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पन्द्रहवाँ अध्ययन : नदीफल : आमुख ।
शीर्षक-णंदिफले-नंदीफल-फल विशेष। नन्दी नामक यह एक विषैला वृक्ष है तथा इसे प्रतीक बनाकर बाह्य-आकर्षण के प्रभाव से विवेकहीन बन जाने के मारक प्रभाव को प्रकट किया गया है। सुखों के आकर्षण में छुपे दुःख रूप विष की चेतावनी सद्समागम से मिलती है। पर जो विवेक खो कर चेतावनी भूल जाते हैं वे दुर्गति को प्राप्त होते हैं और जो अपना विवेक नहीं खोते वे आगे सद्गति की ओर बढ़ जाते हैं।
कथासार-चम्पानगरी का धन्य सार्थवाह व्यापार हेतु अहिच्छत्रा नगरी जाने का संकल्प करता है। अपने साथ वह सभी समर्थ-असमर्थ लोगों को चलने का आमंत्रण देता है और सब के सख-सविधा का भार स्वयं ले लेता है। मार्ग में वह सभी को चेतावनी देता है कि आगे नंदीफल नामक वृक्षों से भरा जंगल आएगा। ये वृक्ष बहुत छायादार और सुन्दर फूलों तथा स्वादिष्ट फलों से लदे होने के कारण लुभावने दिखते हैं किन्तु इनकी छाया तथा फल-फूल सभी विषैले हैं। अतः कोई न तो इनके नीचे-विश्राम ले और न फल तोड़ कर खाए। सभी अन्य वृक्षों का उपयोग करें। जब सार्थ वहाँ पहुँचा तो धन्य ने पुनः अपनी चेतावनी दोहराई। __ इस चेतावनी के बावजूद बहुत से लोग उन वृक्षों से आकर्षित हो चेतावनी को भूल गये
और छाया में जा बैठे तथा फल तोड़कर खा लिए। वे सभी लोग पहले तो बड़े आनन्दित हुए पर फिर विष के प्रभाव से मर गये। जिन लोगों ने अपने पर नियन्त्रण रखा वे इन वृक्षों से दूर अन्य वृक्षों की छाया में ही रहे। वे सभी आरम्भ में तो कष्ट पाते रहे पर फिर सन्तुष्ट हुए और प्राण रक्षा कर सके।
धन्य अपने सार्थ सहित अहिच्छत्रा पहुँचा और वहाँ व्यापारादि कर पुनः चंपा लौट आया। कालान्तर में दीक्षा ली और संयममय जीवन बिता देवलोक में जन्म लिया। वहाँ से महाविदेह में जन्म लेगा और मोक्ष प्राप्त करेगा।
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JNĀTĀ DHARMA KATHÃNGA SÚ
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