SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेरहवाँ अध्ययन : मंडूक - दर्दुरज्ञात ( ११ ) सूत्र ११ : दूसरे दिन सूर्योदय के बाद उसने पौषध पारा ( यथाविधि संपूर्ण किया) और स्नान, बलिकर्म आदि कर मित्रों व स्वजनों को साथ लेकर राजा के योग्य बहुमूल्य उपहारों सहित श्रेणिक राजा के पास गया। राजा को उपहार भेंट कर उसने निवेदन किया- “स्वामी ! आपकी अनुमति प्राप्त कर मैं राजगृह नगर के बाहर एक पुष्करिणी खुदवाना चाहता हूँ ।" राजा ने उत्तर दिया- "जिसमें तुम्हें सुख मिले वह करो।" 11. Next morning he ritually concluded his penance and, after taking his bath and getting ready, made arrangements to visit the king. He took along some of his friends and relatives, collected some rich gifts suitable for the king and came to the palace. After offering the gifts he submitted, "Sire! If you grant me permission I want to construct a large pool outside the city." The king replied, "Do as you please." पुष्करिणी निर्माण सूत्र १२ : तए णं णंदे सेणिएणं रण्णा अब्भणुण्णो समाणए हट्ट तुट्ट रायगिहं मज्झमज्झेण निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता वत्थुपाढयरोइयंसि भूमिभागंसि णंदं पोक्खरिणिं खणावि पत्ते यावि था। तए णं सा णंदा पोक्खरिणी अणुपुव्वेणं खणमाणा खणमाणा पोक्खरिणी जाया यावि होत्था चाउक्कोणा, समतीरा, अणुपुव्वसुजाय वप्पसीयलजला, संछण्णपत्त-विस - मुणाला बहुप्पल-पमकुमुद-नलिणी- सुभग-सोगंधिय-पुंडरीय महापुंडरीय सयपत्त-सहस्सपत्त- पफुल्लके सरोववेय परिहत्थ-भमंत-मत्तछप्पय अणेग-सउणगण-मिहुण-वियरिय-सदुन्नइय-महुर-सरनाइया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा । सूत्र १२ : श्रेणिक राजा से आज्ञा प्राप्तकर नन्द मणिकार प्रसन्न व संतुष्ट हुआ। राजगृह नगर के मध्य से होता हुआ वास्तुकारों द्वारा चुने स्थल पर आया और पुष्करिणी की खुदाई का काम आरम्भ करवा दिया। धीरे-धीरे नंदा नाम की वह पुष्करिणी क्रमानुसार समचतुष्कोण अथवा वर्गाकार हो गई। उसके चारों ओर परकोटा बन गया । वह शीतल जल से भर गई । उसका जल पत्तों, तंतुओं और मृणालों से आच्छादित हो गया। विकसित उत्पल, कमल, पद्म (सूर्य विकासी), कुमुद (चन्द्र विकासी), नलिनी, सुभग, सौगंधिक, पुण्डरीक ( श्वेत कमल), महापुण्डरीक, शतपत्र और सहस्रपत्र आदि अनेक जाति के कमल-पुष्पों तथा उनकी केसर से वह शोभित हो गई। परिहत्थ नाम के जल-जन्तुओं, उड़ते हुए मदमत्त भँवरों और अनेक पक्षी - युगलों के उच्च व मधुर स्वर से वह गूँजने लगी। वह पुष्करिणी सबके चित्त को प्रसन्न करने वाली दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हो गई। CHAPTER-13: THE FROG Jain Education International For Private Personal Use Only (91) www.jainelibrary.org
SR No.007651
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages467
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy