________________
फ्र
नवम अध्ययन : माकन्दी : आमुख
शीर्षक–मायंदी–माकन्दी-नाम विशेष । माकन्दी नाम के सार्थवाह के दो पुत्रों की कथा के माध्यम से पाँच इन्द्रियों सम्बन्धी भोगोपभोगों के प्रति आसक्ति और अनासक्ति के गुण-दोष तथा लाभ-हानि का मर्म समझाया गया है।
कथासार-चम्पानगरी में माकन्दी नाम का एक सार्थवाह रहता था। उसके दो पुत्र थे- जिनपालित व जिनरक्षित। वे ग्यारह बार समुद्र- यात्राएँ कर चुके थे और बारहवीं बार फिर जाना चाहते थे। उनके माता-पिता ने समझाया कि बारहवीं यात्रा दुःखदायी तथा अपशकुनी मानी गई है अतः उन्हें यह विचार छोड़ देना चाहिए । किन्तु पुत्रों ने ज़िद की और अन्ततः माता-पिता बिना मन के ही चुप रहे।
उन्होंने अपने जहाज में माल भर यात्रा आरम्भ की। समुद्र में कई सौ योजन दूर निकल जाने के बाद उनका जहाज तूफान में फँस कर डूब गया। सारा माल और यात्री डूब गए किन्तु दोनों माकन्दी- पुत्रों ने लकड़ी के एक बड़े लड़े को पकड़ लिया और उसके सहारे तैरते हुए निकट के एक द्वीप पर जा पहुँचे। यह द्वीप रत्न - द्वीप
कहलाता था।
उस द्वीप पर एक विशाल भवन में एक नीच स्वभाव वाली देवी रहती थी, जिसका नाम रत्ना देवी था। अपने अवधिज्ञान से देवी ने माकन्दी पुत्रों को विषम परिस्थिति में घिरे देखा । वह तत्काल उनके पास पहुँची और कहा 'कि यदि वे अपने जीवन को अक्षुण्ण रखना चाहते हैं तो उसकी वासना इच्छा के आगे झुकना होगा । भयभीत माकन्दी - पुत्रों ने उसके प्रस्ताव को चुपचाप स्वीकार कर लिया ।
देवी उन्हें अपने महल में ले आई और उनके साथ भोग-विलास का आनन्द लेने लगी। कुछ दिनों के बाद लवण समुद्र के आरक्षक सुस्थित देव ने इस देवी को समुद्र की सफाई के काम पर लगा दिया। देवी ने माकन्दी पुत्रों को यह बात बताई और आदेश दिया कि जब तक वह अपना काम पूरा कर लौटती नहीं वे उस भवन की सुविधाओं का उपयोग करते रहें । ऊब जाने पर वे पूर्वी, उत्तरी और पश्चिमी उद्यानों में जा सकते हैं । किन्तु किसी भी परिस्थिति में दक्षिणी उद्यान में न जावें क्योंकि वहाँ एक विशाल विषैला सर्प रहता है जो उन्हें तत्काल नष्ट कर सकता है। यह चेतावनी देकर देवी अपने काम पर चली गई। कुछ समय बाद दोनों भाई ऊब गए और उन्हें एकाकीपन खलने लगा। एक के बाद एक, वे तीनों उद्यानों में गये पर वहाँ भी वे शीघ्र ही ऊब गये और तब वे दक्षिण दिशा वाले उद्यान की ओर बढ़ चले।
वहाँ वे एक विशाल वध-स्थल पर पहुँचे तथा सूली पर चढ़े एक आदमी को रोते- कलपते देखा। उन्होंने उसका परिचय पूछा तथा इस कठिन परिस्थिति का कारण भी । सूली पर चढ़े आदमी ने बताया कि वह कालन्दी नगरी का एक अश्व व्यापारी है। उसका जहाज डूब गया था और वह तैरता हुआ रत्नद्वीप आ पहुँचा था । रत्नद्वीप की 'दुष्ट स्वभाव वाली देवी उसे अपने महल में ले जाकर अपनी वासना शान्त करने लगी। एक दिन वह उससे क्षुब्ध हो गई और उसे इस दशा में पहुँचा दिया।
माकन्दी-पुत्रों ने भयभीत हो उस देवी के चंगुल से छूटने का उपाय पूछा। सूली पर चढ़े व्यक्ति ने बताया कि पूर्वी दिशा वाले उद्यान में शैलक-यक्ष का मंदिर है जो घोड़े के रूप में रहता है। प्रत्येक चतुर्दशी, पूर्णिमा,
CHAPTER-9: MAKANDI
(1)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org