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र ( ३३२ )
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 तए णं थेरा भगवंतो अन्नया कयाई पुंडरीगिणीओ नयरीओ नलिनीवणाओ उज्जाणाओ द
र पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरंति। 15 सूत्र ९ : जब राजा पुण्डरीक कण्डरीक कुमार को बहुत कहकर, समझा-बुझाकर, और विज्ञप्ति डा र करके भी उसे रोकने में समर्थ नहीं हुए तो अनिच्छा से ही उसकी बात मान ली। दीक्षा ग्रहण करने डा र की अनुमति देने के पश्चात् उनका निष्क्रमण अभिषेक किया और स्थविर मुनि को शिष्य-भिक्षाट 15 प्रदान की। कण्डरीक दीक्षित हो अनगार बन गया और क्रमशः ग्यारह अंगों का जानकार बन गया। ड
र कालान्तर में वे स्थविर मुनि नलिनीवन उद्यान से प्रस्थान कर अन्य जनपदों में विहार करने से 15 लगे। 2 9. When King Pundareek was unable to stop Kandareek even after a lot of B persuasion, he conceded to Kandareek's desire unwillingly. After giving him a
permission to accept Diksha (initiation) the king performed the formal anointing and gave a disciple-donation to the Sthavir ascetic. Kandareek became an ascetic and in due course studied the eleven canons.
In due course the Sthavir ascetic left the town and resumed his itinerant
2 life.
र कण्डरीक की रुग्णता
सूत्र १० : तए णं तस्स कंडरीयस्स अणगारस्स तेहि अंतेहि य पंतेहि य जहा सेलगस्स र जाव दाहवकंतीए यावि विहरइ। र सूत्र १0 : इधर अनगार कण्डरीक के शरीर में रुखे-सूखे आहार के कारण शैलक मुनि के ड र समान दाह-ज्वर उत्पन्न हो गया। वे रुग्ण हो गये।
KANDAREEK'S AILMENT 5 10. Due to eating dry and tasteless food ascetic Kandareek caught fever डा
and became sick like ascetic Shailak. 5 सूत्र ११ : तए णं थेरा अन्नया कयाई जेणेव पोंडरीगिणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ताद र णलिणिवणे समोसढा, पोंडरीए णिग्गए, धम्मं सुणेइ। 5 तए णं पुंडरीए राया धम्मं सोच्चा जेणेव कंडरीए अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हा र कंडरीयं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता कंडरीयस्स अणगारस्स सरीरगं सव्वाबाहं सरोयं टा 5 पासइ, पासित्ता जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते वंदइ, णमंसइ, र वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-'अहं णं भंते ! कंडरीयस्स अणगारस्स अहापवत्तेहिं डा र ओसह-भेसज्जेहिं जाव तेइच्छं आउट्टामि, तं तुब्भे णं भंते ! मम जाणसालासु समोसरह।' र (332)
JNĀTĀ DHARMA KATHÂNGA SŪTRA 2
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