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र चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र
( १४१) ड 15 केवलज्ञान-प्राप्ति र सूत्र ४८ : "तए णं अहं ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं इहेव तेयलिपुरे तेयलिस्सी 5 अमच्चस्स भद्दाए भारियाए दारगत्ताए पच्चायाए। तं सेयं खलु मम पुव्वुद्दिवाइं महव्वयाइंड र सयमेव उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए" एवं संपेहेइ, संपेहित्ता सयमेव महव्वयाइं आरुहेइ, 5 आरुहित्ता जेणेव पमयवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे ड
2 पुढविसिलापट्टयंसि सुहनिसन्नस्स अणुचिंतेमाणस्स पुव्वाहीयाइं सामाइयमाइयाइं चोद्दसपुव्वाइंट 15 सयमेव अभिसमन्नागयाइं।
र तए णं तस्स तेयलिपुत्तस्स अणगारस्स सुभेणं परिणामेणं जाव पसत्थेणं अज्झवसाएणंट 15 लेस्साहिं विसुज्झमाणीहिं तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं कम्मरयविकरणकर अपुवकरणं डा र पविट्ठस्स केवलवरणाणदंसणे समुप्पन्ने। 5 सूत्र ४८ : “देवलोक की आयुष्य पूर्ण हो जाने पर मैं वहाँ से च्यवन कर यहाँ तेतलिपुर में ड र तेतलि अमात्य की भद्रा नामक पत्नी के पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ। अतः मेरे लिए यह अच्छा होगा टा 5 कि पूर्व-जन्म में किए महाव्रतों को स्वयं ही अंगीकार कर जीवन व्यतीत करूँ।" इस प्रकार विचार डा 5 कर तेतलिपुत्र ने स्वयं ही महाव्रत अंगीकार कर लिया। फिर वे प्रमदवन उद्यान में जा एक श्रेष्ठ SI र अशोक वृक्ष के नीचे शिला पर बैठ गए। वहाँ विचारमग्न हुए और पूर्व-जन्म में अध्ययन किये 15 चौदह पूर्व उन्हें अपने आप याद हो आए। . र फिर शुभ परिणाम आदि के प्रभाव से अवगत तेतलिपुत्र के आवरणीय कर्मों का क्षय और 5 उपशम हो गया। उन्होंने कर्मरज का नाश करके अपूर्वकरण स्तर में प्रवेश किया और चार
घातिकर्मों का नाश कर उत्तम केवलज्ञान और दर्शन प्राप्त कर लिये।
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> ATTAINING KEVAL JNANA र 48. “After completing the life-span in the dimension of gods I reincarnated & 5 as the son of minister Tétali and his wife Bhadra in this city of Tetalipur. As c 5 such, it would be good for me to take the five great vows as I had done during S
my earlier birth and lead a disciplined ascetic life." And Tetaliputra on his own took the great vows. After that he went to the Pramadvan garden and sat down on a rock under an Ashok tree. He started his meditation and
remembered the fourteen sublime canons that he had studied during his 5 earlier birth. P As a result of continuously purifying attitude (etc. ) he suppressed and 2 5 then shed the veiling Karmas. Consequently he attained the unprecedented 5 state of Apurvakaran (the eighth level of purity of soul described as
C
PTER-14 : TETALIPUTRA
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