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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 सूत्र २४ : “देवानुप्रियो ! मैं चिलात नामक चोर सेनापति अपने अधीन पाँच सौ चोरों के साथ दी र सिंह गुफा नामक चोर बस्ती से धन्य सार्थवाह का घर लूटने आया हूँ। जो नई माता का दूध पीना डा र चाहता हो (मरकर दुबारा जन्म लेना चाहता हो) वह निकल कर मेरा सामना करे।" इस प्रकार 5 ललकार कर वह धन्य सार्थवाह के घर की तरफ आया और उसके घर का द्वार खोला। 2 24. “Beloved of gods! I, thief-chieften Chilat with my gang of five hundred S
s. have come from the hide-out of thieves known as Simha-Gupha to raid the house of Dhanya merchant. Whoever wants to suck the milk of a new
mother (wants to die and be reborn) may come out and face me.” With this 15 challenge he came to the house of Dhanya merchant and opened the gate. <
सूत्र २५ : तए णं से धण्णे सत्थवाहे चिलाएणं चोरसेणावइणा पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं गिह है 5 घाइज्जमाणं पासइ, पासित्ता भीए, तत्थे, पंचहिं पुत्तेहिं सद्धिं एगंतं अवक्कमइ। र तए णं से चिलाए चोरसेणावई धण्णस्स सत्थवाहस्स गिहं घाएइ, घाइत्ता सुबहुं धण-कणगटी र जाव सावएज्जं सुसुमं च दारियं गेण्हइ, गेण्हित्ता रायगिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता दी
जेणेव सीहगुहा तेणेव पहारेत्थ गमणाए। र सूत्र २५ : धन्य सार्थवाह ने जब देखा कि उसका घर लूटने के लिए चिलात चोर सेनापति डा र अपने पाँच सौ चोरों के साथ घुस आया है तो वह भयभीत हो गया और घबराकर अपने पाँचों ट] 15 पुत्रों के साथ एकान्त में जाकर छुप गया। र चिलात ने धन्य के घर में लूट मचाई। बहुत सा धन, चाँदी, सोना आदि तथा सुंसुमा कन्या को 5 लेकर उसने राजगृह से निकल सिंह गुफा की ओर प्रस्थान किया। $ 25. When Dhanya merchant saw that chief Chilat with his gang of thieves S R had entered his house he was filled with fear and panic. He ran away and
with his five sons hid himself at a secure place. 15 Chilat raided the house. He collected heaps of wealth, silver, and gold and I 5 the merchant's daughter Sumsuma, came out of Rajagriha, and proceeded SI P towards Simha-Gupha. 5 नगररक्षकों के समक्ष फरियाद 5 सूत्र २६ : तए णं से धण्णे सत्थवाहे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुबहुत
धण-कणगं सुसुमं दारियं अवहरियं जाणित्ता महत्थं महग्धं महरिहं पाहुडं गहाय जेणेव । E णगरगुत्तिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं महत्थं जाव पाहुडं उवणेइ, उवणित्ता एवं दा
वयासी-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! चिलाए चोरसेणावई सीहगुहाओ चोरपल्लीओ इहं हव्वमागम्म S| र पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं मम गिहं घाएत्ता सुबहुं धण-कणगं सुसुमं च दारियं गहाय जाव टा 7 (314)
JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA 2 FinnnnnAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA)
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