning he again resumed his travels. In this manner he crossed Anga state and reached the border. After making the 15 camp he called his servants and said, र उपयोगी चेतावनी र सूत्र ९ : 'तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! मम सत्थनिवेसंसि महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणा 15 उग्घोसेमाणा एवं वदहर एवं खलु देवाणुप्पिया ! इमीसे आगामियाए छिन्नावायाए दीहमद्धाए अडवीए टा 5 बहुमज्झ-देसभाए बहवे णंदिफला नामं रुक्खा पन्नत्ता-किण्हा जाव पत्तिया पुफिया फलिया ड र हरिया रेरिज्जमाणा सिरीए अईव अईव उवसोभेमाणा चिट्ठति, मणुण्णा वन्नेणं, मणुण्णा गंधेणं, टे 15 मणुण्णा रसेणं, मणुण्णा फासेणं, मणुण्णा छायाए, तं जो णं देवाणुप्पिया ! तेसिं नंदिफलाणं डा र रुक्खाणं मूलाणि वा कंदाणि वा तयाणि वा पत्ताणि वा पुष्पाणि वा फलाणि वा बीयाणि वा दै 5 हरियाणि वा आहारेइ, छायाए वा वीसमइ, तस्स णं आवाए भद्दए भवइ, ततो पच्छा ड र परिणममाणा परिणममाणा अकाले चेव जीवियाओ ववरोति। तं मा णं देवाणुप्पिया ! केइट 15 तेसिं नंदिफलाणं मूलाणि वा जाव छायाए वा वीसमउ। मा णं से ऽवि अकाले चेव जीवियाओ द ववरोविज्जस्सइ। तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! अन्नेसिं रुक्खाणं मूलाणि य जाव हरियाणि या आहारेह, छायासु वीसमह, त्ति घोसणं घोसेह। 5 जाव पच्चप्पिणंति। र सूत्र ९. “देवानुप्रियो ! तुम हमारे सार्थ के पड़ाव में जाकर ऊँचे शब्दों में बार-बार यह घोषणा 5 करो 15 (152) JNĀTĀ DHARMA KATHÂNGA SÚTRA FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAnnnnnny - - - Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "पन्द्रहवाँ अध्ययन: नंदीफल ( १५३ ) 'हे देवानुप्रियो ! आगे आने वाली अटवी बहुत लम्बी है और उसमें मनुष्यों का आना-जाना नहीं होता है। अटवी के मध्य भाग में नंदीफल नाम के वृक्ष हैं। वे सघन हरे रंग के हैं और पत्तों, फूलों, फलों से लदे भरपूर शोभा लिए खड़े हैं। उनके रूप-रंग-रस-गंध और छाया मनोहारी हैं। परन्तु हे देवानुप्रियो ! जो भी उन नंदीफल वृक्षों के मूल, कंद, छाल, पत्ते, फूल, फल, बीज या हरित को खाएगा अथवा उनकी छाया में बैठेगा, उसे उस समय तो अच्छा लगेगा पर बाद में उनका प्रभाव पड़ने पर वह अकाल मृत्यु को प्राप्त करेगा। अतएव हे देवानुप्रियो ! कोई भी उन नंदीफल वृक्षों के मूल आदि किसी भी अंग का सेवन न करें और न उनकी छाया में विश्राम करें, जिससे अकाल ही किसी के जीवन का नाश न हो। हे देवानुप्रियो ! तुम लोग किसी भी अन्य वृक्ष के मूलादि को खा सकते हो, उसकी छाया में विश्राम कर सकते हो ।' " इस प्रकार घोषणा करके मुझे सूचना दो।” THE WARNING 9. “Beloved of gods! Go to the group camp of our caravan and announce many times in loud voice `Beloved of gods! The wilderness ahead is very large and it is seldom visited by man. In the central part of this wilderness there are trees named Nandiphal. They are green, beautiful and rich with leaves, flowers, and fruits. Their form, colour, taste, smell and shade are inviting. But, beloved of gods! Whoever eats the stock, root, bark, leaf, flower, fruit, seed, or any other part of these trees and even sits in their shade will feel pleasant for some time but later when its effect starts he will embrace sudden death. So, O beloved of gods! no one should eat the stock, root, or any other part of these trees or even sit in their shade lest he lose his life. Beloved of gods! You can eat the stock, root, or any other part of any other tree or even sit in its shade.' “After the announcement report back to me.” सूत्र १० : तए णं धण्णे सत्थवाहे सगडीसागडं जोएइ, जोइत्ता जेणेव नंदिफला रुक्खां तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तेसिं नंदिफलाणं अदूरसामंते सत्थनिवेस करेइ, करित्ता दोच्चं पि तच्चं पि कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - तुभे णं देवाणुप्पिया ! मम सत्थनिवेसंसि महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणा उग्घोसेमाण एवं वयह- 'एए णं देवाणुप्पिया ! ते दिफला किण्हा जाव मणुण्णा छायाए, तं जो णं देवाणुप्पिया ! एएसिं णंदिफलाणं रुक्खाणं मूलाणि वा कंदाणि वा पुष्पाणि वा तयाणि वा पत्ताणि वा फलाणि वा जाव अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेंति; तं मा णं तुङभे जाव दूरं दूरेणं परिहरमाणा वीसमह, मा णं अकाले जीवियाओ ववरोविस्संति। अन्नेसिं रुक्खाणं मूलाणि य जाव वीसमह त्ति कट्टु घोसणं पच्चप्पिणंति । CHAPTER-15: THE NANDI-FRUIT For Private Personal Use Only (153) Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ P( १५४ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र 15 सूत्र १0 : धन्य सार्थवाह ने पुनः गाड़ियाँ जुतवाईं और यात्रा करता हुआ नंदीफल वृक्षों के र क्षेत्र में पहुँचा। उसने उन वृक्षों से कुछ दूर पड़ाव डाला और सेवकों को बुलाकर दो-तीन बार यह र घोषणा करने को कहा-“हे देवानुप्रियो ! ये ही वे नंदीफल वृक्ष हैं जिनके विषय में पहले बताया 2 15 था। (सू. ९ के समान) अतः इनके किसी भी अंग मूल-फल बीज आदि का सेवन मत करना 5 क्योंकि वह अकाल मृत्यु देने वाला है। कहीं ऐसा न हो कि इनका सेवन कर जीवन का नाश कर लो इसलिए इनसे दूर रहकर ही विश्राम करना। हाँ ! अन्य वृक्षों की छाया में विश्राम कर सकते 5 हो, उनका सेवन भी कर सकते हो।' र सेवकों ने इसी प्रकार घोषणा कर उसे सूचित किया। 5 10. Dhanya merchant broke camp and resumed the journey. After some s 5 time he reached the area of the Nandiphal trees. He made camp a little si distance from these trees and again called his servants. He asked them to announce emphatically-"Beloved of gods! These are the Nandiphal trees Babout which you were told. As such no one should eat the stock, root, or any other part of these trees or even sit in their shade lest he lose his life. You can eat the stock, root, or any other part of any other tree or even sit in its shade.” The servants made the announcement and reported back. LULIL 5 श्रद्धावान : अश्रद्धावान र सूत्र ११ : तत्थं णं अत्थेगइया पुरिसा धन्नस्स सत्थवाहस्स एयमटुं सद्दहति, पत्तियंति टी 15 रोयंति, एयमद्वं सद्दहमाणा तेसिं नंदिफलाणं दूरं दूरेणं परिहरमाणा अन्नसिं रुक्खाणं मूलाणि य डा र जाव वीसमंति तेसि णं आवाए नो भद्दए भवइ, तओ पच्छा परिणममाणा सुहरूवत्ताए भुज्जो टा 15 भुज्जो परिणमंति। र सूत्र ११ : सार्थ के कुछ व्यक्तियों को धन्य सार्थवाह की बात पर श्रद्धा, प्रतीति (विश्वास) व ट्र र रुचि, (दिलचस्पी) हुई। वे तदनुसार उन नंदीफलों से दूर ही रहते हुए अन्य वृक्षों के मूलादि का दा 15 सेवन करने और उनकी छाया में ही विश्राम करने लगे। उन्हें तात्कालिक आनन्द तो प्राप्त नहीं है र हुआ, परन्तु जैसे-जैसे समय बीतता गया, वैसे वैसे उन्हें सुख, तृप्ति व आनन्द का अनुभव होता टा 5 गया। 5 BELIEVERS : NON-BELIEVERS र 11. Some of the members of the caravan had faith, confidence, and interest S1 2 in what Dhanya merchant had conveyed to them. Accordingly they kept Z away from those trees; they ate fruits etc. from, and rested in the shade of 5 other trees. They did not have much enjoyment in the beginning but as time a 15 passed they experienced pleasure, contentment and joy. 6 (154) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SÜTRA AnnnnnnnnnnAAAAAAAAAAAAAAAnnnnnn) Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग : २) चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED नन्दीफल : भोग एवं त्याग का फल चित्र : १८ चम्पानगरी निवासी धन्य सार्थवाह बहुत-से लोगों को साथ लेकर व्यापार के लिए अहिच्छत्रा नगरी की तरफ जा रहा था। मार्ग में एक विकट वन आ गया। सार्थवाह ने यात्रियों को सावधान करते हुए कहा-"आगे नन्दीफल नाम के विषैले वृक्षों का वन आ रहा है। अतः सभी सावधान रहें यह फल खाना तो दूर, इनकी छाया से भी बचते रहें।" १. बहुत-से यात्रियों ने सेठ की घोषणा पर विश्वास नहीं किया। जो नन्दी-वृक्षों की शीतल छाया में बैठे, वे मूर्छित हो गये; जिन्होंने फूल सूंघे, फल चखे, वे मर गये। २. किन्तु बहुत-से समझदार लोगों ने सेठ के कथन पर विश्वास करके इन वृक्षों की छाया से ही दूर हटकर अन्य कम छाया वाले वृक्षों के पास विश्राम किया, वे जीवित भी रहे, किसी तरह की हानि नहीं हुई। (पन्द्रहवाँ अध्ययन) THE FRUITS OF ATTACHMENT AND DETACHMENT ILLUSTRATION : 18 Dhanya merchant of Champanagari was going with many people to Ahicchatra city for business. On the way there was a dense forest. Dhanya warned everyone in his caravan, "We are approaching a forest of Nandi trees. The fruits and leaves and even the shade of these trees are toxic. Therefore no one should rest under their shade or eat their fruits." 1. Many people did not give heed to the warning and took rest under the trees and consumed the fruits. Those who rested under the trees became unconscious, and those who consumed the fruits or inhaled the aroma of the flowers died. 2. Many others who were wise enough to give heed to the warning kept their distance from these trees. They rested under other trees. They did not come to any harm and lived to continue their journey. (CHAPTER - 15) JNĀTA DHARMA KATHANGA SŪTRA (PART-2) Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र पन्द्रहवाँ अध्ययन : नंदीफल ( १५५ ) डा 15 सूत्र १२ : एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा जाव पंचसु कामगुणेसुड र नो सज्जेइ, नो रज्जेइ, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं समणीणं सावयाणं सावियाणंड र अच्चणिज्जे भवइ, परलोए वि य नो आगच्छइ जाव वीईवइस्सइ जहा व ते पुरिसा। हे सूत्र १२ : इसी प्रकार हे आयुष्मान् श्रमणों ! हमारा जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थिनी पाँच इन्द्रियों । र सम्बन्धी कामभोगों में आसक्त अनुरक्त नहीं होता वह इसी भव में अनेक श्रमण-श्रमणी तथा ट 15 श्रावक-श्रविकाओं का पूजनीय होता है और परलोक में भी दुःख नहीं पाता। वह क्रमशः संसार 15 सागर को पार कर जाता है। B 12. Long-lived Shramans! This is how those of our ascetics who, after a 5 getting initiated, do not indulge in and get infatuated with the lusty pleasures of their five sense organs, become the objects of reverence of many 15 ascetics as well as the laity during this life. Besides this they also do not suffer miseries in the next life and are gradually liberated. सूत्र १३ : तत्थ णं जे से अप्पेगइया पुरिसा धण्णस्स एयमद्वं नो सद्दहति नो पत्तियंत्ति नो टा 15 रोयंति, धन्नस्स एयमटुं असद्दहमाणा जेणेव ते णंदिफला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तेसिंडा र नंदिफलाणं मूलाणि य जाव वीसमंति, तेसिं णं आवाए भद्दए भवइ, ततो पच्छा परिणममाणा र जाव ववरोति। र सूत्र १३ : सार्थ में रहे जिन व्यक्तियों को धन्य सार्थवाह की बात पर श्रद्धा, प्रतीति व रुचि । नहीं हुई वे उन नंदीफल वृक्षों के निकट गये। उन्होंने उन वृक्षों के मूलादि का भक्षण किया और टा 15 उनकी छाया में विश्राम भी किया। उन्होंने तात्कालिक आनन्द तो प्राप्त किया, किन्तु क्रमशः वृक्षों के दा र दुष्प्रभाव के प्रभावी होने पर उन्हें जीवन से हाथ धोना पड़ा अर्थात् प्राणों से रहित होना पड़ा। डा B 13. Some members of the caravan did not have faith, confidence, and a 5 interest in what Dhanya merchant had conveyed to them all. Accordingly & they went near the Nandiphal trees and ate fruits etc. from and rested in the shade of those trees. They did enjoy all this in the beginning but as time I passed the toxicity of those trees started taking effect and in the end they र lost their lives. 5 सूत्र १४ : एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पव्वइए पंचसुदा र कामगुणेसु सज्जेइ, जाव अणुपरियट्टिस्सइ, जहा व ते पुरिसा। ए सूत्र १४ : इसी प्रकार हे आयुष्मान् श्रमणो ! हमारा जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थिनी पाँच इन्द्रियों के 5 विषय भोग में आसक्त होता है वह उन पुरुषों की तरह दुःख भोगता हुआ संसार चक्र में भ्रमण डा र करता रहता है। 5 14. Long-lived Shramans! This is how those of our ascetics who, after टा 15 getting initiated, indulge in and get infatuated with the lusty pleasures of C 5 CHAPTER-15 : THE NANDI-FRUIT (155) टा SAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA E Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५६ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र their five sense organs, suffer misery and are caught in the cycles of rebirth indefinitely. धन्य का अहिच्छत्रा पहुँचना सूत्र १५ : तए णं से धण्णे सगडीसागडं जोयावेइ जोयावित्ता जेणेव अहिच्छत्ता णयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहिच्छत्ताए णयरीए बहिया अग्गुज्जाणे सत्थनिवेस करे, करिता सगडी सागडं मोयावेइ । तए णं से धण्णे सत्थवाहे महत्थं महग्घं महरिहं रायरिहं पाहुडं गेहइ, गेण्हित्ता बहुपुरिसेहि सद्धिं संपरिवुडे अहिच्छत्तं नयरिं मज्झमज्झेणं अणुप्पविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव कणगकेऊ राया तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता करयल जाव वद्धावेइ, वद्धावित्ता तं महत्थं पाहुडं उवणेइ । सूत्र १५ : यथा समय धन्य सार्थवाह ने गाड़ियाँ जुतवाईं और अहिच्छत्रा नगरी को प्रस्थान किया। वहाँ पहुँच नगरी के बाहर के प्रधान उद्यान में पड़ाव डाला और गाड़ियाँ खुलवा दीं। तत्पश्चात् राजा को भेंट करने योग्य बहुमूल्य उपहार और अनेक व्यक्तियों को साथ ले वह अहिच्छत्रा नगरी के बीच होता हुआ राजा कनककेतु के पास गया। दोनों हाथ जोड़ उसने यथाविधि राजा का अभिनन्दन किया और वे बहुमूल्य उपहार राजा के सामने रख दिये । DHANYA REACHES AHICCHATRA 15. As usual Dhanya merchant broke camp and resumed his journey. When he reached Ahicchatra city he made camp in the main garden outside the city. He selected valuable and suitable gifts for the king and entered the town with a large group of people. Arriving at the court of King Kanak-ketu he greeted the king and placed the gifts before him. सूत्र १६ : तए णं से कणगकेऊ राया हट्टतुट्ठे धण्णस्स सत्थवाहस्स तं महत्थं जाव पाहुडं पच्छिइ । पडिच्छित्ता धणं सत्थवाहं सक्कारेइ संमाणेइ सक्कारित्ता संमाणित्ता उस्सुक्कं वियरइ, वियरित्ता पडिविसज्जेइ । भंडविणिमयं करेइ, करित्ता पडिभंडं गेहइ, गेण्हित्ता सुहंसुहेणं जेणेव चंपानयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मित्त-णाइ अभिसमन्नागए विउलाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ । सूत्र १६ : राजा कनककेतु ने प्रसन्न और संतुष्ट हो धन्य सार्थवाह के बहुमूल्य उपहार स्वीकार किए और उसका सत्कार-सम्मान किया। साथ ही उसे शुल्क मुक्त कर विदा किया। धन्य ने अपने माल की बिक्री की और नया माल खरीद कर सुखपूर्वक चम्पा नगरी लौट आया। अपने मित्रों और स्वजनों से मिला और सुखपूर्वक जीवन बिताने लगा । 16. King Kanak-ketu happily accepted the costly gifts and duly honoured Dhanya merchant. He also exempted Dhanya from any levies. In due course Dhanya merchant sold all his merchandise, bought new stocks, and happily ( 156 ) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SÚTRA For Private Personal Use Only 5 Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । TRArd., र पन्द्रहवाँ अध्ययन : नंदीफल ( १५७ ) returned to Champa. He met his relatives and friends and resumed his _normal happy life. धन्य की प्रव्रज्या सूत्र १७ : तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरागमणं। धण्णे सत्थवाहे विणिग्गए, धम्म सोच्चार 5 जेट्टपुत्तं कुडुंबे ठावेत्ता पव्वइए। एक्कारस सामाइमाइयाई अंगाई अहिज्जित्ता बहूणि वासाणि सामन्नपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेत्ता सट्ठिभत्ताई अणसणाइं छेदित्ता अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववन्ने। से णं देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं चयं चइत्ता । महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, जाव अंतं करेहिति। सूत्र १७ : काल के उस भाग में एक स्थविर मुनि का आगमन हुआ। धन्य सार्थवाह उन्हें ) वन्दना करने के लिए गया। धर्मोपदेश सुनकर उसने अपने ज्येष्ठ पुत्र को परिवार का उत्तरदायित्व में सौंपा और स्वयं दीक्षा ले ली। सामायिक सहित ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और अनेक वर्षों , तक संयम का पालन कर एक मास की संलेखना तथा साठ भक्त अनशन कर देह त्यागी। फिर देवलोक में जन्म लिया। देवलोक की आयु पूर्ण कर वह वहां से च्यवन कर महाविदेह में जन्म । लेकर सिद्धि प्राप्त करेगा और दुःखों का अन्त करेगा। INITIATION OF DHANYA 17. During that period of time a senior ascetic arrived in Champa. Dhanya merchant went to offer his obeisance. After listening to the discourse, Dhanya merchant handed over the responsibility of the family to his eldest son and >> got initiated. He acquired the knowledge of the eleven canons and lived a lor and disciplined ascetic life. In the end, he took the ultimate vow of one month duration. He embraced a meditators death and reincarnated as a god. After completing his life-span as a god he will reincarnate in the Mahavideh area and ending all miseries achieve liberation. सूत्र १८ : एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं पन्नरसमस्स नायज्झयणस्स अयमढे र पण्णत्ते त्ति बेमि। 5 सूत्र १८ : हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने पन्द्रहवें ज्ञात अध्ययन का यह अर्थ कहा है। र मैंने जैसा सुना वैसा ही कहा है। 18. Jambu! This is the text and the meaning of the fifteenth chapter of the 5 Jnata Sutra as told by Shraman Bhagavan Mahavir. So I have heard and so I » confirm. ॥ पण्णरसमं अज्झयणं समत्तं॥ ॥ पन्द्रहवाँ अध्ययन समाप्त ॥ 11 END OF THE FIFTEENTH CHAPTER 11 एम्ए 115 CHAPTER-15 : THE NANDI-FRUIT (157) ) Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपसंहार ज्ञाता धर्म कथा की यह पन्द्रहवीं कथा इंद्रियों के विषयों में अनायास आकर्षित होकर वर्जित द कार्यों में संलग्न हो जाने के दुष्परिणाम को स्पष्ट करती है। नन्दीफल वृक्षों के आकर्षक किन्तु ड र विषैले वातावरण के उदाहरण से साधना में भटकाव के प्रति सावधान रहने के महत्व को समझाया । 5 गया है। र अन्य कथाओं के समान इस कथा में भी सामाजिक जीवन के एक विशिष्ट पहलू का वर्णन र किया है। सामर्थ्यवान व्यक्ति अपनी विकास यात्रा में समाज के अकिंचन श्रेणी में आने वाले टा 5 सामान्य व्यक्तियों को भी सम्मिलित करता था और उन्हें बंधु भाव के साथ सब सुविधाएँ उपलब्ध डा र कराता था। सामाजिक उत्तरदायित्व की यह शिक्षा कथा में सहज ही सम्मिलित हो गई है। CONCLUSION 5 This fifteenth story of Jnata Dharma Katha explains the fearsome 2 5 consequences of indulging in prohibited activities under the influence of attraction for carnal pleasures. Giving the example of Nandiphal trees that are attractive but toxic, it explains the importance of taking precaution against faltering in spiritual practices. Just as the other chapters include valuable information about the thenprevailing social conditions this story also details a specific facet. A man with resources invites impoverished members of the society to join him in his journey towards progress. With a feeling of fraternity he provides everything needed to those who join. This lesson of social responsibility has been included as a natural part of the story. । उपनय गाथा चंपा इव मणुयगई, धणो व्व भयवं जिणोदएकरसो। अहिच्छत्तानयरिसमं इह निव्वाणं मुणेयव्वं ॥१॥ घोसणया इव तित्थंकरस्स सिवमग्गदेसणमहग्धं । चरगाइणो व्व इत्थं सिवसुहकामा जिया बहवे ॥२॥ (158 JNĀTĀ DHARMA KATHANGA S FFAAAAAAAAAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnn) Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पन्द्रहवाँ अध्ययन : नंदीफल ( १५९) नंदिफलाइ व्व इहं सिवपह-पडिवण्णगाण विसया उ। तब्भक्खणाओ मरणं, जह तह विसएहि संसारो॥३॥ तव्वज्जणेण जह इट्ठपुरगमो विसयवज्जणेण तहा। परमाणंद-निबंधण-सिवपुरगमणं मुणेयव्वं ॥४॥ ___ चम्पा नगरी के समान मनुष्यगति, धन्य सार्थवाह के समान एकान्त दयालु भगवान् तीर्थंकर र और अहिच्छत्रा नगरी के समान निर्वाण समझना चाहिए॥१॥ 15 धन्य सार्थवाह की घोषणा के समान तीर्थंकर भगवान की मोक्षमार्ग की अनमोल देशना और र चरक आदि के समान मुक्ति-सुख की कामना करने वाले प्राणी जानना चाहिए॥२॥ 15 मोक्षमार्ग को अंगीकार करने वालों के लिए इन्द्रियों के विषय (विषमय फलदाता) नंदीफल के ड र समान हैं। जैसे नंदीफलों के भक्षण करने से मरण प्राप्त हुआ, उसी प्रकार इन्द्रियविषयों के सेवन से दी 15 संसार में जन्म-मरण जानना चाहिए॥३॥ र नन्दीफलों के नहीं सेवन करने से जैसे इष्ट पुर (अहिछत्रा नगरी) की प्राप्ति कही गई, उसी दा 15 प्रकार विषयों के परित्याग से निर्वाण-नगर की प्राप्ति होती है, जो परमानन्द का कारण है॥४॥ THE MESSAGE Champa city is the human state, Dhanya merchant is the absolutely & 15 compassionate Tirthankar, and Ahicchatra city is Nirvana. (1) The announcement by Dhanya merchant is the unique discourse about 2 the path of purification by the Tirthankar. The destitute like Charak are the 5 beings seeking the bliss of liberation. (2) > For those who tread the path of liberation, carnal pleasures are like the ? Nandiphal trees. As the consumption of Nandi fruits led to death, indulgence 5 in carnal pleasures leads to the unending cycles of rebirth. (3) 5 As avoiding these toxic fruits helped in reaching the destination 2 (Ahicchatra), avoiding indulgence in carnal pleasures helps in reaching 5 Nirvana city (the state of liberation), the source of ultimate bliss. (4) AAAAAAAAAAA卐 15 CHAPTER-15: THE NANDI-FRUIT (159) FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAI Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ F(१६०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र दा परिशिष्ट PATIPATION: अहच्छित्रा नगर-इस प्राचीन नगर का उल्लेख तो कई ग्रन्थों में है किन्तु आज की स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई। है। जैनयात्रियों के अनुसार आगरा से ईशानकोण में स्थित कुरुजांगल प्रदेश में स्थित है यह नगर। अन्य यात्री इसे 5, मेवात क्षेत्र में बताते हैं। जिनप्रभसूरि के तीर्थकल्प के अनुसार यह कुरुजांगल प्रदेश की प्राचीन शंखावली नामक ट नगरी थी जो भगवान पार्श्वनाथ के कमठ उपसर्ग के पश्चात् अहिच्छत्रा नाम से प्रसिद्ध हो गई। ह्युएनत्सेंग के र यात्रा वर्णनों में भी इसकी चर्चा है। महाभारत में भी इसका उल्लेख है। हेमचंद्रसूरि ने इसका अन्य नाम प्रत्यग्रथ र बताया है। 5 चरक-एक प्रकार के त्रिदण्डी परिव्राजक जो कछोटा (कच्छा या लंगोट) पहनते थे तथा यूथ बंध (समूह रूप) र रहते थे। ये खाद्य वस्तुओं का प्रथम भाग भिक्षा में लेते थे। चीरिक-रास्ते में पड़े कपड़े (चिथड़े) उठाकर पहनने वाले एक प्रकार के संन्यासी। चर्मखंडिक-चमड़े के वस्त्र तथा उपकरण उपयोग में लाने वाले संन्यासी। भिक्षाण्ड-केवल भिक्षा से निर्वाह करने वाले। अन्यों द्वारा लाई भिक्षा पर निर्वाह करने वाले। बौद्ध भिक्षु। पाण्डुरंग-शिव-भक्त; शरीर पर भभूत लपेटने वाले संन्यासी; गोशालक के अनुयायी साधु (निशीथ चूर्णि); S द गाय के दही, दूध, घी आदि को मांस समझकर ये नहीं खाते थे। (उद्योतनसूरि)। 5 गौतम-बैल के साथ उसकी क्रीड़ा दिखाकर भिक्षा ग्रहण करने वाले। __गोव्रती-गाय की सेवा करते हुए उसके अनुरूप कार्य करने का व्रत रखने वाले अर्थात् जब गाय बैठे तो वे बैठें, जब गाय खावे तो वे खावें आदि। गौचर्यानुगामी। गृहिधर्मी-गृहस्थ धर्म को ही सर्वश्रेष्ठ मानने वाले तथा सदा वैसा ही चिन्तन करने वाले। अविरुद्ध-विनयवादी, प्राणिमात्र का विनय करने वाले। र विरुद्ध-अक्रियावादी, ये परलोक नहीं मानते तथा सभी मतों का खण्डन करते हैं। वृद्ध-वृद्धावस्था में संन्यास लेने वाले; ऋषभदेव के समय के वे श्रावक जो कालान्तर में ब्राह्मण हो गए। वेट F पुरातन होने के कारण आदिलिंगी अथवा वृद्ध कहे जाते थे। श्रावक-धर्मशास्त्र सुनने वाले ब्राह्मण रक्तपट-लाल वस्त्रधारी परिव्राजक। AUTH एएएए कम् Annnnnnnnnnnnnnn र (160) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA 2 Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Turnuri र पन्द्रहवाँ अध्ययन : नंदीफल (989) SI APPENDIX Ahicchatra city-This ancient town finds mention in many scriptures but its present S location remains uncertain. According to Jain pilgrims it is located in the Kuru-Jangal area north-east of Agra. Other travellers believe it to be the Mewat area. According to the Tirthakalp of Jinprabhsuri it was earlier known as Shankhavali city in the Kuru-Jangal area, but after Kamath's famous affliction to Bhagavan Parshvanath it became popular as Ahicchatra. It finds mention in the travelogues of Huentseng as well as the Mahabharat. According to Hemchandraşuri it was also known as Pratyagarth. Charak--Mendicants carrying Trident and wearing special garb like shorts, who moved in group. They accepted only the first portion of meals as alms. Cheerak—Mendicants who dressed in rags thrown away on the road. Charmakhandak Mendicants who used pieces of leather to make their dresses and other equipments Bhikshand-Mendicants living on alms specially collected by others for them. Also 2 Buddhist monks. K Pandurang-Devotees of Shiva; mendicants who covered their body with ash; ascetic followers of Goshalak (Nisheeth Churni); mendicants who did not consume milk products, considering them to be like meat (Udyotan Suri). Gautam-Those who collected alms after showing tricks performed by trained oxen. Govrati—Mendicants who took care of cows as well as followed a vow to imitate the P activities of a cow. They would sit, stand, eat, etc. when the cow did so. Grihidharmi-Those who considered the duties of a householder to be the highest code of conduct. Aviruddha-Those who considered humility and humble behaviour towards all living a 15 beings as their religion. Viruddha-Those who did not believe in life after death and opposed every other school of thought. Vriddha-Those who renounced the world in their old age; Shravaks belonging to the period of Rishabhdev who later turned Brahmans. These were called Adilingi or Vriddha (old) because of their ancient lineage. Shravak-The Brahmans who listened the scriptures recited. Raktapat-A type of red clad mendicants. SverririririririririrTATTU 55 CHAPTER-15: THE NANDI-FRUIT ( 161 ) nonnan nomonoponnnnnnnnnnn Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका : आमुख । UUUUUUUUUUUUUUUUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ज शीर्षक-अवरकंका (दोवती)-अमरकंका (द्रौपदी)-नाम विशेष। अमरकंका एक नगरी का नाम है तथा द्रौपदी एक महिला का। श्रीकृष्ण वासुदेव की बहन तथा पाँच पांडवों की पत्नी द्रौपदी चरित्र नायिका है अतः इस अध्ययन का अपर नाम द्रौपदी है। द्रौपदी का अपहरण कर उसे अमरकंका नाम की नगरी में ले जाया गया था अतः इस अध्ययन का नाम अमरकंका है। इस अपेक्षाकृत विशाल कथा में अनेक उदाहरण हैं जिनके आधार पर कई महत्त्वपूर्ण भावों को प्रकट किया गया है। भय और स्वार्थवश मनुष्य बिना सोचे समझे ऐसे अकार्य कर बैठता है जो उसके अधःपतन का कारण बनते हैं। सुविधाओं में लिप्त रहकर गुरु आज्ञा का पालन नहीं करता। दैहिक आकर्षण से आकांक्षाओं को मन में बसा लेता है। आत्मिक विकास की राह में ऐसी अनेक बाधाओं-उनके प्रभावों तथा उनसे मुक्ति की बातें इस रोचक कथा में समझाई गई हैं। ___ कथासार-चम्पानगरी में तीन ब्राह्मण अपनी पत्नियों सहित रहते थे। ये सभी अनुक्रम से प्रतिदिन एक भाई के घर भोजन करते थे। एक दिन एक भाई की स्त्री नागश्री के यहाँ सब भोजन करने वाले थे। उसने प्रचर भोजन सामग्री बनवाई तथा एक तम्बे की खब मसालेदार सब्जी स्वयं अपने हाथ से बनायी। चखने पर मालूम पड़ा वह तुम्बा खारा (कड़वा) था। नागश्री ने वह सब्जी तो उठाकर रख दी और एक अन्य मीठे तुम्बे की सब्जी बना दी। सब लोगों ने पेट भर भोजन किया। . उस समय धर्मघोष नामक आचार्य अपने शिष्य समुदाय सहित चम्पानगरी में आये हुये थे। उनके एक शिष्य धर्मरुचि अपने मासखमण के पारणे के लिए उस दिन भिक्षा हेतु निकले। नागश्री ने उन्हें सहज-अवकर (कूड़ा डालने की उकरडी) जान उनके पात्र में वह कड़वी सब्जी ऊंडेल दी। धर्मरुचि ने लौटकर प्राप्त भिक्षान्न अपने गुरु को दिखाया। गुरु ने पहचान लिया कि वह सब्जी विषैली है अतः उन्होंने धर्मरुचि से कहा कि वह सब्जी उचित स्थान देखकर वहाँ परठ दे और पुनः अन्य भिक्षा लेकर आवे। धर्मरुचि ने उचित स्थान देख वहाँ एक बूँद सब्जी डाली। उस एक बूँद पर अनेक चींटियाँ आ गईं और वह सब्जी चखते ही तत्काल मर गईं। धर्मरुचि ने विचार किया कि जब एक बूंद से इतने जीव मर गये तो सारी सब्जी डाल देने से तो असंख्य जीवों का हनन हो जायेगा। यह सोच उसने सारी सब्जी स्वयं ही अपने उदर में डाल ली और उसकी तत्काल मृत्यु हो गई। यह समाचार धीरे-धीरे फैल गया और सभी नागश्री पर थू-थू करने लगे। उसके परिवार वालों ने भी उसे धिक्कार कर घर से निकाल दिया। उसे कोई आश्रय नहीं मिला और वह दुःख भोगती हुई मर गई। अनेक जन्मों तक उसने नरक की यातना भोगी। (162) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SUTRA E FAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( १६३ ) अन्ततः वह चम्पानगरी में ही सागरदत्त नाम के वणिक के घर सुकुमालिका के रूप में जन्मी। उसका विवाह सागर नाम के श्रेष्ठि पुत्र से हुआ। किन्तु उसके शरीर का स्पर्श ही अग्नि ज्वाला जैसा दुःखदायी होने के कारण वह उसे छोड़ भागा। उसके पिता ने एक भिखारी से उसका पुनर्विवाह कर दिया। भिखारी भी उसका स्पर्श नहीं कर सका और वह भी उसे छोड़ भागा। फिर उसने दीक्षा ले ली और उग्र तपस्या करने लगी। पर उसके मन की वासना ज्यों की त्यों बनी रही। एक बार गुरु आज्ञा के विरुद्ध वह उद्यान में तपस्यारत थी। तब एक गणिका को पाँच व्यक्तियों के साथ भोग विलास करते देख उसके मन में संकल्प उठा कि इस तपस्या का कोई फल होता हो तो उसे भी इसी प्रकार भोग विलास का आनन्द मिले। इस प्रकार निदान कर लिया। उसकी साधना में धीरे-धीरे शिथिलता बढ़ने लगी। अन्ततः मृत्यु प्राप्त कर वह पांचाल नरेश द्रुपद की पुत्री द्रौपदी के रूप में जन्मी। द्रौपदी युवा हुई तो उसके पिता ने स्वयंवर रचा, जहाँ देश के सभी शूरवीर राजाओं को बुलाया गया। द्रौपदी ने पाँच पाण्डवों को एक स्थान पर बैठे देख पूर्वजन्म के संकल्प से प्रेरित हो उन पाँचों का वरण कर लिया। हस्तिनापुर में राजा पाण्डु के महल में एक बार नारद मुनि का आगमन हुआ। द्रौपदी ने नारद को असंयत मानकर उनका आदर सत्कार नहीं किया। नारद ने क्षुब्ध हो धातकीखंड में अमरकंका नगरी के राजा पद्मनाभ को उकसाया। पद्मनाभ ने अपने एक मित्र देव की सहायता से द्रौपदी का अपहरण करवा लिया। द्रौपदी वहाँ राजा से अपने छुटकारे की अपेक्षा में छह मास का समय माँग तपस्यारत हो गई। ___ इधर पाण्डु राजा को द्रौपदी की कोई खोज नहीं मिली तो उन्होंने कृष्ण वासुदेव से सहायता माँगी। कृष्ण वासुदेव पाण्डवों सहित अमरकंका पहुंचे और पद्मनाभ को ललकारा। युद्ध हुआ और पाण्डव पराजित हो गए। फिर कृष्ण ने अपनी शक्ति से पद्मनाभ को हरा दिया और द्रौपदी को छुड़ाकर पाण्डवों को सौंप दिया। लौटते समय पाण्डवों ने कृष्ण की शक्ति परीक्षा लेने के हेतु गंगा नदी पार कर नाव छुपा दी। कृष्ण ने अपने रथ को हाथ में उठा तैरकर नदी पार की। उन्हें जब यह ज्ञात हुआ कि यह कार्य पाण्डवों ने उनकी शक्ति की परीक्षा हेतु किया था तो उन्होंने क्रुद्ध हो पाण्डवों को देश निकाला दे दिया। पाण्डु राजा को यह पता चला तो उन्होंने कुन्ती को कृष्ण के पास भेजा। तब कृष्ण ने कहा कि दक्षिण समुद्र के तट पर पाण्डव एक नया नगर-पाण्डु-मथुरा बसाकर रह सकते हैं। पाण्डव वहाँ रहने लगे। कालान्तर में उन्होंने द्रौपदी सहित दीक्षा ले ली और शत्रुजय पर्वत पर जा कर मोक्ष प्राप्त किया। द्रौपदी ने भी स्वाध्याय व तपस्या द्वारा कर्मों को क्षीण किया और मरकर देवलोक में जन्मी। वहाँ से महाविदेह में जन्म लेकर मोक्ष प्राप्त करेगी। UUVVurvuruvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvv K CHAPTER-16 : AMARKANKA (163) दा EAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnAAAAAAAAAA Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TUTTITUTTTTTTTTTTTTTTTT55 SIXTEENTH CHAPTER: AMARKANKA: INTRODUCTION Title-Avarkanka (Dovati)-Amarkanka (Draupadi)—names. Amarkanka is the name of a city and Draupadi that of a woman. Draupadi, the sister of Shri Krishna Vasudev and the wife of the five Pandavs is the central character in this story and so the alternative name of this chapter. Draupadi was abducted and brought to the city of Amarkanka and so the name of this chapter. In this comparatively long story many important subjects have been explained with the help of various examples. Pushed by fear and selfishness, man behaves irrationally and indulges in many deplorable activities that cause his downfall. Enslaved by comforts and conveniences he goes against the advice of his guru. The attractions of carnal pleasures inspire perverted ambitions. Various hurdles on the spiritual path and ways to overcome have been discussed in this gripping tale. Gist of the story-In Champa city lived three Brahmans with their wives. They assembled for food at one or another brother's house in turn each day. One day they were to eat at the house of the brother whose wife was Nagshri. She had ample food cooked for the occasion and also herself cooked a curry of gourd enriched with plenty of spices. When she tasted this curry she found that the gourd she used was bitter. Nagshri put that curry aside and cooked afresh using a sweet gourd. All the members of the family ate their fill. During the same period Acharya Dharmaghosh was staying in Champa city with his disciples. One of his disciples, Dharmaruchi, went out to collect alms for breaking his one month fast. Nagshri poured all the bitter curry into his pot considering it to be a waste-basket. Dharmaruchi, on his return, showed his begging to his Guru who immediately knew that the curry was bitter and toxic. He asked Dharmaruchi to throw it away at a proper place and go out to beg again. Dharmaruchi went out and found a suitable spot and poured just a drop of the curry. At once numerous ants swarmed and the moment they consumed that small quantity of toxic curry they died on the spot. Dharmaruchi thought that when just one drop killed so many beings the pot full of curry would kill infinite beings. He himself consumed the pot full of that toxic curry and died on the spot. The news of his death spread like wildfire and every one started cursing Nagshri. The members of her family also insulted her and threw her out of the house. In absence of any refuge she roamed around and died suffering. For numerous births she suffered the agony of hell. JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SÜTRA Survivorcevereiro K (164) annnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका Hon At last she was born as Sukumalika, the daughter of merchant Sagardatt in Champa city. She was married to Sagar, the son of another merchant. As her touch was as painful as that of fire her husband abandoned her the very first night. Her father once again married her to a beggar, but he also could not tolerate her touch and ran away. In the end she turned into an ascetic and started harsh penance. But her inner lust remained as it was. One day she was doing some penance in a garden against the order of her guru. She saw a courtesan enjoying carnal pleasures with five men and was inspired to imagine that, if there was any benefit of the harsh penance she was doing, she wished to enjoy such pleasure during her next birth. She turned this wish into an ambition. Gradually she became lax in her discipline. After her death she reincarnated as Draupadi, the daughter of King Drupad of Panchal. When Draupadi reached marriageable age her father organized a Svayamvar so that she could select a suitable match on her own. He invited brave and glorious kings from all over the country. When Draupadi saw five Pandav brothers sitting in a group she was inspired by her ambition from her last birth and she chose all the five brothers as her husbands. Once the sage Narad visited King Pandu's palace in Hastinapur. Considering Narad to be an indisciplined sage Draupadi did not extend him due courtesy and honour. Narad was peeved and went and instigated King Padmanabh of Amarkanka city in Dhatkikhand continent the evil deed. With the help of a friendly god Padmanabh abducted Draupadi. In hope of liberation Draupadi managed to get a reprieve for six months from Padmanabh and started doing penance. In the meantime when king Pandu could not find Draupadi in spite of all his efforts he sought help from Krishna Vasudev. Krishna took the Pandavs along to Amarkanka and challenged King Padmanabh. Pandays were defeated by Padmanabh in the ensuing battle. Finally Krishna himself used his powers and defeated Padmanabh. He got Draupadi released and brought her to the Pandavs. CHAPTER-16: AMARKANKA ( १६५ ) On the way back the Pandavs hid the boat on the bank of the Ganges to test Krishna's powers. Krishna lifted his chariot in one hand and swam across the great river. When he came to know about the mischief of Pandavs he got angry and ordered the exile of Pandavs. When Pandu came to know of this he sent Kunti to pacify Krishna. Krishna relented slightly and asked Pandavs to found a new town-Pandu Mathura-and live there. The Pandavs did accordingly. In a later part of their lives, the Pandavs and Draupadi became ascetics. The Pandavs went to Shatrunjaya mountain and achieved liberation. Draupadi also engaged in study and penance to shed Karmas. After her death she reincarnated as a god and will attain liberation after reincarnating in Mahavideh area. ^^... FULL (165) 5 Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ज्य सोलसमं अज्झयणं : अवरकंका सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका SIXTEENTH CHAPTER : AVARKANKA - AMARKANKA र सूत्र १ : जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं पन्नरसमस्स नायज्झयणस्स अयमद्वे 5 पण्णत्ते, सोलसमस्स णं भंते ! णायज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अढे पण्णत्ते ? द र सूत्र १ : जम्बू स्वामी ने प्रश्न किया-भंते ! जब श्रमण भगवान महावीर ने पन्द्रहवें ज्ञात 5 अध्ययन का पूर्वोक्त अर्थ बताया है तो सोलहवें ज्ञात अध्ययन का उन्होंने क्या अर्थ कहा है? र 1. Jambu Swami inquired, “Bhante! What is the meaning of the sixteenth S 3 chapter according to Shraman Bhagavan Mahavir?" 15 सूत्र २ : एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णामं णयरी होत्था। तीसे णंड 5 चंपाए नयरीए बहिया उत्तर पुरच्छिमे दिसीभाए सुभूमिभागे णामं उज्जाणे होत्था। सूत्र २ : सुधर्मास्वामी ने समाधान दिया हे जम्बू ! काल के उस भाग में चम्पा नाम की है 15 नगरी थी जिसके बाहर उत्तर-पूर्व दिशा में सुभूमि भाग नामक उद्यान था। र 2. Sudharma Swami narrated_Jambu! During that period of time there 5 was a town named Champa. Outside the town in the north-eastern direction 15 there was a garden named Subhumibhag. र सूत्र ३ : तत्थ णं चंपाए नयरीए तओ माहणा भायरो परिवसंति, तं जहा-सोमे, सोमदत्ते, टे 15 सोमभूई, अड्ढा जाव रिउव्वेय सुपरिनिट्ठिया। 5 तेसि णं माहणाणं तो भारियाओ होत्था, तं जहा-नागसिरी, भूयसिरी, जक्खसिरी। र सुकुमाल-पाणिपायाओ जाव तेसि णं माहणाणं इट्ठाओ, विपुले माणुस्सए कामभोगे ट 15 पच्चणुभवमाणीओ विहरति। र सूत्र ३ : उस चम्पा नगरी में सोम, सोमदत्त और सोमभूति नाम के तीन ब्राह्मण भाई रहते थे। 5 वे धनाढ्य थे और ऋग्वेद आदि वेद शास्त्र तथा अन्य ब्राह्मण ग्रंथों के पारंगत विद्वान् भी थे। र उन तीनों भाइयों की पत्नियों के नाम थे-नागश्री, भूतश्री और यक्षश्री। वे सुन्दर और सुकुमार था र थीं तथा अपने पतियों को प्रिय थीं। मनुष्योचित कामभोग भोगती वे अपना सुखमय जीवन व्यतीत दा 15 करती थीं। JJ Murosh P (166) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA Sannnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnni Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जपण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ड प्रज र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( १६७ ) 2 15 3. In Champa lived three Brahman brothers named Som, Somdatt, and S Sombhuti. They were rich as well as scholars of Vedas and other Brahman scriptures. The names of the wives of these brothers were Naagshri, Bhootshri, and a 5 Yajnashri respectively. They were beautiful and delicate and were loved by their respective husbands. They led a happy life enjoying all human pleasures. र सूत्र ४ : तए णं तेसिं माहणाणं अन्नया कयाई एगयओ सहियाणं समुवागयाणं, जावट 15 इमेयारूवे मिहो कहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इमे विपुले धणे ड र जाव सावतेज्जे अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसाओ पकामं दाउं, पकामं भोत्तुं, पकामं र परिभाएउं, तं सेयं खलु अहं देवाणुप्पिया ! अन्नमन्नस्स गिहेसु कल्लाकल्लिं विपुलं असणं पाणंद 15 खाइमं साइमं उवक्खडेउं उवक्खडेउं परिभुजेमाणाणं विहरित्तए। र अन्नमन्नस्स एयमटुं पडिसुणेति, कल्लाकल्लिं अन्नमन्नस्स गिहेसु विपुलं असणं पाणं खाइमं द 15 साइमं उवक्खडावेंति, उवक्खडावित्ता परिभुंजेमाणा विहरंति। र सूत्र ४ : एक बार जब वे तीनों भाई साथ बैठे तो उनके बीच इसप्रकार बातचीत हुई-द 15 "देवानुप्रियो ! हमारे पास प्रचुर धन-वैभव आदि विद्यमान है जो सात पीढ़ियों तक देने, भोगने दी र और बाँटने के लिये यथेष्ट है। अतः हे देवानुप्रियो ! हम लोगों के लिए नित्य बारी-बारी से डा र एक-दूसरे के घर बहुत-सी भोजन सामग्री बनवाकर एक साथ बैठकर खाना अच्छा होगा।' 15 तीनों बंधु इस बात पर सहमत हो गये और दूसरे दिन से ही वे एक दूसरे के घरों में भोजन र आदि सामग्री बनवाकर साथ-साथ भोजन करने लगे। 5 4. One day when the three brothers were sitting together they talked, Beloved of gods! We have great wealth and grandeur, enough to last seven > generations of use as well as distribution. So we should prepare rich food and enjoy it together each day in turn at one brother's residence." All three agreed to the plan and started acting on it the very next day. र कटु तुंबे का शाक 15 सूत्र ५ : तए णं तीसे नागसिरीए माहणीए अन्नया भोयणवारए जाए यावि होत्था। तए णंड र सा नागसिरी विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उक्क्खडेइ, उवक्खडित्ता एगं महं सालइयंट 15 तित्तालाउअं बहूसंभार-संजुत्तं णेहावगाढं उवक्खडेइ, एग बिदुयं करयलंसि आसाइए, तं खारं ड र कडुयं अखज्जं अभोज्जं विसब्भूयं जाणित्ता एवं वयासी-धिरत्थु णं मम नागसिरीए अहन्नाए टा र अपुनाए दूभगाए दूभगसत्ताए दूभगणिंबोलियाए, जीए णं मए सालइए बहुसंभारसंभिए दी 15 नेहावगाढे उवक्खडिए सुबहुदव्वक्खए नेहक्खए य कए। 15 CHAPTER-16: AMARKANKA (167) SAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण र ( १६८ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र 5 सूत्र ५ : एक दिन जब नागश्री ब्राह्मणी की बारी आई तो उसने प्रचुर भोजन सामग्री बनवाई। डी र साथ ही उसने एक बड़े से रस भरे तुंबे की बहुत से मसाले भरकर तेल में छौंककर सब्जी तैयार की। उसने इस सब्जी के रस की एक बूंद हथेली में लेकर चखी तो पता लगा कि वह खारी, टा 5 कड़वी, अखाद्य और विष जैसी है। यह समझते ही वह मन ही मन अपने आपको धिक्कारने लगी-द र “धिक्कार है मुझ अधन्या, पुण्यहीना, भाग्यहीना, अति अभागिनी निंबोली जैसी अनादरणीय नागश्री ड E को जिसने यह रसदार कड़वे तुंबे की अनेक मसाले और तेल भरी सब्जी तैयार की। इसके लिए टे 5 ढेर सारा सामान बिगाड़ा और तेल का सत्यानाश कर डाला। 5 CURRY OF THE BITTER GOURD > 5. One day, on her turn, Naagshri got elaborate meals cooked in large quantity. She also cooked herself curry of a large juicy gourd using liberal $ quantities of spices and oil. When she took a drop of this curry in her palm and tasted it she found that it was bitter, pungent, and repugnant like 15 poison. Realizing her mistake she cursed herself, "Curse me, the worthless, virtueless, ill-fated, unlucky, and as hateful as the bitter margosa-berry, who has cooked this bitter gourd using lots of spices and oil. I have wasted a lot of 2 time and material including plenty of oil. 15 सूत्र ६ : तं जइ णं ममं जाउयाओ जाणिस्संति, तो णं मम खिंसिस्संति, तं जाव ताव मम 15 जाउयाओ ण जाणंति, ताव मम सेयं एयं सालइयं तित्तालाउं बहुसंभारनेहकडं एगंते गोवेत्तए, ड र अन्नं सालइअं महुरालाउयं जाव नेहावगाढं उवक्खडेत्तए। एवं संपेहेइ, संपेहित्ता तं सालइयं जाव डा 5 गोवेइ, अन्नं सालइयं महुरालाउयं उवक्खडेइ। रे सूत्र ६ : “यदि मेरी देवरानियाँ यह सब जानेंगी तो मेरी निन्दा करेंगी। इससे पूर्व कि वे जान डा र पाएँ, यही उचित होगा कि इस तुंबे की सब्जी को कहीं छुपा दिया जाय और दूसरे मीठे तुंबे की 15 सब्जी इसी प्रकार तेल-मसाले भरकर पका ली जाय।" यह सोचकर नागश्री ने कडुआ तुंबा छुपा दे र दिया और नए मीठे तुंबे की सब्जी पका ली। 5 6. “If my Devaranis (wives of younger brothers of the husband) come to a know of it they will criticize me. It would be better if I hide this bitter curry and cook afresh, using a sweet gourd and employing the same recipe, before they come to know of it.” And she hid the bitter curry and cooked afresh. र सूत्र ७ : उवक्खडेत्ता तेसिं माहणाणं व्हायाणं जाव सुहासणवरगयाणं तं विपुलं असणं पाणं । 5 खाइमं साइमं परिवेसइ। तए णं ते माहणा जिमियभुत्तुत्तरागया समाणा आयंता चोक्खा ट र परमसुइभूया सकम्मसंपउत्ता जाया यावि होत्था। तए णं ताओ माहणीओ पहायाओ जावड विभूसियाओ तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं आहारेंति, आहारित्ता जेणेव सयाई गेहाइट 5 तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सकम्मसंपउत्ताओ जायाओ। 5 (168) JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SŪTRA و ناویاندا وه :عالمتقاعاتتوتلتقته Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( १६९ ) ट 5 सूत्र ७ : यथासमय वे ब्राह्मण बंधु स्नानकर सुखासन पर बैठे। उन्हें यथेष्ट भोजन परोसा गया। के भोजन के बाद आचमन कर स्वच्छ हो, हाथ-मुँह पोंछकर वे अपने-अपने काम में लग गये। तत्पश्चात् स्नानादि कर वस्त्राभूषण पहन विभूषित हुई ब्राह्मणियों ने भी पेट भर भोजन किया और टा 5 अपने-अपने घर लौटकर अपने कार्यों में जुट गईं। 2 7. At the usual hour the Brahman brothers sat down to eat, after taking a their bath. They were served liberal quantities of various dishes. After meals they washed their hands and mouths and resumed their normal routine. After that, the ladies also took bath, got dressed up and ate their fill. They dispersed and resumed their normal activities. र स्थविर-आगमन हे सूत्र ८ : तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसा नाम थेरा जाव बहुपरिवारा जेणेव चंपा णामं टा र नयरी, जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं जाव विहरंति। टा 5 परिसा निग्गया। धम्मो कहिओ। परिसा पडिगया। र सूत्र ८ : काल के इस भाग में धर्मघोष नाम के स्थविर अपने विशाल शिष्य परिवार के साथ दी 5 चम्पा नगरी के सुभूमि भाग उद्यान में पधारे। उचित उपाश्रय की याचना कर वहां ठहरे। परिषद ड 5 निकली और धर्मोपदेश सुन लौट गई। 15 ARRIVAL OF THE ASCETIC 2 8. During that period of time the great ascetic Sthavir Dharmaghosh 2 arrived, with a large family of his disciples, in the Subhumibhag garden 15 outside Champa city. He stayed there after seeking a suitable place. A SI 15 delegation of citizens came and after his discourse returned back. र सूत्र ९ : तए णं तेसिं धम्मघोसाणं थेराणं अंतेवासी धम्मरुई नाम अणगारे ओराले जाव र तेउलेस्से मासं मासेणं खममाणे विहरइ। तए णं से धम्मरुई अणगारे मासखमणपारणगंसि 15 पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, करित्ता बीयाए पोरिसीए एवं जहा गोयमसामी तहेव उग्गाहेइ, डी र उग्गाहित्ता तहेव धम्मघोसं थेरं आपुच्छइ, जाव चंपाए नयरीए उच्च-नीय-मज्झिमकुलाइं जाव र अडमाणे जेणेव नागसिरीए माहणीए गिहे तेणेव अणुपवितु। 15 सूत्र ९ : धर्मघोष स्थविर के एक शिष्य थे धर्मरुचि अनगार। वे उदार-उग्र तपस्वी थे और टा र तेजोलेश्या के धारक भी। वे एक-एक मास का तप करते रहते थे। उस दिन उनके मासखमण के 5 पारणे का दिन था। उन्होंने पहली पौरुषी में स्वाध्याय किया फिर क्रमशः ध्यानादि किये (विस्तृत विवरण गौतम स्वामी के समान)। तीसरे प्रहर में उन्होंने पात्रों का प्रतिलेखन किया और पात्र लेकर र धर्मघोष स्थविर से आज्ञा प्राप्त कर भिक्षाटन के लिए निकले। चम्पानगरी के उच्च, नीच व मध्यम द 15 कुलों में घूमते हुए वे नागश्री ब्राह्मणी के घर में आए। PCHAPTER-16 : AMARKANKA AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA (169) द Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sfiqu r al ( १७०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 9. Sthavir Dharmaghosh had a disciple named ascetic Dharmaruchi. } indulged in great and rigorous penances and possessed the fire-power, Tejoleshya. He observed the penance of month long fast frequently. It was the day of breaking a month long fast. During the first quarter of the day he meditated and after that continued his daily routine of studies etc. (as Gautam Swami did). During the third quarter of the day he cleaned his 2 begging bowls. With his bowls he went to Sthavir Dharmaghosh and after 2 seeking his permission went out to collect alms. Going from one house to al other of the rich, middle class, and lower class citizens of Champa he arrived at the house of Naagshri. 5 कटु तुबे का दान र सूत्र १० : तए णं सा नागसिरी माहणी धम्मरुइं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता तस्स टी 15 सालइयस्स तित्तकडुयस्स बहुसंभारसंजुत्तं णेहावगाढं निसिरणट्ठयाए हट्टतुट्टा उढेइ, उद्वित्ता जेणेव डा र भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं सालइयं तित्तकडुयं च बहुनेहं धम्मरुइस्स अणगारस्स ट र पडिग्गहंसि सव्वमेव निसिरइ। हे सूत्र १0. नागश्री ने जब धर्मरुचि अनगार को आते देखा तो उस कडुए-खराब तुंबे के साग र से छुटकारा पाने का अवसर जान वह प्रसन्न हुई। खड़ी होकर रसोई में गई और सारी की सारी दी 5 कडुवी सब्जी लाकर अनगार के पात्र में डाल दी। 5 GIVING AWAY THE BITTER GOURD 10. When Naagshri saw Ascetic Dharmaruchi approaching she was 3 pleased to find the opportunity to get rid of the bitter gourd curry. She 5 fetched the curry from the kitchen and poured it into the ascetic's bowl. 15 सूत्र ११ : तए णं से धम्मरूई अणगारे अहापज्जत्तमित्ति कट्ट णागसिरीए माहणीए गिहाओ > र पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता चपाए नगरीए मझमज्झेणं पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता ८ 15 जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे जेणेव धम्मघोसा थेरा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मघोसस्स डी र अदूरसामंते इरियावहियं पडिक्कमइ, अन्नपाणं पडिलेहेइ अन्नपाणं करयलंसि पडिदंसेइ। 5 सूत्र ११ : 'मेरे लिए यह आहार पर्याप्त है' यह जानकर धर्मरुचि अनगार नागश्री के घर से 5 र निकलकर चम्पानगरी में होते हुए सुभूमिभाग उद्यान में लौटे। वहाँ पहुँचकर धर्मघोष स्थविर के टी र निकट ईर्यापथ का प्रतिक्रमण किया और अन्न-पानी का प्रतिलेखन कर गुरु को दिखलाया। 5 11. “This much food is enough for me,” thinking thus Ascetic Dharmaruchi came out of the house of Naagshri and crossing the town returned to Subhumibhag garden. He went to Sthavir Dharmaghosh, did the ritual P(170) JNĀTĂ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA I Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ज फ र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( १७१ ) SH 15 review of his movement (Iryapathic Pratikraman), arranged the food he had cl 15 brought and showed it to his guru. र सूत्र १२ : तए णं ते धम्मघोसा थेरा तस्स सालइयस्स नेहावगाढस्स गंधण अभिभूया सा 15 समाणा तओ सालइयाओ नेहावगाढाओ एगं बिंदुगं गहाय करयलंसि आसाएइ, तित्तगं खार-S र कडुयं अखज्जं अभोज्जं विसभूयं जाणित्ता धम्मरुइं अणगारं एवं वयासी-'जइ णं तुमंट 5 देवाणुप्पिया ! एयं सालइयं जाव नेहावगाढं आहारेसि तो णं तुमं अकाले चेव जीवियाओ डा र ववरोविज्जसि, तं मा णं तुमं देवाणुप्पिया ! इमं सालइयं जाव आहारेसि, मा णं तुम अकाले टा रचेव जीवियाओ ववरोविज्जसि। तं गच्छ णं तुमं देवाणुप्पिया ! इमं सालइयं एगंतमणावाए द 15 अचित्ते थंडिले परिवेहि, परिढवित्ता अन्नं फासुयं एसणिज्जं असणं पाणं खाइमं साइमंड र पडिगाहेत्ता आहारं आहारेहि।' 15 सूत्र १२ : धर्मघोष स्थविर उस शाक में से निकलती गंध से उद्विग्न और विचलित हो गए। ड र उसमें से एक बूंद हथेली में लेकर चखा। उस सब्जी को तीखी, खारी, कडुवी और विष के समान है र अखाद्य जानकर वे बोले-“देवानुप्रिय ! यदि तुम यह तुंबे की सब्जी खाओगे तो तुम्हारी अकाल ८ 15 मृत्यु हो जायेगी। अतः तुम यह सब्जी मत खाना, ऐसा न हो कि तुम खा लो और तुम्हारे प्राणों का र असमय ही अन्त हो जाए। हे देवानुप्रिय ! तुम जाओ और किसी एकान्त, आवागमन रहित, उचित र एवं अचित्त भूमि (जहां जीव हिंसा की संभावना न हो) में सावधानी पूर्वक परट दो (डाल दो) 15 और पुनः दूसरा प्रासुक और एषणीय आहार ग्रहण करो और वही खाओ।" र 12. Sthavir Dharmaghosh was disturbed by the repulsive smell Remanating from the curry. He took a drop and tasted it. Realizing that it was I hot, pungent, bitter, and repugnant like poison, he said, “Beloved of gods! If 5 you eat this gourd curry you will die instantly. As such you should not eat 5 this curry. Beloved of gods! Go, search for an isolated, unfrequented, proper 5and life-less spot (where there are no insects, vegetation or other form of life), where there is no chance of destruction of life, and carefully pour out this > curry. Collect other suitable food and eat that only." 5स्वशरीर में प्रवेश 5 सूत्र १३ : तए णं से धम्मरुई अणगारे धम्मघोसेणं थेरेणं एवं वुत्ते समाणे धम्मघोसस्स डी रथेरस्स अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता, सुभूमिभागाओ उज्जाणाओ अदूरसामते हा थंडिल्लं पडिलेहेइ, पडिलेहित्ता तओ सालइयाओ एगं बिंदुगं गहेइ गहित्ता थंडिलंसि निसिरइ। र सूत्र १३ : धर्मघोष स्थविर की यह बात सुनकर धर्मरुचि अनगार वहाँ से निकले और सुभूमि ट्री रभाग उद्यान से कुछ दूर एक अचित्त (जीव रहित) स्थान को देख-भाल कर साग की एक बूंद वहाँ ट 15 डाली। PTER-16 : AMARKANKA (171) FAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnANER Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण मण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ज P ( १७२) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र POURING INTO HIS OWN BODY 15 13. Getting these instructions from Sthavir Dharmaghosh, ascetic cl Dharmaruchi came out of the garden and selected a suitable spot in the SI vicinity of the garden. He then poured just a drop of the curry and watched. S _सूत्र १४ : तए णं तस्स सालइयस्स तित्तकडुयस्स बहुनेहावगाढस्स गंधेणं बहूणि पिपीलिगा दी 15 सहस्साणि पाइन्भूयाइं। जा जहा य णं पिपीलिगा आहारेइ सा तहा अकाले चेव जीवियाओ र ववरोविज्जइ। 15 तए णं तस्स धम्मरुइस्स अणगारस्स इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पिज्जत्था-'जइ ताव र इमस्स सालइयस्स जाव एगमि बिंदुगंमि पक्खित्तंमि अणेगाइं पिपीलिगा सहस्साई ववरोविजंति, टा र तं जई णं अहं एयं सालइयं थंडिल्लंसि सव्वं निसिरामि, तए णं बहूणं पाणाणं भूआणं जीवाणंद 15 सत्ताणं वहकारणं भविस्सइ। तं सेयं खलु ममेयं सालइयं जाव गाढं सयमेव आहारेत्तए, मम चेव । र एएणं सरीरेणं णिज्जाउ' त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहिता मुहपोत्तियं पडिलेहइ, पडिलेहित्ता 15 ससीसोवरियं कायं पमज्जेइ, पमज्जित्ता तं सालइयं तित्तकडुयं बहुनेहावगाढं बिलमिव द 15 पन्नगभूएणं अप्पाणेणं सव्वं सरीरकोटुंसि पक्खिवइ। र सूत्र १४ : उस कडवे साग की गंध से आकर्षित हो हज़ारों चींटियाँ वहाँ आ गईं। जिस-जिस ट] 5 चींटी ने वह साग खाया वह तत्काल वहीं मर गई। र यह देख धर्मरुचि अनगार के मन में विचार आया-'जब इस साग की एक बूंद डालने से टा र हज़ारों चींटियाँ मर गईं तो मैं यदि यह पूरा का पूरा साग इस भूमि पर डाल दूंगा तो अनेकों टा 5 प्राणियों, भूतों, जीवों व सत्वों के नाश का कारण उपस्थित हो जायेगा। अतः अच्छा यही होगा कि डा र यह साग मैं स्वयं ही खा जाऊँ। ऐसा करने से इसका प्रभाव मेरे शरीर पर होकर ही समाप्त हो । 2 जायेगा।" ऐसा विचार कर अनगार ने मुँहपत्ती की प्रतिलेखना की और फिर मस्तक सहित पूरे ए शरीर का परिमार्जन किया। तत्पश्चात् वह कटु सब्जी बिना स्वाद लिए ही, जिस प्रकार सांप सीधा टी 5 बिल में प्रवेश कर जाता है उसी प्रकार, निगल कर सीधे शरीर के कोठे-उदर में डाल दी। 14. Attracted by the smell of the bitter curry thousands of ants swarmed Kin. Whichever ant consumed that curry died on the spot. 5 When Ascetic Dharmaruchi saw all this he thought, "When just a drop of this curry caused death of thousands of ants, if I throw away all this curry on the ground it would cause death of infinite number of living beings and life forms. It would be better if I myself eat all this curry. All its toxic effect will end after harming my body alone." And the ascetic did the ritual of inspecting the Muhapatti (the mouth-covering handkerchief used by Jain ascetics for various rituals) and cleaning of the body from head to feet. After this he gulped all the curry without even tasting it, exactly as a snake 5 quickly slithers into its hole. JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA ynnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn) AUUUUUUUUUUAE COUUUUUUN 15 (172) Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . . . SA RAPI 20 Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग २) चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED दुर्भावों से दिया : कटु फल पाया चित्र : २० चम्पानगरी निवासी सोम, सोमदत्त एवं सोमभूति नाम के तीनों भाइयों को जब यह पता चला कि नागश्री (सोम की पत्नी) ने मासखमण तपस्वी धर्मरुचि अणगार को जहरीले तुम्बे का आहार दे दिया जिस कारण तपस्वी अकाल में ही काल धर्म को प्राप्त हो गये तब उन्होंने नाग श्री की बहुत कठोर वचनों से ताड़ना, तर्जना व भर्त्सना की तथा उसे धक्के देकर घर से बाहर निकाल दिया। नागश्री विक्षिप्त जैसी होकर चम्पानगरी के चौराहों, तिराहों आदि पर भटकती है। उसके डरावने विकराल रूप को देखकर कुत्ते भौंकते रहते, लोग अंगुली दिखाकर कहते - "यह वही दुष्ट दुर्भागिनी पापात्मा है, जिसने तपस्वी अणगार को जहरीला तुम्बा बहराया।” वह गली-गली में टुकड़े माँगती भटकती हुई अनेक महारोगों का शिकार हो गयी। ( सोलहवाँ अध्ययन) AS YOU SOW SO SHALL YOU REAP ILLUSTRATION : 20 When the Brahman brothers Som, Somdatt and Sombhuti came to know that Som's wife Naagshri gave the bitter and toxic gourd curry to ascetic Dharmaruchi for breaking his one month long fast, thus causing his untimely death, they became very angry. They insulted, deplored, and rejected her. And at last cursing and shouting they kicked her out of their house. Exiled from home, Naagshri drifted to various crossings, (etc.) of Champa city. Seeing her terrifying appearance dogs barked after her. People on the streets pointed at her, "This is that evil woman who gave the poisonous gourd to a noble soul and caused his death." Drifting from one place to another and living on leftovers thrown outside houses she caught numerous terrible diseases. (CHAPTER-16) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SÚTRA (PART-2) यह परिचय चित्र नम्बर १९ का समझें। THIS EXPLANATION IS FOR ILLUSTRATION NO. 19 For Private Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - - P र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका (१७३ ) टा र सूत्र १५ : तए णं तस्स धम्मरुइस्स तं सालइयं जाव नेहावगाढं आहारियस्स समाणस्स 5 मुहुत्तंतरेणं परिणममाणंसि सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया उज्जला जाव दुरहियासा। र सूत्र १५ : तुवे का वह साग खाते ही धर्मरुचि के शरीर में मुहूर्त भर में ही उसका प्रभाव ड 5 व्याप्त हो गया। उनके शरीर में उत्कट और दुस्सह वेदना उत्पन्न हो गई। R 15. Within moments of consuming, the toxic effect of the curry spread throughout his body. He started suffering intolerable agony. 5 सूत्र १६ : तए णं धम्मरुई अणगारे अथामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कार-परक्कमे डा र अधारणिज्जमिति कट्ट आयारभंडगं एगते ठवेइ, ठवित्ता थंडिल्लं पडिलेहइ, पडिलेहित्ता 5 दब्भसंथारगं संथारेइ संथारित्ता दब्भसंथारगं दुरूहइ दुरूहित्ता पुरत्थाभिमुहे संपलियंकनिसन्ने ड र करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासीर नमोऽत्थु णं अरहताणं जाव संपत्ताणं, नमोऽत्थु णं धम्मघोसाणं थेराणं मम धम्मायरियाणंड र धम्मोवएसगाणं, पुव् िपि णं मए धम्मघोसाणं थेराणं अंतिए सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए 15 जावज्जीवाए जाव परिग्गहे, इयाणिं पि णं अहं तेसिं चेव भगवंताणं अंतिए सव्वं पाणाइवायं डा र पच्चक्खामि जाव परिग्गहं पच्चक्खामि जावजीवाए, जहा खंदओ जाव चरिमेहिं उस्सासेहिं था 15 वोसिरामि त्ति कटु आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते कालगए। र सूत्र १६ : क्रमशः धर्मरुचि अनगार अस्थिर, बलहीन, वीर्यरहित (उठने बैठने की शक्ति डी 5 रहित), पौरुषहीन तथा पराक्रमहीन हो गए। अब यह शरीर धारण नहीं किया जा सकता-यह ट 5 जानकर उन्होंने अपने आहार के पात्र एक ओर रख दिए। फिर बैठने के स्थान को साफ कर घास र का आसन बिछाया और उस पर पूर्वाभिमुख होकर पर्यंकासन में बैठ गए। दोनों हाथ जोड़ मस्तक 5 के निकट घुमा अंजलिबद्ध कर बोले-- र “अरिहंतो एवं सिद्धों आदि को मेरा नमस्कार हो। मेरे धर्माचार्य और धर्मोपदेशक धर्मघोष । 5 स्थविर को नमस्कार हो। मैंने पहले भी धर्मघोष स्थविर के पास प्राणातिपात विरमण आदि पाँच 5 महाव्रत धारण किये थे। इस समय भी उन्हीं भगवंतों की साक्षी में मैं पुनः वे ही व्रत धारण करता र हूँ। साथ ही शेष जीवन पर्यन्त अर्थात् अन्तिम सांस तक अपने इस शरीर का भी परित्याग करता 5 हूँ।" इस प्रकार उच्चारण कर उन्होंने आलोचना और प्रतिक्रमण कर समाधि मृत्यु का वरण कर 5 लिया। 16. Slowly Ascetic Dharmaruchi became infirm, weak, feeble, wasted and emaciated. Realizing that the end was near he placed his begging bowls on 2 one side. He wiped the ground clean, spread his grass-mattress and sat down 5 in the Paryankasan (a yogic posture). Joining his palms and raising them to 5 his forehead he uttered 5 CHAPTER-16 : AMARKANKA (173) C Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण धज्ज्ज्ज्ज्ज्ज ( १७४ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र SI 5 “I bow and convey my reverence to the worthy ones (Arhats), the supreme 5 ones (Bhagavans), ....... (the panegyric by the king of gods or the Shakrastav). My reverence also to my preceptor, Sthavir Dharmaghosh. Earlier, before Sthavir Dharmaghosh, I took the five great vows including refraining from S 12 hurting life. Now I once again take the same vows in the name of those Arihants. I also take an oath to remain detached from my body till my last breath.” Saying thus, and after doing the last critical review (Alochana ratikraman), he took the ultimate vow and cmbraced the meditative death. र गुरु की चिन्ता 15 सूत्र १७ : तए णं ते धम्मघोसा थेरा धम्मरुइं अणगारं चिरं गयं जाणित्ता समणे निग्गंथे डा र सहावेंति सद्दावित्ता एवं वयासी-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! धम्मरुइस्स अणगारस्स 15 मासखमणपारणगंसि सालाइयस्स जाव गाढस्स णिसिरणट्टयाए बहिया निग्गए चिरावेइ, तं र गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! धम्मरुइस्स अणगारस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेह।' 15 सूत्र १७ : उधर स्थविर धर्मघोष ने यह जानकर कि धर्मरुचि अनगार को गये बहुत देर हो द र गई है अन्य निर्ग्रन्थ श्रमणों को बुलाकर कहा-“देवानुप्रियो ! धर्मरुचि अनगार को मासखमण के डी र पारणे में कडुवा तुंबे का साग मिला था। वे उसे उचित स्थान पर उचित रीति से परठने के लिए टा 15 गए थे। उन्हें गये बहुत समय बीत गया है अतः तुम जाओ और चारों ओर उनकी खोज करो।" B ANXIETY OF THE GURU 17. On the other hand, when Sthavir Dharmaghosh realized that an unusually long time had passed since ascetic Dharmaruchi had left, he called IP other ascetics and said, "Ascetic Dharmaruchi had got bitter gourd curry for breaking his fast. He had gone to throw it away at some proper place. A long a 5 time has passed since he went. As such, you should go and search for him.” र सूत्र १८ : तए णं ते समणा निग्गंथा जाव पडिसुणेति, पडिसुणित्ता धम्मघोसाणं थेराणं ड र अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता धम्मरुइस्स अणगारस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणंट 15 करेमाणा जेणेव थंडिल्ले तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता धम्मरुइस्स अणगारस्स सरीरगंडा र निप्पाणं निच्चेटुं जीवविप्पजढं पासंति, पासित्ता ‘हा हा ! अहो अकज्ज' मिति कट्ट धम्मरुइस्स ट 15 अणगारस्स परिनिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति, करित्ता धम्मरुइस्स अणगारस्स आयारभंडगंड गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव धम्मघोसा थेरा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता गमणागमणं ड र पडिक्कमंति, पडिक्कमित्ता एवं वयासीर एवं खलु अम्हे तुब्भं अंतियाओ पडिनिक्खमाणो पडिनिक्खमित्ता सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स डा परिपेरंतेणं धम्मरुइस्स अणगारस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणा जेणेव थंडिल्ले से ((174) JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SŪTRA I FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAI AUGU Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( १७५ ) टा 15 तेणेव उवागच्छामो, उवागच्छित्ता जाव इहं हव्वमागया। तं कालगए णं भंते ! धम्मरुई अणगारे,S र इमे से आयारभंडए।" 15 सूत्र १८ : तब वे श्रमण अपने गुरु का आदेश स्वीकार कर वहाँ से निकले और चारों ओर 12 धर्मरुचि अनगार को ढूंढते हुए उस स्थान पर आए जहाँ वह स्थंडिल भूमि थी। वे क्या देखते हैं कि टा र धर्मरुचि अनगार का निश्चेष्ट, निष्प्राण और निर्जीव शरीर वहाँ पड़ा हुआ है। उनके मुँह से सहसा दा 15 निकल पड़ा-“हा ! हा ! अहो अकार्य हो गया !" और तब उन्होंने धर्मरुचि मुनि के परिनिर्वाण । सम्बन्धी कायोत्सर्ग किया, उनके पात्रादि उठाये और लौटकर धर्मघोष स्थविर के पास पहुंचे। र गमनागमन का प्रतिक्रमण करके बोले ___"आपका आदेश पाकर हम यहाँ से निकले और सुभूमिभाग उद्यान के चारों ओर र खोजते-खोजते स्थंडिल भूमि तक गये। भंते ! धर्मरुचि अनगार कालधर्म को प्राप्त हो गये हैं यह ट 5 जानकर हम यथाशीघ्र लौट आये हैं। ये उनके पात्रादि हैं।' 2 18. The ascetics accepted the order of their guru and set out in search of a ascetic Dharmaruchi. When at last they arrived at that spot they saw that the breathless, lifeless, dead body of ascetic Dharmaruchi was lying there. Taken aback they uttered, “Oh! What a tragedy!" Regaining their composure they performed the ritual post death meditation, collected the bowls, etc. and returned to Sthavir Dharmaghosh. After the ritual movement review P (Gamanagaman Pratikraman) they said - "According to your instructions we went out and searched all around the Subhumibhag garden. We reached the forlorn spot suitable for throwing waste. Bhante! We saw that ascetic Dharmaruchi had breathed his last. We immediately returned back. These are his belongings." 5 सूत्र १९ : तए णं ते धम्मघोसा थेरा पुव्वगए उवओगं गच्छंति, गच्छित्ता समणे निग्गंथे ड र निग्गंथीओ य सदावेंति, सद्दावित्ता एवं वयासी-‘एवं खलु अज्जो ! मम अंतेवासी धम्मरुई नामंट 5 अणगारे पगइ भद्दए जाव विणीए मासंमासेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावमाणे जाव ड र नागसिरीए माहणीए गिहे अणुपविटे, तए णं सा नागसिरी माहणी जाव निसिरइ। 5 सूत्र १९ : तत्पश्चात् स्थविर धर्मघोष ने पूर्वश्रुत का उपयोग लगाया-ध्यान किया, और ड 15 श्रमण-श्रमणियों को बुलाकर कहा-“हे आर्यों ! निश्चय ही मेरा शिष्य धर्मरुचि नामक अनगार ड र स्वभाव से भद्र व विनीत था। वह मासखमण की तपस्या कर रहा था। पारणे हेतु भिक्षा के लिए वह र नागश्री ब्राह्मणी के घर गया। ब्राह्मणी ने विष जैसी कडुवी तुंबे की सब्जी उसके पात्र में उंडेल दी। डा र (धर्मरुचि अनगार ने उसे अपने लिए पर्याप्त आहार समझा। इत्यादि स्थविर धर्मघोष ने मृत्यु के टा र भय से मुक्त हो वह भोजन खाने आदि की पूरी घटना सुना दी।) TER-16 : AMARKANKA (175) सा FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAALE Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ( १७६ ) 19. Sthavir Dharmaghosh used his knowledge of the scriptures and meditated. After that he called all his disciples and said, "Aryas! Indeed my disciple ascetic Dharmaruchi was sober and humble. He was observing a month long fast. To collect alms for breakfast he went to the house of Brahmani Naagshri. She poured the bitter and toxic gourd curry in his bowl. (and Sthavir Dharmaghosh narrated the whole story in detail). सूत्र २० : से णं धम्मरुइ अणगारे बहूणि वासाणि सामन्नपरियागं पाउणित्ता आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उड्डुं सोहम्म जाव सव्वट्टसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववन्ने। तत्थ णं अजहण्णमणुक्कोसं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । तत्थ धम्म वि देवरस तेत्तीस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । से णं धम्मरुई देवे ताओ देवलोगाओ जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहि । फ सूत्र २० : वे ( स्थविर ) आगे बोले - " अनेक वर्षों तक श्रमण जीवन पालन करके अन्त समय में आलोचना प्रतिक्रमण कर समाधि मरण के बाद धर्मरुचि अनगार ने सौधर्म आदि देवलोकों से ऊपर सर्वार्थ सिद्ध नामक महाविमान में देव रूप में जन्म लिया है। वहाँ जघन्य उत्कृष्ट के भेद से रहित सभी देवों की आयु तेतीस सागरोपम बताई है। धर्मरुचि देव यह तेतीस सागरोपम की आयु पूर्ण कर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होंगे और सिद्धि को प्राप्त करेंगे ।" 20. He added, “ At the end of a long ascetic life after doing the last critical review, he took the ultimate vow and embraced the meditative death. He has reincarnated as a god in the Sarvarth Siddh dimension that is above the other dimensions of gods like the Saudharm. The life-span in that dimension is said to be uniformly thirty three Sagaropam. God Dharmaruchi, after completing his life span as a god, will reincarnate in the Mahavideh area and attain liberation." नागश्री की आलोचना सूत्र २१ : 'तं धिरत्थु णं अज्जो ! णागसिरीए माहणीए अधन्नाए अपुन्नाए जाव बोलिया जाए णं तहारूवे साहू धम्मरुई अणगारे मासखमणपारणगंसि सालइएणं जाव गाणं अकाले चेव जीवियाओ ववरोविए । ' सूत्र २१. “हे आर्यों ! अधन्य, अपुण्य आदि और निंबोली के जैसी कडुवी उस नागश्री ब्राह्मणी को धिक्कार है जिसने ऐसे साधु पुरुष धर्मरुचि अनगार को कटु तुंबे की सब्जी मासखमण के पारणे में बहराकर असमय ही मार डाला । " CRITICISMS OF NAAGSHRI 21. “Aryas! Curse that worthless, virtueless, (etc. ) Naagshri who is as hateful as the bitter margosa-berry, for she gave the bitter and toxic gourd (176) JNÄTA DHARMA KATHANGA SUTRA For Private Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ HOUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ज UDDDDDDDDDDDDDDDD र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( १७७ ) 5 curry to such a noble soul as ascetic Dharmaruchi and caused his untimely S S) death.” । सूत्र २२ : तए णं ते समणा निग्गंथा धम्मघोसाणं थेराणं अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म दे 5 चंपाए सिंघाडग-तिग जाव बहुजणस्स एवमाइक्खंति-धिरत्थु णं देवाणुप्पिया ! नागसिरीए SI P माहणीए जाव णिंबोलियाए, जाए णं तहारूवे साहू साहुरूवे सालइएणं जीवियाओ ववरोविए।' टा 5 सूत्र २२. स्थविर आचार्य के मुख से यह वृतान्त सुन-समझकर उन श्रमणों ने चम्पानगरी के डा 5 शृंगाटक आदि स्थानों पर अनेक लोगों के सामने इस कथन को दोहराया-“धिक्कार है उस नागश्री र को, जिसने इस प्रकार के साधुरूपधारी, मासखमण तप करने वाले, धर्मरुचि अनगार को कटुक टा 5 तुंबे का साग देकर मार डाला।" 22. After hearing all these details those ascetics went into the city and Rrepeated this statement before many people on crossings, roads and other & C such public places in Champa-“Curse that worthless, virtueless, (etc. ) द Naagshri who is as hateful as the bitter margosa-berry, for she gave the bitter and toxic gourd curry to such a noble soul as ascetic Dharmaruchi and 5 caused his untimely death." र सूत्र २३ : तए णं तेसिं समणाणं अंतिए एयमटुं सोच्चा णिसम्म बहुजणो अन्नमनप्स ढ 15 एवमाइक्खइ, एवं भासइ-धिरत्थु णं नागसिरीए माहणीए जाव जीवियाओ ववरोविए।' र सूत्र २३ : श्रमणों से यह सब वृत्तान्त सुन-समझकर लोग परस्पर चर्चा करने लगे-“धिक्कार है द 15 नागश्री ब्राह्मणी को जिसने असमय ही एक श्रेष्ठ मुनि को मार डाला।" 23. When the citizens heard the incident it became the talk of the town B and every one repeated—"Curse that Naagshri Brahmani who caused the 5 untimely death of a great ascetic." नागश्री की दुर्दशा 15 सूत्र २४ : तए णं ते माहणा चंपाए नयरीए बहुजणस्स अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म र आसुरुत्ता जाव मिसिमिसेमाणा जेणेव नागसिरी माहणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता ट रणागसिरि माहणिं एवं वयासी5 'हं भो नागसिरी ! अपत्थियपत्थिए दुरंतपंतलक्खणे हीणपुण्णचाउद्दसे धिरत्थु णं तव टा र अधन्नाए अपुनाए दूभगाए दूभगसत्ताए दूभग-णिंबोलियाए, जाए णं तुमे तहारूवे साहू साहुरूवे दी 5मासखमणपारणगंसि सालइएणं जाव ववरोविए।' र उच्चावएहिं अक्कोसणाहिं अक्कोसंति, उच्चावयाहिं उद्धंसणाहिं उद्धंसेंति, उच्चावयाहिं रणिब्भत्थणाहिं णिब्भत्थंति, उच्चावयाहिं णिच्छोडणाहिं णिच्छोडेंति, तज्जेंति, तालेंति, तज्जेत्ता डा 15 तालेत्ता सयाओ गिहाओ निच्छुभंति । PTER-16 : AMARKANKA FAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnKAALI (177) Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Euuruuuuuuuuuuu 5( १७८ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा ___ सूत्र २४ : तब ब्राह्मण सोम, सोमदत्त तथा सोमभूति अनेक चम्पावासियों के मुख से यह दी 15 समाचार सुन-समझकर कुपित हुए, रुष्ट हुए और क्रोध से जल उठे। वे नागश्री के पास गए और डा र बोले-“ अरी नागश्री ! अवांछित की वांछा करने वाली, दुष्ट और अशुभ लक्षणों वाली। अशुभ कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को जन्मी हुई। अधन्य, अपुण्य, भाग्यहीन, अभागिनी। अत्यन्त दुर्भागिनी टा और निंबोली के समान कटु, तुझे धिक्कार है कि तूने एक श्रेष्ठ साधु रूप श्रमण को मासखमण के दी र पारणे में विषैला साग बहराकर मार डाला।' ____ इस प्रकार उन ब्राह्मणों ने ऊँचे-नीचे आक्रोश-वचन कहकर आक्रोश प्रकट किया, ऊँचे-नीचे डा र अपमान-जनक वचन कहकर उसे अपमानित किया, ऊँचे-नीचे भर्त्सना-वचन कहकर भर्त्सना की, और ऊँचे-नीचे तिरस्कार वचन कहकर उसका तिरस्कार किया और अन्त में उसकी तर्जना और ट 15 ताड़ना कर अपने घर से निकाल दिया। 5 THE PLIGHT OF NAAGSHRI 24. Brahmans Som, Somdatt, and Sombhuti also heard all this from many citizens of Champa. They became very angry. They went to Naagshri and said, “O deplorable Naagshri! O desirous of the undesired! You are infested with the evil and ominous signs like the one born on the fourteenth night of the dark half of the month. Curse you, O worthless, virtueless, (etc.) डा » Naagshri; you are as hateful as the bitter margosa-berry. For you gave the 9 2 bitter and toxic gourd curry to such a noble soul as ascetic Dharmaruchi for 3 breaking his month long fast and caused his untimely death." Those Brahmans expressed their anger by uttering angry words in low > and high pitched voice. In the same manner they insulted, deplored, and 2 rejected her. And at last cursing and shouting they kicked her out of their 9 house. 15 सूत्र २५ : तए णं सा नागसिरी सयाओ गिहाओ निच्छूढा समाणी चंपाए नयरीए सिंघाडग-डा र तियचउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु बहुजणेणं हीलिज्जमाणी खिंसिज्जमाणी निंदिज्जमाणी टा 5 गरहिज्जमाणी तज्जिज्जमाणी पव्वहिज्जमाणी धिक्कारिज्जमाणी थुक्कारिज्जमाणी कत्थइ ठाणं वा ड र निलयं वा अलभमाणी दंडी-खंडनिवसना खंडमल्लग-खंडघडग-हत्थगया फुट्ट-हडाहड-सीसा डा ए मच्छियाचडगरेणं अन्निज्जमाणमग्गा गेहं गेहेणं देह-बलियाए वित्तिं कप्पेमाणी विहरइ। र सूत्र २५. अपने घर से निकाली हुई वह नागश्री चम्पानगरी के शृंगाटक, तिराहे, चौक, चबूतरे, SI र चौराहे, महापथ आदि स्थानों से निकली तो सभी स्थानों पर अनेक जनों ने उसकी अवहेलना की, टा 5 बुराई की, निंदा की, गर्दा की, तर्जना की, व्यथा पहुँचाई, धिक्कारा और थूका। यहाँ तक कि वह न डा र तो कहीं ठहरने का ठिकाना पा सकी और न रहने का स्थान। अंततः टुकड़े-टुकड़े सांधे हुए वस्त्र ) र (178) JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SŪTRA 3 Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnni HTTATUrur ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्र Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग : २) - - - - - - - - - - - - - - - की चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED प्राणि-रक्षा के निमित्त प्राण त्याग चित्र : १९ १. गुरु आज्ञा पाकर धर्मरुचि अणगार नगर के बाहर स्थण्डिल भूमि पर पहुंचे। वहाँ एकान्त जीवरहित निर्दोष स्थान देखकर उस घी मसालेदार भोजन की एक बूंद मिट्टी पर डाली। उसकी तेज गंध से हजारों चींटियाँ वहाँ आ गईं। जैसे ही चींटियों ने वह बूंद चखी कि वे वहीं मर गईं। चींटियों को मरा देखकर मुनि सोचने लगते हैं-"जब एक बूंद से ही हजारों चीटियाँ मर गईं तो यदि यह पूरा साग यहाँ डाल दूंगा तो न जाने कितने जीवों/सत्त्वों का विनाश होगा....?" प्राणि-रक्षा की अनुकम्पा भावना से मुनि का हृदय द्रवित हो उठा और पूरा साग अपने उदर में डाल लिया। २. उसका विषैला प्रभाव शरीर पर हुआ। असह्य वेदना उठी। अन्त में अरिहंत भगवान को नमस्कार करते हुए समाधि भाव के साथ शरीर त्यागा। (सोलहवाँ अध्ययन) SACRIFICING ONESELF TO SAVE OTHERS ILLUSTRATION : 19 1. After getting instructions from his guru, ascetic Dharmaruchi went out of the town and selected a suitable spot. He then poured just a drop of the curry and watched. Drawn by the strong smell thousands of ants swarmed in. Whichever ant consumed that curry died on the spot. When the ascetic saw all this he thought, “When just a drop of this curry causes the death of thousands of ants, if I throw away all this curry on the ground it would kill an infinite number of living beings and life forms." The compassionate ascetic was deeply moved. 