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________________ प्रज्ज्ज् ( ८ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र णं तेसिं मागंदियदारगाणं अणेगाई जोयणसयाइं ओगाढाणं समाणाणं अणेगाई उप्पाइयसयाई पाउब्भूयाई । सूत्र ७ : माता-पिता से आज्ञा प्राप्त कर माकंदी पुत्रों ने अपने जहाजों में गणिम ( गिनती से बेचा जाने वाला), धरिम (तोल से बेचा जाने वाला), मेय ( नाप से बेचा जाने वाला), तथा पारिच्छेद्य (काटकर बेचा जाने वाला) माल भर दिया जैसे अर्हन्नक श्रावक के वर्णन में है ( अ. ८ ) देखें) और लवणसमुद्र में कई सौ योजन दूर निकल गए। वहाँ उनका अनेक प्रकार की आपदाओं से सामना हुआ। 7. Glad to get permission, the sons of Makandi filled their ships with all the four types of goods. The four types were — Ganim (sold by counting), Dharim (sold by weight), Meya (sold by measurement), and Paricched (sold in parts) as mentioned in the story of Arhannak Shravak, (as detailed in ch. 8, p. 48 ). They commenced their voyage. When they crossed hundreds of Yojans into the sea they faced a series of afflictions. लवण समुद्र में तूफान सूत्र ८ : तं जहा - अकाले गज्जियं जाव (अकाले विज्जुए, अकाले ) थणियसद्दे कालियवाए तत्थ समुट्ठिए । तए णं सा णावा तेणं कालियवाएणं आहुणिज्जमाणी आहुणिज्जमाणी संचालिज्जमाणी ) संचालिज्जमाणी संखोभिज्जमाणी संखोभिज्जमाणी सलिल - तिक्ख-वेगेहिं आयट्टिज्जमाणी आयट्टिज्जमाणी कोट्टिमंसि करतलाहते विव तेंदूसए तत्थेव तत्थेव ओवयमाणी य उप्पयमाणी य, उम्पयमाणी विव धरणीयलाओ सिद्धविज्जा विज्जाहरकन्नगा, ओक्यमाणी विव गगणतलाओ भट्ठविज्जा विज्जाहरकन्नगा, विपलायमाणी विव महागरुलवेगवित्तासिया भुयगवरकन्नगा, धामणी विव महाजण - रसियसद्दवित्तत्था ठाणभट्ठा आसकिसोरी, णिगुंजमाणी विव गुरुजणादिट्ठावराहा सुयण-कुलकन्नगा, घुम्मणी विव वीची-पहार - सत- तालिया, गलिय-लंबणाविव गगणतलाओ, रोयमाणी विव सलिलगठि- विप्पइरमाणथोरंसुवाएहिं णववहू उवरतभत्तुया, विलवमाणी विव परचक्करायाभिरोहिया परममहब्भयाभिदुयया महापुरवरी, झायमाणी विव कवडच्छोमप्पओगजुत्ता जोगपरिव्वाइया, णिसामाणी विव महाकंतार - विणिग्गयपरिस्संता परिणयवया अम्मया, सोयमाणी विव तव चरणखीण- परिभोगा चयणकाले देववरवहू, संचुण्णियकट्टकूबरा, भग्ग- मेढि - मोडिय सहस्समाला, सूलाइयबंक - परिमासा, (8) Jain Education International JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007651
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages467
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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