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मज्ज २ ( १२६ )
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 परिकहेंति। तए णं सा पोट्टिला धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतट्ठा एवं वयासी-“सद्दहामि णं दा
र अज्जाओ ! निग्गंथं पावयणं जाव से जहेयं तुब्भे वयह, इच्छामि णं अहं तुब्भं अंतिए डी 15 पंचाणुव्वइयं जाव सत्त सिक्खावइयं गिहिधम्म पडिवज्जित्तए।" 15 अहासुहं देवाणुप्पिए !
र सूत्र २७ : पोट्टिला ने उत्तर दिया-“हे आर्याओ ! मैं आपसे केवली प्ररूपित धर्म सुनना चाहती र हूँ।" इस पर उन साध्वियों ने पोट्टिला को उस अद्भुत धर्म का उपदेश दिया। पोट्टिला धर्मोपदेश 15 सुन-समझकर प्रसन्न व संतुष्ट होकर बोली-“आर्याओ ! मैं निर्ग्रन्थ के प्रवचन पर श्रद्धा करती हूँ। टी
र जैसा आपने कहा वह वैसा ही है। इसलिए मैं आपके निकट अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत वाले ड र श्रावकधर्म को अंगीकार करना चाहती हूँ।" र आर्याओं ने उत्तर दिया-“देवानुप्रिये ! जिसमें सुख मिले वह करो।"
27. Pottila said, “Aryas! I would certainly like to hear the religion à propagated by The Omniscient." And the Sadhvis gave a discourse on the 5 unique religion. On listening and understanding the discourse Pottila | 2 became happy and contented. She said, “Aryas! I have faith in the word of
The Omniscient; what you have said is true. As such, I would like to get 5 initiated into the Shravak Dharma (your order for laity) that includes the
five minor vows and seven disciplinary vows." 2 The Aryas said, “Do as you please." र श्राविका पोट्टिला 15 सूत्र २८ : तए णं सा पोट्टिला तासिं अज्जाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं जाव धम्म पडिवज्जइ, दी र ताओ अज्जाओ वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता पडिविसज्जेइ।
तए णं सा पोट्टिला समणोवासिया जाया. जाव समणे निग्गंथे पासुएणं एसणिज्जेण दा र असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएणं ही 15 पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणी विहरइ।
र सूत्र २८ : पोट्टिला ने उन आर्याओं से पाँच अणुव्रतादियुक्त धर्म अंगीकार किया और टी 15 वन्दना-नमस्कार कर उन्हें विदा किया। र अब पोट्टिला श्रमणोपासिका हो गई और निर्ग्रन्थ श्रमणों को वांछित वस्तुएँ प्रदान करती जीवन टा 5 व्यतीत करने लगी। (वांछित वस्तुएँ-उचित तथा स्वीकार करने योग्य अशन, पान, खादिम, द र स्वादिम, आहार, वस्त्र, पात्र, कम्बल, पाँवपोंछ, औषध, भेषज तथा वापस करने योग्य पीढा, पाट, द्र र शय्या, उपाश्रय और संस्तारक का बिछावन आदि।) 5 (126)
JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA SAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn)
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