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________________ सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २१५ ) सूत्र १०८ : तए णं वासुदेवपामुक्खा तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं जान्नं आसाएमाणा आसाएमाणा विहरंति, जिमियभुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा आयंता जाव सुहासणवरगया बहूहिं गंधव्वेहिं जाव विहरति । सूत्र १०८ : वासुदेव आदि सभी राजा उस भोजनादि सामग्री का आस्वादन कर आनन्द लेने लगे। भोजन के पश्चात् वे सुखदायक आसनों पर बैठ गंधर्व - संगीत नृत्य का आनन्द लेते हुए समय बिताने लगे। 108. Krishna Vasudev and all the other kings enjoyed all the food and beverages. After eating they rested on comfortable seats and spent their time enjoying the performances by the Gandharvas. स्वयंवर की उद्घोषणा सूत्र १०९ : तए णं से दुवए राया पुव्वावरण्हकालसमयंसि कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी- 'गच्छह णं तुमे देवाणुप्पिया ! कंपिल्लपुरे संघाडग जाव पहेसु वासुदेवपामुक्खाण य रायसहस्साणं आवासेसु हत्थिखंधवरगया महया महया सद्देणं जाव उग्घोसेमाणा उग्घोसेमाणा एवं वदह - एवं खलु देवाणुप्पिया ! कल्लं पाउप्पभायाए दुवस्स रणधूयाए, चुलणीए देवीए अत्तयाए, धट्टजुण्णस्स भगिणीए दोवईए रायवरकण्णाए सयंवर भविस्सइ, तं तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! दुवयं रायाणं अणुगिरहेमाणा व्हाया जाव विभूसिया हत्थिखंधवरगया सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणा हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडा महया भडचडगरेणं जाव परिक्खित्ता जेणेव सयंवरमंडवे तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता पत्तेयं पत्तेयं नामंकेसु आसणेसु निसीयह, निसीइत्ता दोवई रायवरकण्णं पडिवालेमाणा पाडिवालेमाणा चिट्ठह त्ति घोसणं घोसेह, मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।' तए णं कोडुंबिया तव जाव पच्चप्पिणंति । सूत्र १०९ : संध्या समय राजा द्रुपद ने अपने सेवकों को बुलाकर कहा - "देवानुप्रियो ! तुम लोग जाओ और कांपिल्यपुर नगर के शृंगाटक (चौराहे - तिराहे) आदि मार्गों में तथा वासुदेव आदि हजारों राजाओं के आवासों के निकट हाथी पर चढ़कर उच्च स्वर तथा स्पष्ट शब्दों में बार-बार उद्घोष कर यह घोषणा करो - 'देवानुप्रियो ! आगामी प्रभात काल में राजा द्रुपद की पुत्री, रानी 'चुलनी देवी की आत्मजा और कुमार धृष्टद्युम्न की बहन राजकुमारी द्रौपदी का स्वयंवर होगा । अतः हे देवानुप्रियो ! आप सभी राजा द्रुपद पर अनुग्रह कर, स्नानादि से निवृत्त हो, विभूषित हो, ) हाथी पर आरूढ़ हो, कोरंट फूलों की माला लगे छत्र धारण कर, उत्तम श्वेत चामर ढुलवाते हुए, घोड़ों, हाथियों, रथों तथा सुभटों के समूहों से युक्त चतुरंगिणी सेना से घिरे स्वयंवर मण्डप में CHAPTER - 16 : AMARKANKA 50 Jain Education International For Private Personal Use Only ( 215 ) 205 www.jainelibrary.org
SR No.007651
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages467
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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