2. The compassionate ascetic gulped all the curry. The toxic effect of the curry spread throughout his body. He started suffering intolerable agony. He paid homage to Arhats and Bhagavans and embraced the meditative death. (CHAPTER-16) स्मान लक JNATA DHARMA KATHANGA SUTRA (PART-2) यह परिचय चित्र नम्बर २ का समझें। THIS EXPLANATION IS FOR ILLUSTRATION NO. 20 Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्प IALA UDDDDDDDDDDDDजक र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( १७९ ) SIL 15 पहने, हाथों में सिकोरे और हांडी के ठीकरे लिए, सर पर विखरे बाल लिए और अपने पीछे और ड 12 ऊपर भनभनाती मक्खियों का झुण्ड लिए वह नागश्री घर से बाहर फेंके टुकड़ों से पेट पालती । 5 भटकने लगी। 25. Exiled from home, Naagshri drifted to various crossings, trisections, र squares, platforms, roads, etc. and everywhere all people denounced, ] 5 deplored, criticized, censured, condemned, hurt, and cursed her; they also ट spit on her. They rejected her to the extent that she found no place to live or < even stay. At last, dressed in rags (made by stitching together small pieces of ware in her hands, and flies hovering over her, she drifted from one place to another living on leftovers thrown 15 outside houses. र सूत्र २६ : तए णं तीसे नागसिरीए माहणीए तब्भवंसि चेव सोलस रोगायंका पाउब्भूया, तं 5 15 जहा-सासे कासे जोणिसूले जाव कोढे। तए णं नागसिरी माहणी सोलसेहिं रोगायंकेहिं अभिभूया द र समाणी अट्ठदुहट्टवसट्टा कालमासे कालं किच्चा छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं बावीससागरोवमठिइएसुड 5 नरएसु नेरइयत्ताए उववन्ना। र सूत्र २६ : ब्राह्मणी नागश्री को कालान्तर में उसी जीवन में श्वांस, कास, योनिशूल, कुष्ट आदि 5 सोलह रोगातंक उत्पन्न हुए। इन रोगों की पीड़ा से दुखित हो आर्त-रौद्र ध्यान करती हुई वह मृत्यु टा र को प्राप्त हुई और फिर छठे नरक में उत्पन्न हुई। इस नरक में जन्मे नारक जीवों की उत्कृष्ट आयु ड र बाईस सागरोपम होती है। 15 26. In due course she became the abode of the sixteen diseases including Pasthma, bronchitis, and leprosy (as detailed in ch. 12 para 21). Suffering from these diseases she died. At the moment of her death her attitude was depressed and angry. She reincarnated in the sixth hell. The maximum life 15 span in this hell is twenty two Sagaropam. नरक यातना __ सूत्र २७ : सा णं तओऽणंतरं उव्वट्टित्ता मच्छेसु उव्वन्ना, तत्थ णं सत्थवज्झा दाहवकंतीए टा 15 कालमासे कालं किच्चा अहे सत्तमीए पुढवीए उक्कोसाए तित्तीससागरोवमठिइएसु नेरइएसुद र उववन्ना। 15 सूत्र २७ : तत्पश्चात् इस छठे नरक का जीवन पूर्ण कर वह मत्स्य योनि में उत्पन्न हुई। वहाँ डा र शस्त्र से उसका वध हुआ और शरीर में दाह उत्पन्न होने से मृत्यु प्राप्त कर सातवें नरक में उत्पन्न । 15 हुई। इस नरक में जन्मे नारक जीवों की उत्कृष्ट आयु तेतीस सागरोपम होती है। APTER-16 : AMARKANKA (179) सा FFAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAM ण Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प जाज ( १८०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र दा P PASSAGE THROUGH HELLS 27. After completing the life span in the sixth hell she was born as a fish. Here she got a painful death by some weapon. She reincarnated in the seventh hell. The maximum life span in this hell is thirty three Sagaropam. S सूत्र २८ : सा णं तओऽणंतरं उव्वट्टित्ता दोच्चं पि मच्छेसु उववज्जइ, तत्थ वि य णंद र सत्थवज्झा दाहवकंतीए दोच्चं पि अहे सत्तमीए पुढवीए उक्कोसं तेत्तीससागरोवमठिइएसु नेरइएसुड एउववज्जइ। सूत्र २८ : सातवें नरक से निकलकर वह नागश्री पुनः मत्स्य योनि में जन्मी, और वहाँ से फिर ड र शस्त्र से वध किये जाने पर दाह युक्त मृत्यु प्राप्त कर पुनः सातवें नरक में उत्पन्न हुई। → 28. After completing the life span in the seventh hell she was again born S 2 as a fish. Here also she got a painful death by some weapon and again a Breincarnated in the seventh hell. सूत्र २९ : सा णं तओहिंतो जाव उव्वट्टित्ता तच्चं पि मच्छेसु उववन्ना, तत्थ वि य णं हा र सत्थवज्झा जाव कालं किच्चा दोच्वं पि छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं बावीससागरोवमठिइएसु नरएसुटा र उववन्ना। सूत्र २९. सातवें नरक से निकलकर नागश्री एक बार फिर मत्स्य योनि में गई और वहाँ से टा 5 फिर शस्त्र से मृत्यु प्राप्त कर दुबारा छठे नरक में गई। वहां नारकी जीवों की उत्कृष्ट आयु बावीस र सागरोपम है। 29. After completing the life span in the seventh hell she was once again $ born as a fish. Here also she got a painful death by some weapon and 9 2 reincarnated in the sixth hell for the second time. 5 सूत्र ३० : तओऽणंतरं उव्वट्टित्ता उरएसु, एवं जहा गोसाले तहा नेयव्वं। जाव रयणप्पहाए ड र सत्तसु उववन्ना। तओ उववट्टित्ता जाव इमाइं खहयरविहाणाइं जाव अदुत्तरं च णं खरबायर-2 15 पुढविकाइयत्ताए तेसु अणेगसयसहस्सखुत्तो। र सूत्र ३० छठे नरक से निकलकर वह उरपरिसर्प (सर्प) योनि में गई। इसी प्रकार गोशालक के ट 15 समान (भगवती सूत्र के अनुसार) वह रत्नप्रभा आदि सातों नरक भूमियों में उत्पन्न हुई। फिर दी 15 पक्षियों (खेचरों) की विविध योनियों में जन्मी और फिर लाखों बार खर (कठिन) बादर S1 र पृथ्वीकायिक जीवों के रूप में उत्पन्न हुई। 15 30. From the sixth hell she went to the reptile species. This way in her cycle of rebirths she drifted to all the seven hells including Ratnaprabha as 12 detailed about Goshalak in the Bhagavati Sutra. After this she drifted from र (180) JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SÜTRA J 卐nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny DUDUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्卐 Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( १८१ ) one species to another in the animal kingdom and then was reborn millions of times as tough and gross earth-bodied living organisms. सुकुमालिका का कथानक सूत्र ३१ : सा णं तओऽणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे, भारहे वासे, चंपाए नयरीए,ट र सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिंसि दारियत्ताए पच्चायाया। तए णं सा भद्दाडा 15 सत्थवाही णवण्हं मासाणं दारियं पयाया। सुकुमालकोमलियं गयतालुयसमाणं। र तीसे दारियाए निव्वत्ते बारसाहियाए अम्मापियरो इमं एयारूवं गोन्नं गुणनिष्फन्नं नामधेज्जंटा 5 करेंति-'जम्हा णं अम्हं एसा दारिया सुकुमाला गयतालुयसमाणा तं होउ णं अम्हं इमीसे 5 15 दारियाए नामधेज्जं सुकुमालिया।' र तए णं तीसे दारियाए अम्मापियरो नामधेज्जं करेंति सुकुमालिय त्ति। र सूत्र ३१ : नागश्री का जीव इस प्रकार संसार-भ्रमण के बाद जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में दो र चम्पानगरी में सार्थवाह सागरदत्त की भार्या भद्रा की कोख में बालिका के रूप में अवतरित हुई। नौ दा 5 माह पूर्ण होने पर भद्रा ने बालिका को जन्म दिया। वह बालिका हाथी के तालु के समान सुकुमार र और कोमल थी। 5 जन्म से बारह दिन बीतने पर माता-पिता ने उसका गुणानुरूप नाम रखा-“हमारी यह बालिका र हाथी के तालु के समान अत्यन्त कोमल है अतः इसका नाम हम सुकुमालिका रखते हैं।" STORY OF SUKUMALIKA 5 31. After all this wandering through various life forms this being s 5 descended into the womb of Bhadra, the wife of merchant Sagardatt in S Champa city in Bharatvarsh in the Jambu continent. After nine months Bhadra gave birth to a girl who was as delicate and tender as the palate of P an elephant. 5 Twelve days after the birth the parents gave her a name suiting her s 15 physique, “As this daughter of ours is as delicate and tender as the palate of S 15 an elephant we name her as Sukumalika (delicate)." र सूत्र ३२ : तए णं सा सुकुमालिया दारिया पंचधाईपरिग्गहिया, तंजहा-खीरधाईएड 5 मज्जणधाइए मंडणधाईए, अंकधाईए, कीलावणधाईए, जाव परिवड्ढइ। तए णं सा सूमालिया । रेदारिया उम्मुक्कबालभावा जाव रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाया टी र यावि होत्था। 15 सूत्र ३२. सुकुमालिका के पालन-पोषण का दायित्व पाँच धायों ने संभाला-(१) क्षीर धात्री, टे र (२) मज्जन धात्री, (३) मंडन धात्री, (४) क्रीडा धात्री, और (५) अंक धात्री। इन पाँच धायों की ट R CHAPTER-16 : AMARKANKA (181) ला FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAD Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र ( १८२ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 देखरेख में वह बालिका सुखपूर्वक विकसित होने लगी, जैसे पर्वत की गुफा में संरक्षित चंपकलता ड र बढ़ती है। धीरे-धीरे वह बालपन से मुक्त होकर रूप, यौवन और लावण्य से भरपूर उत्कृष्ट शरीर 5 वाली हो गई। 32. Five nurse-maids were appointed to look after infant Sukumalika. र They were-(1) Kshir Dhatri or milk-nurse-maid; (2) Mandan Dhe dress-nurse-maid; (3) Majjan Dhatri or bath-nurse-maid; (4) Kridayan Dhatri 5 or play-nurse-maid; and (5) Anka Dhatri or lap-nurse-maid. Under the care a of these nurse-maids the baby girl developed happily as a Champak creeper $ grows in a cave. Gradually she crossed her childhood and grew to be a c P beautiful, charming, and perfectly proportioned young woman. 15 सूत्र ३३ : तत्थ णं चंपाए नयरीए जिणदत्ते नामं सत्थवाहे अड्ढे, तस्स णं जिणदत्तस्स भद्दा ट 15 भारिया सूमाला इट्ठा जाव माणुस्सए कामभोए पच्चणुब्भवमाणा विहरइ। तस्स णं जिणदत्तस्स ड र पुत्ते भद्दाए भारियाए अत्तए सागरए नामं दारए सुकुमालपाणिपाए जाव सुरूवे। 15 सूत्र ३३ : चंपानगरी में ही जिनदत्त नाम का एक सम्पन्न सार्थवाह रहता था। जिनदत्त के भी द र भद्रा नाम की एक पत्नी थी। वह सुन्दर व सुकुमार तथा, पति प्रिया थी और आनन्द भोगती जीवन ड र व्यतीत करती थी। जिनदत्त के भद्रा से सागर नाम एक का पुत्र था। वह भी सुन्दर और सुकुमार था। 15 33. In Champa city also lived another merchant named Jindatt. The l name of his wife was also Bhadra. She was beautiful and delicate and led a र happy life. This couple had a handsome and charming son named Sagar. डा 15 सूत्र ३४ : तए णं से जिणदत्ते सत्थवाहे अन्नया कयाई साओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, ट र पडिणिक्खमित्ता सागरदत्तस्स गिहस्स अदूरसामंतेणं वीईवयइ, इमं च णं सूमालिया दारिया ड र हाया चेडियासंघपरिवुडा उप्पिं आगासतलगंसि कणगतेंदूसएणं कीलमाणी कीलमाणी विहरइ। ट] 15 सूत्र ३४ : एक बार जिनदत्त अपने घर से निकलकर सागरदत्त के घर के पास से गुजर रहा ड र था। वहाँ घर की छत पर सुकुमालिका स्नानादि से निवृत्त होकर दासियों से घिरी हुई स्वर्ण गेंद से 5 खेल रही थी। 34. On day when Jindatt was passing in front of the house of Sagardatt S he saw Sukumalika who, after taking her bath and getting dressed, was 5 playing with a golden ball with her maid servants. र विवाह-प्रस्ताव र सूत्र ३५ : तए णं से जिणदत्ते सत्थवाहे सूमालियं दारियं पासइ, पासित्ता सूमालियाए डी र दारियाए रूवे य जोव्वणे य लावण्णे य जायविम्हए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं टा 15 वयासी-एस णं देवाणुप्पिया ! कस्स दारिया ? किं वा णामधेज्जं से ? 5 (182) JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SUTRA र Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण பபபபப UUUUUUDDDDDDDDDDDDDDDDD क सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( १८३ ) डा 15 तए णं ते कोडुबियपुरिसा जिणदत्तेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठा करयल जाव द र एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया ! सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स धूया भद्दाए अत्तया सूमालिया 15 नामं दारिया सुकुमालपाणिपाया जाव उक्किट्ठा।' 12 सूत्र ३५. उस समय जिनदत्त ने सुकुमालिका को देखा और उसके रूप, यौवन और लावण्य । 5 को देखकर आश्चर्यचकित रह गया। उसने अपने सेवकों को बुलाकर पूछा-“देवानुप्रियो ! वह दे किसकी लड़की है और क्या नाम है उसका? र सेवकों ने प्रसन्नचित्त हो हाथ जोड़ उत्तर दिया-“देवानुप्रिय ! यह सार्थवाह सागरदत्त की पुत्री 5 और भद्रा की आत्मजा सुकुमालिका है। यह सुकुमार, सुन्दर तथा उत्कृष्ट शरीर वाली है। 5 MARRIAGE PROPOSAL B 35. Jindatt was astonished seeing her beauty, youth, charm, and figure. He called his servants and asked, “Beloved of gods! Whose daughter is she? and what is her name?" The servants happily replied, "Sire! She is the daughter of merchant Sagardatt and his wife Bhadra and her name is Sukumalika. She is 15 extremely beautiful (etc.).” र सूत्र ३६ : तए णं से जिणदत्ते सत्थवाहे तेसिं कोडुबियाणं अंतिए एयमढे सोच्चा जेणेव टा 15 सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पहाए जाव मित्तनाइपरिवुडे चंपाए नयरीए डी २ मझमझेणं जेणेव सागरदत्तस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ। तए णं सागरदत्ते सत्थवाहे जिणदत्तंड 5 सत्थवाहं एज्जमाणं पासइ, एज्जमाणं पासइत्ता आसणाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्टित्ता आसणेणं टा र उवणिमंतेइ, उवणिमंतित्ता आसत्थं वीसत्थं सुहासणवरगयं एवं वयासी-'भण देवाणुप्पिया ! SI र किमागमणपओयणं ?' र सूत्र ३६ : सेवकों का उत्तर सुनकर जिनदत्त अपने घर लौट आया। स्नानादि कर मित्रों वड र स्वजनों को साथ लेकर चम्पानगरी के बीच होता हुआ सागरदत्त के घर आया। उसे आता देख, ट 15 सागरदत्त अपने आसन से उठा और अभिवादन कर जिनदत्त को आसन पर बैठने को कहा। जब ८ र जिनदत्त आराम से बैठ गया तब सागरदत्त ने पूछा-“देवानुप्रिय ! कहिये कैसे आना हुआ?" 5 36. After this Jindatt returned home. He got ready after his bath and I along with his relatives and friends went to the residence of Sagardatt. When 5 he saw them coming, Sagardatt got up from his seat, greeted them and SI offered them seats. When the guests took their seats and made themselves comfortable Sagardatt asked, “Beloved of gods! Tell me what brings you 5 here?” B CHAPTER-16 : AMARKANKA (183) Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SITOUTUS ( १८४ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र र सूत्र ३७ : तए णं से जिणदत्ते सत्थवाहे सागरदत्तं सत्थवाहं एवं वयासी-‘एवं खलु अहं 5 र देवाणुप्पिया ! तव धूयं भद्दाए अत्तियं सूमालियं सागरदत्तस्स भारियत्ताए वरेमि। जइ णं जाणह 15 देवाणुप्पिया ! जुत्तं वा पत्तं वा सलाहणिज्जं वा सरिसो वा संजोगो, ता दिज्जउ णं सूमालिया र सागरस्स। तए णं देवाणुप्पिया ! किं दलयामो सुकं सूमालियाए ? 15 सूत्र ३७ : जिनदत्त ने उत्तर दिया-“देवानुप्रिय ! मैं आपकी पुत्री तथा भद्रा देवी की आत्मजा द र सुकुमालिका का हाथ अपने पुत्र सागरदत्त के लिए माँगता हूँ। यदि आप इस प्रस्ताव को उचित, प्राप्य और श्लाघनीय तथा इस संयोग को समान समझें तो सुकुमालिका मेरे पुत्र सागरदत्त को 15 दीजिये! यदि आप इस संयोग को इष्ट समझते हैं तो बतायें कि इसके लिए क्या शुल्क (कन्या हेतु द र वस्त्र-आभूषण या अन्य शर्ते) दिया जाय?'' 5 37. Jindatt replied, “Beloved of gods! I have come to ask for the hand of 5 your daughter Sukumalika in marriage for my son Sagardatt. If you feel that > the match is seemly, appropriate, desirable, commendable and worth a union, 2 please tell me the desired dowry." 15 सूत्र ३८ : तए णं से सागरदत्ते तं जिणदत्तं एवं वयासी-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! से र सूमालिया दारिया मम एगा एगजाया इट्टा जाव किमंग पुण पासणयाए ? तं नो खलु अहं र इच्छामि सूमालियाए दारियाए खणमवि विप्पओगं। तं जइ णं देवाणुप्पिया ! सागरदारए मम 5 घरजामाउए भवइ, तो णं अहं सागरस्स सूमालियं दलयामि।' र सूत्र ३८ : सागरदत्त ने कहा-“देवानुप्रिय ! सुकुमालिका हमारी एकमात्र संतान है और हमें 15 प्रिय है। उसका नाम सुनने मात्र से हमें हर्ष होता है तो देखने की तो बात ही क्या है। अतः मैं क्षण टा र भर के लिए भी उसका वियोग नहीं चाहता। देवानुप्रिय ! यदि सागर हमारा घर-जंवाई बन जाए तो डा र मैं उसे सुकुमालिका दे सकता हूँ।" 5 38. Sagardatt said, “Beloved of gods! Sukumalika is our only and beloved डा 2 child. Just to hear her name is a pleasure, to say nothing of seeing her. As 2 such I cannot think of separation from her even for a moment. Beloved of gods! If Sagar consents to live with us I may marry Sukumalika to him." र प्रथम विवाह 15 सूत्र ३९ : तए णं जिणदत्ते सत्थवाहे सागरदत्तेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ते समाणे जेणेव सए डा र गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरदारगं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'एवं खलु ! | 15 सागरदत्ते सत्थवाहे ममं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! सूमालिया दारिया इट्ठा, तं चेव, तं दा 12 जइ णं सागरदत्तए मम घरजामाउए भवइ ता दलयामि।' 15 तए णं से सागरए दारए जिणदत्तेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए संचिट्टइ। 5 (184) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SÜTRA'I Sinnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( १८५ ) सूत्र ३९. यह सुनकर जिनदत्त अपने घर आया और अपने पुत्र सागर को बुलाकर कहा - "हे पुत्र ! सार्थवाह सागरदत्त ने मुझसे कहा कि उसकी लड़की उसे इतनी प्रिय है कि तुम उसके घर जंवाई बनो तभी वह अपनी लड़की का विवाह तुम से करेगा । " तब सागरदत्त मौन रहकर स्वीकृति दे दी। FIRST MARRIAGE 39. Jindatt returned home, called his son Sagar and said, "Son! Merchant Sagardatt says that he loves her daughter so much that he can marry her to you only if you agree to live with them." Sagar remained silent expressing his consent. सूत्र ४० : तए णं जिणदत्ते सत्थवाहे अन्नया कयाई सोहणंसि तिहि करण - नक्खत्त-मुहुत्तंसि विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावित्ता मित्तनाइ-नियग-सयणसंबधिपरियणं आमंतेइ, जाव संमाणित्ता सागरं दारयं ण्हायं जाव सव्वालंकारविभूसियं करेइ, करित्ता पुरिससहस्सावाहिणिं सीयं दुरूहावेइ, दुरूहावित्ता मित्त-णाइ जाव संपरिवुडे सव्विड्ढीए साओ गिहाओ निग्गच्छ, निग्गच्छित्ता चंपानयरिं मज्झमज्झेणं जेणेव सागरदत्तस्स गिहे तेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता सागरगं दारगं सागरदत्तस्प सत्थवाहस्स उवणेइ। सूत्र ४० : सागर की स्वीकृति मिलने पर शुभ तिथि, करण, नक्षत्र तथा मुहूर्त में जिनदत्त ने विपुल भोजन सामग्री बनवाई और मित्रों व स्वजनों को निमंत्रण देकर बुलाया। भोजन के पश्चात् उन्हें सम्मानित किया। सागर को स्नानादि करवा वस्त्राभूषणों से अलंकृत किया और हज़ार पुरुषों से उठाई जाने वाली पालकी पर चढ़ाकर मित्रों स्वजनों के साथ पूरे वैभव से घर से निकला । चम्पानगरी के बीच मार्ग से होता हुआ वह सागरदत्त के घर पहुँचा । सागर को पालकी से नीचे उतारकर सार्थवाह सागरदत्त के पास ले गया। 40. When Sagar agreed, finding an auspicious date and at an auspicious moment Jindatt made arrangements for a great feast, got delicious and savory dishes prepared and invited all his relatives and friends. After the feast he honoured them with gifts. He, then, got his son, Sagar, ready and dressed and put him in a Purisasahass palanquin. Displaying all his wealth and glory and accompanied by all his friends and relatives he came out of the house. Passing through the streets of Champa the marriage procession arrived at the house of Sagardatt. He got Sagar out of the palanquin and took him to Sagardatt. सूत्र ४१ : तए णं सागरदत्ते सत्थवाहे विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावे, उवक्खडावित्ता जाव संमाणेत्ता सागरगं दारगं सूमालियाए दारियाए सद्धिं पट्टयं दुरूहावेइ, CHAPTER-16: AMARKANKA For Private Personal Use Only ( 185 ) फ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - - -- र ( १८६ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र 5 दुरूहावित्ता सेयापीयएहिं कलसेहिं मज्जावेइ, मज्जावित्ता होमं करावेइ, करावित्ता सागरं दारयड र सूमालियाए दारियाए पाणिं गेण्हावेइ। 5 सूत्र ४१ : सागरदत्त ने विपुल खाद्य सामग्री तैयार करवाई और जिनदत्त तथा अन्य अतिथियों 15 को भोजन करवाकर उनका सत्कार सन्मान किया। सागर तथा सुकुमालिका को पाट पर बिठाया 2 और चांदी-सोने के (श्वेत-पीत) कलशों में भरे पानी से स्नान करवाया। तत्पश्चात् होम करवाकर टी 5 दोनों का विधिवत पाणि-ग्रहण करवाया। 41. Sagardatt also arranged for a feast and offered food to Jindatt and 2 other guests. After that he honored them with gifts. He made Sagar and 5 Sukumalika sit on a platform and performed the marriage rituals by anointing them with water poured from gold and silver urns and putting offerings into the sacred fire. र कर्कश स्पर्श हे सूत्र ४२ : तए णं सागरदारए सूमालियाए दारियाए इमं एयारूवं पाणिफासं पडिसंवेदेइ सेडी र जहानामए-असिपत्ते इ वा जाव मुम्मुरे इ वा, इत्तो अणिट्टतराए चेव पाणिफासं पडिसंवेदेइ। तएटी 15 णं से सागरए अकामए अवसव्वसे तं मुहुत्तमित्तं संचिट्ठइ। र सूत्र ४२ : उस समय सागर को सुकुमालिका के हाथ का स्पर्श ऐसा लगा जैसे कोई तलवार होटे 5 या जलते अंगारे मिली राख हो। इतना ही नहीं बल्कि इससे भी अधिक अनिष्टतर, अप्रिय लगादी र वह स्पर्श। किन्तु विवश होकर सागर अनिच्छापूर्वक वह स्पर्श सहन करता कुछ देर बैठा रहा। ड 5 REVOLTING TOUCH 42. During that time Sagar felt that the touch of Sukumalika's hand was like that of a sword's edge or ash full of embers. In fact it was much more 5 painful than that. But he was forced to sit out the ceremony. र सूत्र ४३ : तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे सागरस्स दारगस्स अम्मापियरो मित्तणाइ विपुलेणंड र असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुप्फ-वत्थ जाव संमाणेत्ता पडिविसज्जेइ। र तए णं सागरए दारए सूमालियाए सद्धिं जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता र सूमालियाए दारियाए सद्धिं तलिगसि निवज्जइ। र सूत्र ४३ : तत्पश्चात् सार्थवाह सागरदत्त ने सागर के माता-पिता तथा अतिथियों को भरपूरा र भोजन करा कर पुष्प, वस्त्रादि से सम्मानित कर विदा किया। सागर सुकुमालिका के साथ शयनागार में आया और दोनों शय्या पर लेट गये। ___43. Merchant Sagardatt saw the marriage party off after honouring theme with gifts of flowers, apparels etc. 6 (186) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ F U UUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUजात Pसोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( १८७) दा 5 Sagar and Sukumalika went to their bed chamber and lied down on the 15 bed. र सूत्र ४४ : तए णं से सागरए दारए सूमालियाए दारियाए इमं एयारूवं अंगफासं पडिसंवेदेइ, 15 से जहानामए असिपत्ते इ वा जाव अमणामतरागं चेव अंगफासं पच्चणुभवमाणे विहरइ। र तए णं से सागरए दारए अंगफासं असहमाणे अवसव्वसे मुहुत्तमित्तं संचिट्ठइ। तए णं से टा 15 सागरदारए सूमालियं दारियं सुहपसुत्तं जाणित्ता सूमालियाए दारियाए पासाओ उट्टेइ, उठ्ठित्ता डा र जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयणीयंसि निवज्जइ। 15 सूत्र ४४ : उस समय भी सागर को सुकुमालिका का अंगस्पर्श तलवार एवं जलते अंगारे जैसा द रही लगा। वह उस अत्यन्त तीक्ष्ण एवं उष्ण अमनोज्ञ अंगस्पर्श का अनुभव करके कुछ देर सहन SI र करता हुआ विवश सा पड़ा रहा। जब उसे लगा कि सुकुमालिका सुखपूर्वक गहरी नींद में सो गई है टा 15 तो वह उसके पास से उठा और अपनी शय्या पर जाकर सो गया। 12 44. Even now Sagar felt the touch of Sukumalika's body like that of a § sword and ash. For some time he tolerated that sharp, hot and repulsive K touch. When he felt that Sukumalika was in deep sleep, he got up from there 15 and went to another bed. र सूत्र ४५ : तए णं सूमालिया दारिया तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा समाणी पइव्वया ड्र 15 पइमणुरत्ता पतिं पासे अपस्समाणी तलिमाउ उढेइ, उद्वित्ता जेणेव से सयणिज्जे तेणेव टा र उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरस्स पासे णिवज्जइ। 15 सूत्र ४५ : कुछ देर बाद सुकुमालिका जागी। वह पतिव्रता थी और उसके मन में पति के प्रति ट अनुराग भरा था। अतः पति को अपने पास न देख वह उठ बैठी और पति की शय्या के पास डा र आकर पुनः उसकी बगल में सो गई। 45. After some time Sukumalika awoke. She was filled with love for her Shusband. When she did not find her husband in the bed she got up and saw her husband in the other bed. She went there and slipped in the bed besides P her husband. २ पति द्वारा परित्याग 15 सूत्र ४६ : तए णं सागरदारए सूमालियाए दारियाए दुच्चं पि इमं एयारूवं अंगफासं र पडिसंवेदेइ जाव अकामए अवसव्वसे मुहुत्तमित्तं संचिट्ठइ। 15 तए णं से सागरदारए सूमालियं दारियं सुहपसुत्तं जाणित्ता सयणिज्जाओ उडेइ, उद्वित्ता डा ? वासघरस्स दारं विहाडेइ, विहाडित्ता मारामुक्के विव काए जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिंधी 15 पडिगए। PTER-16 : AMARKANKA (187) टा EAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnA Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTT [ ( १८८) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 सूत्र ४६ : सागर ने पुनः दूसरी बार भी सुकुमालिका का वैसा ही तीक्ष्ण एवं कठोर स्पर्श र अनुभव किया पर कुछ देर विवशता पूवर्क पूर्ववत् सोया रहा। है जब सुकुमालिका पुनः सो गई तो वह चुपचाप शय्या से उठा और शयनागार का द्वार खोला।द 15 वह वहाँ से अपने घर की ओर ऐसे भागा जैसे मारने वाले पुरुष से छुटकारा पाकर काक पक्षी डा र भागता है। N ABANDONED BY HER HUSBAND _____46. When Sukumalika was asleep again, Sagar stealthily got up from the डा bed and opened the door of the room. He ran back to his own house as if he was chased by a ghost. 5 सूत्र ४७ : तए णं सूमालिया दारिया तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा पइव्वया जाव अपासमाणी र सयणिज्जाओ उढेइ, सागरस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेमाणी वासघरस्स दारंट 5 विहाडियं पासइ, पासित्ता एवं वयासी–गए से सागरे' त्ति कटु ओहयमणसंकप्पा जाव झियायइ। र सूत्र ४७ : कुछ देर बाद सुकुमालिक दारिका जागी और पति को अपने पास न देखकर शय्या है 5 से उठ खड़ी हुई। उसने चारों ओर सागर को खोजा और खुला द्वार देखकर समझ गई कि सागर द 5 चला गया है। उसका मन उदास हो गया और वह हथेली में मुँह छुपाकर चिन्तामग्न हो आर्तध्यान डी करने लगी। 47. After some time Sukumalika awoke once again. She found that her husband was not in the bed. She got up and searched around. When she found the doors of the bedroom open she realized that Sagar had gone away. She became sad and sat down brooding, covering her face with her palms. 15 सूत्र ४८ : तए णं सा भद्दा सत्थवाही कल्लं पाउप्पभायाए दासचेडियं सहावेइ, सहावित्ता E एवं वयासी-'गच्छह णं तुम देवाणुप्पिए ! वहुवरस्स मुहधोहणियं उवणेहि।' र तए णं सा दासचेडी भद्दाए एवं वुत्ता समाणी एयमहूँ तह त्ति पडिसुणेइ, मुहधोवणियं । E गेण्हित्ता जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सूमालियं दारियं जाव झियायमाणिं दी F पासइ, पासित्ता एवं वयासी-'किं णं तुमं देवाणुप्पिए ! ओहयमणसंकप्पा झियाहि ?' 5 सूत्र ४८ : सुबह होने पर भद्रा सार्थवाही ने घर की दासी को बुला कर कहा-“देवानुप्रिये ! र वर-वधू के लिए मुख धोने (दांतोन पानी आदि) का सामान ले जा।" 5 दासी ने भद्रा की आज्ञा स्वीकार की और आवश्यक सामग्री लेकर सुकुमालिका के शयनागार दे रे में गई। वहाँ सुकुमालिका को चिन्तित देखकर उसने पूछा-“देवानुप्रिये ! तुम इस प्रकार भग्न 51 र मनोरथ (मनोरथ टूट गये हों) हो चिन्ता क्यों कर रही हो?' (188) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA Snnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn AVAMAnnnnnnnn जान Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( १८९) 48. In the morning Bhadra called a maid servant and said, "Beloved of gods! Take water and other things to the newly weds for brushing teeth and washing face." The maid servant did as told. When she entered the bedroom and saw Sukumalika worried and brooding, she asked, “Beloved of gods! Why are you 15 so sad and depressed?" सूत्र ४९ : तए णं सा सूमालिया दारिया तं दासचेडिं एवं वयासी-‘एवं खलु देवाणुप्पिए !टी 15 सागरए दारए मम सुहपसुत्तं जाणित्ता मम पासाओ उद्देइ, उद्वित्ता वासघरदुवारं अवंगुणेइ, जावड़ा 5 पडिगए। ततो अहं मुहत्तंतरस्स जाव विहाडियं पासामि, गए से सागरए त्ति कट्टा र ओहयमणसंकप्पा जाव झियायामि।' 15 तए णं सा दासचेडी सूमालियाए दारियाए एयम₹ सोच्चा जेणेव सागरदत्ते तेणेवड 2 उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरदत्तस्स एयमढें निवेएइ। सूत्र ४९ : सुकुमालिका ने उस दासी को बताया-“हे देवानुप्रिये ! मुझे सुख से सोया जानकर 5 र सागर मेरे पास से उठा और कमरे का द्वार खोलकर भाग गया। मैं कुछ देर बाद उठी और द्वारा र खुला देखकर समझ गई कि वह चला गया है। इसी कारण मैं भग्न मनोरथ होकर चिन्ता में पड़ दी 15 गई हूँ।" र दासी यह बात सुनकर सागरदत्त सार्थवाह के पास गई और सारी बात बताई। 15 49. Sukumalika explained, “Beloved of gods! When he found me sleeping, 1 Sagar stealthily got up from the bed, opened the door of the room, and went ) P away. After some time when I awoke and found the doors of the bedroom open I realized that Sagar had gone away. That is the reason I am sad and worried." The maid servant immediately went to merchant Sagardatt and told ] everything. द सागर नहीं लौटा 5 सूत्र ५० : तए णं से सागरदत्ते दासचेडीए अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते जेणेव । 5 जिणदत्तसत्थवाहगिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जिणदत्तं सत्थवाहं एवं वयासी-'किं णं र देवाणुप्पिया ! एवं जुत्तं वा पत्तं वा कुलाणुरूवं वा कुलसरिसं वा, जं णं सागरदारए सूमालियंट 5 दारियं अदिट्ठदोसं पइव्वयं विप्पजहाय इहमागओ ?' बहूहिं खिज्जणियाहि य रुंटणियाहि यदा उवालभइ। 5 सूत्र ५० : दासी से यह वृतान्त सुन-समझ कर सागरदत्त बहुत क्रोधित हो गया और सीधादा 15 जिनदत्त के घर पहुँचा। उसने जिनदत्त से कहा-“देवानुप्रिय ! क्या यह योग्य है ? उचित है? क्या ड 115 CHAPTER-16 : AMARKANKA 卐nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn تاریانارارا 9 ) Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - मज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज P( १९०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 यह कुल प्रथा के अनुकूल है और शोभाजनक है कि आपका पुत्र सागर मेरी पुत्री, निर्दोष और द पतिव्रता सुकुमालिका को छोड़कर यहाँ आ गया है ?" ऐसा कहकर अनेक खेद भरी क्रियाएँ करके 5 र रुदन की चेष्टाएँ करते हुए उसने उलाहने दिये। B SAGAR REFUSES TO RETURN 15 50. Sagardatt got angry and he at once rushed to the residence of Jindatta and burst out, “Beloved of gods! Is it right and proper? Is it befitting and S 2 worthy of your family tradition that your son Sagar has abandoned my B innocent and devoted daughter Sukumalika and come here?" And expressing a 15 his anger and sorrow with words and gestures he lamented before Jindatt. र सूत्र ५१ : तए णं जिणदत्ते सागरदत्तस्स एयमढे सोच्चा जेणेव सागरे दारए तेणेव 5 उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरयं दारयं एवं वयासी-'दुटु णं पुत्ता ! तुमे कयं सागरदत्तस्स र गिहाओ इहं हव्वमागए। तं गच्छह णं पुत्ता ! एवमवि गए सागरदत्तस्स गिहे।' 5 सूत्र ५१ : जिनदत्त यह सब सुनकर सागर के पास आया और बोला-“हे पुत्र ! तुमने यह 5 बहुत बुरा किया जो अचानक सागरदत्त के घर से यहाँ चले आये। हे पुत्र ! जो हुआ सो हुआ, पर र अब तुम वापस सागरदत्त के घर को लौट जाओ।" 15 51. After listening to this outburst Jindatt went to Sagar and said, “Son! 15 This is unbecoming of you to have suddenly left Sagardatt's house 1 here. Any way, forget what has happened and go back to Sagardatt's place." S 5 सूत्र ५२ : तए णं से सागरए जिणदत्तं एवं वयासी-‘अवि याइं अहं ताओ ! गिरिपडणं वाट तरुपडणं वा मरुप्पवायं वा जलप्पवेसं वा जलणप्पवेसं वा विसभक्खणं वा वेहाणसं वा र सत्थोवाडणं वा गिद्धपिटुं वा पव्वज्जं वा विदेसगमणं वा अब्भुवगच्छिज्जामि, नो खलु अहं 2 5 सागरदत्तस्स गिहं गच्छिज्जा।' र सूत्र ५२ : तब सागर ने जिनदत्त से कहा-'हे तात ! मुझे पर्वत से गिरना स्वीकार है, वृक्ष से ट्र 5 गिरना स्वीकार है, मरुस्थल में गिरना स्वीकार है, जल में डूब जाना स्वीकार है, आग में प्रवेश करना स्वीकार है, विष खा लेना स्वीकार है, अपने शरीर को श्मशान में या जंगल में छोड़ देना डा र स्वीकार है, गिद्ध के द्वारा खा लिया जाना स्वीकार है, यहाँ तक कि दीक्षा लेना और परदेश चलाड 15 जाना भी स्वीकार है। किन्तु मैं किसी प्रकार भी सागरदत्त के घर नहीं जाऊँग। 2 52. Sagar defiantly replied, “Father! I would prefer to fall down from the ç B peak of a mountain, or to fall from a tree top, or to go to a desert, or to drown 5 in a lake, or to enter fire, or to consume poison, to live in a funeral ground or 5 a forest, to be eaten away by vultures, or even to become an ascetic or get 5 exiled, than to return to Sagardatt's place." 5(190) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA S Snnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn wururuuruuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuurrrrrrrrr Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( १९१) 15 सूत्र ५३ : तए णं ते सागरदत्ते सत्थवाहे कुड्डंतरिए सागरस्स एयमद्वं निसामेइ, निसामित्ताडी र लज्जिए विलीए विड्डे जिणदत्तस्स गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव सए गिहे टै 15 तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुकुमालियं दारियं सद्दावेइ, सद्दावित्ता अंके निवेसेइ, निवेसित्ताडा र एवं वयासी12 ‘किं णं तव पुत्ता ! सागरएणं दारएणं मुक्का ! अहं णं तुम तस्स दाहामि जस्स णं तुम इट्ठाड 5 जाव मणामा भविस्ससि' त्ति सूमालियं दारियं ताहिं इटाहिं वग्गूहि समासासेइ, समासासित्ता दी र पडिविसज्जेइ। 15 सूत्र ५३ : सार्थवाह सागरदत्त ने दीवार के पीछे से सागर दारक की यह बातें सुन ली। वह दी 12 इतना लज्जित हुआ कि सोचने लगा-धरती फट जाये तो मैं उसमें समा जाऊँ। वह जिनदत्त के घर 5 र से बाहर निकलकर अपने घर लौट आया। उसने सुकुमालिका को बुलाकर अपनी गोद में बिठाया टे 15 और बोला र “हे पुत्री ! सागर ने तुझे त्याग दिया है तो क्या हुआ? अब मैं तुझे ऐसे पुरुष को दूंगा जिसे तू है 15 इष्ट, कान्त, प्रिय और मनोज्ञ होगी।" यह कहकर उसने मधुर वाणी से अपनी पुत्री को आश्वस्त दी र किया और वापस भीतर भेज दिया। 5 53. Merchant Sagardatt had heard all this exchange between Sagar and I 15 his father from behind the partition wall. He got so ashamed that he l 2 thought- “May the earth split and draw me in.” He got out from the house of SI > Jindatt and returned home. He called Sukumalika, took her in his lap and said, “Daughter! It hardly matters that Sagar has left you. I would remarry 15 you and this time to a person who would like you and love reassured his daughter with soothing and sweet words. 15 सुकुमालिका का पुनर्विवाह र सूत्र ५४ : तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे अन्नया उप्पिं आगासतलगंसि सुहनिसण्णे रायमग्गे टै 15 आलोएमाणे आलोएमाणे चिट्ठइ। तए णं से सागरदत्ते एगं महं दमगपुरिसं पासइ, डी र दंडिखंड-निवसणं खंडमल्लग-खंडघडगहत्थगयं फुट्टहडाहडसीसं मच्छियासहस्सेहिं जावटी 15 अन्निज्जमाणमग्गं। र सूत्र ५४ : एक बार सार्थवाह सागरदत्त अपने भवन की छत पर सुखपूर्वक बैठा राजमार्ग की टी 15 ओर देख रहा था। तब उसने एक अत्यन्त दीन भिखारी को देखा। वह सांधे हुए टुकड़ों का वस्त्र डा र पहने था, उसके हाथ में सिकोरे और घड़े के टुकड़े (ठीकरे) थे। उसके बाल बिखरे हुए थे और ही 5 उसके चारों ओर आगे पीछे हज़ारों मक्खियाँ भिनभिना रही थीं। UUUUUUU 15 CHAPTER-16 : AMARKANKA (191) दा 卐nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्प OUR मागण्यएएएएएएण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ज F( १९२ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र REMARRIAGE OF SUKUMALIKA 54. One day merchant Sagardatt was relaxing on the roof top of his house S R and looking down at the road in front. He saw an extremely destitute beggar. 5 He was dressed in rags (made by stitching together shreds of cloth) and had a 15 broken pieces of earthen ware in his hands. He had disheveled hair and, thousands of flies were hovering all around him. सूत्र ५५ : तए णं से सागरदत्ते कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ सदावित्ता एवं वयासी-'तुब्भे णं र देवाणुप्पिया ! एयं दमगपुरिसं विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पलोभेह, पलोभित्ता गिहं 15 अणुप्पवेसेह, अणुप्पवेसित्ता खंडगमल्लगं खंडघडगं च से एगते एडेह, एडित्ता अलंकारियकम्मं टा र कारेह, कारित्ता प्रहायं कयबलिकम्मं जाव सव्वालंकारविभूसियं करेह, करित्ता मणुण्णं असणं- डा 15पाणं खाइमं साइमं भोयावेह, भोयावित्ता मम अंतियं उवणेह। र सूत्र ५५ : सागरदत्त ने अपने सेवकों को बुलाकर कहा-“देवानुप्रियो ! तुम लोग जाओ और 15 उस (राजमार्ग पर चलते) भिखारी को यथेष्ट आहार सामग्री का लोभ देकर घर के भीतर ले ले र आओ। फिर उसके हाथ में रहे ठीकरों को एक ओर फेंक दो उसके नख-केश आदि कटवा दो ड 5 और स्नानादि करवा कर वस्त्रालंकार पहना कर तैयार कर दो। इसके बाद उसे स्वादिष्ट भोजन टी 15 करवा कर मेरे पास ले आना।" 15 55. Sagardatt called his servants and instructed, “Beloved of gods! Go and $ get that beggar you see on the main road, inside our house. Offer him ample < food to allure him. Once inside, throw away the earthen ware he is carrying K in his hand, trim his hair, nails etc. , make him take his bath and dress up. 15 After that, feed him well and then bring him to me. र सूत्र ५६ : तए णं कोडुंबियपुरिसा जाव पडिसुणेति, पडिसुणित्ता जेणेव से दमगपुरिसे तेणेव 15 उवागच्छंति, उवाच्छित्ता तं दमगं असणं पाणं खाइमं साइमं उवप्पलोभेति, उवप्पलोभित्ता सयं दा र गिहं अणुप्पवेसेंति, अणुप्पवेसित्ता तं खंडमल्लगं खंडघडगं च तस्स दमगपुरिसस्स एगते एडेंति। 5 तए णं से दमगे तंसि खंडमल्लगंसि खंड घडगंसिय एडिज्जमाणंसि महया महया सद्देणं आरसति। र सूत्र ५६ : सेवकों ने सागरदत्त की आज्ञा अंगीकार की ओर उसके अनुसार लालच देकर 15 भिखारी को घर में ले आये। उसके सिकोरे के टुकड़े तथा घड़े के ठीकरे को एक तरफ डाल दिया। र जब उन्होंने उसके हाथ के ठीकरों को एक ओर फेंका तो वह भिखारी उच्च स्वर में जोर-जोर ही 15 से रोने चिल्लाने लगा। र (192) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA S Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn AUDIO Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प TOARD ODUDUDU र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( १९३ ) SI E 56. The servants accepted Sagardatt's order and brought the beggar ट inside the house. They took the earthen ware from his hand and threw them on one side. When this was done the beggar started crying and wailing loudly. र सूत्र ५७ : तए णं से सागरदत्ते तस्स दमगपुरिस्स तं महया महया आरसियसई सोच्चा । 5 निसम्म कोडुंबियपुरिसे एवं वयासी-'किं णं देवाणुप्पिया ! एस दमगपुरिसे महया महया सद्देण र आरसइ ?' तए णं ते कोडुबियपुरिसा एवं वयासी-एस णं सामी ! तंसि खंडमल्लगंसि खंडघडगंसि य ई र एगंते एडिज्जमाणंसि महया महया सद्देणं आरसइ।' 15 तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे ते कोडुबियपुरिसे एवं वयासी-'मा णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! S र एयस्स दमगस्स तं खंडं जाव एडेह, पासे ठवेह, जहा णं पत्तियं भवइ।' ते वि तहेव ठविंति। र सूत्र ५७ : जब सागरदत्त ने उस भिखारी का रुदन सुना तो अपने सेवकों से पूछार “देवानुप्रियो ! यह भिखारी इतना क्यों चिल्ला रहा है?' र सेवकों ने उत्तर दिया-"स्वामी ! उसके ठीकरे आदि एक ओर डाल देने के कारण वह रो र सागरदत्त ने कहा-“देवानुप्रियो ! उस भिखारी के ठीकरों को फेंको मत, उसी के पास रहने दो ड र जिससे कि उसका विश्वास बना रह सके।'' सेवकों ने भिखारी के ठीकरे उसके पास ही रख दिये। 5 57. When Sagardatt heard the wailing of the beggar he called his servants Pand asked, “Beloved of gods! Why this beggar is crying so loudly?" 5 The servants replied, “Sire! He is crying because we have thrown away 5 his earthen ware." 2 Sagardatt said, “Beloved of gods! Do not throw away these pot shards, let , them remain with him so that he does not lose whatever semblance of 5 confidence he has." The servants did as told. र सूत्र ५८ : तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तस्स दमगस्स अलंकारियकम्मं करेंति, करित्ता टा 5 सयपाग-सहस्सपागेहिं तेल्लेहिं अब्भंगेति, अब्भंगिए समाणे सुरभिगंधुव्वट्टणेणं गायं उव्वर्टेति र उव्यट्टित्ता उसिणोदगगंधोदएणं पहोणेति, सीतादगेणं पहाणेति, पहाणित्ता पम्हल-सुकुमाल5गंधकासाईए गायाइं . लूहेंति, लूहित्ता हंसलक्खणं पंडगसाडगं परिहेति, परिहित्ता टा २ सव्वालंकारविभूसियं करेंति, करित्ता विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं भोयावेंति भोयावित्ता डी 5 सागरदत्तस्स उवणेति। E CHAPTER-16 : AMARKANKA (193) टा EnAAAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र १९४ ) सूत्र ५८ : फिर उन सेवकों ने भिखारी का अलंकार कर्म ( शरीर- शोभा, हजामत आदि) ) करवाया। फिर शतपाक तथा सहस्रपाक तेल से मालिश करवायी । सुगंधित पदार्थों से उबटन करवाई। उष्णोदक, (गर्म पानी) गंधोदक और शीतोदक से स्नान करवा कर रोंयेदार और कोमल कषाय ( गेरुआ ) रंग के तौलिए से शरीर पोंछा । हंस जैसे सफेद वस्त्र पहनाये। और फिर सब ) प्रकार के अलंकारों से विभूषित किया। तत्पश्चात् पेट भर कर भोजन करवा कर वे उसे सागरदत्त के पास ले गये । 58. The servants trimmed his hair and nails and did other cleansing on his body. After that they gave him a massage with medicated and flavoured oils like Shata-pak and Sahastra-pak. After the massage the excess oil was removed by rubbing his body with perfumed pastes(Ubatan). Then they helped him take cold and hot bath with perfumed water. His body was dried with soft, fluffy and grey towels. He was then helped into white apparels and was adorned with a variety of ornaments. Finally after feeding him well they presented him before Sagardatt. सूत्र ५९ : तए णं सागरदत्ते सूमालियं दारियं ण्हायं जाव सव्वालंकारविभूसियं करिता तं ) दमगपुरिसं एवं वयासी - 'एस णं देवाणुप्पिया ! मम धूया इट्ठा, एयं च णं अहं तव भारियताए दलामि भहियाए भद्दओ भविज्जासि । सूत्र ५९ : उधर सागरदत्त ने अपनी पुत्री सुकुमालिका को स्नानादि करवाकर सब प्रकार के वस्त्र अलंकारों से सजा कर तैयार किया। भिखारी के आने पर उससे कहा - "हे देवानुप्रिय ! यह मेरी पुत्री है और मुझे इष्ट-प्यारी है। मैं इसे तुम्हें भार्या के रूप में देता हूँ । इस भाग्यशालिनी के ) लिए तुम भाग्यवान बन जाओगे ।" 5 59. In the mean time Sagardatt got his daughter ready by having her hathed, dressed up and adorned with ornaments. When the beggar was brought before him he said, "Beloved of gods! This is my beloved daughter. I give her to you as your wife. This lucky girl will prove to be the harbinger of good luck for you." ) पुनः परित्याग सूत्र ६० : तए णं से दमगपुरिसे सागरदत्तस्स एयमहं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता सूमालियाए दारियाए सद्धिं वासघरं अणुपविसइ, सूमालियाए दारियाए सद्धिं तलिगंसि निवज्जइ । तणं से दमपुरिसे सूमालियाए इमं एयारूवं अंगफासं पडिसंवेदेइ, सेसं जहा सागरस्स जाव सयणिज्जाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्टित्ता वासघराओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता खंडमल्लगं खंडघड 'च गहाय मारामुक्के विव काए जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए । ( 194 ) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA For Private Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Fructuuuuuuuuuu र सोलहवाँ अध्ययन ः अमरकंका ( १९५ ) र तए णं सा सूमालिया जाव ‘गए णं से दमगपुरिसे' त्ति कट्ट ओहयमणसंकप्पा जाव झियायइ। SI 5 सूत्र ६० : भिखारी ने सागरदत्त का यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। वह सुकुमालिका के साथ दी 5 शयनागार में गया और उसके साथ एक शय्या पर सोया। सोने पर उस द्रमुख-भिखारी ने भी सुकुमालिका के शरीर के स्पर्श को वैसा ही अनुभव किया द 15 जैसा सागर को हुआ था। वह शय्या से उठकर शयनागार से बाहर निकला और अपने ठीकरे । उठाकर वहाँ से ऐसे भाग कर गया जैसे वधस्थल से मुक्त हुआ काक भाग जाता है। ___ 'वह भिखारी भी भाग गया' यह जानकर सुकुमालिका पुनः भग्न मनोरथ निराश होकर शोक ई र में डूब गई। > DESERTED AGAIN 60. The beggar accepted the proposal of Sagardatt. He went to the bedroom and slept in the bed with Sukumalika. On sleeping beside her the beggar also found the touch of Sukumalika just as Sagar had found it. He got up from the bed, came out of the room, ट collected his earthenware, and ran away as if a ghost was chasing him. When Sukumalika came to know that the beggar had also run away she became sad, dejected, and depressed. __सूत्र ६१ : तए णं सा भद्दा कल्लं पाउप्पभायाए दासचेडिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी, डा र जाव सागरदत्तस्स एयमलृ निवेदेइ। तए णं से सागरदत्ते तहेव संभंते समाणे जेणेव वासहर र तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सूमालियं दारियं अंके निवेसेइ, निवेसित्ता एवं वयासी-'अहो णंद 5 तुमं पुत्ता ! पुरा-पोराणाणं जाव पच्चणुब्भवमाणी विहरसि, तं मा णं तुमं पुत्ता ! र ओहयमणसंकप्पा जाव झियाहि, तुम णं पुत्ता ! मम महाणसंसि विपुलं असणं पाणं खाइम टे 15 साइमं जहा पोट्टिला जाव परिभाएमाणी विहराहि।' र सूत्र ६१ : दूसरे दिन प्रातःकाल भद्रा सार्थवाही ने दासी को बुलाकर दतोन पानी आदि देकर 5 सुकुमालिका के कक्ष में भेजा। वहां उसे उदास बैठी देखा, तब दासी ने लौटकर सारी घटना द 5 सागरदत्त को बताई (सागर दारक के कथन के समान) । सागरदत्त दु:खी मन से शयनागार में 1 र गया और सुकुमालिका को गोद में बैठा कर बोला- “हे पुत्री ! तू पूर्वजन्म में किए हिंसा आदि । 5 दुष्कृत्यों द्वारा उपार्जित पापकर्मों का फल भोग रही है। अतः दुःख मत कर। हे पुत्री ! मेरी द 5 भोजनशाला से विपुल आहार सामग्री आदि श्रमणों ब्राह्मणों आदि को दान करती हुई अपना जीवन S र बिता।" (अ. १४ सू. २७ के समाने)। 61. In the morning Bhadra called a maid servant and sent her to 5 Sukumalika's room with water and other things for brushing teeth and SI 15 CHAPTER-16 : AMARKANKA __ (195). sannnn00000000000000nnnnnnnnnn Uuuuuuuu Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्य क( १९६ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र SIL washing face. When she entered the bedroom and saw Sukumalika worried and brooding she immediately went to merchant Sagardatt and told him everything. With a heavy heart Sagardatt went to his daughter's room and taking her in his lap said, “Daughter! Your sufferings appear to be the fruits 2 of some evil karmas earned by you by some acts of violence or other such ill 12 deeds during earlier births. As such, beloved one! Don't get dejecte get large quantities of food cooked in my kitchen and distribute it to numerous Shramans, Brahmans, guests and beggars. Doing such charity you can spend your time happily." र सूत्र ६२ : तए णं सा सूमालिया दारिया एयमद्वं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता महाणसंसि विपुलं दे 15 असणं पाणं खाइमं जाव दलमाणी विहरइ। र तेणं कालेणं तेणं समएणं गोवालियाओ अज्जाओ बहुस्सुयाओ एवं जहेव तेयलिणाए दी 15 सुव्वयाओ तहेव समोसढाओ, तहेव संघाडओ जाव अणुपविट्टे, तहेव जाव सूमालिया डा र पडिलाभित्ता एवं वयासी-‘एवं खलु अज्जाओ ! अहं सागरस्स अणिट्टा जाव अमणामा, नेच्छइट 15 णं सागरए मम नाम वा जाव परिभोगं वा, जस्स जस्स वि य णं दिज्जामि तस्स तस्स वि य णंद के अणिट्टा जाव अमणामा भवामि, तुब्भे य णं अज्जाओ ! बहुनायाओ, एवं जहा पोट्टिला जाव र उवलद्धे जेणं अहं सागरस्स दारगस्स इट्ठा कंता जाव भवेज्जामि।' 2 सूत्र ६२ : सुकुमालिका ने पिता की यह बात स्वीकार कर ली। और भोजनशाला में जाकर र श्रमणों आदि को आहार दान करती जीवन बिताने लगी। 5 उस समय (काल के उस भाग) में गोपालिका नामक बहुश्रुत-विदुषी आर्या नगर में पधारी S र और वे शिष्याओं सहित सुकुमालिका के घर आईं। (विस्तृत वर्णन पूर्वसम-अ.१४ सू. २४ के ट 15 समान) सुकुमालिका ने उन्हें आहार बहरा कर कहा-“हे आर्याओं ! मैं अपने पूर्वपति सागर के द 5 लिए अनिष्ट एवं अमनोज्ञ हूँ। सागर मेरा नाम सुनना भी नहीं चाहता परिभोग की तो बात ही ड र क्या। मैं जिस-किसी को भी दी गई उसी को अनिष्ट और अमनोज्ञ प्रतीत हुई। हे आर्याओं ! आप 2 5 तो बहुत ज्ञानवान हो। कुछ ऐसा करो कि मैं सागर को प्रिय लगने लगूं।” (विस्तृत वर्णन पूर्व-द 15 अ.१४ सू. २५ के समान जैसा पोट्टिला ने कहा) R 62. Sukumalika accepted her father's advice and commenced the charity 5 from the kitchen. 5 During that period of time a Sadhvi (female ascetic) named Gopalika, arrived in the town (details as in ch. 14 para 24). She set out to beg alms with her group and arrived at the residence of Sukumalika, who gave them ample food and said-Aryas! I am no more cherished, adored, liked, and beloved by my ex-husband Sagar. He does not want to hear my name, normal र (196) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SI Finninnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( १९७ ) टा 5 marital enjoyments are beyond expectation. Whoever married me did not s 5 love or adore me. Aryas! You are learned, experienced and scholarly please S do some thing so that I may gain favour and love of Sagar (details as ch. 14 para 25)." दीक्षा-ग्रहण 5 सूत्र ६३ : अज्जाओ तहेव भणंति, तहेव साविया जाया, तहेव चिंता, तहेव सागरदत्तं द र सत्थवाहं आपुच्छइ, जाव गोवालियाणं अंतिए पव्वइया। तए णं सा सूमालिया अज्जा जाया र ईरियासमिया जाव बंभयारिणी बहूहिं चउत्थछट्टट्ठम जाव विहरइ। 15 सूत्र ६३ : आर्याओं ने सुव्रता आर्या की तरह कहा-ऐसी बात तो हमें सुनना भी नहीं कल्पता, ड र उपदेश देने की तो बात ही दूर रही। फिर उसे धर्म का उपदेश दिया जिसे सुनकर वह श्रविका बन ट 5 गई। फिर उसे दीक्षा लेने का विचार आया। तब वह सुकुमालिका अपने पिता से आज्ञा ले डा 15 गोपालिका आर्या के पास दीक्षित हो गई और संयम, नियम, ब्रह्मचर्य युक्त एवं उपवास बेला-तेला SI र आदि तपस्यामय जीवन बिताने लगी? (विस्तृत विवरण पूर्व-अ. १४ सू.२६-२९ के समान) K DIKSHA 63. The Sadhvis closed their ears and replied as Arya Suvrata had replied S 5 to Pottila, “Beloved of gods! It is sinful for us even to hear such talk. How can S 2 we preach on the subject?" And the Sadhvis gave a discourse on their unique religion. On listening the discourse Pottila became a Shramanopasika. Later 5 she decided to become a Sadhvi. She took permission from her father and got initiated. She started doing harsh penance including fasting for two, three, or < 5 more days and following the codes of conduct leading a disciplined ascetic 5 life. (details as Ch. 14 para 26-29). र सूत्र ६४ : तए णं सा सूमालिया अज्जा अन्नया कयाइ जेणेव गोवालियाओ अज्जाओ तेणेव ट 5 उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी--‘इच्छामि णं अज्जाओ ! S र तुब्भेहिं अब्भणुन्नाया समाणी चंपाओ बहिं सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स अदूरसामंते छटुंछट्टेणं टा 15 अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं सूराभिमुही आयावेमाणी विहरित्तए।' र सूत्र ६४ : किसी समय एक बार आर्या सुकुमालिका अपनी गुरुणी गोपालिका आर्या के पास टा 5 गई और यथा-विधि वन्दना करके बोली-“हे आर्या ! मैं आपकी आज्ञा लेकर चम्पानगरी के बाहर 15 सुभूमिभाग उद्यान के निकट बेले बेले का निरन्तर तप करते हुए सूर्य के सामने आतापना लेना डा र चाहती हूँ।" 15 64. Later one day ascetic Sukumalika went to her preceptor and after due SI 5 obeisance said, "Arya! If you would permit me I would like to go to the S 115 CHAPTER-16 : AMARKANKA (197) Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 ( १९८ ) __ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र हो 5 Subhumibhag garden, outside Champa city, and commence the penance of tolerating the sun with a series of two day fasts." 5 सूत्र ६५ : तए णं ताओ गोवालियाओ अज्जाओ सूमालियं एवं वयासी-'अम्हे णं अज्जे ! र समणीओ निग्गंथीओ ईरियासमियाओ जाव गुत्तबंभचारिणीओ, नो खलु अम्हं कप्पइ बहिया 5 र गामस्स सन्निवेसस्स वा छटुंछटेणं जाव विहरित्तए। कप्पइ णं अम्हं अंतो उवस्सयस्सट र वइपरिक्खित्तस्स संघाडिपडिबद्धियाए णं समतलपइयाए आयावित्तए।' । र सूत्र ६५ : गोपालिका आर्या ने सुकामालिका को उत्तर दिया-“हे आर्ये ! हम निर्ग्रन्थ श्रमणियाँ टो 15 हैं। ईर्यासमिति आदि का पालन करने वाली गुप्त ब्रह्मचारिणियाँ हैं। इस कारण हमको गाँव या डा र सन्निवेश आदि से बाहर जाकर ऐसी तपस्या व आतापना लेना नहीं कल्पता है। हाँ ! बाड से घिरे5 चार दीवारी वाले उपाश्रय के भीतर वस्त्र से शरीर को ढाँप कर या साध्वियों के समूह के साथ ट 5 रहकर पृथ्वी पर दोनों चरण समान रूप से जमा कर आतापना लेना हमें कल्पता है।" B 65. Arya Gopalika replied, “Beloved of gods! we are Nirgranth Shramanis 5 (Jain female ascetics). We are strictly celibate and follow the prescribed code 5 of conduct; as such, we are not allowed to go out of a village or other 5 inhabited area and do such penance. However, we are allowed to do such 2 penance, as tolerating the sun, standing firmly on the ground within a walled S B and fenced abode, covering the body with a piece of cloth, or in company of 5 other Sadhvis." र सूत्र ६६ : तए णं सा सूमालिया गोवालियाए अज्जाए एयमढें नो सद्दहइ, नो पत्तियइ, नोड 5 रोएइ, एयमटुं असद्दहमाणी अपत्तियमाणी अरोएमाणी सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स अदूरसामंते ८ र छटुंछद्रेणं जाव विहरइ। 15 सूत्र ६६ : सुकुमालिका को गोपालिका आर्या की इस बात पर श्रद्धा नहीं हुई, प्रतीति नहीं हुई 5 और रुचि भी नहीं हुई। वह सुभूमिभाग उद्यान के निकट निरन्तर बेले बेले का तप करती आतापना र लेती जीवन बिताने लगी। 15 66. This statement of Arya Gopalika did not invoke faith, understanding or acceptance in Sukumalika. She started doing the penance, as she had 2 planned, near the Subhumibhag garden. र सुकुमालिका का निदान 5 सूत्र ६७ : तत्थ णं चंपाए नयरीए ललिया नाम गोट्ठी परिवसइ नरवइदिण्णवियारा, ड र अम्मा-पिइ-निययनिप्पिवासा, वेसविहार-कयनिकेया, नाणाविहअविणयप्पहाणा अड्डा जावटी 5 अपरिभूया। 5 (198) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA CU SAnnannnnnnnnnnn000000000000005 घण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्यास Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( १९९) SH 5 सूत्र ६७ : चम्पानगरी में एक ललिता-गोष्ठी (मनमोजियों की टोली) रहती थी जिसे राजा द्वारा डा र इच्छानुसार विचरण की छूट मिली हुई थी। वे लोग माता-पिता आदि गुरुजनों को भी महत्त्व नहीं था र देते थे। वेश्या का घर ही उनका घर था। वे लोग अनेक प्रकार के अनाचारों में लिप्त रहते थे। 5 धनाढ्य होने के कारण वे निर्भय और उद्दण्ड थे। 5 SUKUMALIKA'S AMBITION 15 67. In Champa city there was an association of dubious characters. They S > had sanction of the king to do as they liked. They hardly gave any credence to words of their parents or elders. houses of ill fame were their homes. They indulged in all sorts of libidinous and other anti-social activities. Their affluence made them fearless and arrogant. र सूत्र ६८ : तत्थ णं चंपाए नयरीए देवदत्ता नामं गणिया होत्था सुकुमाला जहा अंड णाए। टे 15 तए णं तीसे ललियाए गोट्ठीए अन्नया पंच गोहिल्लपुरिसा देवदत्ताए गणियाए सद्धिंड २ सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स उज्जाणसिरि पच्चणुब्भवमाणा विहरंति। तत्थ णं एगे गोहिल्लपुरिसेट 5 देवदत्तं गणियं उच्छंगे धरइ, एगे पिट्ठओ आयवत्तं धरेइ, एगे पुष्फपूरयं रएइ, एगे पाए रएइ, डा 5 एगे चामरुक्खेवं करेइ। र सूत्र ६८ : चम्पानगरी में देवदत्ता नामकी एक गणिका भी रहती थी। वह सुन्दरता कोमलता 5 आदि गुणों से सम्पन्न थी। (विस्तृत वर्णन अ. ३ सू. ६ अण्ड ज्ञात के समान) र एक बार उस ललिता-गोष्ठी के पाँच सदस्य देवदत्ता गणिका के साथ सुभूमिभाग उद्यान की द 5छटा का आनन्द ले रहे थे। उनमें से एक ने देवदत्ता को अपनी गोद में बिठाया, दूसरा पीछे छत्र २ पकड़ कर खड़ा हो गया, तीसरा उसके मस्तक पर फूलों का जूडा बनाने लगा, चौथा उसके चरण टा र रंगने लगा, और पाँचवां उसपर चामर डुलाने लगा। 5 68. In Champa also lived a courtesan named Devdatta. She was richly S > endowed in beauty and charm (etc. details as ch.3 para 6). 5 One day five members of this association were enjoying the scenic beauty 15 of the Subhumibhag garden in company of Devdatta. One of them made 15 Devdatta sit in his lap, while another stood with an umbrella in his hand at » the back of the first; the third one started embellishing her hairdo with flowers, the fourth one started applying vermilion to her feet, and the fifth one started fanning her with a whisk. 15 सूत्र ६९ : तए णं सा सूमालिया अज्जा देवदत्तं गणियं पंचहि गोहिल्लपुरिसेहिं सद्धिं 51 र उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणिं पासइ, पासित्ता इमेयारूवे संकप्पे समुप्पज्जित्था15 'अहो णं इमा इत्थिया पुरापोराणाणं जाव विहरइ, तं जइ णं केइ इमस्स सुचरियस्स डा E CHAPTER-16 : AMARKANKA Annnnnnnnnnnnnnnnnn ग्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण (199) श Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क( २०० ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 तव-नियम-बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तो णं अहमवि आगमिस्सेण ट र भवग्गहणेणं इमेयारूवाइं उरालाइं जाव विहरिज्जामि' त्ति कट्ट नियाणं करेइ, करित्ताड 5 आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ। र सूत्र ६९ : आर्या सुकुमालिका ने देवदत्ता गणिका को पाँच पुरुषों के साथ जी भर कर ड ए मानवोचित कामभोग भोगते देखा। यह दृश्य देखकर उसके भन में कामना जागी--"अहा ! यह स्त्री ट 5 पूर्वजन्म के पुण्यकृत्यों द्वारा उपार्जित शुभ कर्मों का फल भोग रही है। सो यदि मेरी इस सुकृत्य द र तपस्या, नियम व ब्रह्मचर्य का कुछ भी कल्याणकारी फल विशेष हो तो मैं भी अगले जन्म में इसी र प्रकार मानवोचित कामभोग भोगती हुई जीवन बिताऊँ।' मन में इस प्रकार की आकांक्षा (निदान) 5 स्थिर कर वह अपने तपस्या स्थान पर लौट आई। 69. Arya Sukumalika witnessed Devdatta enjoying all human amorous pleasures with five males. This scene gave rise to an ambition in her, "Ah! 5 This women is enjoying the fruits of the good karmas she must have earned a 5 by means of some good deeds in her earlier birth. So I also wish to spend my 5 next life enjoying such human pleasures if any beneficial karmas are accrued 5 as a result of all the good deeds and penance I am doing and the code of C discipline and celibacy I am following currently." Having fixed this ambition Z in her mind she returned to her place of penance. 5 सूत्र ७0 : तए णं सा सूमालिया अज्जा सरीरबाउसा जाया यावि होत्था, अभिक्खणं द र अभिक्खणं हत्थे धोवेइ, पाए धोवेइ, सीसं धोवेइ, मुहं धोवेइ, थणंतराइं धोवेइ, कक्खंतराइंड र धोवेइ, गोझंतराई धोवेइ, जत्थ णं ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएइ, तत्थ वि य णं टा 15 पुव्वामेव उदएणं अब्भुक्खइत्ता तओ पच्छा ठाणं सेज्जं वा चेएइ। सूत्र ७0 : इस घटना के वाद सुकुमालिका शरीर की शोभा साज-सज्ज के प्रति विशेष आसक्त ड 5 हो गई। वह बार-बार हाथ, पैर, मस्तक, मुँह, वक्ष, बगलें तथा गुप्तांगों को धोती। जिस स्थान पर ट र खड़ी होती, सोती, कायोत्सर्ग करती या स्वाध्याय करती उस स्थान पर भी पहले जल छिड़कती दा र और फिर वे सब कार्य करती। 5 70. After this incident Sukumalika became more indulgent toward the beauty and adornment of her body. She would wash her limbs, head, face, र breasts, armpits and genitals many times. Before standing, sleeping, meditating or studying she would sprinkle water over the ground she used B for these activities. 15 सूत्र ७१ : तए णं ताओ गोवलियाओ अज्जाओ सूमालियं अज्जं एवं वयासी-‘एवं खलु द र देवाणुप्पिए ! अज्जे ! अम्हं समणीओ निग्गंथाओ ईरियासमियाओ जाव बंभचेरधारिणीओ, नोड र खलु कप्पइ अहं सरीरबाउसियाए होत्तए, तुमं च णं अज्जे ! सरीबाउसिया अभिक्खणं टा 15 (200) JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SUTRA 2 Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wwwww सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २०१ ) अभिक्खणं हत्थे धोवसि जाव चेएसि, तं तुमं णं देवाणुप्पिए ! तस्स ठाणस्स आलोएहि जाव पडवज्जाहि । सूत्र ७१ : जब गोपालिका आर्या ने यह सब देखा तो वे सुकुमालिका से बोलीं- "हे देवानुप्रिये ! हम निर्ग्रन्थ साध्वियाँ हैं, ब्रह्मचारिणियाँ हैं। हमें शरीर के शोभा - संस्कार के प्रति इतनी आसक्ति नहीं दिखानी चाहिए । परन्तु तुम बार-बार हाथ पैर धोना आदि करने लगी हो अतः हे देवानुप्रिये ! तुम उस चारित्र - बकुशता ( चारित्र को दूषित करने वाले स्थान ) की आलोचना करो और यथाविधि प्रायश्चित्त अंगीकार करो। " 71. When Arya Gopalika saw all this she warned Sukumalika, “Beloved of gods! we are Nirgranth Shramanis and we are strictly celibate; as such we are not allowed to indulge in so much care of the body. But as you are washing your limbs (etc.) again and again, you should condemn this state of disgraceful conduct and do the prescribed atonement." सूत्र ७२ : तए णं सूमालिया गोवालियाणं अज्जाणं एयमहं नो आढाइ, नो परिजाणइ, 'अणाढायमाणी अपरिजाणमाणी विहरइ । तए णं ताओ अज्जाओ सूमालियं अज्जं अभिक्खणं अभिक्खणं अभिहीलंति जाव परिभवंति अभिक्खणं अभिक्खणं एयमहं निवारेंति । सूत्र ७२ : सुकुमालिका ने आर्या- गोपालिका के इस आदेश-निर्देश का न तो आदर किया न उसे स्वीकार किया। वह पूर्ववत् ही जीवन चर्या करती रही । फलतः समूह की अन्य साध्वियाँ उसकी बार-बार अवहेलना, अनादर आदि करने लगीं और इस अनाचार करने से रोकने की चेष्टा करने लगीं। 72. Sukumalika neither believed nor accepted these instructions and directions of Arya Gopalika. She continued her adopted way of life. As a result of this the other Sadhvis of the group tried to restrain her from indulging in prohibited activities and started proscribing and disdaining her. । सुकुमालिका का पृथक् विहार सूत्र ७३ : तए णं तीसे सूमालियाए समणीहिं निग्गंथीहिं हीलिज्जमाणीए जाव वारिज्जमाणीए इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था - 'जया णं अहं अगारवासमझे वसामि, तया णं अहं अप्पवसा, जया णं अहं मुंडे पव्वइया, तया णं अहं परवसा, पुव्विं च ममं समणीओ आढायति, इयाणिं नो आढायंति, तं सेयं खुल मम कल्लं पाउप्पभायाए गोवालियाणं अंतियाओ पडिणिक्खमित्ता पाडिएकं उवस्सगं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए' त्ति ) कटटु एवं संपेहेइ, संपैहित्ता कल्लं पाउप्पभायाए गोवालियाणं अज्जाणं अंतियाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता पाडिएकं उवस्सगं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ । CHAPTER - 16 : AMARKANKA For Private Personal Use Only ( 201 ) Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र ( २०२ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा. 15 सूत्र ७३ : अन्य साध्वियों की इस अवहेलना एवं अनादर आदि के कारण सुकुमालिका के मन ट र में विचार उठा-"जब मैं गृहस्थवास में थी तब मैं स्वाधीन थी। मुण्डित हो दीक्षा ले लेने के बाद मैं ड र पराधीन हो गई। पहले ये साध्वियाँ मेरा आदर करती थीं पर अब नहीं करती। अतः अच्छा होगा। 15 कि मैं कल प्रातःकाल होने पर आर्या गोपालिका के पास से निकल कर अलग उपाश्रय पर जाकर टा र रहने लगें ।' उसने यही निश्चय किया और भोर होने पर वहाँ से निकलकर अन्य उपाश्रय ड र (स्थान) पर जाकर रहने लगी। 2 SEPARATION FROM THE GROUP 73. This disregard and disdain by other Sadhyis forced Sukumalika to think, "When I was a house-holder I had my frecdom. Since I got my head shaved and initiated I have lost my freedom. Earlier these Sadhvis used to * respect me but not now. So it would be good for me to leave this group, led by Ç Arya Gopalika, tomorrow and live in another abode.” She resolved to do accordingly and the first thing she did in the morning was to shift to another suitable abode. __ सूत्र ७४ : तए णं सा सूमालिया अज्जा अणोहट्टिया अनिवारिया सच्छंदमई अभिक्खणं डा र अभिक्खणं हत्थे धोवेइ, जाव चेएइ, तत्थ वि य णं पासत्था, पासत्थविहारी, ओसण्णा में 15 ओसण्णविहारी, कुसीला कुसीलविहारी संसत्ता, संसत्तविहारी बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं दी पाउणइ, अद्धमासियाए संलेहणाए तस्स ठाणस्स अणालोइय-अपडिक्वंता कालमासे कालं किच्चा डा 15 ईसाणे कप्पे अण्णयरंसि विमाणंसि देवगणियत्ताए उववण्णा। तत्थेगइयाणं देवीणं नव ट 5 पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता, तत्थ णं सूमालियाए देवीए नव पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता। सूत्र ७४ : अन्य उपाश्रय में जाकर अकेले रहने पर उसे कोई रोकने-टोकने वाला नहीं रहाट 15 और सुकुमालिका स्वच्छंद हो शरीर संस्कारों के प्रति आसक्ति पूर्ण जीवन बिताने लगी। यही नहीं, डा र वह शिथिल आचार वर्तने के कारण शिथिलाचारिणी हो गई। नियम पालन में आलस करने से ड र आलसी हो गई। अनाचार में लिप्त होने से कुशीला हो गई। उपलब्ध साता-सुखों के प्रति आसक्त ट] 15 होने से संसक्ता हो गई। इस प्रकार उसने अनेक वर्षों तक साध्वी रूप में जीवन व्यतीत किया। ट र अन्त में अर्धमास (१५ दिन) की संलेखना कर, अपने अनुचित आचरण की आलोचना और ड र प्रतिक्रमण किए बिना ही शरीर त्याग कर ईशानकल्प में देवगणिका के रूप में उत्पन्न हुई। वहाँ कुछ ही 15 देवियों की आयु नौ पल्योपम बताई है। सुकुमालिका देवी की आयु भी नौ पल्योपम हुई। 74. Living alone Sukumalika was free of any curbs and restraints. She S became unrestrained in her excessive indulgence in the care of her body. Not I only this, due to her slipshod ways she also became lax in her ascetic a conduct. Due to her indulgence in base activities she lost her grace. Her fondness for mundane physical pleasures made her overindulgent. In this E (202) JNĀTĀ DHARMA KATHÄNGA SŪTRA 2 HinAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnni Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्र ( २०३ ) डा OURUM DDDDDDD DDDD P२ सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका 5 manner she lived long as an ascetic. In the end she observed the ultimate vow of fifteen days duration and died without reviewing and atoning for her misconduct. She reincarnated as a courtesan of gods in the Ishankalp. Some of the goddesses have a life-span of nine Palyopams in that dimension. 2 Goddess Sukumalika's life-span was also that. र द्रौपदी-कथा 5 सूत्र ७५ : तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पंचालेसु जणवएसुडा र कंपिल्लपुरे नाम नगरे होत्था। वन्नओ। तत्थ णं दुवए नाम राया होत्था, वन्नओ। तस्स णं चुलणी 15 देवी, धट्ठजुण्णे कुमारे जुवराया। र सूत्र ७५ : काल के उस भाग में इसी जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र के पांचाल देश में काम्पिल्यपुर नाम । 5 का एक नगर था। वहाँ के राजा का नाम द्रुपद, पटरानी का नाम चुलनी और युवराज का नाम टा धृष्टद्युम्न था। (विस्तृत विवरण औपपातिक सूत्र के अनुसार) $ STORY OF DRAUPADI 75. During that period of time there was a city named Kampilyapur in the 15 Panchal state in Bharat area of the Jambu continent. King Drupad ruled a 5 over that city. The name of his wife was queen Chulni and that of the prince 5 was Dhrishtadyumn. (details as in Aupapatik Sutra) र सूत्र ७६ : तए णं सा सूमालिया देवी ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं जाव चइत्ता इहेवट 15 जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पंचालेसु जणवएसु कंपिल्लपुरे नयरे दुपयस्स रण्णो चुलणीए देवीए डा र कुच्छिसि दारियत्ताए पच्चायाया। तए णं सा चुलणी देवी नवग्रहं मासाणं जाव दारियं पयाया। 5 सूत्र ७६ : सुकुमालिका देवी उस देवलोक से आयु, भव और स्थिति को समाप्त कर देव शरीर र त्याग कर इसी जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्रान्तर्गत पांचाल जनपद के कंपिल्यपुर नगर के द्रुपद राजा की । र रानी चुलनी की कोख में कन्या रूप में अवतरित हुई। रानी ने नौ मास पूर्ण होने पर पुत्री को जन्म टी 5 दिया P 76. The soul of Sukumalika, completing her age, state, and life as god and leaving the divine form descended into the womb of queen Chulni the wife of 2 king Drupad of Kampilyapur in the Panchal state in Bharat area of the Jambu continent. After nine months the queen gave birth to a daughter. माणात नामकरण र सूत्र ७७ : तए णं तीसे दारियाए निव्वत्तवारसाहियाए इमं एयारूवं नामधेज्जं-जम्हा गंध 5 एसा दारिया दुवयस्स रण्णो धूया चुलणीए देवीए अत्तया, तं होउ णं अम्हं इमीसे दारियाए । IS CHAPTER-16 : AMARKANKA (203) स Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnni Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 (२०४ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 नामधिज्जे दोवई। तए णं तीसे अम्मापियरो इमं एयारूवं गुण्णं गुणनिप्फन्नं नामधेज्जं करेंति-ड ‘दोवई।' ___ सूत्र ७७ : जन्म से बारह दिन बीत जाने पर उसका नामकरण हुआ। “यह बालिका द्रुपद राजा र की पुत्री और चुलनी रानी की आत्मजा है अतः इसका नाम द्रौपदी हो।" यह कहकर माता-पिता ने डी र उसका गुण निष्पन्न नाम द्रौपदी रख दिया। UUUUUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्क NAMING CEREMONY 77. Twelve days after the birth the parents gave her a name suiting her SI ” background, “As this is the daughter of King Drupad and queen Chulni we şi 2 will name her as Draupadi (daughter of Drupad). 5 सूत्र ७८ : तए णं सा दोवई दारिया पंचधाइपरिग्गहिया जाव गिरिकंदरमल्लीण इव र चंपगलया निवानिव्वाघायंसि सुहंसुहेणं परिवड्डइ। तए णं सा दोवई रायवरकन्ना 15 उम्मुक्कबालभावा जाव उक्किट्टसरीरा जाया यावि होत्था। सूत्र ७८ : पाँच धायों की देख-रेख में द्रौपदी उसी प्रकार विकसित होने लगी जैसे गुफा में वायु । 15 आदि के व्याघात के बिना चम्पकलता सुखपूर्वक बढ़ती है। धीरे-धीरे वह श्रेष्ठ राजकन्या टा 15 बाल्यावस्था से मुक्त हो उत्कृष्ट शरीर वाली सुन्दर युवती हो गई। र 78. Under the care of five nurse-maids Draupadi started growing as el 15 Champak-vine grows undisturbed in a cave. With passage of time she crossed 15 her infancy and grew to be a beautiful, charming, and perfectly proportioned दा > young woman. र सूत्र ७९ : तए णं तं दोवई रायवरकन्नं अण्णया कयाइ अंतेउरियाओ पहायं जाव विभूसियं टी 15 करेंति, करित्ता दुवयस्स रण्णो पायवंदियं पेसंति। तए णं सा दोवई रायवरकन्ना जेणेव दुवए डा र राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दुवयस्स रण्णो पायग्गहणं करेइ। 15 सूत्र ७९ : एक बार अन्तःपुर में रहने वाली दासियों ने द्रौपदी को स्नानादि वस्त्रालंकारों से दी र विभूषित किया। फिर उसे राजा द्रुपद की चरण-वन्दना के लिए भेजा। द्रौपदी अपने पिता राजा द्रुपद के पास गई और उनके चरणों का स्पर्श किया। 15 79. One day the maid-servants of the palace got Draupadi ready after her 91 bath, helping her dress and adorning her with ornaments. When she was Bready they sent her to get blessings from her father. Draupadi approached a Ging Drupad and touched his feet. र सूत्र ८0 : तए णं से दुवए राया दोवई दारियं अंके निवेसइ, निवेसित्ता दोवईए । 5 रायवरकन्नाए रूवेण य जोव्वणेण या लावण्णेण य जायविम्हए दोवइं रायवरकन्नं एवं वयासी-ट र (204) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA 2 SAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn) Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २०५ ) SI 5 'जस्स णं अहं पुत्ता ! रायस्स वा जुवरायस्स वा भारियत्ताए सयमेव दलइस्सामि, तत्थ णं तुमंड र सुहिया वा दुक्खिया वा भविज्जासि, तए णं ममं जावजीवाए हिययडाहे भविस्सइ, तं णं अहं से 15 तव पुत्ता ! अज्जयाए सयंवरं विरयामि, अज्जयाए णं तुमं दिण्णसयंवरा, जं णं तुम सयमेव डा र रायं वा जुवरायं वा वरेहिसि, ते णं तव भत्तारे भविस्सइ,' त्ति कट्ट ताहिं इटाहिं जावट 15 आसासेइ, आसासित्ता पडिविसज्जेइ। र सूत्र ८0 : राजा द्रुपद ने अपनी पुत्री को गोद में बिठाया और उसके रूप, यौवन और लावण्य ट ए को देखकर विस्मित हो गया। उसने द्रौपदी से कहा-“हे पुत्री ! मैं स्वयं यदि किसी राजा या द युवराज की पत्नी के रूप में तुझे दूंगा तो कौन जाने तू वहाँ सुखी हो या दुःखी? मुझे जीवनभर डा र कहीं पश्चात्ताप न हो? अतः हे पुत्री ! आज से मैं तुझे स्वयंवर की अनुमति देता हूँ। आज से तू टा 5 स्वयंवरा हुई। तू अपनी इच्छा से जिस किसी राजा या युवराज का वरण करेगी वही तेरा भतार द 15 होगा।" इसप्रकार राजा द्रुपद ने इष्ट, प्रिय और मनोज्ञवाणी में ये शब्द कहकर द्रौपदी को आश्वस्त ड र कर विदा किया। 80. King Drupad asked his daughter to sit in his lap. He was astonished to see the charming beauty and youth of his daughter. Drupad said to his daughter, “Daughter! If I select some prince or king for you and marry you to J him, who knows if you will be happy or sad? In order to avoid repenting throughout my life I, today, give you permission to choose your own husband. 5 Whichever prince or king you choose will become your husband. The king sent 5 her away after uttering these words in sweet, caressing and reassuring voice. 5 द्रौपदी का स्वयंवर र सूत्र ८१ : तए णं से दुवए राया दूयं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'गच्छह णं तुम 15 देवाणुप्पिया ! बार वइं नयरिं, तत्थ णं तुम कण्हं वासुदेवं, समुद्दविजयपामोक्खे दस दसारे, डा र बलदेवपामुक्खे पंच महावीरे, उग्गसेणपामोक्खे सोलस रायसहस्से, पज्जुण्णपामुक्खाओ टा 5 अधुढाओ कुमारकोडीओ, संबपामोक्खाओ सहि दुहन्तसाहस्सीओ, वीरसेणपामुक्खाओ इक्कवीसंड र वीरपुरिससाहस्सीओ, महसेणपामोक्खाओ छप्पन्नं बलवगसाहस्सीओ, अन्ने य बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहपभिइओ करयलपरिग्गहिअं दसनहं द 15 सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट जएणं विजएणं वद्धावेहि, वद्धावित्ता एवं वयाहि र सूत्र ८१ : राजा द्रुपद ने तब दूत को बुलवाया और उससे कहा-“देवानुप्रिय ! तुम द्वारका ट 15 नगरी जाओ और वहाँ के सभी प्रतिष्ठित व्यक्तियों से भेंट करो। वे सम्माननीय व्यक्ति हैं- कृष्ण ड र वासुदेव, समुद्रविजय आदि दस दशार, बलदेव आदि पाँच महावीर, उग्रसेन आदि सोलह हजार र राजा, प्रद्युम्न आदि साढ़े तीन कोटि राजकुमार, शाम्ब आदि साठ हजार दुर्दान्त वीर, वीरसेन दा ллелуллоллол UUUUUUUUUUUUUUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण G PTER-16: AMARKANKA (205) Annnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०६ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र आदि इक्कीस हजार वीर पुरुष, महासेन आदि छप्पन हजार बलवान तथा अन्य अनेक राजा, युवराज, तलवर, माण्डविक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठि, सेनापति और सार्थवाह आदि। इनसे भेंट करके यथाविधि नमस्कार करना, 'जय-विजय हो' कहकर अभिनन्दन करना और कहना THE SVAYAMVAR 81. King Drupad called one of his emissaries and said, “Beloved of gods ! Go to Dwarka city and meet all the prominent people there. These important people are Krishna Vasudev, the ten Dashar kings led by Samudravijaya, five great warriors led by Baldev, sixteen thousand kings led by Ugrasen, thirty five million princes led by Pradyumna, sixty thousand fiery warriors led by Shamb, twenty one thousand great achievers led by Virsen, fifty six thousand great warriors led by Mahasen, and many other kings, princes, etc. (as in Ch. 1 para 19 ). Once you meet them, greet them extending due courtesy and uttering, “Be you victorious !” and convey the following message - सूत्र ८२ : एवं खलु देवाणुप्पिया ! कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रण्णो धूयाए चुलणीए देवीए अत्तयाए धट्टजुण्ण-कुमारस्स भगिणीए दोवईए रायवर - कण्णाए सयंवरे भविस्सइ, तं णं तुभे देवापिया ! दुवयं रायं अणुगिरहेमाणा अकालपरिहीणं चेव कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह ।' सूत्र ८२ : "हे देवानुप्रियो ! काम्पिल्यपुर नगर में द्रुपद राजा की पुत्री, चुलनी देवी की आत्मजा और कुमार धृष्टद्युम्न की बहन श्रेष्ठ राजकुमारी द्रौपदी का स्वयंवर होने वाला है। अतः आप सब राजा द्रुपद पर अनुग्रह करते हुए निर्विलम्ब काम्पिल्यपुर पधारें ।" 82. Beloved of gods! The Svayamvar (bride-groom choosing) for the illustrious princess Draupadi, the daughter of King Drupad and queen Chulni, and the sister of prince Dhrishtadyumn, is being organized in Kampilyapur city. You all are cordially invited to grace the occasion and oblige King Drupad. Kindly proceed for Kampilyapur city without any delay.” सूत्र ८३ : तए णं से दूए करयल जाव कट्टु दुवयस्स रण्णो एयमहं विणएणं पडिसुणेइ, पडिणित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - 'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उबट्ठवेह |' जाव ते वि तहेव उवट्टवेंति । सूत्र ८३ : दूत ने हाथ जोड़ यथाविधि नमस्कार कर राजा की आज्ञा विनयपूर्वक स्वीकार की और अपने घर लौटकर सेवकों से कहा- “देवानुप्रियो ! शीघ्र ही चार घण्टाओं वाला अश्वरथ जात कर ले आओ।" सेवकों ने रथ उपस्थित किया। ( 206 ) 5. JNĀTA DHARMA KATHANGA SŪTRA For Private Personal Use Only सज्ज Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माज र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २०७ ) 5 83. The messenger joined his palms and with due greetings and humility दा accepted the order. He went home, called his servants and ordered, “Beloved Rof gods! go and bring a four-bell chariot after yoking horses to it.” The S 2 servants produced the chariot as told. 15 सूत्र ८४ : तए णं से दूए ण्हाए जाव अलंकारविभूसियसरीरे चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, र दुरुहित्ता गहियाऽऽउह-पहरणेहिं सद्धिं संपरिवुडे कंपिल्लपुरं नयरं मझमझेणं निग्गच्छइ, ड र निग्गच्छित्ता पंचालजणवयस्स मझमझेणं जेणेव देसप्पंते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता 15 सुरट्ठाजणवयस्स मझमझेणं जेणेव वारवई नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वारवइंड र नगरिं मझमज्झेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव कण्हस्स वासुदेवस्स बाहिरिया । 15 उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंट आसरहं ठवेइ, ठवित्ता रहाओ द पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता मणुस्सवग्गुरापरिक्खित्ते पायविहारचारेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव ड र उवागच्छइ उवागच्छित्ता कण्हं वासुदेवं समुद्दविजयपामुक्खे य दस दसारे जाव बलवगसाहस्सीओट 5 करयल तं चेव जाव समोसरह। __ सूत्र ८४ : दूत ने स्नानादि कर वस्त्राभूषण पहने, चार घण्टा वाले रथ पर चढ़ा और ट 5 अस्त्र शस्त्रधारी अनेक रक्षकों के साथ काम्पिल्यपुर नगर के बीच से निकल पाँचाल देश को पार दी 5 करता हुआ सीमा पर पहुंचा। फिर सुराष्ट्र जनपद के बीच होता हुआ द्वारका नगरी की दिशा में ड र चला। द्वारका नगरी में प्रवेश कर कृष्ण वासुदेव की बाहरी राज्य सभा के निकट आकर रथ को है E रोका। रथ से नीचे उतर अपने रक्षकों से घिरा पैदल चलता हुआ वह कृष्ण वासुदेव के पास पहुँचा। दा 15 वहाँ पहुँच कर उसने कृष्ण वासुदेव समुद्रविजय, एवं दश-दशार आदि सभी उपस्थित सज्जनों का ड र यथा विधि अभिवादन किया और स्वयंवर में पहुचने हेतु राजा द्रुपद का निमन्त्रण कह सुनाया। 