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U DDDDDDDDDDDDDDDD) र चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र
( १२९ ) | 15 the feast, he honoured the guests with suitable gifts. He got Pottila ready
after bath (etc.). Taking her in a Purisasahassa palanquin, displaying all his wealth and grandeur, and accompanied by all the guests he passed through 2 the streets of Tetalipur with all fan fare and arrived at the place whe
Suvrata was staying. After offering his obeisance to the Arya he said, "Beloved of gods! This is Pottila, my wife. I love and cherish her. She has
become fearful of the mundane life and desires to accept Diksha. As such, 15 Beloved of gods! I make a disciple-donation to you. Please accept." 12 The Sadhvi replied, “Do as you please.” 5 सूत्र ३२ : तए णं सा पोट्टिला सुव्वयाहिं अज्जाहिं एवं वुत्ता समाणा हट्ठ-तुट्ठा उत्तरपुरथिमे डा र दिसिभाए सयमेव आभरण-मल्लालंकारं ओमुयइ, ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, टे 5 करित्ता जेणेव सुव्ययाओ अज्जाओ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वंदइ नमसइ वंदित्ता डा
नमंसित्ता एवं वयासी-"आलिते णं भंते ! लोए" एवं जहा देवाणंदा, जाव एक्कारस अंगाई, टा 15 बहूणि वासाणि सामन्नपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झोसित्ता सद्धिं डा
र भत्ताइं अणसणेणं छेइत्ता, आलोइय-पडिक्कता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसुटी 15 देवलोएसु देवत्ताए उववन्ना। र सूत्र ३२ : सुव्रता आर्या के इस कथन पर पोट्टिला प्रसन्न और संतुष्ट हुई। उत्तर-पूर्व दिशा में ट 5 जाकर उसने स्वयं ही अपने आभूषण, माला व अलंकार उतार दिए और अपने हाथों से पंचमुष्टि ड र लोच किया। ये सब कार्य संपन्न कर वह सुव्रता आर्या के पास लौटी और वन्दनादि के पश्चात् S र बोली-'हे भगवती ! यह संसार चारों ओर से जल रहा है ........।" (दीक्षा का विस्तृत वर्णन टी 15 भगवतीसूत्र में वर्णित देवानन्दा की दीक्षा के समान है)। दीक्षा के बाद पोट्टिला ने ग्यारह अंगों का ड र अध्ययन किया और अनेक वर्षों तक चारित्र का पालन किया। अन्ततः एक माह की संलेखना कर र कृशकाय हो, साठ भक्त अनशन कर, प्रतिक्रमण व आलोचना कर समाधिमरण द्वारा शरीर त्याग टा 15 पोट्टिला ने देवलोक में देवरूप में जन्म लिया।
32. Pottila was pleased to hear this. She went in the north-eastern direction, put off her ornaments, garlands and other embellishments and
pulled out her hair (Panchmushti Loach). After completing these formalities Ć 5 she returned to Arya Suvrata and after obeisance said, “Bhagavati! This C
world is burning fiercely in the fire of aging and death. . . . . . . . ." Pleading
thus she got initiated. (detailed description of the initiation is same as that of B Devananda in Bhagavati Sutra). With the passage of time she acquired the 5 knowledge of the eleven canons and lived a long and disciplined ascetic life. 5 In the end she took the ultimate vow of one month duration. She became
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(129) टा
15 CHAPTER-14 : TETALIPUTRA PAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAI
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