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________________ मण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण मनमाज ( २४०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 सूत्र १५९ : तए णं सा कोंती देवी कण्हेणं वासुदेवेणं पडिविसज्जिया समाणी जामेव दिसिं दी र पाउब्भूआ तामेव दिसिं पडिगया। 5 सूत्र १५९ : वासुदेव श्रीकृष्ण से आश्वासन पाकर कुन्ती देवी अपने नगर को लौट गई। र 159. After getting this assurance from Krishna queen Kunti returned to P her city. 15 सूत्र १६0 : तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावित्ता एवं वयासी-द 2 ‘गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! बारवई नयरिं एवं जहा पंडू तहा घोसणं घोसावेइ, जावड र पच्चप्पिणंति, पंडुस्स जहा। ___ सूत्र १६0 : कुन्ती देवी के लौट जाने पर वासुदेव श्रीकृष्ण ने अपने सेवकों को बुलाकर आदेश डा र दिया-“देवानुप्रियो ! द्वारका नगर में सभी स्थानों पर द्रौपदी के अपहरण के सम्बन्ध में घोषणा 5 करो।" (घोषणा का विस्तार पूर्वसम-सू-१५२ के अनुसार जैसी पाण्डु राजा ने हस्तिनापुर में घोषणा ८ र करवाई उसी प्रकार समझें) सेवकों ने राजाज्ञा का पालन कर वासुदेव को सूचित कर दिया। _____160. When Kunti left, Krishna Vasudev called his servants and said, 5 “Beloved of gods! Make an announcement about queen Draupadi's abduction Ć Dat every prominent place in Dwarka (as in para 152).” The servants did as र told and reported back. र सूत्र १६१ : तए णं से कण्हे वासुदेवे अन्नया अंतो अंतेउरगए ओरोहे जाव विहरइ। इमं च 5णं कच्छुल्लए जाव समोवइए जाव णिसीइत्ता कण्हं वासुदेवं कुसलोदंतं पुच्छइ। ___ सूत्र १६१. एक बार वासुदेव श्रीकृष्ण अंतःपुर में रानियों के साथ बैठे थे। उस समय कच्छुल्ल 5नारद आकाश से उतर श्रीकष्ण के पास जाकर आसन पर बैठे और उनसे क्षेम कुशल पूछने लगे। दा (पूरा वर्णन सूत्र १३४, १३५ के अनुसार समझें) 161. Once when Krishna Vasudev was sitting in his private quarters with 5 his queens, Kacchull Narad landed in the palace, came to Krishna Vasudev, 5 sat down and asked about his well being. (details as in para 134, 135). 5 नारद से सूचना र सूत्र १६२ : तए णं से कण्हे वासुदेवे कच्छुल्लं णारयं एवं वयासी-'तुमं णं देवाणुप्पिया ! ट्र 5 बहूणि गामाऽऽगर जाव अणुपविससि, तं अत्थि याइं ते कहिं वि दोवईए देवीए सुई वा जाव ढ र उवलद्धा?' 5 तए णं से कच्छुल्ले णारए कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! अन्नया 15 धायईसंडे दीवे पुरथिमद्धं दाहिणद्धभारहवासं अमरकंकारायहाणिं गये, तत्थ णं मए डा र पउमनाभस्स रण्णो भवणंसि दोवई देवी जारिसिया दिट्टपुव्वा यावि होत्था।' (240) JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SŪTRA 3 AnnnnnAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnnns Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007651
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages467
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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