15 84. The emissary got ready after taking his bath and dressing up and rodec 5 the four-bell chariot. Taking along a large contingent of soldiers he moved through the streets of Kampilyapur city and crossing the Panchal state arrived at the border. After this he crossed the Surashtra state and entered 2 the city of Dwarka. He stopped his contingent at the gate of the outer assembly of Krishna Vasudev. He got down from the chariot and, surrounded by his guards, walked to Krishna Vasudev. Observing the protocol he greeted K Krishna Vasudev, ten Dashars including Samudravijava, and 15 dignitaries and conveyed the invitation to Svayamvar sent by King Drupad. र सूत्र ८५ : तए णं से कण्हे वासुदेवे तस्स दूयस्स अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म हट्ठ जावट 5 हियए तं दूयं सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारिता सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ।' र सूत्र ८५ : कृष्ण वासुदेव उस दूत से समाचार सुनकर प्रसन्न व सन्तुष्ट हुए। फिर दूत का 2 5 यथोचित सत्कार-सम्मान किया और तब उसे वापस विदा कर दिया। IS CHAPTER-16 : AMARKANKA (207) Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnni vuruuruuuuuu Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ज्‍ ( २०८ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र 85. Krishna Vasudev was pleased and contented to get this news from the emissary. He sent the emissary off after duly honouring him. स्वयंवर के लिए कृष्ण का प्रस्थान सूत्र ८६ : तए णं से कहे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - 'गच्छह गं तुमं देवाप्पिया ! सभाए सुहम्माए सामुदाइयं भेरिं तालेहि । ' तणं से कोडुंबियपुरिसे करयल जाव कण्हस्स वासुदेवस्स एयम पडिसुणेइ, पडिणित्ता जेणेव सभाए सुहम्माए सामुदाइया भेरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सामुदाइयं भेरिं महा महया सद्देणं ताले । सूत्र ८६ : तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव ने कौटुम्बिक पुरुष (सेवक ) को बुला कर आदेश दिया"देवानुप्रिय ! सुधर्मा सभा में जाकर सामुदायिक भेरी बजाओ।" सेवक ने हाथ जोड़कर विनयपूर्वक वासुदेव कृष्ण की आज्ञा स्वीकार की और सुधर्मा सभा में जाकर जोर-जोर से भेरी बजाई । KRISHNA VASUDEV'S DEPARTURE 86. Krishna Vasudev called his servant and instructed, “Beloved of gods ! Go to the Sudharma hall and blow the trumpet for general assembly." The servant joined his palms and with due greetings and humility accepted the order. He went to the Sudharma hall and blew the trumpet loudly. सूत्र ८७ : तए णं ताए सामुदाइयाए भेरीए तालियाए समाणीए समुहविजयपामोक्खा दस दसारा जाव महसेणपामोक्खाओ छप्पन्नं बलवगसाहस्सीओ पहाया जाव विभूसिया जहा विभव- इड्डि-सक्कार-समुदएणं अप्पेगइया जाव पायविहार-चारेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल जाव कण्हं वासुदेवं जएणं विजएणं वद्धावेंति । सूत्र ८७ : उस सामुदायिक भेरी की आवाज सुनकर समुद्रविजय आदि सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति ( विस्तार पूर्व के समान - सू- ८१) स्नानादि करके अपने-अपने वैभव, ऋद्धि और सत्कार के अनुरूप वाहनादि पर चढ़कर कृष्ण वासुदेव के पास पहुँचे और यथाविधि उनका वन्दन अभिनन्दन किया। 87. Hearing the sound of the trumpet Samudravijaya and other prominent people (as detailed in para 81) got ready and riding the means of conveyance befitting their respective status came to Krishna Vasudev and formally greeted him. सूत्र ८८ : तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, हयगय जाव पच्चपिणंति । (208) 400 JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA For Private Personal Use Only ம Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०९) हा TUUUUUUUU UUUजन P सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका 5 सूत्र ८८ : तब श्रीकृष्ण वासुदेव ने अपने सेवकों को बुलाकर कहा-हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही डा रे मेरे लिए अभिषेक किए हुए हस्तीरत्न को तैयार करो तथा घोड़ों, हाथियों युक्त चतुरंगिनी सेना । र सजाओ। सेवकों ने आज्ञा पालन कर सूचित किया। 5 88. Now Krishna Vasudev called his attendants and instructed them, 1 "Beloved of gods! Get an elephant ready for me after due anointing and prepare the four pronged army to march.” The servants did as told and reported back. 15 सूत्र ८९ : तए णं से कण्हे वासुदेव जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता र समुत्तजाला-कुलाभिरामे जाव अंजणगिरिकूडसंनिभं गयवई नरवई दुरूढे। 5 तए णं से कण्हे वासुदेवे समुद्दविजयापामुक्खेहिं दसहिं दसारेहिं जाव अणंगसेणापामुक्खेहिं र अणेगाहिं गणियासाहस्सीहिं सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्डीए जाव रवेणं बारवई नयरिं मझमज्झेणं 5 निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता सुरद्वाजणवयस्स मज्झमज्झेणं जेणेव देसप्पंते तेणेव उवागच्छइ, र उवागच्छित्ता पंचालजणवयस्स मज्झमझेणं जेणेव कंपिल्लपुरे नयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। 5 सूत्र ८९ : श्रीकृष्ण वासुदेव तब स्नानगृह में गये और स्नानादि कर वस्त्रालंकारों से विभूषित द र हो अंजनगिरि के शिखर के समान गजपति पर वे नरपति आरूढ़ हो गये। 5 इसके बाद कृष्णवासुदेव समुद्रविजय आदि दस दशार (महान् पुरुषों) यावत् अनंगसेना आदि द 5 कई हजार गणिकाओं के परिवार से घिरे पूर्ण वैभव तथा गाजे बाजे के साथ द्वारिका नगरी के डा र बीचोंबीच होते हुए नगर से बाहर निकले और सुराष्ट्र जनपद के बीच होते हुए देश की सीमा पर ट्र र पहुँचे। वहाँ से पांचाल जनपद के बीच होते हुए कांपिल्यपुर की ओर जाने को तैयार हुए। 5 89. Krishna Vasudev went to his bathroom and got ready after taking his 51 bath and adorning himself with his dress and ornaments. And then the king of men' rode the king elephant. Now, Krishna Vasudev, surrounded by ten 5 Dashars including Samudravijay, other dignitaries (as detailed in para 81), and also thousands of courtesans including Anangsena, and with all his grandeur and pomp and show, marched through the city of Dwarka and crossing the Surashtra state reached the border. Here they commenced preparations for marching into Panchal state to reach Kampilyapur city. 15 अन्य जनपदों में दूत भेजना 5 सूत्र ९० : तए णं से दुवए राया दोच्चं दूयं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'गच्छह णं दा तुमं देवाणुप्पिया ! हथिणाउरं नगरं। तत्थ णं तुमं पंडुरायं सपुत्तयं-जुहिट्ठिलं भीमसेणं अज्जुणंडी र नउलं सहदेवं, दुज्जोहणं भाइसयसमग्गं, गंगेयं, विदुरं, दोणं, जयद्दहं, सउणिं, कीवं, आसत्थाम 5 करयल जाव कट्ट तहेव समोसरह।' 5 CHAPTER-16 : AMARKANKA LANAAAAAAAAL AUUrOC साए (209) Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज क(२१०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ड सूत्र ९० : उधर द्रुपद राजा ने एक और दूत को बुलाकर कहा-“देवानुप्रिय ! तुम हस्तिनापुर डी 15 जाओ और वहाँ राजा पाण्डु, उनके पाँच पुत्र-युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव, सौ र भाइयों सहित दुर्योधन, गांगेय, विदुर, द्रोण, जयद्रथ, शकुनि, कर्ण और अश्वत्थामा को यथाविधि टा 5 दोनों हाथ जोड़कर नमन करके द्रौपदी के स्वयंवर में आने का निमन्त्रण दो।" B MESSENGERS TO OTHER STATES 90. Back at Kampilyapur city King Drupad called another of his emmissaries and said, “Beloved of gods! Go to Hastinapur, meet King Pandu; his five sons, Yudhisthir, Bheem, Arjun, Nakul, and Sahadev; the hundred Kauravs including Duryodhan; and Gangeya, Vidur, Dron, Jayadrath, Shakuni, Karn, and Ashvatthama. After duly greeting them joining your 5 palms, extend to them an invitation to come to the Svayamvar of Draupadi." र सूत्र ९१ : तए णं से दूए एवं वयासी जहा वासुदेवे, नवरं भेरी नत्थि। जाव जेणेव ट र कंपिल्लपुरे नयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। र सूत्र ९१ :: दूत ने हस्तिनापुर जाकर वैसे ही कहा जैसे पहले दूत ने वासुदेव को कहा। और टा र राजा पाण्डु ने वैसा ही किया जैसा कृष्ण वासुदेव ने। अन्तर यह था कि हस्तिनापुर में भेरी नहीं दी 5 थी। पाण्डु राजा ने भी अपने स्वजनों के साथ कांपिल्यपुर जाने की तैयारी की। 2 91. The emissary went to Hastinapur and said to King Pandu what the ] first emissary had told to Krishna Vasudev. King Pandu also did as Krishna Vasudev had done, the only difference being that there was no trumpet blowing at Hastinapur. King Pandu also made necessary preparations to 5 proceed to Kampilyapur city... र सूत्र ९२ : एएणेव कमेणं तच्चं दूयं चंपानयरिं, तत्थ णं तुमं कण्हं अंगरायं, सेल्लं, नंदिरायंट 5 करयल तहेव जाव समोसरह। र सूत्र ९२ : इसी क्रम से तीसरे दूत को चम्पानगरी भेजा और अंगराज कृष्ण, सेल्लक राजा द 5 और नन्दिराज को हाथ जोड़कर सन्मानपूर्वक निमन्त्रण कहलवाया। 2 92. In this order the third emissary was sent to Champanagari and an a Rinvitation was extended with due honour to the ruler of Anga state, King 15 Krishna, King Sellak, and King Nandi. र सूत्र ९३ : चउत्थं दूयं सुत्तिमई नयरिं, तत्थ णं सिसुपालं दमघोससुयं पंचभाइसयसंपरिवुडे र करयल तहेव जाव समोसरह। र सूत्र ९३ : चौथे दूत को शुक्तिमती नगरी भेजा और दमघोष के पुत्र और पाँच सौ भाइयों ट र सहित राजा शिशुपाल को आदरपूर्वक निमन्त्रण कहलवाया। र (210) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA I Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ UUUUD जम र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २११) डा 5 93. The fourth emissary was sent to Shuktimati city and an invitation ट 15 was extended with due honour to King Shishupal, the son of Damghosh, with his five hundred brothers. र सूत्र ९४ : पंचमगं दूयं हथिसीसं नगरं, तत्थ णं तुमं दमदंतं नाम रायं करयल तहेव जावट समोसरह। 5 सूत्र ९४ : पाँचवें दूत को हस्तीशीर्ष नगर भेजा और दमदंत राजा को निमन्त्रण कहलवाया। $ 94. The fifth emissary was sent to Hastisheersh city and an invitation 2 was extended with due honour to King Damdant. 15 सूत्र ९५ : छटुं दूयं महुरं नयरिं, तत्थ णं तुमं धरं रायं करयल तहेव जाव समोसरह। र सूत्र ९५ : छठे दूत को मथुरा नगरी भेजा और राजा धर को निमन्त्रण कहलवाया। ___95. The sixth emissary was sent to Mathura city and an invitation was l P extended with due honour to King Dhar 15 सूत्र ९६ : सत्तमं दूयं रायगिहं नगरं, तत्थ णं तुमं सहदेवं जरासिंधुसुयं करयल तहेव जाव दी र समोसरह। 15 सूत्र ९६ : सातवें दूत के साथ राजगृह नगर के राजा जरासिन्धु-पुत्र सहदेव को निमन्त्रण द 5 भेजा। 96. The seventh emissary was sent to Rajagriha city and an invitation 15 was extended with due honour to King Sahadev, son of Jarasandh. र सूत्र ९७ : अट्ठमं दूयं कोडिण्णं नयं, तत्थ तुमं रुप्पिं भेसगसुयं करयल तहेव जाव समोसरह। टा 15 सूत्र ९७ : आठवें दूते के साथ कौण्डिन्य नगर के राजा भीष्मक-पुत्र रुक्मि को निमन्त्रण भेजा। B 97. The eighth emissary was sent to Kaundinya city and an invitation 3 5 was extended with due honour to King Rukmi, son of Bhishmak. र सूत्र ९८ : नवमं दूयं विराडनगरं। तत्थ णं तुमं कीयगं भाउसयसमग्गं करयल तहेव जावड 15 समोसरह। र सूत्र ९८ : नौवें दूत के साथ विराट नगर के राजा कीचक को सौ भाइयों के साथ निमन्त्रण भेजा। 15 98. The ninth emissary was sent to Virat city and an invitation was I » extended with due honour to king Keechak and his one hundred brothers. SI 5 सूत्र ९९ : दसमं दूयं अवसेसेसु य गामाऽगरऽनगरेसु अणेगाइं रायसहस्साइं जाव समोसरह। टी र सूत्र ९९ : दसवें दूत को अन्य ग्रामों, आकरों व नगरों में भेज कर अनेक सहस्र राजाओं को ड 15 निमन्त्रण कहलवाया। APTER-16 : AMARKANKA (211) ट TAAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnni Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ STTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTS क (२१२) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 99. The tenth emissary was sent to other villages, towns, and cities and 5 invitatios were extended with due honour to thousands of other rulers. 5 सूत्र १00 : तए णं से दूए तहेव निग्गच्छइ, जेणेव गामाऽगर नगर जाव समोसरह। र सूत्र १00 : वह दूत पूर्ववत निकलकर ग्रामादि में गया और पूर्ववत् राजाओं को निमन्त्रण टा 15 दिया। 100. This last emissary went to numerous villages, etc. and extended 5 invitations as mentioned before. र सूत्र १०१ : तए णं ताइं अणेगाइं रायसहस्साई तस्स दूयस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म र हट्टतुट्टा तं दूयं सक्कारेंति, संमाणेति, सक्कारित्ता संमाणित्ता पडिविसज्जिंति। 15 सूत्र १०१ : अनेक हज़ार राजाओं ने उस दूत से संदेश सुन-समझकर प्रसन्न हो उसे ड र सत्कार-सम्मान सहित विदा किया। 5 101. These thousands of kings were pleased and contented to get the $ invitation and bid the emissary farewell with due honour. र सूत्र १०२ : तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा पत्तेयं पत्तेयं ण्हाया संनद्ध-बद्ध-ट 5 वम्मियकवया हत्थिखंधवरगया हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धि ड र संपरिवुडा महया भड-चडगर-पहगरविंदपरिक्खित्ता सएहिं नगरेहितो अभिनिग्गच्छंति, 7 E अभिनिगच्छित्ता जेणेवे पंचाले जणवए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। र सूत्र १०२ : वासुदेव के समान ही सभी राजाओं ने तैयारी की और हाथियों पर बैठ र अपनी-अपनी सेना के साथ अपने-अपने नगर से निकल कर कांपिल्यपुर को प्रस्थान किया। 102. Like Krishna Vasudev all the kings made preparations and riding 3 their elephants they left their cities with their armies and proceeded towards P_Kampilyapur city. F अतिथि-स्वागत की तैयारी 15 सूत्र १०३ : तए णं से दुवए राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावित्ता एवं वयासी-'गच्छह डा णं तुम देवाणुप्पिया ! कंपिल्लपुरे नयरे बहिया गंगाए महानदीए अदूरसामंते एगं महंध E सयंवरमंडवं करेह अणेगखंभसयसन्निविटुं, लीलट्ठियसालभंजियागं' जाव पच्चप्पिणंति। र सूत्र १०३ : उधर राजा द्रुपद ने सेवकों को बुला कर कहा-“देवानुप्रियो ! तुम जाकर ड र कांपिल्यपुर नगर के बाहर गंगा नदी से न अधिक पास न अधिक दूर एक विशाल स्वयंवर मण्डप ट 5 बनाओ जो सैंकड़ों स्तम्भों से बना हो, जिन पर लीला करती पुतलियाँ बनी हों और जो मन को दी 15 प्रफुल्लित करने वाला तथा सुन्दर, दर्शनीय और रमणीक हो।" सेवकों ने मण्डप तैयार करके राजा र को सूचित किया। र (212) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA 2 LEAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्प २ सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २१३ ) 5 PREPARATIONS FOR WELCOME 103. King Drupad once again called his servants and instructed, “Beloved of gods! Go out of the town and select a spot on the bank of the Ganges which is neither very far nor very near Kampilyapur city and erect a large 5 Svayamvar pavilion. It should have hundreds of beautifully decorated pillars embellished with motifs of dancing girls. This pavilion should be enchanting, C 15 beautiful, grand, and inviting.” The servants did as told and reported back. र सूत्र १०४ : तए णं से दुवए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासीके खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं आवासे करेह।' ते विड र करित्ता पच्चप्पिणंति। २ सूत्र १०४ : राजा द्रुपद ने पुनः सेवकों को बुलाकर कहा-“देवानुप्रियो ! शीघ्रता से वासुदेव । र आदि अनेक हज़ारों राजाओं के लिए आवास तैयार करो।" सेवकों ने आवास की व्यवस्था कर द 5 सूचना दी। र 104. King Drupad once again called his staff and said, “Beloved of gods! Pl Make arrangements for the stay of Krishna Vasudev and other thousands of 15 kings.” The servants did as told and reported back. र सूत्र १०५ : तए णं दुवए राया वासुदेवपामुक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं आगमणं जाणेत्ता ट 5 पत्तेयं पत्तेयं हत्थिखंधं जाव परिवुडे अग्धं च पज्जं च गहाय सव्विड्डीए कंपिल्लपुराओ । र निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा तेणेव उवागच्छइ, से 5 उवागच्छित्ता ताई वासुदेवपामोक्खाइं अग्घेण य पज्जेण य सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारित्ता डा र सम्माणिता तेसिं वासुदेवपामुक्खाणं पत्तेयं पत्तेयं आवासे वियरइ। 5 सूत्र १०५ : वासुदेव आदि अनेक राजाओं के आगमन की सूचना पाकर राजा द्रुपद स्वयं र हाथी पर बैठकर सुभटों को साथ ले, अर्घ्य (पुष्प आदि) और जल (पाद्य-चरण पखालने के लिए) लेकर सम्पूर्ण वैभव सहित प्रत्येक राजा का स्वागत करने हेतु नगर से बाहर निकला। जिस स्थान 5 पर वासुदेव आदि राजा आ पहुँचे थे वहाँ जाकर उन सबका अर्घ्य और पाद्य से सत्कार सम्मान र किया और उन्हें पृथक्-पृथक् आवास प्रदान किये। 5 105. When King Drupad got the information about the arrival of the kingss $ including Krishna Vasudev, he himself came out of the city riding an 1 > elephant and with a battalion of guards, all his regalia, and the ] paraphernalia of traditional welcoming (bouquets of flowers and pots filled i with water) for each and every royal guest. He reached the spot where the 5 guests had arrived and duly extended traditional welcome by pouring water cl 5 CHAPTER-16 : AMARKANKA (213) टा Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माजमा क(२१४ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र टा R over their feet and offering them bouquets of flowers. After this he sent them to independent dwellings. र सूत्र १०६ : तए णं ते वासुदेवपामोक्खा जेणेव सया सया आवासा तेणेव उवागच्छंति, ड र उवागच्छित्ता हत्थिखंधेहितो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता पत्तेयं पत्तेय खंधावारनिवेसं करेंति, 15 करित्ता सएसु सएसु आवासेसु अणुपविसंति, अणुपविसित्ता सएसु आवासेसु आसणेसु य डा र सयणेसु य सन्निसन्ना य संतुयट्ठा य बहूहिं गंधव्वेहि य नाडएहि य उवगिज्जमाणा या 15 उवणच्चिज्जमाणा य विहरंति। र सूत्र १०६ : वासुदेव आदि सभी राजा अपने-अपने नियत आवासों पर पहुंचे, हाथियों पर से 5 उतर कर पड़ाव डाले और तब आवासों में प्रविष्ट हुए। कोई आसन पर बैठा तो कोई शैय्या पर द 15 सो गया। अनेकों गंधर्व उनके मनोरंजन के लिए गान, नृत्य, नाटक आदि करने लगे। B 106. Krishna Vasudev and the other kings reached the dwellings allotted a 5 to each one of them. They got down from the elephant and made camp. After 5 that they entered the dwellings provided by King Drupad. Some of them sat Ć 5 on chairs and others reclined on beds. Numerous Gandharvas (demigods 3 specializing in performing arts) entertained them with songs, dances, S P dramas, and other such performances. 15 सूत्र १०७ : तए णं से दुवए राया कंपिल्लपुरं नगरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता, विउलं र असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावित्ता, कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवंड र वयासी-'गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च मज्जं च मंसंट 5 च सीधुं च पसण्णं च सुबहुपुष्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं च वासुदेवपामोक्खाणं रायसहस्साणंड र आवासेसु साहरह।' ते वि साहरंति। 5 सूत्र १०७ : अतिथियों को यथास्थान ठहरा कर राजा द्रुपद कांपिल्यपुर लौटे और विपुल डा र भोजन सामग्री का प्रबन्ध करवाया। तैयारी पूरी होने पर राजा ने सेवकों को बुलाकर कहार “देवानुप्रियो ! तुम यह सब भोजन सामग्री, सुरा, मद्य, माँस, सीधु और प्रसन्ना (मदिरा विशेष) 5 तथा प्रचुर पुष्प, वस्त्र, गंध, मालाएँ एवं अलंकार लेकर वासुदेव आदि हज़ारों राजाओं के आवासों ड र पर जाओ।" सेवकों ने राजाज्ञानुसार सभी सामग्री यथास्थान पहुँचाई। 5 107. After making the guests comfortable at their allotted dwellings King टा Drupad returned to Kampilyapur city and made arrangements for cooking large quantities of food . When the preparations were complete he called his Ç servants and said, “Beloved of gods! Collect all this food, a variety of beverages in liberal quantities, and enough flowers, perfumes, apparels, garlands and ornaments and take all this to the dwellings of Krishna Vasudev and the other kings." The servants did as told. र(214) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA' பபபபபபபபபட Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २१५ ) सूत्र १०८ : तए णं वासुदेवपामुक्खा तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं जान्नं आसाएमाणा आसाएमाणा विहरंति, जिमियभुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा आयंता जाव सुहासणवरगया बहूहिं गंधव्वेहिं जाव विहरति । सूत्र १०८ : वासुदेव आदि सभी राजा उस भोजनादि सामग्री का आस्वादन कर आनन्द लेने लगे। भोजन के पश्चात् वे सुखदायक आसनों पर बैठ गंधर्व - संगीत नृत्य का आनन्द लेते हुए समय बिताने लगे। 108. Krishna Vasudev and all the other kings enjoyed all the food and beverages. After eating they rested on comfortable seats and spent their time enjoying the performances by the Gandharvas. स्वयंवर की उद्घोषणा सूत्र १०९ : तए णं से दुवए राया पुव्वावरण्हकालसमयंसि कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी- 'गच्छह णं तुमे देवाणुप्पिया ! कंपिल्लपुरे संघाडग जाव पहेसु वासुदेवपामुक्खाण य रायसहस्साणं आवासेसु हत्थिखंधवरगया महया महया सद्देणं जाव उग्घोसेमाणा उग्घोसेमाणा एवं वदह - एवं खलु देवाणुप्पिया ! कल्लं पाउप्पभायाए दुवस्स रणधूयाए, चुलणीए देवीए अत्तयाए, धट्टजुण्णस्स भगिणीए दोवईए रायवरकण्णाए सयंवर भविस्सइ, तं तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! दुवयं रायाणं अणुगिरहेमाणा व्हाया जाव विभूसिया हत्थिखंधवरगया सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणा हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडा महया भडचडगरेणं जाव परिक्खित्ता जेणेव सयंवरमंडवे तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता पत्तेयं पत्तेयं नामंकेसु आसणेसु निसीयह, निसीइत्ता दोवई रायवरकण्णं पडिवालेमाणा पाडिवालेमाणा चिट्ठह त्ति घोसणं घोसेह, मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।' तए णं कोडुंबिया तव जाव पच्चप्पिणंति । सूत्र १०९ : संध्या समय राजा द्रुपद ने अपने सेवकों को बुलाकर कहा - "देवानुप्रियो ! तुम लोग जाओ और कांपिल्यपुर नगर के शृंगाटक (चौराहे - तिराहे) आदि मार्गों में तथा वासुदेव आदि हजारों राजाओं के आवासों के निकट हाथी पर चढ़कर उच्च स्वर तथा स्पष्ट शब्दों में बार-बार उद्घोष कर यह घोषणा करो - 'देवानुप्रियो ! आगामी प्रभात काल में राजा द्रुपद की पुत्री, रानी 'चुलनी देवी की आत्मजा और कुमार धृष्टद्युम्न की बहन राजकुमारी द्रौपदी का स्वयंवर होगा । अतः हे देवानुप्रियो ! आप सभी राजा द्रुपद पर अनुग्रह कर, स्नानादि से निवृत्त हो, विभूषित हो, ) हाथी पर आरूढ़ हो, कोरंट फूलों की माला लगे छत्र धारण कर, उत्तम श्वेत चामर ढुलवाते हुए, घोड़ों, हाथियों, रथों तथा सुभटों के समूहों से युक्त चतुरंगिणी सेना से घिरे स्वयंवर मण्डप में CHAPTER - 16 : AMARKANKA 50 For Private Personal Use Only ( 215 ) 205 Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Soपण्यापज्जज F ( २१६ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 पधारें। वहाँ अपने-अपने नामांकित पृथक्-पृथक् आसनों पर विराज कर राजकन्या द्रौपदी की दा र प्रतीक्षा करें।' घोषणा करके मुझे सूचित करो।" 15 सेवकों ने राजाज्ञा का पालन कर सूचित किया। 155 SVAYAMVAR ANNOUNCED 15 109. In the evening King Drupad called his attendants and instructed, डा ? "Go riding an elephant and make the following announcement loudly and 51 12 clearly many times at various places in the city and around the camps of Krishna Vasudev and the other kings15 Beloved of gods! Tomorrow morning the Svayamvar (bride-groom दा choosing) for the illustrious princess Draupadi, the daughter of King Drupad > and queen Chulni, and the sister of prince Dhrishtadyumn, is being 9 organized in Kampilyapur city. Each one of you is cordially invited to grace B the occasion and oblige King Drupad. Kindly get ready after taking your bath, 5 and dressing up and come to the Svayamvar pavilion riding an elephant with 15 a canopy made up of garlands of Korant flowers, plying exquisite white 15 whisks, and surrounded by your four pronged army comprising of elephants, C 15 horses, chariots and foot-soldiers. After arriving there, take the seat bearing S २ your name and wait for the arrival of the princess." The servants did as told and reported back. र सूत्र ११० : तए णं से दुवए राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'गच्छह डा रणं तुब्भे देवाणुप्पिया ! सयंवरमंडवं आसियसंमज्जियोवलित्तं सुगंधवरगंधियंट 15 पंचण्णपुष्फपुंजोवयार-कलियं कालागरु-पवर-कुंदुरुक्क-तुरुक्क जाव गंधवट्टिभूयं मंचाइमंचकलियंदा र करेह। करित्ता वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं पत्तेयं पत्तेयं नामंकियाइं आसणाइड 15 अत्थुय-पच्चत्थुयाइं रएह, रयइत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।' ते वि जाव पच्चप्पिणंति। २ सूत्र ११0 : द्रुपद राजा ने पुनः अपने सेवकों को बुलाकर कहा “देवानुप्रियो ! स्वयंवर मण्डप डी र में जाकर जल का छिड़काव करो, झाडू लगवाओ, लिपाई करवाओ और श्रेष्ठ सुगंधित द्रव्यों से टा 15 सुगंधित करो। पंचरंगे फूलों से उसे आच्छादित करवा दो। कृष्ण-अगर-श्रेष्ठ कुंदुरुक्क और तुरुष्क दी र (लोबान) आदि की धूप से गंध-वाटिका समान अत्यन्त सुगंधित बनवा दो। उसके भीतर मंच लगवाड र दो और उन पर वासुदेव आदि हजारों राजाओं के नामों से अंकित अलग-अलग आसन सफेद 21 15 वस्त्रों से ढकवा कर लगवा दो। ये सब कार्य सम्पन्न कर मुझे सूचित करो।" सेवकों ने कार्य सम्पन्न ट र कर राजा को सूचित कर दिया। 5 110. King Drupad once again called his servants and instructed, “Beloved a 15 of gods! Hurry up and get the outer assembly hall cleaned, anointed and 15 (216) JNĀTĀ DHARMA KATHÄNGA SÜTRA EiAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फज्ज्ज्ज्ज सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २१७ ) sprinkled with good fragrant water. Decorate it with enchanting, fragrant and multicoloured flowers. Burn a variety of incenses including KrishnaAgar, best Kunduruk and Turushk to make it redolent and pleasant like a chamber of perfumes. Erect platforms inside it and install chairs with white covers and bearing names of Krishna Vasudev and thousands of other kings. After making all these arrangements report back to me." The servants did as told and reported back. अतिथि सत्कार सूत्र १११ : तए णं वासदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा कल्लं पाउप्पभायाए पहाया जाव विभूसिया हथखंधवरगया सकोरंट मल्ल दामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं हय-गज जाव परिवुडा सव्विड्डीए जाव रवेणं जेणेव सयंवरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अणुपविसंति, अणुपविसित्ता पत्तेयं पत्तेयं नामंकिएसु आसणेसु निसीयंति, दोवई रायवरकण्णं पडवालेमाणा चिट्ठति । सूत्र १११ : दूसरे दिन प्रातः काल वासुदेव आदि हजारों राजा स्नानादि से निवृत्त हो तैयार होकर हाथियों पर सवार हो फूलों की माला व छत्र धारण किये अपने पूर्ण वैभव सहित सैन्य-सज्जा तथा गाजे-बाजे के साथ स्वयंवर मण्डप में पहुँचे मण्डप में प्रवेश कर अपना-अपना स्थान ग्रहण किया और राजकुमारी द्रौपदी की प्रतीक्षा करने लगे । GREETING THE GUESTS 111. Next morning Krishna Vasudev and the other kings got ready after bathing and dressing up and came to the Svayamvar pavilion riding elephants with canopies made up of garlands of Korant flowers, plying exquisite white whisks, and surrounded by armies, with all their regalia and pomp and show. After arriving, they took their allotted seats and waited for the arrival of the princess. सूत्र ११२ : तए णं से दुवए राया कल्लं पहाए जाव विभूसिए हथिखंधवर गए सकोरंटमल्लदामेणं हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडे महया ( भडचडकर-रह-परिकरविंदपरिक्खित्ते कंपिल्लपुरं मज्झमज्झेणं निग्गच्छ, निग्गच्छित्ता जेणेव सयंवरमंडवे, जेणेव वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तेसिं वासुदेवपामुक्खाणं करयल जाव बद्धावेत्ता कण्हस्स वासुदेवस्स सेयवरचामरं गहाय उववीयमाणे उववीयमाणे चिट्ठ | सूत्र ११२ : प्रातःकाल राजा द्रुपद भी तैयार हो वैसी ही सैन्य-सज्जा व वैभव सहित हाथी पर बैठकर चतुरंगिणी सेना के साथ (सू. १०९ ) कांपिल्यपुर से निकल कर स्वयंवर मण्डप में आया । CHAPTER - 16 : AMARKANKA फ ( 217 ) Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ P (२१८ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 वहाँ पहले से उपस्थित वासुदेव आदि राजाओं के निकट गया और हाथ जोड़ आदरपूर्वक उनका द र अभिनन्दन किया। फिर कृष्ण वासुदेव पर श्रेष्ठ चामर डुलाने लगा। ए 112. In the morning, King Drupad also got ready and displaying his el grandeur and the army he also came out of Kampilyapur city riding an elephant (as in para 109). He entered the Svayamvar pavilion, approached Krishna Vasudev and the other kings, and joining his palms he extended his greetings with due respect. After that, he started fanning Krishna Vasudev with exquisite whisks. __सूत्र ११३ : तए णं सा दोवई रायवरकन्ना कल्लं पाउप्पभायाए जेणेव मज्जणघरे तेणेव से उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता पहाया जाव सुद्धप्पावेसाइंद मंगल्लाइं वत्थाई पवर-परिहिया जिणपडिमाणं अच्चणं करेइ, करित्ता जेणेव अंतेउरे तेणेवडा उवागच्छइ। तए णं तं दोवइं रायवरकन्नं अंतेउरियाओ सव्वालंकारविभूसियं करेंति, किं दी र ते? वरपायत्तणेउर जाव चेडिया-चक्कावाल-मयहरग-विंदपरिक्खत्ता अंतेउरओ पडिणिक्खमइ, SI र पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किड्डावियाए लेहियाए सद्धिं चाउग्घंटं आसरहं दुरूहइ। 2 सूत्र ११३ : उधर राजकुमारी द्रौपदी प्रभात होने पर स्नानागार में गई और स्नान करके उसने डा र शुद्ध और सभा में जाने योग्य माँगलिक व उत्तम वस्त्र पहने। फिर जिन प्रतिमाओं का पूजन अर्चना 15 किया (सम्पूर्ण वर्णन रायप्रश्नीय सूत्र के सूर्याभ देव वर्णन के अनुसार) और अन्तःपुर में लौट गई। दी 2 वहाँ अन्तःपुर में रही कुशल चेटका-महिलाओं आदि ने राजकुमारी द्रौपदी को सांगोपांग नूपुर र आदि विविध आभूषणों से अलंकृत कर दिया। फिर वह अनेक दासियों से घिर कर अन्तःपुर से टा बाहर निकली और बाहरी सभा में आई जहाँ चार घण्टाओं वाला रथ तैयार खडा था। अपनी टी र क्रीड़ा-धात्री तथा लेखिका दासी के साथ वह रथ पर आरूढ़ हो गई। 113. In the morning Princess Draupadi went into her bathroom and a dressed herself in white and auspicious apparel suitable for the king's assembly. After this, she worshiped the Jin images (as mentioned in c Raipaseniya Sutra with the description of Suryaabh god) and returned to her room. There the expert beauticians of the palace embellished her with Nupur and other ornaments, from head to feet. She left her room and surrounded by her maid servants came to the outer hall. With her Krida-Dhatri (playing nurse-maid) and scribe-maid she boarded a four-bell chariot. सूत्र ११४ : तए णं धद्वज्जुण्णे कुमारे दोवईए कण्णाए सारत्थं करेइ। तए णं सा दोवईड रायवरकण्णा कंपिल्लपुरं नयरं मझंमज्झेणं जेणेव सयंवरमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SÜTRA JI EMAL MALINDINOMIALA 2 (218) Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्‍ सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २१९ ) रहं ठवेइ, ठवित्ता रहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता किड्डावियाए लेहियाए य सद्धिं सयंवरमंडवं अणुपविसइ, करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु तेसिं वासुदेवपामुक्खाणं बहूणं रायवरसहस्साणं पणामं करेइ । सूत्र ११४ : कुमार धृष्टद्युम्न द्रौपदी के इस रथ के सारथी बने । राजकुमारी द्रौपदी कांपिल्यपुर नगर के बीच से होकर स्वयंवर मण्डप की ओर गई। वहाँ रथ रोका गया और द्रौपदी नीचे उतरी। अपनी क्रीड़ा धाय और दासियों के साथ उसने स्वयंवर मण्डप में प्रवेश किया और दोनों हाथ जोड़ कर वहाँ उपस्थित वासुदेव आदि राजाओं को यथा विधि प्रणाम किया । 114. Prince Dhrishtadyumn became the driver of her chariot. Passing through the streets of Kampilyapur city Draupadi came to the Svayamvar pavilion. The chariot was stopped there and Draupadi got down. She entered the pavilion with her Krida-Dhatri and maids and joining her palms she conveyed her formal respectful greetings to Krishna Vasudev and other kings. सूत्र ११५: तए णं सा दोवई रायवरकन्ना एगं महं सिरिदामगंडं, किं ते? पाइल-मल्लिय-चंपय जाव सत्तच्छयाईहिं गंधद्धणिं मुयंतं परमसुहफासं दरिसणिज्जं गिण्हइ । सूत्र ११५ : कुमारी द्रौपदी ने फूल मालाओं का एक बड़ा गजरा हाथों में उठाया । यह गजरा पाटल, मल्लिका, चम्पक, सप्तपर्ण आदि फूलों से गूंथा हुआ था, उसमें से सुगंध निकल रही थी, उसका स्पर्श सुखद था और वह दर्शनीय था । 115. Princess Draupadi picked up a thick entwined garland of flowers. This garland was made up of Patal, Mallika, Champak, Saptparn, and other flowers. It was fragrant, soft and beautiful. राजाओं का परिचय सूत्र ११६ : तए णं सा किड्डाविया सुरूवा जाव वामहत्थेणं चिल्लगं दप्पणं गहेऊण सललियं दप्पणसंकेतबिंबसंदंसिए य से दाहिणेणं हत्थेणं दरिसिए पवररायसी । फुड - विसय-विसुद्ध - रिभिय-गंभीर - महुर- भणिया सा तेसिं सव्वेसिं पत्थिवाणं अम्मापिऊणं वंस- सत्त- सामत्थ-गोत्तविक्कंति-कंति-बहुविहआगम-माहप्प-रूव- जोव्वणगुण- लावण्ण - कुल-सील - जाणिया कित्तणं करे | सूत्र ११६ : द्रौपदी की क्रीड़ा-धात्री ने अपने बायें हाथ में एक चमकता हुआ दर्पण लिया। उस दर्पण में जिस राजा का प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ता उस श्रेष्ठ सिंह के समान राजा को अपने दाहिने हाथ से वह द्रौपदी को दिखलाने लगी। साथ ही स्फुट-स्पष्ट विशद, विशुद्ध, लय युक्त, गम्भीर और मधुर वचनों में उन राजाओं के मातृ एवं पितृ वंशों, सत्त्व (शक्ति) सामर्थ्य, गोत्र, पराक्रम, कान्ति, शास्त्र ज्ञान; विस्तृत ज्ञान, महात्म्य, रूप, यौवन, गुण, लावण्य, कुल शील आदि को जानकर उनका विवरण प्रस्तुत करने लगी । CHAPTER - 16 : AMARKANKA For Private Personal Use Only ( 219 ) 6 ச Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फुज्ज ( २२० ) THE INTRODUCTION OF KINGS 116. The Krida-Dhatri of Draupadi took a shining mirror in her left hand. She pointed with her right hand at the gorgeous lion-like king whose reflection Draupadi saw in the mirror. At the same time she enquired about and portrayed his lineage, power, strength, clan name, valor, brilliance, knowledge of the scriptures, general knowledge, greatness, physical appearance, youth, virtues, charm, family virtues etc. in clear, loud, pure, accentuated, deep and sweet voice. 5 सूत्र ११७ : पढमं जाव वहिपुंगवाणं दसदसारवरवीरपुरिसाणं तेलोक्कबलवगाणं सत्तु-सय-सहस्स-माणावमद्दगाणं भवसिद्धिय-पवरपुंडरीयाणं चिल्लगाणं बल-वीरिया-रूवजोव्वण- गुण - लावण्णकित्तिया कित्तणं करेइ । ततो पुणो उग्गसेणमाईयाणं जायवाणं । भाइ य'सोहग्गरूवकलिए वरेहि वरपुरिसगंधहत्थीणं जो हु ते होइ हियय-दइयो ।' ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र सूत्र ११७ : सर्वप्रथम उसने वृष्णियों (श्रीकृष्ण के कुल वंश) में मुख्य दस दशार वीरों का वर्णन किया जो तीनों लोकों में सबसे बलवान थे, लाखों शत्रुओं का मान मर्दन करने वाले थे, भव्य जीवों में श्रेष्ठ श्वेत कमल के समान शोभित थे और तेज से देदीप्यमान थे । गुण कीर्तन करने वाली उस धात्री ने इसके बाद उग्रसेन आदि यादवों का वर्णन किया और कहा - " ये यादव सौभाग्य और रूप से सुशोभित हैं और श्रेष्ठ पुरुषों में गंधहस्ती के समान हैं। इनमें से कोई तेरे हृदय को प्रिय हो तो उसका वरण कर ।" 117. First of all she described the ten Dashar braves, the leaders among the Vrishnis (Krishna Vasudev's clan), who were the strongest in the three realms, the conquerors of millions of foes, like white lotuses among the noble souls, and radiant with aura. After these the bard-like maid described the Yadavs including Ugrasen and said, "These Yadavs are endowed with good fortune and beauty, and like Gandh-hasti (the king elephant emanating fragrance of the rut-fluid) among the virtuous. If you are drawn toward any one of these you may choose him." पाँच पति वरण सूत्र ११८ : तए णं सा दोवई रायवरकन्नगा बहूणं रायवरसहस्साणं मज्झमज्झेणं समतिच्छमाणी समतिच्छमाणी पुव्वकयनियाणेणं चोइज्जमाणी चोइज्जमाणी जेणेव पंच पंडवा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ते पंच पंडवे तेणं दसद्धवण्णेणं कुसुमदामेणं आवेढियपरिवेढियं करे, करित्ता एवं वयासी - 'एए णं मए पंच पंडवा वरिया । ' (220) सूत्र ११८ : राजकुमारी द्रौपदी इस प्रकार अनेक सहस्र श्रेष्ठ राजाओं के बीच होकर उनका अतिक्रमण करती-करती पूर्वकृत निदान ( नियाणा) से प्रेरित हो वहाँ पहुँची जहाँ पाँच पाण्डव बैठे JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA फ्र Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलहवाँ अध्ययन : अमरकका ( २२१ ) ) थे। वहाँ उसने उन पाँचों पाण्डवों को अपने हाथ में रहे पंच रंगे फूलों के गजरे से आवेष्टित कर दिया और कहा - " मैंने इन पाँचों पाण्डवों का वरण किया ।" CHOOSING FIVE HUSBANDS 118. Rejecting thousands of illustrious kings in her parade for selection, guided by the ambition from her earlier birth, princess Draupadi arrived at the place where the five Pandav brothers were sitting. She encircled all the five brothers with the large multi-coloured garland in her hand and said, "I choose all these five Pandav brothers." सूत्र ११९ : तए णं तेसिं वासुदेवपामोक्खाणं बहूणि रायसहस्साणि महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणा उग्घोसेमाणा एवं वयंति - सुवरियं खलु भो ! दोवईए रायवरकन्नाए ति कट्टु सयंवरमंडवाओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता जेणेव सया सया आवासा तेणेव उवागच्छंति । सूत्र ११९ : इस पर वहाँ उपस्थित वासुदेव आदि सहस्रों राजाओं ने उच्च स्वर में बार-बार उद्घोष किया - " अहो ! राजकुमारी द्रौपदी ने श्रेष्ठ वरण किया !” इस उद्घोष के बाद बाकी सभी राजा स्वयंवर मण्डप से बाहर निकले और अपने-अपने आवासों में चले गये । 119. Krishna Vasudev and other thousands of kings hailed the princess loudly, "Indeed! princess Draupadi has made the best selection." And the assembly dispersed. The kings left the pavilion and proceeded to their camps. सूत्र १२० : तए णं धट्टजुण्णे कुमारे पंच पंडवे दोवई रायवरकण्णं चाउग्घंटं आसरहं दुरूहइ, दुरूहित्ता कंपिल्लपुरं मज्झमझेणं जाव सयं भवणं अणुपविस | सूत्र १२० : कुमार धृष्टद्युम्न ने पाँचों पाण्डवों और राजकुमारी द्रौपदी को चार घण्टाओं वाले रथ पर बिठाया और कांपिल्यपुर के बीच से चलते हुए अपने राजभवन में प्रवेश किया । 120. Prince Dhrishtadyumn drove Draupadi and the Pandavs in the fourO bell chariot, through the streets of Kampilyapur city, to the royal palace. विवाह समारोह सूत्र १२१ : तए णं दुवए राया पंच पंडवे दोवई रायवरकण्णं पट्टयं दुरूहेइ, दुरूहित्ता सेयापीएहिं कलसेहिं मज्जावेइ, मज्जावित्ता अग्गिहोमं करावेइ, पंचन्हं पंडवाणं दोवईए पाणिग्गहणं करावे | सूत्र १२१ : राजा द्रुपद ने पाँचों पाण्डवों तथा राजकुमारी द्रौपदी को पाट पर बिठाया । सोने-चाँदी के कलशों में भरे पानी से स्नान करवाया और तब अग्नि होम करवा कर उनका पाणिग्रहण करवा दिया। CHAPTER-16: AMARKANKA For Private Personal Use Only (221) மதி Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्र TOUTATI र ( २२२ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र दा 5 MARRIAGE CEREMONY २ 121. King Drupad made the five Pandavs and Draupadi sit on a platform l R and got the marriage rituals performed by anointing them with water poured Ş 5 from gold and silver urns and putting offerings into the sacred fire. र सूत्र १२२ : तए णं से दुवए राया दोवईए रायवरकण्णाए इमं एयारूवं पीइदाणं दलयइ, तं र जहा-अट्ठ हिरण्णकोडीओ जाव अट्ट पेसणकारीओ दासचेडीओ, अण्णं च विपुलं धण-कणग रे जाव दलयइ। 15 तए णं से दुवए राया ताई वासुदेवपामोक्खाइं विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं ट 12 पुष्फ-वत्थ गंध जाव पडिविसज्जइ। ___ सूत्र १२२ : फिर राजा द्रुपद ने द्रौपदी को विपुल प्रीतिदान दिया-जैसे आठ करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ द 2 आदि, आठ प्रेषणकारिणी (आने-जाने का काम करने वाली) दासियाँ आदि, अन्य बहुत-सा धन, ड र कनक वस्त्र अलंकार आदि। र अन्त में राजा द्रुपद ने वासुदेव आदि सभी राजाओं को भोजन कराया और यथाविधि सत्कार र सन्मान कर विदा किया। 5 122. After the marriage ceremony King Drupad gave abundant valuable P gifts to Draupadi. These included eighty million gold (coins), eight errand-S maids, and great wealth including cash, gold, and other valuables. And finally King Drupad invited all the guests to a feast and bid them farewell with due honour and courtesy. 15 सूत्र १२३ : तए णं से पंडू राया तेसिं वासुदेवपामोक्खाणं बहुणं रायसहस्साणं करयल टा र जाव एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! हत्थिणाउरे नयरे पंचण्हं पंडवाणं दोवइए य देवीए ड कल्लाणकारे भविस्सइ, तं तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! ममं अणुगिण्हमाणा अकालपरिहीणं चेव टे समोसरह। __सूत्र १२३ : राजा पाण्डु ने वासुदेव आदि मुख्य राजाओं का हाथ जोड़कर यथाविधि अभिनन्दन किया और कहा-“देवानुप्रियो ! हस्तिनापुर नगर में पाँचों. पाण्डवों और द्रौपदी का ड र कल्याण-करण महोत्सव (आशीर्वाद समारोह) होगा। अतः देवानुप्रियो ! आप सब मुझ पर अनुग्रह 5 कर यथासमय शीघ्र पधारना। ___123. Joining his palms King Pandu greeted Krishna Vasudev and thes other kings and said, “Beloved of gods! A reception and blessing ceremony for the Pandavs and Draupadi will be held at Hastinapur. As such, please honour me by arriving at your earliest and in time. 5 (222) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA 2 Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण UUUUUUUUUUUUUUUDD PP सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २२३ ) Sl 5 सूत्र १२४ : तए णं वासुदेवपामोक्खा पत्तेयं २ जाव जेणएव हथिणाउरे नयरे तेणेव ड़ा र पहारेत्थ गमणाए। सूत्र १२४ : वासुदेव आदि सभी राजा अलग-अलग हस्तिनापुर नगर जाने को तैयार हो गये। SI __124. Krishna Vasudev and all the other kings agreed to come to cal Hastinapur. ___ सूत्र १२५ : तए णं पंडुराया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सदावित्ता एवं वयासी-'गच्छह णं टा 5 तुब्भे देवाणुप्पिया ! हत्थिणाउरे पंचण्ह पंडवाणं पंच पासायवडिंसए कारेह, अब्भुग्गयमूसियं डा वण्णओ जाव पडिरूवे। तए णं ते कोडुबियपुरिसा पडिसुणेति जाव करावेंति। सूत्र १२५ : राजा पाण्डु ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों-सेवकों को बुलाकर आदेश दिया-डा र “देवानुप्रियो ! तुम हस्तिनापुर जाओ और पाँचों पाण्डवों के लिए पाँच श्रेष्ठ भवन बनवाओ जो दी 15 सात तल्ले ऊँचे हों और अत्यन्त मनोहर हों।" सेवकों ने राजा की आज्ञा विनयपूर्वक स्वीकार की डा र और जाकर उसी प्रकार भवन बनवाए। 5 125. King Pandu called his servants and said, “Beloved of gods! Proceed to 5 Hastinapur and get five houses constructed for the five Pandavs. These si houses should be exquisite and beautiful and having seven storeys each.” They servants humbly accepted the order, went to Hastinapur, and got the houses 15 constructed. र हस्तिनापुर में समारोह र सूत्र १२६ : तए णं से पंडुए पंचहिं पंडवेहिं दोवईए देवीए सद्धिं हय-गय-संपरिबुडे टा 5 कंपिल्लपुराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव हत्थिणाउरे तेणेव उवागए। र सूत्र १२६ : राजा पाण्डु पाँचों पाण्डवों और द्रौपदी को साथ ले हाथी-घोड़े आदि अपनी सेना 2 15 सहित कांपिल्यपुर से रवाना हो हस्तिनापुर पहुंचे। 5 RECEPTION IN HASTINAPUR 2 126. King Pandu left Kampilyapur and came to Hastinapur with five र Pandavs, Draupadi, and his army. सूत्र १२७ : तए णं से पंडुराया तेसिं वासुदेवपामोक्खाणं आगमणं जाणित्ता कोडुंबियपुरिसे भी ए सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं व्रयासी-'गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! हत्थिणाउरस्स नयरस्स बहिया दी र वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं आवासे कारेह अणेगखंभसयसण्णिविटुं' तहेव जावडा र पच्चप्पिणंति। C CHAPTER-16 : AMARKANKA (223) र Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मज्ज P ( २२४ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा सूत्र १२७ : राजा पाण्डु ने वासुदेव आदि राजाओं के आने की सूचना पाकर अपने सेवकों को द र बुलाया और कहा-“देवानुप्रियो ! जाकर हस्तिनापुर नगर के बाहर वासुदेव आदि राजाओं के लिए ड र आवास तैयार कराओ जो अनेक स्तम्भों आदि से युक्त सुरम्य हों, (पूर्व सम)।'' सेवकों ने राजाज्ञा । 5 का पालन कर सूचना दी। 127. When King Pandu got the news of arrival of Krishna Vasudev and S other kings he called his servants and said, “Go and get beautiful houses with numerous pillars constructed outside Hastinapur for Krishna Vasudev 15 and other kings." The servants did as told and reported back. सूत्र १२८ : तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा जेणेव हत्थिणाउरे नयरे तेणेव ड उवागच्छति। र तए णं से पंडुराया तेसिं वासुदेवपामोक्खाणं आगमणं जाणित्ता हट्टतुढे ण्हाए कयबलिकम्मे ड 5 जहा दुपए जाव जहारिहं आवासे दलयइ। र तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा जेणेव सयाइं सयाइं आवासाइं तेणेव 15 उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तहेव जाव विहरंति। र सूत्र १२८ : तब वासुदेव आदि अनेक राजा हस्तिनापुर आ पहुँचे। राजा पाण्डु उनके आगमन S र की सूचना पाकर प्रसन्न व संतुष्ट हुए। वे स्नानादि कर तैयार हुए और आगुन्तकों का अभिवादन । 15 सत्कार कर उन्हें उचित आवास प्रदान किये। वे सभी राजा अपने-अपने आवास में गये और द 2 आनन्द से समय बिताने लगे। (वर्णन राजा द्रुपद के समान) 128. When King Drupad got the information about the arrival of Krishna 2 Vasudev and other kings he was pleased and contented. He got ready after 15 his bath etc., went out and duly extended traditional welcome and sent them to independent dwellings. All these guests started enjoying their stay. (samec as in case of king Drupad). 5 सूत्र १२९ : तए णं से पंडुराया हत्थिणाउरं नयरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ताटा 15 कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! विउलं असणं पाणंद र खाइम साइमं' तहेव जाव उवणेति। तए णं वासुदेवपामोक्खा बहवे राया ण्हाया कयबलिकम्मा तं विपुलं असणं पाणं खाइमंदी र साइमं तहेव जाव विहरंति। सूत्र १२९ : राजा पाण्डु तब हस्तिनापुर लौटे और अपने सेवकों को बुलाकर आदेश दिया-“हे टा 5 देवानुप्रियो ! अशन-पान आदि विपुल भोजन सामग्री तैयार कराओ और अतिथियों के लिए लेडी जाओ।" सेवकों ने राजाज्ञा का पालन किया। अतिथि राजाओं ने भोजन किया और मनोरंजन र करते समय बिताने लगे। (पूर्व समान) JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SÜTRA Fennnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn 15 ( 224) Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Fuuurrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २२५ ) डा 15 129. King Pandu returned to Hastinapur, called his servants and said, ट “Beloved of gods! Arrange for liberal quantity of food and take it to the C » guests. The servants did as told. The royal guests took their meals and SI 2 resumed their enjoyments. (as detailed before) सूत्र १३0 : तए णं पंडुराया ते पंच पंडवे दोवइं च देविं पट्टयं दुरूहेइ, दुरूहित्ताद र सेया-पीएहिं कलसेहिं पहावेंति, पहावित्ता कल्लाणकारं करेइ, करित्ता ते वासुदेवपामोक्खा बहवे ह 15 रायसहस्से विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुष्फवत्थेणं सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारित्ता टा र सम्माणित्ता जाव पडिविसज्जेइ। तए णं ते वासुदेवपामोक्खा जाव पडिगया। ___ सूत्र १३० : राजा पाण्डु ने पाँचों पाण्डवों तथा द्रौपदी को पाट पर बिठाया और सोने-चाँदी के द र कलशों में पानी भरकर स्नान करवाया। फिर कल्याण-कर उत्सव किया। उत्सव के पश्चात् सभी ड र अतिथियों को भरपेट अशन-पान आदि भोजन करवाया और पुष्पों-वस्त्रों आदि से सत्कार सन्मान ? 5 कर विदा किया। वासुदेव आदि सभी राजा अपने-अपने राज्यों व नगरों को लौट गये। _____130. King Pandu made the five Pandavs and Draupadi sit on a platform S B and got the blessing ceremony performed after formally anointing them with a water poured from gold and silver urns. And finally King Pandu invited all the guests to a feast and bid them farewell with due honour and courtesy. 5 The guests returned back to their respective states and cities. सूत्र १३१ : तए णं ते पंच पंडवा दोवईए देवीए सद्धिं अंतो अंतेउरपरियालसद्धिं 2 5 कल्लाकल्लिं वारंवारेणं ओरालाई भोगभोगाइं जाव (भुंजमाणा) विहरंति। र सूत्र १३१ : सभी समारोह सम्पन्न हो जाने के बाद पाँचों पाण्डव द्रौपदी के साथ अन्तःपुर ट] 5 परिवार में बारी-बारी से एक-एक दिन अनुक्रम से उदार सांसारिक काम-भोग का आनन्द लेते डा र समय बिताने लगे। 131. After all the functions were over the five Pandavs started enjoying 5 the mundane pleasures of marital life with Draupadi, one day each in a cyclic 5 sequence in the well equipped and staffed personal quarters of their s 2 respective palaces.. 5 सूत्र १३२ : तए णं से पंडुराया अन्नया कयाई पंचहिं पंडवेहिं कोंतीए देवीए दोवईए देवीए द र य सद्धिं अंतो अंतेउरपरियाल सद्धिं संपरिवुडे सीहासणवरगए यावि होत्था। __ सूत्र १३२ : एक बार राजा पाण्डु पाँचों पाण्डवों, कुन्ती देवी और द्रौपदी देवी के साथ र अन्तःपुर परिवार से घिरे श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठे थे। 5 132. One day King Pandu was sitting on a throne in his personal quarters ट surrounded by the five Pandavs, queen Kunti, and Draupadi. CHAPTER-16 : AMARKANKA (225) टा पत Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्र जम ( २२६ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा रनारद आगमन सूत्र १३३ : इमं च णं कच्छुल्लणारए दंसणेणं अइभद्दए विणीए अंतो अंतो य कलुसहियए SI मज्झत्थोवत्थिए य अल्लीण-सोम-पियदंसणे सुरूवे अमइल-सगलपरिहिए कालमियचम्म-टी 5 उत्तरासंगरइयवत्थे दंडकमंडलुहत्थे जडा-मउड-दित्तसिरए जन्नोवइय-गणेत्तिय- मुंजमेहलवागलधरे डा हत्थकयकच्छभीए पियगंधव्वे धरणिगोयरप्पहाणे संचरणावरणिओवयणउप्पयणि-लेसणीसु यड संकामणि-अभिओगि-पण्णत्ति-गमणी-थंभीसु य बहुसु विज्जाहरीसु विज्जासु विस्सुयजसे इढे टा रामस्स य केसवस्स य पज्जुन्न-पईव-संब-अनिरुद्ध-निसढ-उम्मुय-सारण-गय-सुमुह-दुम्मुहाईण द जायवाणं अधुट्ठाणय कुमारकोडीणं हिययदइए संथवए कलह-जुद्ध-कोऊहलप्पिए भंडणाभिलासी ड बहुसु य समरेसु य संपराएसु य दंसणरए समंतओ कलहं सदक्खिणं अणुगवेसमाणे ट असमाहिकरे दसार-वरवीरपुरिस-तिलोक्कबलवगाइं आमंतेऊण तं भगवतिं पक्कमणिंद 5 गगण-गमण-दच्छं उप्पइओ गगणमभिलंघयंतो गामा-गर-नगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टण- 5 र संवाह-सहस्समंडियं थिमियमेइणीतलं निब्भरजणपदं वसुहं ओलोइंतो रम्मं हथिणाउरं उवागए टा 5 पंडुरायभवणंसि अइवेगेण समोवइए। र सूत्र १३३ : तभी कच्छुल्ल नामक नारद वहाँ आ पहुँचे। वे देखने में अत्यन्त भद्र और विनीत र जान पड़ते थे, किन्तु भीतर से केलिप्रिय होने के कारण उनका मन कलुषित था। वे मध्यस्थवृत्ति के ट 5थे तथा आश्रित जनों को उनका दर्शन प्रिय लगता था। वे दीखने में सुरूप थे तथा उन्होंने उज्ज्वल द शकल-वस्त्र (अखण्ड वस्त्र) पहन रखा था। उत्तरासंग के रूप में वक्ष पर काला मृग-चर्म धारण किया S र हुआ था। हाथ में दण्ड और कमण्डल था। उनका मस्तक जटा रूपी मुकुट से शोभित था। आभूषण के ट रूप में उन्होंने यज्ञोपवीत, रुद्राक्ष की माला, पूँज की कटिमेखला पहन रखे थे तथा वल्कल वस्त्र द 5 धारण किये हुए थे। उनके हाथ में कच्छपी नाम की वीणा थी और वे संगीत प्रिय थे। वे पृथ्वी पर ड र बहुत कम चलते थे। संचरणी (चलने की), आवरणी (ढंकने की), अवतरणी (नीचे उतरने की), ड र उत्पतनी (ऊँचे उड़ने की) श्लेषणी (चिपकाने वाली), संक्रामणी (पर-शरीर-प्रवेश), अभियोगिनी ट 15 (सोना-चाँदी बनाना), प्रज्ञप्ति (परोक्ष वृत्तान्त बताना), गमनी (दुर्गम स्थान में गमन), स्तंभिनी (स्तब्ध ८ र करना) आदि अनेक विद्याधरों वाली विद्याओं में प्रवीण होने के कारण उनकी कीर्ति का बहुत प्रसार ड र था। वे बलदेव और वासुदेव के प्रेमपात्र थे। वे प्रद्युम्न, प्रदीप, सांब, अनिरुद्ध, निषध, उन्मुख, रसारण, गजसुकुमाल, सुमुख, दुर्मुख आदि साढ़े तीन कोटि यादव कुमारों के प्रिय और प्रशंसा पात्र ट 15थे। उन्हें कलह, युद्ध और कोतूहल प्रिय थे। वे भांड के समान बोलने के अभिलाषी थे। अनेक समर ड २ व सम्पराय (युद्ध विशेष) देखने के रसिक थे। चारों ओर दक्षिणा देकर (अथवा चतुरता से) कलह S र की खोज करते थे और कलह करवा कर उद्विग्नता उत्पन्न कराते थे। दशार वीरों के चित्त भ्रम का 5 कारण बने रहने वाले वे नारद गगन में गमन करने की शक्ति प्रदायिनी भगवती प्रक्रमणी विद्या का ट 5 आह्वान करके आकाश में उड़ते और हजारों ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, मण्डव द्रोणमुख, 5 र पट्टन और संबाधों से शोभित अनेक लोगों से व्याप्त धरती का अवलोकन करते-करते रमणीय ड र हस्तिनापुर में आये और द्रुत गति से राजा पाण्डु के महल में उतरे। 15 (226) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA 卐Annnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IP सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका (726) S 5 ARRIVAL OF NARAD 133. At that time the Narad (a class of divine sage) named Kacchul arrived there. He appeared to be very sober and humble but his love for frolic made him crooked. He followed the middle path and his followers loved his 5 presence. He had a charming personality and was wearing a single length of cloth wrapped around his body. His torso was covered by a dark deer-skin. He cl carried a gourd-bowl and a stick in his hands. His long hair, spiraled around 9 in a lump over his head, appeared like a crown. As adornments he had a 5 Yajnopaveet (the loosely entwined cotton string generally worn across the 5 body by Brahmans), a string of Rudraksh beads, a girdle of coconut fibre, and mats made of bark-fibres. He carried the Kacchapi Veena (a Sitar-like > stringed instrument) in his hand because he loved music. He seldom walked S B on the ground. 5 He was very famous for the numerous divine powers he possessed; these included—Sancharani (transporting), Avarani (camouflaging), Avatarni S (descending), Utpatani (ascending and flying), Shleshni (attaching), S Sankramani (entering other bodies), Abhiyogini (making precious metals), a 5 Prajnapti (telepathy), Gamani (going to impenetrable places), Stambhini 15 (making things immobile), and many others. Baldev and Krishna loved him. Thirty five million Yadav princes 5 including Pradyumna, Pradeep, Samb, Aniruddh, Nishadh, Unmukh, Saran, a 5 Gajasukumal, Sumukh, and Durmukh liked and praised him. He loved conflict, war, and adventure. He desired to speak like a clown. He enjoyed S watching battles and other conflicts. He cunningly looked around for the ] scope of dispute and acted as a catalyst to increase tension and trigger 5 conflict. He was the source of delusion among the Dashar braves. Invoking the divine Prakramani power that enabled flying, Narad took off B and while flying enjoyed the panoramic view of the earth dotted with thousands of villages, quarries, cities, kraals, ghettos, boroughs, river-port cities, port cities, and hill-stations crowded with multitudes of people. came to Hastinapur and landed in the palace of King Pandu. __ सूत्र १३४ : तए णं से पंडुराया कच्छुल्लनारयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता पंचहिं पंडवेहिट र कुंतीए य देवीए सद्धिं आसणाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्टित्ता कच्छुल्लनारयं सत्तट्ठपयाई पच्चुग्गच्छइ, डा 15 पच्चुग्गच्छित्ता आसणेणं उवणिमंतेइ। PTER-16 : AMARKANKA ( 227) vrvirrurrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२८ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा सूत्र १३४ : नारद को आता देख के पाण्डु राजा पाँचों पाण्डवों तथा कुंती देवी सहित अपने ट 15 आसन से उठ कर खड़े हुए और नारद के समक्ष सात-आठ कदम आगे बढ़े। फिर अर्घ्य (पुष्पादि) डा र पाद्य (सुगंधित जल चरण, प्रक्षालन के लिए) देकर बहुमूल्य आसन पर बैठने को आमन्त्रित किया। 5 134. When they saw Narad coming King Pandu, the five Pandavs, and ट queen Kunti all got up form their seats and stepped seven or eight steps » forward. They gave Narad the traditional welcome by offering flowers and Rwashing his feet and offered him an exquisite seat. सूत्र १३५ : तए णं से कच्छुल्लनारए उदगपरिफोसियाए दभोवरिपच्चत्थुयाए भिसियाए द र णिसीयइ, णिसीइत्ता पंडुरायं रज्जे जाव य रटे य अंतेउरे य कुसलोदंतं पुच्छइ। ___ तए णं से पंडुराया कोंति देवी पंच य पंडवा कच्छुल्लणारयं आढायंति जाव पज्जुवासंति। सूत्र १३५ : कच्छुल्ल नारद ने जल छिड़क कर स्थान शुद्धि की और उस पर अपना दर्भ आसन टी 5 बिछाकर बैठ गये। राजा पाण्डु के राज्य, परिवार अन्तःपुर आदि की कुशलक्षेम पूछी। राजा पाण्डु ने ड र कुंती देवी तथा पाँचों पाण्डवों सहित खड़े होकर नारद का आदर सत्कार किया और पूजा की। ____135. Kacchull Narad sprinkled water on the ground for purification, ड spread his grass mattress and sat down. He asked about well being of King Si Pandu, his family, his palace, and his state. King Pandu, queen Kunti and S the five Pandavs stood up to greet him with due honour and worshipped him. अमरकंका से क्षुब्ध नारद सूत्र १३६ : तए णं सा दोवई देवी कच्छुल्लनारयं अस्संजयं अविरय-ट 5 अप्पडिहय-अपच्चक्खायपाव-कम्मे त्ति कटु नो अग्घेण पज्जेण य आढाइ, नो परियाणइ, नो डा B अब्भुट्टेइ, नो पज्जुवासइ। 12 सूत्र १३६ : किन्तु द्रौपदी देवी ने नारद को असंयमी, अविरत तथा स्वकृत कृत्यों की र आलोचना और पापों का प्रत्याख्यान न करने वाला जानकर न तो उनका आदर किया और न ] 15 अनुमोदना की, वह न तो उनके आने पर खड़ी हुई और न पूजा की। B INSULT IRKS NARAD ___136. But considering him to be indisciplined, attached, and one who did दा > not engage in self-criticism or atonement for his deeds, Draupadi neither did Ç approve of him nor did she respect him. She neither stood up when he B arrived nor did she worship him. 5 सूत्र १३७ : तए णं तस्स कच्छुल्लणारयस्स इमेयारूवे अज्झथिए चिन्तिए पत्थिए मणोगए र संकप्पे समुप्पज्जित्था-'अहो णं दोवई देवी रूवेणं जाव लावण्णेण य पंचहिं पंडवेहिं अवथद्धा र (228) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA ] Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IGNS PO 21 Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग : २) aaina चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED नारद ऋषि का आगमन चित्र : २१ एक बार कच्छुल्ल नारद आकाशमार्ग से जाते हुए हस्तिनापुर के राजमहलों की छत पर आकर उतरे। ___ नारद ऋषि को आते देखकर पाण्डु राजा कुन्ती देवी तथा पाँचों पाण्डव उनके स्वागत के लिए सात-आठ कदम उठकर सामने आये। द्रौपदी देवी महल में एक ओर बैठी रही। नारद ऋषि ने समझा-"द्रौपदी देवी अपने रूप-यौवन व पाँच पाण्डवों की रानी होने के कारण अहंकार से गर्वित है, इसलिए मेरी अवहेलना तथा अपमान कर रही है। तो किसी प्रकार इसका दर्प भंग कर अनिष्ट करना चाहिए।" अपमान से कुपित हुए नारद प्रतिशोध की भावना से द्रौपदी देवी की तरफ देख रहे हैं। (सोलहवाँ अध्ययन) ARRIVAL OF SAGE NARAD ILLUSTRATION: 21 One day King Kacchul Narad came flying to Hastinapur and landed on the roof top of the palace. When they saw him coming King Pandu, the five Pandavs, and queen Kunti all stepped seven or eight paces forward to greet Narad. But considering him to be indisciplined and non-ascetic Draupadi did not get up to greet him. She remained sitting. Narad thought, “Oh! This Draupadi is filled with conceit for her beauty, youth and charm and also for being the wife of the five Pandavs. And so she does not respect or worship me. Therefore I will put her in a messy situation in order to teach her a lesson.” Driven by the feeling of vengeance Narad looks angrily at Draupadi. (CHAPTER - 16) orta PAN JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SÜTRA (PART-2) Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ज्ज्ज्ज् सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २२९ ) समाणी ममं नो आढाइ, जाव नो पज्जुवासइ । तं सेयं खलु मम दोवईए देवीए विप्पियं करित्त ' त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता पंडुयरायं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता उप्पयणिं विज्जं आवाहेइ, आवाहित्ता ताए उक्किट्ठाए जाव विज्जाहरगईए लवणसमुदं मज्झमज्झेणं पुरत्थाभिमुहे वीइवइउ पत्ते यावि हत्था | सूत्र १३७ : द्रौपदी का यह व्यवहार देख कच्छुल्ल नारद को इस प्रकार का अध्यवसाय व चिन्तित, प्रार्थित तथा मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ - “ अहो ! यह द्रौपदी देवी अपने रूप, यौवन और लावण्य पर तथा पाँचों पाण्डवों की विवाहित होने पर अभिमान करने लगी है। इसी कारण यह मेरा आदर, उपासना आदि नहीं करती है। अतः इसका कुछ अनिष्ट करना अच्छा होगा ।" यह विचार आने पर नारद ने राजा पाण्डु से विदा ली और उत्पतनी विद्या का आह्वान कर आकाश मार्ग द्वारा उत्कृष्ट विद्याधर गति से लवणसमुद्र के बीच होते हुए पूर्व दिशा की ओर प्रस्थान कर गये । 137. This behaviour of Draupadi forced Kacchull Narad to consider, worry, wish and think, "Oh! This Draupadi is filled with conceit for her beauty, youth and charm and also for being the wife of the five Pandavs. That is why she does not respect or worship me. As such, I should put her in a messy situation in order to teach her a lesson." He at once took leave of King Pandu and invoking the Utpatini power he proceeded east over the sea with divine speed. अमरकंका में आगमन सूत्र १३८ : तेणं कालेणं तेणं समएणं धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्धदाहिएद्ध-भरहवास अमरकंका नाम रायहाणी होत्था । तत्थ णं अमरकंकाए रायहाणीए पउमणाभे णामं राया होत्था, महया हिमवंत वण्णओ । तस्स णं पउमणाभस्स रण्णो सत्त देवीसयाइं ओरोहे होत्था । तस्स णं पउमणाभस्स रण्णो सुनाभे नामं पुत्ते जुवराया यावि होत्था । तए णं से पउमनाभे राया अंत अंतेउसि ओरोहसंपरिवुडे सिंहासनवरगए विहर | सूत्र १३८ : काल के उस भाग में धातकीखण्ड नामक द्वीप में पूर्व दिशा के दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र में अमरकंका नाम की राजधानी थी। वहाँ का राजा पद्मनाभ था जो हिमवन्त पर्वत के समान महान था । उसके अन्तःपुर में सात सौ रानियाँ थीं। उसके पुत्र व युवराज का नाम सुनाभ था। उस समय राजा पद्मनाभ अपने अन्तःपुर में रानियों के साथ सिंहासन पर बैठा था । ARRIVAL IN AMARKANKA 138. During that period of time there was a capital city named Amarkanka in the southern half of the eastern Bharat area in the Dhatkikhand continent. The king there was Padmanaabh who was as illustrious as the Himalayas. He had seven hundred queens. The name of his CHAPTER-16: AMARKANKA For Private Personal Use Only ( 229 ) फ Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज ( २३०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र दा 5 son was prince Sunabh. At that moment King Padmanaabh was in his a 5 private quarters and sitting on a throne with his queens. 2 सूत्र १३९ : तए णं से कच्छुल्लणारए जेणेव अमरकंका रायहाणी, जेणेव पउमनाभस्सडी 5 भवणे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पउमनाभस्स रन्नो भवणंसि झत्तिं वेगेणं समावइए। र तए णं से पउमणाभे राया कच्छुल्लं नारयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता आसणाओ अब्भुढेइ, ड र अब्भुट्टित्ता अग्घेणं जाव आसणेणं उवणिमंतेइ। र सूत्र १३९ : कच्छुल्ल नारद राजधानी अमरकंका में आये और शीघ्र वेग से राजा के महल में र उतरे। नारद को आता देख राजा पद्मनाभ आसन से उठा और यथाशीघ्र आकर सत्कार कर अर्घ्य 2 द्वारा पूजा की और आसन पर बैठने का आग्रह किया। ___139. Kacchull Narad came to Amarkanka with great speed and landed in ट 5 the palace of King Padmanaabh. When he saw Narad coming King Padmanaabh got up from his seat and stepped forward. He gave Narad the traditional welcome by offering flowers and washing his feet and, offered him a seat. सूत्र १४0 : ते णं से कच्छुल्लणारए उदयपरिफोसियाए दब्भोवरिपच्चत्थुयाए भिसियाए । र निसीयइ, जाव कुसलोदंतं आपुच्छइ। 5 सूत्र १४0 : नारद ने जल छिड़क कर स्थान शुद्धि की और अपना आसन बिछा कर बैठ गये। र और राजा से कुशल समाचार पूछने लगे। 140. Kacchull Narad sprinkled water on the ground for purification, spread his grass mattress and sat down. He asked about the King's well ç being. सूत्र १४१ : तए णं से पउमनाभे राया णियगओरोहे जायविम्हए कच्छुल्लणारयं एवं ट 5 वयासी-'तुमं देवाणुप्पिया ! बहूणि गामाणि जाव गेहाइं अणुपविससि, तं अत्थि याई ते कहिंचि ड ॥र देवाणुप्पिया एरिसए ओरोहे दिट्ठपुव्वे जारिसए णं मम ओरोहे? 15 सूत्र १४१ : अपनी रानियों के सौन्दर्य से प्रभावित दर्पाविष्ट (अंहकार में फूले) पद्मनाभ ने द र नारद से पूछा-“देवानुप्रिय ! आप तो अनेक ग्रामादि में जाते हैं और घरों में प्रवेश करते हैं, ड र कृपया बतायें कि आपने मेरे अन्तःपुर जैसा भी कोई अन्तःपुर कहीं देखा है ?" 15 141. Obsessed with the beauty of his queens and driven by his bloated ego डा 2 King Padmanaabh asked Kacchull Narad, "Beloved of gods! You wander around, go to numerous villages (etc.) and visit many a king (etc.). Tell me if you have ever come across any seraglio like mine?” Errrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrruuu (230) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SÜTRA A 卐innnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्‍ सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २३१ ) सूत्र १४२ : तए णं से कच्छुल्लनारए पउमनाभेणं रण्णा एवं वृत्ते समाणे ईसिं विहसि करेइ, करित्ता एवं वयासी - ' सरिसे णं तुमं पउमणाभा ! तस्स अगडददुरस्स ।' ' के णं देवाणुप्पिया ! से अगडददुरे ? ' एवं जहा मल्लिणाए । एवं खलु देवाणुप्पिया ! जंबूद्दीवे दीवे भारहे वासे हत्थिणाउरे दुपयस्स रण्णो धूया, चुलणीए देवीए अत्तया, पंडुरस सुण्हा पंचन्हं पंडवाणं भारिया दोवई देवी रूवेण य जाव उक्किट्ठसरी । दोवईए णं देवीए छिन्नस्स वि पायंगुट्ठयस्स अयं तव ओरोहे सयमं पि कलं ण अग्घइति कट्टु पउमणाभं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता जाव पडिगए। सूत्र १४२ : यह प्रश्न सुनकर नारद कुछ मुस्कराये और बोले - "हे पद्मनाभ ! तुम तो कुए के उस मेंढक के समान हो ।" पद्मनाभ - "देवानुप्रिय ! कैसा कुए का मेंढक ?" नारद ने कुए और समुद्र के मेंढक की कथा सुनाई ( अ. ८-सू-११0 के मल्ली अध्ययन अनुसार समझें ) और बोले - " देवानुप्रिय ! जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र के हस्तिनापुर नगर में द्रुपद राजा ' की पुत्री, चुलनी देवी की आत्मजा, पाण्डु राजा की पुत्रवधू और पाँच पाण्डवों की पत्नी द्रौपदी देवी रूप, लावण्य, शरीर आदि में उत्कृष्ट है । तुम्हारा यह सारा अन्तःपुर द्रौपदी के पैर के कटे हुए अँगूठे के शतांश की बराबरी भी नहीं कर सकता।" इस कथन के पश्चात् नारद ने राजा से विदा ली और प्रस्थान किया। 142. Kacchull Narad smiled and said, “Beloved of gods! Your statement gives an impression that you are as ignorant as a frog in a well." Padmanaabh, “Beloved of gods ! what is a frog in a well?” Narad told the story of the frogs (Ch. 8 para 110 ) and added, “In Hastinapur in the Bharat area of the Jambu continent, Draupadi, the daughter of king Drupad and queen Chulni, the daughter-in-law of King Pandu, and the wife of the five Pandavs, is extremely beautiful, charming, (etc.). The beauty of all your queens combined stands nowhere in comparison with the amputated large toe of Draupadi's feet." after saying so Narad took leave of the king and left. पद्मनाभ की आसक्ति सूत्र १४३ : तए णं. से पउमनाभे राया कच्छुल्लनारयस्स अंतिए एयमहं सोच्चा णिसम्म दोवईए देवीए रूवे य जोव्वणे य लावण्णे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववन्ने जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, पोसहसालं जाव पुव्वसंगइयं देवं मणसीकरे-माणे - मणसीकरेमाणे चिट्ठ | CHAPTER - 16 : AMARKANKA 5000 For Private Personal Use Only ( 231 ) Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र( २३२) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 तए णं पउमनाभस्स रण्णो अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पुव्वसंगइओ देवो जाव आगओ। 5 देवं एवं वयासी-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! जम्बूद्दीवे दीवे भारहे वासे हत्थिणाउरे नयरे जाव द र उक्किट्टसरीरा, तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! दोवइं देविं इहमाणियं।' 5 सूत्र १४३ : राजा पद्मनाभ कच्छुल्ल नारद की यह बात सुन समझ कर द्रौपदी के रूप, यौवन द 5 और लावण्य पर मुग्ध, आसक्त, गृद्ध और आग्रहवान (पाने के लिए उतावला) हो गया। वह ड र पौषधशाला में गया और अपने मित्रदेव का आह्वान कर तीन दिन के उपवास का संकल्प लेकर ड र ध्यान मग्न हो गया। र देव के उपस्थित होने पर उसने कहा-“देवानुप्रिय ! जम्बूद्वीप में भारतवर्ष में हस्तिनापुर नगर ड र में पाँच पाण्डवों की अत्यन्त सुन्दरी द्रौपदी देवी रानी है। मेरी इच्छा है कि द्रौपदी देवी को यहाँ 5 लाया जाय।" INFATUATION OF PADMANAABH ___143. Hearing and understanding all what Narad told him, King SI Padmanaabh got allured, captivated, and enticed by the beauty, youth, and charm of Draupadi and was driven to possess her. He went to the Paushadh shala (the abode of ascetics and place of meditation) and taking a vow of a 5 three day fast sat in meditation in order to invoke a friendly god. ____When the friendly god materialized, he said, “Beloved of gods! In Hastinapur in the Bharat area of the Jambu continent, lives Draupadi, the 9 extremely beautiful queen of the five Pandavs. I desire that she be brought here." 5 सूत्र १४४ : तए णं से पुव्वसंगतिए देवे पउमनाभं एवं वयासी-'नो खलु देवाणुप्पिया ! एवं डा र भूयं, भव्वं वा, भविस्सं वा, जं णं दोवई देवी पंच पंडवे मोत्तूण अन्नेण पुरिसेणं सद्धिं ओरालाइंटे 5 जाव विहरिस्सइ। तहावि य णं अहं तव पियट्ठयाए दोवइं देविं इहं हव्वमाणेमि' त्ति कट्ट ट २ पउमणाभं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता ताए उक्किट्ठाए जाव देवगईए लवणसमुदं मज्झमज्झेणं जेणेव र हत्थिणाउरे णयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। 5 सूत्र १४४ : उस मित्र देव ने पद्मनाभ से ऐसा कहा-“देवानुप्रिय ! भूत, वर्तमान या भविष्य में ड र यह असम्भव और अशक्य है कि द्रौपदी देवी पाँच पाण्डवों को छोड़ दूसरे किसी पुरुष के साथ ड र पत्नी रूप में रहेगी, फिर भी मैं तुम्हारा मन रखने के लिए द्रौपदी को तत्काल यहाँ ले आता हूँ।" टै 5 ऐसा कहकर उस देव ने उत्कृष्ट देव-गति से लवण समुद्र के बीच होते हुए हस्तिनापुर जाने के लिए र प्रस्थान किया। 5 144. The friendly god replied, “It is improbable and impossible in all the e 5three segments of time (past, present, and future) that Draupadi leaves the c 15 (232) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SÜTRA 卐nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn) GOOOOOOOODUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUN ज्ज्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IP) सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २३३ ) डा 5 five Pandavs and lives with any other man as wife. However, in order to a 15 honour your wish I will at once bring Draupadi here.” And the friendly god 5 left for Hastinapur with divine speed over the sea. द्रौपदी का अपहरण सूत्र १४५ : तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिणाउरे जुहिट्टिले राया दोवईए देवीए सद्धिं 15 आगासतलंसि सुहपसुत्ते यावि होत्था। सूत्र १४५ : काल के उस भाग में हस्तिनापुर नगर में राजा युधिष्ठिर द्रौपदी के साथ महल की 15 छत पर सुख से सोया हुआ था। 5 KIDNAPPING OF DRAUPADI ___145. During that period of time in Hastinapur city Yudhishthir was 5 sleeping with Draupadi at the roof top of his palace. र सूत्र १४६ : तए णं से पुव्वसंगतिए देवे जेणेव जुहिट्ठिले राया, जेणेव दोवई देवी, तेणेव डा 15 उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दोवईए देवीए ओसोवणियं दलयइ, दलइत्ता दोवई देविं गिण्हइट 15 गिण्हित्ता, ताए उक्किट्ठाए जाव देवगईए जेणेव अमरकंका, जेणेव पउमणाभस्स भवणे, तेणेव डा र उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पउमणाभस्स भवणंसि असोगवणियाए दोवइं देविं ठावेइ, ठाविता 15 ओसोवणिं अवहरइ, अवहरित्ता जेणेव पउमणाभे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी- दा र 'एस णं देवाणुप्पिया ! मए हथिणाउराओ दोवई देवी इह हव्यमाणीया, तव असोगवणियाए । 15 चिट्ठइ, अतो परं तुमं जाणसि' त्ति कट्ट जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। र सूत्र १४६ : वह पूर्वसांगतिक (परिचित) मित्र देव वहाँ पहुँचा और उसने द्रौपदी देवी कोड 15 अवस्वापिनी (गहरी) निद्रा में सुला दिया। फिर द्रौपदी देवी को उठाकर उत्कृष्ट तीव्र गति से द 15 अमरकंका लौट राजा पद्मनाभ के महल में पहँचा। वहाँ अशोकवाटिका में द्रौपदी देवी को रख दिया दा र और अवस्वापिनी निद्रा से उसे जगा दिया। वह देव तब राजा पद्मनाभ के पास गया और बोला15 “देवानुप्रिय ! मैं हस्तिनापुर से द्रौपदी देवी को यहाँ ले आया हूँ। वह तुम्हारी अशोकवाटिका में है। दी 15 इससे आगे तुम जानो।" यह कहकर वह देव अपने स्थान को चला गया। र 146. The friendly god arrived there and put Draupadi to deep sleep. He 15 lifted Draupadi, returned to Amarkanka with very high divine speed and 15 delivered her at the palace of King Padmanaabh. After placing her in the 5 Ashok garden of the palace he released her from the deep sleep. He went to ♡ $ King Padmanaabh and said, “Beloved of gods! I have brought Draupadi hereç from Hastinapur. She is in your Ashok garden. From here on you handle your own affairs." And the god left for his abode. 5 CHAPTER-16 : AMARKANKA ( 233) Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnni Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३४ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र सूत्र १४७ : तए णं सा दोवई देवी तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा समाणी तं भवणं असोगवणियं च अपच्चभिजाणमाणी एवं वयासी - नो खलु अम्हं एस सए भवणे, णो खलु सा अम्हं सगा असोगवणिया, तं ण णज्जइ णं अहं केणई देवेण वा, दाणवेण वा, किंपुरिसेण वा, किन्नरेण वा, महोरगेण वा, गंधव्वेण वा, अन्नस्स रण्णो असोगवणियं साहरिय' त्ति क ओहयमणसंकप्पा जाव झियाय । सूत्र १४७ : कुछ समय बाद जब द्रौपदी की नींद टूटी तो उस अपरिचित अशोकवाटिका को वह नहीं पहचान सकी और मन ही मन बोली - " यह भवन तो मेरा नहीं है, यह अशोकवाटिका भी मेरी नहीं है । जाने किस देव, दानव, किंपुरुष, किन्नर, महोरग या गन्धर्व ने मेरा अपहरण कर अन्य राजा की अशोकवाटिका में पहुँचा दिया है।" यह सोच भग्न - मनोरथ ( निराश) उदास हो वह चिन्ता में डूब गई। 147. After some time when Draupadi opened her eyes she could not recognize the surroundings and thought, "This palace is not mine, not even this garden. I don't know what god, demon, Kimpurush, Kinnar, Mahorag, or Gandharva (various demigods) has abducted me and brought me to a garden belonging to some other king." The thought broke her heart. She became dejected and started brooding. सूत्र १४८ : तए णं से पउमणाभे राया हाए जाव सव्वालंकारविभूसिए अंतेउरपरियालसंपरिवुडे जेणेव असोगवणिया, जेणेव दोवई देवी, तेणेव उवागच्छइ । उवागच्छित्ता दोवई देविं ओहयमणसंकप्पं जाव झियायमाणिं पासइ, पासित्ता एवं वयासी - ' किं णं तुमं देवाणउप्पिए ! ओहयमणसंकप्पा जाव झियाहि ? एवं खलु तुमं देवाणुप्पिए ! मम पुव्वसंगतिएणं देवेणं जम्बुद्दीवाओ दीवाओ, भारहाओ वासाओ, हत्थिणाउराओ नयराओ, जुहिट्ठिलस्स रण्णो भवणाओ साहरिया, तं मा णं तुमं देवाणुप्पिए ! ओहयमणसंकप्पा जाव झियाहि । तुमं मए सद्धिं विपुलाई भोगभोगाई जाव विहराहि । ' सूत्र १४८ : राजा पद्मनाभ स्नानादि से निवृत्त हो, वस्त्रालंकार पहन, अन्तःपुर परिवार से घिरा अशोकवाटिका में द्रौपदी के निकट आया । द्रौपदी देवी को चिन्ता मग्न देखकर वह बोला) "देवानुप्रिये ! तुम भग्न मनोरथ होकर चिन्तित क्यों हो रही हो ? मेरा पूर्वसांगतिक देव तुम्हारा हरण कर यहाँ ले आया है। अतः देवानुप्रिये ! तुम उदास, टूटे हुए मनःसंकल्प वाली होकर चिन्ता मत करो। तुम मेरे साथ विपुल भोग भोगती आनन्द से जीवन बिताओ ।" 148. King Padmanaabh got ready after taking his bath and adorning himself with his dress and ornaments. Surrounded by his personal staff he came into the garden and approached Draupadi. When he saw Draupadi worried he said, "Beloved of gods! Why are you sad and dejected? On my (234) JNĀTA DHARMA KATHANGA SŪTRA மதி Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३५ ) ट सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका 5 request a friendly god has abducted you and brought you here. So, beloved of gods! you should not be sad, disappointed, and dejected. Come, you may ŞI 1 spend rest of your life enjoying all the worldly pleasures with me." सूत्र १४९ : तए णं सा दोवई देवी पउमणाभं एवं वयासी-‘एवं खलु देवाणुप्पिया !दा र जम्बूद्दीवे दीवे भारहे वासे बारवईए नयरीए कण्हे णामं वासुदेवे मम पियभाउए परिवसइ, तंज 5 जइ णं से छण्हं मासाणं ममं कूवं नो हव्वमागच्छइ तए णं अहं देवाणुप्पिया ! जं तुमं वदसि दी 15 तस्स आणा-ओवाय-वयण णिद्देसे चिट्ठिस्सामि।' 5 सूत्र १४९ : द्रौपदी ने पद्मनाभ को इस प्रकार उत्तर दिया-“देवानुप्रिय ! जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र दा 15 में द्वारका नगरी में मेरे पति के भाई कृष्ण नामक वासुदेव रहते हैं। यदि वे छह महीने बीतने तक SI र मुझे छुड़ाने यहाँ नहीं आयेंगे तो मैं तुम्हारी आज्ञा, उपाय, वचन और निर्देश में रहने लगूंगी।" टा 15 149. Draupadi thoughtfully replied to King Padmanaabh, “Beloved of S 5 gods! In the city of Dwarka in the Bharat area of the Jambu continent lives Krishna Vasudev, a cousin of my husband. If he does not come here to get me र released within six months I shall live as you order, advise, instruct, and टा direct. र सूत्र १५0 : तए णं से पउमे राया दोवईए एयमटुं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता दोवइं देविंडी 5 कण्णंतेउरे ठवेइ। तए णं सा दोवई देवी छटुंछटेणं अणिक्खित्तेणं आयंबिलपरिग्गहिएणं टा र तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ। 5 सूत्र १५0 : राजा पद्मनाभ ने द्रौपदी की यह बात मानली और उसे कुँवारी कन्याओं के महल टा 5 में रख दिया। द्रौपदी ने निरन्तर बेले की तपस्या आरम्भ करदी। पारणे में आयम्बिल तप करने का र लगी। और संयम मय जीवन बिताने लगी। 