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माजमा क(२१४ )
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र टा R over their feet and offering them bouquets of flowers. After this he sent them
to independent dwellings. र सूत्र १०६ : तए णं ते वासुदेवपामोक्खा जेणेव सया सया आवासा तेणेव उवागच्छंति, ड र उवागच्छित्ता हत्थिखंधेहितो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता पत्तेयं पत्तेय खंधावारनिवेसं करेंति, 15 करित्ता सएसु सएसु आवासेसु अणुपविसंति, अणुपविसित्ता सएसु आवासेसु आसणेसु य डा
र सयणेसु य सन्निसन्ना य संतुयट्ठा य बहूहिं गंधव्वेहि य नाडएहि य उवगिज्जमाणा या 15 उवणच्चिज्जमाणा य विहरंति। र सूत्र १०६ : वासुदेव आदि सभी राजा अपने-अपने नियत आवासों पर पहुंचे, हाथियों पर से 5 उतर कर पड़ाव डाले और तब आवासों में प्रविष्ट हुए। कोई आसन पर बैठा तो कोई शैय्या पर द 15 सो गया। अनेकों गंधर्व उनके मनोरंजन के लिए गान, नृत्य, नाटक आदि करने लगे। B 106. Krishna Vasudev and the other kings reached the dwellings allotted a 5 to each one of them. They got down from the elephant and made camp. After 5 that they entered the dwellings provided by King Drupad. Some of them sat Ć 5 on chairs and others reclined on beds. Numerous Gandharvas (demigods 3 specializing in performing arts) entertained them with songs, dances, S P dramas, and other such performances. 15 सूत्र १०७ : तए णं से दुवए राया कंपिल्लपुरं नगरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता, विउलं र असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावित्ता, कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवंड र वयासी-'गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च मज्जं च मंसंट 5 च सीधुं च पसण्णं च सुबहुपुष्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं च वासुदेवपामोक्खाणं रायसहस्साणंड र आवासेसु साहरह।' ते वि साहरंति। 5 सूत्र १०७ : अतिथियों को यथास्थान ठहरा कर राजा द्रुपद कांपिल्यपुर लौटे और विपुल डा र भोजन सामग्री का प्रबन्ध करवाया। तैयारी पूरी होने पर राजा ने सेवकों को बुलाकर कहार “देवानुप्रियो ! तुम यह सब भोजन सामग्री, सुरा, मद्य, माँस, सीधु और प्रसन्ना (मदिरा विशेष) 5 तथा प्रचुर पुष्प, वस्त्र, गंध, मालाएँ एवं अलंकार लेकर वासुदेव आदि हज़ारों राजाओं के आवासों ड र पर जाओ।" सेवकों ने राजाज्ञानुसार सभी सामग्री यथास्थान पहुँचाई। 5 107. After making the guests comfortable at their allotted dwellings King टा
Drupad returned to Kampilyapur city and made arrangements for cooking large quantities of food . When the preparations were complete he called his Ç servants and said, “Beloved of gods! Collect all this food, a variety of beverages in liberal quantities, and enough flowers, perfumes, apparels, garlands and ornaments and take all this to the dwellings of Krishna
Vasudev and the other kings." The servants did as told. र(214)
JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA'
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