________________
र ( ८८ )
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र हा 5 ददुरस्स णं भंते ! देवस्स सा दिव्या देविड्डी दिव्वा देवजुई दिव्वे देवाणुभावे कहिं गया? कहिं डा
अणुपविट्ठा?' र 'गोयमा ! सरीरं गया, सरीरं अणुपविट्ठा कूडागारदिटुंतो।' 15 सूत्र ५ : गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर को यथाविधि वन्दना नमस्कार करके पूछार “भंते ! दर्दुर देव महान ऋद्धि, महान द्युति, महान् बल, महान् यश, महान् सुख तथा महान् प्रभाव र के स्वामी हैं। तो हे भंते ! उनकी वह समस्त दिव्य देवऋद्धि कहाँ चली गई ? कहाँ समा गई?" 15 “गौतम ! वह देवऋद्धि शरीर में गई, शरीर में समा गई, कूटागार के दृष्टान्त के समान।''१
பபபபபபபபபப
> GAUTAM SWAMI'S QUERY 5 5. After the formal obeisance to Shraman Bhagavan Mahavir Gautam 5 Swami asked, “Bhante! The Dardur god has great wealth, great splendour, 5great power, great fame, great happiness, and great influence at his » command. Then where did all these divine virtues go? Where did they
vanish?" 15 "Gautam! All the divine virtues went in his body, vanished into his body 15 like the incident of Kutagar (camouflaged building)."
र सूत्र ६ : दद्दुरेणं भंते ! देवेणं सा दिव्वा देविड्डी किण्णा लद्धा जाव अभिसमन्नागया? 15 सूत्र ६ : "भंते ! दर्दुर देव ने वह दिव्य देवऋद्धि किस प्रकार प्राप्त की? वह कैसे उसके समक्ष ड
र आई?" 15 6. “Bhante! How did Dardur god acquire those virtues? How did he come 15 across them?”
सूत्र ७ : ‘एवं खलु गोयमा ! इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहेवासे रायगिहे नाम नयरे होत्था, 7 15 गुणसीलए चेइए, तस्स णं रायगिहस्स सेणिए नामं राया होत्था। तत्थ णं रायगिहे णंदे णामंड
र मणियारसेट्ठी परिवसइ। अड्डे दित्ते जाव अपरिभूए।' 15 सूत्र ७ : गौतम ! इस जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में राजगृह नाम का नगर था जहाँ गुणशील नाम डी
र का चैत्य था और श्रेणिक राजा का राज्य था। वहाँ नन्द नाम का एक मणिकार (स्वर्ण आभूषण 15 बनाने वाला) सेठ रहता था। वह तेजस्वी और समृद्धि आदि में किसी से पराभूत होने वाला ट 15 नहीं था।
7. Jambu! In the Bharat area of the Jambu continent there was a city named Rajagriha. King Shrenik ruled over that city. Outside the city in the
vvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvv
UUUUUN
5 १. कूटागार के लिए अध्याय के अंत में परिशिष्ट देखें 15 (88)
JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA innnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org