15 150. King Padmanaabh agreed to Draupadi's proposal and put her up in SI » the palace meant for virgin girls. Draupadi started the penance of a chain of 12 three day fasts. On the day of eating she did the Ayambil penance (eating B salt-less food made of one type of grain only). She commenced a disciplined & 5 life like an ascetic. र युधिष्ठिर द्वारा द्रौपदी की खोज र सूत्र १५१ : तए णं से जुहिट्ठिले राया तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धे समाणे दोवई देविं पासे ट 5 अपासमाणे सयणिज्जाओ उढेइ, उहित्ता दोवईए देवीए सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेइ, करित्ता दोवईए देवीए कत्थइ सुई वा खुई वा पवित्तिं वा अलभमाणे जेणेव पंडुराया तेणेवा 5 उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंडुरायं एवं वयासी5 CHAPTER-16 : AMARKANKA ( 235 ) टा ynnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn ज्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्क Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् र ( २३६ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र था 5 एवं खलु ताओ ! ममं आगासतलगंसि पसुत्तस्स पासाओ दोवई देवी न णज्जइ केणइ देवेण दी रवा, दाणवण किन्नरेण वा, महोरगेण वा गंधव्वेण वा, हिया वा णीया वा, अवक्खित्ता वा? धी 5 इच्छामि णं ताओ ! दोवईए देवीए सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करित्तए। सूत्र १५१ : उधर द्रौपदी का हरण हो जाने के कुछ समय बाद राजा युधिष्ठिर की नींद ट 15 खुली।। द्रौपदी को अपने आस-पास न देख कर शय्या से उठे और चारों और द्रौपदी की खोज करने लगे। किन्तु कहीं भी उसकी श्रुति (शब्द), क्षुति (छींक) या प्रवृत्ति (सूचना) न मिली तो राजा र पाण्डु के पास जाकर बोले15 “हे तात ! मैं छत पर सो रहा था तब मेरे निकट से द्रौपदी का न जाने किस देव, दानव र गंधर्व आदि (पूर्व सम-सूत्र १४७) ने हरण कर लिया, उठाकर ले गया या खींच कर ले गया। अतः 15 हे तात ! मेरा निवेदन है कि उसकी चारों ओर खोज की जाय।" AUGUJu 15 SEARCH FOR DRAUPADI BY YUDHISHTHIR ____151. Back at Hastinapur, some time after the abduction of Draupadi, S Yudhishthir woke up. When he did not find Draupadi on the bed he got up and looked for her all around. But nowhere did he hear her word, sneezing or 15 sound of any other activity. He went to King Pandu and said - 1 "Father! While we were sleeping on the terrace, some god, demon, (etc.) B appears to have abducted, lifted or pulled and taken away Draupadi from a 15 near me. As such, father! I submit that a search should be called for her." र सूत्र १५२ : तए णं से पंडुराया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सदावित्ता एवं वयासी-'गच्छह णं 5 तुब्भे देवाणुप्पिया ! हत्थिणाउरे नयरे सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-महापह-पहेसु महया महया द र सद्देणं उग्घोसेमाणा उग्घीसेमाणा एवं वदह-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! जुहिडिल्लस्स रण्णोड 5 आगासतलगंसि सुहपसुत्तस्स पासाओ दोवई देवी न णज्जइ केणइ देवेण वा, दाणवेण वा, ट 5 किंपुरिसेण वा, किन्नरेण वा, महोरगेण वा, गंधव्वेण वा हिया वा निया वा अवक्खित्ता वा? तं ड र जो णं देवाणुप्पिया ! दोवईए देवीए सुई वा खुई वा पवित्तिं वा परिकहेइ तस्स णं पंडुराया ट 15 विउलं अत्थसंपयाणं दलयइ' त्ति कट्ट घोसणं घोसावेह, घोसावित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।' 5 तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति। 12 सूत्र १५२ : राजा पाण्डु ने अपने सेवकों को बुलाकर आदेश दिया-“देवानुप्रियो ! हस्तिनापुर में 15 नगर में शृंगाटक चौराहे-तिराहे-राजमार्ग आदि सभी स्थानों पर उच्च स्वर में घोषणा करो कि 'हे ट 5 देवानुप्रियो ! छत पर सोये हुए राजा युधिष्ठिर के पास से द्रौपदी देवी का किसी देव, दानव, गंधर्व ड र आदि ने अपहरण कर लिया है, उठाकर कहीं फेंक दिया है, अतः जो कोई द्रौपदी देवी की श्रुति, था UUUU (236) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA HELLA0ALALLAAAAAAAAA LON ) manushamansamasrantiussairathe Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २३७ ) क्षुतिया प्रवृत्ति बतायेगा, सूचना देगा उसको राजा पाण्डु पुरस्कार स्वरूप विपुल सम्पदा देंगे।' यह घोषणा कर मुझे सूचित करो। " सेवकों ने राजाज्ञा का पालन कर पुनः सूचित किया। 152. King Pandu called his servants and said, “Beloved of gods ! Make this announcement at every prominent place in Hastinapur including highways, crossings, (etc. ) in loud voice - 'While they were sleeping on the terrace, some god, demon, (etc.) appears to have abducted, lifted or pulled and taken away Draupadi from near King Yudhishthir. Whoever provides information about whereabouts or word, sneezing or sound of any other activity of queen Draupadi will be liberally rewarded by King Pandu.' Do this and report back to me." The servants did as told and reported back. सूत्र १५३ : तए णं से पंडू राया दोवईए देवीए कत्थइ सुइं वा जाव अलभमाणे कोंतिं देविं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिए ! बारवई नयरिं कण्हस्स वासुदेवस्स एयमट्टं णिवेदेहि । कण्हे णं परं वासुदेवे दोवईए देवीए मग्गण - गवेसणं करेज्जा, अन्नहा न नज्जइ दोवई देवीए सुई वा खुइँ वा पवित्तिं वा उवलभेज्जा ।' सूत्र १५३ : इस घोषणा के बाद भी राजा पाण्डु को द्रौपदी का कहीं से भी कोई समाचार नहीं मिला। तब उन्होंने महारानी कुन्ती को बुलाकर कहा - "हे देवानुप्रिये ! तुम द्वारका जाओ और कृष्ण वासुदेव से यह सारे समाचार कहो । कृष्ण वासुदेव ही द्रौपदी की खोज करेंगे अन्यथा ऐसा नहीं लगता कि हमें उसका कुछ पता लग सकेगा।” 153. Even after this announcement King Pandu did not get any information about Draupadi. He then called queen Kunti and said, "Beloved of gods! Proceed to Dwarka and give all this information to Krishna. It appears that we shall not be able find any trace of Draupadi as long as Krishna does not put in his efforts; only he is capable of finding Draupadi.” कुन्ती का कृष्ण के पास जाना सूत्र १५४ : तए णं कोंती देवी पंडुरण्णा एवं वृत्ता समाणी जाव पडिसुणइ, पडिणित्ता हाया कयबलिकम्मा हत्थिखंधवरगया हत्थिणाउरं णयरं मज्झमझेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता कुरुजणवयं मज्झंमज्झेणं जेणेव सुरट्ठाजणवए, जेणेव बारवई णयरी, जेणेव अग्गुज्जाणे, तेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी–‘गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! बारवई णयरिं जेणेव कण्हरस वासुदेवस्स CHAPTER - 16: AMARKANKA (237) For Private Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मज्ज र ( २३८ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 गिहे तेणेव अणुपविसह, अणुपविसित्ता कण्हं वासुदेवं करयलपरिग्गहियं एवं वयह-‘एवं खलु दा र सामी ! तुब्भं पिउच्छा कोंती देवी हत्थिणाउराओ नयराओ इह हव्वमागया तुब्भं दंसणं कंखति।' टी 5 सूत्र १५४ : महारानी कुन्ती ने पाण्डु राजा की बात स्वीकार कर ली और स्नानादि कर तैयार दा 2 होकर हाथी पर सवार हुई। हस्तिनापुर के बीच से होती कुरु देश को पार किया और फिर सुराष्ट्र । र जनपद में होती हुई द्वारका नगरी के बाहर पहुँच श्रेष्ठ उद्यान में ठहरीं। हाथी से नीचे उतर कर टा 5 अपने सेवकों को बुलाया और कहा-“देवानुप्रियो ! द्वारका नगरी में प्रवेश कर कृष्ण वासुदेव के दा र पास जाकर यथाविधि वन्दन कर कहना–“हे स्वामी ! आपके पिता की बहन कुन्ती देवी हस्तिनापुर डा र से यहाँ आई है और आपके दर्शनों की इच्छा करती हैं।" 5 KUNTI GOES TO KRISHNA - 154. Queen Kunti accepted the request of King Pandu. She got ready after SI 2 taking her bath and dressing up and rode an elephant. She moved through S 5 the streets of Hastinapur city and crossing Kuru and Surashtra states , 15 reached the outskirts of Dwarka. She camped in a beautiful garden. After 2) getting down from the elephant she called her servants and said, “Beloved of gods! Enter Dwarka, go to Krishna Vasudev, and after extending courtesy tell him, 'Sire! Queen Kunti, your father's sister has arrived here 2 from Hastinapur and desires to behold you.” __सूत्र १५५ : तए णं कोडुबियपुरिसा जाव कहेंति। तए णं कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसाणं अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म हद्वतुढे टा ई हत्थिखंधवरगए बारवईए नयरीए मझमज्झेणं जेणेव कोंती देवी तेणेव उवागच्छइ, डा र उवागच्छित्ता हत्थिखंधाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता कोंतीए देवीए पायग्गहणं करेइ, करित्ता टा 5 कोंतीए देवीए सद्धिं हत्थिखंधं दुरूहइ, दुरूहित्ता बारवईए नगरीए मझमझेणं जेणेव सए गिहे द्रा र तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयं गिहं अणुपविसइ। 5 सूत्र १५५. सेवकों ने वासुदेव कृष्ण के पास जाकर कुन्ती देवी के आगमन का समाचार कहा। डा र कृष्ण वासुदेव यह समाचार जानकर प्रसन्न व संतुष्ट हुए और हाथी पर सवार हो वहाँ आये । 5 जहाँ उद्यान में कुन्ती देवी ठहरी थीं। हाथी से उतर कर उन्होंने कुन्ती देवी के चरण स्पर्श किये दा र और उन्हें साथ ले पुनः हाथी पर सवार हो नगर के मध्य होते हुए अपने महल में आये। डी 5 155. The servants went to Krishna Vasudev and conveyed the news of the 15 arrival of queen Kunti. 12 Krishna Vasudev was pleased and contented to hear this news and riding an elephant he came to the camp of queen Kunti. He got down from the CUUUUU JOURUJAL 15 (238) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA yinnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HUUUUUUUUUUUUUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २३९ ) 15 elephant, touched her feet and taking her along he returned to his palace riding the elephant and passing through the city. र सूत्र १५६ : तए णं से कण्हे वासुदेव कोंतिं देविं पहायं कयबलिकम्मं जिमियभुत्तुत्तरागयंट 5 जाव सुहासणवरगयं एवं वयासी-'संदिसउ णं पिउच्छा ! किमागमणपओयणं?' र सूत्र १५६ : कुन्ती देवी स्नान-भोजनादि से निवृत्त होने के बाद आकर आसन पर बैठीं। तब 15 कृष्ण वासुदेव ने कहा-“हे पितृभगिनी !बताइये आपके आने का क्या प्रयोजन है?" र 156. After her bath and meals gueen Kunti came and took a seat near ] 5 Krishna. He asked, “Aunt Kunti! Tell me what brings you to me?" र सूत्र १५७ : तए णं कोंती देवी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-'एवं खलु पुत्ता ! हत्थिणाउरेड रणयरे जुहिट्ठिल्लस्स आगासतले सुहपसुत्तस्स दोवई देवी पासाओ ण णज्जइ केणइ अवहिया वा, ट 15 णीया वा, अवक्खित्ता वा, तं इच्छामि णं पुत्ता ! दोवईए देवीए मग्गणगवेसणं कयं।' र सूत्र १५७ : कुन्ती देवी ने उत्तर दिया-“हे पुत्र हस्तिनापुर में रात को युधिष्ठिर छत पर सोट 5 रहा था। उसके पास से द्रौपदी को न जाने कौन अपहरण करके ले गया। अतः हे पुत्र ! मैं चाहती डा र हूँ कि तुम उसकी खोज करो।" 6 157. “Son! While they were sleeping on the terrace of their palace in टा 5 Hastinapur someone has abducted Draupadi from near Yudhishthir. Son! I want you to find her." 5 कृष्ण का आश्वासन र सूत्र १५८ : तए णं से कण्हे वासुदेवे कोंतिं पिउच्छिं एवं वयासी-जं नवरं पिउच्छा ! ट 5 दोवईए देवीए कत्थइ सुई वा जाव लभामि तो णं अहं पायालाओ वा भवणाओ वाड र अद्धभरहाओ वा समंतओ दोवई साहत्थिं उवणेमि' त्ति कट्ट कोंतिं पिउच्छिं सक्कारेइ, सम्माणेइ टा 5जाव पडिविसज्जेइ। र सूत्र १५८ : कृष्ण वासुदेव ने कुन्ती बुआ को आश्वस्त किया-"बुआ जी ! द्रौपदी देवी की र श्रुति आदि का तनिक भी आभास होते ही मैं तत्काल उसे ले आऊँगा चाहे वह पाताल में, धरती टा 15 पर या आकाश में कहीं भी हो।''यह कहकर कृष्ण ने कुन्ती बुआ का यथोचित आदर सत्कार कर 5 र उन्हें विदा किया। 5 KRISHNA GIVES ASSURANCE र 158. Krishna assured his aunt Kunti, “Aunt! As soon as I get even the 5 slightest trace of Draupadi I shall get her back from wherever she is, be it on 5 the earth, in the sky, or the nether world." And Krishna bid farewell to his 5 aunt Kunti with due honour and respect. PTER-16 : AMARKANKA (239) C FinnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnAR Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण मनमाज ( २४०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 सूत्र १५९ : तए णं सा कोंती देवी कण्हेणं वासुदेवेणं पडिविसज्जिया समाणी जामेव दिसिं दी र पाउब्भूआ तामेव दिसिं पडिगया। 5 सूत्र १५९ : वासुदेव श्रीकृष्ण से आश्वासन पाकर कुन्ती देवी अपने नगर को लौट गई। र 159. After getting this assurance from Krishna queen Kunti returned to P her city. 15 सूत्र १६0 : तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावित्ता एवं वयासी-द 2 ‘गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! बारवई नयरिं एवं जहा पंडू तहा घोसणं घोसावेइ, जावड र पच्चप्पिणंति, पंडुस्स जहा। ___ सूत्र १६0 : कुन्ती देवी के लौट जाने पर वासुदेव श्रीकृष्ण ने अपने सेवकों को बुलाकर आदेश डा र दिया-“देवानुप्रियो ! द्वारका नगर में सभी स्थानों पर द्रौपदी के अपहरण के सम्बन्ध में घोषणा 5 करो।" (घोषणा का विस्तार पूर्वसम-सू-१५२ के अनुसार जैसी पाण्डु राजा ने हस्तिनापुर में घोषणा ८ र करवाई उसी प्रकार समझें) सेवकों ने राजाज्ञा का पालन कर वासुदेव को सूचित कर दिया। _____160. When Kunti left, Krishna Vasudev called his servants and said, 5 “Beloved of gods! Make an announcement about queen Draupadi's abduction Ć Dat every prominent place in Dwarka (as in para 152).” The servants did as र told and reported back. र सूत्र १६१ : तए णं से कण्हे वासुदेवे अन्नया अंतो अंतेउरगए ओरोहे जाव विहरइ। इमं च 5णं कच्छुल्लए जाव समोवइए जाव णिसीइत्ता कण्हं वासुदेवं कुसलोदंतं पुच्छइ। ___ सूत्र १६१. एक बार वासुदेव श्रीकृष्ण अंतःपुर में रानियों के साथ बैठे थे। उस समय कच्छुल्ल 5नारद आकाश से उतर श्रीकष्ण के पास जाकर आसन पर बैठे और उनसे क्षेम कुशल पूछने लगे। दा (पूरा वर्णन सूत्र १३४, १३५ के अनुसार समझें) 161. Once when Krishna Vasudev was sitting in his private quarters with 5 his queens, Kacchull Narad landed in the palace, came to Krishna Vasudev, 5 sat down and asked about his well being. (details as in para 134, 135). 5 नारद से सूचना र सूत्र १६२ : तए णं से कण्हे वासुदेवे कच्छुल्लं णारयं एवं वयासी-'तुमं णं देवाणुप्पिया ! ट्र 5 बहूणि गामाऽऽगर जाव अणुपविससि, तं अत्थि याइं ते कहिं वि दोवईए देवीए सुई वा जाव ढ र उवलद्धा?' 5 तए णं से कच्छुल्ले णारए कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! अन्नया 15 धायईसंडे दीवे पुरथिमद्धं दाहिणद्धभारहवासं अमरकंकारायहाणिं गये, तत्थ णं मए डा र पउमनाभस्स रण्णो भवणंसि दोवई देवी जारिसिया दिट्टपुव्वा यावि होत्था।' (240) JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SŪTRA 3 AnnnnnAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnns Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ( २४१ ) 2 सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका र तए णं कण्हे वासुदेवे कच्छुल्लं णारयं एवं वयासी-तुब्भं चेव णं देवाणुप्पिया ! एवं डा पुव्वकम्म।' र तए णं से कच्छुल्लनारए कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे उप्पयणिं विजं आवाहेइ, SI र आवाहित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। र सूत्र १६२ : वासुदेव श्रीकृष्ण ने कच्छुल्ल नारद से पूछा-“देवानुप्रिय ! आप अनेक ग्रामादि में ए जाते हैं क्या कहीं आपको द्रौपदी के सम्बन्ध में कोई सूचना या जानकारी मिली है।" र नारद ने उत्तर दिया-“देवानुप्रिय ! एक बार मैं धातकीखण्ड द्वीप में पूर्व दिशा के दक्षिणार्धS र भरतक्षेत्र में अमरकंका नाम की राजधानी में गया था। वहाँ मैंने राजा पद्मनाभ के भवन में द्रौपदी ट 15 देवी जैसी महिला देखी थी।" श्रीकृष्ण बोले-“देवानुप्रिय ! यह सब आपका ही किया-धरा जान पड़ता है ?" ___ श्रीकृष्ण के ये वचन सुनकर नारद उत्पतनी विद्या का आह्वान कर जिधर से आये उधर ही ड र वापस चले गये। UOOO NEWS FROM NARAD ई 162. Krishna Vasudev asked Kacchull Narad, "Beloved of gods! You go around to many villages, cities, etc. Did you get any news or information ci about Draupadi?” Narad replied, “Beloved of gods! Once I went to Amarkanka city in the 5 southern half of the eastern Bharat area in the Dhatkikhand continent. There, in the palace of King Padmanaabh I saw a lady who resembled Ç Draupadi." Krishna, “Beloved of gods! It appears to be your doing?" 15 Kacchull Narad at once invoked the Utpatni power and took off in the 5 direction he came from. ___ सूत्र १६३ : तए णं से कण्हे वासुदेवे दूयं सद्दावेई, सद्दावित्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुम दा र देवाणुप्पिया ! हथिणआउरं, पंडुस्स रण्णो एयम निवेदेहि-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! धायइसंडे । र दीवे पुरथिमद्धे अमरकंकाए रायहाणीए पउमनाभस्स-भवणंसि दोवईए देवीए पउत्ती उवलद्धा। टी र तं गच्छंतु णं पंच पंडवा चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडा पुरत्थिम-वेयालीए ममं ही पडिवालेमाणा चिटुंतु।' र सूत्र १६३ : श्रीकृष्ण वासुदेव ने अपना दूत बुलाया और उसे आज्ञा दी-“देवानुप्रिय ! र हस्तिनापुर जाकर राजा पाण्डु से यह निवेदन करो-“हे देवानुप्रिय ! धातकीखण्ड द्वीप के पूर्वार्ध ८ 5 CHAPTER-16 : AMARKANKA ( 241) टा Fnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४२ ) TUVUUUUUUUUUUUUUUUUTTUMIST ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा र भरत में अमरकंका नगरी में पद्मनाभ राजा के भवन में द्रौपदी देवी का पता लगा है। अतः पाँचों ट 15 पाण्डवों को चतुरंगिणी सेना सहित प्रयाण करके पूर्व दिशा के लवणसमुद्र तट पर पहुँच कर मेरी डा र प्रतीक्षा करने की आज्ञा दें।" 5 163. Krishna Vasudev called his emissary and said, “Beloved of gods! go to टा 5 Hastinapur and inform King Pandu—'Beloved of gods! Draupadi has been l found in the palace of King Padmanaabh in Amarkanka city in the southern half of the eastern Bharat area in the Dhatkikhand continent. As such, you should order the five Pandavs to march with their four pronged army to the Beastern coast on the Lavan sea and wait for me." ___ सूत्र १६४ : तए णं दूए जाव भणइ-'पडिवालेमाणा चिट्ठह।' ते वि जाव चिट्ठति। र सूत्र १६४ : दूत ने हस्तिनापुर जाकर संदेश कहा और तदनुसार पाँचों पाण्डव अपनी सेना ट 5 सहित समुद्रतट पर पहुँचकर श्रीकृष्ण वासुदेव की प्रतीक्षा करने लगे। 2 164. The emissary went to Hastinapur and delivered the message. 5 Accordingly the five Pandavs arrived with their four pronged army at the a eastern coast on the Lavan sea and waited for Krishna. कृष्ण का प्रयाण र सूत्र १६५ : तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सदावित्ता एवं वयासी-S 5 'गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! सन्नाहियं भेरिं ताडेह।' ते वि तालेति।। ___ सूत्र १६५ : इधर श्रीकृष्ण वासुदेव ने पुनः अपने सेवकों को बुलाकर आज्ञा दी-“देवानुप्रियो ! S र जाकर सामरिक भेरी (युद्ध की भेरी) बजाओ।" सेवकों ने राजाज्ञा का पालन किया। KRISHNA MARCHES _____165. Krishna Vasudev again called his servants and said, “Beloved of gods! ड Go and sound the war trumpets.” The servants did as told and reported back. $ सूत्र १६६ : तए णं तीसे सण्णाहियाए भेरीए सदं सोच्चा समुद्दविजयपामोक्खा दस दसारा ट जाव छप्पण्णं बलवयसाहस्सीओ सन्नद्धबद्ध जाव गहियाउह-पहरणा अप्पेगइया हयगया जावड र वग्गुरा-परिक्खित्ता जेणेव सभा सुहम्मा, जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता ? करयल जाव वद्धावेंति। र सूत्र १६६ : युद्ध की भेरी की ध्वनि सुनकर समुद्रविजय आदि दश दशार सहित सभी छप्पन । 5 हजार बलवान यादव वीर कवच आदि पहन, तैयार हो अपने आयुध व प्रहरणों से सन्नद्ध हो टी 15 हाथी, घोड़े आदि पर सवार हो सुभटों के समूह के साथ कृष्ण वासुदेव की सुधर्मा सभा में आये डा 12 और हाथ जोड़ उनका अभिवादन किया। र ( 242) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA Sinnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn ETUUvcccrrrrrrrrrrrrrrrrr CUU Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २४३ ) हा 5 166. Hearing the war trumpets the Dashar braves including a » Samudravijaya and all the fifty six thousand Yadav braves got ready after 9 2 donning armour. They collected their weapons and arrived at the Sudharma assembly of Krishna Vasudev riding elephants, horses, etc. and accompanied ] 5 by their soldiers. They greeted Krishna joining their palms. __सूत्र १६७ : तए णं कण्हे वासुदेवे हत्थिखंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं S र सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणे महया हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं ट 15 संपरिवुडे महया भड-चडगर-पहकरेणं बारवईए णयरीए मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता ८ 5 जेणेवे पुरथिमवेयाली तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंचहिं पंडवेहिं सद्धिं एगयओ मिलइ, र मिलित्ता खंधावारणिवेसं करेइ, करित्ता पोसहसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता सुत्थियं देवं । 5 मणसि करेमाणे करेमाणे चिट्ठइ। र सूत्र १६७ : तब कृष्ण वासुदेव स्वयं श्रेष्ठ हाथी पर आरूढ़ हुए। उनके सर पर सफेद कोरंट डा र फूलों की मालाओं का छत्र लगाया गया और दोनों पार्श्व में श्वेत चामर डुलाये जाने लगे। वेट 15 विशाल, घोड़े, हाथी, रथ तथा पदाति योद्धाओं से बनी चतुरंगिणी सेना और अन्य सुभटों सहित डा र द्वारका नगर के बीच से निकले और पूर्व दिशा में समुद्र तट पर जा पहुंचे। वहाँ पाण्डवों से मिले ही ए और सेना का पड़ाव (स्कंधावार) डालकर पौषधशाला में गये। वहाँ लवणसमुद्र के आरक्षक सुस्थित टा 15 देव के ध्यान में स्थित हो गये। 167. Now Krishna himself rode a king elephant. A canopy made up of R garlands of Korant flowers was fixed over his head and on both his flanks ] 5 white whisks were being plied. He passed through Dwarka city with his large a 5 four pronged army comprising of elephants, horses, chariots and foot soldiers, and many other warriors and proceeded to the eastern sea coast. After making camp and meeting the five Pandavs he went to the Paushadh2 shala (place for meditation). There he started meditation to invoke god , Susthit, the care-taker of the Lavan sea. 15 सूत्र १६८ : तए णं कण्हस्स वासुदेवस्स अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि सुट्टिओ जाव डा र आगओ-'भण देवाणुप्पिया ! जं मए कायव्वं।' तए णं से कण्हे वासुदेवे सुट्टियं देवं एवं वयासी-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! दोवई देवी जाव पउमनाभस्स रण्णो भवणंसि साहरिया, तं णं तुम देवाणुप्पिया ! मम पंचहिं पंडवेहिं सद्धिंड र अप्पछट्टस्स छहं रहाणं लवणसमुद्दे मग्गं वियराहि। जाणं अहं अमरकंकारायहाणिं दोवईए टी 5 देवीए कूवं गच्छामि।' र सूत्र १६८ : श्रीकृष्ण वासुदेव का अष्टमभक्त (तेला) पूर्ण होने पर सुस्थित देव उनके निकट 5 प्रकट होकर बोला--"देवानुप्रिय ! कहिए मुझे क्या करना है ?" 15 CHAPTER-16 : AMARKANKA (243) yunnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ज P( २४४ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र द्रा 5 श्रीकृष्ण ने बताया-“देवानुप्रिय ! द्रौपदी देवी का अपहरण कर उन्हें पद्मनाभ राजा के भवन में से र ले जाया गया है। अतः तुम मेरे और पाँचों पाण्डवों के रथों को लवणसमुद्र पार करने का मार्ग दो ड 5 जिससे मैं द्रौपदी देवी को छुड़ा लाने के लिए अमरकंका जा सकूँ।" 2 168. When Krishna completed his three day fast god Susthit appeared < 2 before him and said, “Beloved of gods! Please tell me what I have to do?" 5 Krishna Vasudev said, “Beloved of gods! Draupadi has been abducted and taken to the palace of King Padmanaabh. So make a path for me and the five 2 Pandavs to cross the Lavan sea on chariots so that I may proceed to B Amarkanka city in order to get Draupadi released." ___ सूत्र १६९ : तए णं से सुत्थिए देवे कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-'किण्णं देवाणुप्पिया ! जहा 5 चेव पउमनाभस्स रण्णो पुव्वसंगतिएणं देवेणं दोवई देवी जाव संहरिया, तहा चेव दोवइं देविं धायईसंडाओ दीवाओ भारहाओ जाव हत्थिणाउरं साहरामि? उदाहु पउमनाभं रायंट 15 सपुरबलवाहणं लवणसमुद्दे पक्खिवामि?' ___ सूत्र १७६ : सुस्थित देव ने उत्तर दिया-“देवानुप्रिय ! ऐसा क्यों नहीं करते? जैसे राजा डा र पद्मनाभ के पूर्वसांगतिक देव ने द्रौपदी देवी का युधिष्ठिर के राजमहलों से अपहरण किया था क्या 5 उसी प्रकार मैं द्रौपदी देवी को अमरकंका स्थित पद्मनाभ राजा के महल से हस्तिनापुर ले आऊँ ? 12 अथवा क्या पद्मनाभ राजा को, उसके नगर, सैन्य तथा वाहनों सहित लवणसमुद्र में फेंक दूं ?" 15 169. Susthit god replied, “Beloved of gods! Why not do as I say? As the friendly god abducted Draupadi from the palace of king Yudhishthir, I too < 2 will abduct Draupadi from King Padmanaabh's palace and deliver her to s B Hastinapur. Alternatively, I could throw King Padmanaabh in the Lavan sea 5 along with his city, vehicles and army." सूत्र १७0 : तए णं कण्हे वासुदेवे सुत्थियं देवं एवं वयासी-'मा णं तुमं देवाणप्पिया ! | 15 जाव साहराहि। तुमं णं देवाणुप्पिया ! लवणसमुद्दे अप्पछट्ठस्स छण्हं रहाणं मग्गं वियराहि, सयमेव णं अहं दोवईए देवीए कूवं गच्छामि।' 5 सूत्र १७0 : श्रीकृष्ण वासुदेव ने कहा-“देवानुप्रिय ! तुम यह सब मत करो। तुम तो हमारे द र छह रथों को लवण समुद्र से जाने का मार्ग दे दो। मैं स्वयं ही द्रौपदी देवी को वापिस लाने डा जाऊँगा।" र 170. Krishna Vasudev said, “No, beloved of gods! do no such thing. Yous B just give us passage for our six chariots to go across the sea. I will go myself ŞI 55 to set Draupadi free." JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SUTRA uurrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr 15 (244) Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका (२४५ ) SI 15 सूत्र १७१ : ते णं से सुट्टिए देवे कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-‘एवं होउ।' पंचहिं पंडवेहिं डा र सद्धिं अप्पछट्ठस्स छण्हं रहाणं लवणसमुद्दे मग्गं वियरइ। 15 सूत्र १७१ : सुस्थित देव ने-“ऐसा ही हो" कहकर छहों रथों को लवण समुद्र में गमन का डा 12 मार्ग प्रदान कर दिया। 5 171. Susthit god said, “As you wish,” and gave the desired passage 5 through the sea. 5 सूत्र १७२ : तए णं से कण्हे वासुदेवे चाउरंगिणिं सेणं पडिविसज्जेइ, पडिविसज्जित्ता पंचहिट 15 पंडवेहिं सद्धिं अप्पछटे छहिं रहेहिं लवणसमुई मज्झमझेणं वीईवयइ, वीईवइत्ता जेणेव डी र अमरकंका रायहाणी, जेणेव अमरकंकाए अग्गुज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रहं ठवेइ, टा 15 ठवित्ता दारुयं सारहिं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी र सूत्र १७२ : वासुदेव कृष्ण ने चतुरंगिणी सेना को वापस विदा कर दिया और पाँच पाण्डवों 2 15 सहित स्वयं छह रथों में बैठकर लवणसमुद्र के बीच से होते हुए अमरकंका राजधानी के निकट जाद र पहुँचे। नगर के बाहर पहुँचकर प्रधान उद्यान में पहुंचे और अपने सारथी दारुक को बुलाकर कहा- ड 5 172. Krishna sent the armies back and in six chariots crossed the sea with a the five Pandavs to reach near Amarkanka city. He stopped in the main 5 garden outside the city and called his driver Daruk and said, 5 पद्मनाभ को चुनौती __ सूत्र १७३ : ‘गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया ! अमरकंका रायहाणिं अणुपविसाहि, टा 15 अणुपविसित्ता पउमणाभस्स रण्णो वामेणं पाएणं पायपीढं अक्कमित्ता कुंतग्गेणं लेहं पणामेहि; डा र तिवलियं भिउडिं णिडाले साह? आसुरुत्ते रुटे कुद्धे कुविए चंडिक्किए एवं वदह–'हं भोट 5 पउमणाहा ! अपत्थिय-पत्थिया ! दुरंत-पंतलक्खाणा ! हीणपुण्णचाउद्दसा ! सिरि-हिरि-द र धीपरिवज्जिया ! अज्जं ण भवसि, किं णं तुम ण जाणासि कण्हस्स वासुदेवस्स भगिणिं दोवइड 5 देविं इहं हव्वं आणमाणे। तं एवमवि गए, पच्चप्पिणाहि णं तुमं दोवइं देविं कण्हस्स वासुदेवस्स, र अहवा णं जुद्धसज्जे ण्गिच्छाहि। एस णं कण्हे वासुदेवे पंचहिं पंडवेहि अप्पछडे दोवई देवीए डा 5 कूवं हव्वमागए।' र सूत्र १७३ : “देवानुप्रिय ! तुम जाओ और अमरकंका राजधानी में प्रवेश कर राजा पद्मनाभ र के निकट पहुँचो। वहाँ पहुँचकर उसके पादपीठ को अपने बायें पाँव से ठोकर मारकर अपने भाले । 5 की नोंक से यह पत्र दे दो। उसके बाद भृकुटि तान, कपाल पर सलवटें डाल, आँखे लालकर, रोष, टा क्रोध, और कोप से प्रचण्ड रूप धारण करके उससे कहना-'ओ पद्मनाभ ! अवांछित की वांछा डा र करने वाले ! अनन्त कुलक्षणों वाले ! चतुर्दशी को जन्मे पुण्यहीन ! श्री, लज्जा और बुद्धि से टा UUU UUUUUE PTER-16 : AMARKANKA Fennnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnni ( 245) Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्V र ( २४६ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र का हीन ! आज तू बचेगा नहीं ! क्या तू नहीं जानता कि तूने कृष्ण वासुदेव की बहन द्रौपदी देवी का डा र हरण कर लिया है ? जो हुआ सो हुआ। अब भी अच्छा होगा कि तू द्रौपदी देवी को कृष्ण वासुदेव । 5 को लौटा दे। अन्यथा युद्ध के लिए तैयार होकर बाहर निकल। पाँचों पाण्डवों सहित कृष्ण वासुदेव 5 द्रौपदी देवी को तुझसे छीन कर ले जाने के लिए अभी-अभी यहाँ पहुँचे हैं।" UUUU » CHALLENGE TO PADMANAABH र 173. “Beloved of gods! Enter Amarkanka city and go to King 5 Padmanaabh. When you arrive near his throne, kick his leg-rest with your 15 left foot and deliver him this letter with the tip of your spear. After that, with > a frown creasing the skin on your forehead, turn your eyes red, and taking a SI threatening posture filled with fury, anger, and wrath, give him this warning, 'Hey Padmanaabh! O desirous of the undesired! O storehouse of vices! 0 B virtueless, born on the fourteenth night of the dark half of the month! O graceless, shameless, and witless fool! You are facing your doom. Don't you 15 know that you have abducted Draupadi, the sister of Krishna Vasudev. ट 5 However, let bygones be bygones. Even now it would be to your benefit if you return Draupadi to Krishna Vasudev. Otherwise get ready for war and come out. Krishna Vasudev and the five Pandavs have just arrived here to rescue र Draupadi from your clutches." सूत्र १७४ : तए णं से दारुए सारही कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे हद्वतुढे जाव डा र पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता अमरकंका रायहाणिं अणुपविसइ अणुपविसित्ता जेणेव पउमनाभे तेणेव । 15 उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल जाव वद्धावेत्ता एवं वयासी-एस णं सामी! मम दा र विणयपडिवत्ती, इमा अन्ना मम सामियस्स समुहाणत्ति' त्ति कट्ट आसुरुत्ते वामपाएणं पायपीढं का 5 अणुक्कमति, अणुक्कमित्ता कोंतग्गेणं लेहं पणामेइ, पणामित्ता जाव कूवं हव्वमागए। 2 सूत्र १७४ : सारथी दारुक ने वासुदेव की आज्ञा प्रसन्नचित्त हो स्वीकार की और अमरकंका, 5 राजधानी में प्रवेश किया। राजा पद्मनाभ के पास पहुँच कर उसने दोनों हाथ जोड़ यथाविधि ट 5 अभिनन्दन किया और कहा-"स्वामिन् ! यह तो मेरी ओर से अपने शिष्टाचार की अभिव्यक्ति थी। र मेरे स्वामी की आज्ञा इससे भिन्न है। वह अब प्रस्तुत करता हूँ।" और उसने वासुदेव कृष्ण की 2 र आज्ञा का अक्षरशः पालन करते हुए क्रोध से लाल नेत्र कर, पादपीठ को बायें पाँव से ठोकर टा 5 मारी, भाले की नोंक से पत्र दिया और वासुदेव के आदेश को दोहरा दिया। R 174. Driver Daruk was pleased to accept the order and he, at once, went a 5 to Amarkanka city. He approached King Padmanaabh, joined his palms in a 5 greeting and said, “Sire! This was my personal courtesy. The instructions of my master are in variance from this. Now I do as I have been ordered." And 15(246) JNĀTĀ DHARMA KATHÁNGA SÜTRA' Shaannnnnnnnnnn Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फुज्ज सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २४७ ) he did exactly as Krishna Vasudev had instructed him to do. Eyes red with anger, he kicked the leg-rest with his left foot, delivered the letter with the tip of his spear and repeated the message of Krishna. सूत्र १७५ : तए णं से पउमणाभे दारुएणं सारहिणा एवं वृत्ते समाणे आसुरुते तिवलिं भिउडिं निडाले साहड्ड एवं वयासी - णो अप्पणामि णं अहं देवाणुप्पिया ! कण्हस्स वासुदेवस्स दोवई, एस णं अहं सयमेव जुज्झसज्जो निग्गच्छामि, त्ति कट्टु दारुयं सारहिं एवं वयासी- 'केवलं भो ! रायसत्थेसु दूए अवज्झे' त्ति कट्टु असक्कारिय असम्माणिय अवद्दारेणं णिच्छुभावे | सूत्र १७५ : दूत का कथन सुनकर उत्तर में पद्मनाभ ने क्रोध से लाल हो भृकुटि तान कर ललाट पर तीन सलवटें डालकर कहा - " देवानुप्रिय ! मैं कृष्ण वासुदेव को द्रौपदी वापस नहीं करूँगा। लो, मैं स्वयं युद्ध के लिए तैयार होकर निकलता हूँ।" पद्मनाभ ने पुनः दूत को सम्बोधित किया- “हे दूत ! राजनीति शास्त्र में दूत अवध्य है। इस कारण तुझे छोड़ देता हूँ ।" और उसने दूत को अपमानित तिरस्कृत कर पिछले द्वार से निकाल दिया । 175. When he heard this message King Padmanaabh too became furious. With a frown and three creases on his forehead he replied, "Beloved of gods! I will not return Draupadi to Krishna. I will prepare for the battle and come out at once.” King Padmanaabh again addressed the emissary, “Messenger! Emissaries enjoy diplomatic immunity. That is why I allow you to go without harm." And he summarily dismissed the emissary and as an insult made him leave from the back door. सूत्र १७६ : तए णं से दारुए सारही पउमनाभेणं असक्कारिय जाव निच्छूढे समाणे जेणेव कहे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल - परिग्गहियं जाव कण्हं वासुदेवं एवं वयासी - ' एवं खलु अहं सामी ! तुब्भं वयणेणं जाव णिच्छुभावेइ ।' सूत्र १७६ : पद्मनाभ राजा द्वारा अपमान करके तिरस्कार पूर्वक निकाले जाने पर सारथि दारुक कृष्ण वासुदेव के पास लौटा और हाथ जोड़कर सारा वृत्तान्त सुना दिया । 176. Insulted and dismissed summarily by King Padmanaabh, driver Daruk returned to Krishna Vasudev and narrated his experience in detail. सूत्र १७७ : तए णं से पउमणाभे बलवाउयं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - 'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह ।' तयाणंतरं च णं छेयायरिय-उवदेसमइविकप्पणाहिं विगप्पेहिं जाव उवणेइ । तए णं से पउमनाहे सन्नद्ध जाव अभिसेयं (हत्थिरयणं) दुरूहइ, दुरूहित्ता हय-गय जेणेव कण्हे वासुदेवे तणेव पहारेत्थ गमणाए । सूत्र १७७ : उधर वासुदेव के दूत को निकाल देने के पश्चात् राजा पद्मनाभ ने अपने सेनापति को बुलाया और कहा - " देवानुप्रिय ! अभिषेक किये हुए श्रेष्ठ हाथी को तैयार करके CHAPTER - 16 : AMARKANKA (247) For Private. Personal Use Only 深 Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ज्ज्ज त र ( २४८ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र || 15 लाओ।" सेनापति ने कुशल आचार्य के उपदेश से उत्पन्न हुई बुद्धि की कल्पना के विकल्पों (अनेक र प्रकार की युक्तियों) में निपुण पुरुषों से श्रेष्ठ हाथी का अभिषेक करवा कर उसे राजा के सामने । र उपस्थित किया। वह उज्ज्वल वस्त्र से ढका और सुसज्जित था। राजा पद्मनाभ कवच आदि धारण ट 15 करके सज्जित हुआ और उस अभिषिक्त हाथी पर आरूढ़ हुआ। अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ ड उसने कृष्ण वासुदेव के पड़ाव की ओर प्रस्थान किया। 15 177. After dismissing the emissary of Krishna, King Padmanaabh called 15 his commander-in-chief and said, “Beloved of gods! Equip an anointed l > elephant of the best breed for war and bring it here." The commander got a SI good and pedigreed elephant selected and anointed by proficient exponents of the field, trained by experts of the subject, and produced it before the king. It 2 was duly covered with white cloth, decorated and equipped. King Padmanaabh got ready after putting on his armour, etc. and rode that anointed elephant. He marched with his armies towards the camp.of Krishna. 5 पाण्डवों की हार ___ सूत्र १७८ : तए णं से कण्हे वासुदेवे पउमनाभं रायाणं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता ते पंच द पंडवे एवं वयासी-'हं भो दारगा ! किं तुब्भे पउमनाभेणं सद्धिं जुज्झिहिह उदाहु पेच्छिहिह?' 5 तए णं पंच पंडवा कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-'अम्हे णं सामी ! जुज्झामो, तुब्भे पेच्छह।' दा 5 तए णं पंच पंडवे सन्नद्ध जाव पहरणा रहे दुरुहंति, दुरुहित्ता जेणेव पउमनाभे राया तेणेव से र उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एवं वयासी-'अम्हे वा पउमणाभे वा राय त्ति कट्ट पउमनाभेणं सद्धिं डा B संपलग्गा यावि होत्था। सूत्र १७८ : जब कृष्ण वासुदेव ने राजा पद्मनाभ को आते देखा तो वे पाँचों पाण्डवों से बोले-ड 5 "अरे बालको ! तुम पद्मनाभ के साथ युद्ध करोगे या केवल युद्ध देखोगे ही?" पाण्डवों ने उत्तर दिया-"स्वामी ! हम युद्ध करेंगे आप केवल देखिए।" पाँचों पाण्डव अस्त्र-शस्त्र ले तैयार हो रथों पर सवार हुए और राजा पद्मनाभ के निकट पहुँचे। द मन में यह संकल्प करके कि “आज या तो हम हैं या राजा पद्मनाभ हैं'' वे युद्ध में कूद पड़े।। DEFEAT OF PANDAVS 178. When Krishna Vasudev saw King Padmanaabh coming he asked the five Pandavs, "Children! Would you like to fight King Padmanaabh or want to remain spectators only?" B The Pandavs replied, “Sir! We shall fight; you just watch." JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SŪTRA S Sinnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny vrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrruuuuuuuuuuuu 15 (248) Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्य सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २४९ ) हा 5 The five Pandavs collected their weapons, got ready and boarded their si 15 chariots. They approached King Padmanaabh, resolved, "Today either King S Padmanaabh will perish or we," and jumped into the battle. E सूत्र १७९ : तए णं से पउमनाभे राया ते पंच पंडवे खिप्पामेव हय-महिय-पवरवीर घाइयविवडिय-चिंधद्धय-पडागे जाव दिसोदिसिं पडिसेहेइ। तए णं ते पंच पंडवा पउमणाभेणं र रण्णा हय-महियपवरवीर-घाइयविवडिय जाव पडिसेहिया समाणा अत्थामा जाव अधारणिज्ज द 5 मिति कट्टु जेणेव कण्हे वासुदेव तेणेव उवागच्छंति। र तए णं से कण्हे वासुदेवे ते पंच पंडवे एवं वयासी-'कहण्णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! पउमनाभेणं 5 रण्णा सद्धिं संपलग्गा?' र तए णं ते पंच पंडवा कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-‘एवं खुल देवाणुप्पिया ! अम्हे तुब्भेहिं दी 5 अब्भणुन्नाया समाणा सन्नद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवया रहे दुरुहामो, दुरुहित्ता जेणेव पउमणाभे जाव 5 2 पडिसेहेइ।' 5 सूत्र १७९ : देखते ही देखते राजा पद्मनाभ ने शस्त्रों से प्रहार कर पाँचों पाण्डवों के अहंकार २ का मर्दन कर दिया और उनकी श्रेष्ठ चिह्न वाली पताका गिरा दी। राजा पद्मनाभ द्वारा खदेड़े हुए, ह र शत्रु को पराजित करने में असमर्थ व हताश हुए वे पाँचों पाण्डव कृष्ण वासुदेव के पास लौट ट 5 आये। कृष्ण वासुदेव ने कहा-'देवानुप्रियो ! तुम किस संकल्प के साथ राजा पद्मनाभ से युद्ध में ड र संलग्न हुए थे।" 5 पाण्डवों ने अपने अभियान का पूरा वर्णन करके बताया-“देवानुप्रिय ! हमारा संकल्प था- द 5'आज या तो हम हैं या राजा पद्मनाभ है।' इस संकल्प के साथ हम रथ पर आरूढ़ होकर उसके । र समक्ष गये, पर उसने हमें प्रतिहत-पराजित कर भगा दिया।" 5 179. Within no time King Padmanaabh crushed the ego of the five SI » Pandavs with a barrage of blows with his weapons and cut down their Pexquisite flag. Pushed back by King Padmanaabh, defeated by their enemy, routed and dejected, the five Pandavs came back to Krishna Vasudev. Krishna asked, “Beloved of gods! With what resolve did you enter the battle?" 15 The Pandavs detailed their campaign and said, “Beloved of gods! Our 5 resolve was—"Today either King Padmanaabh will perish or we,' and we boarded our chariots and faced him. But he defeated us and made us Pretreat.” 15 सूत्र १८० : तए णं कण्हे वासुदेवे ते पंच पंडवे एवं वयासी-'जइ णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! Pएवं वयंता-अम्हे, णो पउमणाभे राय त्ति पउमणाभेणं सद्धिं संपलग्गंता, तो णं तुब्भे णो पउमनाहे हय-महियपवर जाव पडिसेहंते। तं पेच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! 'अहं, णो पउमणाभे डा TER-16: AMARKANKA (249) टा Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ LALA र ( २५०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ड 15 राय' त्ति कट्ट पउमनाभेणं रन्ना सद्धिं जुज्झामि। रहं दुरूहइ, दुरूहित्ता जेणेव पउमनाभे राया डा र तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेयं गोखीर-हार-धवलं तणसोल्लिय-सिंदुवार-कुंदेंदु-सन्निगाह 5 निययबलस्स हरिसजणणं रिउसेण्ण-विणासकर पंचजण्णं संखं परामुसइ, परामुसित्ता दी र मुहवायपूरियं करेइ। 15 सूत्र १८0 : इस पर कृष्ण वासुदेव ने कहा-“देवानुप्रियो !यदि तुम इस संकल्प के साथ किट 15 ‘आज हम हैं, पद्मनाभ राजा नहीं' युद्ध में जुटे होते तो वह तुम्हें प्रतिहत नहीं कर पाता। अब डा र देखना मैं इस संकल्प के साथ पद्मनाभ से युद्ध करता हूँ-'आज मैं हूँ, पद्मनाभ नहीं।' " और डी र कृष्ण वासुदेव रथ पर आरूढ़ हो राजा पद्मनाभ के निकट पहुंचे। वहाँ उन्होंने गाय के दूध, मोतियों टा 15 के हार, मल्लिका, मालती, सिंदुवार तथा कुन्द के फूल और चन्द्रमा के समान सफेद पाँचजन्य दा 12 शंख, जो उनकी अपनी सेना में हर्ष संचार करता था, तथा रिपु सेना को त्रस्त करने वाला था, डी र वह शंख हाथ में ले कर फूंका। 15 180. Krishna Vasudev commented. “Beloved of gods! Had you entered the cl 5 battle with the resolve—“Today King Padmanaabh will perish, not us--he ci I would not have defeated you. Now see, I will join the battle with this SI 12 resolve.” Krishna resolved, "Today King Padmanaabh will perish, not me." S He then boarded his chariot and went near King Padmanaabh. Once there he र blew his Panchajanya conch-shell which was white as cow-milk, the pearl || 5 necklace, Mallika, Malati, Sinduvar, and Kund flowers, and the moon. The di 15 sound of Panchajanya instilled joy in his own army and fear in the foe's army. टा र सूत्र १८१ : तए णं तस्स पउमनाहस्स तेणं संखसद्देणं बल-तिभाए हए जाव पडिसेहिए। तए SI रणं से कण्हे वासुदेवे धणुं परामुसइ, वेढो, धणुं पूरेइ, पूरित्ता धणुसदं करेइ। तए णं तस्स टा 15 पउमनाभस्स दोच्चे बल-तिभाए धणुसद्देणं हयमहिय जाव पडिसेहिए। तए णं से पउमनाभे राया | रतिभागबलावसेसे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जं ति कट्ट सिग्घं डा 15 तुरियं जेणेव अमरकंका तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अमरकंकं रायहाणिं अणुपविसइ टा । अणुपविसित्ता दाराइं पिहेइ, पिहित्ता रोहसज्जे चिट्ठइ। र सूत्र १८१ : उस शंख की प्रचण्ड ध्वनि से पद्मनाभ की सेना का एक तिहाई भाग हतोत्साहित टा 15 व त्रस्त होकर चारों दिशाओं में पलायन कर गया। फिर कृष्ण वासुदेव ने अपना सारंग नामक द र धनुष हाथ में लिया (धनुष का वर्णन जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार जाने) और उसकी प्रत्यंचा ड र चढ़ाकर टंकार की। इस तीव्र टंकार से पद्मनाभ की सेना का अन्य एक तिहाई भाग तुरन्त टा 15 भयभीत, निर्वीय होकर भाग गया। अब उसकी सेना का केवल एक तिहाई भाग शेष रहा और वह दी र सामर्थ्यहीन, बलहीन, वीर्यहीन और पुरुषार्थ-पराक्रमहीन हो गया। कृष्ण वासुदेव के प्रहार को सहने डा र या उससे बचने में असमर्थ हो जाने से वह शीघ्र ही द्रुतगति से भाग कर अमरकंका नगरी के डी 5 भीतर जा घुसा। राजधानी में प्रवेश कर द्वार बन्द कर नगर सुरक्षा के लिए तैयारी करने लगा। र (250) | JNATA DHARMA KATHẮNGA SUTRA Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ COR R ES RE 20 Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग : २) 04mama क NAGrepa चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED पद्मनाभ के साथ वासुदेव का युद्ध व सिंहनाद चित्र : २२ __नारद द्वारा प्रेरित अमरकंका के राजा पद्मनाभ ने द्रौपदी का अपहरण करवा लिया। पाँचों पाण्डव वासुदेव श्रीकृष्ण की सहायता से द्रौपदी को लाने अमरकंका पहुंचे। १. युद्ध में पद्मनाभ राजा वासुदेव श्रीकृष्ण की घनघोर वाण-वर्षा के सामने नहीं टिक सका। भागकर नगरी में घुस गया और सिंहद्वार बन्द कर लिया। २. वासुदेव श्रीकृष्ण ने वैक्रिय समुद्घात करके नृसिंह-रूप धारण किया, सिंह-गर्जना के भयंकर नाद से नगर के परकोटे, तोरणद्वार आदि टूटकर धराशायी होने लगे। भयभीत हुआ पद्मनाभ अन्त में द्रौपदी देवी की चरण-शरण लेकर वासुदेव के समक्ष आता है। (सोलहवाँ अध्ययन) THE BATTLE OF VASUDEV AND PADMANAABH - ILLUSTRATION : 22 Inspired by Narad, King Padmanaabh of Amarkanka got Draupadi abducted. The five Pandavs arrived at Amarkanka with the help of Shrikrishna Vasudev. 1. In the ensuing battle Padmanaabh could not stand the incessant shower of arrows by Krishna. He retreated into the city of Amarkanka and closed the gates. 2. Vasudev Shrikrishna approached Amarkanka. With the process of Vaikriya Samudghat he transformed himself into a giant man with lion's head. He then roared loudly and stomped the ground. The terrible roar caused the parapet wall, gates and other structures to fall apart. At last, terrified Padmanaabh sought help from Draupadi and according to her advice came to Vasudev, returned Draupadi, and asked forgiveness. (CHAPTER-16) C . JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA (PART-2) Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - SU U UUUUUUUUUUUUUUUUU क सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २५१ ) डा र 181. The tremendous sound emanating from the conch-shell filled one द 5 third of King Padmanaabh's army with fear and it ran away in panic in all 5 directions. After this Krishna picked up his bow, which was named Sarang,S fixed its string and twanged it. The piercing sound of this twang made another third part of King Padmanaabh's army enervated and run away in panic. Now just one third of his army remained with him. King Padmanaabh 5 became powerless, weak, enervated, and devoid of vigour and valour. When & he found himself unable to save himself from or tolerate the attack of Krishna Vasudev, he at once retreated with great speed and entered PAmarkanka city. He had the gates closed and started preparations for the defence of the city. பெபபபபபபபபபப र कृष्ण का नृसिंह रूप २ सूत्र १८२ : तए णं से कण्हे वासुदेवे जेणेव अमरकंका तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता । 5 रहं ठवेइ, ठवित्ता रहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहणइ, समोहणित्ता ढ 15 एगं महं णरसीहरूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता महया महया सद्देणं पाददद्दरियं करेइ। तए णंह B से कण्हेणं वासुदेवेणं महया महया सद्देणं पाददद्दरएणं कएणं समाणेणं अमरकंका द 15 रायहाणी संभग्गपागार-गोपुराट्टालय-चरिय-तोरण-पल्हत्थियपवरभवण-सिरिघरा सरसरस्स ड र धरणियले सन्निवइया। 15 सूत्र १८२ : तब कृष्ण वासुदेव अमरकंका के निकट गये और रथ रोक कर नीचे उतरे। " र वैक्रियसमुद्घात की क्रिया से उन्होंने एक महान् नृसिंह का रूप धारण किया। वह नृसिंह तीव्र स्वर दें 15 में गरजने लगा और धरती पर पैर पटकने लगा। इस गर्जना और धमक से नगर का परकोटा, द र द्वार, अट्टालिका, परकोटे और नगर के बीच के मार्ग, तोरण आदि गिरने लगे और श्रेष्ठ महल, र कोषागार आदि भवन चरमरा कर धराशायी होने लगे। UUUUUUUUUUUDOण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्U 5 KRISHNA'S FEROCIOUS FORM 182. Krishna followed him and arrived near Amarkanka city. He stopped the chariot and got down. With the help of Vaikriya Samudghat (the process B of transformation of body detailed in ch. 1, para 46) he took the form of 5 Nrisimha (a giant human with a lion-head). This Nrisimha started roaring 5 ferociously and stomping the ground with great force. The roaring and 15 stomping caused the parapet wall, gates, roads, arches , and other structures 12 to crumble, and the gorgeous buildings including the palaces and storehouses to collapse. UU PTER-16 : AMARKANKA (251) EAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मज्ज PR ( २५२ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 सूत्र १८३ : तए णं पउमणाभे राया अमरकंकं रायहाणिं संभग्ग जाव पासित्ता भीए दोवइंट २ देविं सरणं उवेइ। तए णं सा दोवई देवी पउमनाभं रायं एवं वयासी-'किण्णं तुम देवाणुप्पिया ! 15 न जाणसि कण्हस्स वासुदेवस्स उत्तमपुरिसस्स विप्पियं करेमाणे ममं इह हव्वमाणेसि? तंटे र एवमवि गए। गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! हाए उल्लपडसाडए अवचूलग-वत्थणियत्थे 5 अंतेउर-परियालसंपरिवुडे अग्गाई वराई रयणाइं गहाय मम पुरतो काउं कण्हं वासुदेवंदा र करयलपायपडिए सरणं उवेहि, पणिवइयवच्छला णं देवाणुप्पिया ! उत्तमपुरिसा। 15 सूत्र १८३ : अमरकंका की यह भग्न दशा देख, भय से आक्रान्त हुआ पद्मनाभ द्रौपदी देवी कीट शरण में गया। द्रौपदी ने कहा-“देवानुप्रिय ! क्या तुम भूल गये कि पुरुषोत्तम कृष्ण वासुदेव का र विप्रिय (अप्रिय कार्य) कर तुम मुझे यहाँ लाये हो ! फिर भी जो हुआ उसे भूलकर तुम स्नान करो, टे 15 गीले ही वस्त्र धारण करो और कांछ खुली रखो। अपने अन्तःपुर परिवार को साथ में लो और डा र साथ ही बहुमूल्य रत्न भेंट स्वरूप लो। इसके बाद मुझे आगे रखो और चलकर कृष्ण वासुदेव के डा ए पास पहुँच हाथ जोड़ उनके चरणों में गिरकर शरण माँगो । देवानुप्रिय ! उत्तम पुरुष टा र शरणागतवत्सल होते हैं।" र 183. When King Padmanaabh saw this holocaust in Amarkanka city heal rushed to Draupadi in panic and sought her help. Draupadi said, “Beloved of gods! Have you forgotten that you have annoyed Krishna Vasudev by abducting me. Anyway, forget what you have done, take your bath and just S B wrap a length of wet cloth around your body. Collect valuable gems as gifts, take along your women folk and then, keeping me in the lead, humbly walk down to Krishna Vasudev. When you reach him join your palms and fall at ► his feet to seek refuge. Beloved of gods! Virtuous persons have feelings of compassion for refugees." 5 सूत्र १८४ : तए णं से पउमणाभे दोवईए एयमटुं पडिसुणएइ, पडिसुणित्ता बहाए जाव , र सरणं उवेइ, उवइत्ता करयल एवं वयासी-'दिट्ठा णं देवाणुप्पियाणं इड्डी जाव परक्कमे, तं खामेमि । 5 णं देवाणुप्पिया ! जाव खमंतु णं जाव भुज्जो एवं करणयाए' त्ति पंजलिउडे पायवडिए कण्हस्सद वासुदेवस्स दोवइं देविं साहत्थिं उवणेइ। ___ सूत्र १८४ : पद्मनाभ ने द्रौपदी का यह मन्तव्य स्वीकार कर द्रौपदी के कहे अनुसार सभी काम न करता हुआ वासुदेव कृष्ण की शरण में गया। हाथ-जोड़ कर बोला-" हे देवानुप्रिय ! मैंने आपकी । ऋद्धि और पराक्रम देख लिया। हे देवानुप्रिय ! मैं आपसे क्षमा प्रार्थना करता हूँ। मैं ऐसा कार्य फिर से नहीं करूँगा। आप मुझे क्षमा करें।" यह कहते-कहते वह कृष्ण के चरणों में गिर पड़ा। उसने स्वयंड र द्रौपदी देवी को लौटा दिया। nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn (252) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SUTRA | yinhinnnnnnnnnnnnnnnnnAmAAA ----- - - - - - Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - - - - भUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUO र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २५३ ) डा 184. King Padmanaabh accepted the advice of Draupadi and following her 15 instructions approached Krishna Vasudev. With joined palms he said,द "Beloved of gods! I have seen your glory and valour. I humbly seek your forgiveness. I will never repeat such an act. Kindly pardon me." With these 2 words he fell at the feet of Krishna Vasudev. He personally returned al Draupadi to Krishna.. र सूत्र १८५ : तए णं से कण्हे वासुदेवे पउमणाभं एवं वयासी-'हं भो पउमणाभा !S र अप्पत्थियपत्थिया ! किण्णं तुमं ण जाणसि मम भगिणिं दोवइं देविं इह हव्वमाणमाणे? तंटे 5 एवमवि गए। णत्थि ते ममाहिंतो इयाणिं भयमत्थि' ति कट्ट पउमणाभं पडिविसज्जेइ, ड र पडिविसज्जित्ता दोवइं देविं गिण्हइ, गिण्हित्ता रहं दुरूहेइ, दुरूहित्ता जेणेव पंच पंडवे तेणेव || 5 उवागच्छई, उवागच्छित्ता पंचण्हं पंडवाणं दोवइं देविं साहत्थिं उवणेइ। र सूत्र १८५ : कृष्ण ने कहा-"अरे पद्मनाभ ! अवांछित (अनचाहे) की इच्छा करने वाले। क्या । र तू भूल गया है कि तू मेरी बहन द्रौपदी को उठाकर लाया था। फिर भी मैं तुझे अभयदान देता हूँ। 15 जा, मुझसे तुझे कोई भय नहीं।" यह कहकर कृष्ण वासुदेव ने पद्मनाभ को मुक्त किया और द्रौपदी 5 रे को लेकर रथ पर चढ़ पाण्डवों के निकट आये। द्रौपदी को पाण्डवों को सौंप दिया। 5 185. Krishna replied, “Padmanaabh! O desirous of the undesired! You टा 15 forget that you abducted my sister Draupadi. However, I forgive you. GoG away and have no fear from me." And Krishna set King Padmanaabh free. He boarded his chariot with Draupadi and came near the five Pandavs. He 3 handed over Draupadi to the five Pandavs. 5 सूत्र १८६ : तए णं से कण्हे पंचहिं पंडवेहिं सद्धिं अप्पछडे छहिं रहेहिं लवणसमुदंड र मज्झमझेणं जेणेव जंबुद्दीवे दीवे, जेणेव भारहे वासे, तेणेव पहारेत्थ गमणाए। 15 सूत्र १८६ : पाँचों पाण्डवों के साथ कृष्ण छहों रथों में सवार हो लवणसमुद्र पारकर जम्बूद्वीप डा र स्थित भारतवर्ष आने के लिए प्रस्थित हुए। 186. Krishna and the five Pandavs left in their six chariots for the Bharat 5 area in the Jambu continent through the Lavan sea. र सूत्र १८७ : तेणं कालेणं तेणं समएण धायइसंडे पुरित्थमद्धे भारहे वासे चंपा णामं णयरी 5 होत्था। पुण्णभद्दे चेइए। तत्थ णं चंपाए णयरीए कविले णामं वासुदेवे राया होत्था, महया डा र हिमवंत वण्णओ। 15 सूत्र १८७ : काल के उस भाग में धातकीखण्ड के पूर्वार्ध भाग के भरतक्षेत्र में चम्पा नाम की डा रे नगरी थी, जिसमें पूर्ण भद्र नामक चैत्य था। उस नगरी में कपिल नामक वासुदेव राज्य करते थे। वे ही र हिमवान् पर्वत के समान महान थे (वर्णन पूर्ववत्)। DDDDDDDDDDDDDDDDDD9 (253) 15 CHAPTER-16 : AMARKANKA FAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र ( २५४ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 187. During that period of time there was a city named Champa in the Bharat area of the eastern Dhatkikhand continent. There was a temple named Purnabhadra there. Kapil Vasudev was the ruler of that city. He was 5 as illustrious as the Himalayas (as before). 15 कपिल वासुदेव का आश्चर्य र सूत्र १८८ : तेणं कालेणं तेणं समएणं मुणिसुव्वए अरहा चंपाए पुण्णभद्दे समोसढे। कपिले टा 5 वासुदेवे धम्मं सुणेइ। तए णं से कविले वासुदेवे मुणिसुव्वयस्स अरहओ धम्मं सुणमाणे कण्हस्स दे र वासुदेवस्स संखसई सुणेइ। तए णं तस्स कविलस्स वासुदेवस्स इमेयारूवे अज्झथिए 5 र समुप्पज्जित्था-'किं मण्णे धायइसंडे दीवे भारहे वासे दोच्चे वासुदेवे समुप्पण्णे जस्स णं अयंदा संखसद्दे ममं पिव मुहवायपूरिए वियंभइ?' र सूत्र १८८ : काल के उस भाग में मुनिसुव्रत नामक अरिहंत विचरते हुए चम्पा नगरी केट 5 पूर्णभद्र चैत्य में पधारे। वासुदेव कपिल ने उनका धर्मोपदेश सुना। इसी बीच कपिल वासुदेव ने द र कृष्ण वासुदेव के पाँचजन्य शंख का नाद सुना। कपिल के मन में विचार उठा-“क्या धातकीखण्ड ड र के भारतवर्ष में दूसरा वासुदेव उत्पन्न हुआ है? और उसका शंखनाद ऐसा फैल रहा है जैसे स्वयं । मैंने ही फूंका हो?" 15 SURPRISE OF KAPIL VASUDEV 188. During that period of time Arihant Munisuvrat came to Champa and stayed in the Purnabhadra Chaitya. Vasudev Kapil went to his discourse. During the discourse Kapil heard the echoing sound of the Panchajanya conch of Krishna Vasudev. Kapil thought, “Has another Vasudev been born in 5 the Bharat area of the Dhatkikhand? And is the sound of his conch F resonating as it would if I were blowing it?” 15 सूत्र १८९ : ‘कविला वासुदेवा, मुणिसुव्वए अरहा कविलं वासुदेवं एवं वयासी-से णूणं ते ८ र कविला वासुदेवा ! मम अंतिए धम्मं णिसामेमाणस्स संखसई आकण्णित्ता इमेयारूवे अज्झथिए 5 ए समुप्पण्णे-'किं मण्णे जाव वियंभइ, से नूणं कविला ! वासुदेवा ! अयमढे समढे?' 5 'हंता अत्थि।' 15 सूत्र १८९ : मुनिसुव्रत अरिहंत ने कपिल वासुदेव से कहा-“हे कपिल वासुदेव ! मेरा उपदेश टा 15 सुनते-सुनते तुम्हारे मन में प्रश्न उठा कि क्या इस भरतक्षेत्र में दूसरा वासुदेव उत्पन्न हुआ है , र जिसका शंखनाद इतना प्रचण्ड और व्याप्त हो रहा है। (पूर्व सम-सू-१९५)। हे कपिल ! क्या यह है 5 ठीक है, यथार्थ है?" र कपिल-“जी हाँ ! यह सत्य है।" UUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUOS Ko र (254) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SÜTRA 1 Annnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २५५ ) हा ___189. Arihant Munisuvrat asked Vasudev Kapil, “Kapil Vasudev! While > listening to my sermon you are wondering if another Vasudev has been born in the Bharat area of the Dhatkikhand the sound of whose conch is so loud B and resonating? Kapil! Am I right?" 15 “Yes my lord! you are right." र सूत्र १९० : 'नो खलु कविला वासुदेवा, ! एवं भूयं वा, भवइ वा, भविस्सइ वा जण्णं एगे टा 15 खेत्ते, एगे जुगे, एगे समए दुवे अरहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा उप्पज्जिंसु वा, डा र उप्पज्जति वा, उप्पज्जिस्संति वा। एवं खलु वासुदेवा ! जम्बूद्दीवाओ दीवाओ भारहाओ वासाओ टै 15 हत्थिणाउरनयराओ पंडुस्स रण्णो सुण्हा पंचण्हं पंडवाणं भारिया दोवई देवी तव पउमणाभस्स डा र रण्णो पुव्वसंगतिएणं देवेणं अमरकंकाणयरिं साहरिया। तए णं से कण्हे वासुदेवे पंचहिं पंडवेहिं ट 5 सद्धिं अप्पछट्टे छहिं रहेहिं अमरकंकं रायहाणिं दोवईए देवीए कूवं हव्वमागए। तए णं तस्स डा र कण्हस्स वासुदेवस्स पउमनाभेणं रण्णा सद्धिं संगामं संगामेमाणस्स अयं संखसद्दे तव5 मुहवायपूरिते इव इट्टे कंते इहेव वियंभइ।' र सूत्र १९० : अरिहंत मुनिसुव्रत ने कहा-“कपिल वासुदेव ! ऐसा कभी हुआ नहीं, होता नहीं । 5 और होगा नहीं कि एक ही युग में, एक ही समय में दो तीर्थंकर, दो चक्रवर्ती, दो बलदेव अथवा द 5 दो वासुदेव उत्पन्न हों। हे वासुदेव ! जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के हस्तिनापुर नगर के राजा पाण्डु की र पुत्र-वधु द्रौपदी देवी को तुम्हारे पद्मनाभ राजा का पूर्वजन्म का साथी देव हरण करके ले आया था। 5 इस पर कृष्ण वासुदेव पाँचों पाण्डवों सहित उसे छुड़ाने के लिए आये हैं। वे राजा पद्मनाभ के साथ दी 15 संग्राम कर रहे हैं। संग्राम करते हुए कृष्ण वासुदेव का शंखनाद जो इष्ट और कान्त है तुम्हें यहाँ 5 सुनाई दिया है और तुम्हें ऐसा प्रतीत हो रहा जैसे वह तुम्हारे द्वारा फूंका शंखनाद हो।" 15 190. Arihant Munisuvrat said, “Kapil Vasudev! It has never happened, ड » does not happen, and will never happen that in the same era at the same 2 time two Tirthankars, two Chakravartis, two Baldevs, or two Vasudevs are B born. Vasudev! Draupadi, the daughter-in-law of King Pandu of Hastinapur 5 in Bharat area of the Jambu continent was abducted by a god friendly to 5 your King Padmanaabh. Krishna Vasudev and the five Pandavs have come to her rescue. They are at war against King Padmanaabh. During the war Krishna has blown the conch shell emitting the melodious likeable sound which you have heard and it makes you feel as if you have blown the conch 5 yourself.” र सूत्र १९१ : तए णं से कविले वासुदेवे मुणिसुव्वयं वंदइ, नमसइ,वंदित्ता नमंसित्ता एवं डी वयासी-'गच्छामि णं अहं भंते ! कण्हं वासुदेवं उत्तमपुरिसं पासामि।' 15 CHAPTER-16 : AMARKANKA (255) 卐Annnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny VILL Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ %3 - hOOOOOOOOOOOOण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्य 12 ( २५६ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 तए णं मुणिसुब्बए अरहा कविलं वासुदेवं एवं वयासी-'नो खलु देवाणुप्पिया ! एवं भूयं डा र वा, भवइ वा, भविस्सइ वा जण्णं अरिहंता वा अरिहंतं पासंति, चक्कवट्टी वा चक्कवटैि पासंति, 5 बलदेवा वा बलदेवं पासंति, वासुदेवा वा वासुदेवं पासंति। तह वि य णं तुमं कण्हस्स र वासुदेवस्स लवणसमुदं मज्जमज्झेण वीइवयमाणस्स सेयापीयाई धयग्गाइं पासिहिसि।' 15 सूत्र १९१ : कपिल वासुदेव ने तीर्थंकर मुनिसुव्रत को यथाविधि वन्दना की और पूछा-“भंते र मैं जाऊँ और पुरुषोत्तम कृष्ण वासुदेव के दर्शन करूँ?" 15 अरिहंत मुनिसुव्रत ने कहा-“देवानुप्रिय ! ऐसा न हुआ, न होता है, न होगा कि एक तीर्थंकर द । दूसरे तीर्थंकर को देखे, एक चक्रवर्ती दूसरे चक्रवर्ती को देखे, एक बलदेव दूसरे बलदेव को देखे र और एक वासुदेव दूसरे वासुदेव को देखे। फिर भी तुम लवणसमुद्र के मध्य से जाते हुए कृष्ण ट्र 15 वासुदेव के श्वेत व पीत ध्वज के अग्रभाग को देख सकोगे।" र 191. Kapil Vasudev duly bowed before Tirthankar Munisuvrat and asked, SI 12 “Bhante! Should I go and behold the great Krishna Vasudev?" 5 Arihant Munisuvrat, “Beloved of gods! It has never happened, does not 5 happen, and will never happen that two Tirthankars, two Chakravartis, two 2 Baldevs, or two Vasudevs see each other. However, you will be able to see the edge of the white and yellow flag of Krishna Vasudev while he is crossing the - Lavan sea." 5 शंखनाद-मिलन सूत्र १९२ : तए णं कविले वासुदेवे मुणिसुव्वयं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता हत्थिखधं । दुरूहइ, दुरूहित्ता सिग्घं सिग्घं जेणेव वेलाउले तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कण्हस्स ई र वासुदेवस्स लवणसमुदं मज्झमज्झेणं वीइवयमाणस्स सेयापीयाइं धयग्गाइं पासइ, पासित्ता एवं ट 15 वयइ-'एस णं मम सरिसपुरिसे उत्तमपुरिसे कण्हे वासुदेवे लवणसमुदं मझमझेणं वीईवयइ' द र ति कट्ट पंच जन्नं संखं परामुसइ मुहवायपूरियं करेइ। 5 सूत्र १९२ : कपिल वासुदेव ने तीर्थंकर मुनिसुव्रत को यथाविधि वन्दन किया और हाथी पर द र आरूढ़ होकर अति शीघ्र गति से समुद्रतट पर आये। वहाँ उन्होंने लवणसमुद्र पार करते हुए कृष्ण र वासुदेव के श्वेत पीत ध्वज का अग्रभाग देखा और बोले-“यह मेरे समान पुरुष है। यह पुरुषोत्तम ट 15 कृष्ण वासुदेव हैं। ये लवणसमुद्र को पार कर रह रहे हैं।" और उन्होंने अपना पाँचजन्य शंख हाथ र में ले मुँह के निकट ला उसे फूंका। 5 CONCH-SOUND GREETING 192. Kapil Vasudev duly bowed before Tirthankar Munisuvrat and riding 5 an elephant rushed to the sea shore with great speed. There he saw the edge 2 (256) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA' FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAI Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २५७ ) SI of the white and yellow flag of Krishna Vasudev while he was going across 5 the Lavan sea and said, “He is a lofty person like me. He is the great Krishna Vasudev and he is crossing the Lavan sea.” He picked up his Panchajanya ç P conch, took it to his lips and blew it. 5 सूत्र १९३ : तए णं से कण्हे वासुदेवे कविलस्स वासुदेवस्स संखसदं आयन्नेइ, आयन्नित्ता र पंचजन्नं जाव पूरियं करेइ। तए णं दो वि वासुदेवा संखसद्दसामायारिं करेंति। 5 सूत्र १९३ : कृष्ण वासुदेव ने वह शंखनाद सुना और अपना पाँचजन्य शंख निकाल कर स्वयं द र भी फूंक दिया। इस प्रकार दोनों वासुदेवों ने शंखनाद-मिलन किया। E 193. Krishna heard the echo and blew his own conch. Thus the two ट 5 Vasudevs greeted each other with conch sound. र सूत्र १९४ : तए णं से कविले वासुदेवे जेणेव अमरकंका तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता 15 अमरकंकं रायहाणिं संभग्गतोरणं जाव पासइ, पासित्ता पउमणाभं एवं वयासी-'किण्णंड र देवाणुप्पिया ! एस अमरकंका रायहाणी संभग्ग जाव सन्निवइया?' 5 सूत्र १९४ : तत्पश्चात् कपिल वासुदेव अमरकंका आये। वहाँ पहुँचकर उन्होंने देखा कि ड र अमरकंका के तोरण आदि ध्वस्त हो चुके हैं। उन्होंने पद्मनाभ से प्रश्न किया-“देवानुप्रिय ! यह ड र ध्वंस क्यों कर हुआ?" 5 194. After this Kapil Vasudev came to Amarkanka city and saw that the Sl arches and gates and all other constructions have been destroyed. He asked र King Padmanaabh, “Beloved of gods! What has caused this destruction?" ट 15 सूत्र १९५ : तए णं से पउमनाभे कविलं वासुदेवं एवं वयासी-‘एवं खलु सामी ! डी र जम्बुद्दीवाओ दीवाओ भारहाओ वासाओ इहं हव्यमागम्म कण्हेणं वासुदेवेणं तुब्भे परिभूय टी 15 अमरकंका जाव सन्निवाइया।' र सूत्र १९५ : तब कपिल वासुदेव से पद्मनाभ ने कहा, "हे स्वामी ! जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र सेट 15 कृष्ण वासुदेव यहाँ आए और आपको अपमानित कर अमरकंका को ध्वस्त कर दिया है।" र 195. King Padmanaabh replied, "Sire! Krishna Vasudev from the Bharat S R area of Jambu continent came here, insulted you, and destroyed Amarkanka 5 city." र सूत्र १९६ : तए णं से कविले वासुदेव पउमणाहस्स अंतिए एयम8 सोच्चा पउमणाहं एवं र वयासी-हं भो पउमणाभा ! अपत्थियपत्थिया ! किं णं तुमं न जाणसि मम सरिसपुरिसस्स कण्हस्स वासुदेवस्स विप्पियं करेमाणे?' आसुरुत्ते जाव पउमणाहं णिव्विसयं आणेवइ, SI र पउमणाहस्स पुत्तं अमरकंकारायहाणीए महया महया रायाभिसेएणं अभिसिंचइ, जाव पडिगए। सी R CHAPTER-16 : AMARKANKA (-5, टा YAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ( २५८ ) सूत्र १९६ : पद्मनाभ का उत्तर सुन कपिल वासुदेव बोले - " अरे पद्मनाभ ! अनीच्छित की इच्छा ' करने वाले ! क्या तू नहीं जानता कि तूने मेरे समान उत्तम पुरुष कृष्ण वासुदेव का अनिष्ट किया है ?" और क्रोधित हो उन्होंने पद्मनाभ को देश निकाला दे दिया। पद्मनाभ के पुत्र का अमरकंका के सिंहासन पर राज्याभिषेक कर कपिल वासुदेव लौट गये । 196. Hearing this reply from King Padmanaabh, Kapil Vasudev reprimanded him, “ Padmanaabh! O desirous of the undesired ! Don't you know that you have ill treated Krishna Vasudev, who is a great man like me?" Sizzling with anger, he exiled King Padmanaabh. Kapil Vasudev placed King Padmanaabh's son on the throne of Amarkanka city and returned. 5 पाण्डवों द्वारा कृष्ण बल - परीक्षा सूत्र १९७ : तए णं से कहे वासुदेवे लवणसमुद्दं मज्झंमज्झेणं वीइवयइ, गंगं उवागए, ते पंच पंडवे एवं वयासी - 'गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! गंगामहानदिं उत्तरहं जाव ताव अहं सुट्ठियं देवं लवणाहिवई पासामि ।' तए णं पंच पंडवा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ता समाणा जेणेव गंगा महानदी व उवागच्छंति उवागच्छित्ता एगट्टियाए णावाए मग्गणगवेसणं करेंति, करित्ता एगट्टियाए नावाए गंगामहानदिं उत्तरंति, उत्तरित्ता अण्णमण्णं एवं वयंति - ' पहू णं देवाणुप्पिया ! कण्हे वासुदेवे गंगामहाणइं वाहाहिं उत्तरित्त ? उदाहु णो पभू उत्तरित्तए?' त्ति कट्टु एगट्टियं नावं णूमेंति, मित्ता कण्हं वासुदेवं पडिवालेमाणा पडिवालेमाणा चिट्ठति । सूत्र १९७ : इधर कृष्ण वासुदेव लवणसमुद्र पारकर गंगा महानदी के निकट आये। वहाँ पहुँचकर उन्होंने पाण्डवों से कहा -" - "देवानुप्रियो ! तुम लोग प्रस्थान करो। जब तक तुम गंगानदी को पार करोगे मैं लवण समुद्र के अधिपति सुस्थित देव से भेंट कर लेता हूँ ।" पाँचों पाण्डव कृष्ण के कथनानुसार गंगा नदी के तट पर पहुँचे और एक नौका की खोजकर उसमें बैठ गंगा के पार पहुँच गये। वहाँ उतरकर उन्होंने परस्पर विचार किया - “देवानुप्रिय ! देखते हैं कि कृष्ण वासुदेव महानदी गंगा को भुजाओं से तैरकर पार करने में समर्थ हैं या नहीं ?” यह विचार कर उन्होंने वह नाव छुपा दी और कृष्ण की प्रतीक्षा करने लगे । PANDVAS TEST KRISHNA 197. In the mean time, Krishna crossed the Lavan sea and arrived near the great Ganges. He said to the Pandavs, "Beloved of gods! You may proceed. While you cross the Ganges I shall meet Susthit god, the care taker of the Lavan sea." ( 258 ) 5 JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA 問 Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ज्ज्ज्ज सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २५९ ) As instructed by Krishna the Pandavs came to the river bank, searched for a boat and then crossed the Ganges. After they disembarked they conferred, "Beloved of gods! Let us see if Krishna Vasudev is strong enough to swim across the great Ganges." Agreeing to this they hid the boat and waited for Krishna. सूत्र १९८ : तए णं से कण्हे वासुदेवे सुट्ठियं लवणाहिवई पासइ, पासित्ता जेणेव गंगा महानदी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एगट्टियाए सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ, करित्ता एगट्ठियं णावं अपासमाणे एगाए बाहाए रहं सतुरंग ससारहिं गेण्हइ, एगाए बाहाए गंगं महादि वास जोयणाई अद्धजोयणं च वित्थिन्नं उत्तरितं पयत्ते यावि होत्था । तणं हे वासुदेवे गंगामहाणईए बहूमज्झदेसभागं संपत्ते समाणे संते तंते परितंते बद्धसेए जाये या होत्था । सूत्र १९८ : उधर कृष्ण वासुदेव लवणाधिपति सुस्थितदेव से मिलकर गंगा महानदी के तट पर आये। वहाँ उन्होंने चारों ओर नाव की खोज की पर नौका कहीं दिखाई नहीं दी । तब उन्होंने अपने एक हाथ में अश्व और सारथी सहित रथ को उठाया और दूसरे हाथ से तैरते हुए साढ़े बासठ योजन विस्तार वाली गंगा महानदी को पार करने लगे । कृष्ण वासुदेव जब गंगा नदी के बीचों बीच पहुँचे तो थक गये, उन्हें पसीना आ गया। उन्हें नाव की आवश्यकता महसूस हुई और नाव न होने से बहुत खेद हुआ । 198. Krishna came to the bank of the Ganges after his meeting with the master of the Lavan sea. He searched all around for a boat in vain. He then lifted the chariot with the driver in one hand and started swimming with the help of the other. This way he commenced the sixty two and a half Yojan long swim. When he reached midway he felt tired. He was perspiring profusely. He acutely felt the need of a boat and was sorry not to have one. सूत्र १९९ : तए णं कण्हस्स वासुदेवस्स इमे एयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था - 'अहो णं पंच पंडवा महाबलवग्गा, जेहिं गंगा महाणदी बावट्ठि जोयणाई अद्धजोयणं च वित्थिन्ना बाहाहिं उत्तिणा । इच्छंतएहिं णं पंचहि पंडवेहिं पउमणाभे राया जाव णो पडिसेहिए।' तए णं गंगा देवी कण्हस्स इमं एयारूवं अज्झत्थियं जाव जाणित्ता थाहं वियरइ । तए णं से कण्हे वासुदेवे मुहत्तंतरं समासासेइ, समासासित्ता गंगामहाणदिं बावडिं जाव उत्तरइ, उत्तरित्ता जेणेव पंच पंडवा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंच पंडवे एवं वयासी - अहो णं तुभ २ देवाणुप्पिया ! महाबलवगा, जेहिणं तुब्भेहिं गंगा महाणदी बावट्ठि जाव उत्तिष्णा, इच्छंत एहिं तुमेहिं पउमनाहे जाव णो पडिसेहिए । CHAPTER - 16: AMARKANKA For Private Personal Use Only (259) Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ETUVIVUTUUTTUNUT ( २६०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र SL 15 सूत्र १९९ : उस समय वासुदेव के मन में विचार उठा-“अहो ! पाँचों पाण्डव महान वलवान दा र हैं, उन्होंने इस विशाल पाट वाली गंगा नदी को तैर कर पार कर लिया। ऐसा लगता है कि उन्होंने ड र जानबूझ कर राजा पद्मनाभ को पराजित नहीं किया।" 5 उनकी यह मनोदशा देख गंगा देवी ने उन्हें स्थान (आश्रय) दे दिया। कृष्ण ने थोड़ी देर विश्राम 5 र किया और फिर गंगा के विशाल पाट का शेष भाग पार किया। जव वे पाण्डवों के पास पहुंचे तो ट 5 बोले-“अहो देवानुप्रियो ! तुम लोग महान बलवान हो क्योंकि तुमने विशाल पाट वाली गंगा महा दी 15 नदी को तैरकर पार किया है। तब तो तुमने जानबूझ कर ही पद्मनाभ को पराजित नहीं किया डा UUUN र होगा?" 5 199. At that time Krishna thought, “Oh! The Pandavs are extremely » strong; they have crossed the great width of the Ganges swimming. It SI 2 appears that they intentionally did not defeat King Padmanaabh.” 15 Looking at his mental condition the river goddess gave him a place to 5 rest. After resting for some time Krishna covered the remaining distance. S When he approached the Pandavs he said, “Beloved of gods! You are extremely strong because you have crossed the great expanse of the Ganges B swimming. It appears that you intentionally did not defeat King a Padmanaabh." र पाण्डवों का देश निकाला के सूत्र २00 : तए णं पंच पंडवा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ता समाणा कण्हं वासुदेवं एवं हा 5 वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हे तुब्भेहिं विसज्जिया समाणा जेणेव गंगा महाणदी तेणेव टा 15 उवागच्छामो, उवागच्छित्ता एगट्टियाए मग्गणगवेसणं तं चेव जाव णूमेमो, तुब्भे पडिवालेमाणा डी र चिट्ठामो।' र सूत्र २०0 : श्रीकृष्ण वसुदेव की बात सुनकर पाँचों पाण्डवों ने स्पष्ट किया5 “देवानुप्रिय ! आपसे विदा लेकर हम गंगा तट पर आये और नौका की खोज कर उस पर दी वैठकर इस पार चले आये। फिर आपके बल की परीक्षा लेने के उद्देश्य से हमने नाव छुपा ड दी और आपके आगमन की प्रतीक्षा करने लगे।" [ PANDAVS EXILED 200. The Pandavs explained, “Beloved of gods! After we left you we came 2 to the bank of the Ganges and searched for a boat. We found one and crossed the river in that boat. Then we hid the boat in order to test your strength and 5 waited for you." IR ( 260) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA FinninAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण DUDDDDDDDDDDDDDDDDDDजक र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २६१) सूत्र २0१ : तए णं कण्हे वासुदेवे तेसिं पंचण्हं पंडवाणं एयमहूँ सोच्चा णिसम्म आसुरुत्ते डा र जाव तिवलियं एवं वयासी-'अहो णं जया मए लवणसमुदं दुवे जोयणसयसहस्सा वित्थिन्नं दा 5 वीईवइत्ता पउमणाभं हयमहिय जाव पडिसेहित्ता अमरकंका संभग्गा, दोवई साहत्थिं उवणीया, ड र तया णं तुब्भेहिं मम माहप्पं ण विण्णायं, इयाणिं जाणिस्सह !' त्ति कट्ट लोहदंडं परामुसइ, 15 पंचण्हं पंडवाणं रहे चूरेइ, चूरित्ता णिव्विसए आणवेइ आणवित्ता तत्थ णं रहमद्दणे नाम कोटे SI र णिविटे। 15 सूत्र २0१ : पाण्डवों की यह बात सुनकर कृष्ण वासुदेव अतीव क्रुद्ध हो गये और उनके डा र ललाट पर तीन सल पड़ गये। वे बोले-“अहो, जब मैंने दो लाख योजन विस्तार वाले लवणसमुद्रट र को पार करके पद्मनाभ को क्षत-विक्षत और पराजित किया, अमरकंका को ध्वस्त किया और द 15 अपने हाथों द्रौपदी को लाकर तुम्हें सौंपा तब तुम्हें मेरे महात्म्य का परिचय नहीं मिला और अब S - तुम मेरा महात्म्य जान लोगे?" यह कहकर उन्होंने हाथ में एक लौहदण्ड लिया और पाण्डवों के ट 5 रथ को चूर-चूर कर दिया। पाण्डवों को देश निकाले की आज्ञा दे दी और उस स्थान पर रथ-मर्दन द 15 नामक कोट (स्थान) की स्थापना की। 201. Krishna got furious at this statement of the Pandavs and three creases appeared on his forehead. He said, "How foolish of you! You could not recognize my greatness when I crossed the two hundred thousand Yojan wide Lavan sea, subdued and conquered King Padmanaabh, destroyed 12 Amarkanka city, rescued Draupadi and brought her to you. But now you will K be able to recognize my greatness." And he took an iron rod and turned the 5 chariots of Pandavs to pulp. He exiled the five Pandavs and founded a 15 township at that spot naming it as Rath-mardan (breaking of the chariots). S र सूत्र २०२ : तए णं से कण्हे वासुदेवे जेणेव सए खंधावारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ८ 15 सएणं खंधावारेणं सद्धिं अभिसमन्नागए यावि होत्था। तए णं से कण्हे वासुदेवे जेणेव बारवई ड र नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बारवई णयरिं अणुपविसइ। 5 सूत्र २०२ : कृष्ण वासुदेव तब अपनी सेना के पड़ाव में आये और सेना सहित प्रयाण कर र द्वारका नगरी आ पहुंचे। 15 202. Krishna then returned to the place where his army had camped, ) 2 broke camp and returned to Dwarka. 5 सूत्र २०३ : तए णं ते पंच पंडवा जेणेव हत्थिणाउरे णयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता डा र जेणेव पंडू राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल जाव एवं वयासी-‘एवं ताओ ! अम्हे दी 15कण्हेणं णिव्विसया आणत्ता।' 15 CHAPTER-16 : AMARKANKA (261) FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA CUUUUUUUN Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६२ ) तप णं पंडुराया ते पंच पंडवे एवं वयासी - कहं णं पुत्ता ! तुब्भे कण्हेणं वासुदेवेण णिव्विसया आणत्ता ? ' तए णं ते पंच पंडवा पंडुरायं एवं वयासी - ' एवं खलु ताओ ! अम्हे अमरकंकाओ पडिनियत्ता लवणसमुदं दोन्निं जोयणसयसहस्साइं वीइवइत्ता तए णं से कण्हे वासुदेवे अम्हे एवं वयासी - 'गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! गंगामहाणदि उत्तरह जाव चिट्ठह, ताव अहं एवं तहेव जाव चिट्ठेमो। तए णं से कहे वासुदेवे सुट्ठियं लवणाहिवई दट्ठूण तं चैव सव्वं, नवरं कण्हस्स चिंता ण बुज्झति, जाव अम्हे णिव्विस आणवेइ ।' 背 सूत्र २०३ : उधर पाँचों पाण्डव हस्तिनापुर पहुँचे और राजा पाण्डु के पास जा हाथ जोड़कर बोले - " हे तात ! कृष्ण ने हमें देश निकाले की आज्ञा दी है । " ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र राजा पाण्डु ने पूछा - " पुत्रो ! कृष्ण वासुदेव ने तुम्हें किस कारण ऐसी आज्ञा दी ?" तब पाण्डवों ने अमरकंका से लौटने लवण समुद्र पार करने, और गंगा महानदी उतरने से लेकर देश निकाले की आज्ञा मिलने तक की सम्पूर्ण घटना का सविस्तार वर्णन किया । 203. The five Pandavs returned to Hastinapur, went to King Pandu and after greetings said, "Father! Krishna Vasudev has exiled us." King Pandu asked, "Sons! For what reason Krishna has given such order?" The Pandavs narrated in details all the incidents including departure from Amarkanka city, crossing the sea, crossing the Ganges, and getting the order of exile. सूत्र २०४ : राजा पाण्डु ने पाण्डवों से कहा - ' वाला काम करके अच्छा नहीं किया।" सूत्र २०४ : तए णं से पंडुराया ते पंच पंडवे एवं वयासी - 'दुट्टु णं पुत्ता ! कयं कण्हस्स वासुदेवस्स विप्पियं करेमाणेहिं ।' ( 262 ) 204. King Pandu commented, “ Sons! It is not befitting you to have done something that annoyed Krishna Vasudev." 5 - " पुत्रो ! तुमने कृष्ण वासदेव को अप्रिय लगने कुन्ती का कृष्ण के पास जाना सूत्र २०५ : तए णं पंडू राया कोंति देविं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - 'गच्छ णं तुमं देवाणुप्पिया ! बारवई कण्हस्स वासुदेवस्स णिवेदेहि - ' एवं खलु देवाणुप्पिया ! तुम्हे पंच पंडवा ( णिव्विसया आणत्ता, तुमं च णं देवाणुप्पिया ! दाहिणड्ढभरहस्स सामी, तं संदिसंतु णं देवाप्पिया ! ते पंच पंडवा कयरं देसं वा दिसिं वा विदिसिं वा गच्छंतु ? ' JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA For Private Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ תעתעתעת र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २६३ ) डा 15 सूत्र २०५ : और फिर पाण्डु राजा ने कुन्ती देवी को बुलाकर कहा-“देवानुप्रिये ! तुम द्वारका दी र जाओ और वासुदेव कृष्ण से निवदेन करो-" हे देवानुप्रिय ! तुमने पाँचों पाण्डवों को देश निकाले ड र की आज्ञा दी है परन्तु तुम्हारा आधिपत्य तो समस्त दक्षिणार्ध भरत क्षेत्र पर है। अतः तुम्ही बताओ ट] 15 कि पाँचों पाण्डव किस देश, किस दिशा या विदिशा में जायें ?" 15 KUNTI GOES TO KRISHNA र 205. After this King Pandu called queen Kunti and said, “Beloved of gods! Proceed to Dwarka and submit before Krishna Vasudev-'Beloved of gods! 15 You have ordered the five Pandavs to leave the country but you are the al 5 sovereign of the whole southern Bharat. As such, kindly tell to which country टी 5 or direction the Pandavs should go?' र सूत्र २०६ : तए णं सा कोंती पंडुणा एवं वुत्ता समाणी हत्थिखंधं दुरूहइ, दुरूहित्ता जहा 15 हेट्ठा जाव-'संदिसंतु ण पिउत्था ! किमागमण पओयणं? 5 तए णं सा कोंती कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-एवं खलु पुत्ता ! तुमे पंच पंडवा णिव्विसया र आणत्ता, तुमं च णं दाहिणड्डभरहस्स सामी। तं संदिसंतु णं देवाणुप्पिया ते पंच पंडवा कयरं देसं र वा दिसं वा जाव विदिसिं वा गच्छंतु? 