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बारहवाँ अध्ययन : उदक ज्ञात
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सूत्र ४ : राजा जितशत्रु एक बार स्नान, बलिकर्म आदि से निवृत्त होकर हल्के, पर बहुमूल्य, आभूषण शरीर पर धारण कर अनेक राजाओं, राजकुमारों, सार्थवाहों (अ-१, सू. १९ के समान) आदि के साथ विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन कर रहा था। भोजन पूरा होने के बाद हाथ मुँह धोकर पूर्णतया स्वच्छ हो उस भोजन के स्वाद से चकित हो वह उपस्थित लोगों से कहने लगा
“ अहो देवानुप्रियो ! यह भोजन जो हमने किया, वह उत्तम वर्णादि युक्त था और स्वाद ले लेकर खाने योग्य था। यह भोजन पुष्टिदायक, दीप्तिवर्धक (बल बढ़ाने वाला) दर्पवर्धक, मद-वर्धक, सर्व धातुवर्धक तथा देह तथा इन्द्रियों के लिए आनन्ददायक था । "
PRAISE OF THE FOOD
4. One day the king got ready after his bath and other daily chores and adorned himself with light but costly ornaments. He then joined numerous princes, kings, and other guests (details as in Ch. 1. para 19 ) in a feast. After eating the sumptuous food and washing his hands and mouth, the king, impressed by the quality of the food, said to the guests
"Beloved of gods! The food we ate was of best quality and worth enjoying. It was nourishing, invigorating, satisfying, intoxicating, and vitalizing. It was blissful to all the five senses of the body."
सूत्र ५ : तए णं ते बहवे ईसर जाव सत्थवाहपभिइओ जियसत्तुं एवं वयासी - ' तहेव णं सामी ! जं णं तुब्भे वदह। अहो णं इमे मणुण्णे असणं पाणं खाइमं साइमं वण्णेणं उववेए जाव पल्हायणिज्जे ।'
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सूत्र ५ : राजा के इस कथन का वहाँ उपस्थित सभी सार्थवाह आदि उपस्थित अतिथियों ने एक स्वर से समर्थन किया- “स्वामिन् । आप जैसा कहते हैं, वह ठीक है। यह भोजन वास्तव में मनोज्ञ एवं पुष्टिदायक आदि है।”
5. All the guests present there unanimously attested the king's statement, "What you say is true Sire! this food is indeed gourmet and nutritious (etc. as in para 4).”
सूत्र ६ : तए णं जितसत्तू सुबुद्धिं अमच्चं एवं वयासी - 'अहो णं सुबुद्धी ! इमे मणुणे असणं पाणं खाइमं साइमं जाव पल्हायणिज्जे । '
तणं सुबुद्धीजियसत्तुस्सेयमहं नो आढाइ, जाव तुसिणीए संचिट्ठा ।
सूत्र ६ : राजा जितशत्रु ने अपने मंत्री सुबुद्धि को इंगित कर भोजन सम्बन्धी अपने विचार दोहरा - " हे सुबुद्धि ! यह भोजन उत्तम वर्ण, रस आदि से युक्त तथा इन्द्रिय एवं शरीर को आल्हादजनक था ।" इस पर सुबुद्धि ने अपनी सहमति प्रकट नहीं की, वह मौन ही रहा ।
CHAPTER-12: THE WATER
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