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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 prime minister of the king was named Subuddhi. He was loyal to the king || > and looked after all the affairs of the state. Subuddhi was a Shramanopasak SI
having knowledge of the fundamentals like soul and matter. 15 सूत्र ३ : तीसे णं चंपाए णयरीए बहिया उत्तरपुरच्छिमेणं एगे फरिहोदए यावि होत्था, डा
र मेय-वसा-मंस-रुहिर-पूय-पडल-पोच्चडे मयग-कलेवर-संछण्णे अमणुण्णे वण्णेणं जाव फासेणं। से टा 15 जहानामए अहिमडेइ वा गोमडेइ वा जाव मय-कुहिय-विणट्ट-किमिण-वावण्ण-दुरभिगंध डा
र किमिजालाउले, संसत्ते असुइ-वियग-बीभत्थ-दरिसणिज्जे, भवेयारूवे सिया ? णो इणढे समढे, टा 15 एत्तो अणिट्टतराए चेव जाव गंधेण पण्णत्ते। र सूत्र ३ : चम्पा नगरी के बाहर उत्तर-पूर्व दिशा में एक खाई थी जिसका पानी मेद, वसा, रक्त दी 5 और पीव का भंडार था। वह मृत शरीरों से अटा पड़ा था और वर्ण, गंध, रस और स्पर्श से दी 2 घिनौना, अमनोज्ञ था। वह सड़े, गले, कीड़ों से भरे और पशुओं द्वारा खाए गए मृत कलेवर जैसी डी र दुर्गन्ध वाला था, मानो सर्प, गाय आदि जीवों की लाशें सड़कर दुर्गन्ध फैला रही हों। वह कृमियों दी 5 तथा अन्य जीवों से भरा पड़ा था तथा अशुचि, विकृत और बीभत्स दिखाई देता था। क्या सचमुच द 5 वह इतना भयावह दिखता था? नहीं, वह जल तो इससे भी अधिक अनिष्ट बीभत्स दुर्गन्ध आदि डा र वाला बताया गया है। 15 3. In the north eastern direction of the city there was a trench filled with 5 grimy water polluted with marrow, fat, blood, and pus. Cadavers were
heaped within this water body making it obnoxious to the senses of touch, र smell, taste, and sight. It was filled with a stench like that of a decomposed,
decayed and vermin infested corpse as if the dead bodies of snake, cow, and other animals had decayed emitting a repulsive stench. Covered with a rawling insects it appeared messy, foul, and revolting. Was it really so I
ater was obnoxious beyond describing. भोजन की प्रशंसा
सूत्र ४ : तए णं से जियसत्तू राया अण्णया कयाइ ण्हाए कयबलिकम्मे जावट 5 अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे बहूहिं राईसर जाव सत्थवाहपभिइहिं सद्धिं भोयणवेलाए र सुहासणवरगए विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं जाव विहरइ, जिमिय-भुत्तुत्तरागए जाव सुईभूए । 5 तंसि विपुलंसि असण जाव जायविम्हए ते बहवे ईसर जाव पभिईए एवं वयासी5 'अहो णं देवाणुप्पिया ! मणुण्णे असणं पाणं खाइमं साइमं वण्णेणं उववेए जाव फासेणं र उववेए अस्सायणिज्जे विस्सायणिज्जे पीणणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे बिंहणिज्जे । र सव्विंदियगाय-पल्हायणिज्जे।' 5 (66)
JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny
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השחיתיהם
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