5 सूत्र २०६ : राजा पाण्डु के कहने पर कुन्ती देवी हाथी पर आरूढ़ होकर द्वारका गईं और डा र कृष्ण वासुदेव के पास पहुँची (विस्तृत विवरण-पूर्व सूत्र १५४, १५५ के अनुसार)। कृष्ण ने पूछा15 “बुआ ! कहिये कैसे आना हुआ?" र कुन्ती ने उत्तर दिया-“हे पुत्र ! तुमने पाण्डवों को देश निकाले की आज्ञा दी है। पर तुम तो ड 15 समस्त दक्षिणार्ध भारत के स्वामी हो, ऐसे में तुम्ही बताओ वे कहाँ जायें ?" > 206. As directed by King Pandu queen Kunti rode an elephant and went ç 2 to Krishna Vasudev in Dwarka (details as before). Krishna asked, “Aunt! S] B Please say what brings you to me?" 15 Kunti replied, “Beloved of gods! You have ordered the five Pandavs to C leave the country but you are the sovereign of the whole southern Bharat. As Ç 2 such, kindly tell to which country or direction the Pandavs should go?" S 5 सूत्र २०७ : तए णं से कण्हे वासुदेवे कोंतिं देविं एवं वयासी-'अपूइवयणा णं पिउच्छा! ट र उत्तमपुरिसा-वासुदेवा बलदेवा चक्कवट्टी। तं गच्छंतु णं पंच पंडवा दाहिणिल्लं वेयालिं, तत्थ ड 15 पंडुमहुरं णिवेसंतु, ममं अदिट्ठसेवगा भवंतु' त्ति कटु सक्कारेइ, सम्माणेइ, जाव पडिविसज्जेइ। द र सूत्र २0७ : कृष्ण वासुदेव ने कुन्ती से कहा-“बुआ ! वासुदेव, बलदेव व चक्रवर्ती जैसे उत्तम SI 5 पुरुष आपूर्तिवचन (अपना वचन पूरा करने वाले) होते हैं, उनके वचन न तो मिथ्या होते न वापस ट (263) TER-16 : AMARKANKA FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAALI Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ( २६४ ) होते । देवाप्रिये ! पाँचों पाण्डव दक्षिण दिशा में समुद्र तट पर जायें और वहाँ पाण्डु-मथुरा नाम की ) नयी नगरी बसावें और मेरे अदृष्ट सेवक (मेरी आँखों से दूर) होकर रहें।" इस प्रकार समाधान कर कृष्ण ने कुंती को सम्मान पूर्वक विदा किया। 207. Krishna replied, “ Aunt ! The words uttered by great men like Vasudev, Baldev, and Chakravarti never become false nor are taken back. Beloved of gods! Let the five Pandavs go to the southern sea coast and found a new town named Pandu-Mathura. They should spend their lives as my subjects beyond the reach of my eyes." After providing this solution Krishna bid farewell to Kunti with due regards. सूत्र २०८ : तए णं सा कोंती देवी जाव पंडुस्स एयमहं णिवेदेइ । तए णं पंडू या पंच पंडवे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - 'गच्छह णं तुब्भे पुत्ता ! दाहिणिल्लं वेयालिं, तत्थ णं तुभे पंडुमहुरं णिवेसेह | ' तए णं पंच पंडवा पंडुस्स रण्णो जाव तह त्ति पडिसुर्णेति, पडिसुणित्ता सबल-वाहणा हय गय हत्थिणाउराओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता जेणेव दक्खिणिल्ले वेयाली तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पंडुमहुरं नगरिं निवेसंति, निवेसित्ता तत्थ णं ते विपुलभोगसमितिसमण्णागया यावि होत्था । सूत्र २०८ : कुंती देवी ने द्वारका से लौट कर यह सब वृतान्त राजा पाण्डु को सुनाया । पाण्डु राजा ने अपने पुत्रों को बुलाकर श्रीकृष्ण का आदेश बताते हुए कहा- " - " पुत्रो ! तुम दक्षिणी समुद्र तट पर पाण्डु-मथुरा नगरी बसा कर वहाँ पर रहो।" पाण्डवों ने ‘“जो आज्ञा” कहकर पाण्डु राजा की आज्ञा स्वीकार की और बल, वाहन, घोड़े, हाथी सहित चतुरंगिनी सेना आदि साथ ले हस्तिनापुर से निकले । दक्षिण की ओर प्रयाण कर वे समुद्र तट पर पहुँचे और पाण्डु-मथुरा नामक नगरी बसा कर सुखपूर्वक रहने लगे। 208. Queen Kunti returned from Dwarka and informed all this in detail to King Pandu. King Pandu called his sons and informed them about the order of Krishna Vasudev. He added, "Sons! Now you should proceed to the southern sea coast, found a new town named Pandu-Mathura, and live there." "As you say. With these words the Pandavs accepted the order of King Pandu and left Hastinapur with goods, vehicles, horses, elephants and army and proceeded south. After reaching the southern sea coast they founded a new town and named it Pandu - Mathura. And they resumed their normal happy life. (264) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA For Private Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ UUJAL AUDजक सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २६५)दा र सूत्र २०९ : तए णं सा दोवई देवी अन्नया कयाइ आवण्णसत्ता जाया यावि होत्था। तए णं दी दोवई देवी णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव सुरूवं दारगं पयाया सूमालं, कोमलय ड र गयतालुयसमाणं। णिव्वत्तबारसाहस्स इमं एयारूवं गोण्णं गुणनिष्फण्णं नामधेज्जं करेंति-जम्हा णं 15 अम्हं एस दारए पंचण्हं पंडवाणं पुत्ते दोवईए देवीए अत्तए, तं होउ अम्हं इमस्स दारगस्स ट 15 णामधेज्जं 'पंडुसेणे'। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो णामधेज्जं करेंति पंडुसेण त्ति। ___ बावत्तरिं कलातो जाव भोग समत्थे। जाते जुवराय जाव विहरति। 5 सूत्र २०९ : कालान्तर में द्रौपदी देवी गर्भवती हुई और उसने यथासमय सुन्दर सुकुमार और ट 15 हाथी के तालू जैसे कोमल शरीर वाले पुत्र को जन्म दिया। बारह दिन बीतने पर बालक के ड र माता-पिता ने निर्णय लिया कि यह बालक पाँच पाण्डवों का पुत्र और द्रौपदी का आत्मज है अतः । ए इसका नाम पाण्डुसेन होना चाहिए। र तब उन्होंने समारोह पूर्वक बालक का नाम पाण्डुसेन रख दिया। 5 पाण्डुसेन क्रमशः बड़ा हुआ। बहत्तर कलाओं का ज्ञाता बना। युवा होने पर उसका पाणिग्रहण हुआ और फिर युवराज बनकर रहने लगा। र 209. With passage of time Draupadi conceived and in due course gave h to a son who was beautiful, delicate, and tender as the palate of an c elephant. After twelve days of his birth the parents decided that as he was e son of the Pandays and Draupadi he should be called Pandusen. 2 Accordingly they performed his naming ceremony with great festivities. As time passed Pandusen grew up and learned the seventy two arts. When he came of age he was married and made the heir to the throne. पाण्डवों की दीक्षा 5 सूत्र २१0 : तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसा थेरा समोसढा। परिसा निग्गया। पंडवा र निग्गया, धम्म सोच्चा एवं वयासी-'जं णवरं देवाणुप्पिया ! दोवइं देविं आपुच्छामो, पंडुसेणं च । 15 कुमारं रज्जे ठावेमो, तओ पच्छा देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता जाव पव्वयामो।' र 'अहासुहं देवाणुप्पिया !' __ सूत्र २१० : काल के उस भाग में वहाँ धर्मघोष स्थविर पधारे। परिषद निकली और पाँचों में र पाण्डव भी उपदेश सुनने गये। बाद में उन्होंने स्थविर मुनि से कहा-“देवानुप्रिय ! हमें संसार से र विरक्ति हो गई है। हम द्रौपदी देवी से आज्ञा लेकर तथा कुमार पाण्डुसेन को राजसिंहासन पर । 5 स्थापित करने के पश्चात् आपके निकट मुण्डित हो दीक्षा ग्रहण करेंगे।" स्थविर धर्मघोष ने कहा-“देवानुप्रियो ! जिसमें तुम्हें सुख मिले वह करो।" R CHAPTER-16 : AMARKANKA (265) FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAnn Uuuuur SLA SUAN - - - - - - -.. . Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६६ ) DIKSHA OF PANDAVS 210. During that period of time Sthavir Dharmaghosh arrived there. A delegation of citizens including the Pandavs went to his discourse. After the discourse the Pandavs said to the great ascetic, "Beloved of gods! We are filled with a feeling of detachment from the mundane life. We shall seek approval of queen Draupadi and crown prince Pandusen, and after that come to you to accept Diksha after shaving our heads." Sthavir Dharmaghosh said, "Beloved of gods! Do as you please." सूत्र २११ : तए णं ते पंच पंडवा जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता दोवई देविं सद्दावेंति सद्दावित्ता एवं वयासी - ' एवं खलु देवाणुप्पिए ! अम्हेहिं थेराणं अंतिए धम् णिसंते जाव पव्वयामो, तुमं देवाणुप्पिये ! किं करेसि ? ' तए णं सा दोवई देवी ते पंच पंडवे एवं वयासी - ' जइ णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! संसारभउव्विग्गा पव्वयह, ममं के अण्णे आलंबे वा जाव भविस्सइ ! अहं पियणं संसारभउव्विग्गा. देवाणुप्पिएहिं सद्धिं पव्वइस्सामि । ' ज्ज्फ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र सूत्र २११ : पाँचों पाण्डव अपने महल में लौटे और द्रौपदी देवी को बुलाकर कहा" देवानुप्रिये ! हमने स्थविर मुनि का उपदेश सुना है और संसार त्याग कर दीक्षा लेने का निर्णय किया है। तुम्हें क्या करना है ?" द्रौपदी ने उत्तर दिया- “देवानुप्रियो !जब आप संसार भय से उद्विग्न हो दीक्षा ले लेते हैं तो मेरा यहाँ अन्य क्या अवलम्बन रह जायेगा ? ऐसी स्थिति में संसार के भय से उद्विग्न मैं भी आपके साथ ही दीक्षा अंगीकार करूँगी।" 211. The Pandavs returned to their palace, called Draupadi and said, "Beloved of gods! We have listened to the discourse of the Sthavir ascetic and have decided to renounce the world to get initiated. What do you want to do?" Draupadi replied, "Beloved of gods! When you are disturbed by the fears of the mundane world and want to get initiated I will be left with no support and purpose. In this situation I will also accept Diksha as I am also disturbed by the fears of the mundane world." सूत्र २१२ : तए णं पंच पंडवा पंडुसेणस्स अभिसेओ जाव राया जाव रज्जं पसासेमाण विहरइ । तए णं ते पंच पंडवा दोवई य देवी अन्नया कयाइं पंडुसेणं रायाणं आपुच्छंति । तए णं से पंडुसेणे राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! निक्खमणाभिसेयं करेह, जाव पुरिससहस्सवाहिणीओ सिवियाओ उवट्टवेह | ' जाव पच्चोरुहंति । जेणेव थेरा तेणेव आलित्ते णं जाव समणा जाया । चोद्दसपुव्वाइं अहिज्जंति, JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA (266) Hon For Private Personal Use Only फ्री Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २६७ ) अहिज्जित्ता बहूणि वासाणि छट्ठट्टम - दसम - दुवालसेहिं मासद्ध-मासखमणेहिं अप्पा भावे विहरति । सूत्र २१२ : तब पाण्डवों ने कुमार पाण्डुसेन का राज्याभिषेक कर दिया । पाण्डुसेन कुशलता पूर्वक राज्य संचालन करने लगे। कालान्तर में पाँचों पाण्डवों तथा द्रौपदी ने पाण्डुसेन राजा से दीक्षा की अनुमति माँगी | पाण्डुसेन ने अपने सेवकों को बुलाया और कहा -" -" देवानुप्रियो ! शीघ्र ही दीक्षा - महोत्सव की तैयारी करो और हजार पुरुष उठायें ऐसी विशाल पालकियाँ तैयार कराओ।" सेवकों ने आज्ञा का पालन किया और पाण्डवों ने द्रौपदी सहित समारोह पूर्वक यथाविधि धर्मघोष स्थविर के पास जाकर दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के पश्चात् उन्होंने चौदह पूर्वों का अध्ययन किया और बेला-तेला-चोला यावत् अर्ध-मासखमण आदि कठिन तपस्या करते हुए आत्मोन्नति की और प्रयत्नशील हो साधु जीवन बिताने लगे । 212. The Pandavs crowned their son prince Pandusen and he took the reigns of the state in his able hands. Later the Pandavs and Draupadi sought permission for Diksha from king Pandusen. Pandusen called his servants and said, "Beloved of gods! Make arrangements for the Diksha ceremony and get Purisasahassa palanquins ready." The servants did as told and the five Pandavs with Draupadi ceremoniously went to the camp of Dharmaghosh Sthavir and there the Pandavs got initiated. With passage of time they acquired the knowledge of the fourteen sublime canons and started doing various penances including two day, three day, four day, and a fortnight long fasts for their spiritual advancement. सूत्र २१३ : तए णं सा दोवई देवी सीयाओ पच्चोरुहइ, जाव पव्वइया सुब्वयाए अज्जाए सिस्सिणीयत्ताए दल गति । इक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूणि वासाणि छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसे हें जाव विहर । सूत्र २१३ : तब द्रौपदी देवी भी पालकी से उतरी और उसने भी दीक्षा ले ली। वह सुव्रता आर्या की शिष्या के रूप में दी गई। उसने भी ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और बेला- तेला आदि अनेक प्रकार का कठिन तप करती हुई संयम जीवन बिताने लगी । 213. After this Draupadi also got down from the palanquin and she also got initiated. She became the disciple of Suvrata Arya. She also studied the eleven canons and commenced the harsh and disciplined ascetic life. सूत्र २१४ : तए णं थेरा भगवंतो अन्नया कयाई पंडुमहुराओ णयरीओ सहस्संबवणाओ उज्जाणाओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरति । CHAPTER - 16 : AMARKANKA For Private Personal Use Only (267) Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र ( २६८ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र | 15 सूत्र २१४ : कालान्तर में वे स्थविर मुनि पाण्डु-मथुरा के सहस्राम्रवन उद्यान से निकले और ड र बाहर जनपदों में विचरने लगे। 15 214. Later the Sthavir ascetic left Sahasramravan and Pandu-Mathura and resumed his itinerant life. 5 यात्रा व तपस्या ___ सूत्र २१५ : तेणं कालेणं तेणं समएणं अरिहा अरिठ्ठनेमी जेणेव सुरट्ठाजणवए तेणेव दे 5 उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुरद्वाजणवयंसि संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। ___तए णं बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! अरिहा अरिट्ठनेमी टी र सुरट्ठाजणवए जाव विहरइ। तए णं से जुहिडिल्लपामोक्खा पंच अणगारा बहुजणस्स अंतिए ड र एयमहँ सोच्चा अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावित्ता एवं वयासी ___‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! अरहा अरिट्ठनेमी पुव्वाणुपुव्विं जाव विहरइ, तं सेयं खलु अम्हं डा र थेरे भगवंते आपुच्छित्ता अरहं अरिट्टनेमि वंदणाए गमित्तए।' अन्नमन्नस्स एयमढें पडिसुणेति, ट 15 पडिसुणित्ता जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते वंदंति, नमसंति, ड र वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-'इच्छामो णं तुब्भेहिं अब्भणुनाया समाणा अरहं अरिठ्ठनेमिं जावटी 15 गमित्तए।' 'अहासुहं देवाणुप्पिया !' 15 सूत्र २१५ : काल के उस भाग में अरिहंत अरिष्टनेमि सुराष्ट्र जनपद में पधारे। वे तप और डी र संयम द्वारा आत्मा को भावित करते हुए सुराष्ट्र जनपद में विचरने लगे। वहाँ पर अनेक लोग ही 15 परस्पर चर्चा कर रहे थे कि तीर्थंकर अरिष्टनेमि सुराष्ट्र (सौराष्ट्र) जनपद में विचर रहे हैं। र युधिष्ठिर आदि पाँचों अनगारों ने भी जन-मुख से यह समाचार सुने और परस्पर विमर्श करने S र लगे-“देवानुप्रियो !अरिहंत अरिष्टनेमि अनुक्रम से विचरते हुए सुराष्ट्र जनपद में पधारे हैं। अतः । 15 स्थविर गुरु से अनुमति लेकर उन्हें वन्दन करने जाना हमारे लिए अच्छा होगा।" सब अनगार इस द बात पर सहमत हो स्थविर भगवंत के पास गये और यथाविधि वन्दना करके पूछा-“भगवन्त ! र आपकी अनुमति लेकर हम अरिहंत अरिष्टनेमि को वन्दन करने जाना चाहते हैं।" स्थविर भगवन्त ने कहा-“देवानुप्रियो ! जिसमें तुम्हें सुख प्राप्त हो वही करो। TRAVEL AND PENANCE 215. During that period of time Arihant Arishtanemi came to Surashtra area. He started moving around in Surashtra doing his spiritual practices of a penance and discipline. People were telling each other that Arihant Arishtanemi is wandering in the Surashtra area. The five ascetics including , (268) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪT انعككمتکلمهلكادE Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ज्य 卐UDDDDDDDDDDDDDDDDD D U 2 सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २६९ ) हा 5 Yudhisthir also heard this news and deliberated, “Beloved of gods! S > Wandering from one place to another Arihant Arishtanemi has come to the > Surashtra area. So we should take permission from our Sthavir guru and go to him to pay our homage." They all agreed and went to the Sthavir ascetic. After conveying due obeisance they asked, “Bhante! With your permission we want to go to Arihant Arishtanemi to pay our homage." Sthavir Bhagavant replied, “Beloved of gods! Do as you please." सूत्र २१६ : तए णं ते जहुट्ठिलपामोक्खा पंच अणगारा थेरेहिं अब्भणुनाया समाणा थेरेस 5 भगवंते वंदंति, णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता थेराणं अंतियाओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ताड र मासंमासेण अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं गामाणुगामं दूइज्जमाणा जाव जेणेव हत्थिकप्पे नयरे तेणेव दे 5 उवागच्छंति, उवागच्छित्ता हत्थिकप्पस्स बहिया सहसंबवणे उज्जाणे जाव विहरंति। २ सूत्र २१६ : युधिष्ठिर आदि पाँचों मुनियों ने स्थविर भगवन्त से आज्ञा प्राप्त कर उन्हें वन्दना नमस्कार की, और वहाँ से प्रस्थान किया। निरन्तर मासखमण तप करते हुए, एक गाँव से दूसरे ८ 15 गाँव विहार करते हुए हस्तीकल्प नगर के बाहर सहस्राम्रवन उद्यान में पहुंचे। 2 216. The five ascetics including Yudhishthir formally bowed before hima 5 after getting permission and commenced their journey. Doing a chain of one month long fasts they crossed one village and then other and reached at the 15 Sahasramravan garden outside Hastikalp city. र सूत्र २१७ : तए णं ते जुहिट्ठिलवज्जा चत्तारि अणगारा मासखमणपारणए पढमाए 15 पोरिसीए सज्झायं करेंति, बीयाए एवं जहा गोयमसामी, णवरं जुहिटिलं आपुच्छंति, जाव ड 15 अडमाणा बहुजणसई णिसामेंति-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! अरहा अरिट्ठनेमी उज्जिंतसेलसिहरे । र मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं पंचहिं छत्तीसेहिं अणगारसएहिं सद्धिं कालगए सिद्ध बुद्धे मुत्ते टा अंतगडे सव्वदुक्खप्पहीणे।' र सूत्र २१७ : वहाँ युधिष्ठिर के अतिरिक्त शेष चारों अनगारों ने मासखमण के पारणे के दिन टी 5 प्रथम प्रहर में स्वाध्याय तथा दूसरे प्रहर में ध्यान किया। (चर्या का शेष वर्णन गौतम स्वामी के दी 5 समान)। फिर वे युधिष्ठिर अनगार से अनुमति ले भिक्षा हेतु निकले। चलते-चलते उन्होंने अनेक डा र लोगों को चर्चा करते सुना-"देवानुप्रियो ! तीर्थंकर अरिष्टनेमि उज्जयंत पर्वत गिरनार पर्वत के डी र शिखर पर एक मास का निर्जल उपवास करके पाँच सौ छत्तीस श्रमणों के साथ सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, टी 15 अन्तकृत् होकर समस्त दुःखों से रहित हो गये हैं।" र 217. There, on the day of the breakfast, leaving aside Yudhishthir the > other four ascetics spent the first quarter of the day doing their studies and the second quarter doing meditation (detailed description of the daily routine 5 same as in case of Gautam Swami). After this they took permission from 5 CHAPTER-16 : AMARKANKA (269) الكياناتهنیاتو Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐 ( २७० ) Yudhisthir and went out to collect alms. While they were walking they heard many people talking-"Beloved of gods! Tirthankar Arishtanemi along with five hundred and thirty six ascetics went to the peak of the Ujjayant mountain (Girnar) and after a month long fast became Siddh, enlightened, and liberated from the cycles of rebirth ending all sorrows." ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र सूत्र २१८ : तए णं ते जुहिट्ठिलवज्जा चत्तारि अणगारा बहुजणस्स अंतिए एयम सोच्चा हत्थिकपाओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता जेणे सहसंबवणे उज्जाणे, जेणेव जुहिट्ठिले अणगारे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भत्तपाणं पच्चुवेक्खति, पच्चुवेक्खित्ता गमणागमणस्स पडिक्कमंति, पडिक्कमित्ता एसणमणेसणं आलोएंति, आलोइत्ता भत्तपाणं पडिदंसेंति, पडिदंसित्ता एवं वयासी सूत्र २१८ : यह समाचार सुन चारों मुनि हस्तीकल्प नगर से बाहर निकले और सहस्राम्रवन में युधिष्ठिर अनगार के पास आये। वहाँ उन्होंने आहार- पानी की प्रत्युपेक्षणा की, गमनागमन का प्रतिक्रमण किया, एषणा- अनेषणा की आलोचना की और आहार- पानी युधिष्ठिर अनगार को दिखला कर बोले 218. Getting this news, the four ascetics came out of Hastikalp city and reached Yudhisthir in the Sahasramravan garden. They inspected the food they had brought, did the Pratikraman for movement, reviewed proper and improper actions, showed the food to Yudhishthir and said - सिद्धपद-प्राप्ति सूत्र २१९ : ' एवं खलु देवाणुप्पिया ! जाव कालगए, तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! इमं पुव्वगहियं भत्तपाणं परिवेत्ता सेतुंज्जं पव्वयं सणियं सणियं दुरुहित्तए, संलेहणाझूसणा-झोसियाणं कालं अणवकंखमाणाणं विहरित्तए, त्ति कट्टु अण्णमण्णस्स एयमट्ठ पडिणित्ता तं पुव्वगहियं भत्तपाणं एगंते परिट्ठवंति, परिट्ठवित्ता जेणेव सेतुंज्जे पव्वए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेतुंज्जं पव्वयं दुरुहंति, दुरुहित्ता जाव कालं अणवकंखमाणा विहरति । सूत्र २१९ : "हे देवानुप्रिय ! भिक्षा के लिए नगर में जाने पर हमने सुना कि तीर्थंकर अरिष्टनेमि कालधर्म को प्राप्त हुए हैं। अतः अच्छा यह होगा कि भगवान के निर्वाण की सूचना सुनने से पूर्व ग्रहण किये हुए इस आहार पानी को त्याग कर धीमे-धीमे शत्रुंजय पर्वत पर चढ़ें और संलेखना तथा कर्मों का शोषण व क्षीण करने की क्रियाएँ करते हुए मृत्यु की आकांक्षा रहित हो ध्यान मग्न हो जायें।" सभी अनगार इस बात पर सहमत हो गये और तब लाई हुई आहार सामग्री को यथाविधि यथास्थान परठकर ( डालकर ) शत्रुंजय पर्वत की ओर प्रस्थान किया। वहाँ जाकर अपने निश्चयानुसार समय व्यतीत करने लगे । (270) For Private Personal Use Only JNĀTA DHARMA KATHANGA SÜTRA ஊ தி Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - । ऊUDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD P सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २७१ ) डा 15 GETTING LIBERATED 219. "Beloved of gods! While we were moving around in the city to collect alms we heard that Tirthankar Arishtanemi has breathed his last. So it R would be good if we abandon this food that was collected before getting the # news of the Nirvana of the Tirthankar, slowly climb the Shatrunjaya mountain, take the ultimate vow, indulge in the activities that weaken and eliminate karmas, and go into meditation without the desire of death." They all agreed and disposed of the food they had collected at the proper place and > left for Shatrunjaya mountain. After arriving there they commenced the si 2 practices as they had decided. र सूत्र २२0 : तए णं ते जुहिट्ठिलपामोक्खा पंच अणगारा सामाइयमाइयाई चोद्दस पुव्वाइंट 15 अहिज्जित्ता बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता दो मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झोसित्ता डा र जस्सट्ठाए कीरइ णग्गभावे जाव तमढें आराहेंति। आराहित्ता अणंते जाव केवलवरनाणदंसण टा र समुप्पाडेत्ता जाव सिद्धा। 15 सूत्र २२० : युधिष्ठिर आदि पाँचों अनगारों ने सामायिक से आरम्भ कर चौदह पूर्वो का डी र अभ्यास करते हुए अनेक वर्षों तक श्रमण जीवन का पालन किया था, और अन्त में दो मास की टी 15 संलेखना से आत्मा को शुद्ध किया। अंततः जिस उद्देश्य से नग्नत्व तथा मुंडित होना अंगीकार किया दर 15 जाता है वह उद्देश्य प्राप्त किया। उन्हें श्रेष्ठ केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त हुए और वे सिद्ध हो डा र गये। 15 220. The five ascetics including Yudhishthir had studied the fourteen 5 sublime canons and led a long ascetic life. In the end they took the ultimate 15 vow of two months' duration and purified their souls. At last they achieved the goal for which they had shaved their heads and got initiated. They attained the supreme Keval Jnana and Keval Darshan and became Siddhs 1B (the pure and liberated state of soul) 15 सूत्र २२१ : तए णं सा दोवई अज्जा सुव्बयाणं अज्जियाणं अंतिए सामाइयमाइयाइंड र एक्करस्स अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए ही र संलेहणाए आलोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा बंभलोए उववन्ना। 15 सूत्र २२१ : उधर दीक्षा लेने के पश्चात् आर्या द्रौपदी ने आर्या सुव्रता के पास सामायिक से र लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन करते हुए अनेक वर्षों तक श्रमण जीवन का पालन किया। अन्त में टी 5 एक मास की संलेखना, आलोचना और प्रतिक्रमण करके यथासमय देह त्याग किया और ब्रह्मलोक दा 5 में जन्म लिया। 221. In the mean time, after getting initiated Arya Draupadi studied the ven canons starting with the Samayik and spent a long and disciplined APTER-16: AMARKANKA ( 271) टा 卐nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज मा र ( २७२ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र दा life as an ascetic. In the end she took an ultimate vow of one month duration, 15 reviewed her life and did the ultimate Pratikraman. In due course she breathed her last and reincarnated as a goddess in the Brahmalok. र सूत्र २२२ : तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। तत्थ णं दोवइस्स हा 15 देवस्स दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। र सूत्र २२२ : ब्रह्मलोक नाम के पाँचवें देवलोक में अनेक देवों की आयु दस सागरोपम की ही 15 बताई गई है। द्रौपदी देव की आयु भी दस सागरोपम की बताई है। र 222. In Brhamlok, the fifth dimension of gods, the life-span of many gods 5 is said to be ten Sagaropam. The life span of god Draupadi is also said to be 5 ten Sagaropam. सूत्र २२३ : से णं भन्ते ! दुवए देवे ताओ देवलोगाओ जाव महाविदेहे वासे जाव अंतं 5 15 काहिइ? र सूत्र २२३ : गौतम स्वामी ने जिज्ञासा की-'भन्ते ! वह द्रुपद देव वहाँ से च्यवन कर कहाँ जन्म 5 लेगा?" भगवानं ने उत्तर दिया-ब्रह्मलोक की आयु, स्थिति और भव का क्षय होने पर वह ट 15 महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर कर्मों का अन्त करेगा।" र 223. Gautam Swami asked, “Bhante! Where will this Drupad god descend after completing this life span?" Mahavir replied, “After completing the life span, state, and form as a god in the Brahmalok this god will be born in the 15 Mahavideh area and end all karmas." 5 सूत्र २२४ : एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं सोलसमस्स णायज्झयणस्स र अयमढे पण्णत्ते त्ति बेमि। 5 सूत्र २२४ : हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने सोलहवें ज्ञात अध्ययन का यह अर्थ बताया ट 5 है। मैंने जैसा सुना वैसा ही कहा है।" . र 224. Jambu! This is the text and the meaning of the sixteenth chapter of S the Jnata Sutra as told by Shraman Bhagavan Mahavir. So I have heard, so I 2 confirm. ॥ सोलसमं अज्झयणं समत्तं ॥ ॥ सोलहवाँ अध्ययन समाप्त ॥ || END OF THE SIXTEENTH CHAPTER II ROUNDA - UruuuN - र (272) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA S Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्卐 उपसंहार ज्ञाता धर्मकथासूत्र की इस सोलहवीं विस्तृत कथा में अनेक चरित्र हैं तथा अनेक घटनाएँ। इन डा र सब के माध्यम से प्रतिष्ठा, वासना, भय, आसक्ति, कौतुहल आदि भावनाओं से प्रेरित व्यक्ति टा 15 सन्मार्ग से कैसे भटक जाता है इसका रोचक चित्रण है। विवेक नष्ट होने पर कैसे कष्ट उठाने दी र पड़ते हैं यह वर्णन कर सन्मार्ग की ओर प्रेरित किया गया है। CONCLUSION This sixteenth story of Jnata Dharma Katha is very long and has numerous characters and incidents. With the help of all these the story 15 explains how a man drifts away from the spiritual path under the influence < 5 of a variety of feelings and attitudes, including conceit, lust, fear, fondness, SI > and curiosity. How much one suffers when he takes leave of his rationality has been detailed in an interesting style in order to inspire one to accept the Bright path. DUDUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण | उपनय गाथा_ सुबहू वि तव-किलेसो, नियाणदोसेण दूसिओ संतो। न सिवाय दोवतीए, जह किल सुकुमालियाजम्मे॥१॥ अमणुन्नमभत्तीए, पत्ते दाणं भवे अणत्थाय। जह कडुयतुंबदाणं, नागसिरिभवंमि दोवईए॥२॥ तपश्चर्या का कोई कितना ही कष्ट क्यों न सहन करे किन्तु जब वह निदान के दोष से दूषित दी र हो जाती है तो मोक्षप्रद नहीं होती, जैसे सुकुमालिका के भव में द्रौपदी के जीव का तपश्चरण S र मोक्षफलदायक नहीं हुआ॥१॥ र अथवा इस अध्ययन का उपनय इस प्रकार समझना चाहिए-सुपात्र को भी दिया गया आहार | र अगर अमनोज्ञ हो और दुर्भावपूर्वक दिया गया हो तो अनर्थ का कारण होता है, जैसे नागश्री टा 15 ब्राह्मणी के भव में द्रौपदी के जीव द्वारा दिया कटुक तुम्बे का दान॥२॥ P CHAPTER-16 : AMARKANKA ( 273 ) दा Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७४ ) THE MESSAGE No matter how much pain one has to tolerate while doing penance, if it becomes contaminated by ambition it does not lead to Moksha, this is the same as the penance done by the being that became Draupadi during her birth as Sukumalika. (1) Another message is-The donation of food even to a deserving recepient bears evil fruits if it is contaminated or is given with bad intentions. This is the same as the donation of bitter gourd by the being that became Draupadi during her birth as Nagshri Brahmani. (2) परिशिष्ट कांपिल्य (कंपिला) तेरहवें तीर्थंकर विमलनाथ का जन्म स्थान । तीर्थकल्प के अनुसार यह पांचाल जनपद में गंगा के किनारे बताया गया है। अठारहवीं शताब्दी के जैन यात्रियों के वर्णन के अनुसार यह नगरी अयोध्या के पश्चिम दिशा में है। इन वर्णनोंके अनुसार फर्रुखाबाद जिले के कायमगंज से उत्तर-पश्चिम में छह मील दूर यह स्थान लगता है। तीर्थकल्प में कांपिल्य के निकट पिटियारी ग्राम का उल्लेख है । यह वर्तमान का पटियारी ग्राम लगता है जो कंपिला से १८ - १९ मील उत्तर-पश्चिम में है। ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र पांडु मथुरा - पुराने समय में मदुरा में पाण्ड्य वंश का राज्य था । इससे यह अनुमान होता है कि प्राचीन पांडु-मथुरा आज की मदुरा है। इस कथा में भी कृष्ण द्वारा पाण्डवों को दक्षिण समुद्र तट पर भेजने की बात कही है। इससे भी यह अनुमान पुष्ट होता है। हत्थकप्प - इस कथा के वर्णन के अनुसार यह स्थान शत्रुंजय के आसपास होने का अनुमान लगता है। वर्तमान में काठियावाड में तलाजा के निकट हाथप नाम का गाँव है। यह शत्रुंजय से दूर नहीं है । यही हथ्थकप्प रहा होगा । गुप्तवंश के धरसेन प्रथम वल्लभी दानपत्र हस्तवप्र क्षेत्र का उल्लेख है। विद्वानों के मत में यह हथ्थकप्प ही है। सत्रहवीं शताब्दी के गद्य पांडवचरित्र में देवविजय जी के अनुसार हस्तिकल्प से रैवतक की दूरी बारह योजन बताई है। यह भी इसी अनुमान की पुष्टि करता है। उज्जयंत पर्वत- रैवतक पर्वत या गिरनार । (274) हस्तिनापुर - पौराणिक दृष्टि से यह नगर भी वाराणसी तथा अयोध्या की भाँति एक महत्वपूर्ण नगर रहा है। यह कुरुजांगल जनपद की राजधानी थी । महाभारत के अनुसार सुहोत्र के पुत्र राजा हस्ती ने इसे बसाया था। विविध तीर्थकल्प के अनुसार ऋषभदेव के पौत्र तथा कुरु के पुत्र हस्ती ने यह नगर बसाया था । वसुदेवहिण्डी में इसका नाम ब्रह्मस्थली लिखा | वर्तमान में मेरठ से २२ मील उत्तर-पश्चिम तथा दिल्ली से छप्पन मील दक्षिण-पूर्व में यह नगर विद्यमान है। निदान के सम्बन्ध में विस्तृत वर्णन अन्तकृद्दशा महिमा में तथा दशाश्रुतस्कंध सूत्र में देखें । JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA For Private Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ suurrrrrrrr र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका rrr ( 204 ) APPENDIX Kampilya (Kampila)-The birth place of Vimalnath, the thirteenth Tirthankar. According to Tirthakalp it is situated on the banks of the Ganges in the Panchal area. According to the eighteenth century Jain pilgrims, this city is to the east of Ayodhya. Going R by these descriptions this place is somewhere six miles northeast of Kayamganj in district Farrukhabad. In Tirthakalp there is mention of village Pitiyari near Kampilya. This appears to be the modern Patiyari village lying about eighteen miles north east of the site now accepted as Kampila. Recently a temple and research complex have been constructed there. Pandu-Mathura-In the past the Pandya dynasty ruled over Madura. This gives rise to 5 the surmise that the ancient Pandu-Mathura is modern Madura. According to this story the C 5 Pandavs were sent to the southern sea coast by Krishna. This also supports this theory. Hatthakapp-According to the details mentioned in this story this place appears to be somewhere near the Shatrunjaya hills. There is a village named Hathap near Talaja in > modern Kathiyawad. It is not far from Shatrunjaya, so this could be the ancient > Hatthakapp. In the Vallabhi inscription of Dhaarsen first of the Gupta dynasty there is s mention of Hast and Prakshep. According to scholars this is the same Hatthakapp. In the seventeenth century prose work Pandav Charitra by Devavijaya it is mentioned that the » distance between Hastikalp and Raivatak hill was 48 miles. This also confirms the theory. Ujjayant hill-Raivatak hill or Girnar hill. Hastinapur-In Indian mythology this town also finds pride of a place like Varanasi and Ayodhya. According to the Mahabharat it was founded by king Hast, the son of Suhotra. According to Vividh Tirthakalp it was founded by King Hasti, the son of Kuru and grandson of Rishabhdev. In Vasudevhindi it is mentioned as Brahmasthali. The city still exists and is 5 22 miles northwest of Meruth and 56 miles south east of Delhi. Nidan-Desire or ambition. Details about this are available in Antakriddasha Mahima 5 and Dashashrutaskandh Sutra. vururuuruurrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr PTER-16: AMARKANKA ( 275 ) sannnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्रहवाँ अध्ययन : आकीर्ण: आमुख Snnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn) शीर्षक-आइण्णे-आकीर्ण-एक उत्तम जाति विशेष के अश्व। इन्द्रिय-सुखों के आकषर्णों के विस्तृत जाल हर कदम पर साधना पथ पर बिछे होते हैं। तनिक चूके कि जाल में फँसे। अश्वों के पकड़े जाने के उदाहरण से विषयों की आसक्ति अनासक्ति के परिणाम को स्पष्ट किया गया है। ___ कथासार-हस्तिशीर्ष नगर के कतिपय व्यापारी व्यापार हेतु समुद्र यात्रा पर निकले। समुद्री तूफान में फँस कर वे एक अनजाने कालिक द्वीप में जा पहुंचे। वहाँ उन्होंने अनेक खनिज पदार्थ तथा उत्तम जाति के घोड़ों के झुंड देखे। उन्होंने खनिजों से अपना जहाज भरा और हस्तिशीर्ष लौट आए। वे राजा को भेंट देने गये तो राजा ने पूछा कि तुमने कोई आश्चर्यजनक वस्तुएँ भी कभी देखीं? उन्होंने राजा से कहा कि कालिक द्वीप के सुन्दर अश्व सचमुच ही आश्चर्यजनक हैं। राजा ने अपने सेवकों को व्यापारियों के साथ कर दिया और कहा कि घोड़े पकड़ कर लावें। राजा के सेवक घोड़ों को लुभाने वाली अनेक वस्तुएँ साथ लेकर द्वीप पर आए और अपने जाल बिछा दिये। घोड़ों का समूह वहाँ आया तो अनेक घोड़े उन विभिन्न वस्तुओं से आकर्षित हुए और जाल में फँस गये। अन्य अनेक अश्व दूर से ही बिदक कर अपने चारागाह की ओर लौट गए। __ सेवक घोड़ों को जहाज में भरकर ले आए और राजा के पास पहुँचा दिये। राजा ने अश्व-मर्दकों को बुलाकर घोड़ों को कार्य योग्य बनाने का प्रशिक्षण दिलाया। इस प्रकार जो घोड़े आकर्षण में फँस गये थे वे बंदी बनाए गये और अनेक प्रकार की पीड़ा सहते हुए जीवन बिताने लगे। जो आकर्षण में नहीं फँसे वे स्वच्छंद सुखमय जीवन बिताते रहे। 6) JNĀTĀ DHARMA KATHÂNGA SÜTRA CI - - - - Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Furuv vos SEVENTEENTH CHAPTER : THE HORSES : INTRODUCTION Title-Ainne-Akirna-horses of an excellent breed. The enticing and elaborate snares of sensual pleasures litter the path of spiritual endeavour. One wrong step and you are caught. With an appropriate example of ensnaring the horses, the outcome of both fondness for and detachment from carnal pleasures has been explained in this story. Gist of the story-Some merchants from Hastishirsh city set out on a sea voyage. Caught in a storm they arrived at an unknown island, the Kalik Island. There they saw numerous precious minerals and herds of wild horses. They filled the coffers of their ship with these minerals and returned to Hastishirsh. When they visited the king with gifts he asked them if they had come across any astonishing things during their voyage. They informed the king that the graceful horses of the Kalik island were truly astonishing. The king ordered his servants to go with the merchants and bring some horses. The king's servants took along a variety of alluring things and devices to attract the horses and came to the island. They fixed a few snares. The herd of horses arrived there and many of them were attracted and trapped. Many others were fearful of the strange contraptions and galloped away to their regular grazing pastures. The servants transferred the trapped horses to the ship and delivered them to the king. The king called horse trainers to break and train the horses. Thus the horses that were trapped led a painful life. Those who shunned the allurements continued to led a free and happy life. 15 CHAPTER-17: THE HORSES (277) & Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १ : 'जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सोलसमस्स णायज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते, सत्तरसमस्स णं णायज्झयणस्स के अट्ठे पण्णत्ते ? ' सत्तरसमं अज्झयणं : आइण्णे सत्रहवाँ अध्ययन आकीर्ण SEVENTEENTH CHAPTER : AKIRNA - THE HORSES सूत्र १ : जम्बू स्वामी ने प्रश्न किया- “ भन्ते ! जब श्रमण भगवान महावीर ने सोलहवें ज्ञात अध्ययन का पूर्वोक्त अर्थ बताया है तो सत्रहवें ज्ञात अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?” 1. Jambu Swami inquired, “Bhante! What is the meaning of the seventeenth chapter according to Shraman Bhagavan Mahavir?" सूत्र २ : ' एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे णामं नयरे होत्था, वण्णओ । तत्थ णं कणगकेऊ णामं राया होत्था, वण्णओ । सूत्र २ : सुधर्मा स्वामी ने उत्तर दिया- “ जम्बू ! काल के उस भाग में हस्तिशीर्ष नाम का नगर था। उस नगर में कनककेतु नाम का राजा था । ( विस्तृत वर्णन औपपातिकसूत्र के नगर वर्णन अनुसार) 2. Sudharma Swami narrated -Jambu! During that period of time there was a city named Hastisheersh. The name of the ruler of this city was King Kanak-ketu. (details as in Aupapatik Sutra) सूत्र ३ : तत्थ णं हत्थिसीसे णयरे बहवे संजुत्ता - णावा - वाणियगा परिवसंति, अड्डा जाव बहुजणस्स अपरिभूया यावि होत्था । तए णं तेसिं संजत्ता - णावा - वाणियगाणं अन्ना का ग सहियाणं जहा अरहण्णओ जाव लवणसमुदं अणेगाई जोयणसयाइं ओगाढा यावि होत्था । सूत्र ३ : हस्तिशीर्ष नगर में अनेक सांयात्रिक (साथ-साथ यात्रा करने वाले) नौकावणिक् रहते थे। वे धनाढ्य और समर्थ थे। एक बार वे व्यापारी परस्पर मिले और समुद्रयात्रा पर जाने का निर्णय किया । यथासमय शुभ मुहुर्त में ( यथाविधि ) यात्रारम्भ कर वे सांयात्रिक नौकावणिक् लवणसमुद्र में सैकड़ों योजन पहुँच गये। (विस्तृत विवरण अर्हन्नक की कथा के समान -अ : ८ ) 3. In Hastisheersh city there lived many wealthy and reputed Sanyantriks (merchants who went to other countries for trade) and Nauvaniks (merchants who carried their merchandise in boats). One day all these merchants met together and decided to go on a sea voyage. At an auspicious JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA (278) For Private Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्रहवाँ अध्ययन : आकीर्ण ( २७९ ) moment they started their journey and went hundreds of Yojans ahead on the Lavan sea within a few days. ( details as in ch. 8, story of Arhannak) सूत्र ४ : तए णं तेसिं जाव बहूणि उप्पाइयसयाइं जहा मागंदियदारगाणं जाव कालियवाए य तत्थ समुत्थिए । तए णं सा णावा तेणं कालियवाएणं आघोलिज्जमाणी आघोलिज्जमाणी संचालिज्जमाणी संचालिज्माणी संखोहिज्जमाणी संखोहिज्जमाणी तत्थेव परिभमइ । तसे णिज्जाएमईए णट्ठसुईए णट्ठसणे मूढदिसाभाए जाए यावि होत्था । ण जाणइ कयरं देसं वा दिसिं वा विदिसं वा पोयवहणे अवहिए त्ति कट्टु ओहयमणसंकप्पे जाव झियाय । सूत्र ४ : वहाँ लवण समुद्र में उन्हें अनेकों उत्पातों का सामना करना पड़ा (विस्तृत विवरण माकन्दी पुत्र की कथा के समान - अ : ९ ) । उसी समय समुद्री तूफान भी आरम्भ हो गया और उनकी नौका वायु के थपेड़ों से बारम्बार काँपने लगी, डोलने लगी, ऊपर-नीचे गिरने लगी और एक स्थान पर ही चक्कर काटने लगी । ऐसी विकट स्थिति में माँझी की बुद्धि मारी गई व अनुभव लुप्त हो गया और वह संज्ञाहीन जैसा हो गया । दिशा का ज्ञान भी नहीं रहा । और यह भान भी नहीं रहा कि नाव किस प्रदेश में है अथवा किस दिशा या विदिशा में जा रही है। वह भग्न संकल्प हो चिन्ता मग्न हो गया । 4. In the sea they had to face many difficulties. They were caught in a storm and the ship started trembling, drifting, rising and falling, and whirling under the force of the gale. (details as in ch. 9, the story of Makandi) In this dangerous situation the captain of the ship lost his wit and poise and was bewildered. He lost all sense of direction and thus was unaware of the position and the direction of movement of the ship. He became disoriented and started brooding. उत्पातों से मुक्ति सूत्र ५ : तए णं ते बहवे कुच्छिधारा य कण्णधारा य गब्भिल्लगा य संजत्ता णावा वाणिया य जेणेव से निज्जामए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एवं वयासी - 'किण्णं तुमं देवाणुप्पिया ! ओहयमणसंकपे जाव झियायसि । ' तणं से णिज्जाम ते बहवे कुच्छिधारा य कण्णधारा य गब्भिल्लगा य संजत्ता णावा वाणियगा य एवं वयासी– ' एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! णट्ठमईए जाव अवहिए त्ति कट्टु तओ ओह मणसं जाव झियामि ।' सूत्र ५ : यह देख नाव में रहे अनेक कुक्षिधार ( चप्पू चलाने वाले), कर्णधार, गल्लिक (सामान्य श्रमिक) तथा वणिक यात्री निर्यामक- माँझी के पास आये और पूछा - " देवानुप्रिय ! तुम भग्न संकल्प (निराश ) हो चिबुक हथेली पर टिकाये चिन्ता क्यों कर रहे हो ?” CHAPTER-17: THE HORSES For Private Personal Use Only ( 279 ) Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - र ( २८०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 माँझी ने उन्हें उत्तर दिया-“देवानुप्रियो ! तूफान के कारण मेरी नियंत्रण बुद्धि नष्ट हो गई है दी र और मुझे यह भान नहीं हो रहा है कि नाव किस दिशा में और कहाँ जा रही है। इसी कारण मैं ड र भग्न संकल्प हो चिन्तित हो गया हूँ।" - धUUUUUUUUUUUUUUUUUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण 5 FREEDOM FROM TROUBLES 5. Seeing all this, the passengers and the crew including many rowers, navigators, labourers, and the traders approached the captain and asked, र “Beloved of gods! What ails you? Why have you lost your poise and are S B worrying with your chin in your palm?" The captain replied, “Beloved of gods! Due to this storm I have lost my capacity to control the ship and I am unaware of the position and the ? direction of movement of the ship. That is the reason I have lost my poises 12 and become anxious." 15 सूत्र ६ : तए णं ते कण्णधारा तस्स णिज्जामयस्स अंतिए एयमलु सोच्चा णिसम्म भीया ड र तत्था उव्विग्गा उव्विग्गमणा व्हाया कयबलिकम्मा करयल-परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए । 5 अंजलिं कटु बहूणं इंदाणं य खंदाण य जहा मल्लिनाए जाव उवायमाणा उवायमाणा चिट्ठति। द र सूत्र ६ : माँझी की यह बात सुन समझकर नाव के सभी यात्री व कर्मचारी भयभीत, त्रस्त वड र उद्विग्न हो गये। उन्होंने स्नान, बलिकर्म आदि किया और हाथ जोड़ कर इन्द्र, स्कन्द आदि ट 15 अपने-अपने इष्ट देवों को याद करने लगे, उनकी मनौती मनाने लगे। (विस्तार अर्हन्नक की कथा, ढ र के अध्ययन ८ के अनुसार) 5 6. Hearing this from the captain all the passengers and the crew became 15 worried, fearful, and panicky. They cleansed themselves by bathing and other 5 rituals and started remembering, and calling for help to their deities < 12 including Indra and Skand. (details as in ch. 8 story of Arhannak) सूत्र ७ : तए णं से णिज्जामए तओ मुहुत्तंतरस्स लद्धमईए, लद्धसुईए, लद्धसण्णे टा 15 अमूढदिसाभाए जाए यावि होत्था। तए णं से णिज्जामए ते बहवे कुच्छिधारा य कण्णधारा यड र गभिल्लगा य संजत्ता णावा वाणियगा य एवं वयासी-'एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! लद्धमईए ? 5 जाव अमूढदिसाभाए जाए। अम्हे णं देवाणुप्पिया ! कालियदीवंतेणं संवूढा, एस णं कालियदीवे द र आलोक्कइ। 5 सूत्र ७ : कुछ समय बाद उस माँझी की बुद्धि, अनुभव, संज्ञा लौट आये और उसकी मूढता द 15 समाप्त हो गई। उसने अपने सहकर्मियों तथा यात्रियों से कहा-देवानुप्रियो ! मेरी मति स्वस्थ हो गई डी र है और अब मैं दिग्भ्रांत नहीं रहा। हम लोग कालिक द्वीप के निकट आ पहुंचे हैं। देखिये, वह था 15 कालिक द्वीप दिखाई पड़ रहा है।" र (280) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA! SAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn) UUUN Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ UUU क सत्रहवाँ अध्ययन : आकीर्ण ( २८१ ) 7. After some time the captain regained his wit, poise, memory and sense 5 of direction and came out of his state of numbness. He told to his crew and 5 passengers, “Beloved of gods! I have regained my senses and now I am nots 5 lost. We have arrived near Kalik island. Look there! the land you see ahead S P is Kalik island.” 5 सूत्र ८ : तए णं ते कुच्छिधारा य कण्णधारा य गभिल्लगा य संजत्ताणावावाणियगा य तस्स र निज्जामयस्स अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म हट्ट-तुट्ठा पयक्खिणाणुकूलेणं वाएणं जेणेव कालियदीवे र तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयवहणं लंबेंति, लंबित्ता एगट्ठियाहिं कालियदीवं उत्तरंति। द र सूत्र ८ : माँझी की यह बात सुन नाव के सभी कर्मचारी व यात्री प्रसन्न और संतुष्ट हुए। र दक्षिणी पवन की सहायता से वे कालिक द्वीप के तट पर आ पहुंचे और वहाँ लंगर डाल टा 15 छोटी-छोटी नावों में बैठ द्वीप पर उतरे। र 8. Hearing this from the captain the passengers and the crew on board ] became happy and reassured. With the help of southern wind the ship reached the shore of Kalik island and they landed on the beach with the help 5 of small boats. र खनिज भण्डार और अश्व र सूत्र ९ : तत्थ णं बहवे हिरण्णागरे य सुवण्णागरे य रयणागरे य वइरागरे य बहवे तत्थ टा 15 आसे पासंति। किं ते? हरि-रेणु-सोणिसुत्तगा आईण्णवेढो। र तए णं ते आसा ते वाणियए पासंति, पासित्ता तेसिं गंध अग्घायंति, अग्घाइत्ता भीया तत्था 5 उव्विग्गा उव्विग्गमणा तओ अणेगाइं जोयणाइं उब्भमंति, ते णं तत्थ पउरगोयरा द र पउरतणपाणिया निब्भया निरुव्विग्गा सुहंसुहेणं विहरंति। 15 सूत्र ९ : कालिक द्वीप में उन्होंने चाँदी, सोना, रत्नों तथा हीरे की अनेक खाने देखीं तथा डा 5 अनेक अश्व देखे। वे नाना रंग के अश्व उत्तम जाति के थे। (जैसे काले, नीले, श्वेत व कपिल वर्णS र के अत्यन्त हृष्ट-पुष्ट-चपल दौड़ने में तेज देखने में सुन्दर आदि) श्रेष्ठ जाति के अश्वों के समान 5 उनका वर्णन समझना चाहिए। र उन अश्वों ने भी वणिकों को देखा और उनकी गंध सूंघी। अश्व भयभीत, त्रस्त और उद्विग्न रहो कई योजन दूर भाग गये। वहाँ उन्हें विशाल गोचर भूमि दिखाई दी और वे घास-पानी मिलने से 5 निर्भय और निरुद्वेग हो सुखपूर्वक समय बिताने लगे। 15 MINERAL WEALTH AND HORSES 9. On Kalik island they saw many deposits of silver, gold, diamonds, and gems and also herds of horses. These horses were of excellent breed and were IP CHAPTER-17 : THE HORSES HEAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnASI (281) Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ பபபபா AON प्रज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज ) र ( २८२ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 in numerous colours (black, blue, white, yellow; they were healthy, agile, a 15 beautiful, etc. according to the description of good breeds of horses in the c! 15 commentaries). 2 The horses also saw and smelled these merchants. They became afraid and disturbed, and galloped many Yojans away in panic. There they saw pasture land and water and resumed their normal undisturbed and carefree 5 activities. सूत्र १0 : तए णं ते संजत्ताणावावाणियगा अण्णमण्णं एवं वयासी-'किण्हं अम्हे डी 5 देवाणुप्पिया ! आसेहिं? इमे णं बहवे हिरण्णागरा य, सुवण्णागरा य, रयणागरा य, वइरागरा द य, तं सेयं खलु अम्हं हिरण्णस्स य, सुवण्णस्स य, रयणस्स य, वइरस्स य पोयवहणं भरित्तए'S त्ति कटु अन्नमन्नस्स एयमढें पडिसुणेति, पडिसुणित्ता हिरण्णस्स य, सुवण्णस्स य, रयणस्स य, टा वइरस्स य, तणस्स य, अण्णस्स य, कट्ठस्स य, पाणियस्स य पोयवहणं भरेंति, भरित्ता दा र पयक्खिणाणुकूलेणं वाएणं जेणेव गंभीरपोयवहणपट्टणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयवहणं । 5 लंबेंति, लंबित्ता सगडीसागडं सज्जेंति, सज्जित्ता तं हिरण्णं जाव वइरं च एगट्ठियाहिंद 5 पोयवहणाओ संचारेंति, संचारित्ता सगडीसागडं संजोइंति, संजोइत्ता जेणेव हत्थिसीसए नयरेड र तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता हत्थिसीसयस्स नयरस्स बहिया अग्गुज्जाणे सत्थणिवेसं करेंति । 15 करित्ता सगडीसागडं मोएंति, मोइत्ता महत्थं जाव पाहुडं गेहति गेण्हित्ता हत्थिसीसं नयरंद अणुपविसंति, अणुपविसित्ता जेणेव कणगकेऊ राया तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता जावड 5 उवणेति। तए णं से कणगकेऊ तेसिं संजत्ताणावावाणियगाणं तं महत्थं जाव पडिच्छइ। 15 सूत्र १० : इधर व्यापारियों ने परस्पर विचार किया “देवानुप्रियो ! हमें अश्वों से क्या काम दा र है? यहाँ अनेक चाँदी, सोने, रत्नों व हीरों की खाने हैं। अतः हमारे लिए तो इन खनिजों से जहाज र को भर लेना ही लाभदायक है।" यह सोच परस्पर सहमत होकर उन्होंने अपना जहाज सभी ट] 15 खनिजों तथा घास, अन्न, काठ तथा मीठे पानी से भर दिया। अनुकूल वायु होने पर वे गम्भीरपत्तन द पर पहुंचे और लंगर डालकर तट पर उतरे। वहाँ गाड़ियाँ तैयार की और जहाज में लादा माल उतारS र कर गाड़ियों में भरा। फिर गाड़ियों को जोत वहाँ से प्रस्थान किया। हस्तिशीर्ष नगर पहुंचने पर टै 5 नगर के बाहर मुख्य उद्यान में सार्थ रोका, गाड़ियाँ खोलीं, और बहुमूल्य उपहार साथ में लेकर दे हस्तिशीर्ष नगर में प्रवेश किया। राज्यसभा में जाकर कनककेतु राजा के सामने वे उपहार भेंट SI स्वरूप रख दिये। राज कनककेतु ने व्यापारियों के वे बहुमूल्य उपहार स्वीकार कर लिए। 10. The merchants deliberated, “Beloved of gods! We have nothing to do 2 with the horses. There are rich deposits of silver, gold, gems, and diamonds. र (282) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA ) Ehannnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 सत्रहवाँ अध्ययन : आकीर्ण ( २८३ ) It would be profitable for us to fill the holds of our ship with these minerals." They all agreed and filled the holds of the ship with all the minerals and also hay, wood, grain and fresh water. When the wind favoured, they sailed and arrived at Gambhir port. They anchored the ship and disembarked. The ship was unloaded and the cargo was transferred to carts made ready for travel. Once the complete cargo was transferred, they left the port and came to Hastisheersh city. They halted the caravan outside the city and camped in the main garden. Collecting valuable gifts, they entered the city and went to the king's court. After greeting King Kanak-ketu they displayed before him the gifts they had brought for him. The king accepted the gifts. अश्वों की कामना सूत्र ११ : ते संजत्ताणावावाणियगे एवं वयासी - 'तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! गामागर जाव आहिंडह, लवणसमुद्दं च अभिक्खणं अभिक्खणं पोयवहणेणं ओगाहह, तं अत्थियाई केइ भे कहिंचि अच्छेर दिट्ठपुव्वे? ' तए णं संजत्ताणावाचाणिया कणगकेउं रायं एवं वयासी - ' एवं खलु अम्हे देवाणुप्पिया ! इहेव हत्थसीसे नयरे परिवसामो तं चेव जाव कालियदीवंतेणं संवूढा, तत्थ णं बहवे हिरण्णागरा य जाव बहवे तत्थ आसे, किं ते हरि - रेणु - सोणिसुत्तगा जाव अणेगाइं जोयणाई उब्भमंति । तए गं सामी ! अम्हेहिं कालियदीवे ते आसा अच्छेरए दिट्ठा । सूत्र ११ : फिर राजा ने उन व्यापारियों से पूछा - "देवानुप्रियो ! तुम लोग अनेक गाँवों और बस्तियों व द्वीपों में जाते हो, बार-बार जहाजों द्वारा लवणसमुद्र की यात्रा करते हो, क्या कहीं तुमने कोई आश्चर्यजनक वस्तु देखी ?" उन व्यापारियों ने उत्तर दिया- “ देवानुप्रिय ! हम लोग इसी हस्तिशीर्ष नगर के निवासी हैं। इस बार हम कालिक द्वीप की यात्रा पर गये थे। वहाँ चाँदी, सोने आदि के बहुत से खनिज हैं तथा बहुत से अश्व हैं (अश्वों का वर्णन पूर्वसमान) । वे अश्व हम लोगों के भय से उद्विग्न हो कई योजन दूर चले गये । हे स्वामी ! हमें कालिक द्वीप के श्रेष्ठ अश्व आश्चर्यजनक लगे।” DESIRE FOR THE HORSES 11. After this, the king asked the merchants, “Beloved of gods! You visit many villages, towns, and islands. You go on sea voyage now and then. Have you seen some astonishing things?" The merchants replied, "Beloved of gods! We are inhabitants of this Hastisheersh city. This time we went to Kalik island. In that island there are CHAPTER-17: THE HORSES ( 283 ) For Private Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ( २८४ ) rich deposits of many minerals including silver and gold. There are herds of horses also on that island (the description of horses as before). Disturbed by our presence these horses have drifted many miles deeper into the island. Sire! We found these horses of Kalik island astonishing objects." सूत्र १२ : तए णं कणगकेऊ तेसिं संजत्ता णावावाणियगाणं अंतिए एयमट्ठे सोच्चा णिसम्म ते संत्ता णावावाणियए एवं वयासी - 'गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! मम कोडुंबियपुरिसेहिं सद्धिं कालियदीवाओ ते आसे आणेइ ।' तणं ते संजत्ता वाणियगा कणगकेउं रायं एवं वयासी एवं सामी !' त्ति कट्टु आणाए विणणं वयणं पडिसुर्णेति । सूत्र १२ : राजा कनककेतु ने उन व्यापारियों की बात सुनकर उनसे कहा - " देवानुप्रियो ! तुम मेरे सेवकों के साथ जाओ और कालिक द्वीप से उन अश्वों को यहाँ ले आओ।" व्यापारियों ने 'स्वामी की जो आज्ञा' कहकर राजा के वचनों को आज्ञा रूप सविनय स्वीकार किया। 12. On getting this information king Kanak-ketu instructed the merchants, "Beloved of gods! Go along with my servants and bring the horses of Kalik island here." "As you say Sire!" the merchants humbly accepted the kings words as order. सूत्र १३ : तए णं कणगकेऊ राया कोटुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - 'गच्छह णं तुभे देवाणुप्पिया ! संजत्ताणावावाणिएहिं सद्धिं कालियदीवाओ मम आसे आह ।' तेव पडिसुर्णेति । तए णं ते कोटुबियपुरिसा सगडीसागडं सज्जेंति, सज्जित्ता तत्थ णं बहूणं वीणाण य, वल्लकीण य, भामरीण य, कच्छभीण य, भंभाण य, छब्भामरीण य, विचित्तवीणाय य, अन्नेसिं च बहूणं सोइंदियपाउग्गाणं दव्वाणं सगडीसागडं भरेंति । सूत्र १३ : इस पर राजा ने अपने सेवकों को बुलाया और कहा - "देवानुप्रियो ! तुम इन व्यापारियों के साथ जाओ और मेरे लिए कालिक द्वीप के अश्व ले आओ।" सेवकों ने भी राजा का आदेश स्वीकार किया। फिर उन सेवकों ने गाड़ियाँ तैयार कीं और उनमें बहुत सी आवश्यक सामग्री के साथ विभिन्न प्रकार की वीणायें, यथा - बल्लकी, भ्रामरी, कच्छपी, भंभा, षट्भ्रामरी आदि कानों को प्रिय लगने वाली विविध सामग्री भर लीं । 13. Now the king called his servants and said, “Beloved of gods ! Go with these merchants and bring the horses of Kalik island for me." The servants JNATA DHARMA KATHANGA SUTRA (284) For Private Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण D DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD ) सत्रहवाँ अध्ययन : आकीर्ण ( २८५ ) टा accepted the order. They prepared many carts and filled them with required materials for the voyage. Besides this they also loaded into the carts a variety of Veenas (string instruments) like - Ballaki, Bhramari, Kacchapi Bhambha, Shatbhramari, etc. and other musical instruments that appealed B to the ears. र अश्व-मोदक सामग्री 5 सूत्र १४ : भरित्ता बहूणं किण्हाण य जाव सुकिल्लाण य कट्ठकम्माण य चित्तकम्माण यह र पोत्थ-कम्माण य लेप्पकम्माण य गंथिमाण य जाव संघाइमाण य अन्नेसिं च बहूणं दे 15 चक्खिंदियपाउग्गाणं दव्वाणं सगडीसागडं भरेंति। र भरित्ता बहूणं कोट्ठपुडाण य केयइपुडाण य जाव अन्नेसिं च बहूणं घाणिंदियपाउग्गाणं दव्वाणं द 15 सगडीसागडं भरेंति। 5 भरित्ता बहुस्स खंडस्स य गुलस्स य सक्कराए य मच्छंडियाए य पुप्फुत्तरपउमुत्तराए अन्नॅसिड 12 च जिभिंदियपाउग्गाणं दव्वाणं सगडीसागडं भरेंति। 15 भरित्ता बहूणं कोयवाण य कंबलाण य पावाणाय य नवतयाण य मलयाण य मसूराण यड र सिलावट्टाण य जाव हंसगब्भाण य अन्नेसिं च फासिंदियपाउग्गाणं दव्वाणं सगडीसागडं भरेंति। दी 15 सूत्र १४ : उन राज सेवकों ने अपनी गाड़ियों में फिर काली, लाल, सफेद आदि अनेक रंगोंड र की काष्टकर्म (लकड़ी की कलाकृतियाँ), चित्र कर्म (चित्रांकन की कलाकृतियाँ), पुस्तकर्म (लेखन द 5 कार्य से सम्बन्धित कृतियाँ), लेप्य कर्म (मिट्टी आदि से बनी कलाकृतियाँ), ग्रन्थिम (गूंथकर बनाई डा 15 कलाकृतियाँ), वेष्टिम (वेष्टन कर-या चढ़ाकर बनाई कलाकृतियाँ), पूरिम (भरकर या पूर कर ही र बनाई कलाकृतियाँ), संघातिम (विभिन्न वस्तुओं को मिलाकर बनाई कलाकृतियाँ), आदि नेत्रों को द 15 भाने वाला सामान भर लिया। र इसके बाद कोष्ट पुट (अर्क खींचना, डिस्टिलेशन या एक्स्ट्रेक्षन) तगर, एला, केतकी (इलायची) टी 5 चंदन, जूही आदि घ्राणेन्द्रिय को लुभाने वाले विभिन्न प्रकार के सुगंधित पदार्थ भी गाड़ियों में भर डा 5 लिए। र यही नहीं स्वाद में भले लगने वाले अनेक पदार्थ जैसे-खाँड़, गुड़, शर्करा, मत्स्यंडिका (मिश्री) 5 पुष्पोत्तर-शर्करा, पद्मोत्तर शर्करा आदि जिह्वा इन्द्रियों को लुभाने वाला सामान भी गाड़ियों में भर ही र लिया। 5 अन्त में कोयतक (रुई के), कंबल, प्रावरण (ओढ़ने के), नवत (जीन), मलय (आसन विशेष), SI र मसग (चमड़े के), शिकावतक आदि स्पर्श में भली लगने वाली स्पर्श इन्द्रिय को लुभाने वाली अनेक टी र वस्तुएँ भी गाड़ी में भर ली। र CHAPTER-17 : THE HORSES ( 285) दा FAAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnAAI Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् UUUUUUU 卐AAAAAO R ( २८६ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 ALLUREMENTS FOR HORSES 14. The servants also included in their cargo every variety of objects of art that appealed to eyes. This included multi-coloured things made in wood, B paintings, writings, terra-cottas, knit-work, coated things, inlaid works, and mixed art pieces. Then they included fragrant items that appealed to the sense of smell. s. 2 This included concentrates of Tagar, Ela, Ketaki, sandal-wood, Juhi and S 5 many other types of perfumes and fragrant powders. 5 Also loaded were things that appealed to the taste buds. These included different types of sugar such as semi-finished, powdered, crystallized, etc. S 5 In the end they loaded bed covers, blankets, rugs, mattresses and other 2 5 such products made of cotton, wool, leather, etc. that appealed to the sense of ट 5 touch. र सूत्र १५ : भरित्ता सगडीसागडं जोएंति, जोइत्ता जेणेव गंभीरपोयट्ठाणे तेणेव उवागच्छंति ] 15 उवागच्छित्ता सगडीसागडं मोएंति, मोइत्ता पोयवहणं सज्जेंति सज्जिता तेसिं उक्किट्ठाणं डा र सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाणं कट्ठस्स य तणस्स य पाणियस्स य तंदुलाण य समियस्स य गोरसस्स ट्र 5य जाव अन्नेसिं च बहूणं पोयवहण-पाउग्गाणं पोयवहणं भरेंति। र सूत्र १५ : उन्होंने यह सभी सामान गाड़ियों में भरकर, गाड़ियाँ जोत कर गंभीर पट्टन की ओर 5 चले आये। वहाँ पहुँचकर गाड़ियाँ खोल दी और जहाज तैयार किये। फिर जहाज में लाई हुई सभी दा र खाद्य-गंध-स्पर्श योग्य सामग्री तथा काठ, घास, जल, चावल, आटा, दूध आदि अन्य सभी प्रकार 5 र की आवश्यक सामग्री भर ली। 15. After loading all this material they moved to Gambhir port and transferred the cargo into the ship. They also loaded enough quantities of र other essential items like wood, hay, soft water, flour, milk, etc. र जाल बिछाना सूत्र १६ : भरित्ता दक्खिणाणुकूलेणं वाएणं जेणेव कालियदीवे तेणेव उवागच्छंति, दा र उवागच्छित्ता पोयवहणं लंबेंति, लंबित्ता ताई उक्किट्ठाइं सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाइं एगट्ठियाहिंद्रा 5 कालियदीवं उत्तारेंति, उत्तारित्ता जहिं जहिं च णं ते आसा आसयंति वा, सयंति वा, चिट्ठति द र वा, तुयटृति वा, तहिं तहिं च णं ते कोडुंबियपुरिसा ताओ वीणाओ य जाव चित्तवीणाओ या 15 अन्नाणि बहूणि सोइंदियपाउग्गाणि य दव्वाणि समुदीरेमाणा समुदीरेमाणा चिट्ठति, तेसिं च द र परिपेरंतेणं पासए ठवेंति, ठवित्ता णिच्चला णिफंदा तुसिणीया चिट्ठति। 6 (286) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAnnnnnnnny Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्रहवाँ अध्ययन : आकीर्ण ( २८७ ) सूत्र १६ : जब जहाज भरकर तैयार हो गये और पवन अनुकूल हुआ तब वे राजसेवक व्यापारियों के साथ रवाना हुए और कालिक द्वीप के निकट पहुँचे। यहाँ लंगर डालकर छोटी नावों में सामान भरकर द्वीप में उतारा। यह सब सामान लेकर वे राजसेवक जहाँ-जहाँ घोड़े बैठते, सोते या लोटते थे वहाँ-वहाँ गये, आस-पास में जाल बिछाये और पूर्वोक्त वाद्ययंत्रों से मधुर ध्वनियाँ निकालने लगे। फिर वे निश्चल, निस्पन्द और मूक होकर छुप गये । FIXING THE SNARES 16. After the ships were loaded and when the wind favoured, they left Gambhir port and arrived near Kalik island. They anchored the ship and disembarked. The ship was unloaded and the cargo was transferred to the island with the help of small boats. The servants of the king then went to the places where the horses rested or tumbled in the sand and fixed snares and played musical instruments for some time. After that they hid themselves, made themselves absolutely still and waited silently. सूत्र १७ : जत्थ जत्थ ते आसा आसयंति वा जाव तुयट्टंति वा, तत्थ तत्थ णं त कोडुंबियरिस बहूणि कण्हाणि य ५ कट्ठकम्माणि य जाव संघाइमाणि य अन्नाणि य बहूण चक्खिंदिपाउग्गाणि य दव्वाणि ठवेंति, तेसिं परिपेरतेणं पासए ठवेंति, ठवित्ता णिच्चला णिफंदा तुसिणीया चिट्ठति । सूत्र १७ : इसी प्रकार घोड़ों के विचरने के स्थानों पर नेत्रों को आकर्षित करने वाले कृष्ण-नील, लाल, आदि विविध रंगों के सामान सजा दिये, फिर आसपास जाल बिछा दिये और छुपकर बैठ गये । 17. Similarly they arranged the colourful objects that appealed to eyes in the areas frequented by the horses, fixed snares and waited concealing themselves. सूत्र १८ : जत्थ जत्थ ते आसा आसयंति वा, सयंति वा, चिट्ठति वा, तुयहंति वा, तत्थ-तत्थ णं ते कोडुंबियपुरिसा तेसिं बहूणं कोट्ठपुडाण य अन्नेसिं च घाणिंदियपाउग्गाणं दव्वाणं पुंजे यणियरे य करेंति, करित्ता तेसिं परिपेरंते जाव चिट्ठति । सूत्र १८ : इसी प्रकार उन सेवकों ने घोड़ों के घूमने, बैठने, सोने के स्थानों पर घ्राणेन्द्रिय को आकर्षित करने वाले सुगंधित पुष्प व इत्र आदि सामान के ढेर बनाकर इधर-उधर लगा दिये और छुपकर बैठ गए। CHAPTER - 17 : THE HORSES For Private Personal Use Only (287) MARA Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 ( २८८ ) 18. Then, they arranged in heaps the fragrant things that appealed to the sense of smell in the areas frequented by the horses, fixed snares and waited concealing themselves. सूत्र १९ : जत्थ जत्थ णं ते आसा आसयंति वा, सयंति वा, चिट्ठति वा, तुयट्टंति वा, तत्थ तत्थ गुलस्स जाव अन्नेसिं च बहूणं जिब्भिंदियपाउग्गाणं दव्वाणं पुंजे य पियरे य करेंति, करिता वियरए खणंति, खणित्ता गुलपाणगस्स खंडपाणगस्स पोरपाणगस्स अन्नेसिं च बहूणं पाणगाणं वियरे भरेंति, भरित्ता तेसिं परिपेरतेणं पासए ठवेंति जाव चिट्ठति । सूत्र १९ : इसी प्रकार घोड़ों के सोने, बैठने, घूमने के स्थान पर गुड़, शक्कर आदि स्वाद को रुचने वाले तथा जीभ को लुभाने वाले पदार्थ सजा दिये, उनके ढेर लगा दिये, तरल पदार्थों को गड्ढों में भर दिया और आस-पास जाल बिछा दिये। 19. After that, they arranged the savoury things that appealed to taste buds, putting solids in heaps and the liquids in ditches, in the areas frequented by the horses, fixed snares and waited concealing themselves. ज्ज्फ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र सूत्र २० : जहिं जहिं च णं ते आसा आसयंति वा, सयंति वा, चिट्ठति वां, तुयट्टंति वा, तहिं तहिं च णं ते बहवे कोयवया य जाव सिलावट्टया अण्णाणि य फासिंदियपाउग्गाई अत्थुय-पच्चत्थुयाई ठवेंति, ठवित्ता तेसिं परिपेरतेणं जाव चिट्ठति । सूत्र २० : अन्त में उन्होंने घोड़ों की स्पर्श इन्द्रिय को भले लगने वाले रुई के, ऊन के, चमड़े के विविध सामान भी सजा दिये। गुप्त जाल बिछा दिये और स्वयं आस-पास वृक्षों-पत्रों आदि की ओट में छुप गये। 20. Finally they arranged the soft objects made of cotton, wool, leather etc. that appealed to the sense of touch in the areas frequented by the horses, fixed snares and waited concealing themselves in the nearby foliage. अनासक्ति का लाभ सूत्र २१ : तए णं ते आसा जेणेव एए उक्किट्ठा सद्द-फरिस - रस-रूव-गंधा तेणेव उवागच्छंति, ' उवागच्छित्ता तत्थ णं अत्थेगइया आसा 'अपुव्वा णं इमे सद्द-फरिस - रस- रूव-गंधा' इति कट्टु तेसु उक्किट्ठेसु सह-फरिस - रस-रूव-गंधेसु अमुच्छिया अगढिया अगिद्धा अणज्झोववण्णा, तेसिं उक्किट्ठाणं सद्द जाव गंधाणं दूरंदूरेणं अवक्कमंति, ते णं तत्थ पउरगोयरा पउरतण - पाणिया णिभयाणिरुव्विग्गा सुहंसुहेणं विहरति । सूत्र २१ : कुछ समय बाद वे घोड़े वहाँ आये जहाँ यह सब उत्कृष्ट, सुन्दर, मनमोहक, शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध युक्त वस्तुएँ रखीं थीं। उनमें से अनेक अश्व यह सोचकर कि ये सभी JNATA DHARMA KATHANGA SUTRA ( 288 ) 5 For Private Personal Use Only फ Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 23 Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग : २) TS AI चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED सुखों का प्रलोभन : बन्धन का कारण चित्र : २३ कनककेतु राजा ने कालिक द्वीप में स्वच्छन्द विचरण करने वाले घोड़ों को पकड़ने के लिए अपने कुशल सेवकों को भेजा। सेवकों ने द्वीप के विशाल मैदान में तरह-तरह के सुगन्धित, स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ, कोमल स्पर्श वाले गलीचे तथा सभी इन्द्रियों को लुभाने वाले पदार्थ चारों तरफ बिछा दिये तथा कर्मचारी छुपकर मधुर वीणा नाद करने लगे। कुछ लोग जाल व रस्सियाँ लेकर छुप गये। घोड़े जब मैदान में आये और इन पदार्थों को देखा तो कुछ घोड़े इन पदार्थों के स्वाद व रूप-गंध आदि में लुब्ध होकर वहीं चरने लगे। सेवकों ने घोड़ों को अपने जाल में फँसा लिया। चाबुक आदि से प्रताड़ित कर अपने वाहनों के काम में लेने लगे। ___ जो कुछ घोड़े इन मधुर स्वादिष्ट-सुगन्धित पदार्थों के प्रति ललचाये नहीं वे पहले की तरह स्वच्छन्द स्वाधीन विचरते रहे। (सत्रहवाँ अध्ययन) A FONDNESS FOR PLEASURES : THE CAUSE OF BONDAGE ILLUSTRATION: 23 King Kanak-ketu of Hastishirsh city ordered his experienced trappers to go to Kalik island to trap and bring some wild horses. These trappers spread around a variety of things to lure horses. These included perfumed things, tasty food, and soft carpets. Some trappers started playing alluring melodies on musical instruments and others hid themselves with nets and lariats in their hands. When the herd of horses arrived there, many of them were attracted by these things and came near. The trappers caught them. These horses were tied with ropes, hit with whips and yoked to chariots. Wild horses lost their freedom. Many others were not lured by the attractive things and kept there distance. They remained free grazing in their natural habitat. (CHAPTER - 17) Oo 06 HDBAS JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA (PART-2) Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् र सत्रहवाँ अध्ययन : आकीर्ण ( २८९ ) हा 15 वस्तुएँ अपूर्व हैं, पहले कभी नहीं देखी हैं, इनका अनुभव भी नहीं है, उनमें न तो मूर्छित हुए, न ई र ही गृद्ध व आसक्त हुए, अतः शंकित होकर उनसे दूर चले गये और चारागाह भूमि में जाकर र घास-पानी पर ही निर्भर रहकर निर्भय व निरुद्विग्न हो सुखपूर्वक विचरने लगे। 5 BENEFIT OF APATHY F 21. After some time the horses came to all these spots where objects with R beautiful and enticing sound, touch, taste, form and smell were placed. Many 5 of the horses thought that these things were new to them and beyond their 15 experience, and thus they were not attracted, allured, or enticed by them. In fact, they became wary of them and drifted away to their familiar pastures and resumed their normal activities contented with the available grass and र water. 15 सूत्र २२ : एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा सद्द-फरिस-रस-रूव-5 र गंधेसु णो सज्जइ, से णं इहलोगे चेव बहूणं समणाणं समणीणं सावयाणं सावियाणं य द 15 अच्चणिज्जे जाव वीइवयइ। 5 सूत्र २२ : हे आयुष्मान् श्रमणो ! इस प्रकार हमारा जो साधु-साध्वी वर्ग है, वह शब्द द 15 स्पर्श, रस, रूप और गंध में आसक्त नहीं होता मूर्छित व गृद्ध नहीं होता, वह इस लोक में ड र अनेक साधु-साध्वि-श्रावक-श्राविकाओं का पूजनीय होता है और संसार-अटवी को पार कर ट 15 लेता है। 12 22. Long-lived Shramans! In this way those of our ascetics who are not a 5 attracted, allured, or enticed by the subjects of the five senses of sound, 15 touch, taste, form and smell become the objects of reverence of many ascetics 15 and lay persons and cross the ocean of rebirth. UUrON 15 आसक्ति का दुष्परिणाम र सूत्र २३ : तत्थ णं अत्थेगइया आसा जेणेव उक्किट्ठ सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधा तेणेव दी र उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तेसु उक्किठे सु सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधेसु मुच्छिया जाव अन्झोववण्णा र आसेविउं पयत्ता यावि होत्था। तए णं ते आसा एए उकिडे सद्द-फरिस-रस-रूव गंधे आसेवमाणा दा र तेहिं बहूहिं कूडेहि य पासेहि य गलएसु य पाएसु य बझंति। 5 सूत्र २३ : उनमें से अनेक घोड़े उन उत्कृष्ट लुभावनी वस्तुओं में अति मूर्च्छित और आसक्त हो ई 15 गये और उनका सेवन भोग उपभोग करने लगे। वे सभी अश्व राज-सेवकों द्वारा अनेकों कूटपाशों र (जाल) में, गले के फंदे, पैर के बंधन आदि से उलझ गये और पकड़ लिए गये। 15 CHAPTER-17: THE HORSES yAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn virutu (289) Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २९० ) HARMS OF INDULGENCE 23. Many of the horses were lured by these good and attractive things. They became extremely fond of these things and started consuming and enjoying them. All these horses were caught in a variety of snares (nets, nooses, foot-snares, etc. ) fixed by the king's men. सूत्र २४ : तए णं ते कोडुंवियपुरिसा एए आसे गिण्हंति, गिण्हित्ता एगट्टियाहिं. पोयवहणे संचारेंति, संचारित्ता तणस्स य कट्ठस्स य जाव भरेंति । तए णं ते संजत्ता णावावाणियगा दक्खिणाणुकूलेणं वाएणं जेणेव गंभीरपोयपट्टणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयवहणं लंबेंति, लंबित्ता ते आसे उत्तारेंति, उत्तारित्ता जेणेव हत्थिसीसे णयरे, जेणेव कणगकेऊ राया, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल जाव वृद्धावेंति वद्धावित्ता ते आसे उवणेंति । ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र तणं से कणगकेऊ राया तेंसि संजत्ता णावावाणियगाणं उस्सुक्कं वियरइ, वियरित्ता सक्कारेइ, संमाणेइ, सक्कारित्ता संमाणित्ता पडिविसज्जेइ । सूत्र २४ : राजसेवकों ने उन सभी घोड़ों को पकड़ा और छोटी नौकाओं द्वारा जहाज पर ले ' आये । जहाज में आवश्यक खाद्यादि सामग्री भरी और अनुकूल पवन होने पर रवाना होकर गंभीर पत्तन पहुँचे। वहाँ लंगर डाल कर उन घोड़ों को उतारा और उन्हें लेकर हस्तिशीर्ष नगर में राजा कनककेतु के पास ले आये । यथा विधि राजा का अभिवादन कर वे अश्व उनके सम्मुख उपस्थित कर दिये। राजा ने उन समुद्र यात्रा व्यापारियों का शुल्क माफ कर दिया और सत्कार-सम्मान करके विदा कर दिया। 24. The royal staff rounded up these horses and transferred them to the ship with the help of boats. They loaded other essential things like food. When the wind favoured they sailed and arrived at Gambhir port, anchored the ship, unloaded the horses and brought them to Hastisheersh city. They took these horses to King Kanak-ketu and after due greetings presented them to him. The king exempted all their taxes and bid them farewell after duly honouring and rewarding them. सूत्र २५ : तए णं से कणगकेऊ राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता सक्कारेइ, संमाणेइ, सक्कारिता संमाणित्ता पडिविसज्जेइ । सूत्र २५ : राजा ने फिर उन सेवकों को बुलाया जिन्हें उसने घोड़ों को लाने के लिए कालिक द्वीप भेजा था। उन्हें भी सत्कार - सम्मान कर विदा किया। ( 290 ) கல் For Private JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA Personal Use Only 5 Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ' DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDजन र सत्रहवाँ अध्ययन : आकीर्ण ( २९१ ) 5 25. The king therf called the servants who were sent to catch and bring | the horses from the Kalik island and honoured and rewarded them. र सूत्र २६ : तए णं कणगकेऊ राया आसमद्दए सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'तुब्भे णंट र देवाणुप्पिया ! मम आसे विणएह।' 5 तए णं ते आसमद्दगा तह त्ति पडिसुणेति, पडिसुणित्ता ते आसे बहूहिं मुहबंधेहिं य,दी र कण्णबंधेहिं य, णासाबंधेहिं य, वालबंधेहिं य, खुरबंधेहिं य कडगबंधेहिं य खलिणबंधेहिं य, ड 15 अहिलाणेहिं य, पडयाणेहिं य, अंकणाहिं य, वेत्तप्पहारेहिं य, त्मयप्पहारेहिं य, कसप्पहारेहिं य, र छिवप्पहारेहिं य विणयंति, विणइत्ता कणगकेउस्स रण्णो उवणेति। 15 सूत्र २६ : कनककेतु राजा ने अन्त में अश्वमर्दकों (अश्वों को प्रशिक्षण देने वाले) को बुलाकर द र कहा-“देवानुप्रियो, तुम मेरे अश्वों को विनीत (प्रशिक्षित) करो। 15 “जो आज्ञा' कहकर अश्वमर्दकों ने राजा की आज्ञा स्वीकार की। फिर अश्वों को ले जाकर द र उनके मुख, कान, नाक, झौंरा (पूँछ का अग्र भाग), खुर व कटक बाँधकर; चौकड़ी व तोबरा 5 ए चढ़ाकर; पटतानक लगा कर, खस्सी कर, बेला, बेंत, लता : चाबुक, चमड़े के कोड़े आदि से प्रहार टा 5 करके उन्हें विनीत किया। जब वे घोड़े प्रशिक्षित हो गये तो उन्हें राजा के पास ले आये। 12 26. At last the king called for the horse trainers and asked, “Beloved of gods! You are appointed to break these horses and train them." “As you say, Sire!" With these words the trainers accepted the king's order and took away the horses. They tied the mouth, ears, nose, and edge of the tail of each of these horses. They also tied their hooves and thighs. They put nose-bags and the saddles on them and also the eye guards. After all this 15 they broke these horses by hitting them with ropes, canes, vines, lashes, whips, etc. Once the horses were trained they brought them to the king. S र सूत्र २७ : तए णं से कणगकेऊ ते आसमद्दए सक्कारेइ, संमाणेइ, सक्कारित्ता संमाणित्ता ट पडिविसज्जेइ। तए णं ते आसा बहूहिं मुहबंधेहिं य जाव छिवप्पहारेहिं य बहूणि सारीर-ड र माणसाणि दुक्खाइं पावेंति। र सूत्र २७ : राजा ने अश्वमर्दकों का सम्मान-सत्कार किया और फिर विदा कर दिया। उधर उन र अश्वों ने मुख बंधनादि तथा बेंत चाबुक आदि के प्रहार के कारण बहुत शारीरिक व मानसिक टी दुःख उठाया। र 27. The king honoured and rewarded these horse trainers and dismissed ] them. All these horses went through a lot of suffering due to the bondage and 15 the beating they got during the training. 5 CHAPTER-17: THE HORSES ( 291) टा UUUUUUUUN U Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भए UUUUUUUU9 P ( २९२) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 उपसंहार र सूत्र २८ : एवामेव समणाउसो ! जो अहं णिग्गंथो वा णिग्गंथी वा पव्वइए समाणे इट्टेसु डा 15 सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधेसु सज्जति, रज्जति, गिज्झति, मुज्झति, अज्झोववज्जति, से णं इह टा र लोगे चेव बहूणं समणाण य जाव सावियाण य हीलणिज्जे जाव अणुपरियट्टिस्सइ। 5 सूत्र २८ : हे आयुष्मान श्रमणो ! इसी प्रकार हमारा जो निर्ग्रन्थ व निर्ग्रन्थी दीक्षित होकर डा र प्रिय शब्द, रस, स्पर्श, रूप और गंध के प्रति आकर्षित, मुग्ध और आसक्त होता है उनमें 2 15 लुब्ध हो जाता है। वह इसी लोक में अनेक श्रमण, श्रमणियों, श्रावक, श्राविकाओं की दा र अवहेलना का पात्र होता है तथा चतुर्गति रूप संसारअटवी में पुनः पुनः भ्रमण करता है। B CONCLUSION 5 28. Long-lived Shramans ! In this way those of our ascetics who, after द ► getting initiated, are attracted, allured, or enticed by the subjects of the five S senses of sound, touch, taste, form and smell become the objects of neglect by many ascetics and lay persons and are caught in the cycles of rebirth 5 indefinitely. 5 इन्द्रियलोलुपता का दुष्फल र सूत्र २९ : कल-रिभिय-महुर-तंती-तलताल-वंस-कउहाभिरामेसु। सद्देसु रज्जमाणा, रमंति सोइंदियवसट्टा ॥१॥ र सूत्र २९ : सुनने में सुखद व आकर्षक, गुंजन लिए वीणा, ताल व बाँसुरी जैसे श्रेष्ठ और 5 मनोहारी वाद्यों के शब्दों में अनुरक्त होने वाले श्रोत्रेन्द्रिय के वशीभूत प्राणी ऐसे संगीत को ट र आनन्ददायक मानते हैं॥१॥ Es recurrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr HARMS OF INDULGENCE 5 29. The beings who are slaves of the sense of hearing and are enticed by a 15 the pleasing and enchanting sound of good quality musical instruments like 5 Veena, drums, and flute consider such music to be the source of bliss. (1) सोइंदियदुइंत-तणस्स अह एत्तिओ हवइ दोसो। दीविगरुयमसहतो, वहबंधं तित्तिरो पत्तो॥२॥ र किन्तु श्रोत्रेन्द्रिय का यह दुर्दान्त आकर्षण वैसा ही दोषपूर्ण होता है जैसे व्याध (शिकारी) के दी 15 पिंजरे में रहे तीतर का स्वर स्वतन्त्र तीतर को आकर्षित कर व्याध के जाल में ले आता है और दा र उसके बंधन और वध का कारण बन जाता है॥२॥ र (292) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SÜTRA ) FinnnnnnnnnnnAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र सत्रहवाँ अध्ययन : आकीर्ण ( २९३ ) 5 But this compelling attraction of the sense of hearing is harmful in the same way that the call of a caged partridge, belonging to a fowler, lures a S > wild partridge into the snare and becomes the cause of its bondage and S death. (2) थण-जहण-वयण-कर-चरण-णयण-गव्विय-विलासियगइसु। रूवेसु रज्जमाणा, रमंति चक्खिंदियवसट्टा ॥३॥ 15 चक्षु इन्द्रिय के वशीभूत और रूप में अनुरक्त रहने वाले पुरुष स्त्री के स्तन, जंघा, वदन, हाथ, डा २ पैर, नेत्र तथा गर्वीली चेष्टाओं की विलासमय गति में रमण करने को आनन्द मानते हैं ॥३॥ 5 The beings who are slaves of the sense of seeing consider feasting upon 5 the lascivious movements of the breasts and thighs, limbs and torso, and eyes and face of a woman to be the source of bliss. (3) चक्विंदियदुद्दन्त-त्तणस्स अह एत्तिओ भवइ दोसो। जं जलणम्मि जलंते, पडइ पयंगो अबुद्धीओ॥४॥ २ किन्तु चक्षु इन्द्रिय का यह दुर्दान्त आकर्षण वैसा ही दोषपूर्ण होता है जैसे बुद्धिहीन पतंगा र जलती आग की लपट के रूप से आकर्षित हो उसका आलिंगन करता है और जल मरता है।।४॥ द But this compelling attraction of the sense of seeing is harmful in the S 2 same way that the beauty of a flame draws the ignorant moth, embraces it a and reduces it to ashes. (4) अगुरु-वरपवरधूवण, उउय-मल्लाणुलेवणविहीसु। गंधेसु रज्जमाणा, रमंति घाणिंदियवसट्टा ॥५॥ र घ्राणेन्द्रिय के वशीभूत हुए प्राणी कृष्णागुरु, प्रवर धूप, ऋतु के अनुकूल मालाएँ और फूल, टे 15 चन्दनादि के लेप आदि सुगंधित पदार्थों के सेवन में आनन्द का अनुभव करते हैं॥५॥ The beings who are slaves of the sense of smell consider enjoying the smell B of fragrant things like Krishnaguru, Pravar-dhoop, seasonal flowers and a 5 garlands made of these, and sandal-wood paste to be the source of bliss. (5) घाणिंदियदुद्दन्त-तणस्स अह एत्तिओ हवइ दोसो। जं ओसहिगंधेणं, विलाओ निद्धावई उरगो॥६॥ किन्तु यह घ्राणेन्द्रिय का दुर्दान्त आकर्षण वैसा ही दोष पूर्ण होता है जैसे केतकी आदि वनस्पति ट 15 की गंध से आकर्षित होकर सांप अपने बिल से बाहर निकल आता है और बंधन, वध आदि के 5 र कष्ट झेलता है॥६॥ FD rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr E CHAPTER-17 : THE HORSES ( 293) टा FAAAAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ( २९४ ) But this compelling attraction of the sense of smell is harmful in the same way that the alluring fragrance of Ketaki and other flowers draws a snake out of its hole and causes it to suffer the pain of captivity and death. (6) तित्त-कडुयं कसायंब-महुरं बहुखज्ज - पेज्ज - लेझे | आसायंति उ गिद्धा, रमंति जिब्भिंदियवसट्टा ॥