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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र टा 15 सूत्र १० : तए णं ते बहवे राईसर जाव सत्थवाहपिभइओ एवं वयासी-तहेव णं तं सामी !
र जं णं तुब्भे वयह, अहो णं इमे फरिहोदए अमणुण्णे वण्णेणं गंधेणं रसेणं फासेणं, से जहानामए डा 15 अहिमडे इ वा जाव अमणामतराए चेव गंधेणं पण्णत्ते।
र सूत्र १० : तब राजा के साथियों ने एक स्वर में राजा के कथन का समर्थन किया-"स्वामी ड 15 जैसा आप कहते हैं वैसा ही है। यह खाई का पानी अमनोज्ञ एवं अत्यन्त दुर्गन्धपूर्ण है।"
10. All his companions unanimously attested the kings statement, “What you say is true Sire! the water of this ditch is foul and repulsive (etc. as in र para 9).” र सूत्र ११ : तए णं ते जियसत्तू सुबुद्धिं अमच्चं एवं वयासी-'अहो णं सुबुद्धी ! इमे फरिहोदए 5 अमणुण्णे वण्णेणं से जहानामए अहिमडे इ वा जाव अमणामतराए चेव गंधेणं पण्णत्ते। र तए णं सुबुद्धी अमच्चे जाव तुसिणीए संचिट्ठइ। 15 सूत्र ११ : जितशत्रु ने तब अमात्य सुबुद्धि से वही बात कही-“हे सुबुद्धि ! इस खाई का पानी
र वर्ण आदि से अमनोज्ञ, मृतसर्प की गंध से भी अधिक दुर्गन्ध युक्त है। 15 सुबुद्धि ने राजा की इस बात का अनुमोदन नहीं किया। वह चुप ही रहा। 2 11. Jitshatru repeated his statement to Subuddhi, “Subuddhi! The water of this ditch is foul and repulsive in colour, smell, taste, and touch. Its stench
is much more foul than that of animal carcasses." 15 Subuddhi did not attest to this opinion and remained silent.
सूत्र १२ : तए णं से जियसत्तू राया सुबुद्धिं अमच्चं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-'अहो रणं तं चेव।' 5 तए णं से सुबुद्धी अमच्चे जियसत्तुणा रण्णा दोच्चं पि तच्चं पि एवं वृत्ते समाणे एवं २ वयासी-'नो खलु सामी ! अम्हं एयंसि फरिहोदयंसि केइ विम्हए। एवं खलु सामी ! सुब्भिसद्दा ड 5 वि पोग्गला दुब्भिसद्दत्ताए परिणमंति, तं चेव जाव पओग-वीससापरिणया वि य णं सामी ! 2
र पोग्गला पण्णत्ता। 15 सूत्र १२ : इस पर राजा ने वही बात दो तीन बार फिर कही-अहो सुबुद्धि ! यह पानी कितना 15 अमनोज्ञ है एवं दुर्गन्धयुक्त है। (सूत्र ९ के समान) र राजा के पुनः पुनः वही बात कहने पर सुबुद्धि ने कहा-"स्वामी! मुझे इस खाई के पानी के 5 5 विषय में कोई भी आश्चर्य नहीं है। क्योंकि शुभ पुद्गल अशुभ पुद्गल रूप में परिणत हो जाते हैं 12 और अशुभ पुद्गल शुभ रूप में परिणत हो जाते हैं। मनुष्य के प्रयत्न से और स्वाभाविक रूप में ड ॐ पुद्गलों में यह परिवर्तन होता रहता है।” (विस्तार-पूर्व सू. ७ के समान)। (70)
JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA Annnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnni
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