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________________ मज्ज PR ( २५२ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 सूत्र १८३ : तए णं पउमणाभे राया अमरकंकं रायहाणिं संभग्ग जाव पासित्ता भीए दोवइंट २ देविं सरणं उवेइ। तए णं सा दोवई देवी पउमनाभं रायं एवं वयासी-'किण्णं तुम देवाणुप्पिया ! 15 न जाणसि कण्हस्स वासुदेवस्स उत्तमपुरिसस्स विप्पियं करेमाणे ममं इह हव्वमाणेसि? तंटे र एवमवि गए। गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! हाए उल्लपडसाडए अवचूलग-वत्थणियत्थे 5 अंतेउर-परियालसंपरिवुडे अग्गाई वराई रयणाइं गहाय मम पुरतो काउं कण्हं वासुदेवंदा र करयलपायपडिए सरणं उवेहि, पणिवइयवच्छला णं देवाणुप्पिया ! उत्तमपुरिसा। 15 सूत्र १८३ : अमरकंका की यह भग्न दशा देख, भय से आक्रान्त हुआ पद्मनाभ द्रौपदी देवी कीट शरण में गया। द्रौपदी ने कहा-“देवानुप्रिय ! क्या तुम भूल गये कि पुरुषोत्तम कृष्ण वासुदेव का र विप्रिय (अप्रिय कार्य) कर तुम मुझे यहाँ लाये हो ! फिर भी जो हुआ उसे भूलकर तुम स्नान करो, टे 15 गीले ही वस्त्र धारण करो और कांछ खुली रखो। अपने अन्तःपुर परिवार को साथ में लो और डा र साथ ही बहुमूल्य रत्न भेंट स्वरूप लो। इसके बाद मुझे आगे रखो और चलकर कृष्ण वासुदेव के डा ए पास पहुँच हाथ जोड़ उनके चरणों में गिरकर शरण माँगो । देवानुप्रिय ! उत्तम पुरुष टा र शरणागतवत्सल होते हैं।" र 183. When King Padmanaabh saw this holocaust in Amarkanka city heal rushed to Draupadi in panic and sought her help. Draupadi said, “Beloved of gods! Have you forgotten that you have annoyed Krishna Vasudev by abducting me. Anyway, forget what you have done, take your bath and just S B wrap a length of wet cloth around your body. Collect valuable gems as gifts, take along your women folk and then, keeping me in the lead, humbly walk down to Krishna Vasudev. When you reach him join your palms and fall at ► his feet to seek refuge. Beloved of gods! Virtuous persons have feelings of compassion for refugees." 5 सूत्र १८४ : तए णं से पउमणाभे दोवईए एयमटुं पडिसुणएइ, पडिसुणित्ता बहाए जाव , र सरणं उवेइ, उवइत्ता करयल एवं वयासी-'दिट्ठा णं देवाणुप्पियाणं इड्डी जाव परक्कमे, तं खामेमि । 5 णं देवाणुप्पिया ! जाव खमंतु णं जाव भुज्जो एवं करणयाए' त्ति पंजलिउडे पायवडिए कण्हस्सद वासुदेवस्स दोवइं देविं साहत्थिं उवणेइ। ___ सूत्र १८४ : पद्मनाभ ने द्रौपदी का यह मन्तव्य स्वीकार कर द्रौपदी के कहे अनुसार सभी काम न करता हुआ वासुदेव कृष्ण की शरण में गया। हाथ-जोड़ कर बोला-" हे देवानुप्रिय ! मैंने आपकी । ऋद्धि और पराक्रम देख लिया। हे देवानुप्रिय ! मैं आपसे क्षमा प्रार्थना करता हूँ। मैं ऐसा कार्य फिर से नहीं करूँगा। आप मुझे क्षमा करें।" यह कहते-कहते वह कृष्ण के चरणों में गिर पड़ा। उसने स्वयंड र द्रौपदी देवी को लौटा दिया। nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn (252) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SUTRA | yinhinnnnnnnnnnnnnnnnnAmAAA ----- - - - - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007651
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages467
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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