७ ॥ पेय जिह्वा-इन्द्रिय के वशीभूत हुए प्राणी कडवे, तीखे, कसैले खट्टे तथा मधुर रस वाले खाद्य, तथा लेह्य (चाटने योग्य) पदार्थों के सेवन में आनन्द अनुभव करते हैं ॥ ७ ॥ The beings who are slaves of the sense of taste consider relishing savoury preparations, solid, semi-solid, and liquid, having bitter, hot, pungent, sour, and sweet flavours to be the source of bliss. (7) किन्तु यह जिह्वा - इन्द्रिय का दुर्दान्त आकर्षण वैसा ही दोषपूर्ण है जैसे - मछेरे के काँटे में लगे माँस के टुकड़े से आकर्षित हो उसे निगलने वाली मछली गले में अटके काँटे द्वारा जल से बाहर खींच ली जाती है और तड़प-तड़प कर प्राण त्याग देती है ॥ ८ ॥ जिब्भिंदियदुद्दन्त-तणस्स अह एत्तिओ हवइ दोसो । जंगललग्गुक्खित्तो, फुरइ थलविरल्लिओ मच्छो ॥८ ॥ But this compelling attraction of the sense of taste is harmful in the same way that the piece of meat attached to the fish-hook lures the fish who bites it and is drawn out of water to die a slow writhing death. (8) स्पर्शेन्द्रिय के वशीभूत हुए प्राणी उसकी लोलुपता के कारण विभिन्न ऋतुओं से सम्बन्धित सुख भोगते हैं तथा समृद्धि और वैभव के प्रतीक व मन को सुखदायक लगने वाले स्पर्श एवं स्त्री आदि पदार्थों के रमण में आनन्द अनुभव करते हैं ॥ ९ ॥ उउ भयमाण- सुहेसु य, सविभव - हियय - मणनिव्वुइकरेसु । फासेसुरज्जमाणा, रमंति फासिंदियवसट्टा ॥९॥ The beings who are slaves of the sense of touch consider enjoying various seasonal pleasures, the possession of symbols of wealth and grandeur, and carnal pleasures derived out of fondling the female body and other such objects to be the source of bliss. (9) ( 294 ) Ho किन्तु यह स्पर्शनेन्द्रिय का दुर्दान्त आकर्षण वैसा ही दोषपूर्ण व दुःखदायी है जैसे हस्तिनी के स्पर्श के लिए लुब्ध हुआ मत्त गजराज पकड़ा जाता है और तीखे लौह अंकुश का अपने मस्तक पर वार सहता है ॥ १० ॥ फासिंदियदुद्दन्त-तणस्स अह एत्तिओ हवइ दोसो । जं खणइ मत्थयं कुंजरस्स लोहंकुसो तिक्खो ॥ १० ॥ For Private JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २९५ ) SI र सत्रहवाँ अध्ययन : आकीर्ण But this compelling attraction of the sense of touch is harmful in the same way that by the craving to brush a she-elephant traps the elephant in season and causes it to suffer the piercing pain of lancet blows on its head. (10) 15 इन्द्रियसंवर का सुफल कलरिभिय-महुरतंती-तल-ताल-वंस-ककुहाभिरामेसु। सद्देसु जे न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए॥११॥ 5 जो प्राणी कल, रिभित आदि वाद्यों के मधुर शब्दों में आसक्त नहीं होते वे वशार्तमरण को ड र प्राप्त नहीं होते। (वशार्तमरण-इन्द्रियों के विषय, कषाय, नौकषाय आदि के वशीभूत हुआ परवशते B पीड़ादायक मृत्यु)॥११॥ 5 BENEFIT OF CONTAINMENT The beings who are not allured by the melodious sounds of musical instruments like Kal, Ribhit, etc. do not embrace Vashartmaran (forced and 5 painful death caused by indulgence in sensual pleasures, intense passions, and light passions). (11) थण-जहण-वयण-कर-चरण-नयण-गव्वियविलासियगईसु। रूवेसु जे न सत्ता, वसट्टमरणं न ते मरए॥१२॥ र स्त्रियों के स्तन जघन-नयन आदि रूपों में जो प्राणी आसक्त नहीं होते वे वशार्तमरण को प्राप्त 15 नहीं होते॥१२॥ The beings who are not allured by the visual beauty of female breasts, 5 thighs etc. do not embrace Vashartmaran. (12) अगरु-वरपवरधूवण-उउयमल्लाणुलेवण-विहीसु। गंधेसु जे न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए॥१३॥ अगर, धूप, फूल माला, चन्दन लेप आदि सुगंधों में जो प्राणी आसक्त नहीं होते वे वशार्तमरण टा 15 को प्राप्त नहीं होते॥१३॥ K The beings who are not allured by the aroma of fragrant things like a 15 Krishnaguru, Dhoop, seasonal flowers, garlands, and sandal-wood paste etc. 15 do not embrace Vashartmaran. (13) तित्त-कडुयं कसायंब-महुरं बहुखज्ज-पेज्ज-लेज्झेसु। आसायंमि न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए॥१४॥ accrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr PTER-17 : THE HORSES ( 295) टा Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M SITTUTTUTVUVV rusi र ( २९६ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा र तिक्त, कटु मधुर आदि स्वादों में तथा खाद्य-पेय आदि से जो प्राणी आसक्त नहीं होते वे दी र वशार्तमरण को प्राप्त नहीं होते॥१४॥ 115 The beings who are not allured by savoury preparations, solid, semi-solid, P and liquid, having bitter, hot, pungent, sour, and sweet flavours, etc. do not c 2 embrace Vashartmaran. (14) उउ-भयमाणसुहेसु य, सविभव-हियय-निव्वुइकरेसु। फासेसु जे न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए॥१५॥ . मन को आनन्द देने वाले विभिन्न प्रकार के स्पर्शों में जो प्राणी आसक्त नहीं होते वे वशार्तमरण डा र को प्राप्त नहीं होते॥१५॥ The beings who are not allured by a variety of objects pleasing to the sense of touch do not embrace Vashartmaran. (15) 5 कर्त्तव्य-निर्देश सद्देसु य भद्दग-पावएसु सोयविसयं उवगएसु। तुट्टेण व रुद्रेण व समणेण सया ण होअव्वं ॥१६॥ ___ श्रमण को शुभ या मनोज्ञ ध्वनियाँ सुनकर कभी तुष्ट नहीं होना चाहिए और अशुभ या दी र अमनोज्ञ ध्वनियाँ सुनकर कभी रुष्ट नहीं होना चाहिए॥१६॥ 2 DIRECTIONS A Shraman should never be contented by pleasant sounds and disturbed by unpleasant ones. (16) रूवेसु य भद्दग-पावएसु चक्खुविसयं उवगएसु। तुडेण व रुद्रेण व, समणेण सया ण होअव्वं ॥१७॥ श्रमण को आँखों के सामने आये हुए प्रिय अथवा अप्रिय दृश्य देखकर कभी तुष्ट या रुष्ट नहीं दी 5 होना चाहिए॥१७॥ A Shraman should never be contented by pleasant views and disturbed by 5 unpleasant ones. (17) गंधेसु य भद्दग-पावएसु घाण-विसयमुवगएसु। तुट्टेण व रुद्रेण व, समणेण सया ण होअव्वं ॥१८॥ श्रमण को घ्राणेन्द्रिय के समक्ष आये प्रिय अथवा अप्रिय गंध सूंघने पर कभी तुष्ट या रुष्ट नहीं डा र होना चाहिए॥१८॥ 15 (296) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SÜTRA 21 Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ பெபபப DDDDDDDDजान P) सत्रहवां अध्ययन : आकीर्ण ( २९७ ) डा A Shraman should never be contented by pleasant smells and disturbed by unpleasant ones. (18) रसेसु य भद्दय-पावएसु जिब्भविसयं उवगएसु। तुट्टेण व रुद्रेण व, समणेण सया न होअव्वं ॥१९॥ 15 श्रमण को प्रिय अथवा अप्रिय स्वाद प्राप्त होने पर कभी जिह्वेन्द्रिय के रसों में तुष्ट या रुष्ट दी २ नहीं होना चाहिए॥१९॥ B A Shraman should never be contented by pleasant tastes and disturbed 15 by unpleasant ones. (19) फासेसु य भद्दय-पावएसु कायविसयमुवगएसु। तुह्रण व रुद्रुण व, समणेण सया न होअव्वं ॥२०॥ श्रमण को प्रिय अथवा अप्रिय स्पर्श प्राप्त होने पर कभी शरीर सम्बन्धी स्पर्श में तुष्ट या रुष्ट टा 15 नहीं होना चाहिए॥२०॥ A Shraman should never be contented by a pleasant touch and disturbed 5 by an unpleasant one. (20) 12 सूत्र ३१ : एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तरसमस 15 णायज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते त्ति बेमि। र सूत्र ३१ : हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने सत्रहवें ज्ञात अध्ययन का यह अर्थ कहा है। र जैसा मैंने सुना है वैसा ही मैं कहता हूँ। 5 31. Jambu! This is the text and the meaning of the seventeenth chapter of S1 the Jnata Sutra as told by Shraman Bhagavan Mahavir. So I have heard, so I confirm. ॥ सत्तरसमं अज्झयणं समत्तं ॥ ॥ सत्तरहवाँ अध्ययन समाप्त ॥ || END OF THE SEVENTEENTH CHAPTER II B CHAPTER-17 : THE HORSES (297) टा FAAAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ % 33 तज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्जी उपसंहार - 15 ज्ञाता धर्मकथा की इस सत्रहवीं कथा में विभिन्न इन्द्रियों के विषयों में आसक्ति के दुष्परिणाम र तथा अनासक्ति द्वारा आत्मिक विकास की बात को विस्तार से समझाया है। सभी दुःखों के मूल में S 15 आसक्ति के आवरण द्वारा विवेक का ढक दिया जाना है यह बात सरल उदाहरण से पूर्णतया स्पष्ट टे| 15 हो जाती है। CONCLUSION 2 This seventeenth story of Jnata Dharma Katha explains in detail theç unhealthy consequences of indulgence in various sensual pleasures and the attainment of spiritual uplift with the help of detachment. With the help of a simple example it has been made clear that at the root of all sorrows is the 15 veiling of rational thinking by attachment. | उपनय गाथा DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD जह सो कालियदीवो अणुवमसोक्खो तहेव जइधम्मो। जह आसा तह साहू, वणियव्वऽणुकूलकारिजणा॥१॥ जह सद्दाइ-अगिद्धा पत्ता नो पासबंधणं आसा। तह विसएसु अगिद्धा, वज्झंति न कम्मणा साहू ॥२॥ जह सच्छंदविहारो, आसाणं तह य इह वरमुणीणं। जर - मरणाइविवज्जिय - संपत्ताणंद - निव्वाणं ॥३॥ जह सद्दाइसु गिद्धा, बद्धा आसा तहेव विसयरया। पावेंति कम्मबंधं, परमासुहकारणं घोरं॥४॥ जह ते कालियदीवा णीया अन्नत्थ दुहगणं पत्ता। तह धम्मपरिब्भट्ठा, अधम्मपत्ता इहं जीवा ॥५॥ पावेंति कम्म-नरवइ-वसया संसार-वाहयालीए। आसप्पमद्दएहि व, नेरइयाईहिं दुक्खाई॥६॥ 5 (298) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA मnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मज्ज र सत्रहवाँ अध्ययन : आकीर्ण ( २९९ ) SI 15 जैसे यहाँ कालिक द्वीप कहा है, वैसे अनुपम सुख प्रदान करने वाला श्रमणधर्म समझना चाहिए। दा र अश्वों के समान साधु और वणिकों के समान अनुकूल उपसर्ग करने वाले (ललचाने वाले) लोग ड பபபபப र हैं॥१॥ 15 जैसे शब्द आदि विषयों में आसक्त न होने वाले अश्व जाल में नहीं फँसे, उसी प्रकार जो साधु SI र इन्द्रियविषयों में आसक्त नहीं होते वे कर्मों से बद्ध नहीं होते।॥२॥ 5 जैसे अश्वों का स्वच्छंद विहार कहा, उसी प्रकार श्रेष्ठ मुनिजनों का जरा-मरण से रहित और ड र आनन्दमय निर्वाण समझना। तात्पर्य यह है कि शब्दादि विषयों से विरत रहने वाले अश्व जैसे र स्वाधीन-इच्छानुसार विचरण करने में समर्थ हुए, वैसे ही विषयों से विरत महामुनि मुक्ति प्राप्त ट 5 करने में समर्थ होते हैं॥३॥ र इससे विपरीत शब्दादि विषयों में अनुरक्त हुए अश्व जैसे बन्धन-बद्ध हुए, उसी प्रकार जो 5 विषयों में अनुरागवान् हैं, वे प्राणी अत्यन्त दु:ख के कारणभूत एवं घोर कर्मबन्धन को प्राप्त करते दा र हैं॥४॥ 5 जैसे शब्दादि में आसक्त हुए अश्व अन्यत्र ले जाए गए और अनेक दुःखों को प्राप्त हुए, उसी ट 15 प्रकार धर्म से भ्रष्ट जीव अधर्म को प्राप्त होकर दुःखों को प्राप्त होते हैं॥५॥ र ऐसे प्राणी कर्मरूपी राजा के वशीभूत होते हैं। वे सवारी जैसे सांसारिक दुःखों के, अश्वमर्दकों 15 द्वारा होने वाली पीड़ा के समान (परभव में) नारकों द्वारा दिये जाने वाले कष्टों के पात्र ई र बनते हैं।॥६॥ THE MESSAGE Kalik island is the ultimate bliss giving Shraman-Dharma (the spiritual path shown by Tirthankars). The horses are ascetics and the merchants are 2 those people who create temptations (1) As the horses which were not lured by sensual pleasure remained free, in 15 same way the ascetics who are not lured by sensual pleasures remain free of S 5 the bondage of Karmas. (2) The free movement of horses is the blissful state of Nirvana that is free of 5 old age and death. This means that as the horses which were not attracted 5 by sensual allurements were able to roam free, in same way ascetics 5 indifferent to sensual pleasures are able to attain liberation. (3) ? Just as the horses that were drawn by attractions were trapped, in same 5 way beings who are attached to carnal pleasures are trapped in the bondage 5 of Karmas, the root of extreme sorrow. (4) P CHAPTER-17 : THE HORSES ( 299) टा FEAAAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnnAARI Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SITUUTTUVUUTTUU २(३००) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र 50 15 Just as the horses trapped by sensual pleasures were shifted to other di 5 places and suffered extreme pain, in same way beings who drift away from C the righteous path fall from grace and embrace sufferings. (5) B Such beings are slaves of King Karma. They suffer the pains of being 5 ridden (worldly sorrows) and the agony of being tortured by trainers (the 15 tortures given in hell). (6) परिशिष्ट - खंड-बूरा, मधु-धूलिका या रजकण के समान शक्कर। गुल अथवा गोल-गुड़ सक्करा, शर्करा-दानेदार चीनी मत्स्यंडिका-खांड का विकार; गुड़िया खांड। पुष्पोत्तरा-फूलों के रस से बनी शर्करा। पद्मोत्तरा-सुगंधित शर्करा; कमल के रस से बनी शर्करा। APPENDIX - Khanda-Bura; Madhu-Dhulika; a powdered form of refined sugar. Gul or Gol-Gud; jaggery. Sakkara or Sharkara--crystal sugar. Matsyandika-raw sugar made from molasses. Pushpottara-sugar made from flower extract. Padmottara-fragrant sugar made from lotus flower extract. 15 (300) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SÜTRA FinnnnnnnnnnnAAAAAAAAAAAAA) Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - - -- - भ UUUUUUUUU अठारहवाँ अध्ययन : सुंसुमा : आमुख 5 शीर्षक-सुंसुमा-नाम विशेष। इस कथानक का एक पात्र है सुंसुमा। इसके अपहरण और हत्या से प्रकट किया दा र है मनुष्य का चरम अधःपतन। और उसकी मृत देह के मांस द्वारा प्राण रक्षा करने की घटना से इंगित किया है | र साधना पथ पर चरम अनासक्ति के भाव से साधना हेतु देह रक्षा करने की ओर। यह मार्मिक कथा प्रतीकात्मक है, था (भाव की गहराई पर पहुंचने का संकेत है। २ कथासार-राजगृह नगर में धन्य सार्थवाह अपने पाँच बेटों तथा एक बेटी सुंसुमा सहित रहता था। उसके यहाँ 5 र चिलात नाम का एक नौकर कन्या सुंसुमा की देख-रेख के लिए रहता था। वह सुंसुमा को गोद में लिए मुहल्ले के ही (अन्य बच्चों के साथ खेलता रहता था। पर दुष्ट चंचल प्रकृति होने के कारण वह अन्य बच्चों को सताता रहता 5था। पड़ोसी धन्य के पास शिकायत करते थे। एक दिन तंग आकर धन्य ने चिलात को मार पीटकर निकाल दिया। द र चिलात वहाँ से निकल घूमता-घामता निकटवर्ती सिंह-गुफा नाम की चोर बस्ती के अधिपति विजय चोर की थी र शरण में चला गया। धीरे-धीरे विजय से चोरी की कलाएँ सीख वह उसका मुख्य सहायक बन गया। विजय कीट 5 मृत्यु के पश्चात् चोरों ने उसे ही मुखिया बना दिया। 2 मुखिया बनने के बाद चिलात ने एक दिन धन्य सार्थवाह के यहाँ डाका डाला। अन्य सभी चोरों को उसने 5 सारा धन लेने को कहा और स्वयं सेठ की कन्या सुंसुमा पर अधिकार कर लिया। सेठ नगर रक्षकों सहित चोरों 15के पीछे गया। सैनिकों ने चोरों को तितर-बितर कर सारा माल बरामद कर लिया। किन्त चिलात संसमा को लिए बीहड़ में चला गया। धन्य अपने पाँचों पुत्रों सहित चिलात के पीछे बीहड़ में प्रवेश कर गया। चिलात ने देखा कि ड 2 सुंसुमा के कारण वह पकड़ा जायेगा तो उसने सुसुमा का शिरच्छेद कर दिया। धड़ को वहीं छोड़ वह बीहड़ में 5 ए और आगे निकल गया और वहाँ भूख प्यास से मर गया। र धन्य चिलात को खोजता-खोजता अपने पुत्रों सहित उस स्थल पर पहुंचा जहाँ सुसुमा की मृतदेह पड़ी थी। डा 2 पुत्री के शोक में कुछ देर तो वह विलाप करता रहा पर फिर चिलात को खोजने लगा। बहुत खोजने पर भीड र चिलात नहीं मिला तो वह अपने पुत्रों सहित वापस उसी स्थान पर आया जहाँ सुसुमा की देह पड़ी थी। 5 भोजन-पानी की उपलब्धि न होने के कारण धन्य को लगा कि उसका वापस राजगृह लौटना असंभव है। उसने ट 5 अपने पुत्रों से कहा कि वे उसे मार डालें और उसके मांस से भूख मिटा किसी तरह राजगृह पहुँच जाएँ। पुत्रों ने द 2 मना कर दिया और स्वयं अपना बलिदान करने को कहा। अंततः धन्य ने यह निर्णय लिया कि सुंसुमा की देह ड र प्राणविहीन हो ही चुकी है-उसी से क्षुधा शान्त कर सभी को अपने गंतव्य तक पहुँचना चाहिये। वे सभी इस उपाय 15 से वापस लौटने में सफल हुए। र धन्य व उसके पुत्रों ने अंत में दीक्षा ले ली और देवलोक में जन्मे। पिएUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUU ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्य ज्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्य LCHAPTER-18 : SUMSUMA (301) Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ETUN T UITIVUTTUTTI EIGHTEENTH CHAPTER : SUMSUMA : INTRODUCTION Title-Sumsuma-a name. A character in this story is named Sumsuma. The incidents R of her abduction and killing has been used to reveal the ultimate human depravity. The incident of consuming the flesh of her dead body to save lives has been used to show the importance of extreme detachment in saving one's life for spiritual pursuits. This story is metaphoric and it explores the depths of feelings and attitudes. 15 Gist of the story-In Rajagriha lived merchant Dhanya with his five sons and 5 daughter Sumsuma. He had a servant named Chilat who looked after Sumsuma. He used to 5 carry Sumsuma and play around with other children of the neighbourhood. Chilat was cruel 5 and mischievous by nature and used to torture the children. The neighbours regularly 5 complained of this to Dhanya. One day Dhanya got extremely annoyed and he beat up Chilat 15 and fired him. 5 Chilat wandered around and finally took refuge with thief Vijaya, the head of a nearby > den of thieves named Simha-gufa. With passage of time he learned all the tricks of the trade 5 from Vijaya and became his deputy. When Vijaya died the gang of thieves made Chilat their » leader. 2 After he was elected leader, one day Chilat looted the house of Dhanya merchant. He 2 asked the other thieves to take all the wealth and he himself abducted Sumsuma. The 2 merchant followed the thieves with the help of city guards. The guards attacked and 2 dispersed the thieves and recovered the stolen goods. However, Chilat entered a nearby forest. Dhanya followed him with his five sons. When Chilat realized that Sumsuma was S 2 slowing him and he would soon be caught, he beheaded her, left the body there, and went 9 2 deeper into the forest. There he was lost and died of hunger and thirst. 15 Following the trail of Chilat Dhanya and his five sons reached the spot where the body of a 15 Sumsuma was lying. He was stunned by the tragedy and wept. After some time he resumed > 15 the search for Chilat. When all his efforts failed he returned to the spot. Dhanya realized 5 that in absence of food and water it was impossible for him and his sons to return to Rajagriha. He asked his sons to kill him and eat his flesh to regain strength to reach 5 Rajagriha. The sons refused and instead offered themselves. At last Dhanya decided that as Kthe body of Sumsuma was lifeless they should use the flesh to regain strength to reach 15 Rajagriha. And they finally returned to Rajagriha. In the end Dhanya and his sons became ascetics and then reincarnated as gods. Muruvvu varvarrorrarurrrrrrrrr P (302) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SÜTRA, CU Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं अज्झयणं : सुंसुमा अठारहवाँ अध्ययन : सुसुमा EIGHTEENTH CHAPTER : SUMSUMA हे सूत्र १ : जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं सत्तरसमस्स णायज्झयणस्स अयमढे र पण्णत्ते, अट्ठारसमस्स के अढे पण्णत्ते? 5 सूत्र १ : जम्बू स्वामी ने प्रश्न किया-"भन्ते ! जब श्रमण भगवान महावीर ने सत्रहवें ज्ञाता र अध्ययन का पूर्वोक्त अर्थ कहा है तो अठारहवें अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? 5 1. Jambu Swami inquired, “Bhante! What is the meaning of the cl) > eighteenth chapter according to Shraman Bhagavan Mahavir?" र सूत्र २ : एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णामं नयरे होत्था, वण्णओ। टा 15 तत्थ णं धण्णे णामं सत्थवाहे परिवसइ, तस्स णं भद्दा भारिया। र तस्स णं धण्णस्स सत्थवाहस्स पुत्ता भद्दाए अत्तया पंच सत्थवाहदारणा होत्था, तं जहा-धणे, टे 5 धणपाले, धणदेवे, धणगोवे, धणरक्खिए। तस्स णं धण्णस्स सत्थवाहस्स धूया भद्दाए अत्तया दा र पंचण्हं पुत्ताणं अणुमग्गजाइया सुंसुमा णामं दारिया होत्था सूमालपाणि-पाया। र तस्स णं धण्णस्स सत्थवाहस्स चिलाए नाम दासचेडए होत्था। अहीणपंचिंदियसरीरे द 15 मंसोवचिए बालकीलावण-कुसले यावि होत्था। र सूत्र २ : सुधर्मा स्वामी ने उत्तर दिया-हे जम्बू ! काल के उस भाग में राजगृह नामक नगर 15 था। वहाँ धन्य नामक धन सम्पन्न श्रीमंत सार्थवाह अपनी भद्रा नामकी पत्नी के साथ निवास करता डी र था। सार्थवाह धन्य के पाँच पुत्र थे। जिनके क्रमशः नाम थे-धन, धनपाल, धनदेव, धनगोप तथा डा र धनरक्षित। धन्य सार्थवाह और भद्रा के एक पुत्री थी जो अपने पाँचों भाइयों से छोटी थी और दी 15 जिसका नाम सुंसुमा था। उसके अंगोपांग सुकोमल सुन्दर थे। र धन्य सार्थवाह के यहाँ चिलात नाम का एक दासपुत्र (नौकर) था। चिलात पंचेन्द्रिय परिपूर्ण 5 तथा हृष्ट-पुष्ट शरीर वाला था और बच्चों की सारसँभाल रखने व उन्हें खिलाने में कुशल था। डा 2 2. Sudharma Swami narrated - Jambu! During that period of time there , B was a city named Rajagriha. A wealthy merchant named Dhanna lived in a 5 that city with his wife, Bhadra. 15 Dhanya and Bhadra had five sons. Their names were Dhan, Dhanpal, SI 12 Dhandev, Dhangope, and Dhanrakshit. The couple had a daughter named J R CHAPTER-18 : SUMSUMA (303) Annnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्त FATOTTTTTTTTTTTTTTT र ( ३०४ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 Sumsuma who was younger than these five brothers. She was beautiful and 5 delicate. Dhanya merchant had a slave-boy named Chilat. Chilat had a fully S 5 developed body and was healthy. He was expert in looking after children and 15 entertaining them. र दास-चेटक : उसकी शैतानी सूत्र ३ : तए णं से दासचेडे सुंसुमाए दारियाए बालग्गाहे जाए यावि होत्था। सुसुमं दारियंट र कडीए गिण्हइ, गिण्हित्ता बहूहिं दारएहिं य दारियाहि य डिंभएहिं य डिंभयाहिं य कुमारएहिं यह र कुमारियाहि य सद्धिं अभिरममाणे अभिरममाणे विहरइ। सूत्र ३ : वह दासपुत्र चिलात बालिका सुंसुमा की देखरेख के लिए नियुक्त किया गया। डा र चिलात बालिका सुंसुमा को गोद में लेता और अनेक लड़के-लड़कियों, बच्चे-बच्चियों और ट 15 कुमार-कुमारियों के साथ खेलता रहता था। 5 CHILAT'S MISCHIEF 2 3. Slave boy Chilat was appointed to look after baby Sumsuma. He used SI B to pick up the infant and play with many children from the neighbourhood. Ş 5 सूत्र ४ : तए णं चिलाए दासचेडे तेसिं बहूणं दारयाण य दारियाण य डिंभयाण य डिंभिया ट र य कुमारयाण य कुमारियाण य अप्पेगइयाणं खुल्लए अवहरइ, एवं वट्टए आडोलियाओ तेंदूसएड र पोत्तल्लए साडोल्लए, अप्पेगइयाणं आभरणमल्लालंकारं अवहरइ, अप्पेगइए आउसइ, एवं 15 अवहसइ, निच्छोडेइ, निब्भच्छेइ, तज्जेइ, अप्पेगइए तालेइ। सूत्र ४ : चिलात खेलते समय उन बच्चों में से किसी की कौड़ियाँ ले लेता तो किसी के वर्तरु डा र (लाख के गोले), किसी की गेंद, किसी का डण्डा, किसी की गुड़िया आदि छीन लेता था। वह उन टा बच्चों के आभरण, माला और अलंकार भी चुरा लेता था। यही नहीं, वह उन बच्चों में से किसी द र पर क्रोध करता, किसी की हँसी उड़ाता, किसी को ठग लेता, किसी की भर्त्सना, किसी की तर्जना र करता और किसी को मारता-पीटता रहता था। 5 4. While playing with children Chilat would snatch playthings like shells, c shellac balls, balls, sticks, dolls, etc. from the boys and girls. He would also steal the necklaces and other ornaments from the children. Not only this, heç र used to shout at some children, and tease, cheat, insult, molest, and beat र others. सूत्र ५ : तए णं ते बहवे दारगा य दारिया य डिंभया य डिभिया य कुमारा य कुमारिया डा र य रोयमाणा य कंदमाणा य तिप्पमाणा य सोयमाणा य विलवमाणा य साणं-साणं अम्मा-पिऊण, एणिवेदेति। 15 (304) JNĀTĀ DHARMA KATHÄNGA SŪTRA Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र अठाहरवाँ अध्ययन : सुंसुमा ( ३०५ ) डा 5 तए णं तेसिं बहूणं दारगाण य दारियाण य डिंभयाण य डिभियाण य कुमारयाण यद र कुमारियाण य अम्मापियरो जेणेव धण्णे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता धण्णं 15 सत्थवाहं बहूहिं खिज्जणाहि य रुंटणाहि य उवलंभणाहि य खिज्जमाणा य रुंटमाणा यद 5 उवलंभेमाणा य धण्णस्स एयमढें णिवेदेति। 5 सूत्र ५ : तब वे बहुत से बच्चे रोते, चिल्लाते, शोक करते, आँसू बहाते और विलाप करते हुए ट 5 अपने-अपने माता-पिता के पास जाकर चिलात की शिकायत करते थे। र बच्चों के माता-पिता धन्य सार्थवाह के पास जाकर खेद भरे वचनों में भरे गले से उलाहना देते ८ 5 हुए अपना दुःख प्रकट करते और रोते-रोते धन्य सार्थवाह से शिकायत करते थे। 2 5. At this the children wept, shrieked, became sad, cried, and went to their parents to report the ill-treatment by Chilat. The parents of these children came to Dhanya merchant and reported to him with regret, complained in choked voice, and expressed their sorrow with S रे tears in their eyes. 5 सूत्र ६ : तए णं धण्णे सत्थवाहे चिलायं दासचेडं एयमटुं भुज्जो भुज्जो णिवारेति, णो चेव द र णं चिलाए दासचेडे उवरमइ। तए णं से चिलाए दासचेडे तेसिं बहूणं दारगाण य दारियाण या र डिंभयाण य डिभियाण य कुमारयाण य कुमारियाण य अप्पेगइयाणं खुल्लए अवहरइ जावटी UUUUUUN ज्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् 5 तालेइ। सूत्र ६ : धन्य सार्थवाह ने इस धृष्टता के लिए चिलात दास पुत्र को बार-बार मना किया । 15 समझाया, पर वह माना नहीं। धन्य सार्थवाह के रोकने पर भी चिलात उन बच्चों को विभिन्न प्रकार ट र से सताता रहा; उनको डाँटता रहा। 6. Dhanya merchant admonished Chilat for all this mischief and told him 155 many a time to behave himself. In spite of all this Chilat continued to torture and mistreat the children. र सूत्र ७ : तए णं ते बहवे दारगा य दारियगा य डिंभगा य डिभिया य कुमारा य कुमारिया । 15 य रोवमाणा य जाव अम्मापिऊणं णिवेदेति। र तए णं ते आसुरुत्ता रुट्ठा कुविया चंडिक्किया मिसिमिसेमाणा जेणेव धण्णे सत्थवाहे तेणेव टा 15 उवागच्छंति, उवागच्छित्ता बहूहिं खिज्जणाहि य जाव एयमद्वं णिवेदेति। र सूत्र ७ : इस पर बच्चों ने रोते कलपते फिर अपने माता-पिता से चिलात की शिकायत की। टा 5 बच्चों के माता-पिता इस स्थिति से एकदम क्रुद्ध, रुष्ट और कुपित हो गये और प्रचण्ड क्रोध से डा र जलते हुए पुनः धन्य सार्थवाह के पास गये। वहाँ पहुँचकर उन्होंने खीज भरे वचनों में सारी बात र धन्य सार्थवाह को बताई। UUUUUN C CHAPTER-18 : SUMSUMA ( 305) टा FEAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAALI Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ UUUUU UUUU R ( ३०६ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डी 5 7. When this continued the children again complained to their parents (e 5 crying. B The parents of these children got annoyed, angry and furious and they a 5 went to Dhanya merchant seething with anger. They explained everything to 5 Dhanya merchant expressing their extreme displeasure. र दास-चेटक का निष्कासन र सूत्र ८ : तए णं से धण्णे सत्थवाहे बहूणं दारगाणं दारियाणं डिंभयाणं डिभियाणं टा 15 कुमारगाणं कुमारियाणं अम्मापिऊणं अंतिए एयमढे सोच्चा आसुरुत्ते चिलायं दासचेडं र उच्चावयाहिं आउसणाहिं आउसइ, उद्धंसइ, णिब्भच्छेइ, णिच्छोडेइ, तज्जेइ, उच्चावयाहिं 15 तालणाहिं तालेइ, साओ गिहाओ णिच्छुभइ। 2 सूत्र ८ : बच्चों के माता-पिताओं की बातें सुनकर धन्य सार्थवाह एकदम कुपित हो गया। उसने 2 15 चिलात को ऊँचे-नीचे शब्दों में फटकारा, उसका तिरस्कार किया, भर्त्सना की, धमकी दी, तर्जना दी र की, खूब खरी-खोटी सुनाकर ताड़ना की और अपने घर से बाहर निकाल दिया। » CHILAT FIRED 5 8. When Dhanya merchant listened to the complaints from the parents of 15 the children he lost his temper. He expressed his anger by uttering angry 5 words in low and high pitched voice. In the same manner he insulted, IP deplored, warned and rejected Chilat. And at last, cursing and shouting, he 3 kicked Chilat out of his house. 15 सूत्र ९ : तए णं से चिलाए दासचेडे साआ गिहाओ णिच्छूढे समाणे रायगिहे नयरे सिंघाडए र जाव पहेसु य देवकुलेसु य सभासु य पवासु य जूयखलएसु य वेसाघरेसु य पाणघरएसु य टा 5 सुहंसुहेणं परियट्टइ। 5 तए णं चिलाए दासचेडे अणोहट्ठिए अणिवारिए सच्छंदमई सइरप्पयारी मज्जपसंगी 15 चोज्जपसंगी मंसपसंगी जूयप्पसंगी वेसापसंगी परदारप्पसंगी जाए यावि होत्था। 15 सूत्र ९ : घर से तिरस्कार पूर्वक निकाला हुआ चिलात राजगृह नगर में शृंगाटकों आदि विभिन्न दी 1 पथों पर, देवालयों में, सभाओं में, प्याउओं में, द्यूत-गृहों में, वेश्या-गृहों में तथा मदिरालयों में Si र आनन्द मनाता हुआ भटकने लगा। 15 जब उस दासपुत्र को कोई रोकने-टोकने वाला ही नहीं रहा तो वह निरंकुश, स्वेच्छाचारी, डा र मदिरालुब्ध, चोर, माँसाहारी, जुआरी, वेश्याचारी, परस्त्री भोगी तथा अन्य दुराचारों में आसक्त हो ही 15 गया। 15 (306) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA पEnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ UW .WIN HUY SHA T hey . AWY . .. 24 Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (8 ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग २) चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED चिलात द्वारा सुंसुमा का अपहरण चित्र : २४ १. धन्य सेठ की पुत्री सुंसुमा की देखभाल के लिए दासपुत्र चिलात को नियुक्त किया गया। किन्तु वह बहुत ही चंचल व दुष्ट स्वभाव का था। पड़ौसी आये दिन उसकी शिकायत लेकर आते, जिससे परेशान होकर सेठ धन्य व उसके पुत्रों ने उसे बहुत मारा-पीटा और धिक्कार कर घर से निकाल दिया। २. दुष्ट चिलात सिंह- गुफा चोरबस्ती के विजय तस्कर की टोली में जा मिला और उसकी मृत्यु के पश्चात् वही चोर पल्ली का नायक बन गया। बदला लेने के लिए एक रात्रि में उसने सेठ के भवन पर डाका डाला। अपने साथियों से कहा - " इसका धन - माल लूटकर तुम ले लो, केवल सुंसुमा कन्या मुझे चाहिए ।" सेठ व उसके पुत्र भवन में एक ओर छुप गये। चोरों ने भालों व लौह- दण्डों से मजबूत दरवाजे तोड़कर धन-सम्पत्ति लूट ली व चिलात चोर सुंसुमा का अपहरण करके ले गया। (अठारहवाँ अध्ययन) CHILAT ABDUCTS SUMSUMA ILLUSTRATION : 24 1. Dhanya merchant appointed a servant named Chilat to look after his daughter Sumsuma. Chilat was cruel and mischievous by nature and used to torture the children of the neighbourhood. The neighbours regularly complained of this to Dhanya. One day Dhanya got extremely annoyed and he beat up Chilat and fired him. 2. Chilat took refuge with thief chieftain Vijaya. When Vijaya died Chilat became the chieftain. Vengeful Chilat one day looted the house of Dhanya merchant. He asked the other thieves to take all the wealth as he only wanted Sumsuma for himself. The merchant and his sons hid themselves in a remote corner of the house. The thieves used their spears and rods to break open gates and looted all the wealth. Chilat abducted Sumsuma and left. (CHAPTER-18) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SUTRA (PART-2) For Private Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DDDDDDDDDDDDDDDDD र अठाहरवाँ अध्ययन : सुंसुमा (३०७ ) डा 5 9. After being insulted and expelled from home Chilat started wandering 5 around various roads and crossings, temples, halls, water huts, casinos, c brothels and bars in Rajagriha and enjoying himself. When there was no one to restrain him, he became vagrant, wayward, a 5 drunkard, a thief, a gambler, a prostitutor, an adulterer, and debased. 15 सूत्र १० : तए णं रायगिहस्स णगरस्स अदूरसामंते दाहिणपुरस्थिमे दिसिभाए सीहगुहा नाम । र चोरपल्ली होत्था, विसमगिरिकडग-कोडंब-संनिविट्ठा वंसीकलंक-पागार-परिक्खित्ता छिण्ण-2 15 सेलविसमप्पवाय-फरिहोवगूढा एगदुवारा अणेगखंडी विदितजणणिग्गम-पवेसा अभिंतरपाणिया डा सुदुल्लभ-जलपेरंता सुबहुस्स वि कूवियबलस्स आगयस्स दुप्पहंसा यावि होत्था। सूत्र १0 : राजगृह नगर के आसपास के क्षेत्र में दक्षिणपूर्व दिशा की ओर सिंह गुफा नामकी द एक चोर-बस्ती थी। वह पर्वत प्रदेश के बीचों बीच दुर्गम स्थल पर बसी हुई थी और बाँस की 5 र झाड़ियों से घिरी हुई थी। उसके चारों ओर प्राकृतिक खाइयाँ व गर्त गढ्ढे थे। उसमें मुक्त आवागमन ट 5 के लिए एक ही द्वार था किन्तु पलायन करने के लिए अनेक छोटे-छोटे द्वार थे। उस बस्ती के दी 5 आसपास कहीं पानी उपलब्ध नहीं था, केवल बस्ती में ही पानी था। चोरी का माल जप्त करने के SI र लिए आई हुई सेना भी उस बस्ती का कुछ न बिगाड़ सकती। ऐसी थी वह चोर बस्ती। 15 10. In the outskirts of Rajagriha, in the south-eastern direction there was a 5a hideout of thieves known as Simha-Gupha. It was located at an 5 impregnable spot in a hilly terrain and was surrounded by bamboo thickets. I Around it there were natural gorges, trenches, and ditches. It had only one known gate for normal movement but many small and concealed passages for escape. There was no source of water in the general area except the hideout 5 proper. Even armed forces coming to investigate and apprehend could not 15 harm this hideout. Such was Simha-Gupha.. र सूत्र ११ : तत्थ णं सीहगुहाए चोरपल्लीणं विजए णामं चोरसेणावई परिवसइ अहम्मिए । 15 जाव अहम्मकेऊ समुट्ठिए बहुनगरणिग्गयजसे सूरे दढप्पहारी साहसिए सद्दवेही। से णं तत्थ ड र सीहगुहाए चोरपल्लीए पंचण्हं चोरसयाणं आहेवच्चं जाव विहरइ। र सूत्र ११ : उस सिंह गुफा चोर बस्ती में विजय नाम का चोर सेनापति रहता था। वह द 5 अधार्मिक (अधर्म से जीविका करने वाला) तथा सर्वदोष सम्पन्न था और अपने पाप कर्मों के डा र कारण अधर्म की ध्वजा के समान था। अनेक नगरों में उसकी बदनामी फैली थी। वह शूरवीर, दृढ़ 2 र प्रहारी (प्रहार करने में कठोर) साहसी और शब्दवेधी था। सिंह गुफा के पाँच सौ चोरों पर उसका ८ 5 एक छत्र आधिपत्य था। 11. In Simha-Gupha lived the leader of thieves, Vijay. He was absolutely corrupt and had all the vices. Due to his extreme indulgence in sinful ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण P CHAPTER-18 : SUMSUMA (307) Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मज्ज ( ३०८ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा activities he was like the flag of debasement. His notoriety had reached numerous towns. He was brave, ruthless, courageous, and an expert marksman. He was the undisputed leader of the five hundred thieves of Simha-Gupha. __ सूत्र १२ : तए णं से विजए तक्करे चोरसेणावई बहूणं चोराण य पारदारियाण य ८ 12 गंठिभेयगाण य संधिच्छेयगाण य खत्तखणगाण य रायावगारीण य अणधारगाण य र बालघायगाण य वीसंभगायगाण य जूयकराण य खंडरक्खाण य अन्नेसिं च बहूणं छिन्न-भिन्न दी र बाहिराहयाणं कुडंगे यावि होत्था। 15 सूत्र १२ : वह चोर सेनापति, विजय तस्कर, अन्य अनेक चोरों परस्त्रीगामियों, ग्रन्थि भेदकों दी 12 (धरोहर हड़पने वाले), संधिच्छदेकों (सेंध लगाने वालों), क्षात्रखनकों (दीवारें तोड़कर चोरी करने । र वालों), राजद्रोहियों, ऋण लेने वालों, बालहत्यारों, विश्वासघातियों, जुआरियों, अतिक्रमणकारियों ट 15 तथा अन्य विभिन्न प्रकार के राजदण्डित अपराधियों का उसी प्रकार आश्रयदाता था जैसे बाँस की डा 2 झाड़ी होती है। 12. Like a bamboo thicket he provided protection and refuge to all sorts of S branded and escaped criminals. These included thieves, womanizers, bamboozlers (Granthibhedak), housebreakers (Sandhicchedak), wall- a 5 breakers (Kshatrakhanak), rebels, insolvents, infanticides, betrayers, 15 gamblers, transgressors, and other persons with criminal records. सूत्र १३ : तए णं से विजए तक्करे चोरसेणावई रायगिहस्स नगरस्स दाहिणपुरच्छिमंट 5 जणवयं बहूहिं गामघाएहि य नगरघाएहि य गोग्गहणेहि य बंदिग्गहणेहि य पंथकोट्टणेहि य र खत्तखणणेहि य ओवीलेमाणे ओवीलेमाणे विद्धंसेमाणे-विद्धंसेमाणे णित्थाणं णिद्धणं करेमाणे टा 5 विहरइ। 5 सूत्र १३ : विजय तस्कर नामका वह चोर सेनापति राजगृह नगर के दक्षिणपूर्व में स्थित जनपद ट र प्रदेश को ग्राम-घात, नगर-घात, गायों का अपहरण, लोगों का अपहरण, पथिकों को लूटना-पीटना ड र तथा सेंध लगाना आदि उपद्रवों द्वारा उत्पीड़ित और विध्वंस करता रहता था और लोगों को । 15 स्थानहीन आश्रयहीन) व धनहीन (दरिद्र) करता रहता था। _____13. That leader of the thieves, the smuggler Vijay, habitually indulged in ] 5 activities like raiding villages, raiding towns, driving away cattle, kidnapping people, looting and beating wayfarers, and house breaking. With these activities he caused torment and havoc and deprived citizens of their s R wealth and peaceful living. Vuuriuurrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrron (308) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA , AAAAAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ UUUUN VAN र अठाहरवाँ अध्ययन : सुंसुमा ( ३०९ ) डा 15 चोर-सेनापति की शरण में र सूत्र १४ : तए णं से चिलाए दासचेडे रायगिहे णयरे बहूहिं अत्थाभिसंकीहि य दे 15 चोज्जाभिसंकीहि य दाराभिसंकीहि य धणिएहि य जूयकरेहि य परब्भवमाणे परब्भवमाणे डा र रायगिहातो नयराओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सीहगुहा चोरपल्ली तेणेव उवागच्छइ, ट 5 उवागच्छित्ता विजयं चोरसेणावई उपसंपिज्जत्ता णं विहरइ। र सूत्र १४ : उधर राजगृह नगर के अनेक आशंकित लोगों, जिनमें धन, स्त्री, पुत्र आदि के टा 5 अपहरण की आशंका रखने वाले तथा धनाढ्य व जुआरी सम्मिलित थे, उनके द्वारा तिरस्कृत र होकर, चिलात दास पुत्र राजगृह नगर से बाहर निकल गया। वह सिंह गुफा में चोर सेनापति ड र विजय के पास जा पहुँचा और उसका शरणागत होकर रहने लगा। 5 UNDER VIJAY'S PROTECTION 15 14. Pushed out by many citizens of Rajagriha including the wealthy, SI 2 habitual gamblers, and others apprehensive of being deprived of their wealth र and family, Chilat left the city. He went to the Simha-Gupha and joined टे 5 ranks with thief-chieften Vijay. र सूत्र १५ : तए णं से चिलाए दासचेडे विजयस्स चोरसेणावइस्स अग्ग-असि-लढिग्गाहे जाए डा 5 यावि होत्था। जाहे वि य णं से विजए चोरसेणावई गामघायं वा जाव पंथकोटिं वा काउं वच्चइ, र ताहे वि य णं से चिलाए दासचेडे सुबहु पि कूवियबलं हयमहियं जाव पडिसेहेइ, पडिसेहित्ता डा 15 पुणरवि लद्धढे कयकज्जे अणहसमग्गे सीहगुहं चोरपल्लिं हव्वमागच्छइ। र सूत्र १५ : कालान्तर में दासपुत्र चिलात विजय का मुख्य खड्ग व दण्डधारी बन गया। जब भी > 5 विजय किसी ग्रामादि को लूटने या अन्य यात्रियों की लूट-खसोट की मुहिम पर जाता था तब 15 चिलात चोरी पकड़ने आई सेना को हराकर तितर-बितर करता था और लूट का माल लेकर सिंह ई 2 गुफा में सकुशल लौट आता था। 5 15. With the passage of time Chilat became the second in command of C » chief Vijay. Whenever Vijay went out on a mission to raid some village or a s 2 caravan, Chilat led the forces that engaged the state forces, scattered them, B and brought back the loot safely to Simha-Gupha. ___ सूत्र १६ : तए णं से विजए चोरसेणावई चिलायं तक्करं बहुईओ चोरविज्जाओ य चोरमंते रय चोरमायाओ च चोरनिगडीओ य सिक्खावेइ। र सूत्र १६ : इस बीच विजय चोर सेनापति ने चिलात तस्कर को अनेक चोर-विद्याएँ, चोर मंत्र, ए चोर माया और निकृतियाँ (छल-कपट) सिखला दिये। 5 CHAPTER-18 : SUMSUMA ( 309) टा Annnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn ज्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्प Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भएण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण मानAAAAAAAAAAAUNL O D क( ३१०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा ___16. During this period chief Vijay taught Chilat many skills, mantras, al 15 illusions, and tricks useful to thieves. र सूत्र १७ : तए णं से विजए चोरसेणावई अन्नया कयाइं कालधम्मणा संजुत्ते यावि होत्था। 15 ताइं पंच चोरसयाई विजयस्स चोरसेणावइस्स महया महया इड्ढी-सक्कार-समुदएणं णीहरणं टा र करेंति, करित्ता बहूइं लोइयाइं मयकिच्चाई करेइ, करित्ता जाव विगयसोया जाया यावि होत्था। हा 15 सूत्र १७ : कालान्तर में विजय चोर सेनापति की मृत्यु हो गई। उसके दल के पाँच सौ चोरों ने दी र बहुत ऋद्धि (धन व्यय करके) सत्कार व समारोह पूर्वक उसका अन्तिम संस्कार व मृतक-कृत्य र सम्पन्न किए। समय बीतने के साथ-साथ उनका शोक भी समाप्त हो गया। 15 17. After some time chief Vijay died. The five hundred thieves of his gang I > performed his last rites with grandeur befitting his status. With the passage 2 of time they recovered from their sorrow. र चिलात सेनापति बना 15 सूत्र १८ : तए णं ताई पंच चोरसयाइं अन्नन्नं सदावेंति, सद्दावित्ता एवं वयासी-‘एवं खलु डा र अम्हं देवाणुप्पिया ! विजए चोरसेणावई कालधम्मुणा संजुत्ते, अयं च णं चिलाए तक्करे विजएणंडी 15 चोरसेणावइणा बहुओ चोरविज्जाओ य जाव सिक्खाविए, तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! दी र चिलायं तक्करं सीहगुहाए चोरपल्लीए चोरसेणावइत्ताए अभिसिंचित्तए।' त्ति कटु अन्नमन्नस्स SI ए एयमट्ठ पडिसुणेति, पडिसुणित्ता चिलायं तक्करं तीए सीहगुहाए चोरसेणावइत्ताए अभिसिंचंति। टी 15 तए णं से चिलाए चोरसेणावई जाए अहम्मिए जाव विहरइ। र सूत्र १८ : इसके बाद उन सभी पाँच सौ चोरों ने एकत्र हो मंत्रणा की-“देवानुप्रियो ! हमारे ट 15 चोर सेनापति विजय की मृत्यु हो गई है। उसने इस चिलात तस्कर को अनेक चोर विद्याएँ आदि डा र सिखलाई हैं। अतः अच्छा होगा कि चिलात तस्कर का सिंह गुफा नामकी चोर बस्ती के ही र चोर-सेनापति के रूप में अभिषेक किया जाये।” सभी इस प्रस्ताव से सहमत हो गये और चिलात ट 5 का चोर सेनापति के रूप में अभिषेक कर दिया। चोर सेनापति बनकर चिलात अपने पूर्वगामी डा र विजय के समान ही अधार्मिक, क्रूर, और पाप-कृत्यों में लिप्त हो जीवन बिताने लगा। R CHILAT BECOMES CHIEF 5 18. Now the five hundred thieves collectively deliberated, “Beloved of gods! 5 Our leader, chief Vijaya, has died. He has taught Chilat many arts and skills ► of our trade. As such, it would be proper if we choose Chilat and formally S 2 appoint him as our leader.” They took a unanimous decision and formally appointed Chilat as their leader. having become the leader Chilat conveniently adopted the evil, cruel and sinful life style of the deceased chief Vijay. (310) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA yennnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अठाहरवाँ अध्ययन : सुसुमा ( ३११ ) सूत्र १९ : तए णं से चिलाए चोरसेणावई चोरणायगे जाव कुडंगे यावि होत्था | से णं तत्थ सीहगुहाए चोरपल्लीए पंचण्डं चोरस्याण य एवं जहा विजओ तहेव सव्वं जाव रायगिहस्स नगरस्स दाहिण पुरच्छिमिल्लं जणवयं जाव णित्थाणं निद्धणं करेमाणे विहर | सूत्र १९ : चिलात चोरों का नायक और सबका आश्रयदाता हो गया । सिंहगुफा में अपने अधीन पाँच सौ चोरों के साथ रहता हुआ विजय की तरह राजगृह के दक्षिण-पूर्व के प्रदेश को आतंकित करने लगा। (विस्तृत विवरण पूर्व सूत्र १२-१३ के समान ) । 19. Chilat became the leader and protector of all the thieves. Living in the Simha-Gupha with his gang of five hundred thieves Chilat started terrorizing the area south-east of Rajagriha. (details as para 12, 13) सूत्र २० : तए णं से चिलाए चोरसेणावई अन्नया कयाइं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता पंच चोरसए आमंते । तओ पच्छा पहाए कयबलिकम्मे भोयणमंडवंसि तेहिं पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च जाव पसण्णं च आसाएमाणे वसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ । जिमियभुत्तुत्तरागए ते पंच चोरसए विपुलेणं धूव- पुप्फ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ, संमाणेइ, सक्कारित्ता सम्माणित्ता एवं वयासी सूत्र २० : एक दिन चिलात चोर सेनापति ने विपुल खाद्य सामग्री तैयार करवाकर अपने आधीन पाँच सौ चोरों को भोजन के लिए आमन्त्रित किया। स्नानादि के बाद तैयार हो भोजन मण्डप में उनके साथ भोजन तथा विभिन्न प्रकार की मदिरा आदि का आस्वादन, विस्वादन, वितरण एवं परिभोग किया। फिर सभी आमन्त्रित पाँच सौ चोरों का यथेष्ट धूप-गंध-माला - अलंकार आदि से विधिवत् सत्कार-सम्मान किया और उनसे बोला 20. One day he made arrangements for a great feast and invited all the members of his gang. He himself got ready after his bath and joined them in the pavilion to taste, relish, distribute, and enjoy the food and a variety of beverages. After the feast he formally honoured the guests with perfumes, flowers, dresses, ornaments and other gifts and said - धन्य सार्थवाह के घर की लूट सूत्र २१ : एवं खलु देवाणुप्पिया ! रायगिहे णयरे धणे णामं सत्थवाहे अड्ढे । तस्स णं धूया भद्दाए अत्तया पंचण्हं पुत्ताणं अणुमग्गजाइया सुंसुमा णामं दारिया यावि होत्था अहीणा जाव सुरूवा । तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! धण्णस्स सत्थवाहस्स गिहं विलुंपामो । तुब्भं विपुले धण-कणग जाव सिलप्पवाले, ममं सुंसुमा दारिया ।' तए णं ते पंच चोरसया चिलायस्स चोरसेणावइस्स एयमहं पडिसुर्णेति । CHAPTER-18: SUMSUMA For Private Personal Use Only (311) 5 Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ STTTerenuruna v usi र ( ३१२ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 सूत्र २१ : “देवानुप्रियो ! राजगृह नगर में धन्य नामका एक धनाढ्य सार्थवाह रहता है। दा र उसकी पुत्री, भद्रा की आत्मजा और पाँच पुत्रों के बाद जन्मी हुई सुंसुमा नामक एक पुत्री है। वह डा र पंचेन्द्रिय परिपूर्ण तथा सुन्दर रूप वाली है। हे देवानुप्रियो ! हम लोग चलकर धन्य सार्थवाह को , 15 लूटें। उस लूट में मिलने वाला सारा धन, सोना आदि माल तुम्हारा होगा, केवल सुंसुमा नाम की ८ र कन्या मेरी होगी।" 15 सभी पाँच सौ चोरों ने चिलात का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। 15 RAID ON DHANYA'S HOUSE ? 21. "Beloved of gods! A wealthy merchant named Dhanya lives in 5 Rajagriha. 15 Dhanya and his wife Bhadra have a daughter named Sumsuma who was c > born after her five brothers. She is beautiful and perfectly proportioned. Beloved of gods! We should go and raid Dhanya merchant. All the loot 5 including gold and wealth will be yours and only Sumsuma will be mine." All the five hundred thieves accepted Chilat's proposal. सूत्र २२ : तए णं से चिलाए चोरसेणावई तेहिं पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं अल्लं चम्मं दुरूहइ, ही 5 पच्चावरण्हकालसमयंसि पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं सन्नद्ध जाव गहियाउहपहरणे माइय-गोमुहिएहिंद र फलएहिं, णिक्कट्ठाहिं असिलट्ठीहिं, अंसगएहिं तोणेहिं, सज्जीवेहिं धणूहि, समुक्खित्तेहिं सरेहिंड 15 समुल्लालियाहिं दाहाहिं, ओसारियाहिं ऊरुघंटियाहिं, छिप्पतूरेहिं वज्जमाणेहि महया महया ट 12 उक्किट्ठसीहणाय जाव समुद्दरवभूयं करेमाणा सीहगुहाओ चोरपल्लीओ पडिणिक्खमइ, S 15 पडिणिक्खमित्ता जेणेव रायगिहे नगरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रायगिहस्स अदूरसामंते टी र एगं महं गहणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता दिवसं खवेमाणो चिट्ठइ। 15 सूत्र २२ : तब पाँच सौ साथियों सहित शुभ शकुन के निमित्त चिलात चोर सेनापति गीले चमड़े ट र के आसनों पर बैठा। दिन के अन्तिम प्रहर में वे सभी कवच धारण कर तैयार हुए। आयुध और डा र प्रहरण धारण किये। गोमुख ढाल लिए और तलवारें म्यान से बाहर निकाल ली। कन्धों पर तर्कश 15 लटकाये और धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा कर बाण बाहर निकाल लिए। बछियाँ और भाले उछालने लगे। टा र जाँघों पर बाँधी हुई घण्टियाँ लटका ली। और तब बाजे बजने लगे। उच्च स्वर में तीव्र सिंहनाद और दा र बोलने के संयुक्त निनाद से ऐसा लगने लगा जैसे यहाँ समुद्र में लहरों का गर्जन हो रहा हो। ऐसेड 5 कोलाहल के साथ वह समूह सिंह गुफा से बाहर निकला और राजगृह की ओर चला। नगर से कुछ ट र दूर एक सघन वन में वे सब चोर प्रवेश कर गये और सूर्यास्त की प्रतीक्षा करने लगे। दा B 22. After this, for the purpose of an auspicious launching of the project, J 15 Chilat and his gang of five hundred thieves sat on wet leather mattresses. टा 15 (312) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA - Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुज्ज्ज्ज्ज ( ३१३ ) During the last quarter of the day they all got ready after putting on their armour. They equipped themselves with various weapons and other tools of their trade. Taking cow-head shields and bare swords with them, they hung quivers on their shoulders, stringed their bows, and took arrows in their hands. They started tossing spears and lances in air. They also tied bells on their thighs and started blowing trumpets. Their loud hails and exchanges produced a tumultuous sound like the thunder of waves. With such an uproar the gang came out of Simha-Gupha and proceeded toward Rajagriha. A short distance from Rajagriha, they entered a dense jungle and waited for sunset. "अठाहरवाँ अध्ययन: सुंसुमा सूत्र २३ : तए णं से चिलाए चोरसेणावई अद्धरत्तकालसमयंसि निसंतपडिनिसंतंसि पंच हिं ) चोरसएहिं सद्धिं माइय-गोमुहिएहिं फलएहिं जाव मूइआहिं ऊरुघंटियाहिं जेणेव रायगिहे नरे पुरच्छिमिल्ले दुवारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उदगवत्थिं परामुसइ, परामुसित्ता आयंते ) चोक्खे परमसुइभूइ तालुग्घाडणिविज्जं आवाहेइ, आवाहित्ता रायगिहस्स दुवारकवाडे उदएणं 'अच्छोडेर, अच्छोडित्ता कवाडं विहाडे, विहाडित्ता रायगिहं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता महया ) महया सद्देणं उग्घोसेमाणे उग्घोसेमाणे एवं वयासी सूत्र २३ : आधी रात के समय जब चारों ओर शान्ति और सन्नाटा छा गया तब चिलात अपने पाँच सौ चोर साथियों सहित, अपनी प्रतिरक्षा हेतु ढाल, भालू की खाल, घण्टिया आदि शरीर पर बाँधे, राजगृह नगर के पूर्व दिशा वाले द्वार पर पहुँचा । वहाँ चिलात चोर सेनापति जल की मशक में से एक अंजलि जल लेकर आचमन कर शुद्ध हुआ, और ताला खोलने की विद्या का आह्वान ) कर द्वार पर अभिमन्त्रित जल छिड़का । द्वार खुल गया और सब चोर नगर में घुस गये । चिलात ने ऊँचे स्वर में घोषणा की 23. At midnight when there was peace and quiet all around, Chilat and his gang arrived at the eastern gate of Rajagriha. They had tied shields, bear-skins, and bells on their body for protection. At the city gate Chilat took water in his cupped hand from a leather canteen, washed his hands, and invoking the power that opens locks, sprinkled the energized water on the gate. The gate opened and all the thieves entered the city. Once in the city Chilat uttered a challenge loudly सूत्र २४ : एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! चिलाए णामं चोरसेणावई पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं सीहगुहाओ चोरपल्लीओ इहं हव्वमागए धण्णस्स सत्थवाहस्स गिहं घाउकामे, तं जे णं णवियाए ) माउयाए दुद्धं पाउकामे, से णं निग्गच्छउ' त्ति कट्टु जेणेव धण्णस्स सत्थवाहस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धण्णस्स - हिं विहाडे | CHAPTER - 18 : SUMSUMA For Private Personal Use Only ( 313 ) Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ESTUVUUUUUUUUUUUTTTTTTTTTT र (३१४ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 सूत्र २४ : “देवानुप्रियो ! मैं चिलात नामक चोर सेनापति अपने अधीन पाँच सौ चोरों के साथ दी र सिंह गुफा नामक चोर बस्ती से धन्य सार्थवाह का घर लूटने आया हूँ। जो नई माता का दूध पीना डा र चाहता हो (मरकर दुबारा जन्म लेना चाहता हो) वह निकल कर मेरा सामना करे।" इस प्रकार 5 ललकार कर वह धन्य सार्थवाह के घर की तरफ आया और उसके घर का द्वार खोला। 2 24. “Beloved of gods! I, thief-chieften Chilat with my gang of five hundred S s. have come from the hide-out of thieves known as Simha-Gupha to raid the house of Dhanya merchant. Whoever wants to suck the milk of a new mother (wants to die and be reborn) may come out and face me.” With this 15 challenge he came to the house of Dhanya merchant and opened the gate. < सूत्र २५ : तए णं से धण्णे सत्थवाहे चिलाएणं चोरसेणावइणा पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं गिह है 5 घाइज्जमाणं पासइ, पासित्ता भीए, तत्थे, पंचहिं पुत्तेहिं सद्धिं एगंतं अवक्कमइ। र तए णं से चिलाए चोरसेणावई धण्णस्स सत्थवाहस्स गिहं घाएइ, घाइत्ता सुबहुं धण-कणगटी र जाव सावएज्जं सुसुमं च दारियं गेण्हइ, गेण्हित्ता रायगिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता दी जेणेव सीहगुहा तेणेव पहारेत्थ गमणाए। र सूत्र २५ : धन्य सार्थवाह ने जब देखा कि उसका घर लूटने के लिए चिलात चोर सेनापति डा र अपने पाँच सौ चोरों के साथ घुस आया है तो वह भयभीत हो गया और घबराकर अपने पाँचों ट] 15 पुत्रों के साथ एकान्त में जाकर छुप गया। र चिलात ने धन्य के घर में लूट मचाई। बहुत सा धन, चाँदी, सोना आदि तथा सुंसुमा कन्या को 5 लेकर उसने राजगृह से निकल सिंह गुफा की ओर प्रस्थान किया। $ 25. When Dhanya merchant saw that chief Chilat with his gang of thieves S R had entered his house he was filled with fear and panic. He ran away and with his five sons hid himself at a secure place. 15 Chilat raided the house. He collected heaps of wealth, silver, and gold and I 5 the merchant's daughter Sumsuma, came out of Rajagriha, and proceeded SI P towards Simha-Gupha. 5 नगररक्षकों के समक्ष फरियाद 5 सूत्र २६ : तए णं से धण्णे सत्थवाहे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुबहुत धण-कणगं सुसुमं दारियं अवहरियं जाणित्ता महत्थं महग्धं महरिहं पाहुडं गहाय जेणेव । E णगरगुत्तिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं महत्थं जाव पाहुडं उवणेइ, उवणित्ता एवं दा वयासी-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! चिलाए चोरसेणावई सीहगुहाओ चोरपल्लीओ इहं हव्वमागम्म S| र पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं मम गिहं घाएत्ता सुबहुं धण-कणगं सुसुमं च दारियं गहाय जाव टा 7 (314) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA 2 FinnnnnAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA) । Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ UARUITUUUUU र अठाहरवाँ अध्ययन : सुसुमा ( ३१५ ) SI 5 पडिगए, तं इच्छामो णं देवाणुप्पिया ! सुसुमादारियाए कूवं गमित्तए। तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! से डा र विपुले धण-कणगे, ममं सुंसुमा दारिया। 5 सूत्र २६ : चोरों के चले जाने के बाद धन्य सार्थवाह अपने घर लौटा। जब उसे पता चला कि डा र धन के साथ ही उसकी पुत्री सुंसुमा का भी अपहरण हो गया है तो वह बहुमूल्य भेंट लेकर 15 नगररक्षकों के पास गया और बोला-“देवानुप्रियो ! चिलात नाम के चोर सेनापति ने मेरा घर लूट दी लिया है और मेरी पुत्री का भी अपहरण कर लिया है। अतः हम सुंसुमा को छुड़ाने जाना चाहते हैं। डी र वहाँ जो भी धन आदि वापस मिलेगा वह सब तुम लोगों को दूंगा, मुझे केवल मेरी पुत्री चाहिए।" डी R REPORT TO THE GUARDS 26. After the thieves left, Dhanya merchant returned to his house. When 5 he found that along with his wealth his daughter Sumsuma had also been abducted he collected valuable gifts and went to the city guards. He reported S to the head of the guards and requested, “Beloved of gods ! Chief Chilat has raided my house and with my wealth he has also lifted my daughter a Sumsuma. We want to go to her rescue. I will give you all the wealth we a 15 recover; I want only my daughter." __ सूत्र २७ : तए णं ते णयरगुत्तिया धण्णस्स एयमढें पडिसुणेति, पडिसुणित्ता सन्नद्ध जावट 15 गहियाउहपहरणा महया महया उक्किट्ठ जाव समुद्दरवभूयं पिव करेमाणा रायगिहाओ निग्गच्छंति, दी र निग्गच्छित्ता जेणेव चिलाए चोरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता चिलाएणं चोरसेणावइणा सद्धिं S] 15 संपलग्गा यावि होत्था। र सूत्र २७ : नगररक्षकों ने धन्य की बात सुनी और स्वीकार की तथा कवच, आयुध, प्रहरण डी E आदि धारण कर तैयार हो गये। फिर उच्च स्वर में समुद्र गर्जना जैसा सिंहनाद करते हुए राजगृह टा 15 नगर से बाहर निकले और चिलात सेनापति के पास पहुँच उससे युद्ध करने लगे। र 27. The guards heard Dhanya merchant's request and accepted it. They ] 5 all got ready after putting on breast plates, weapons, armour, etc. With loud al 15 hails like the thunder of waves they came out of Rajagriha, caught up with 15 Chief Chilat and attacked his gang. र सूत्र २८ : तए णं णगरगुत्तिया चिलायं चोरसेणावइ हयमहिय जाव पडिसेहंति। तए णं ते 2 5 पंच चोरसया णगरगोत्तिएहिं हयमहिय जाव पडिसेहिया समाणा तं विपुलं धण-कणगं - र विच्छड्डेमाणा य विप्पकिरेमाणा य सव्वओ समंता विप्पलाइत्था। 5 तए णं ते णयरगुत्तिया तं विपुलं धण-कणगं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव रायगिहे नगरे तेणेव । र उवागच्छति। 15 CHAPTER-18 : SUMSUMA (315) सा FinnnnnnnnnnnnnnnAAAAAAAAAAAAAAA Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ (३१६ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा सूत्र २८ : नगररक्षकों ने चिलात चोर सेनापति और उसके साथियों को मार-पीट कर पराजित दी कर दिया। उसके साथी पराजित होने पर लूट का माल वहीं फेंक कर इधर-उधर भाग गये। डी नगररक्षकों ने लूट का वह सारा माल एकत्र कर लिया और उसे लेकर नगर की ओर लौट ट आये। 28. The battalion of guards fought and defeated the gang. The gang | 5 abandoned the loot and ran helter-skelter. The guards collected all the loot and returned to the city. 5 सूत्र २९ : तए णं से चिलाए तं चोरसेण्णं तेहिं नगरगुत्तिएहिं हयमहिय पवर-वीरघाइय-ट 5 विवडियचिंध-धय-पडागं जाव किच्छोवगयपाणं दिसोदिसिं पडिसेहिंय भीते तत्थे सुसुमं दारियं डी र गहाय एगं महं अगामियं दीहमद्धं अडविं अणुपवितु। 5 तए णं धण्णे सत्थवाहे सुसुमं दारियं चिलाएणं अडिविमुहिं अवहीरमाणिं पासित्ता णं पंचहिंड र पुत्तेहिं सद्धिं अप्पछडे सन्नद्धबद्ध-वम्मियकवए चिलायस्स पदमग्गविहिं अणुगच्छमाणे अभिगज्जते दी हक्कारेमाणे पुक्कारेमाणे अभितज्जेमाणे अभितासेमाणे पिट्ठओ अणुगच्छइ। र सूत्र २९ : चिलात चोर ने जब देखा कि नगररक्षकों ने उसके साथियों को हरा दिया है, उसके टा 15 श्रेष्ठ वीर मारे गये हैं, ध्वजा-पताका नष्ट हो गई है, प्राण संकट में पड़ गये हैं, और दस्यु 15 तितर-बितर हो गये हैं, तो वह भय से उद्विग्न हो गया। फिर वह सुंसुमा को साथ ले एक दुर्गम 12 और लम्बी अटवी में घुस गया। 15 जब सुंसुमा को अटवी में ले जाते चिलात पर धन्य सार्थवाह की दृष्टि पड़ी तो वह अपने पाँचों डा र पुत्रों को साथ ले कवचादि पहन चिलात के पद चिह्न खोजता हुआ उसके पीछे हो लिया। वह गर्जना 2 र करता, चुनौती देता, पुकारता, तर्जना करता और त्रस्त करता हुआ चिलात का पीछा करने लगा। 15 29. When Chilat saw that the guards had defeated his gang, with the bests IP of his warriors dead, his flag destroyed, his life in danger, and the gang 3 disintegrated and dispersed, he panicked. He took along Sumsuma and 5 entered a vast and wild terrain. 5 When Dhanya merchant saw Chilat entering the wilderness with S Sumsuma he took his five sons along and followed Chilat's trail. While on the trail of the thief he kept on roaring, challenging, calling, abusing, and B insulting the thief in order to instill fear in Chilat. र सुंसुमा का शिरच्छेदन 15 सूत्र ३० : तए णं से चिलाए तं धण्णं सत्थवाहं पंचहिं पुत्तेहिं अप्पछटुं सन्नद्धबद्धं डा र समणुगच्छमाणं पासइ, पासित्ता अत्थामे अबले अपरक्कमे अवीरिए जाहे णो संचाएइ सुंसुमंदा र (316) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SÜTRA Snnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र अठाहरवाँ अध्ययन ः सुसुमा ( ३१७ ) र दारियं णिव्वाहित्तए, ताहे संते तंते परितंते नीलुप्पलं असिं परामुसइ, परामुसित्ता सुसुमाए भी दारियाए उत्तमंगं छिंदइ, छिंदित्ता तं गहाय तं अगामियं अडविं अणुपवितु। र सूत्र ३0 : जब चिलात ने देखा कि धन्य सार्थवाह. अपने पाँच पुत्रों सहित अस्त्र-शस्त्र से 5 र सज्जित हो उसका पीछा कर रहा है तो वह निस्तेज, निर्बल, पराक्रमहीन और वीर्यहीन हो गया। टा 15 जब वह थक गया और ग्लानि से श्रान्त हो गया तो उसे लगा कि वह सुंसुमा को साथ ले जाने में डा र समर्थ नहीं है। उसने तत्काल नीलकमल जैसी नीली तलवार हाथ में ली और सुंसुमा का सर काट डा र लिया। वह कटा हुआ सर हाथ में लिए चिलात उस दुर्गम अटवी में आगे बढ़ गया। urrucov 5 BEHEADING OF SUMSUMA 15 30. When Chilat saw Dhanya merchant and his five sons, well equipped]] 12 with weapons, following him, he lost his vigour, strength, power, and valour. 2 When he got tired and depressed with failure he realized that he was not 5 capable of carrying Sumsuma along. He at once took out a blue sword and 15 beheaded Sumsuma. Taking the disjointed head he went further into the 5 wilderness. र सूत्र ३१ : तए णं चिलाए तीसे अगामियाए अडवीए तण्हाए अभिभूए समाणे डी 15 पम्हढदिसाभाए सीहगुहं चोरपल्लिं असंपत्ते अंतरा चेव कालगए। र सूत्र ३१ : चिलात चोर उस दुर्गम अटवी में भटक गया और चोर बस्ती नहीं पहुँच सका। डा 15 उसने भूख-प्यास से त्रस्त होकर वहीं दम तोड़ दिया। 13 31. Chilat lost his way in the wilderness and could not reach the hideout. I 15 He got emaciated due to thirst and hunger and died. र सूत्र ३२ : एवामेव समणाउसो ! जाव पव्वइए समाणे इमस्स ओरालियसरीस्स वंतासवस्स दी 15 जाव वण्णहेउं जाव आहारं आहारेइ, से णं इहलोए चेव बहूणं समणाणं समणीणं सावयाणं SI र हीलणिज्जे जाव अणुपरियट्टिस्सइ, जहा व से चिलाए तक्करे। 15 सूत्र ३२ : हे आयुष्मान् श्रमणों ! हमारे जो साधु साध्वी दीक्षा लेने के बाद वात-पित्तादि अशुचि डी र पदार्थों के भण्डार इस नाशवान औदारिक शरीर के सौंदर्य हेतु आहारादि चेष्टाओं में लिप्त हो । र जाते हैं वे इस लोक में अनेक श्रमण-श्रमणियों तथा श्रावक-श्राविकाओं की अवहेलनाके पात्र बनते दा 15 हैं और उसी प्रकार संसार अटवी में फँस कर दुःख भोगते हैं, जैसे चिलात चोर ने भोगा। र 32. Long-lived Shramans! In just this way, those of our ascetics who, after टा 5 getting initiated, indulge in activities like consuming rich food etc. in order to 5 pamper this mortal physical body which is a storehouse of foul waste matter SI like wind, phlegm, and faeces, become the objects of neglect and disrespect of S 5 CHAPTER-18 : SUMSUMA (317) FEAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnA verir Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ज्ज्ज ( ३१८ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र many ascetics and lay-persons. Moreover, lost in the wilderness of cycles of rebirth, they also suffer misery as Chilat did. धन्य का शोक सूत्र ३३ : तए णं से धण्णे सत्थवाहे पंचहिं पुत्तेहिं अप्पछट्टे चिलायं परिधाडेमाणे परिधाडेमाणे तण्हाए छुहाए य संते तंते परितंते नो संचाएइ चिलायं चोरसेणावई साहित्थि गिहित्तए । से णं तओ पडिनियत्तइ, पडिनियत्तित्ता जेणेव सा सुंसुमा दारिया चिलाएण जीवियाओ ववरोविएल्लिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुसुमं दारियं चिलाएण जीविया ओववरोवियं पासइ, पासित्ता परसुनियत्ते व चंपगपायवे निव्वत्तमहेव्व इंदलट्ठी विमुक्कबंधणे धरणितलंसि सव्वंगेहिं धसत्ति पडिए । सूत्र ३३ : धन्य सार्थवाह अपने पाँचों पुत्रों के साथ चिलात के पीछे दौड़ता - दौड़ता भूख-प्यास से आकुल व्याकुल हो गया। जब वह चिलात को पकड़ने में असफल हो गया तो वहाँ से लौट पड़ा। वह उस स्थान पर पहुँचा जहाँ चिलात ने सुंसुमा का वध कर दिया था। वहाँ धन्य सार्थवाह ने देखा कि सुसुमा का वध हो गया है। उसे जीवन रहित देखा, देखते ही वह कुल्हाड़े से कटे चम्पा के पेड़ तथा उत्सव हो चुकने के बाद टूटी हुई ध्वजा के समान धड़ाम से धरती पर गिर पड़ा। GRIEF OF DHANYA 33. Following Chilat with his five sons, Dhanya merchant was in a state of distress due to thirst and hunger. When he could not apprehend Chilat he turned back and came to the spot where Chilat had dismembered Sumsuma. When he saw that his daughter had been murdered he collapsed on the ground like a Champa tree cut by an axe or a flag after a festival is over. सूत्र ३४ : तए णं से धणे सत्थवाहे पंचहिं पुत्तेहिं अप्पछट्टे आसत्थे कूवमाणे कंदमा विलवमाणे महया महया सद्देणं कुहकुहस्स परुन्ने सुचिरं कालं वाहमोक्खं करेइ। सूत्र ३४ : जब धन्य सार्थवाह और उसके पाँचों पुत्रों को होश आया तो वह रोने लगा, विलाप करने लगा और ऊँचे स्वर में क्रन्दन करने लगा । वह बहुत देर तक रोते-विलपते आँसू बहाते रहे। 34. When Dhanya merchant and his sons regained consciousness they started weeping, crying and wailing. They wept and shed tears for quite some time. सूत्र ३५ : तए णं से धणे पंचहिं पुत्तेहिं अप्पछट्टे चिलायं तीसे अगामियाए अडवीए सव्वओ समंता परिधाडेमाणा तण्हाए छुहाए य पराभूए समाणे तीसे अगामियाए अडवीए सव्वओ समंता उदगस्स मग्गणगवेसणं करेति, करिता संते तंते परितंते णिव्विण्णे तीसे अगामिया अडवीए उदगस्स मग्गणगवेसणं करेमाणे नो चेव णं उदगं आसादेइ । ( 318 ) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA' For Private Personal Use Only फ Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र अठाहरवाँ अध्ययन : सुसुमा ( ३१९ ) डा सूत्र ३५ : चिलात चोर सेनापति के पीछे दौड़ने-भागने के कारण धन्य और उसके पुत्र दा र भूख-प्यास से क्षीण हो गये और उस दुर्गम अटवी में चारों ओर जल की खोज करने लगे। डा र खोजते-खोजते थक कर चूर हो जाने पर भी उन्हें उस दुर्गम अटवी में कहीं भी जल नहीं मिला। टी 35. Dhanya merchant and his sons became weak and emaciated due to 1 running after Chilat without food and water. They started searching for a si source of water all around. Even after an extensive search they failed to find even a drop of water anywhere in that wilderness and were totally a exhausted. र प्राण-त्याग के प्रस्ताव ___ सूत्र ३६ : तए णं उदगं अणासाएमाणे जेणेव सुंसुमा जीवियाओ ववरोएल्लया तेणेव ट उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जेट्टं पुत्तं धणे सत्थवाहे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-एवं खलु दा पुत्ता ! सुंसुमाए दारियाए अट्ठाए चिलायं तक्करं सव्वओ समंता परिधाडेमाणा तण्हाए छुहाए यह 5 अभिभूया समाणा इमीसे अगामियाए अडवीए उदगस्स मग्गणगवसणं करेमाणा णो चेव णं द 5 उदगं आसादेमो। तए णं उदगं अणासाएमाणा णो संचाएमो रायगिहं संपावित्तए। तं णं तुब्भे ममं डा 5 देवाणुप्पिया ! जीवियाओ ववरोवेह, मम मंसं च सोणियं च आहारेइ, आहारित्ता तेणं आहारेणं दे 15 अवट्ठिद्धा समाणा तओ पच्छा इमं अगामियं अडविं णित्थरिहिह, रायगिहं च संपाविहिह, डा मित्त-णाइय-नियग-सयण-संबंधि-परियणं अभिसमागच्छिहिह, अत्थस्स य धम्मस्स य पुण्णस्स यट 15 आभागी भविस्सह।' ___ सूत्र ३६ : इस पर वे हार थक कर उस स्थल पर लौटे जहाँ सुंसुमा का वध हुआ था। धन्य ट 15 सार्थवाह ने अपने ज्येष्ठ पुत्र को निकट बुला कर कहा हे पुत्र ! सुंसुमा के लिए चिलात के पीछे द र दौड़ते-दौड़ते भूख-प्यास से पीड़ित हो हमें इस अटवी में खाने-पीने को कुछ नहीं मिला। भोजन पानी 5 र के बिना हम राजगृह नहीं पहुँच सकते। अतः हे देवानुप्रिय ! तुम मुझे मार डालो और सब भाई ट मेरे रक्त-माँस से भूख-प्यास मिटाओ। फिर स्वस्थ होकर इस दुर्गम अटवी को पार कर राजगृह चले डा र जाओ और स्वजनों, मित्रों, सम्बन्धिजनों आदि से मिलकर अर्थ, धर्म और पुण्य के भागी बनो।" 2 OFFERS OF SACRIFICE 5 36. At last they returned to the spot where Sumsuma's body was lying. 5 Dhanya merchant called his elder son and said, “Following Chilat we got into > a state of distress due to thirst and hunger and we have now failed to find anything to eat or drink. Without food and water we cannot reach Rajagriha. B Therefore, Beloved of gods! You should kill me and you should all feed on my 5 flesh and blood. When you regain your strength you should cross this 5 CHAPTER-18 : SUMSUMA (319) FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA - - - Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्क EITUUTTUVUUTTUUUUUUUUUUU ( ३२०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र दा wilderness and go to Rajagriha. You should rejoin our family, relatives and 15 friends, and enjoy wealth, follow religion, and gain piety.” र सूत्र ३७ : तए णं से जेट्टपुत्ते धणेणं सत्यवाहेणं एवं वुत्ते समाणे धण्णं सत्थवाहं एवंड 5 वयासी-'तुब्भे णं ताओ ! अम्हं पिया, गुरु, जणया, देवयभूया, ठवका, पइट्ठवका, संरक्खगा, दी र संगोवगा, तं कहं णं अम्हे ताओ ! तुब्भे जीवियाओ ववरोवेमो ? तुब्भं णं मंसं च सोणियं च डी र आहारेमो ? तं तुब्भे णं तातो ! ममं जीवियाओ ववरोवेह; मंसं च सोणियं च आहारेह, टी 5 अगामियं अडविं णित्थरह।' तं चेव सव्वं भणइ जाव अत्थस्स जाव पुण्णस्स आभागी भविस्सह। ड र सूत्र ३७ : धन्य सार्थवाह की यह बात सुनकर उसके ज्येष्ठ पुत्र ने कहा-"तात ! आप हमारे 5 पिता हैं, गुरु हैं, जनक हैं, देवता-स्वरूप हैं, स्थापक हैं, प्रतिष्ठापक हैं, रक्षक हैं, और दुर्व्यसनों व ड र विपत्तियों से बचाने वाले हैं। अतः हम आपका वध कैसे कर सकते हैं ? कैसे आपके रक्त-माँस का 5 आहार कर सकते हैं ? हे तात ! आप मुझे जीवन रहित कर दें और मेरे रक्त माँस का आहार कर ट 15 इस दुर्गम अटवी को पार करें। स्वजनों-मित्रों के पास पहुँचकर अर्थ, धर्म और पुण्य के भागी बनें। 5 र 37. After hearing this from Dhanya merchant, his eldest son said, “Father 5 you are our progenitor, guru, founder, promoter, protector, defender from ट 5 vices and afflictions, and also like a god to us. How can we kill you? How can » we feed on your flesh and blood? So, father! You should kill me and you and S all my brothers should feed on my flesh and blood, cross this wilderness and 2 go to Rajagriha. You should rejoin our family, relatives and friends, and enjoy > 5 wealth, follow religion, and gain piety." र सूत्र ३८ : तए णं धण्णं सत्थवाहं दोच्चे पुत्ते एवं वयासी-'मा णं ताओ ! अम्हे जेटुं भायरं गुरुं देवयं जीवियाओ ववरोवेमो, तुब्भे णं तातो ! मम जीवियाओ ववरोवेह, जाव आभागी ट 5 भविस्सह।' एवं जाव पंचमे पुत्ते। र सूत्र ३८ : यह सब सुन दूसरे पुत्र ने धन्य से प्रार्थना की-“हे तात ! हम गुरु और देव के ट 15 समान बड़े भाई का जीवन नष्ट नहीं करेंगे। आप तो मुझे जीवन रहित करके इस अटवी पार 5 र करें।' इसी प्रकार तीसरे, चौथे, और पाँचवे पुत्र ने भी अनुरोध किया। 15 38. Hearing all this the second son appealed to Dhanya merchant, “You 5 should not kill our guru and god-like elder brother. Instead, kill me and cross this wilderness.” The third, fourth and fifth sons also made similar appeals. 15 अन्तिम निर्णय 15 सूत्र ३९ : तए णं धण्णे सत्थवाहे पंचपुत्ताणं हियइच्छियं जाणित्ता ते पंच पुत्ते एवं वयासीर ‘मा णं अम्हे पुत्ता ! एगमवि जीवियाओ ववरोवेमो, एस णं सुंसुमाए दारियाए सरीरे णिप्पाणे 2 (320) JNĀTĂ DHARMA KATHĀNGA SÜTRA Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnns Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म DDDDDDDDDDDDजन र अठाहरवाँ अध्ययन : सुसुमा ( ३२१ ) हा जाव जीवविप्पजढे, तं सेयं खलु पुत्ता ! अहं सुंसुमाए दारियाए मंसं च सोणियं च आहारेत्तए। डी र तए णं अम्हे तेणं आहारेणं अवत्थद्धा समाणा रायगिहं संपाउणिस्सामो।' र सूत्र ३९ : पाँचों पुत्रों के मन की बात जान कर धन्य सार्थवाह ने कहा-पुत्रों ! हम किसी को र भी जीवन रहित न करें। सुंसुमा का यह शरीर अब निष्प्राण, निश्चेष्ट और जीव द्वारा त्यागा हुआ 15 है। अतः सुसुमा के इस शरीर के माँस और रक्त का आहार करके अपने प्राण बचाना हमारे लिए 5 र उचित होगा। इस भोजन से शक्ति आने पर हम राजगृह पहुँच सकेंगे। FUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण FINAL DECISION 15 39. After getting the views of all his five sons Dhanya merchant said, S R "Sons! None of us shall be killed. Sumsuma's body has been abandoned by her soul and is now lifeless and still. So, it is proper to feed on this body and 15 save ourselves. When we regain our strength with the help of this feeding we 15 shall be able to reach Rajagriha. र सूत्र ४0 : तए णं ते पंच पुत्ता धण्णेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणा एयमटुं पडिसुणेति। तए टी 15 णं धण्णे सत्थवाहे पंचहिं पुत्तेहिं सद्धिं अरणिं करइ, करित्ता सरगं च करेइ, करित्ता सरए SI र अरणिं महइ, महित्ता अग्गिं पाडेइ, पाडित्ता अग्गिं संधुक्खेइ, संधुक्खित्ता दारुयाइं पक्खेवेइ, ट इ पक्खेवित्ता अग्गिं पज्जालेइ, पज्जालित्ता सुंसुमाए दारियाए मंसं च सोणियं च आहारेइ। 5 सूत्र ४० : पाँचों पुत्रों ने धन्य सार्थवाह की बात स्वीकार कर ली। धन्य ने पुत्रों की सहायता दी र से अरणि काष्ठ में गड़हा किया और उसी काष्ट की एक तीखी डण्डी तैयार की। डण्डी को गड़हे डी र में डालकर मंथन किया और घर्षण से अग्नि उत्पन्न की। फूंक मार कर लपटें उठाईं और ऊपर से टा 15 ईंधन की लकड़ियाँ डालीं। अग्नि प्रज्वलित हो जाने के बाद सुंसुमा के शरीर का माँस पकाया और डी 2 उस माँस तथा रक्त का आहार किया। 15 40. The five sons accepted the proposal of Dhanya merchant. With the a help of his sons Dhanya merchant drilled a hole in a log of wood and S 2 prepared a sharp edged rod of the same wood. They put the rod in the hole 5 and whirled it to produce sparks. They blew the sparks into a flame and a added more fuel-wood. When the fire was ready they cooked pieces of meat 5 from the body of Sumsuma and fed themselves. 5 सूत्र ४१ : तए णं आहारेणं अवत्थद्धा समाणा रायगिहं नयरिं संपत्ता मित्तणाइ- टा र नियग-सयण-संबंधि-परिजणं अभिसमण्णागया, तस्स य विउलस्स धण-कणगरयण जाव आभागी 5 जाया वि होत्था। 5 CHAPTER-18 : SUMSUMA (321) दा Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ !חחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחותיה! र ( ३२२) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र Sl 15 तए णं से धण्णे सत्थवाहे सुंसुमाए दारियाए बहूई लोइयाइं जाव विगयसोए जाए यावि ड 2 होत्था। 15 सूत्र ४१ : उस आहार से चलने योग्य होकर वे राजगृह नगर पहुंचे, अपने स्वजनों, मित्रों दी 2 आदि से जाकर मिले, और विपुल धन, सोना आदि तथा धर्म, अर्थ, व पुण्य के भागी बने। 15 धन्य सार्थवाह ने सुंसुमा के सभी लौकिक मृतक-कृत्य यथाविधि सम्पन्न किये और समय बीतने ट र के साथ वह शोक रहित हो गया। 41. When they regained enough energy to move, they returned to 5 Rajagriha, joined their family, relatives, and friends, and heartily enjoyed ट wealth, followed religion, and gained piety. Dhanya merchant performed the last rites of Sumsuma traditionally and S 15 with passage of time emerged from the sorrow. सूत्र ४२ : तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे गुणसीलए चेइए समोसढे। से णं द र धण्णे सत्थवाहे संपत्ते, धम्म सोच्चा पव्वइए, एक्कारसंगवी, मासियाए संलेहणाए सोहम्मे ड 5 उववण्णो, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ। र सूत्र ४२ : काल के उस भाग में श्रमण भगवान महावीर विहार करते हुए राजगृह के गुणशील डा र चैत्य में पधारे। उस समय धन्य सार्थवाह वन्दना करने के लिए उनके पास गया और धर्मोपदेश । 15 सुनकर दीक्षा ग्रहण कर ली। उसने क्रमशः ग्यारह अंगों का अध्ययन कर लिया। अन्तिम समय ट 12 आने पर एक माह की संलेखना कर सौधर्म देवलोक में जन्म लिया। वहाँ से च्यवन कर वह डा र महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा और सिद्ध बनेगा। 42. During that period of time Shraman Bhagavan Mahavir arrived in the Gunasheel Chaitya in Rajagriha. Dhanya merchant went to pay homage. After the discourse he got initiated. In due course he studied the eleven canons. When his end was near he took the ultimate vow of one month duration and embraced the meditative death. He reincarnated as god in the Saudharm dimension. From there he will descend in the Mahavideh area and get liberated. 15 उपसंहार सूत्र ४३ : जहा वि य णं जंबू ! धण्णेणं सत्थवाहेणं णो वण्णहेउं वा, णो रूवहेउं वा, नो दा र बल हेडं वा नो विसयहेउं वा, सुंसुमाए दारियाए मंस-सोणिए आहारिए नन्नत्थ एगाए रायगिहं 15 संपावणट्ठाए। एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा इमस्स ओरालियसरीरस्सड 15 वंतासवस्स पित्तासवस्स सुक्कासवस्स सोणियासवस्स जाव अवस्सं विप्पजहियव्वस्स नो वण्णहेउंट 15 (322) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SUTRA SAAAAAAAAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnny Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भUJURGUDDUजन र अठाहरवाँ अध्ययन : सुंसुमा ( ३२३ ) डा 15वा, नो रूवहेउं वा, नो बलहेउं वा, नो विसयहेउं वा आहारं आहारेइ, नन्नत्थ एगाए दी र सिद्धिगमणसंपावणट्टयाए, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं, बहूणं समणीणं, बहूणं सावयाणं । र बहूणं सावियाणं अच्चणिज्जे जाव वीईवइस्सइ। र सूत्र ४३ : हे जम्बू ! धन्य सार्थवाह ने सुंसुमा के मृत शरीर के माँस व रुधिर का आहार वर्ण, S र रूप, बल अथवा विषय भोग के हेतु नहीं किया, मात्र विकट अटवी को पार कर राजगृह पहुँच । 5 पाने के लिए किया था। र ठीक उसी प्रकार हे आयुष्मान श्रमणो ! हमारे जो साधु-साध्वी वमन, पित्त, शुक्र, रक्त झरने का 5 वाले और त्यागने योग्य इस औदारिक शरीर के वर्ण, बल अथवा विषय के लिए आहार नहीं ? 15 करते अपितु सिद्धगति को प्राप्त करने हेतु आहार करते हैं वे इस भव में अनेक श्रमणों, श्रमणियों, डा र श्रावकों तथा श्राविकाओं के अर्चनीय होते हैं और संसार-सागर को पार करते हैं। B CONCLUSION 43. Jambu! Dhanya merchant did not feed on the flesh and blood of a deceased Sumsuma for the purpose of enhancing or enjoying complexion, form, strength or carnal pleasures of the body. He did that only to cross the 2 wilderness and reach Rajagriha. ___Long-lived Shramans! In just this way those of our ascetics who, after ट 5 getting initiated, do not indulge in activities like consuming rich food etc. in > order to enhance or enjoy the complexion, form, strength, or carnal pleasures of this mortal physical body which oozes foul waste matter like vomit, bile, semen, and blood and is worth abandoning, become the objects of reverence 5 of many ascetics and lay-persons. Moreover, they also cross this ocean of 5 cycles of rebirth. 2 सूत्र ४४ : एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठारसमस्स णायज्झयणस्स SI 5 अयमढे पण्णत्ते त्ति बेमि। सूत्र ४४ : जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने अठारहवें ज्ञात-अध्ययन का यह अर्थ कहा है। र जैसा मैंने सुना वैसा तुम्हें कहा है। र 44. Jambu! This is the text and the meaning of the eighteenth chapter of SI 2 the Jnata Sutra as told by Shraman Bhagavan Mahavir. So I have heard, so I SI confirm. ॥ अट्ठारसमं अज्झयणं समत्तं ॥ ॥ अठारहवाँ अध्ययन समाप्त॥ || END OF THE EIGHTEENTH CHAPTER || h . IS CHAPTER-18 : SUMSUMA ( 323) टा FAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपसंहार ज्ञाताधर्मकथा की यह अठारहवीं कथा अन्य कथाओं के समान दुष्कर्म के दुष्फल पर तो प्रकाश द र डालती ही है साथ ही इसमें साधना की ओर अग्रसर व्यक्ति के साधना के निमित्त शरीर अथवा र जीवन को बनाए रखने के कर्तव्य के प्रति जागरूक रहने पर भी बल दिया है। आत्मा और शरीर दी 5 को पृथक जानने समझने और स्वीकार कर लेने के स्तर पर जो अनासक्ति उत्पन्न होती है उसकी ड र झलक प्रस्तुत की गई है। CONCLUSION This eighteenth story of Jnata Dharma Katha details the evil results of evil deeds, as do the other stories. Besides this, it lays emphasis on the need 2 to protect one's life for the purpose of spiritual practices. Also provided is a 5 glimpse of the ultimate state of detachment when the practicer realizes and accepts that the soul is different from the body. Uण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ड उपनय गाथा जह सो चिलाइपुत्तो, सुंसुमगिद्धो अकज्जपडिबद्धो। धण-पारद्धो पत्तो, महाडविं वसणसय-कलिअं॥१॥ तह जीवो विसयसुहे, लुद्धो काऊण पावकिरियाओ। कम्मवसेणं पावइ, भवाडवीए महादुक्खं ॥२॥ धणसेट्टी विव गुरुणो, पुत्ता इव साहवो भवो अडवी। सुय-मांसमिवाहारो, रायगिह इह सिवं नेयं॥