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प्रज्ज 5( १२८ )
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 तए णं सा पोट्टिला तेयलिपुत्तस्स एयमहूँ पडिसुणेइ।
सूत्र ३0 : तेतलिपुत्र ने पोट्टिला से कहा-“देवानुप्रिये ! तुम मुंडन कराके दीक्षा लोगी और 2 अपने अन्त समय देह त्याग कर किसी देवलोक में जन्म लोगी। यदि तुम वचन दो कि उस देवलोक ८ 15 से आकर मुझे केवली प्रदत्त धर्म का प्रतिबोध दोगी तो मैं तुम्हें अनुमति देता हूँ अन्यथा नहीं।" र पोट्टिला ने तेतलिपुत्र का यह अनुरोध स्वीकार कर लिया। P TETALIPUTRA'S CONDITION
30. Tetaliputra replied, "Beloved of gods! You will get your head shaved > and become an ascetic. In the end when you breath your last you shall
reincarnate in some dimension of gods. If you promise me that as god you will come to me and show me the path shown by The Omniscient then, and
then only I will give you permission. 5 Pottila accepted Tetaliputra's request. र सूत्र ३१ : तए णं तेयलिपुत्ते विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, 15 उवक्खडावित्ता मित्तणाइ जाव आमंतेइ, आमंतित्ता जाव संमाणेइ, संमाणित्ता पोट्टिलं ण्हायं जावद र पुरिसहस्सवाहणीयं सीयं दुरुहित्ता मित्तणाइ जाव परिवुडे सव्विड्डीए जाव रवेणं तेतलिपुरस्स हा र मझंमज्झेणं जेणेव सुव्वयाणं उवस्सए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, सी 5 पच्चीरुहित्ता पोट्टिलं पुरओ कटु जेणेव सुव्वया अज्जा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वंदइ र नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी15 "एवं खलु देवाणुप्पिए ! मम पोट्टिला भारिया इट्ठा, एस णं संसारभउव्विग्गा जाव
2 पव्वइत्तए। पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिए ! सिस्सिणिभिक्खं दलयामि।" 5 “अहासुहं मा पडिबंधं करेह।" र सूत्र ३१ : तेतलिपुत्र ने प्रचुर अशनादि आहार सामग्री बनवाई और मित्रादि को निमंत्रण दिया। ट 5 अतिथियों का यथोचित आदर-सत्कार किया और पोट्टिला को स्नानादि करवा तैयार करवाया। फिर डा र हजार पुरुषों के उठाने योग्य पालकी पर पोट्टिला को सवार करा मित्रादि को साथ ले समस्त वैभव 12 सहित गाजे-बाजे के साथ वह तेतलिपुर के बीच होता हुआ सुव्रता साध्वी के पास पहुँचा। उन्हें टी 15 यथाविधि वन्दना-नमस्कार कर तेतलिपुत्र बोला-“देवानुप्रिये ! मेरी यह पोट्टिला भार्या मुझे प्रिय है। दा 15 यह संसार के भय से उद्विग्न हो गई है और दीक्षा लेना चाहिती है। अतः हे देवानुप्रिये ! मैं आपको डा र शिष्य-भिक्षा देता हूँ, इसे स्वीकार कीजिये।" 5 साध्वी ने उत्तर दिया-“जिसमें सुख मिले वह अविलम्ब करो।" 2 31. Tetaliputra made arrangements for a great feast and delicious and 5 savory dishes were prepared. He invited all his relatives and friends. After a र(128)
JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA
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