________________
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
( १७६ )
19. Sthavir Dharmaghosh used his knowledge of the scriptures and meditated. After that he called all his disciples and said, "Aryas! Indeed my disciple ascetic Dharmaruchi was sober and humble. He was observing a month long fast. To collect alms for breakfast he went to the house of Brahmani Naagshri. She poured the bitter and toxic gourd curry in his bowl. (and Sthavir Dharmaghosh narrated the whole story in detail).
सूत्र २० : से णं धम्मरुइ अणगारे बहूणि वासाणि सामन्नपरियागं पाउणित्ता आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उड्डुं सोहम्म जाव सव्वट्टसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववन्ने। तत्थ णं अजहण्णमणुक्कोसं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । तत्थ धम्म वि देवरस तेत्तीस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । से णं धम्मरुई देवे ताओ देवलोगाओ जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहि ।
फ
सूत्र २० : वे ( स्थविर ) आगे बोले - " अनेक वर्षों तक श्रमण जीवन पालन करके अन्त समय में आलोचना प्रतिक्रमण कर समाधि मरण के बाद धर्मरुचि अनगार ने सौधर्म आदि देवलोकों से ऊपर सर्वार्थ सिद्ध नामक महाविमान में देव रूप में जन्म लिया है। वहाँ जघन्य उत्कृष्ट के भेद से रहित सभी देवों की आयु तेतीस सागरोपम बताई है। धर्मरुचि देव यह तेतीस सागरोपम की आयु पूर्ण कर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होंगे और सिद्धि को प्राप्त करेंगे ।"
20. He added, “ At the end of a long ascetic life after doing the last critical review, he took the ultimate vow and embraced the meditative death. He has reincarnated as a god in the Sarvarth Siddh dimension that is above the other dimensions of gods like the Saudharm. The life-span in that dimension is said to be uniformly thirty three Sagaropam. God Dharmaruchi, after completing his life span as a god, will reincarnate in the Mahavideh area and attain liberation."
नागश्री की आलोचना
सूत्र २१
: 'तं धिरत्थु णं अज्जो ! णागसिरीए माहणीए अधन्नाए अपुन्नाए जाव बोलिया जाए णं तहारूवे साहू धम्मरुई अणगारे मासखमणपारणगंसि सालइएणं जाव गाणं अकाले चेव जीवियाओ ववरोविए । '
सूत्र २१. “हे आर्यों ! अधन्य, अपुण्य आदि और निंबोली के जैसी कडुवी उस नागश्री ब्राह्मणी को धिक्कार है जिसने ऐसे साधु पुरुष धर्मरुचि अनगार को कटु तुंबे की सब्जी मासखमण के पारणे में बहराकर असमय ही मार डाला । "
CRITICISMS OF NAAGSHRI
21. “Aryas! Curse that worthless, virtueless, (etc. ) Naagshri who is as hateful as the bitter margosa-berry, for she gave the bitter and toxic gourd
(176)
JNÄTA DHARMA KATHANGA SUTRA
Jain Education International
For Private Personal Use Only
www.jainelibrary.org