३॥ जह अडवि-नयर-नित्थरण-पावणत्थं तएहिं सुयमंसं। भत्तं तहेह साहू, गुरुण आणाए आहारं ॥४॥ भवलंघण-सिवपावण-हेउं भुंजंति न उण गेहीए। वण्ण-बल-रूवहेउं, च भावियप्पा महासत्ता ॥५॥ ) (324) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA FinnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnAAAAAAAAM) Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ --- - मण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्स र अठाहरवाँ अध्ययन : सुंसुमा ( ३२५ ) SI 15 जैसे चिलातीपुत्र सुंसुमा पर आसक्त होकर कुकर्म करने पर उतारू हो गया और धन्य श्रेष्ठी के दा र पीछा करने पर सैकड़ों संकटों से व्याप्त महा-अटवी को प्राप्त हुआ॥१॥ 15 उसी प्रकार जीव विषय-सुखों में लुब्ध होकर पापक्रियाएँ करता है। पापक्रियाएँ करके कर्म के द 12 वशीभूत होकर इस संसाररूपी अटवी में घोर दुःख पाता है॥२॥ र यहाँ धन्य श्रेष्ठी के समान गुरु हैं, उसके पुत्रों के समान साधु हैं और अटवी के समान संसार द 15 है। सुता (पुत्री) के मांस के समान आहार है और राजगृह के समान मोक्ष है॥३॥ र जैसे उन्होंने अटवी पार करने और नगर तक पहुँचने के उद्देश्य से ही सुता के माँस का भक्षण ट 15 किया, उसी प्रकार साधु, गुरु की आज्ञा से आहार करते हैं॥४॥ र वे भवितात्मा एवं महासत्त्वशाली मुनि आहार करते हैं एक मात्र संसार को पार करने और मोक्ष दे 15 प्राप्त करने के ही उद्देश्य से। आसक्ति से अथवा शरीर के वर्ण, बल या रूप के लिए नहीं ॥५॥ | THE MESSAGE | Just as Chilatiputra, infatuated with Sumsuma, indulged in detestable 12 deeds and, chased by Dhanya merchant, ended up in the great wilderness filled with hundreds of dangers. (1) In same way a being lured by carnal pleasures indulges in sinful activities. As a result he is trapped in the bondage of Karmas and suffers much in the wilderness of mundane life. (2) Here Dhanya merchant is Guru, his sons are ascetics, the wilderness is 5 mundane life. The flesh of the dead daughter is food and Rajagriha city is 5 Moksha. (3) As they consumed the meat from the corpse of the daughter solely for the purpose of crossing the wilderness, same way ascetics consume food with the 5 permission of the guru. (4) Those great souls and accomplished ascetics consume food solely for the purpose of crossing the mundane wilderness and attaining liberation and not because of attachment nor for the complexion, strength or beauty of the ( body. (5) i PTER-18 : SUMSUMA ( 325 ) टा LEAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAALI Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उज्ज म । उन्नीसवाँ अध्ययन : पुण्डरीक : आमुख । शीर्षक-पुंडरीए-पुंडरीक--नाम विशेष। पुंडरीक राजा तथा उनके भाई कंडरीक की कथा भावना रहित बाह्य साधना की व्यर्थता और भावना सहित साधना के महत्त्व को दर्शाती है। तपस्या कितनी ही लम्बी और कठोर क्यों न हो मन में राग-द्वेष एवं विषयों से विरक्ति न हो तो निष्फल हो जाती है। दूसरी ओर राग-द्वेष वासना से विरक्त मन अन्धकार में भी अपने ध्येय को पा लेता है। ___ कथासार-महाविदेह में पुंडरीकिणी नगरी के राजा पद्मनाभ के दो पुत्र थे। पुंडरीक तथा कंडरीक। राजा जब विरक्त हो दीक्षा लेने लगे तो उन्होंने पुंडरीक को राजा तथा कंडरीक को युवराज बना दिया। कुछ समय बाद स्थविर मुनि के पुंडरीकिणी नगरी में आने पर दोनों भाई उपदेश सुनने गये। राजा पुंडरीक श्रमणोपासक बने और कंडरीक को दीक्षा लेने की इच्छा हुई। राजा से आज्ञा लेने पर उन्होंने कहा कि अभी दीक्षा मत ले मैं तुझे राजा बनाना चाहता हूँ। कंडरीक नहीं माना और दीक्षा ले ली। उग्र विहार भी किया पर शरीर से अस्वस्थ हो गया। जब कंडरीक मुनि पुनः नगर में आए तो राजा ने उन्हें अस्वस्थ देख उपचार की व्यवस्था की। उनके स्वस्थ होने के बाद स्थविर मुनि ने अन्य शिष्यों सहित प्रस्थान किया किन्तु कंडरीक भोजन और सुविधाओं के प्रति आसक्त हो जाने के कारण वहीं रह गए। इस पर राजा पुंडरीक ने उन्हें समझाया और उनके आग्रह पर वह पुनः विहार करने लगे। पर यह विहार सहन न होने से वापस नगर में आ गए। इस बार राजा ने पूछा “क्या तुम्हें सांसारिक भोगों की अभिलाषा है ?" कंडरीक के हाँ कहने पर पुंडरीक उन्हें राज्य सिंहासन पर बैठा स्वयं दीक्षित हो गए। ___ कंडरीक राज्य मिलते ही भोजनादि में लिप्त हो गये और फलस्वरूप बीमार पड़े और कलुषित भावनाओं के कारण मरकर नरक में गये। पुंडरीक दीक्षा के पश्चात् विहार कर गुरु की खोज में निकले और गुरु के पास पहुँच यथाविधि दीक्षा ली। पारणे में रूखे-सूखे भोजन से वे भी बीमार पड़ गये और अन्त समय निकट जान प्रतिक्रमण व संलेखना कर देह त्याग दी। वे देवलोक में जन्मे। वहाँ से महाविवेह में जन्म लेकर मोक्ष प्राप्त करेंगे। - 5 (326) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 时 NINETEENTH CHAPTER: PUNDAREEK: INTRODUCTION Title-Pundariye-Pundareek-a name. This story of King Pundareek and his brother, Kandarik, stresses the futility of the semblance of spiritual practice without one's heart in it and the importance of sincere effort. No matter how long and tough a penance is, if the mind is not detached from the carnal indulgences, attachment, and aversion it bears no fruit. However the mind that is free of attachment and aversion reaches its goal even in the darkness. Gist of the story-The king of Pundarikini city in Mahavideh area, Padmanabh, had two sons-Pundareek and Kandareek. When the king desired to renounce the world he crowned Pundareek and made Kandarik the heir apparent. After some time a senior ascetic arrived in the city and both the brothers went to his discourse. King Pundareek became a Shramanopasak and Kandareek desired to become an ascetic. When he sought permission from the king he was told that the king wanted to put him on the throne and so he should not get initiated. Kandareek did not agree to the proposal and got initiated. He commenced the harsh itinerant life but got sick. When after some time he came to the city the king saw his ailing condition and made arrangements for his treatment. When Kandareek regained his health the senior ascetic left the city with his disciples, but Kandareek stayed back as he was enslaved by the food and comforts. King Pundareek came and persuaded him to follow the proper ascetic code. At the king's request Kandareek resumed the harsh ascetic life. But he once again. could not tolerate the hardships and returned to the city. This time the king asked him if he still had desire for mundane pleasures. When Kandareek replied in affirmative the king crowned him and himself renounced the world. As soon as Kandareek got the kingdom he went all out for rich food and comforts. As a result of all this he got sick and embraced death. As a result of his feelings of infatuation for carnal pleasures he reincarnated in hell. Pundareek went out in search of a guru after his self-initiation. He got formally and properly initiated when he found his guru. As he ate stale and tasteless food when he broke his long fast, he got sick. When he realized that his end was near he did Pratikraman (critical review of the past deeds) and took the ultimate vow. After his death he reincarnated as a god and from there he will attain liberation after being born in the Mahavideh area. CHAPTER-19: PUNDAREEK 香 (327) wwwww Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १ : जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अट्ठारसमस्स नायज्झयणस्स अयमठ्ठे पण्णत्ते, एगूणवीसइमस्स णायज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेण के अट्टे पण्णत्ते ? एगूण वीसइमं अज्झयणं : पुंडरीए उन्नीसवाँ अध्ययन : पुण्डरीक NINETEENTH CHAPTER: PUNDAREEYE - PUNDAREEK सूत्र : जम्बू स्वामी ने प्रश्न किया- “ भन्ते ! जब श्रमण भगवान महावीर ने अठारहवें ज्ञात अध्ययन का पूर्वोक्त अर्थ कहा है तो उन्होंने उन्नीसवें अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ! 1. Jambu Swami inquired, “Bhante ! What is the meaning of the nineteenth chapter according to Shraman Bhagavan Mahavir?" सूत्र २ : एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे पुव्वविदेहे सीयाए महाणदीए उत्तरिल्ले कूले नीलवंतस्स दाहिणेणं उत्तरिल्लस्स सीतामुखवणसंडस्स पच्छिमेणं एगसेलगस्स वक्खारपव्वयस्स पुरच्छिमेणं एत्थं णं पुक्खलावई णामं विजए पण्णत्ते । तत्थ णं पुंडरीगिणी णामं रायहाणी पन्नत्ता - णवजोयणवित्थिन्ना दुवालसजोयणायामा जाव पच्चक्खं देवलोयभूया पासाईया दंसणीया अभिरुवा पडिरूवा । तीसे णं पुंडरीगिणीए णयरीए उत्तरपुरच्छिदिसिभाए णलिविणे णामं उज्जाणे होत्था । वण्णओ । सूत्र २ : सुधर्मा स्वामी ने कहा- जम्बू ! काल के उस भाग में इसी जम्बू द्वीप में पूर्व विदेह क्षेत्र में सीता नाम की महानदी के उत्तरी किनारे पर नीलवन्त वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, उत्तर के सीतामुख वनखण्ड के पश्चिम में और एकशैल नाम के वक्षस्कार पर्वत की पूर्व दिशा में पुष्कलावती नामक विजय का वर्णन है। उस पुष्कलावती विजय की राजधानी पुण्डरीकिणी नाम की नगरी थी। वह नौ योजन चौड़ी और बारह योजन लम्बी नगरी साक्षात देवलोक के समान मनोहर, दर्शनीय, सुन्दर और आनन्ददायक थी। उस नगरी की उत्तर पूर्व दिशा में नलिनीवन नाम का उद्यान था । उसका यह सब वर्णन औपपातिक सूत्र के अनुसार समझना चाहिए । 2. Sudharma Swami narrated -Jambu! During that period of time in this same Jambu continent in the east Mahavideh area on the northern bank of the great river Sita, on the southern side of the mountain Neelvant Varshdhar, on the western side of the northern Sitamukh forest, and on the JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA (328) சி Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्र ( ३२९ ) | A AAAAAAAUUUUUUUUUU र उन्नीसवाँ अध्ययन : पुण्डरीक 5 eastern side of the Ekshail Vakshaskar mountain existed a Vijaya (a geographical area, like a state) named Pushkalavati. The capital of Pushkalavati Vijaya was the city of Pundarikini. It was 5 twelve Yojans long and nine Yojan wide and looked as attractive, enchanting, beautiful and pleasing as a heavenly town. There was a garden named Nalinivan to the north-east of the city. These details are mentioned in the Aupapatik Sutra. 5 महापद्म राजा की दीक्षा : सिद्धि-प्राप्ति ___ सूत्र ३ : तत्थ णं पुंडरीगिणीए रायहाणीय महापउमे णामं राया होत्था। तस्स णं पउमावई टा र देवी होत्था। तस्स णं महापउमस्स रण्णो पुत्ता पउमावईए देवीए अत्तया दुवे कुमारा होत्था, तंड B जहा-पुंडरीए य कंडरीए य सुकुमालपाणिपाया। पुंडरीए जुवराया। 5 सूत्र ३ : पुण्डरीकिणी नगरी में महापद्म नामक राजा राज्य करता था। उसकी पटरानी ड र पद्मावती देवी थी। महापद्म के पुत्र और पद्मावती के आत्मज दो कुमार थे-पुण्डरीक और 5 कण्डरीक। उनके शरीर कोमल यावत् सुन्दर सुरूप थे। उनमें से पुण्डरीक युवराज था। 5 DIKSHA OF KING MAHAPADMA 3. The name of the ruler of that city was Mahapadma. The name of his K principal queen was Padmavati. The royal couple had two sons named | Pundareek and Kandareek. They were handsome and delicate. Prince 15 Pundareek was the heir to the throne... र सूत्र ४ : तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरागमणं 5 महापउमे राया णिग्गए। धम्म सोच्चा पोंडरीयं रज्जे ठवेत्ता पव्वइए। पोंडरीए राया जाए। दा र कंडरीए जुवराया। महापउमे अणगारे चोद्दसपुव्वाइं अहिज्जइ। तए णं थेरा बहिया । 15 जणवयविहारं विहरइ। तए णं से महापउमे बहूणि वासाणि जाव सिद्धे। र सूत्र ४ : काल के उस भाग में स्थविर मुनियों का वहाँ आगमन हुआ। नलिनी वन उद्यान में 5 15 ठहरे। राजा महापद्म स्थविर मुनि को वन्दना करने निकले और धर्मोपदेश सुनकर उन्होंने अपने ट 15 पुत्र पुण्डरीक को राज्य पर स्थापित कर दीक्षा ग्रहण कर ली। अब पुण्डरीक राजा हो गया और ड र कण्डरीक युवराज । महापद्म अनगार ने चौदह पूर्वो का अध्ययन किया। स्थविर मुनि वहाँ से निकल 15 जनपदों में विहार करने लगे। महापद्म ने बहुत वर्षों की साधना के बाद सिद्ध पद प्राप्त किया। 4. During that period of time a Sthavir ascetic arrived there and stayed S 12 in the Nalinivan garden. King Mahapadma came to pay homage to the ascetic. After listening to the discourse he crowned his son Pundareek and Surrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr Uuuuurrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr APTER-19 : PUNDAREEK ( 329 ) टा AnnnnnnnnnnnAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र got initiated. Now Pundareek was the king and Kandareek the heir to the throne. Ascetic Mahapadma studied the fourteen sublime canons. The Sthavir ascetic left the town and resumed his itinerant life. After long spiritual practices Mahapadma obtained liberation. सूत्र ५ : तए णं थेरा अन्नया कयाइं पुणरवि पुंडरीगिणीए रायहाणीए णलिणिवणे उज्जाणे समोसढा। पोंडरीए राया णिग्गए। कंडरीए महाजणसद्दं सोच्चा जहा महाब्बलो जाव पज्जुवास । थेरा धम्मं परिकहेंति । पुंडरीए समणोवासए जाए जाव पडिगए । सूत्र ५ : कालान्तर में पुनः स्थविर मुनि पुण्डरीकिणी नगरी के नलिनीवन उद्यान में पधारे। राजा पुण्डरीक उन्हें वन्दना करने गये। युवराज कण्डरीक भी अनेक लोगों से स्थविर मुनि के आगमन की बात सुनकर वन्दना करने गये ( विस्तृत वर्णन भगवती सूत्र में वर्णित महाबल कुमार के कथानक के समान समझना) वे स्थविर मुनि की उपासना करने लगे और स्थविर मुनि ने उन्हें धर्मोपदेश दिया। धर्मोपदेश सुनकर पुण्डरीक श्रमणोपासक बन गये और अपने घर लौट आये। 5. Later, once again the Sthavir ascetic arrived there and stayed in the Nalinivan garden. King Pundareek came to pay homage to the ascetic. When he heard about the arrival of the great ascetic, prince Kandareek also went to pay homage. (Detailed description is identical to that of Mahabal Kumar in Bhagavati Sutra) He worshipped and listened to the discourse of the great ascetic. King Pundareek became a Shramanopasak and returned to his palace. ) कण्डरीक की दीक्षा सूत्र ६ : तए णं कंडरीए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठाए उट्ठित्ता जाव से जहेयं तुब्भे वदह, जं णवरं पुंडरीयं रायं आपुच्छामि, तए णं जाव पव्वयामि । 'अहासुहं देवाणुप्पिया !' सूत्र ६ : युवराज कण्डरीक ने खड़े होकर कहा - " भन्ते ! आपने जो कहा है वह अक्षरशः सत्य है । मैं पुण्डरीक राजा की अनुमति लेने के पश्चात् दीक्षा ग्रहण करूँगा । " स्थविर मुनि ने उत्तर दिया – “देवानुप्रिय ! तुम्हें जिसमें सुख मिले वह करो। " INITATION OF KANDAREEK 6. Prince Kandareek got up and said, “Bhante ! What you have said is indeed true. I will seek permission from king Pundareek and get initiated." The Sthavir ascetic replied, "Beloved of gods! Do as you please." १. उट्ठाए उट्ठित्ता से एक अभिप्राय यह भी है- संयम के लिए उपस्थित होकर । (330) R JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA For Private Personal Use Only தி Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - र उन्नीसवाँ अध्ययन : पुण्डरीक ( ३३१ ) 15 सूत्र ७ : तए णं से कंडरीए जाव थेरे वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता अंतियाओ टा र पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता तमेव चाउघंटं आसरहं दुरूहइ, जाव पच्चोरुहइ, जेणेव पुंडरीए SI राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल जाव पुंडरीए रायं एवं वयासी-‘एवं खलु टा 5 देवाणुप्पिया ! मए थेराणं अंतिए जाव धम्मे निसंते, से धम्मे अभिरुइए, तए णं देवाणुप्पिया ! डा र जाव पव्वइत्तए।' 15 सूत्र ७ : कण्डरीक स्थविर मुनि को वन्दन-नमस्कार करके वहाँ से बाहर आया और चार द २ घण्टा वाले अश्वरथ पर आरूढ़ होकर राजभवन में आया। रथ से उतर कर वह पुण्डरीक राजा SI र के पास गया और हाथ जोड़ कर बोला-“देवानुप्रिय मैंने स्थविर मुनि से धर्मोपदेश सुना है और हा 15 उसमें मेरी रुचि हो गई है। अतः मैं दीक्षा ग्रहण करने की इच्छा करता हूँ। 12 7. Kandareek formally begged leave from the great ascetic and came out. S B He rode a four horse chariot to the palace. After getting down from the chariot he went to king Pundareek and joining his palms submitted, “Beloved 15 of gods! I have listened to the discourse of the Sthavir ascetic and liked it. टी 15 Now I wish to get initiated." सूत्र ८ : तए णं पुंडरीए राया कंडरीये जुवरायं एवं वयासी-'मा णं तुमं देवाणुप्पिया ! 2 15 इदाणिं मुंडे जाव पव्वयाहि, अहं णं तुम महया महया रायाभिसेएणं अभिसिंचामि। तए णं से कंडरीए पुंडरीयस्स रण्णो एयमढें णो आढाइ, जाव तुसिणीए संचिट्ठइ। 15 तए णं पुंडरीए राया कंडरीयं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी जाव तुसिणीए संचिट्ठइ। ___ सूत्र ८ : राजा पुण्डरीक ने कण्डरीक युवराज से कहा-“देवानुप्रिय ! तुम अभी दीक्षा ग्रहण 15 मत करो क्योंकि मैं तुम्हारा विशाल समारोह सहित राज्याभिषेक करना चाहता हूँ।' र युवराज ने राजा कुण्डरीक की बात को स्वीकार नहीं किया और मौन ही रहा। राजा पुण्डरीका 15 ने पुनः दूसरी बार और तीसरी बार वही बात कही किन्तु कण्डरीक मौन रहा। 12 8. King Pundareek replied, “Beloved of gods! Do not get initiated now 9 because I want you to ascend the throne after a lavish coronation 5 celebration." 15 Prince Kandareek did not give his consent to the king's proposal and SI 13 remained silent. King Pundareek repeated his request two-three times but SI 1 Kandareek still remained silent. सूत्र ९ : तए णं पुंडरीए कंडरीयं कुमारं जाहे नो संचाएइ बहूहिं आघवणाहिं पण्णवणाहिं य टी सण्णवणाहि य विण्णवणाहि य ताहे अकामए चेव एयमटुं अणुमण्णित्था जाव र णिक्खमणाभिसेएणं अभिसिंचइ जाव थेराणं सीसभिक्खं दलयइ। पव्वइए, अणगारे जाए, टा 15 एक्कारसंगविऊ। APTER-19 : PUNDAREEK (331) ट्रा FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAD Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र ( ३३२ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 तए णं थेरा भगवंतो अन्नया कयाई पुंडरीगिणीओ नयरीओ नलिनीवणाओ उज्जाणाओ द र पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरंति। 15 सूत्र ९ : जब राजा पुण्डरीक कण्डरीक कुमार को बहुत कहकर, समझा-बुझाकर, और विज्ञप्ति डा र करके भी उसे रोकने में समर्थ नहीं हुए तो अनिच्छा से ही उसकी बात मान ली। दीक्षा ग्रहण करने डा र की अनुमति देने के पश्चात् उनका निष्क्रमण अभिषेक किया और स्थविर मुनि को शिष्य-भिक्षाट 15 प्रदान की। कण्डरीक दीक्षित हो अनगार बन गया और क्रमशः ग्यारह अंगों का जानकार बन गया। ड र कालान्तर में वे स्थविर मुनि नलिनीवन उद्यान से प्रस्थान कर अन्य जनपदों में विहार करने से 15 लगे। 2 9. When King Pundareek was unable to stop Kandareek even after a lot of B persuasion, he conceded to Kandareek's desire unwillingly. After giving him a permission to accept Diksha (initiation) the king performed the formal anointing and gave a disciple-donation to the Sthavir ascetic. Kandareek became an ascetic and in due course studied the eleven canons. In due course the Sthavir ascetic left the town and resumed his itinerant 2 life. र कण्डरीक की रुग्णता सूत्र १० : तए णं तस्स कंडरीयस्स अणगारस्स तेहि अंतेहि य पंतेहि य जहा सेलगस्स र जाव दाहवकंतीए यावि विहरइ। र सूत्र १0 : इधर अनगार कण्डरीक के शरीर में रुखे-सूखे आहार के कारण शैलक मुनि के ड र समान दाह-ज्वर उत्पन्न हो गया। वे रुग्ण हो गये। KANDAREEK'S AILMENT 5 10. Due to eating dry and tasteless food ascetic Kandareek caught fever डा and became sick like ascetic Shailak. 5 सूत्र ११ : तए णं थेरा अन्नया कयाई जेणेव पोंडरीगिणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ताद र णलिणिवणे समोसढा, पोंडरीए णिग्गए, धम्मं सुणेइ। 5 तए णं पुंडरीए राया धम्मं सोच्चा जेणेव कंडरीए अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हा र कंडरीयं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता कंडरीयस्स अणगारस्स सरीरगं सव्वाबाहं सरोयं टा 5 पासइ, पासित्ता जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते वंदइ, णमंसइ, र वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-'अहं णं भंते ! कंडरीयस्स अणगारस्स अहापवत्तेहिं डा र ओसह-भेसज्जेहिं जाव तेइच्छं आउट्टामि, तं तुब्भे णं भंते ! मम जाणसालासु समोसरह।' र (332) JNĀTĀ DHARMA KATHÂNGA SŪTRA 2 Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मज्जाज र उन्नीसवाँ अध्ययन : पुण्डरीक ( ३३३ ) डा 5 सूत्र ११ : एक बार स्थविर मुनि पुण्डरीकिणी नगरी के नलिनीवन उद्यान में पधारे। राजा दा र पुण्डरीक धर्म देशना सुनने आये। धर्मोपदेश सुनकर पुण्डरीक राजा कण्डरीक अनगार के पास गये और उन्हें वन्दना नमस्कार द र किया। वहाँ उन्होंने देखा कि कण्डरीक मुनि का शरीर सब प्रकार की बाधाओं से युक्त और ड र रोगाक्रान्त है। यह देख के पुनः स्थविर मुनि के पास गये और उन्हें वन्दना करके कहा “भन्ते ! मैं 5 कण्डरीक मुनि की यथाप्रवृत्त औषध और भेषज से चिकित्सा कराना चाहता हूँ। अतः आप मेरी द २ यानशाला में पधारिये। 5 11. Later, once again the Sthavir ascetic came to Pundarikini town and a 5 stayed in the Nalinivan garden. King Pundareek came to pay homage. After the discourse, King Pundareek visited ascetic Kandareek and paid his homage. When the king observed the dull, anaemic, deteriorated and Bailing body of ascetic Kandareek he went to the Sthavir ascetic and said, "Bhante! I wish to get ascetic Kandareek treated by such a doctor, medicines, and diet that is not prohibited for an ascetic. Bhante! Please come to my 5 coach-house and stay there.” सूत्र १२ : तए णं थेरा भगवंतो पुंडरीयस्स रण्णो एयमट्ठ पडिसुणेति, पडिसुणित्ता जाव 5 उवसंपिज्जत्ता णं विहरंति। तए णं पुंडरीए राया जहा मंडुए सेलगस्स जाव बलियसरीरे जाए। द __ सूत्र १२ : स्थविर भगवन्त ने राजा पुण्डरीक का यह निवेदन स्वीकार कर लिया और उनकी 5 अनुमति लेकर वहाँ रहने लगे। जिस प्रकार मण्डुक राजा ने शैलक मुनि की चिकित्सा करवाई थी टा उसी प्रकार राजा पुण्डरीक ने कण्डरीक मुनि की चिकित्सा करवाई। इससे कण्डरीक अनगार डा र नीरोग होकर बलवान शरीर वाले हो गये। 12. The Sthavir ascetic accepted the request of King Pundareek and shifted as the king desired. As king Manduk had arranged for the treatment of ascetic Shailak, King Pundareek also got ascetic Kandareek treated. The ascetic regained his health and became strong. 5 कण्डरीक मुनि की शिथिलता 5 सूत्र १३ : तए णं थेरा भगवंतो पुंडरीयं रायं पुच्छंति, पुच्छित्ता बहिया जणवयविहारं द र विहरंति। तए णं से कण्डरीए ताओ रोगयंकाओ विप्पमुक्के समाणे तंसि मणुण्णंसि असण-पाण-5 र खाइम-साइमंसि मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववन्ने, णो संचाएइ पुंडरीयं आपुच्छित्ता बहिया 15 अब्भुज्जएणं जणवयविहारेणं विहरित्तए। तत्थेव ओसण्णे जाए। र सूत्र १३ : कालान्तर में स्थविर भगवन्त ने पुण्डरीक राजा को सूचना देकर वहाँ से प्रस्थान में 15 किया और जनपदों में विहार करने लगे। 15 CHAPTER-19 : PUNDAREEK (333) टा 卐Annnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र ( ३३४ ) प्रज्ज क ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा उस समय में कण्डरीक अनगार रोग मुक्त हो जाने पर भी वहाँ उपलब्ध मनोज्ञ आहार दी र खादिम-स्वादिम आदि में मूर्च्छित, गृद्ध, आसक्त और लीन हो चुके थे। इस कारण वे राजा डी पुण्डरीक को सूचित कर जनपदों में उग्र विहार करने में समर्थ न हो सके। वे वहीं रहने लगे। 5 LAXNESS OF KANDAREEK 13. Later, the Sthavir ascetic informed the king, left the town, and resumed his itinerant life. 15 Although ascetic Kandareek had regained his health by that time, he had 5 become fond of and ravenous for and attached and addicted to sumptuous food. Thus, he was unable to resume the itinerant way after informing the 2 king. He stayed. सूत्र १४ : तए णं से पोंडरीए इमीसे कहाए लद्धटे समाणे पहाए अंतेउरपरियालसंपरिडे । 15 जेणेव कंडरीए अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कंडरीयं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं टा र करेइ, करित्ता वंदइ, णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-'धन्ने सि णं तुम देवाणुप्पिया ! डा 15 कयत्थे कयपुण्णे कयलक्खणे, सुलद्धे णं देवाणुप्पिया ! तव माणुस्सए जम्म-जीवियफले, जे णंट 5 तुमं रज्जं च जाव अंतेउरं च छड्डइत्ता विगोवइत्ता जाव पव्वइए। अहं णं अहण्णे अकयपुण्णे दे र रज्जेय जाव अंतेउरे य माणुस्सएसु य कामभोगेसु मुच्छिए जाव अज्झोववन्ने नो संचाएमि जावडा 5 पव्वइत्तए। तं धन्नो सि णं तुमं देवाणुप्पिया ! जाव जीवियफले।' र सूत्र १४ : राजा पुण्डरीक को जब यह सूचना मिली तो वे तैयार होकर अपने अन्तःपुर डा र परिवार तथा परिजनों के साथ कण्डरीक अनगार के पास आए। कण्डरीक मुनि की तीन बार ड 5 प्रदक्षिणा की और वन्दना करके कहा-'देवानुप्रिय ! आप धन्य हैं, कृतार्थ हैं, कृतपुण्य हैं और सुलक्षणवान है। आपको मनुष्य जन्म और जीवन का सुन्दर फल मिला है जो आप राज्य और दा अन्तःपुर को त्याग कर, अवहेलित कर, प्रव्रजित हुए हैं और मैं अधन्य हूँ, पुण्यहीन हूँ कि राज्य । 15 और अन्तःपुर सहित मानवीय काम भोगों में लिप्त बना हुआ हूँ तथा दीक्षा ग्रहण करने में असमर्थ ट र हूँ। देवानुप्रिय ! आप सचमुच धन्य हैं कि आपको जन्म और जीवन का सुफल प्राप्त हुआ है। र 14. When King Pundareek became aware of this he got ready and came to al andareek with his queens and other members of the family. He i circumambulated ascetic Kandareek three times and after bowing said, c. "Beloved of gods! You are blessed, pious, successful and virtuous. You have been blessed with the true goal of human life and form by getting initiated after renouncing the palace and the kingdom. I am the opposite of you in all 5 respects; I am still attached to the palace, kingdom and the carnal pleasures of life and unable to get initiated. Beloved of gods! you are indeed blessed to a have got the true reward of the human life and form." NALAYA 15 (334) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ ( ३३५ ) डा UUUUUUUDDDDDDDDDDज र उन्नीसवाँ अध्ययन : पुण्डरीक 15 सूत्र १५ : तए णं से कंडरीए अणगारे पुंडरीयस्स एयमढें णो आढाइ जाव संचिठ्ठइ। तए णंड र कंडरीए पुडंरीएणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अकामए अवसवसे लज्जाए गारवेण य ट 15 पोंडरीयं रायं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता थेरेहिं सद्धिं बहिया जणवयविहारं विहरइ। तए णं से ड र कंडरीए थेरेहिं सद्धिं किंचि कालं उग्गंउग्गेणं विहरइ। तओ पच्छा समणत्तण-परितंते ड र समणत्तण-णिव्विण्णे समणत्तण-णिब्भत्थिए समणगुण-मुक्कजोगी थेराणं अंतियाओ सणियं सणियंट 15 पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता जेणेव पुंडरीगिणी णयरी, जेणेव पुंडरीयस्स भवणे तेणेव उवागच्छइ, डा र उवागच्छित्ता असोगवणियाए असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टगंसि णिसीयइ, णिसीइत्ता ट 15 ओहयमणसंकप्पे जाव झियायमाणे संचिट्ठइ। र सूत्र १५ : अनगार कुंडरीक ने पुण्डरीक राजा की इस बात पर ध्यान नहीं दिया और मौन ही र रहे। पुण्डरीक ने दो तीन बार यह बात दोहराई। इस पर लज्जित हो तथा बड़े भाई का सम्मान द 15 रखने के लिए अनिच्छापूर्वक कुंडरीक ने राजा पुण्डरीक से प्रस्थान करने की अनुमति माँगी। डा र अनुमति प्राप्त कर वह स्थविर मुनि के साथ अन्य जनपदों में विचरने लगा। कुछ काल तक तो वह ड र स्थविर मुनि के साथ उग्र विहार करता रहा पर फिर श्रमण जीवन से थक गया। उसे ऐसे कठिन ट 5जीवन में ऊब और अरुचि हो गई। फलस्वरूप वह साधुता के गुणों से रहित हो गया और द 5 धीरे-धीरे स्थविर मुनि से दूर होने लगा। अन्ततः उनका साथ छोड़ पुण्डरीकिणी नगरी आ गया। S र राजभवन के निकट पहुँच अशोकवाकिटा में एक श्रेष्ठ अशोक वृक्ष के नीचे पड़ी एक शिला पर टे र बैठ गया। भग्न मनोरथ उदास हो वह चिंता में डूब गया। र 15. Ascetic Kandareek did not pay any attention to the king's statement Pand remained silent. The king repeated the statement two-three times. Now, Bashamed of himself and in order to honour his elder brother's advice ascetic 5 Kandareek sought permission to leave, though unwillingly. On getting the 5 permission he joined the Sthavir ascetic and resumed the itinerant life. For 5 some time he continued the ascetic life but in the end he got tired of the 5 harsh life. His dislike for such harsh life increased further. Consequently he lost the virtues of an ascetic and gradually distanced himself from the Sthavir ascetic. Finally he departed his company and returned to Pundarikini. He reached the palace and sat down on a rock under an Ashok 5 tree in a nearby garden. In dejection he sat brooding. 15 सूत्र १६ : तए णं तस्स पोंडरीयस्स अम्मधाई जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ, र उवागच्छित्ता कंडरीयं अणगारं असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टयंसि ओहयमणसंकप्पं जाव 15झियायमाणं पासइ, पासित्ता जेणेव पोंडरीए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागिच्छत्ता पोंडरीयं रायं डा एवं वयासी-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! तव पियभाउए कंडरीए अणगारे असोगवणियाए ही र असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टे ओहयमणसंकप्पे जाव झियायइ।' 5 CHAPTER-19 : PUNDAREEK ( 335) द Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ חח חחחחח תתתתתתתתתתחיחיחיחיחיחיחיחית र ( ३३६ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र हा सूत्र १६ : उस समय किसी काम से राजा पुण्डरीक की धाय माँ अशोकवाटिका में आई तो SI र उसने चिन्तामग्न कण्डरीक को वहाँ पर बैठे देखा। वह पुण्डरीक के पास गई और उससे कहा5 "देवानुप्रिय ! तुम्हारा प्रिय भाई कण्डरीक अशोकवाटिका में अशोक वृक्ष के नीचे पृथ्वी शिलापट दी र पर चिन्ता-मग्न बैठा हुआ है।" 5 16. At that time the nurse maid of King Pundareek came to that garden 15 for some work and saw a dejected Kandareek. She went to King Pundareek and said, “Beloved of gods! Your darling brother Kandareek is sitting » rock under an Ashok tree in a nearby garden overwhelmed by anxiety." S ___ सूत्र १७ : तए णं पोंडरीए अम्मधाईए एयमहूँ सोच्चा णिसम्म तहेव संभंते समाणे उठाए । 5 उद्वेइ, उठ्ठित्ता अंतेउरपरियाल-संपरिवुडे जेणेव असोगवणिया जाव कंडरीयं तिक्खुत्तो एवं ट 5 वयासी-'धण्णे सि तुमं देवाणुप्पिया ! जाव पव्वइए। अहं णं अधण्णे जाव पव्वइत्तए। तं धन्ने डी र सि णं तुमं देवाणुप्पिया ! जाव जीवियफले।' सूत्र १७ : धाय माता की यह बात सुन राजा पुण्डरीक आशंकित हो उठा। वह तत्काल अपने डा र अंतःपुर परिवार के साथ अशोक-वाटिका में गया और कण्डरीक की तीन बार वन्दना करके डा र कहा-“देवानुप्रिय ! तुम धन्य हो जोकि दीक्षित हो गए और मैं अधन्य हूँ कि दीक्षा लेने का सामर्थ्य | 5 नहीं जुटा पा रहा हूँ। तुमने मानवीय जीवन का सुन्दर फल पाया है।" । 12 17. King Pundareek got worried when he got this news from his nurses maid. He rushed to the garden with his queens and after paying homage thrice, said to Kandareek, “ Beloved of gods! You are the blessed one that you 5 got initiated and I am the cursed one that I do not have enough courage to do 15 so. You have achieved the best goal of life.” र सूत्र १८ : तए णं कंडरीए पुंडरीएण एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए संचिट्टइ। दोच्चं पि तच्चं पिटी 15 जाव चिट्ठ। र सूत्र १८ : पुण्डरीक राजा के इस कथन पर कण्डरीक तीनों बार मौन ही रहा उसके कथन पर डी र कुछ भी उत्तर नहीं दिया। ___18. All the three times when the king repeated this statement Kandareek ST ? did not reply, he just remained silent. 15 प्रव्रज्या का परित्याग सूत्र १९ : तए णं पुंडरीए कंडरीयं एवं वयासी-‘अट्ठो भंते ! भोगेहिं ?' 'हंता अट्ठो।' सूत्र १९ : तब पुण्डरीक राजा ने कण्डरीक से पूछा-“भंते ! क्या भोग भोगने की इच्छा है ?" ll कण्डरीक बोला-“हाँ ! है।" 5 (336) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA CU sannnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnni Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् र उन्नीसवाँ अध्ययन : पुण्डरीक ( ३३७ ) SI 5 ABANDONING THE ASCETIC LIFE 5 19. Now King Pundareek asked, “Bhante! Do you have the desire to enjoy S R mundane pleasures?" र Kandareck replied, “Yes, I do." सूत्र २0 : तए णं पोंडरीए राया कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव 15 भो देवाणुप्पिया ! कंडरीयस्स महत्थं जाव रायाभिसेयं उवट्ठवेह।' जाव रायाभिसेएणं द र अभिसिंचइ। 15 सूत्र २0 : यह सुन राजा पुण्डरीक ने अपने सेवकों को बुलाया और कहा-“देवानुप्रियो ! द र शीघ्र ही कंडरीक के लिए समृद्धिवान और महान पुरुषों के योग्य राज्याभिषेक की तैयारी करो।" हा 5 और उसने समारोहपूर्वक कंडरीक का राज्याभिषेक कर दिया। कंडरीक श्रमण जीवन छोड़ ट 15 राज-सिंहासन पर जा बैठा। र 20. King Pundareek at once called his servants and said, “Beloved of gods! ट 5 Make arrangement for coronation of Kandareek, befitting affluent and great persons, at once." And he crowned Kandareek with all ceremonies and 2 festivities. Kandareek left the ascetic ways and ascended the throne. ___ सूत्र २१ : तए णं पुंडरीए सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ सयमेव चाउज्जामं धम्म द र पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता कंडरीयस्स अंतिअं आयारभंडयं गेण्हइ, गेण्हित्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-'कप्पइ मे थेरे वंदित्ता णमंसित्ता थेराणं अंतिए चाउज्जामं धम्म द 12 उवसंपिज्जत्ता णं तओ पच्छा आहारं आहारित्तए' त्ति कट्ट इमं च एयारूवं अभिग्गहंड 15 अभिगिण्हेत्ता णं पोंडरीगिणीए पडिणिक्खमइ। पडिणिक्खमित्ता पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दा र दूइज्जमाणे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव पहारेत्थ गमणाए। 15 सूत्र २१ : राजा पुण्डरीक ने स्वयं ही पंचमुष्टि लोच किया और स्वयं ही चातुर्याम धर्म द र अंगीकार कर लिया। फिर कण्डरीक से श्रमण के रजोहरण-पात्र आदि ले लिए, और इस प्रकार , र का अभिग्रह ग्रहण किया-स्थविर भगवन्तों को वन्दना कर उनसे चातुर्याम धर्म ग्रहण करने के ट 5 पश्चात् ही मुझे आहार करना कल्पता है।" यह संकल्प कर वह पुण्डरीकिणी नगरी के बाहर र निकला और जिस दिशा में स्थविर भगवन्त थे उस दिशा में एक के बाद दूसरा ग्रामं पार करता है 5चलने लगा। 2 22. King Pundareek, on his own, performed the five fistful pulling out of 9 hair and got initiated into the four dimensional religion as an ascetic. He Kthen took the formal requisites of an ascetic like the broom and alms-pots a and resolved, "I will not accept any food until I behold the Sthavir Bhagavant 5 CHAPTER-19 : PUNDAREEK ( 337) ट FAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn P Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1३३८ ) EVVVTTTTTTTTTTTTTTTTTTT ____ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र सा and get initiated properly.” And he left Pundarikini city and commenced his journey in the direction the Sthavir ascetic had gone. He kept on moving from one village to another. कण्डरीक की पुनः रुग्णता 15 सूत्र २२ : तए णं तस्स कंडरीयस्स रण्णो तं पणीयं पाणभोयणं आहारियस्स समाणस्सा र अतिजागरिएण य अइभोयणप्पसंगेण य से आहारे णो सम्मं परिणमइ। तए णं तस्स कंडरीयस्स से 15 रण्णो तंसि आहारंसि अपरिणममाणंसि पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि सरीरंसि वेयणा पाउब्भूया डा 12 उज्जला विउला कक्खडा पगाढा जाव दुरहियासा पित्तज्जर-परिगयसरीरे दाहवक्कंतीए याविटी होत्था। र सूत्र २२ : इधर गरिष्ट आहार करने वाले राजा कण्डरीक को रात्रि को अति जागरण और सी 15 दुष्पाच्य भोजन की अधिकता के कारण अपच हो गई। कण्डरीक को शरीर में आहार आदि का SI र सम्यक् पचन-पाचन न होने के कारण एक बार मध्य रात्रि के समय उसके शरीर में तीव्र, विपुल, 5 कर्कश, गहन, असह्य, प्रचण्ड और दुःखद वेदना उत्पन्न हो गई। उसके शरीर में पित्त ज्वर व्याप्त र हो गया और सारे शरीर में जलन, दाह उत्पन्न होने लगी। » KANDAREEK'S AILMENT RELAPSES 22. Due to the rich food he consumed and late night activities he indulged $ in, king Kandareek started suffering from stomach problems like indigestion. - Once at midnight due to indigestion he got an attack of a sharp, acute, extreme, intolerable, and agonizing stomach ache. He also got bile-fever and 15 had burning sensation throughout his body. सूत्र २३ : तए णं से कंडरीए राया रज्जे य रढे य अंतेउरे य जाव अज्झोववन्न 15 अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकामए अवसवसे कालमासे कालं किच्चा अहे सत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्टिइयंसि नरयंसि नेरइयत्ताए उववण्णे। 5 सूत्र २३ : राज्य, राष्ट्र, अन्तःपुर आदि में अतीव आसक्ति के कारण राजा कण्डरीक डा र आर्त्तध्यान में डूब गया और अनायास, आकस्मिक और अकाल मरण को प्राप्त हुआ। उसने सातवींद्र 15 निम्न पृथ्वी में सर्वाधिक स्थिति वाले नरक में नारक जीव के रूप में जन्म लिया। 2 23. Due to his extreme attachment with his palace, kingdom, and state, टे 15 king Kandareek went into deep depression and embraced a sudden and 115 premature death. He reincarnated as a hell being in the seventh hell having si the longest span of life among hells. परम्पए 7 (338) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SUTRA Annnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Paris 25 Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (भाग : २) Ommo ॐ - am PEDID: चित्र परिचय THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED त्याग से भोग : भोग से त्याग चित्र : २५ १. राजा पुण्डरीक को जब पता चला कि मेरे छोटे भाई मुनि कण्डरीक संयम त्यागकर पुनः संसार-सुखों के प्रति आसक्त हो गये हैं तो राजा मुनि वेश त्यागी कण्डरीक का अपने हाथों से राजतिलक करके समूचा राज्य उन्हें सौंप देता है और स्वयं मुनिधर्म ग्रहण कर स्थविरों की सेवा में चला जाता है। २. कण्डरीक की अतृप्त इच्छाएँ राज-सुखों का असीमित भोग करने लगीं। फलस्वरूप वह शीघ्र ही अनेक कठिन रोगों से ग्रस्त हो गया। ३. वैद्यों के विविध उपचार करने पर भी कण्डरीक स्वस्थ नहीं हो सका। अन्त में आर्त्त-रौद्रध्यान में डूबा मरकर सातवीं नरक भूमि में नैरयिक रूप में उत्पन्न हुआ। ४. उधर ढलती वय में मुनि दीक्षा धारण कर पुण्डरीक मुनि खूब उत्कृष्ट तप-ध्यान शुभ भावनाओं से भावित होकर समाधिमरण प्राप्त कर सर्वार्थसिद्ध विमान में देव रूप में उत्पन्न हुए। (उन्नीसवाँ अध्ययन) DETACHMENT TO ATTACHMENT : ATTACHMENT TO DETACHMENT ILLUSTRATION : 25 ___ 1. When King Pundareek comes to know that his younger brother, ascetic Kandarik, is attracted towards mundane pleasures and has abandoned the ascetic way, he invites Kandareek and offers him the kingdom. He himself crowns the past ascetic and renounces the mundane life. Turning ascetic he joins the Sthavir ascetic. 2. The unsatisfied desires of Kandareek force him into excessive indulgence in carnal pleasures. His lusty ways, dance-music, and heavy food lead him to acute ailments. All treatment fails to cure him. 3. At last he dies after suffering acute pain and in a depressed and agitated mental state; he is born as a hell being. 4. After getting initiated ascetic Pundarik indulges in harsh penance and deep meditation. He embraces a meditative death and is reincarnated as a god in the Sarvarthasiddh dimension of gods. (CHAPTER - 19) ago AADIVA Haldighapa JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA (PART-2) Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उन्नीसवाँ अध्ययन : पुण्डरीक ( ३३९ ) सूत्र २४ : एवामेव समणाउसो ! जाव पव्वइए समाणे पुणरवि माणुस्सए कामभोगे आसाएइ जाव अणुपरियट्टिस्सइ, जहा व से कंडरीए राया । सूत्र २४ : इस प्रकार हे आयुष्मान श्रमणो ! हमारा जो साधु-साध्वी दीक्षित होकर पुनः मनुष्य शरीर सम्बन्धी कामभोगों की इच्छा करता है वह कण्डरीक राजा के समान संसार सागर में पुनः पुनः जन्म-मरण के चक्कर में फँस जाता है।" 24. Long-lived Shramans! In this way those of our ascetics who, after getting initiated, desire for carnal and mundane pleasures once again, are caught in the cycle of rebirth indefinitely like king Kandareek." पुण्डरीक की उग्र साधना सूत्र २५ : तए णं ते पोंडरीए अणगारे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छत्ता थेरे भगवंते वंदइ, णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता थेराणं अंतिए दोच्चं पि चाउज्जामं धम्मं पडिवज्जइ, छट्ठखमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, करिता जाव अडमाणे सीय-लुक्खं पाण-भोयणं पडिगाइ, पडिगाहित्ता अहापज्जत्तमिति कट्टु पडिणियत्तइ, पडिणियत्तित्ता जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भत्तपाणं पडिदंसेइ, पडिदंसित्ता थेरेहिं भगवंतेहिं अब्भणुन्नाए समाणे अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववण्णे बिलमिव पण्णगभूएणं अप्पाणं तं फासुएसणिज्जं असणं पाणं खाइमं साइमं सरीरकोट्टगंसि पक्खिव । सूत्र २५ : उधर पुण्डरीक अनगार स्थविर भगवंत के पास पहुँचे और उनको यथाविधि वन्दना करके उनके निकट पुनः चातुर्याम धर्म अंगीकार किया। फिर षष्ठ भक्त के पारणे के लिए प्रथम प्रहर में स्वाध्याय किया, दूसरे प्रहर में ध्यान और तीसरे प्रहर में भिक्षाटन करके ठण्डा और रूखा जैसा भी प्राप्त हुआ भोजन - पान ग्रहण किया। फिर यह विचार कर वापस लौटे कि मेरे लिए यही यथेष्ट व पर्याप्त है। लौट कर स्थविर भगवन्त के पास आये, उन्हें लाया हुआ भोजन दिखाया और भोजन करने की आज्ञा प्राप्त की। तत्पश्चात् मूर्च्छा व आसक्ति रहित भाव पूर्वक उस एषणीय आहार को उन्होंने शरीर रूपी कोठे में वैसे ही डाल दिया जैसे सर्प सीधा बिल में प्रवेश कर जाता है । HARSH PRACTICES OF PUNDAREEK 25. In the mean time ascetic Pundareek caught up with the Sthavir ascetic and after due formalities got properly initiated into the ascetic order. On the day of his fast breaking he spent the first quarter of the day in studies, the second quarter in meditation, and during the third quarter he set out to collect alms. He accepted whatever stale or dry food he got. He returned satisfied that this should be all he needed. He went to the Sthavir CHAPTER - 19 : PUNDAREEK For Private Personal Use Only (339) 5 Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फ्र (380) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र Bhagavant, showed him the alms he had collected and sought permission to eat. After this he swallowed the food prescribed for an ascetic without any fondness or relishing, exactly as a snake enters its hole. सूत्र २६ : तए णं तस्स पुंडरीयस्स अणगारस्स तं कालाइक्कतं अरसं विरसं सीय- लुक्ख पाण-भोयणं आहारियस्स समाणस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स स आहारे णो सम्मं परिणमइ । तए णं तस्स पुंडरीयस्स अणगारस्स सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया उज्जला जाव दुरहियासा पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक्कंतीए विहर । सूत्र २६ : वह बासी, (कालातिक्रान्त) अरस, विरस, ठण्डा और रूखा भोजन पुण्डरीक मुनि पूरी तरह से पचा नहीं पाये । मध्य रात्रि के समय जब वे धर्म जागरणा कर रहे थे तब उनके शरीर में तीव्र, दुस्सह, (आदि ) वेदना उत्पन्न हुई और उनका शरीर पित्त ज्वर से जलने लगा । 26. That stale, tasteless, flavourless, cold, and dry food proved to be hard to digest for ascetic Pundareek. During the night when he was doing his ascetic duties he got an attack of a sharp, acute, extreme, intolerable and agonizing stomach ache. He also got bile-fever and had burning sensation throughout his body. उग्र साधना का सुफल सूत्र २७ : तए णं ते पुंडरीए अणगारे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कार-परक्कमे करयल जाव एवं वयासी नमोऽत्थु णं अरिहंताणं जाव संपत्ताणं णमोऽत्थु णं थेराणं भगवंताणं मम धम्मारियाणं धम्मोवएसयाणं, पुव्विं पि य णं मए थेराणं अंतिए सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए जाव मिच्छादंसणसल्ले णं पच्चक्खाए' जाव आलाइयपडिक्कते कालमासे कालं किच्चा सव्वट्टसिद्धे उववण्णे। ततोऽणंतरं उव्वट्टित्ता महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव सव्वदुक्खाणमंतं काहि । सूत्र २७ : उस तीव्र वेदना के कारण पुण्डरीक अनगार निस्तेज, निर्बल, निर्वीर्य और पुरुषार्थ रहित हो गये। उन्होंने दोनों हाथ जोड़ कर कहा 'अरिहन्तों को नमस्कार, सिद्धि प्राप्त भगवंतों को नमस्कार ( शक्रस्तव के समान ) । मेरे धर्माचार्य और धर्मोपदेशक स्थविर भगवन्त को नमस्कार । स्थविर गुरुजनों के सम्मुख मैंने पहले भी समस्त प्राणातिपात मिथ्यादर्शनशल्य रूप अठारह पापस्थानों का त्याग किया था “।" इस प्रकार विधिवत अन्तिम प्रत्याख्यान कर, शरीर का त्याग कर आलोचना प्रतिक्रमण करके कालमास में आयु क्षीण होने पर काल करके सर्वार्थसिद्ध नामक अनुत्तर विमान में देवरूप में उत्पन्न हुए। वहाँ से च्यवन कर सीधे महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध गति प्राप्त करेंगे। JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA (340) For Private Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र उन्नीसवाँ अध्ययन : पुण्डरीक ( ३४१) ड FRUITS OF HARSH PENANCE 15 27. Due to this acute pain ascetic Pundareek became shaky, weak, Ş emaciated, and vigourless. He joined his palms and uttered, “I bow and convey my reverence to the worthy ones (Arhats), the supreme ones (Bhagavans), . . . . . . . (the panegyric by the king of gods or the Shakrastav). My reverence also to my preceptor, the Sthavir Bhagavant. Earlier, before 15 the Sthavir guru, I took the five great vows including refraining from hurting S 5 life. Now I once again take the same oath in the name of the Arihants. I also 12 take an oath to remain detached from my body till my last breath.” 5 Saying thus, and after doing the last critical review (Alochana C Pratikraman), he took the ultimate vow and embraced the meditative death. 15 He reincarnated as a god in the Sarvarthsiddh Anuttar Viman. From there § he will descend in the Mahavideh area and obtain liberation. सूत्र २८ : एवामेव समणाउसो ! जाव पव्वइए समाणे माणुस्सएहिं कामभोगेहिं णो सज्जइ, ड 5 णो रज्जइ, जाव नो विप्पडिघायमावज्जइ, से णं इह भवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं ४ र बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाणं अच्चणिज्जे वंदणिज्जे पूयणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे द 5कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासणिज्जे त्ति कटु परलोए वि य णं णो आगच्छइ बहूणि ड दंडणाणि य मुंडणाणि य तज्जणाणि य ताडणाणि य जाव चाउरंतसंसारकंतारं जावट र वीईवइस्सइ, जहा व से पोंडरीए अणगारे। र सूत्र २८ : इसी प्रकार हे आयुष्मान श्रमणो ! हमारा जो साधु-साध्वी दीक्षित होकर मनुष्य ] र सम्बन्धी काम भोगों में आसक्त और अनुरक्त नहीं होता, प्रतिघात (अस्थिरता) को प्राप्त नहीं होता दी 15 वह इसी भव में अनेक श्रमणों, श्रमणियों, श्रावकों, श्राविकाओं द्वारा अर्चनीय, वन्दनीय, पूजनीय, ड र सत्करणीय, सम्माननीय, कल्याणरूप, मंगलकारक और देव तथा चैत्य के समान उपासना करने है र योग्य होता है। साथ ही वह परलोक में भी राजदण्ड, राज-निग्रह, तर्जना और ताड़ना को प्राप्त ८ 15 नहीं होता तथा अन्ततः संसार सागर को पार कर जाता है; जैसे पुण्डरीक अनगार। र 28. Long-lived Shramans! In just this way those of our ascetics who, after B getting initiated, do not get distracted from their practices and attracted and 5 attached to the carnal mundane pleasures, become during this life the objects 15 of reverence, respect, obeisance, honour, and regard for; and blissful and 5 beneficent to; and worthy of worship as gods and temples by numerous ascetics and lay persons. Moreover, during the next life also they do not suffer miseries like punishment and the curse of the state, or abuse or beating, and in the end cross the ocean of mundane sufferings, as ascetic 5 Pundareek did. G 15 CHAPTER-19 : PUNDAREEK (341) Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फज्ज्ज् ( ३४२ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र सूत्र २९ : एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्तेणं एगूणवीसइमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते । सूत्र २९ : हे जम्बू ! धर्म की आदि करने वाले तीर्थंकर तथा सिद्ध गति को प्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने उन्नीसवें ज्ञात अध्ययन का यही अर्थ कहा है। ऐसा मैंने सुना है; ऐसा ही कहता हूँ। 29. Jambu! This is the text and the meaning of the nineteenth chapter of the Jnata Sutra as told by Shraman Bhagavan Mahavir. So I have heard, so I confirm. सूत्र ३० : एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्तेणं छट्टस्स अंगस्स पढमस्स सुयक्खंधस्स अयमट्ठे पण्णत्ते त्ति बेमि । सूत्र ३० : हे जम्बू ! सिद्धगति को प्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने छठे अंग के प्रथम स्कंध का यही अर्थ बताया है। 30. Jambu! This is the text and the meaning of the first part of the sixth canon as told by Shraman Bhagavan Mahavir. So I have heard, so I confirm. सूत्र ३१ : तस्स णं सुयक्खंधस्स एगूणवीसं अज्झयणाणि एक्कसरगाणि एगूणवीसाए दिवसेसु समप्पंत्ति । सूत्र ३१ : इस प्रथम श्रुतस्कंध के उन्नीस अध्ययन हैं। एक-एक अध्ययन एक-एक दिन में पढ़ने से उन्नीस दिनों में यह श्रुतस्कन्ध सम्पूर्ण होता है । 31. This first part has nineteen chapters. Reading one chapter every day it is completed in nineteen days. (342) ॥ एगूण वीसइमं अज्झयणं समत्तं ॥ ॥ उन्नीसवाँ अध्ययन समाप्त ॥ || END OF THE NINETEENTH CHAPTER || ॥ पढमं सुयक्खंधं समत्तं ॥ ॥ प्रथम श्रुतस्कंध समाप्त ॥ || END OF THE FIRST PART || JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - תעתעתעתעתעתעתעת חחחחחחחחחחחחחחחחחחח भएण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्म्य उपसंहार 15 ज्ञाता धर्मकथा की यह उन्नीसवीं कथा शैलक राज की कथा के समान है। साधक के सुविधा भोगी होकर साधना पथ से विमुख हो जाने के दुष्परिणाम को स्पष्ट करती है। CONCLUSION 5 This nineteenth story of Jnata Dharma Katha is almost same as the story Pof King Shailak. It explains the bad result of abandoning the spiritual path due to attachment to mundane comforts. | उपनय गाथा वाससहस्सं पि जई, काऊणं संजमं सुविउलं पि। अंते किलिट्ठभावो, न विसुज्झइ कउरीयव्व ॥१॥ अप्पेण वि कालेणं, केइ जहा गहियसीलसामण्णा। साहिति निययकज्ज, पुंडरीयमहारिसि व्व जहा ॥२॥ र कोई हजार वर्ष तक अत्यन्त विपुल-उच्चकोटि के संयम का पालन करे किन्तु अन्त में उसकी 5 15भावना संक्लेशयुक्त-मलीन हो जाए तो वह कंडरीक के समान सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता॥१॥ र इसके विपरीत, कोई शील एवं श्रामण्य-साधुधर्म को अंगीकार करके अल्प काल में भी ड 5महर्षि पुंडरीक के समान अपने प्रयोजन को-शुद्ध आत्मस्वरूप की प्राप्ति के लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं॥२॥ THE MESSAGE Even after a thousand years of maintaining a high degree of discipline, if 15 feelings or attitudes are tarnished a being can never attain the goal, as c Kandareek did not. (1) B However, someone like ascetic Pundareek reaches the goal of the pure 5 state of liberation in short time by sincerely accepting discipline and a 15 following the ascetic code of conduct. (2) LDCHAPTER-19 : PUNDAREEK (343) Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् 1 द्वितीय श्रूतस्कंध : धर्मकथा : आमुख । - शीर्षक-धम्मकहा-धर्मकथा-कथा के माध्यम से धर्म की चर्चा अथवा धर्म संबंधी कथा। कथासार : सम्यक् साधना से कर्मों का क्षय होता है और अन्ततः मोक्ष प्राप्ति। किन्तु जिन जीवों के सम्पूर्ण डा र कर्मों का क्षय नहीं होता अपितु पुण्य कर्मों का उपार्जन होता रहता है वे वैमानिक देवलोक में उत्पन्न होते हैं। जो र जीव उत्कृष्ट तपस्या तो करते हैं अर्थात् पुण्योपार्जन तो करते हैं किन्तु चारित्र पालन में शथिल्य तथा विराधना टा 15 भी करते रहते हैं वे आत्मशुद्धि के उच्चस्तर तक नहीं पहुंच पाते और अपेक्षाकृत निम्नकोटि के देव बनते हैं, द 15 यथा-भवनवासी, व्यन्तर व ज्योतिष्क। र धर्मकथा में इसी प्रकार की देवियों के पूर्वजन्म की कथाएं संकलित हैं जो पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्वनाथ के ही र तीर्थ में हुई हैं। इसके दस वर्ग हैं। तथा प्रत्येक वर्ग में इन्द्र-विशेष की पटरानियों-अग्रमहिषियों की कथाएं हैं। प्रथम वर्ग में चमरेन्द्र की, द्वितीय वर्ग में बलि इन्द्र की, तीसरे वर्ग में चमरेंद्र के अतिरिक्त दक्षिण दिशा के अन्य इन्द्रों की, चौथे वर्ग में बलीन्द्र के अतिरिक्त उत्तर दिशा के अन्य इन्द्रों की, पांचवें वर्ग में दक्षिण दिशा के वाणव्यंतर इन्द्रों की, छठे वर्ग में उत्तर दिशा के वाणव्यंतर इन्द्रों की, सातवें वर्ग में सूर्य की, आठवें वर्ग में चन्द्र की, नवें वर्ग में सौधर्मेन्द्र की तथा दसवें वर्ग में ईशानेन्द्र की। इन कथाओं में लगभग पूर्ण समानता है। अतः एक ही पद्धति अपनाई गई है। सर्वप्रथम पटरानी का नाम है, > र फिर राजगृह नगर के गुणशील चैत्य में भगवान महावीर के आने की और परिषद द्वारा उपासना की चर्चा है। ट ए उस समय वह देवी-विशेष प्रभु के सम्मुख उपस्थित होकर नृत्यादि के प्रदर्शन द्वारा भावमय उपासना करती है। ट 5 उसके चले जाने पर गौतम स्वामी प्रभु से पूछते हैं कि उस देवी ने ऐसी ऋद्धि कैसे प्राप्त की? भगवान देवी के दा 15 पूर्वभव की कथा कहते हैं। इस पूर्व भव की कथा में नगरी का नाम, माता-पिता के नाम, अर्हत् पार्श्वनाथ की ड देशना, दीक्षा, दीक्षा के पश्चात् आचार में शिथिलता अन्त में अनशन द्वारा प्राण त्याग तथा देवलोक में जन्म। देव । र भव की आयुष्य तथा वहां से महाविदेह में जन्म से मोक्ष प्राप्ति। इस प्रकार प्रथम वर्ग में काली देवी की कथा पूर्ण र विस्तार सहित दी गई है। अन्य सभी कथाओं में नामादि विशिष्टताओं के उल्ल्लेख हैं तथा कथा प्रायः प्रथम वर्ग के ए समान बताई गई है। इस प्रकार यह द्वितीय श्रुतस्कंध संक्षेप मे पूर्ण किया गया है। 5 (344) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA C Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TAAMAAN 11 THE SECOND PART : DHARMAKATHA : INTRODUCTION In 5 Title-Dhammakaha-Dharmakatha-The discussion of Dharma with the help of tales ci » or tales related to Dharma. (detailed explanation in the preface) Gist of the story-The right spiritual practice helps in the shedding of Karmas and eventually attaining Moksha. The beings who are unable to shed all Karmas, and acquire good Karmas as well, are born as the Vaimanik Devs (the loftiest dimension of gods). The beings who indulge in very harsh penance, or in other words acquire good Karmas, but become lax in discipline and are not very strict in following the prescribed codes of conduct, do not reach a high degree of purity of soul and are born as gods of comparatively lower i > dimensions, viz. Bhavan-vasi, Vyantar, and Jyotishka. In this part, Dharmakatha, are compiled the stories of earlier births of this class of ST goddesses. It has ten sections and every section contains the stories of the principal queens of a particular class of Indras (kings of gods) : Section Indras First- Chamerandra Second- Bali-indra Third- Other Indras of the south besides Chamarendra Fourth- Other Indras of the north besides Bali-indra Fifth Van-vyantar Indras of the south Sixth- Van-vyantar Indras of the north Seventh- Surya Eighth- Chandra Ninth- Saudharmendra, and Tenth- Ishanendra. These stories are almost the same in the sequence of events desribed, and are uniform in P style. The stories start with the name of the principal queen followed by the event of the arrival of Shraman Bhagavan Mahavir in Rajagriha and his worship by the people. During this religious assembly the goddess in question appears before Bhagavan Mahavir, does his worship, dances and gives other performances with all her grandeur. When she departs Gautam Swami asks about the acquisition of such grandeur by the goddess. Bhagavan Mahavir tells him the story of the earlier birth of the goddess. Such a story contains the names of the town and the parents, and describes events like the discourse of Arhat Parshva, initiation, laxness in conduct, death after fasting, and birth as a goddess. Also mentioned are the life-span, and future liberation after being born in Mahavideh. In the first chapter about 5 P goddess Kali, these things are mentioned in detail. In the later chapters the specific information about the goddesses is given with a note that the incidents are the same as > detailed in the first chapter about goddess Kali. Thus this second part has been done in brief. S Gururuuruuruuruuuuuuuuuuuuuuu vvv 15 SECOND SECTION : DHARMA KATHA (345) C nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ த पढमं वग्गो - प्रथम वर्ग पढमं अज्झयणं : काली प्रथम अध्ययन : काली FIRST CHAPTER: KALI सूत्र १ : तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे होत्था । वण्णओ । तस्स णं रायगिहस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए तत्थ णं गुणसीलए णामं चेइए होत्था । वण्णओ । सूत्र १ : काल के उस भाग में राजगृह नामक नगर था। नगर के बाहर उत्तर-पूर्व दिशा में गुणशील नामक चैत्य था। ( औपपातिकसूत्र के अनुसार वर्णन ) FIRST SECTION 1. Jambu! During that period of time there was a city named Rajagriha. Outside the city in the northeastern direction there was a Chaitya named Gunashil Chaitya. (Aupapatik Sutra) सूत्र २ : तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मा णामं थेरा भगवंतो जाइसंपन्ना कुलसंपन्ना जाव चउदसपुथ्वी, चउनाणोवगया, पंचहिं अणगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडा, पुव्वाणुपुव्विं चरमाणा, गामाणुगामं दूइज्जमाणा, सुहंसुहेणं विहरमाणा जेणेव रायगिहे णयरे, जेणेव गुणसीलए चेइए, जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहति । सूत्र २ : काल के उस भाग में श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी स्थविर आर्य सुधर्मा, जो उच्च जाति व कुल के थे तथा चौदह पूर्ववेत्ता व चार ज्ञान युक्त थे, अपने पाँच सौ श्रमण शिष्यों सहित अनुक्रम से ग्रामानुग्राम में विचरण करते हुए, सुखपूर्वक विहार करते हुए गुणशील चैत्य में पधारे। वहाँ यथाविधि ठहरकर तप-संयम साधनामय जीवन बिताने लगे । 2. During that period of time, going from one village to another and staying comfortably there, Arya Sudharma, a disciple of Shraman Bhagavan Mahavir, with his five hundred disciples arrived in the Gunashil Chaitya. He belonged to a respectable family and clan and possessed the four types of knowledge including that of the fourteen sublime canons. With due procedure and formality he camped there and commenced his practices of penance and discipline. ( 346 ) सूत्र ३ : परिसा णिग्गया । धम्मो कहिओ । परिसा जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया। JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - । फUUUUUUUUUUUUUUUUUUUU09 र द्वितीय श्रुतस्कंध : धर्मकथा (३४७ ) डी 5 तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अणगारस्स अंतेवासी अज्जजंबू णामं अणगारे दी र जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं छट्ठस्स 15 अंगस्स पढमसुयक्खंधस्स नायाणं अयमढे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! सुयक्खंधस्स धम्मकहाणं टा र समणेणं जाव संपत्तेणं के अद्वे पण्णत्ते ? र सूत्र ३ : आर्य सुधर्मा को वन्दना करने के लिए परिषद् निकली और उनका धर्मोपदेश सुनकर । 15 वापस लौट गई। र काल के उस भाग में आर्य सुधर्मा के अन्तेवासी आर्य जम्बू नामक अनगार उनकी उपासना 15 करते हुए बोले-"भन्ते ! जब श्रमण भगवान महावीर ने छठे अंग के ‘ज्ञात श्रुत' नामक प्रथम द २ श्रुतस्कंध का पूर्वोक्त अर्थ बताया है तो धर्मकथा नामक द्वितीय श्रुतस्कंध का उन्होंने क्या अर्थ ड र कहा है? 15 3. A delegation of citizens came to pay homage to him and returned after F the discourse. During that period of time ascetic Arya Jambu, a disciple of Arya Sudharma, said after the formal routine worship, "Bhante! If the meaning of 15 the Jnata Shrut, the first part of the sixth canon, as explained by Shraman द 5 Bhagavan Mahavir, is as narrated earlier, then what is the meaning of the cond part that is known as Dharma Katha as explained by him?" 15 सुधर्मा स्वामी का उत्तर सूत्र ४ : एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं दस वग्गा पन्नत्ता, तं जहा- ८ १. चमरस्स अग्गमहिसीणं पढमे वग्गे। २. बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो अग्गमहिसीणं बीए वग्गे। ३. असुरिंदवज्जियाणं दाहिणिल्लाणं भवणवासीणं इंदाणं अग्गमहिसीणं तइए वग्गे। ४. उत्तरिल्लाणं असुरिंदवज्जियाणं भवणवासिइंदाणं अग्गमहिसीणं चउत्थे वग्गे। ५. दाहिणिल्लाणं वाणमंतराणं इंदाणं अग्गमहिसीणं पंचमे वग्गे। ६. उत्तरिल्लाणं वाणमंतराणं इंदाणं अग्गमहिसीणं छठे वग्गे। ७. चंदस्स अग्गमहिसीणं सत्तमे वग्गे। ८. सूरस्स अग्गमहिसीणं अट्ठमे वग्गे। ९. सक्कस्स अग्गमहिसीणं णवमे वग्गे। र १०. ईसाणस्स अग्गमहिसीणं दसमे वग्गे। 卐nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn - 15 SECOND SECTION : DHARMA KATHA (347 Snnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्य प्रपतनपाएUUUU क ( ३४८ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र || सूत्र ४ : हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथा नाम के द्वितीय श्रुतस्कंध के दस वर्ग 15 बताये हैं; वे इस प्रकार हैं १. प्रथम वर्ग-चमरेन्द्र की अग्रमहिषियों (पटरानियों) का। २. द्वितीय वर्ग-वैरोचनेन्द्र (बलीन्द्र) अथवा वैरोचनराज बलि की पटरानियों का। ३. तृतीय वर्ग-असुरेन्द्र के अतिरिक्त शेष नौ दक्षिण दिशा के भवनपति इन्द्रों की टी ___ अग्रमहिषियों का। ४. चतुर्थ वर्ग-असुरेन्द्र के अतिरिक्त नौ उत्तरदिशा के भवनपति इन्द्रों की पटरानियों का। ५. पंचम वर्ग-दक्षिण दिशा के वाणव्यन्तर देवों के इन्द्रों की पटरानियों का। ६. षष्ठम वर्ग-उत्तर दिशा के वाणव्यन्तर देवों के इन्द्रों की पटरानियों का। ७. सप्तम वर्ग-चन्द्र की अग्रमहिषियों का। ८. अष्टम वर्ग-सूर्य की अग्रमहिषियों का। ९. नवम वर्ग-शक्र इन्द्र की पटरानियों का। और १०. दशम वर्ग-ईशानेन्द्र की पटरानियों का। 15 SUDHARMA SWAMI REPLIES > 4. Jambu! According to Shraman Bhagavan Mahavir the second part, known as Dharma Katha, is divided into ten sections; they are-(1) First section—The principal queens of Chamarendra. (2) Second section—The principal queens of Vairochanendra (Balindra) or the Vairochana king Bali. ट 3) Third section--The principal queens of the nine Viman dwelling kings of C 15 gods of the southern direction, other then the Asurendra. (4) Fourth GI section—The principal queens of the nine Viman dwelling kings of gods of the northern direction, other then the Asurendra. (5) Fifth section-The > principal queens of the kings of the Van-vyantar gods of the southern 2. direction. (6) Sixth section-The principal queens of the kings of the Van- 2 र vyantar gods of the northern direction. (7) Seventh section-The principal | 1 queens of Chandra (the moon god). (8) Eighth section---The principal queens al 5 of Surya (the sun god). (9) Ninth section-The principal queens of दा Shakrendra (the king of gods of Saudharmkalp or the first dimension of |5 gods). and (10) Tenth section-The principal aueens of Ishanendra (the king ( of gods of Ishankalp or the second dimension of gods). 5 काली देवी का आगमन र सूत्र ५ : जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं दस वग्गा पन्नत्ता, पढमस्स णं र भंते ! वग्गस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn vuruuuuuuuuuuuu ( 348 ) Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ट ISTITUT P द्वितीय श्रुतस्कंध : धर्मकथा ( ३४९ ) | र एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा-51 र (१) काली, (२) राई, (३) रयणी, (४) विज्जू, (५) मेहा। 5 जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता। पढमस्स णं र भंते ! अज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पण्णत्ते ? 15 सूत्र ५ : "भन्ते ! श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथा के दस वर्ग बताये हैं तो उनमें से प्रथम SI र वर्ग का उन्होंने क्या अर्थ कहा है ?" 15 "जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने प्रथम वर्ग के पाँच अध्ययन बताये हैं-(१) काली, SI 17 (२) राजी, (३) रजनी, (४) विद्युत, और (५) मेघा।" 15 "भन्ते ! श्रमण भगवान महावीर ने प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है?" 5 ARRIVAL OF GODDESS KALI 12 5. Bhante! of the ten sections of the Dharma Katha as told by Shraman 2 Bhagavan Mahavir what has he explained about the first section? 5 Jambu! Shraman Bhagavan Mahavir has further divided the first section 15 into five chapters--1. Kali, 2. Raji, 3. Rajni, 4. Vidyut, and 5. Megha. 12 Bhante! What has Shraman Bhagavan Mahavir explained about the first 5 chapter. सूत्र ६ : जंबू ‘एवं खलु ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे, गुणसीलए चेइए, र सेणिए राया, चेलणा देवी। सामी समोसरिए। परिसा निग्गया जाव परिसा पज्जुवासइ। ट 5 सूत्र ६ : जम्बू ! काल के उस भाग में राजगृह नाम का नगर था। जिसके बाहर गुणशील चैत्य ड र था। वहाँ श्रेणिक राजा राज्य करते थे। उनकी रानी चेलना थी। एक बार वहाँ श्रमण भगवान ? र महावीर पधारे। वन्दना के लिए परिषद् निकली और भगवान की उपासना करने लगी। 5 6. Jambu! During that period of time there was a city named Rajagriha. > Outside the city there was a Chaitya named Gunashil Chaitya. King Shrenik Bruled over that city. The name of his queen was Chelna. Once Shraman B Bhagavan Mahavir arrived there. A delegation of citizens came and a 5 commenced worship. र सूत्र ७ : तेणं कालेणं तेणं समएणं काली नामं देवी चमरचंचाए रायहाणीए टा र कालवडिंसगभवणे कालंसि सीहासणंसि, चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं, चउहिं महयरियाहिं, ड 15 सपरिवाराहिं, तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अणिएहिं, सत्तहिं अणियाहिवईहिं, सोलसहिं डा र आयरक्खदेवसाहस्सीहिं, अण्णेहिं बहुएहि य कालवडिंसयभवणवासीहिं असुरकुमारेहिं देवेहि दी 15 देवीहि य सद्धिं संपरिवुडा महयाहय जाव विहरइ। 115 SECOND SECTION : DHARMA KATHA SAnnnnnnnnnnnnnAAAAAAAAAAAAAAAAAALI uuN (349) ८ Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ VIV 17 ( ३५०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 सूत्र ७ : काल के उस भाग में राजधानी चमरचंचा में कालावतंसक भवन में काली नाम की दा र देवी काल नाम के सिंहासन पर बैठी थी। चार हजार सामानिक देवियाँ, चार महत्तरिका देवियाँ, डा र सपरिवार तीन परिषद्, सात अनीक, सात अनीकाधिपति, सोलह हज़ार आत्म-रक्षक देव तथा हा 15 अन्यान्य कालावतंसक भवन के निवासी असुरकुमार देवों और देवियों के समूह से घिरी वह उच्च टा ध्वनि वाले वाद्य-यंत्र, नृत्य, गीत आदि द्वारा मनोरंजन करती समय व्यतीत कर रही थी। 15 7. During that period of time a goddess named Kali was sitting on a 15 throne named Kaal in the Kaalavatansak divine vehicle in the capital city dl 15 Chamarchancha. Surrounded by four thousand vehicle-based goddesses, four दा 12 queen-goddesses, three types of assemblies with members, seven armies, SI 2 seven commanders, sixteen thousand guard-gods, and a mass of many other SI Asur-kumar gods and goddesses residing in the Kaalavatansak dimension, she was enjoying divine pleasures including melodious musical instruments, a 15 dances and songs. र सूत्र ८ : इमं च णं केवलकप्पं जम्बुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणी आभोएमाणी डी 15 पासइ। तत्थ णं समणं भगवं महावीरं जम्बुद्दीवे दीवे भारहे वासे रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए टा र अहापडिरूवं उग्गहें उग्गिण्हित्ता संयमेण तवसा अप्पाणं भावमाणे पासइ, पासित्ता डा र हट्टतुट्ठचित्तमाणंदिया पीइमणा हयहियया सीहासणाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्टित्ता पायपीढाओ से 15 पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता पाउयाओ ओमुयइ, ओमुइत्ता तित्थगराभिमुही सत्तट्ठ पयाइं अणुगच्छइ, दी र अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचित्ता दाहिणं जाणुं धरणियलंसि निहटु तिक्खुत्तो मुद्धाणं 5 धरणियलंसि निवेसेइ, निवेसित्ता ईसिं पच्चुण्णमइ, पच्चुण्णमइत्ता कडय-तुडिय-थंभियाओ है। र भुयाओ साहरइ, साहरित्ता करयल जाव सिरसावत्तं कट्ट एवं वयासी5 सूत्र ८ : काली देवी सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को अपने विपुल अवधिज्ञान के उपयोग से देख रही थी। 15 उसने भरत क्षेत्र में राजगृह नगर के गुणशील चैत्य में यथा प्रतिरूप, साधु के लिए उचित स्थान की ई र याचना कर संयम और तप की साधना में लीन श्रमण भगवान महावीर को देखा। उन्हें देखकर वह डी र प्रसन्न और संतुष्ट हुई, उसका चित्त आनन्दमग्न हो गया और मन प्रीति से अभिभूत हो गया। वह ट 15 आत्मविभोर होकर सिंहासन से उठी और पादपीठ से नीचे उतरकर पादुकाएँ उतार दीं। फिर दी र तीर्थंकर भगवान की दिशा में सात-आठ चरण आगे बढ़ी, बायें घुटने को ऊपर रख दाहिने घुटने ! र को धरती पर टेका और मस्तक को कुछ ऊँचा किया। कड़ों और बाजूबंदों से शिथिल भुजाओं को ट 15 मिलाया और यथाविधि हाथ जोड़कर बोलीर 8. With the help of her all enveloping Avadhi Jnana she was observing the whole Jambu continent. She saw Shraman Bhagavan Mahavir begging for an appropriate place and commencing his profound practices of penance and a 5 spiritual discipline in the Gunasheel Chaitya in Rajagriha city in the Bharat 5 (350) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA 2 finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय श्रुतस्कंध : धर्मकथा ( ३५१ ) area. She was pleased and contented; she was filled with joy and overwhelmed with fondness. In her state of enchantment she got up from her throne, stepped down from the foot rest and took off her sandals. She took seven - eight steps in the direction of the Tirthankar, sat down with her left knee high and right knee touching the ground. She raised her head a little, brought together her arms that were heavy with bracelets and armlets, properly joined her palms and uttered सूत्र ९ : णमोऽत्थु णं अरहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं, णमोऽत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव संपाविउकामस्स, वंदामि णं भगवंतं तत्थ गयं इह गए, पासउ णं मे समणं भगवं महावीरे तत्थ गए इह गयं, ति कट्टु वंदइ, णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहा निसण्णा । सूत्र ९ : " अरिहंतों को नमस्कार हो . ( शक्र - स्तव) । सिद्ध गति प्राप्त करने की कामना रखने वाले श्रमण भगवान महावीर को नमस्कार हो । वहाँ स्थित भगवान को मैं यहाँ से वन्दना करती हूँ। वहाँ रहे भगवान मुझे यहाँ देखें।" फिर उसने वन्दना - नमस्कार किया और पूर्व दिशा की ओर मुख करके अपने श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठ गई । 9. “I bow and convey my reverence to the worthy ones (Arhats), the supreme ones (Bhagavans), . . . . . . . . (the panegyric by the king of gods or the Shakrastav). My reverence also to Shraman Bhagavan Mahavir who is desirous of attaining the status of Siddh. From here I offer my salutations to Bhagavan who sits there; may he see me and accept my salutations from there." After the salutation and due obeisance she sat on her throne facing east. सूत्र १० : तए णं तीसे कालीए देवीए इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था - 'सेयं खलु मे समणं भगवं महावीरं वंदित्ता जाव पज्जुवासित्तए' त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता आभिओ गए देवे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - ' एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे एवं जहा सूरियाभो तहेव आणत्तियं देह, जाव दिव्वं सुरवराभिगमणजोग्गं ति करेह । करित्ता जाव पच्चप्पिणह ।' ते वि तहेव जाव करित्ता जाव पच्चष्पिणंति, णवरं जोयणसहस्सविच्छिन्नं जाणं, सेसं तव । णामगोयं साहेइ, तहेव नट्टविहिं उवदंसेइ, जाव पडिगया। सूत्र १० : इस वन्दना के पश्चात् उसके मन में इच्छा हुई - " श्रमण भगवान महावीर को वन्दना करना और उनकी उपासना करना मेरे लिए श्रेयष्कर होगा ।" यह विचार उठते ही उसने आभियोगिक देवों को बुलाकर कहा - "देवानुप्रियो ! श्रमण भगवान महावीर राजगृह नगर के गुणशील चैत्य में विराजमान हैं। अतः दिव्य और श्रेष्ठ देवगमन योग्य विमान तैयार करके SECOND SECTION: DHARMA KATHA For Private Personal Use Only (351) Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ---- -- प्रज्ज्ज्ज्जान क( ३५२) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र दा 15 मुझे सूचित करो।” (विस्तृत आज्ञा सूर्याभ देव के समान-राजप्रश्नीयसूत्र-९) आभियोगिक देवों ने टा 15 आज्ञानुसार हज़ार योजन विस्तार वाला विमान बनाया। काली देवी अपने समुदाय व ऋद्धि-वैभव डा र सहित श्रमण भगवान महावीर के सम्मुख उपस्थित हुई और नृत्यादि प्रदर्शन कर वन्दना-नमस्कार दी 5 कर वापस लौट गई। R 10. She then had a desire—“It would be proper for me to offer my S1 R salutations to Shraman Bhagavan Mahavir in person and worship him." She 5 at once called some Abhiyogik Devs (servant-gods) and said, “Beloved of gods! Prepare the best of the vehicles suitable for divine movement and inform me.” (detailed instructions as mentioned in the Raj-prashniya Sutra in connection with the Suryaabh god) Accordingly the servant-gods created a s thousand Yojan large Viman. Goddess Kali arrived before Shraman Bhagavan Mahavir with her retinue, in all her power and glory. She a 5 performed dances, etc. and returned after due salutations र सूत्र ११ : भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता डा 115 एवं वयासी-कालीए णं भन्ते ! देवीए सा दिव्वा देविड्डी कहिं गया ?' कूडागारसाला-दिटुंतो। दा 2 सूत्र ११ : गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना-नमस्कार कर पूछा-"भन्ते ! 15 काली देवी की वह दिव्य ऋद्धि कहाँ चली गई?" भगवान ने कूटागारशाला का दृष्टान्त दिया। (अ. ८ २१३ सू. ५ के समान) 11. Gautam Swami asked Shraman Bhagavan Mahavir, “Bhante! Where 5 did the divine powers of Kali Devi disappear?" Bhagavan answered the question by giving the example of Kutagar. (see appendix of Ch. 13) 5 काली देवी का पूर्व-भव ___ सूत्र १२ : 'अहो णं भन्ते ! काली देवी महिड्डिया। कालीए णं भन्ते ! देवीए सा दिव्वा टा 5 देविड्डी किण्णा लद्धा ? किण्णा पत्ता ? किण्णा अभिसमण्णागया ?' ___एवं जहा सूरियाभस्स जाव एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जम्बूद्दीवे र दीवे भारहे वासे आमलकप्पा णाम णयरी होत्था। वण्णओ। अंबसालवणे चेइए। जियसत्तू राया। 5 सूत्र १२ : “भन्ते ! काली देवी महान् ऋद्धिशाली है। उसे यह दिव्य ऋद्धि पूर्व-भव में क्या द र करने से मिली ? देव-भव कैसे प्राप्त हुआ और कैसे वह शक्ति उपयोग में आई?" र यह वर्णन भी सूर्याभ देव के वर्णन के समान है। भगवान ने उत्तर दिया-हे गौतम ! काल के द 15 उस भाग में भारतवर्ष में आमलकल्पा नाम की नगरी थी। उसके बाहर आम्रशालवन नाम का चैत्य 5 र था। उस नगर में जितशत्रु राजा राज्य करता था। र (352) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SÜTRA 卐nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ligures भDFUUUUUUUUUUUUUUUUU र द्वितीय श्रुतस्कंध : धर्मकथा ( ३५३ ) SI 5 EARLIER INCARNATION OF GODDESS KALI 12. “Bhante! Goddess Kali was very powerful. What deeds did she do in s her earlier birth that she was endowed with so much power. How did she Battain her divine form and power?" Shraman Bhagavan Mahavir replied Gautam! During that period of time there was a city named Amalkalpa in Bharatvarsh. Outside the city there was a Chaitya named Amrashalvan. King Jitshatru was the ruler of that city. सूत्र १३ : तत्थ णं आमलकप्पाए नयरीए काले णामं गाहावई होत्था, अड्डे जाव अपरिभूए। 5 तस्स णं कालस्स गाहावइस्स कालसिरी णामं भारिया होत्था, सुकुमालपाणिपाया जाव सुरूवा। द र तस्स णं कालगस्स गाहावइस्स धूया कालसिरीए भारियाए अत्तया काली णामं दारिया होत्था, डा 5 वड्डा वडकुमारी जुण्णा जुण्णकुमारी पडियपुयत्थणी णिव्विन्नवरा वरपरिवज्जिया वि होत्था। र सूत्र १३ : वहाँ काल नाम का गाथापति (गृहस्थ) रहता था। वह धनाढ्य और सामर्थ्यवान था। र उसकी पत्नी का नाम कालश्री था। वह सुकुमार अंगों वाली थी और मनोहर रूप वाली थी। काल दी 15 गाथापति की पुत्री तथा कालश्री की आत्मजा का नाम काली था। वह बड़ी आयु की हो जाने पर डा र भी अविवाहिता थी। उसका शरीर जीर्ण हो चला था, उसके स्तन लटक गये थे और लोग उसे देख ड र विरक्त हो जाते थे। इस कारण वह अविवाहित ही रह गई थी। , 13. A citizen named Kaal lived there. He was rich and resourceful. The SI 2 name of his wife was Kaalshri. She was delicate and beautiful. The couple had a daughter named Kali. She was middle aged but still unmarried. Her a 5 body had lost its charm, her breasts drooped, and so she presented a 15 repulsive appearance to spouse-seekers. That was the reason she had become a spinster. सूत्र १४ : तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए आइगरे जहा वद्धमाणसामी, णवरं णवहत्थुस्सेहे सोलसहिं समणसाहस्सीहिं अट्ठत्तीसाए अज्जियासाहस्सीहिं सद्धिं संपरिवुडे SI B जाव अंबसालवणे समोसढे, परिसा णिग्गया जाव पज्जुवासइ। 15 सूत्र १४ : काल के उस भाग में पुरुषादानी धर्म प्रवर्तक अरिहंत पार्श्वनाथ विद्यमान थे। वे डा र वर्धमान स्वामी के समान गुण वाले थे। अन्तर यह था कि उनका शरीर नौ हाथ ऊँचा था और 15 उनके साथ सोलह हजार साधु तथा अड़तीस हजार साध्वियाँ थीं। वे आम्रशालवन में पधारे। द 15 परिषद् निकली और भगवान की उपासना करने लगी। K 14. During that period of time, the propagator of religion Purushadani Arhat Parshvanath was living. He was as endowed as Shraman Bhagava 115 SECOND SECTION : DHARMA KATHA (353) दा Annnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnns Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ הצדעחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחה ज्ञाताधर्मक्थांग सूत्र डा प्रज्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्卐 - क ( ३५४ ) Mahavir. The only difference was that his height was nine hands (approximately nine feet) and he was accompanied by sixteen thousand male ascetics and thirty eight thousand female ascetics. He arrived in the Amrashalvan. A delegation of citizens came and commenced his worship. Si सूत्र १५ : तए णं सा काली दारिया इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणी हट्ट जाव हियया जेणेवटी अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता करयल जाव एवं वयासी-‘एवं खलु अम्मयाओ ! डा र पासे अरहा पुरिसादाणीए आइगरे जाव विहरइ, तं इच्छामि णं अम्मयाओ ! तुब्भेहिंदी अब्भणुन्नाया समाणी पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स पायवंदिया गमित्तए।' 'अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि।' 