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Lurrart 5 र चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र
( १२७ ) डा R SHRAVIKA POTTILA
28. Pottila took the prescribed vows and sent the Aryas away with 2 ceremony. B Now Pottila became a Shramanopasika and started spending her days 5 donating various things needed by the ascetics. (these things include - 2
consumables like food, apparel, utensils, rugs, towels, medicines, and other such things and returnable durables like seat, bench, bed, abode, and bedo
made of hay, and other such things suitable and prescribed for an ascetic.) S 5 सूत्र २९ : तए णं तीसे पोट्टिलाए अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियंट
जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुष्पज्जित्था-"एवं खलु अहं तेयलिपुत्तस्स पुब्बिं डा र इट्ठा ५ आसि, इयाणिं अणिट्ठा ५ जाया जाव परिभोगं वा, तं सेयं खलु मम सुव्वयाणं अज्जाणं 5 अंतिए पव्वइत्तए।" एवं संपेहेइ। संपेहित्ता कल्लं पाउप्पभायाए जेणेव तेयलिपुत्ते तेणेवट र उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट एवं वयासी-“एवं डा र खलु देवाणुप्पिया ! मए सुव्ययाणं अज्जाणं अंतिए धम्मे निसंते जाव से वि य मे धम्मे इच्छिए । 5 पडिच्छिए अभिरुइए। तं इच्छामि णं तुब्भेहि अब्भणुनाया पव्वइत्तए।" र सूत्र २९ : कुछ समय बाद एक बार अर्ध-रात्रि के समय जब पोट्टिला पारिवारिक चिन्ताओं में 2 5 डूबी जाग रही थी, उसके मन में विचार उठा-“पहले मैं तेतलिपुत्र को प्रिय थी (पूर्व-सू. २५ ट र के समान)। किन्तु अब अप्रिय अनिष्ट लगने लगी हूँ। अतः अच्छा होगा कि मैं सुव्रता आर्या के ड र पास दीक्षा ग्रहण कर लूँ।" दूसरे दिन प्रातःकाल वह तेतलिपुत्र के पास गई और यथाविधि । 5 अभिनन्दन करके बोली-“देवानुप्रिय ! मैंने सुव्रता आर्या से धर्म सुना है। वह धर्म मुझे इष्ट, अतीव टे र इष्ट और रुचिकर लगा है अतः आपसे आज्ञा पाकर मैं दीक्षा लेना चाहती हूँ।"
29. A few days later once again around midnight when Pottila was awake 5 and worrying about some domestic problem she thought, “There was a time 15 when Tetaliputra loved me, but now I have lost his favour. (as para 25). As ट
such, it would be best for me to get Diksha and become an ascetic." Next morning she approached Tetaliputra and after greetings asked him, "Beloved of gods! I have listened to the discourse of Suvrata Arya and found it to be very much desirable. I want to accept Diksha after getting your permission." रे तेतलिपुत्र की शर्त र सूत्र ३० : तए णं तेयलिपुत्ते पोट्टिलं एवं वयासी-“एवं खलु तुमं देवाणुप्पिए ! मुंडा 15 भवित्ता पव्वइया समाणी कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववज्जिहिसि, तंद
र जइ णं तुम देवाणुप्पिए ! ममं ताओ देवलोयाओ आगम्म केवलिपन्नत्ते धम्मे बोहेहि, तो हंड 15 विसज्जेमि, अह णं तुम ममं णं संबोहेसि तो ते ण विसज्जेमि।" 5 CHAPTER-14 : TETALIPUTRA
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