5 सूत्र १५ : काली यह समाचार सुनकर प्रसन्न और संतुष्ट हुई तथा अपने माता-पिता के पास डी 12 जा हाथ जोड़कर बोली-“हे माता-पिता ! पार्श्वनाथ अरिहंत, पुरुषादानीय, धर्मतीर्थ की स्थापना 15 करने वाले (आदि) यहाँ आये हुए हैं। आपकी आज्ञा हो तो मैं उनके चरणों में वन्दना करने जाना ट 5 चाहती हूँ।" माता-पिता ने उत्तर दिया-“देवानुप्रिये ! तुझे जिसमें सुख मिले वही कर। विलम्ब मत कर।" 5 15. Hearing about this, Kali was pleased and contented. She went to her S parents, joined her palms and said, “Father and mother! Arhat Parshvanath, र the propagator of religion, Purushadaniya (etc.) is in town. If you give me a 15 permission I would love to go and pay my homage and salutations at his feet.” The parents replied, “Beloved of gods! Do as you please without any s delay." सूत्र १६ : तए णं सा कालिया दारिया अम्मापिईहिं अब्भणुन्नाया समाणी हट्ट जाव हियया द र हाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता सुद्धप्पवेसाइं मंगल्लाइं वत्थाई पवरपरिहिया , अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा चेडिया-चक्कवाल-परिकिण्णा साओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, टे 5 पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ, डा उवागच्छित्ता धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढा। ___सूत्र १६ : माता-पिता की आज्ञा मिल जाने से काली का मन प्रसन्न हो गया। वह स्नानादि नित्य र कर्मों से निवृत्त हो श्रेष्ठ व मांगलिक वस्त्र धारण कर, आभूषण पहन, दासियों को साथ ले अपने में र घर से बाहर निकली। बाहर ड्योढ़ी में पहुँचकर श्रेष्ठ यान पर सवार हुई। = 16. Kali beamed with joy when she got permission from her parents. She S 2 bathed and dressed in her best and auspicious apparel and ornaments. She B took along her maid servants, came out in the courtyard of her house, and a boarded a splendid chariot. र (354) JNĀTĀ DHARMA, KATHĀNGA SŪTRA Sinnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ज्ज्ज द्वितीय श्रुतस्कंध धर्मकथा सूत्र १७ : तए णं सा काली दारिया धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढा समाणी एवं जहा दोवई जाव पज्जुवासइ । तए णं पासे अरहा पुरिसादाणीए कालीए दारियाए तीसे य महइमहालियाए परिसा धम्मं कहे | सूत्र १७ : वाहन पर सवार हो कर वह वहाँ पहुँची जहाँ भगवान पार्श्वनाथ विराजमान थे। फिर वह द्रौपदी के समान भगवान की वन्दना - उपासना करने लगी। भगवान ने काली तथा उपस्थित जनसमूह को धर्मोपदेश दिया। 17. She arrived at the spot where Arhat Parshvanath was sitting. She paid her homage and did worship as done by Draupadi (ch. 17). Bhagavan gave his discourse before Kali and the large audience. ज्ज्ज् ( ३५५ ) सूत्र १८ : तए णं सा काली दारिया पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स अंतिए धम्मं सोच्चा णिसम्म हट्ठ जाव हियया पासं अरहं पुरिसादाणीयं तिक्खुत्तो वंदइ नमसइ, वंदित्ता नर्मसित्ता एवं वयासी-'सद्दहामि णं भंते ! णिग्गंथं पावयणं जाव से जहेयं तुब्भे वयह, जं णवरं देवाणुप्पिया ! अम्मापियरो आपुच्छामि, तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए जाव पव्वयामि ।' 'अहासुहं देवाणुप्पिए ? ' सूत्र १८ : काली नाम की उस कन्या ने अरिहंत पार्श्वनाथ का धर्मोपदेश सुनकर उसके मर्म को समझकर प्रसन्नचित्त हो उन्हें तीन बार यथाविधि वन्दना - नमस्कार किया । फिर वह बोली- “ भन्ते ! मैं निर्ग्रन्थ वचन पर श्रद्धा करती हूँ। आपने जो कहा है वह अक्षरशः सत्य है । हे देवानुप्रिय ! मैं अपने माता-पिता से अनुमति ले लेती हूँ और तब मैं आपके पास दीक्षा ग्रहण करूँगी।” भगवान ने कहा- " - "देवानुप्रिये ! जिसमें तुम्हें सुख मिले वही करो। " 5 18. Kali was pleased and satisfied to hear and grasp the meaning of the discourse. She offered salutations to Arhat Parshvanath three times and said, “Bhante! I have faith on the word of the Nirgranth (the Omniscient ). What you have said is the absolute truth. Beloved of gods! I would get permission from my parents and come back to get initiated in your order." Bhagavan replied, "Beloved of gods! Do as you please." सूत्र १९ : तए णं सा काली दारिया पासेणं अरहया पुरिसादाणीएणं एवं वृत्ता समाणी जाव हियया पासं अरहं वंदइ, नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरूह, दुरूहित्ता पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स अंतियाओ अंबसालवणाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव आमलकप्पा नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आमलकप्पं णयरिं मज्झमज्झेणं जेणेव बाहिरिया उवट्टाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियं जाणपवरं SECOND SECTION: DHARMA KATHA (355) For Private Personal Use Only फ Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फज ( ३५६ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ठवेइ, ठवित्ता धम्मियामो जाणण्पवराओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव अम्मापियरो तेणेव ) उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल जाव एवं वयासी सूत्र १९ : पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्वनाथ की यह बात सुन प्रसन्न व संतुष्ट हुई और उन्हें वन्दना करके अपने श्रेष्ठ यान पर सवार हो आम्रशालवन चैत्य से बाहर निकली। आमलकल्पा नगरी के बीच से होती हुई अपने घर के बाहर उपस्थानशाला में पहुँची और यान रुकवाकर नीचे ) उतरी। अपने माता-पिता के पास जा दोनों हाथ जोड़कर बोली 19. She was pleased and satisfied to hear this. She offered salutations to Arhat Parshvanath, boarded her chariot, and came out of the Amrashalvan. She crossed the city and reached the courtyard of her house. When the chariot stopped, she got down and went to her parents. After due greetings ) she said— सूत्र २० : ' एवं खलु अम्मयाओ ! मए पासस्स अरहओ अंतिए धम्मे णिसंते, सेवियणं ) धम्मे इच्छिए, पडिच्छिए, अभिरुइए, तए णं अहं अम्मयाओ ! संसारभउब्बिग्गा, भीया जम्मण - मरणाणं इच्छामि णं तुब्भेहिं अब्भणुन्नाया समाणी पासस्स अरहओ अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए । ' 'अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह ।' सूत्र २० : " हे माता-पिता ! मैंने अर्हत् पार्श्वनाथ का धर्मोपदेश सुना और बार-बार उस धर्म को स्वीकार करने की इच्छा मेरे मन में जागी है। वह धर्म मुझे रुचा है। अतः मैं संसार के भय से उद्विग्न हो गई हूँ और जन्म-मरण से भयभीत भी । मैं आपकी आज्ञा प्राप्त कर अर्हत् पार्श्वनाथ के निकट मुण्डित होकर, गृह त्यागकर अनगार बनना चाहती हूँ, दीक्षा लेना चाहती हूँ ।" माता-पिता ने स्वीकृति प्रदान की- “देवानुप्रिये ! जिसमें तुम्हें सुख मिले, वह निर्विलम्ब करो | " 20. “Father and mother! I have listened to the discourse of Arhat Parshvanath, I like his religion and time and again I feel the urge to embrace that religious path. Thus, I have become disturbed by the sorrows of the Oworld and afraid of the cycles of rebirth. I seek your permission to remove my hair, renounce family life, and become an ascetic by getting initiated into his order. " The parents gave their consent, "Beloved of gods! Do as you please ) without any delay.” सूत्र २१ : तए णं से काले गाहावई विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावे, उवक्खडावित्ता मित्त-णाइ-णियंग-सयण-संबंधि-परियणं आमंते, आमंतित्ता ततो पच्छा पहाए JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA ( 356 ) 品 For Private Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ज्ज्ज्ज्ज्ज ( ३५७ ) ) जाव विपुलेणं पुप्फवत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता तस्सेव मित्त-णाइ-णियग-सयणसंबंधि - परियणस्स पुरओ कालियं दारियं सेयापीएहिं कलसेहिं ण्हावेइ, हावित्ता सव्वालंकारविभूसियं करेइ, करित्ता पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं दुरूहेइ, दुरूहित्ता मित्त-णा - णियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धिं संपरिवुडा सव्वड्डीए, जाव रवेणं आमलकप्पं नयरिं मज्झमज्झेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता जेणेव अंबसालवणे चेइए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ) छत्ताईए तित्थगराइसए पासइ, पासित्ता सीयं ठवेइ, ठवित्ता कालियं दारियं सीयाओ पच्चोरुहेइ । तए णं कालिं दारियं अम्मापियरो पुरओ काउं जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए तेणेव ) उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वंदइ, नमंसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी द्वितीय श्रुतस्कंध धर्मकथा सूत्र २१ : काल गाथापति ने विपुल आहार सामग्री तैयार कर मित्रों, परिजनों आदि को निमंत्रण दिया। उनके आने पर आवश्यक कार्यों से निवृत्त हो विपुल पुष्प, वस्त्र, गंधादि से उसने ) अतिथियों का सत्कार-सन्मान किया। फिर उन सभी के सामने सोने-चाँदी के कलशों में भरे पानी से काली को स्नान करवाया और वस्त्रालंकारों से विभूषित किया। उसे पुरुषसहस्रवाहिनी पालकी पर बैठाकर मित्रों, स्वजनों आदि के साथ अपनी सम्पूर्ण ऋद्धि सहित गाजे-बाजे से आमलकल्पा नगरी के बीच में होते हुए आम्रशालवन की ओर प्रस्थान किया । वहाँ पहुँचकर तीर्थंकर के अतिशय देखे । पालकी रुकवाकर काली को नीचे उतारा और उसे आगे कर उसके माता-पिता पुरुषादानीय अर्ह (पार्श्वनाथ के निकट गये। उन्हें यथाविधि वन्दना - नमस्कार कर वे बोले 21. Citizen Kaal made arrangements for a great feast and invited all his family members, relatives, and friends. When they arrived he got ready after bathing (etc.) and greeted and honoured his guests by offering them flowers, dresses, perfumes, etc. In their presence he anointed Kali with water poured from gold and silver urns and got her properly dressed and adorned with Dornaments. He helped her into a Purisasahassa palanquin. Accompanied by Dall his guests, and with all due grandeur, and pomp and show, he moved through the city of Amalkalpa towards the Amrashalvan. When he reached there, he witnessed the divine signs associated with the Tirthankar. He then got Kali down from the palanquin and, keeping her in the lead, arrived near Arhat Parshvanath. After offering due obeisance, the parents submitted सूत्र २२ : 'एवं खलु देवाणुप्पिया ! काली दारिया अम्हं धूया इट्ठा कंता जाव किमंग पासणयाए ? एस णं देवाणुप्पिया ! संसार भउव्विग्गा इच्छइ देवाणुप्पियाणं अंति मुंडा भ २णं जाव पव्वइत्तए, तं एयं णं देवाणुप्पियाणं सिस्सिणीभिक्खं दलयामो, पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! 'सिस्सिणीभिक्खं ।' 'अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह ।' SECOND SECTION: DHARMA KATHA For Private Personal Use Only ( 357 ) Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र ( ३५८ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ड 15 सूत्र २२ : “देवानुप्रिय ! यह काली नाम की कन्या हमारी पुत्री है। यह हमें इष्ट, प्रिय आदि डा र है। यह संसार-भ्रमण के भय से उद्विग्न होकर आपके पास दीक्षा लेना चाहती है। अतः हम आपको डी 5 यह शिष्य-भिक्षा देते हैं। कृपया इसे स्वीकार करें।" “देवानुप्रिय ! जिसमें सुख मिले वह निर्विलम्ब करो।" 22. “Beloved of gods! This is our cherished, adored, (etc.) and beloved $ daughter Kali. She is disturbed by the fear of the cycles of rebirth and desires to get initiated into your order. Kindly accept her as a disciple- 9 donation from us." “Beloved of gods! Do as you please without any delay." सूत्र २३ : तए णं सा काली कुमारी पासं अरहं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता ही 15 उत्तरपुरत्थिमं दिसिभायं अवक्कामइ, अवक्कमित्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयइ, ओमुइत्ता टा र सयमेव लोयं करेइ, करित्ता जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता । 15 पासं अरहं तिक्खुत्तो वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-आलित्ते णं भंते ! लोए, एवं द र जहा देवाणंदा, जाव सयमेव पव्वावेउं। 15 सूत्र २३ : कालीकुमारी ने अर्हत् पार्श्व को वन्दना की और उत्तर-पूर्व दिशा में जाकर अपने ट र आभूषण आदि उतारे और स्वयं ही केश-लोच किया। फिर वह अर्हत् पार्श्व के पास लौटी और डा तीन बार वन्दन करके बोली-“भन्ते ! यह लोक धधक रहा है . . . . (भगवतीसूत्र में वर्णित ट्र देवानन्दा के कथन के समान)। अतः मेरा अनुरोध है कि आप स्वयं मुझे दीक्षा प्रदान करें।" र 23. Kali, then, formally offered salutations to Arhat Parshvanath. She Sl went in the northeastern direction and took off her ornaments, (etc.) and 5 pulled out her hair herself. After this, she returned to Arhat Parshvanath and after offering three salutations said, “Bhante! This world is burning fiercely in the fire of aging and death. . . . . . . . . (detailed description of the initiation is same as that of Devananda in Bhagavati Sutra) So I beg you to initiate me into your order." सूत्र २४ : तए णं पासे अरहा पुरिसादाणीए कालिं सयमेव पुप्फचूलाए अज्जाए दी IP सिस्सिणियत्ताए दलयति। र तए णं सा पुष्फचूला अज्जा कालिं कुमारि सयमेव पव्वावेइ, जाव उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। डा तए णं सा काली अज्जा जाया ईरियासमिया जाव गुत्तबंभयारिणी। तए णं सा काली अज्जाट र पुप्फचूला अज्जाए अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ, बहूणि चउत्थ जावडी र विहरइ। 15 (358) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA 2 Sinnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn) Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्य ( ३५९ ) डा मा द्वितीय श्रुतस्कंध : धर्मकथा 15 सूत्र २४ : अर्हत् पार्श्वनाथ ने स्वयं कालीकुमारी को आर्या पुष्पचूला को शिष्या के रूप में डा र प्रदान किया। 5 आर्या पुष्पचूला ने काली को दीक्षित किया और वह दीक्षा ग्रहण कर श्रमण जीवन बिताने डा र लगी। कालीकुमारी ईर्यासमिति आदि श्रमण गुणों से युक्त ब्रह्मचारिणी आर्या बन गई। आर्या डी र पुष्पचूला से उसने सामायिक सहित ग्यारह अंगों का अध्ययन किया तथा उपवास आदि अनेक टा प्रकार के तप करती जीवन बिताने लगी। 12 24. Arhat Parshvanath gave Kali Kumari as a disciple to Arya 2 Pushpachula. 15 Kali got formally initiated into the order by Arya Pushpachula and 5 commenced the ascetic life. She started following the Shraman conduct ? including Irya Samiti (discipline of movement) and became a celibate Arya. B With passage of time she acquired the knowledge of the eleven canons and 15 led a disciplined ascetic life doing a variety of penance. र सूत्र २५ : तए णं सा काली अज्जा अन्नया कयाइं सरीरवाउसिया जाया यावि होत्था, टे अभिक्खणं अभिक्खणं हत्थे धोवइ, पाए धोवइ, सीसं धोवइ, मुहं धोवइ, थणंतराइं धोवइ, र कक्खंतराणि धोवइ, गुझंतराइं धोवइ, जत्थ वि य णं ठाणं वा सेज्जं वा णिसीहियं वा चेएइ, टी तं पुवामेव अब्भुक्खेत्ता पच्छा आसयइ वा सयइ वा। 2 सूत्र २५ : कालान्तर में आर्या काली शरीरासक्त हो गई और बार-बार हाथ, पैर, सिर, मुख, टी 5 वक्ष, काँख और गुह्य-स्थान धोने लगी। अपने कायोत्सर्ग, सोने तथा स्वाध्याय करने के स्थानों के 5 उपयोग से पहले वहाँ जल छिड़कने लगी। R 25. Later Kali became more indulgent toward the beauty and adornment & 5 of her body. She would wash her limbs, head, face, breasts, armpits and l 5 genitals many times. Before standing, sleeping, meditating or studying she SI would sprinkle water over the ground she used for these activities. 15 सूत्र २६ : तए णं सा पुष्फचूला अज्जा कालिं अज्जं एवं वयासी-'नो खलु कप्पइ डा र देवाणुप्पिए ! समणीणं णिग्गंथीणं सरीरबाउसियाणं होत्तए, तुमं च णं देवाणुप्पिए, धी 5 सरीरबाउसिया जाया अभिक्खणं अभिक्खणं हत्थे धोवसि जाव आसयाहि वा सयाहि वा, त डा रे तुमं देवाणुप्पिए ! एयस्स ठाणस्स आलोएहि जाव पायच्छित्तं पडिवज्जाहि।' 15 सूत्र २६ : तब आर्या पुष्पचूला ने उससे कहा-“देवानुप्रिये ! श्रमणी-निर्ग्रन्थियों को शरीरासक्त डा 15 होना नहीं कल्पता। पर तुम वैसी हो गई हो और बार-बार शरीर को धोती हो और धरती पर जल SI र छिड़कती हो। अतः तुम इस पापस्थान की आलोचना करो और प्रायश्चित्त अंगीकार करो।" 15 SECOND SECTION : DHARMA KATHA ( 359 ) सा Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ज् ( ३६० ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र 26. Arya Pushpachula warned her, "Beloved of gods! we are Nirgranth Shramanis (Jain female ascetics) and we are not allowed to indulge in so much care of the body. But you are washing your limbs (etc.) again and again and sprinkling water over the ground. You have become indisciplined, and so you should condemn this state of disgraceful conduct and do the prescribed atonement." सूत्र २७ : तए णं सा काली अज्जा पुप्फचूलाए एयमट्टं नो आढाइ जाव तुसिणीया संचिट्ठा । सूत्र २७ : आर्या काली ने गुरुणी की यह बात स्वीकार नहीं की और मौन ही रही । 27. Arya Kali did not accept these instructions of her teacher and remained silent. सूत्र २८ : तए णं ताओ पुप्फचूलाओ अज्जाओ कालिं अज्जं अभिक्खणं अभिक्खणं हीलेंति, णिंदंति, खिंसंति, गरिहंति, अवमण्णंति, अभिक्खणं अभिक्खणं एयमहं निवारेंति । सूत्र २८ : इस पर आर्या पुष्पचूला सहित अन्य आर्याएँ उसकी अवहेलना करने लगीं, निन्दा करने लगीं, अवज्ञा करने लगीं, गर्हा करने लगीं, चिढ़ाने लगीं और बार-बार उसके इस निषिद्ध । कार्य में बाधा देने लगीं । 28. As a result of this, Arya Pushpachula and the other Sadhvis of the group started neglecting, criticizing, disregarding and disdaining her. They also tried to restrain her from indulging in prohibited activities. सूत्र २९ : तए णं तीसे कालीए अज्जाए समणीहिं णिग्गंथीहिं अभिक्खणं अभिक्खणं । हीलिज्जमाणीए जाव निवारिज्जमाणीए इमेयारूवे अज्झित्थिए जाव समुपज्जित्था - ' जया णं अहं अगारवासमज्झे वसित्था, तया णं अहं सयंवसा, जप्पभिई च णं अहं मुंडा भविता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, तप्पभिदं च णं अहं परवसा जाया, तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए । रयणीए जाव जलते पाडिक्कियं उवस्सयं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए' त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता कल्लं जाव जलते पाडिएक्कं उवस्सयं गिण्हइ, तत्थ णं अणिवारिया अणोहट्टिया ' सच्छंदमई अभिक्खणं अभिक्खणं हत्थे धोवइ, जाव आसयइ वा सयइ वा । सूत्र २९ इस व्यवहार से आर्या काली के मन में विचार उठा - "जब मैं गृहस्थ थी तब स्वाधीन थी। जब से मैंने दीक्षा अंगीकार की है तब से मैं पराधीन हो गई हूँ । अतः कल सूर्योदय होने पर अलग उपाश्रय (स्थान) ग्रहण करके रहना ही मेरे लिए अच्छा होगा ।" दूसरे दिन । प्रातःकाल उसने अपने निश्चय के अनुसार पृथक् उपाश्रय में रहना आरम्भ कर दिया। वहाँ कोई ' रोकने-टोकने वाला नहीं रहा इसलिए वह स्वच्छंद हो गई और अंगों को धोने आदि मनमाने कार्य जब-तब करने लगी। (360) Ha JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA For Private Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ‍ द्वितीय श्रुतस्कंध : धर्मकथा ( ३६१ ) 29. This treatment by other Sadhvis forced Kali to think, “When I was a house-holder I had my freedom. Since I got initiated I have lost my freedom. So it would be good for me to leave this group and shift to another abode tomorrow." She resolved to do accordingly and the first thing she did in the morning was to shift to another suitable abode. Living independently, she was free of any curbs and restraints. She became unrestrained in her excessive indulgence in the care of her body. सूत्र ३० : तए णं सा काली अज्जा पासत्था पासत्थविहारी, ओसण्णा ओसण्णविहारी, कुसीला कुसीलविहारी, अहाछंदा, अहाछंदविहारी, संसत्ता संसत्तविहारी, बहूणि वासाणि सामन्नपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेइ, झूसित्ता तीसं भत्ताइ अणसणाए छेएइ, छेदित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइय अप्पडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा चमरचंचाए रायहाणीए कालवडिंसए भवणे उववायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूतरिया अंगुलरस असंखेज्जाए भागमेत्ताए ओगाहणाए कालीदेवित्ताए उववन्ना । सूत्र ३० : धीरे-धीरे आर्या काली मन से शरीर के निकट रहने के कारण पार्श्वस्थ-विहारिणी (संयम से दूर ) हो गई; नियम- पालन में शिथिल होने के कारण अवसन्न- विहारिणी हो गई; अवगुणों में लिप्त होने के कारण कुशील -विहारिणी हो गई; मनमाना व्यवहार करने के कारण यथा-छंद - विहारिणी हो गई और गृहस्थादि से सम्पर्क- संसर्ग करने के कारण संसक्त-विहारिणी हो गई। इस प्रकार अनेक वर्षों तक श्रमण जीवन का पालन कर एक पक्ष की संलेखना द्वारा शरीर क्षीण कर आलोचना और प्रतिक्रमण किए बिना शरीर त्यागकर चमरचंचा नामक राजधानी में कालावतंसक विमान की उपपात सभा ( देवों के उत्पन्न होने का स्थान) में देवदूष्य वस्त्र से ढकी देवशय्या पर एक अंगुल के असंख्यातवें भाग की अवगाहना ( स्थान ग्रहण करना) द्वारा काली देवी के रूप में उत्पन्न हुई। 30. As she was inclined more towards her body she lost her discipline. As she stopped caring for the codes of conduct she also became lax in her ascetic conduct. Due to her indulgence in base activities she lost her grace. Due to her brazen behaviour she became a wayward woman. Her fondness for mundane physical pleasures made her overindulgent. In this manner she lived for a long time as an ascetic. In the end she observed the ultimate vow of fifteen days duration time and died without reviewing and atoning for her misconduct. She reincarnated as goddess Kali, occupying a mini-micro space equivalent to an infinitesimal part of the width of a finger on a divine cot covered with a divine cloth, in the Upapata Sabha (the hall where gods are born) of the vehicle named Kalavatansaka in the capital city named Chamarchancha. SECOND SECTION: DHARMA KATHA For Private Personal Use Only (361) Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ הצחיחיחיחיחיחיחיחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחית 卐ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्य (३६२ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डी सूत्र ३१ : तए णं सा काली देवी अहुणोववन्ना समाणी पंचविहाए पज्जत्तीए जहा सूरियाभो दी 2 जाव भासामणपज्जत्तीए। 15 सूत्र ३१ : उत्पन्न होने के पश्चात् वह क्षणमात्र में सूर्याभ देव के समान भाषा, मन आदि पाँच ड र पर्याप्तियों से युक्त हो गई। (पर्याप्ति = किसी कार्य करने की सम्पूर्ण क्षमता का होना।) 15 31. Within a second after her birth she fully acquired the five capacities of cl 2 speech, thought, etc. just like the Suryaabh goddess. 5 सूत्र ३२ : तए णं सा काली देवी चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव अण्णेसिं च बहूणं र कालवडेंसगभवणवासीणं असुरकुमाराणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं जाव विहरइ। एवं खलु डा 5 गोयमा ! कालीए देवीए सा दिव्या देविड्डी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे लद्धे पत्ते दी 15 अभिसमण्णागए। 15 सूत्र ३२ : तत्पश्चात् वह काली देवी चार हजार सामानिक देवों आदि (सूत्र ७) पर आधिपत्य 15 करती समय बिताने लगी। हे गौतम ! इस प्रकार काली देवी ने वह दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवधुति र और दिव्य देवानुभव प्राप्त किये हैं और उपभोग योग्य बनाये हैं। 15 32. After this that goddess commenced her divine life ruling over the four 2 thousand vehicle owning gods (etc. as in para 7). Gautam! This is how R goddess Kali acquired her divine capacities, divine aura, and divine 5 experience and made them useful to her. र सूत्र ३३ : कालीए णं भंते ! देवीए केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? 15 गोयमा ! अड्वाइज्जाइं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। 5 काली णं भंते ! देवी ताओ देवलोगाओ अणंतरं उववट्टित्ता कहिं गच्छिहिइ ? कहिं दी र उववज्जिहिइ ? 15 गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, जाव अंतं काहिइ। र सूत्र ३३ : गौतम स्वामी-“भन्ते ! काली देवी की कितने काल की स्थिति (आयु) कही गई 5 है?" र भगवान-“गौतम ! अढाई पल्योपम की।" "भन्ते ! काली देवी उस देवलोक के बाद च्यवन करके कहाँ उत्पन्न होगी।" 15 “गौतम ! महाविदेह में उत्पन्न होकर सिद्धि प्राप्त करेगी, दुःखों का अन्त करेगी।" 33. Gautam Swami, “Bhante! What is said to be the life-span of goddess 2 (Kali?" 12 (362) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA 卐nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - र द्वितीय श्रुतस्कंध : धर्मकथा 5 Bhagavan, “Gautam! It is two and a half Palyopam.” 2 “Bhante! Where will goddess Kali reincarnate on descending from hers divine abode?" "Gautam! She will reincarnate in the Mahavideh area and achieved 5 liberation ending her sorrows.” र सूत्र ३४ : एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं पढमवग्गस्स पढमज्झयणस्स अयमढे टा र पण्णत्ते त्ति बेमि ॥१४८॥ र सूत्र ३४ : हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा दी 15 है। जैसा मैंने सुना है वैसा ही तुमसे कहा है। र 34. Jambu! This is the meaning of the first chapter of the first section as ] 5 told by Shraman Bhagavan Mahavir. So I have heard and so I confirm. || पढमं अज्झयणं समत्तं ॥ ॥ प्रथम अध्ययन समाप्त॥ || END OF CHAPTER ONE || बीइयं अज्झयणं : राई द्वितीय अध्ययन : राजी SECOND CHAPTER : RAJI सूत्र ३५ : जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं पढमम्स वग्गस्स र पढमज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते बिइयस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं टा 15 जाव संपत्तेणं के अढे पण्णत्ते ? र सूत्र ३५ : जम्बू स्वामी ने प्रश्न किया-“भन्ते ! श्रमण भगवान महावीर ने दूसरे अध्ययन काट 15 क्या अर्थ कहा है ?" र 35. Jambu Swami asked, “Bhante! What is the meaning of the second 2 15 chapter as explained by Shraman Bhagavan Mahavir?” र सूत्र ३६ : एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णगरे, गुणसीलए चेइए, डा ( सामी समोसढे, परिसा णिग्गया जाव पज्जुवासइ। IC SECOND SECTION : DHARMA KATHA (363) टा Fennnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ UUUUUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् ( ३६४ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र | 15 सूत्र ३६ : हे जम्बू ! काल के उस भाग में राजगृह नगर में गुणशील नामक उद्यान में श्रमण डा र भगवान महावीर पधारे। परिषद् निकली तथा उनकी उपासना में लीन हो गई। 15 36. Jambu! During that period of time Shraman Bhagavan Mahavir 15 arrived in Rajagriha and stayed in the Gunashil Chaitya. A delegation of 12 citizens came and commenced his worship. 15 सूत्र ३७ : तेणं कालेणं तेणं समएणं राई देवी चमरचंचाए रायहाणीए एवं जहा काली डा 2 तहेव आगया, णट्टविहिं उवदंसेत्ता पडिगया। ‘भंते त्ति' भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइट 5 णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता पुव्वभवपुच्छा। र सूत्र ३७ : काल के उस भाग में राजी नामक देवी चमरचंचा राजधानी से काली देवी के समान ट 5 ही भगवान की सेवा में आई और नाट्यादि का प्रदर्शन कर लौट गई। गौतम स्वामी ने भगवान ड र महावीर से उसके पूर्व-भव के विषय में प्रश्न किया। 5 37. During that period of time, as did goddess Kali another goddess S 5 named Raji came from the capital city Chamarchancha, performed dances, ] etc. and returned. Gautam Swami asked Shraman Bhagavan Mahavir about a P her earlier births. 15 सूत्र ३८ : एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं आमलकप्पा णयरी, अंबसालवणे , र चेइए, जियसत्तू राया, राई गाहावई, राईसिरी भारिया, राई दारिया, पासस्स समोसरणं, राई द दारिया जहेव काली तहेव णिक्खंता तहेव सरीरबाउसिया, तं चेव सव्वं जाव अंतं काहिइ। 15 सूत्र ३८ : भगवान महावीर ने विस्तार से उसका वर्णन किया-“हे गौतम ! काल के उस भाग ड 15 में आमलकल्पा नगरी के बाहर आम्रशालवन था। वहाँ का राजा जितशत्रु था। वहाँ राजी नाम का ही र एक गाथापति था। जिसकी पत्नी का नाम राजश्री और पुत्री का नाम राजी था। एक बार अर्हत् द 5 पार्श्वनाथ वहाँ पधारे और राजी उन्हें वन्दन करने गई। फिर उसने दीक्षा ले ली, पर कुछ समय ड र वाद शरीर की शोभा में आसक्त हो गई। अन्ततः मृत्यु प्राप्त कर वह देवी बनी और भविष्य में 2 र महाविदेह में जन्म ले सिद्धि प्राप्त करेगी। (विस्तृत विवरण काली देवी के समान) ? 38. Shraman Bhagavan Mahavir narrated her story in details—“Gautam! During that period of time there was a garden named Amrashalvan outside 15 the city of Amalkalpa. The king of this city was Jitshatru. In the city lived a S citizen named Raji. The name of his wife was Rajshri and that of his daughter was Raji. Once Arhat Parshvanath arrived in the town and Raji went to pay him homage. Later she got initiated. After some time she got excessively concerned about her body. In the end she died and reincarnated 7 (364) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA I FinnAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAMy UUUUUU Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD) 2 द्वितीय श्रुतस्कंध : धर्मकथा ( ३६५ ) टा 15 as a goddess. In future she will reincarnate in the Mahavideh area and 9 ? achieve liberation. (Details same as goddess Kali). सूत्र ३९ : एवं खलु जंबू ! विइयज्झयणस्स निक्खेवओ। सूत्र ३९ : जम्बू ! द्वितीय अध्ययन का यह निक्षेप समझना चाहिए। 39. Jambu! This is the end of chapter two. ॥ बिइयं अज्झयणं समत्तं॥ ॥ द्वितीय अध्ययन समाप्त॥ II END OF CHAPTER TWO 11 तइयं अज्झयणं : रयणी तृतीय अध्ययन : रजनी THIRD CHAPTER : RAJNI सूत्र ४0 : जइ णं भंते ! तइयस्स उक्खेवओ समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं ड पढमस्स वग्गस्स बिइयज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, तइयस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं ही र भगवया महावीरेणं के अटे पण्णत्ते ? र सूत्र ४० : जम्बू स्वामी ने पूछा-"भन्ते ! श्रमण भगवान महावीर ने तीसरे अध्ययन का क्या र अर्थ कहा है?" 15 40. Jambu Swami asked, “Bhante! What is the meaning of the third S } chapter as explained by Shraman Bhagavan Mahavir?" 15 सूत्र ४१ : एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे, गुणसीलए चेइए, एवं ६ रजहेव राई तहेव रयणी वि। णवरं-आमलकप्पा णयरी, रयणी गाहावई, रयणसिरी भारिया, टे हरयणी दारिया, सेसं तहेव जाव अंते काहिइ। र सूत्र ४१ : सुधर्मा स्वामी ने उत्तर दिया-“जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह र नामक एक नगर था ?" आदि समस्त वृत्तान्त राजी देवी अथवा काली देवी के समान 15SECOND SECTION : DHARMA KATHA (365) C Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 2 ( ३६६ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 ही है-अन्तर यह है कि गाथापति का नाम रजनी, गाथापत्नी का नाम रजनीश्री और पुत्री का नाम दा र रजनी था। 15 41. Jambu! During that period of time Shraman Bhagavan Mahavir टा > arrived in Rajagriha and stayed in the Gunashil Chaitya. ... The story goes 2 exactly as in case of goddess Kali, the only difference being that the names of SI र the citizen, his wife and daughter were Rajni, Rajnishri, and Rajni S respectively. ॥ तइयं अज्झयणं समत्तं॥ ॥ तृतीय अध्ययन समाप्त। || END OF CHAPTER THREE || - चउत्थं अज्झयणं : विज्जू चतुर्थ अध्ययन : विद्युत् FOURTH CHAPTER : VIDYUT ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ट Currrrrrrr 5 सूत्र ४२ : एवं विज्जू वि। आमलकप्पा नयरी। विज्जू गाहावई, विज्जूसिरी भारिया, विज्जू दी र दारिया, सेसं तहेव। 15 सूत्र ४२ : विद्यतश्री का समस्त वृत्तान्त काली देवी के समान है। आमलकल्पा नगरी। ट र नामान्तर-गाथापति का नाम विद्युत्, गाथापत्नी का नाम विद्युतश्री और पुत्री का नाम विद्युत्। 5 42. The story goes exactly as in case of goddess Kali, the only difference 15 being that the names of the citizen, his wife and daughter were Vidyut, टा 115 Vidyutshri, and Vidyut respectively. ॥ चउत्थं अज्झयणं समत्तं॥ ॥ चतुर्थ अध्ययन समाप्त। 11 END OF CHAPTER FOUR IT 15 (366) JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SŪTRA AAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय श्रुतस्कंध : धर्मकथा पंचमं अज्झयणं : मेहा पंचम अध्ययन : मेघा FIFTH CHAPTER : MEGHA सूत्र ४३ : एवं मेहा वि । आमलकप्पाए नयरीए मेहे गाहावई, मेहसिरी भारिया, मेहा दारिया, सेसं तव । सूत्र ४३ : इसका समस्त वृत्तान्त काली देवी के समान । नामान्तर - गाथापति का नाम मेघ, गाथापत्नी का नाम मेघश्री पुत्री का नाम मेघा । " 43. The story goes exactly as in case of goddess Kali, the only difference being that the names of the citizen, his wife and daughter were Megh, Meghshri, and Megha respectively. ॥ पंचमं अज्झयणं समत्तं ॥ ॥ पंचम अध्ययन समाप्त ॥ || END OF CHAPTER FIVE || ॥ पढमं वग्गो समत्तो ॥ || END OF FIRST SECTION || SECOND SECTION: DHARMA KATHA ( ३६७ ) For Private Personal Use Only (367) 기 Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | बीओ वग्गो-द्वितीय वर्ग । SECOND SECTION पढम अज्झयणं : सुंभा प्रथम अध्ययन : शुभा FIRST CHAPTER : SHUMBHA __सूत्र ४४ : जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं-जाव दोच्चस्स वग्गस्स उक्खेवओ। __ सूत्र ४४ : जम्बू स्वामी “भन्ते ! श्रमण भगवान महावीर ने जब प्रथम वर्ग का उपरोक्त अर्थड र बताया है तो द्वितीय वर्ग का क्या अर्थ बताया है।" K 44. Jambu Swami, “Bhante! When this is the meaning of the first section 15 what is that of the second section as told by Shraman Bhagavan Mahavir." S र सूत्र ४५ . : एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं दोच्चस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा ट 15 पण्णत्ता, तं जहा-(१) सुंभा, (२) निसुंभा, (३) रंभा, (४) निरंभा, (५) मदणा। र सूत्र ४५ : सुधर्मा स्वामी-"जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने दूसरे वर्ग के पाँच अध्ययन ८ 15 बताये है-(१) शुंभा, (२) निशुंभा, (३) रंभा, (४) निरंभा, (५) मदना।" र 45. Jambu! According to Shraman Bhagavan Mahavir there are five ट 5 chapters in the second section-1. Shumbha, 2. Nishumbha, 3. Rambha, 4.C 15 Nirambha, and 5. Madana. र सूत्र ४६ : जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं दोच्चस्स वग्गस्स पंच ट 15 अज्झयणा पण्णत्ता, दोच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स पढमज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते ? र सूत्र ४६ : “भन्ते ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने द्वितीय वर्ग के पाँच अध्ययन बताये हैं तो दी 15 उसके प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?" र 46. Bhante! When Shraman Bhagavan Mahavir has said that second टा 5 section has five chapters, what has he explained about the first chapter? र सूत्र ४७ : एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे, गुणसीलए चेइए, टी 5 सामी समोसढे, परिसा निग्गया जाव पज्जुवासइ। र सूत्र ४७ : जम्बू ! काल के उस भाग में राजगृह नगर के गुणशील चैत्य में श्रमण भगवान 15 महावीर पधारे। परिषद् निकली तथा उपासना करने लगी। ट 5 (368) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA Annnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HUDAOURAULA र द्वितीय श्रुतस्कंध : धर्मकथा ( ३६९ ) 2 5 47. Jambu! During that period of time Shraman Bhagavan Mahavir Sil > arrived in Rajagriha and stayed in the Gunashil Chaitya. A delegation of S citizens came and commenced his worship. 5 सूत्र ४८ : तेणं कालेणं तेणं समएणं सुंभा देवी बलिचंचाए रायहाणीए सुंभवडेंसए भवणे डा र सुंभंसि सीहासणंसि विहरइ। कालीगमएणं जाव नट्टविहिं उवदंसेत्ता पडिगया। सूत्र ४८ : काल के उस भाग में शुंभा नामक देवी बलिचंचा नाम की राजधानी में शुभावतंसक ड र भवन में शुंभ नामक सिंहासन पर आसीन थी। शेष वर्णन काली देवी के समान। वह भगवान के र निकट नृत्यादि का प्रदर्शन कर लौट गई। 48. During that period of time the goddess named Shumbha was sitting on a throne named Shumbh in the Viman named Shumbhavatansak in the capital city named Balichancha. All other details are the same as in the case of goddess Kali. Goddess Shumbha appeared before Shraman Bhagavan Mahavir, performed dances, etc. and returned. सूत्र ४९ : पुव्वभवपुच्छा। सावत्थी नयरी, कोट्ठए चेइए, जियसत्तू राया, सुंभे गाहावई, र सुंभसिरी भारिया, सुंभा दारिया, सेसं जहा कालीए। णवरं-अद्भुट्ठाइं पलिओवमाइं ठिई। एवं खलु निक्खेवओ अज्झयणस्स। सूत्र ४९ : गौतम स्वामी के उसके पूर्व-भव के विषय में प्रश्न करने पर भगवान ने बतायार श्रावस्ती नाम की नगरी में कोष्ठक नामक चैत्य था। वहाँ जितशत्रु नामक राजा था। शुंभ नामक गाथापति वहाँ रहता था। उसकी पत्नी का नाम शुभश्री था तथा कन्या का नाम शुभा। शेष समस्त से वृत्तान्त काली देवी के समान है। विशेष यह है कि शुंभा देवी की आयु साढ़े तीन पल्योपम की है। जम्बू ! प्रथम अध्ययन का यही अर्थ है। 49. When Gautam Swami enquired about her earlier incarnation » Bhagavan said, “There was a Chaitya named Koshthak in the Shravasti city. 12 The ruler of that city was king Jitshatru. A citizen named Shumbh lived B there. The name of his wife was Shumbhshri and that of his daughter was ha. The rest of the details are exactly as those of goddess Kali, the only 15 difference being that the life-span of goddess Shumbha is three Palyopam. Jambu! This is the meaning of the first chapter. ॥ पढमं अज्झयणं समत्तं॥ ॥ प्रथम अध्ययन समाप्त॥ || END OF CHAPTER ONE || ''''''ת''תתתתתתרות " ''ת' 5 SECOND SECTION : DHARMA KATHA (369) Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnni Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ STANNATTUN र ( ३७०) A मण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्य ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा द्वितीय से पंचम अध्ययन CHAPTERS 2-5 सूत्र ५0 : एवं सेसा वि चत्तारि अज्झयणा। सावत्थीए। णवरं-माया पिता सरिसनामया। 5 सूत्र ५0 : शेष चारों अध्ययन प्रथमानुसार ही हैं। नगरी का नाम प्रत्येक में श्रावस्ती है तथा दा र माता-पिता के नाम समरूप हैं १. निशुंभा-निशुंभ, निशुंभश्री; २. रंभा-रंभ, रंभश्री; ३. निरंभा-दी 5 निरंभ, निरंभश्री। और ४. मदना-मदन, मदनश्री। र 50. These four chapters are same as the first one. The name of the city | 5 was Shravasti in each case. The names of the parents also follow the same rule : 2. Nishumbha-Nishumbh and Nishumbhshri, 3. Rambha-Rambh and Rambhshri, 4. Nirambha--Nirambh and Nirambhshri, and 5. MadanaMadan and Madanashri. ॥ बीओ वग्गो समत्तो ॥ ॥ द्वितीय वर्ग समाप्त ॥ || END OF SECOND SECTION IT जम 9 15. (370) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SUTRA Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | तइओ वग्गो-तृतीय वर्ग | THIRD SECTION पढम अज्झयणं : इला प्रथम अध्ययन : इला FIRST CHAPTER : ILA सूत्र ५१ : एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं तइअस्स वग्गस्स धी 5 चउप्पण्णं अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा-पढमे अज्झयणे जाव चउप्पण्णइमे अज्झयणे। र सूत्र ५१ : तृतीय वर्ग के सम्बन्ध में जम्बू स्वामी के प्रश्न के उत्तर में सुधर्मा स्वामी ने कहा15 "हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने तीसरे वर्ग के चौपन अध्ययन बताये हैं।" 12. 51. Answering the question of Jambu Swami regarding the third section 3 5 Sudharma Swami said, “Jambu! According to Shraman Bhagavan Mahavir 15 there are fifty four chapters in the third section." र सूत्र ५२ : जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं तइयस्स वग्गस्स चउप्पण्णं ट 12 अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते? डा र सूत्र ५२ : "भन्ते ! भगवान ने धर्मकथा के तृतीय वर्ग के चौपन अध्ययन कहे हैं तो प्रथम दा र अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?" 5 52. Bhante! what is the meaning of the first chapter therein? 2 सूत्र ५३ : एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे, गुणसीलए चेइए, टा 15 सामी समोसढे, परिसा णिग्गया जाव पज्जुवासइ।। र तेणं कालेणं तेणं समएणं इला देवी धारणीए रायहाणीए इलावतंसए भवणे इलंसि दा 5 सीहासणंसि, एवं कालीगमएणं जाव नट्टविहिं उवदंसेत्ता पडिगया। 5 सूत्र ५३ : हे जम्बू ! राजगृह नगर के गुणशील चैत्य में भगवान महावीर विराजमान थे। 12 काल के उस भाग में इला देवी धरणी नामक राजधानी में इलावतंसक भवन में इला नाम के ट 15 सिंहासन पर आसीन थी। शेष वर्णन काली देवी के समान। 2 53. Jambu! Shraman Bhagavan Mahavir was sitting in the Gunashil ] Chaitya in Rajagriha. B SECOND SECTION : DHARMA KATHA (371) टा Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७२) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा During that period of time the goddess named Ila was sitting on a throne B named Ila in the Viman named Ilavatansak in the capital city named a 5 Dharani. All other details being same as in case of Goddess Kali. र सूत्र ५४ : पुव्वभवपुच्छा। वाराणसीए णयरीए काममहावणे चेइए, इले गाहावई, इलसिरी टा 15 भारिया, इला दारिया, सेसं जहा कालीए। णवरं-धरणस्स अग्गमहिसित्ताए उववाओ, सातिरेगंड र अद्धपलिओवमं ठिई। सेसं तहेव। 15 सूत्र ५४ : उसके पूर्व-भव के विषय में भगवान ने बताया-वाराणसी नगरी के बाहर ड र काममहावन नामक चैत्य था। वाराणसी में इला गाथापति रहता था। उसकी पत्नी इलाश्री थी और ट 15पुत्री इला। शेष वृत्तान्त काली देवी के समान। विशेष यह कि इला धरणेन्द्र की अग्रमहिषी है और ड 12 उसकी आयु अर्द्ध पल्योपम से कुछ अधिक। 15 54. About her earlier incarnation Bhagavan said, “There was a Chaitya named Kamamahavan outside Varanasi city. A citizen named II lived there. 12 The name of his wife was Ilshri and that of his daughter was Ila. The rest of 2 Kthe details are exactly as those of Goddess Kali, the only difference being a 15 that Ila is the principal-queen of Dharanendra, and her life-span is a little 5 more than half Palyopam. सूत्र ५५ : एवं खलु . . . . निक्खेवओ पढमज्झयणस्स। र सूत्र ५५ : प्रथम अध्ययन का भगवान ने यही अर्थ बताया है। 55. Jambu! This is the meaning of the first chapter. ॥ पढम अज्झयणं समत्तं ॥ ॥ प्रथम अध्ययन समाप्त ॥ || END OF CHAPTER ONE || । (372) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA I innnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ P द्वितीय श्रुतस्कंध :धर्मकथा ( ३७३ ) दा पाण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण २-६ अज्झयणाणि २-६ अध्ययन CHAPTERS 2-6 इ सूत्र ५६ : एवं कमा सतेरा, सोयामणी, इंदा, घणा, विज्जुया वि; सव्वाओ एयाओ 5 धरणस्स अग्गमहिसीओ। 15 सूत्र ५६ : इसी क्रम से सतेरा, सौदामिनी, इन्द्रा, घना और विद्युता के पाँच अध्ययन हैं। ये ड सभी धरणेन्द्र की अग्रमहिषियाँ हैं। K 56. In this order the next five chapters are about the goddesses Satera, 15 Saudamini, Indra, Ghana, and Vidyuta. They all are the principal queens of 5Dharanendra. ॥२-६ अज्झयणाणि समत्तं ॥ ॥२-६ अध्ययन समाप्त ॥ || END OF CHAPTER 2-6 11 ७-१२ अज्झयणाणि ७-१२ अध्ययन CHAPTERS 7-12 सूत्र ५७ : एवं छ अज्झयणा वेणुदेवस्स वि अविसेसिया भाणियव्या। सूत्र ५७ : इसी प्रकार बिना किसी विशेषता के छह अध्ययन वेणु देव की अग्रमहिषियों के हैं। द 57. Similarly follow the next six chapters about the six principal queens of IPgod Venu. There are no changes except the names. ॥ ७-१२ अज्झयणाणि समत्तं॥ ॥ ७-१२ अध्ययन समाप्त ॥ || END OF CHAPTER 7-12 ।। [SECOND SECTION : DHARMA KATHA (373) टा Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७४ ) सूत्र ५८ : एवं जाव घोसस्स वि एए चेव छ-छ अज्झयणा । सूत्र ५८ : इसी प्रकार छह-छह अध्ययन हरि, अग्निशिखा पूर्ण, जलकान्त, अमितगति, वेलम्ब और घोष नाम के इन्द्रों की अग्रमहिषियों के हैं। १३-५४ अज्झयणाणि १३-५४ अध्ययन CHAPTERS 13-54 58. Similarly there are six chapters each for the principal queens of the Indras named Hari, Agnishikha, Purn, Jalakant, Amitgati, Velamb, and Ghosh. सूत्र ५९ : एवमेते दाहिणिल्लाणं इंदाणं चउप्पण्णं अज्झयणा भवंति । सव्वाओ वि वाणारसीए महाकामवणे चेइए सूत्र ५९ : इस प्रकार दक्षिण दिशा के इन्द्रों के चौपन अध्ययन हैं। इन सबकी कथा वाराणसी के महाकामवन चैत्य से ही आरम्भ होती है। भगवान ने तीसरे वर्ग का यही अर्थ कहा है। ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र 59. Thus there are fifty four chapters about the Indras of the south. All these stories start from the Mahakamavan of Varanasi. (374) This is the meaning of the third section as told by Shraman Bhagavan Mahavir. Ho ॥ १३-५४ अज्झयणाणि समत्तं ॥ ॥ १३-५४ अध्ययन समाप्त ॥ || END OF CHAPTER 2-611 ॥ तइअं वग्गो समत्तो ॥ ॥ तीसरा वर्ग समाप्त ॥ || END OF THIRD SECTION || JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वग्गो-चतुर्थ वर्ग पढमं अज्झयणं : रूया प्रथम अध्ययन रूपा FIRST CHAPTER : RUPA सूत्र ६० : एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं चउत्थस्स वग्गस्स चउप्पण्णं अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा - पढमे अज्झयणे जाव चउप्पण्णइमे अज्झयणे । FOURTH SECTION सूत्र ६० : चतुर्थ वर्ग के सम्बन्ध में जम्बू स्वामी के प्रश्न के उत्तर में सुधर्मा स्वामी ने कहा"जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने चौथे वर्ग के चौपन अध्ययन बताये हैं । " 60. Answering the question of Jambu Swami regarding the fourth section Sudharma Swami said, "Jambu! According to Shraman Bhagavan Mahavir there are fifty four chapters in the fourth section." सूत्र ६१ : पढमस्स अज्झयणस्स उक्खेवओ । एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव परिसा पज्जुवासइ । सूत्र ६२ : तेणं कालेणं तेणं समएणं रूया देवी, रूयाणंदा रायहाणी, रूयगवडिंस भवणे, रूयगंसि सीहासणंसि, जहा कालीए तहा; नवरं पुव्वभवे चंपाए पुण्णभद्दे चेइए; रूयगगाहावई, रूयगसिरी भारिया, रूया दारिया, सेसं तहेव । णवरं भूयाणंद - अग्गमहिसित्ताए उववाओ, देसूणं पलिओवमं ठिई। निक्खेवओ। सूत्र ६१-६२ : प्रथम अध्ययन का अर्थ पूछने पर सुधर्मा स्वामी ने बताया - जम्बू ! राजगृह नगर के गुणशील चैत्य में जब श्रमण भगवान विराजमान थे उसी समय रूपा देवी, रूपानन्दा राजधानी में रूपकावतंसक भवन में रूपक सिंहासन पर विराजमान थी । शेष समस्त वर्णन काली देवी के समान ही है। विशेषता यह है कि पूर्व-भव के कथानक में नगर का नाम चम्पा, चैत्य का नाम पूर्णभद्र, गाथापति का नाम रूपक, गाथापत्नी का नाम रूपकश्री और पुत्री का नाम रूपा था तथा मृत्यु के पश्चात् वह उत्तर दिशा के भूतानन्द नामक इन्द्र की अग्रमहिषी के रूप में जन्मी है जिसकी आयु कुछ कम एक पल्योपम है। श्रमण भगवान ने प्रथम अध्ययन का यही अर्थ कहा है । 61-62. On asking about the meaning of the first chapter Sudharma Swami said Jambu! Shraman Bhagavan Mahavir was sitting in the Gunashil SECOND SECTION: DHARMA KATHA (375) 5 Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७६ ) Chaitya in Rajagriha. At that time the goddess named Rupa was sitting on a throne named Rupak in the Viman named Rupakavatansak in the capital city named Rupananda. All other details are the same as in the case of Goddess Kali. The difference is that in the story of her earlier incarnation the name of the Chaitya was Purnabhadra outside Champa city, the name of the citizen was Rupak, the name of his wife was Rupakshri and that of his daughter was Rupa. After her death she reincarnated as a principal queen of Bhutanand, an Indra in the north direction. Her life-span is a little less than one Palyopam. This is the meaning of the first chapter. सूत्र ६३ : एवं सुरूया वि, रूयंसा वि, रूयगावई वि, रूयकंता वि रूयप्पभा वि । सूत्र ६३ : इसी प्रकार २ से ६ तक पाँच अध्ययन भूतानन्द नामक इन्द्र की शेष पाँच अग्रमहिषियों के हैं, जिनके नाम हैं- सुरूपा, रूपांशा, रूपवती, रूपकान्ता और रूपप्रभा । 63. In this order the next five chapters are about the goddesses Surupa, Rupansha, Rupavati, Rupakanta, and Rupaprabha. They all are the other five principal queens of Indra Bhutanand. ज्ज्ज्ज्फ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र सूत्र ६४ : एयाओ चेव उत्तरिल्लाणं इंदाणं भाणियव्याओ जाव ( वेणुदालिस्स हरिस्सहस्स अग्गमाणवस्स विसिट्ठस्स, जलप्पभस्स अमितवाहणस्स पभंजणस्स) महाघोसस्स । सूत्र ६४ : इसी प्रकार ७ से ५४ तक ४२ अध्ययन उत्तर दिशा के शेष आठ इन्द्रों की ६-६ अग्रमहिषियों के हैं, जिनके नाम हैं - वेणुदाली, हरिस्सह, अग्निमाणवक, विशिष्ट, जलप्रभ, अमितवाहन, प्रभंजन, तथा महाघोष । श्रमण भगवान ने चतुर्थ वर्ग का यही अर्थ कहा है । 64. Similarly there are forty eight chapters (7 - 54), six chapters each for the principal queens of remaining eight Indras of the north, named Venudali, Harissah, Agnimanavak, Vishishta, Jalaprabh, Amitvahan, Prabhanjan, and Mahaghosh. This is the meaning of the fourth section as told by Shraman Bhagavan Mahavir. ( 376 ) H ॥ उत्त्थो वग्गो समत्तो ॥ ॥ चतुर्थ वर्ग समाप्त ॥ || END OF FOURTH SECTION || JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA For Private Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वग्गो-पंचम वर्ग पढमं अज्झयणं : कमला प्रथम अध्ययन : कमला FIRST CHAPTER: KAMALA सूत्र ६५ : एवं खलु जंबू ! जाव बत्तीसं अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा कमला कमलप्पभा चेव, उप्पला य सुदंसणा । रूववई बहुरुवा, सुरूवा सुभगा विय ॥ १ ॥ पुण्णा बहुपुत्तिया चेव, उत्तमा भारिया विय। पउमा वसुमती चेव, कणगा कणगप्पा ॥ २ ॥ वडेंसा के उमइ चेव, वइरसेणा रइप्पिया । रोहिणी नवमिया चेव, हिरी पुप्फवती ति य ॥ ३ ॥ भुयगा भुयगवई चेव, महाकच्छाऽपराइया । सुघोसा विमला चेव, सुस्सरा य सरस्सई ॥४॥ FIFTH SECTION सूत्र ६५ : पंचम वर्ग के सम्बन्ध में जम्बू स्वामी के प्रश्न के उत्तर में सुधर्मा स्वामी ने बताया" हे जम्बू ! श्रमण भगवान ने पाँचवें वर्ग के बत्तीस अध्ययन बताये हैं। वे जिन देवियों के विषय में हैं उनके नाम हैं - (१) कमला, (२) कमलप्रभा (३) उत्पला, (४) सुदर्शना, (५) रूपवती, (६) बहुरूपा, (७) सुरूपा, (८) सुभगा, (९) पूर्णा, (१०) बहुपुत्रिका, (११) उत्तमा, (१२) भारिका, (१३) पद्मा, (१४) वसुमती, (१५) कनका, (१६) कनकप्रभा, (१७) अवतंसा, (१८) केतुमती, (१९) वज्रसेना, (२०) रतिप्रिया, (२१) रोहिणी, (२२) नवमिका, (२३) ह्री, (२४) पुष्पवती, (२५) भुजगा, (२६) भुजगवती, (२७) महाकच्छा, ( २८ ) अपराजिता, (२९) सुघोषा, (३०) विमला, (३१) सुस्वरा, (३२) सरस्वती।” 65. Answering the question of Jambu Swami regarding the fifth section Sudharma Swami said, "Jambu! According to Shraman Bhagavan Mahavir there are thirty two chapters in the fifth section. The names of the goddesses discussed in these are – ( 1 ) Kamala, (2) Kamalprabha, (3) Utpala, SECOND SECTION: DHARMA KATHA For Private Personal Use Only (377) Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ лулло प्रज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज २ ( ३७८ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 (4) Sudarshana, (5) Rupavati, (6) Bahurupa, (7) Surupa, (8) Subhaga, d 15 (9) Purna, (10) Bahuputrika, (11) Uttama, (12) Bharika, (13) Padma, ट P (14) Vasumati, (15) Kanaka, (16) Kanakprabha, (17) Avatamsa, 2 (18) Ketumati, (19) Vajrasena, (20) Ratipriya, (21) Rohini, (22) Navamika,S र (23) Hri, (24) Pushpavati, (25) Bhujaga, (26) Bhujagvati, (27) Mahakaccha, 15 (28) Aparajita, (29) Sughosha, (30) Vimala, (31) Suswara, and (32) Saraswati.” र सूत्र ६६ : एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव परिसाई 15 पज्जुवासइ। र सूत्र ६७ : तेणं कालेणं तेणं समएणं कमला देवी कमलाए रायहाणीए कमलवडेंसए भवणे ड 15 कमलंसि सीहासणंसि, सेसं जहा कालीए तहेव। नवरं-पुव्वभवे नागपुरे नयरे, सहसंबवणे टा र उज्जाणे, कमलस्स गाहावइस्स कमलसिरीए भारियाए कमला दारिया पासस्स अरहओ अंतिए | 15 निक्खंता, कालस्स पिसायकुमारिंदस्स अग्गमहिसी, अद्धपलिओवमं ठिई। र सूत्र ६६-७७ : जम्बू स्वामी के प्रश्न के उत्तर में सुधर्मा स्वामी ने प्रथम अध्ययन के सम्बन्ध में S 15 बताया-"जम्बू ! काल के उस भाग में राजगृह नगर में श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे। टी र उसी समय कमला नाम की देवी, कमला नाम की राजधानी में कमलावतंसक भवन में, कमल नाम टा र के सिंहासन पर आसीन थी। शेष समस्त घटना काली देवी के कथानक के समान ही है। विशेषता 15 यह है कि पूर्व-भव के वर्णन में नगर का नाम नागपुर, चैत्य का नाम सहस्राम्रवन, गाथापति का ट र नाम कमल, गाथापत्नी का नाम कमलश्री और पुत्री का नाम कमला था। मृत्यु-पर्यन्त कमला काल ड र नाम के पिशाचेन्द्र की अग्रमहिषी के रूप में जन्मी और उसकी आयु अर्ध पल्योपम की है। 5 66-67. On asking about the meaning of the first chapter Sudharma IP Swami said-Jambu! Shraman Bhagavan Mahavir was sitting in the St 15 Gunashil Chaitya in Rajagriha. At that time the goddess named Kamala was 15 sitting on a throne named Kamal in the Viman named Kamalavatansak in 15 the capital city named Kamala. All other details are the same as in the case 12 of Goddess Kali. The difference is that in the story of her earlier incarnations 5 the name of the Chaitya was Sahasramravan outside Nagapur city, the 15 name of the citizen was Kamal, the name of his wife was Kamalshri and that > of his daughter was Kamala. After her death she reincarnated as a principal र queen of Kaal, an Indra of the Pishach demigods. Her life-span is half SI P Palyopam. र सूत्र ६८ : एवं सेसा वि अज्झयणा दाहिणिल्लाणं वाणमंतरिंदाणं भाणियव्वाओ। सव्वाओ दा 5 नागपुरे सहसंबवणे उज्जाणे, माया-पिया धूया सरिसनामया, ठिई अद्धपलिओवमं। 6 (378) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA Fennnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn FUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUr vurus Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७९ ) दा र द्वितीय श्रुतस्कंध : धर्मकथा 15 सूत्र ६८ : इसी प्रकार शेष इकत्तीस अध्ययन दक्षिण दिशा के वाणव्यन्तर देवों की टी र अग्रमहिषियों के सम्बन्ध में हैं। कमलप्रभा आदि सभी ३१ देवियों ने पूर्व-भव में नागपुर में जन्म डा 5 लिया था, सहसाम्रवन में दीक्षा ली थी, उनके माता-पिता के नाम समरूप थे और उनकी आयु अर्ध टी र पल्योपम है। 5 68. Similarly the remaining thirty one chapters are about the principal टा » queens of the Indras of the Vanavyantar gods (a class of demigods) of the ci 2 south. All these thirty two goddesses in their earlier incarnations were SI 5 born in Nagapur, initiated in the Sahasramravan garden, the names of 5 their parents followed the same pattern, and their life spans are half palyopam. ॥ पंचमो वग्गो समत्तो ॥ ॥ पंचम वर्ग समाप्त ॥ II END OF FIFTH SECTION II Es. 15 SECOND SECTION : DHARMA KATHA ( 379 ) Fnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnni Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मागण्यगरपएएएएण्ज) भण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ड छट्टो वग्गो-षष्ठ वर्ग SIXTH SECTION १-३२ अध्ययन CHAPTERS 1-32 सूत्र ६९ : छट्ठो वि वग्गो पंचमवग्गसरिसो। णवरं महाकालिंदाणं उत्तरिल्लाणं इंदाणं डा अग्गमहिसीओ। र पुव्वभवे सागेयनयरे, उत्तरकुरु-उज्जाणे, माया-पिया धूया सरिसणामया। सेसं तं चेव। __ सूत्र ६९ : छठा वर्ग पाँचवें वर्ग के समान ही है। विशेषता यह है कि इसमें उत्तर दिशा के आठ इन्द्रों की बत्तीस अग्रमहिषियों के वर्णन हैं। ये सभी अपने पूर्व-भव में साकेत नगर में उत्पन्न ड रहुईं तथा उत्तरकुरु नामक उद्यान में दीक्षित हुईं। इन सभी के माता-पिताओं के नाम इसके नामों के 15समरूप थे। शेष सभी वर्णन पूर्ववत् है। र 69. The sixth section is just like the fifth section the only difference being 5 that it discusses the thirty two principal queens of the eight Indras of the north. In their earlier incarnations they all were born in the Saket city, were initiated in the Uttarkuru garden, and the names of their parents followed the same pattern. All other details are as already mentioned. ॥ छट्ठो वग्गो समत्तो ॥ ॥ षष्ठ वर्ग समाप्त ॥ || END OF SIXTH SECTION || (380) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA ? FnnnnnnnAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA' Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्प सत्तमो वग्गो-सप्तम वर्ग | SEVENTH SECTION ज्ज १-४ अध्ययन CHAPTERS 1-4 र सूत्र ७0 : एवं खलु जंबू ! जाव चत्तारि अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा-सूरप्पभा, आयवा, 15अच्चिमाली, पभंकरा। र सूत्र ७0 : जम्बू स्वामी के सप्तम वर्ग के विषय में प्रश्न करने पर सुधर्मा स्वामी ने द बताया-“हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने सातवें वर्ग के चार अध्ययन बताये हैं- S (१) सूर्यप्रभा, (२) आतपा, (३) अर्चिमाली, और (४) प्रभंकरा।" 15 70. Answering the question of Jambu Swami regarding the seventh IPsection Sudharma Swami said, "Jambu! According to Shraman Bhagavan 5Mahavir there are four chapters in the seventh section—(1) Suryaprabha, 5(2) Atapa, (3) Archimali, and (4) Prabhankara." र सूत्र ७१ : एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव परिसा पज्जुवासइ। 5 सूत्र ७१ : प्रथम अध्ययन के विषय में प्रश्न करने पर सुधर्मा स्वामी ने कहा-“हे जम्बू ! काल के उस भाग में श्रमण भगवान महावीर राजगृह में विराजमान थे तथा लोग उनकी उपासना कर रहे थे।" 2 71. On asking about the meaning of the first chapter Sudharma Swami Ksaid-Jambu! During that period of time Shraman Bhagavan Mahavir was 5in Rajagriha and people were doing his worship. र सूत्र ७२ : तेणं कालेणं तेणं समएणं सूरप्पभा देवी सूरंसि विमाणंसि सूरप्पभंसि सीहासणंसि, सेसं जहा कालीए तहा, णवरं पुव्वभवो अरक्खुरीए नयरीए सूरप्पभस्स गाहावइस्स सूरसिरीए भारियाए सूरप्पभा दारिया। सूरस्स अग्गमहिसी, ठिई अद्धपलिओवमं पंचहिं वाससएहिं अब्भहियं। सेसं जहा कालीए। एवं सेसाओ वि सव्वाओ अरक्खुरीए नयरीए। ND SECTION : DHARMA KATHA (381) FinnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnAAAE Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 ( ३८२ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र Sil र सूत्र ७२ : काल के उस भाग में सूर्यप्रभा देवी सूर्य विमान में सूर्यप्रभ सिंहासन पर आसीन थी। दी शेष समस्त विवरण काली देवी के समान ही है। विशेषता यह है कि इस देवी के पूर्व-भव के वर्णन डा 5 में नगर का नाम-अरक्खुरी नगरी, गाथापति का नाम सूर्याभ, गाथापत्नी का नाम सूर्यश्री और पुत्री र का नाम सूर्यप्रभा था। मृत्यु के पश्चात् वह सूर्य नाम के ज्योतिष्क इन्द्र की अग्रमहिषी के रूप में डा 15 जन्मी। उसकी आयु पाँच सौ वर्ष अधिक आधे पल्योपम की है। र इसी प्रकार शेष तीनों देवियों का वृत्तान्त भी अरक्खुरी नगरी में आरम्भ होता है और समान है। डा 5 72. During that period of time the goddess named Suryaprabha was sitting on a throne named Suryaprabh in the Viman named Surya. All other B details are same as in the case of Goddess Kali. The difference is that in the S 5 story of her earlier incarnation the name of the city was Arakkhuri, the name of the citizen was Suryaabh, the name of his wife was Suryashri and 2 that of his daughter was Suryaprabha. After her death she reincarnated as a < B principal queen of Surya, a Jyotishka Indra (a class of gods who are radiant). S Her life-span is half Palyopam and five hundred years. The details about the remaining three goddesses are also same and start in the Arakkhuri city. UUUUUUUUUUUUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ए ॥ सत्तमो वग्गो समत्तो ॥ ॥ सातवाँ वर्ग समाप्त ॥ I END OF SEVENTH SECTION II 15 (382) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA HAAAAAAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnnny Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टमो वग्गो - अष्टम वर्ग १-४ अध्ययन CHAPTERS 1-4 सूत्र ७३ : एवं खलु जंबू ! जाव चत्तारि अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा - ( १ ) चंदप्पा, (२) दोसिणाभा, (३) अच्चिमाली, (४) पभंकरा । EIGHTH SECTION सूत्र ७३ : जम्बू स्वामी के आठवें वर्ग के विषय में प्रश्न करने पर सुधर्मा स्वामी ने बताया" हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने आठवें वर्ग के चार अध्ययन बताये हैं - ( १ ) चन्द्रप्रभा, (२) ज्योत्स्नाभा, (३) अर्चिमाली, और (४) प्रभंकरा । " 73. Answering the question of Jambu Swami regarding the eighth section Sudharma Swami said, "Jambu! According to Shraman Bhagavan Mahavir there are four chapters in the eighth section-(1) Chandraprabha, (2) Jyotsanabha, ( 3 ) Archimali, and (4) Prabhankara." सूत्र ७४ : एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं, जाव परिसा पज्जुवासइ । सूत्र ७४ : प्रथम अध्ययन के विषय में प्रश्न करने पर सुधर्मा स्वामी ने कहा - " हे जम्बू ! काल के उस भाग में श्रमण भगवान महावीर राजगृह में विराजमान थे तथा लोग उनकी उपासना में लगे थे।” 74. On asking about the meaning of the first chapter Sudharma Swami said Jambu! During that period of time Shraman Bhagavan Mahavir was in Rajagriha and people were doing his worship. सूत्र ७५ : तेणं कालेणं तेणं समएणं चंदप्पभा देवी चंदप्पभंसि विमाणंसि चंदप्पभंसि सीहासणंसि, सेसं जहा कालीए । णवरं पुव्वभवे महुराए णयरीए चंदवडेंसए उज्जाणे, चंदप्पभ गाहावई, चंदसिरी भारिया, चंदप्पभा दारिया, चंदस्स अग्गमहिसी, ठिई अद्धपलिओ मं पण्णासाए वाससाहस्सेहिं अब्भहियं । 点 एवं सेसाओ वि महुराए णयरी, माया-पियरो वि धूया - सरिसमाणा । सूत्र ७५ : काल के उस भाग में चन्द्रप्रभा देवी चन्द्रप्रभ विमान में चन्द्रप्रभा सिंहासन पर आसीन थी। शेष समस्त विवरण काली देवी के समान ही है। विशेषता यह है कि पूर्व-भव के वर्णन SECOND SECTION: DHARMA KATHA (383) For Private Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३८४ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र में नगर का नाम मथुरा, उद्यान का नाम चन्द्रावतंसक, गाथापति का नाम चन्द्रप्रभ, गाथापली का नाम चन्द्रश्री और पुत्री का नाम चन्द्रप्रभा था । मृत्यु के पश्चात् वह चन्द्र नाम के ज्योतिष्क इन्द्र की अग्रमहिषी के रूप में जन्मी । उसकी आयु पचास हजार वर्ष अधिक अर्ध पल्योपम की है। शेष तीनों देवियों का वृत्तान्त भी मथुरा नगरी से आरम्भ होता है और समान है। 75. During that period of time the goddess named Chandraprabha was sitting on a throne named Chandraprabha in the Viman named Chandraprabh. All other details are the same as in the case of Goddess Kali. The difference is that in the story of her earlier incarnation the name of the city was Mathura, the name of the garden was Chandravatansak, the name of the citizen was Chandraprabh, the name of his wife was Chandrashri and that of his daughter was Chandraprabha. After her death she reincarnated as a principal queen of Chandra, a Jyotishka Indra. Her life-span is half Palyopam and fifty thousand years. The details about the remaining three goddesses are also same and start in the Mathura city. (384) फ ॥ अमो वग्गो समत्तो ॥ ॥ आठवाँ वर्ग समाप्त ॥ || END OF EIGHTH SECTION || * JNĀTĀ DHARMA KATHÄNGA SŪTRA Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FANARAAAAAAAAAAAAAAAAADDDDDD भए | नवमो वग्गो-नवम वर्ग NINTH SECTIONS १-८ अध्ययन CHAPTERS 1-8 सूत्र ७६ : एवं खलु जम्बू ! जाव अट्ठ अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा-(१) पउमा, (२)दा 12 सिवा, (३) सती, (४) अंजू, (५) रोहिणी, (६) णवमिया, (७) अचला, (८) अच्छरा। 15 सूत्र ७६ : जम्बू स्वामी के आठवें वर्ग के विषय में प्रश्न करने पर सुधर्मा स्वामी ने बताया-दा र “हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने नवें वर्ग के आठ अध्ययन बताये हैं-(१) पद्मा, (२) शिवा, 5 (३) सती, (४) अंजू, (५) रोहिणी, (६) नवमिका, (७) अचला, और (८) अप्सरा। 2 76. Answering the question of Jambu Swami regarding the ninth section 5 Sudharma Swami said, “Jambu! According to Shraman Bhagavan Mahavir 15 there are eight chapters in the ninth section—(1) Padma, (2) Shiva, (3) Sati, 12 (4) Anju, (5) Rohini, (6) Navamika, (7) Achala, and (8) Apsara.” सूत्र ७७ : एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं। जाव परिसादा र पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं पउमावई देवी सोहम्मे कप्पे पउमवडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए, डा 5 पउमंसि सीहासणंसि, जहा कालीए। र एवं अट्ठ वि अज्झयणा काली-गमएणं नायव्वा। नवरं-सावत्थीए दो जणीओ, हत्थिणाउरे दो टै 5 जणीओ, कंपिल्लपुरे दो जणीओ, सागेयनयरे दो जणीओ, पउमे पियरो, विजया मायराओ।दा र सव्वाओ वि पासस्स अंतिए पव्वइयाओ, सक्कस्स अग्गमहिसीओ, ठिई सत्त पलिओवमाई,टी 5 महाविदेहे वासे अंतं काहिति। सूत्र ७७ : प्रथम अध्ययन के विषय में पूछने पर सुधर्मा स्वामी ने कहा-“हे जम्बू ! काल केट 15 उस भाग में श्रमण भगवान महावीर राजगृह में विराजमान थे तथा लोग उनकी उपासना में डी र लगे थे।" ___ उस समय पद्मावती देवी सौधर्म कल्प में पद्मावतंसक विमान में, सुधर्मा सभा में पद्म नाम के ड सिंहासन पर आसीन थी। शेष समस्त विवरण काली देवी के समान ही है। 15 SECOND SECTION : DHARMA KATHA. ( 385) टा EAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnA SAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn VuuuuuuuuuuuuuUUUUUU Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ חחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחח! ( ३८६) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र का 15 इस सभी आठों देवियों का वर्णन भी काली देवी के समान ही है। विशेषता यह है कि पूर्व-भव डा र के वर्णन में इनमें से दो-दो श्रावस्ती, हस्तिनापुर, काम्पिल्यपुर और साकेत नगरों में जन्मी थी। सभी ड 5 के माता-पिता के नाम विजया और पद्म थे। सभी अर्हत् पार्श्व के पास दीक्षित हुई थीं। सभी शक्रेन्द्र दी २ की अग्रमहिषियाँ बनीं और सभी की आयु सात पल्योपम की है। 5 77. On asking about the meaning of the first chapter Sudharma Swami said-Jambu! During that period of time Shraman Bhagavan Mahavir was S R in Rajagriha and people were doing his worship. 5 At that time the goddess named Padmavati was sitting on a throne » named Padma in the Sudharma assembly in the Viman named S P Padmavatansak in the Saudharm Kalp (dimension of gods). All other details 5 are the same as in the case of Goddess Kali. The details about all these eight goddesses are the same as those concerning goddess Kali. The difference is that in the stories of their earlier 5 incarnations, two each were born in the cities-Shravasti, Hastinapur, 5 Kampilyapur, and Saket. The names of the parents of all these were Vijaya l 5 and Padma. They all were initiated by Arhat Parshva. They all reincarnated 2 as the principal queens of Shakrendra and their life-spans are seven र Palyopams each. UUUUUUUUUUUUUUUUUUUUU ॥ नवमो वग्गो समत्तो ॥ ।। नवम वर्ग समाप्त॥ || END OF NINTH SECTION || 15 (386) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪ yinnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमो वग्गो-दशम वर्ग TENTH SECTION १-८ अध्ययन CHAPTERS 1-8 सूत्र ७८ : एवं खलु जंबू ! जाव अट्ठ अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा कण्हा य कण्हराई, रामा तह रामरक्खिया वसु या। वसुगुत्ता वसुमित्ता, वसुंधरा चेव ईसाणे॥१॥ 5 सूत्र ७८ : जम्बू स्वामी के दसवें वर्ग के विषय में प्रश्न करने पर सुधर्मा स्वामी ने दे 15 बताया- "जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने दसवें वर्ग के आठ अध्ययन बताये हैं-(१) कृष्णा, डा र (२) कृष्णराजि, (३) रामा, (४) रामरक्षिता, (५) वसु, (६) वसुगुप्ता, (७) वसुमित्रा, और दे 15 (८) वसुन्धरा।" 5 78. Answering the question of Jambu Swami regarding the tenth section 15 Sudharma Swami said, “Jambu! According to Shraman Bhagavan Mahavir 15 there are eight chapters in the tenth section-(1) Krishna, (2) Krishnaraji, S 12 (3) Rama, (4) Ramarakshita, (5) Vasu, (6) Vasugupta, (7) Vasumitra, and B (8) Vasundhara." र सूत्र ७९ : एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं, जाव परिसा | 15 पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं कण्हा देवी ईसाणे कप्पे कण्हवडेंसए विमाणे, सभाए सुहम्माए, टा 15 कण्हंसि सीहासणंसि, सेसं जहा कालीए। एवं अट्ठ वि अज्झयणा कालीगमएणं णेयव्या। णवरं-पुव्वभवे वाणारसीए णयरीए दो टा जणीओ, रायगिहे णयरे दो जणीओ, सावत्थीए णयरीए दो जणीओ, कोसंबीए नयरीए दोडा र जणीओ। रामे पिया, धम्मा माया। सव्वाओ वि पासस्स अरहओ अंतिए पव्वइयाओ। पुष्फचूलाए टा र अज्जाए सिस्सिणीयत्ताए, ईसाणस्स अग्गमहिसीओ, ठिई णव पलिओवमाइं, महाविदेहे वासेडा 15 सिज्झिहिंति, बुज्झिहिंति, मुच्चिहिंति, सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति। र एवं खलु जंबू ! निक्खेवओ दसमवग्गस्स। B SECOND SECTION : DHARMA KATHA ( 387) Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AAAAAAAAAAAAAAA जा ( ३८८ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 सूत्र ७९ : प्रथम अध्ययन के विषय में प्रश्न करने पर सुधर्मा स्वामी ने बताया-“हे जम्बू ! दी र काल के उस भाग में श्रमण भगवान महावीर राजगृह नगर में विराजमान थे और लोग उनकी डी 5 उपासना में लगे थे।" र उसी समय कृष्णा देवी ईशान कल्प में कृष्णावतंसक विमान में, सुधर्मा सभा में कृष्ण सिंहासन SI 15 पर आसीन थी। शेष समस्त विवरण काली देवी के समान ही है। आठों देवियों के वर्णन भी काली ट 15 के समान ही हैं। विशेषता यह है कि पूर्व-भव में इनमें से दो-दो बनारस, राजगृह, श्रावस्ती और डी र कौशाम्बी में जन्मी थीं। सभी के माता-पिता के नाम धर्मा और राम थे। सभी अर्हत् पार्श्व के निकट । 15 दीक्षित हुईं थीं। सभी आर्या पुष्पचूला की शिष्याएँ बनी थीं। सभी ईशानेन्द्र की अग्रमहिषियाँ बनी दा Pऔर सभी की आयु नौ पल्योपम है। 5 79. On asking about the meaning of the first chapter Sudharma Swami ” said Jambu! During that period of time Shraman Bhagavan Mahavir was Si Bin Rajagriha and people were doing his worship. 5 At that time the goddess named Krishna was sitting on a throne named Krishna in the Sudharma assembly in the Viman named Krishnavatansak in the Ishan Kalp (dimension of gods). The other details about all these eight goddesses are the same as those conerning goddess Kali. The difference is that in the stories of their earlier incarnations two each were born in the Scities-Varanasi, Rajagriha, Shravasti, and Kaushambi. The names of the 2 parents of all these were Dharma and Rama. They all were initiated by Arhat Parshva and became disciples of Arya Pushpachula. They all 5 reincarnated as the principal queens of Ishanendra and their life-spans are nine Palyopams each. ॥ दसमो वग्गो समत्तो ॥ ॥ दसवाँ वर्ग समाप्त ॥ 11 END OF TENTH SECTION 1 5 (388) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ( ३८९ ) दा DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDESI र द्वितीय श्रुतस्कंध : धर्मकथा 15 उपसंहार 5 सूत्र ८0 : एवं खलु जम्बू ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं सयंसंबद्धण | पुरिसुत्तमेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं अयमढे पण्णत्ते। 5 सूत्र ८0 : हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथा नामक इस द्वितीय श्रुतस्कन्ध का यह अर्थ कहा है। 15 CONCLUSION 80. Jambu This is the meaning of the second part known as Dharmakatha 5 as told by Shraman Bhagavan Mahavir. ॥ धम्मकहासुयक्खंधो समत्तो दसहिं वग्गेहिं ॥ ॥ द्वितीय श्रुतस्कन्ध-धर्मकथा समाप्त ॥ || END OF THE SECOND PART - DHARMAKATHA 11 ॥ णायाधम्मकहाओ समत्ताओ ॥ ॥ ज्ञाताधर्मकथांग समाप्त ॥ || END OF JNATA DHARMAKATHA II 15SECOND SECTION : DHARMA KATHA (389) FinnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnA Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिलजलाMEE MUUUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण उपसंहार द्वितीय श्रुतस्कन्ध में मूलतः एक ही विषय की चर्चा है। मोक्षमार्ग पर आचार-शैथिल्य एक बाधा ट र स्वरूप है। पुण्योपार्जन मोक्ष की ओर नहीं ऋद्धि की ओर ले जाता है। किन्तु पापकर्मों के क्षय के ड र कारण यदि आत्मा ने अपेक्षाकृत विशुद्धि प्राप्त करली है तो अगले भव में सम्पूर्ण कर्मक्षय कर ट 15 मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। CONCLUSION The second part has just one theme. On the spiritual path laxness in 2 conduct is a hurdle. Acquiring good karmas does not lead to liberation but to a the acquisition of power and glory. However, if the soul has shed bad karmas and attained comparatively greater purity it can shed all the remaining 15 Karmas and attain liberation during the next birth. परिशिष्ट __ पज्जत्तीए-पर्याप्ति-शरीर, अंग, अथवा योग्यता का सम्पूर्ण विकास; किसी कार्य को करने की सम्पूर्ण ट 15 क्षमता का होना। मनुष्य से संबंधी छह कहीं गई हैं-१. आहार पर्याप्ति, २. शरीर पर्याप्ति, ३. इन्द्रिय पर्याप्ति, ड २४. श्वासोच्छवास पर्याप्ति, ५. भाषा पर्याप्ति, तथा ६. मन पर्याप्ति। मनुष्यों में पर्याप्तियाँ क्रमशः विकसित होती हैं और इस विकास-क्रम में यथेष्ट समय लगता है। देवों में ये पर्याप्तियाँ होती तो क्रमशः ही हैं किन्तु समय का डा र अन्तराल क्षण मात्र ही होता है। अंतिम दोनों पर्याप्तियाँ देवों में एक साथ होती हैं अतः देवों में पर्याप्तियों की ट 15 संख्या पाँच कही है। र श्रावस्ती-अठारहवीं शती के जैन यात्रियों के अनुसार अयोध्या के निकट कोना ग्राम ही कभी श्रावस्ती था। ए एक यात्री ने श्रावस्ती का दरियाबाद से साठ मील होना बताया है। वर्तमान में अयोध्या से उत्तर में बलराम स्टेशन 15 से बारह मील अकोना ग्राम है। वही प्राचीन कोना है। इससे पांच मील दूर सहेत-महेत का किला है। आजकल इसे 15 ही श्रावस्ती माना जाता है। तीर्थकल्प में लिखा है कि श्रावस्ती का वर्तमान नाम महेठी है। महेठी सहेत-महेत के र निकट है। ये खंडहर गोंडा जिले में है और कुछ राप्ती नदी के दक्षिण में है जो बहराइच जिले में पड़ते हैं। 51 र कनिंघम ने भी सहेत-महेत को ही श्रावस्ती माना है । 15 साकेतपुरी-प्राचीन कौशल जनपद की राजधानी। इसका प्रचलित नाम अयोध्या भी है। आचार्य हेमचन्द्र ने र इसका एक अन्य नाम कोशला भी बताया है। 5 (390) JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SŪTRAS Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TurTvUrvuoi र द्वितीय श्रुतस्कंध : धर्मकथा (389) 15 कौशाम्बी-जिनप्रभ सूरि ने यमुना के किनारे पर बसी कौशम्बी नगरी का उल्लेख किया है। यमुना के किनारे की २ वर्तमान में कोसमई तथा कोसमखिराज नाम से दो गांव हैं। उन्हें ही कौशाम्बी कहा जाता है। फाह्यान ने भी टा ( कौशाम्बी को यहीं स्थित होना बताया है। अठारहवीं सदी के जैन यात्रियों ने इसे मउ ग्राम-कौशाम्बी लिखा है। मउ । 15 ग्राम व कौशाम्बी में लगभग अठारह मील की दूरी है। मऊ नाम के अनेक ग्राम है। पर यह सालक-मउ है तथा टा 15 शाहजादपुर से छ: मील दक्षिण में हैं। इस हिसाब से यह कोसम इलाहाबाद से लगभग अस्सी मील दूर है। Evvvvvvvvvvvvvvv APPENDIX Paryapti-Fully developed organs or faculties or capacities or abilities of living beings. Si In case of human beings they are said to be six in number-1. Intake and digestion of food, 2. ? Anatomy, 3. Sense organs, 4. Breathing, 5. Speech, 6. Mind. 2 The complete development of all these six is a gradual process in case of human beings and it takes a considerable time to reach perfection. However, in case of gods although the process is gradual but the time taken is only seconds. Also, the last two Paryaptis come K together, as such, for gods only five Paryaptis have been mentioned. Shravasti-According to the eighteenth-century Jain pilgrims the Kona village near C 5 Ayodhya is the Shravasti of the past. One pilgrim states that Shravasti is about sixty miles 5 distant from Dariyabad. At present there is a village named Akona north of Ayodhya and 12 5 miles away from Balram railway station; this is the ancient Kona. Five miles away from C 5 Akona are the ruins of Sahet-Mahet fort. Nowadays this is believed to be Shravasti. It is mentioned in Tirthakalp that the modern name of Shravasti is Mahethi. It appears that 5 Sahet-Mahet is this Mahethi. Some of these ruins are in district Gonda and others are south 15 of Rapti river in district Baharaich. Cunningham has also accepted Sahet-Mahet as Shravasti. Saketpuri-This was the Capital city of ancient Koshal state. Its popular name is » Ayodhya. According to Acharya Hemchandra it was also known as Koshala. Kaushambi—Jinprabhsuri has mentioned that Kaushambi was located on the banks of the river Jamuna. At present there are two villages on the banks of the Jamuna--Kosmai and Kosamkhiraj-that are believed to be the ancient Kaushambi. Fahyan also indicates that Kaushambi was somewhere in the same location. The eighteenth century Jain pilgrims 2 mention it as Maugram-Kaushambi. The distance between Maugram and Kaushambi is said 2 to be 18 miles. There are many villages named Mau but this particular one is Salak-Mau R and is 6 miles south of Shahajadpur. Accordingly Kosam (Kaushambi) is about 80 miles away from Allahabad. با کنارا اسرار الأرنا اور ای ن ا رنا 115 SECOND SECTION : DHARMA KATHA (391) Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क ( ३९२) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हमारे महत्त्वपूर्ण प्रकाशन रु.500 US $40 १. सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र (भगवान महावीर की अन्तिम वाणी : मूल प्राकृत पाठ हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद सहित तथा ४८ रंगीन चित्र) रु.500 US $40 रु. 425 US $ 37 - रु. 200 US $ 20 २. सचित्र कल्पसूत्र (मूल प्राकृत पाठ हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद सहित, ११ महत्त्वपूर्ण परिशिष्ट तथा ५२ रंगीन चित्र) ३. सचित्र अन्तकृद्दशा सूत्र (मूल प्राकृत पाठ हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद सहित तथा ४० रंगीन चित्र) ४. सचित्र तीर्थकर चरित्र (२४ तीर्थंकरों का आदर्श जीवन-वृत्त हिन्दी-अंग्रेजी भाषा में, १४ महत्त्वपूर्ण परिशिष्ट तथा ५४ रंगीन चित्र) ५. सचित्र भक्तामर स्तोत्र (मूल संस्कृत पाठ : रोमन लिपि में हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद सहित तथा भावों को स्पष्ट करने वाले ५० रंगीन चित्र) ६. सचित्र णमोकार महामंत्र (हिन्दी एवं अंग्रेजी में स्वतंत्र पुस्तकें) (महामंत्र नवकार का स्वरूप, साधना विधि और महिमा को प्रकट करने वाले ३२ रंगीन चित्र, विवेचन, ५ परिशिष्ट में नवकार महामंत्र के जीवन उपयोगी विविध मंत्र साधना, आत्म-रक्षा कवच मंत्र) रु. 325 US $ 30 रु. 125 US $10 नोट : सभी पुस्तकों पर पैकिंग, फारवर्डिंग तथा पोस्टेज खर्चा लागत के अनुसार अतिरिक्त देना होगा। प्राप्ति-स्थान : भारत में : दिवाकर प्रकाशन ए-७, अवागढ़ हाउस , एम. जी. रोड, आगरा-282002 फोन : (0562) 351165 विदेशों में फेडरेशन ऑफ जैन एसोसियेशन्स इन नॉर्थ अमेरिका (जैना) 9-9 मैडीकल क्लीनिक, 4410, 50वीं स्ट्रीट, लुब्बॉक, टेक्सास - 79414 (यू. एस. ए.). फोन : (806) 793 8555 (392) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA LAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAE