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"पन्द्रहवाँ अध्ययन: नंदीफल
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'हे देवानुप्रियो ! आगे आने वाली अटवी बहुत लम्बी है और उसमें मनुष्यों का आना-जाना नहीं होता है। अटवी के मध्य भाग में नंदीफल नाम के वृक्ष हैं। वे सघन हरे रंग के हैं और पत्तों, फूलों, फलों से लदे भरपूर शोभा लिए खड़े हैं। उनके रूप-रंग-रस-गंध और छाया मनोहारी हैं। परन्तु हे देवानुप्रियो ! जो भी उन नंदीफल वृक्षों के मूल, कंद, छाल, पत्ते, फूल, फल, बीज या हरित को खाएगा अथवा उनकी छाया में बैठेगा, उसे उस समय तो अच्छा लगेगा पर बाद में उनका प्रभाव पड़ने पर वह अकाल मृत्यु को प्राप्त करेगा। अतएव हे देवानुप्रियो ! कोई भी उन नंदीफल वृक्षों के मूल आदि किसी भी अंग का सेवन न करें और न उनकी छाया में विश्राम करें, जिससे अकाल ही किसी के जीवन का नाश न हो। हे देवानुप्रियो ! तुम लोग किसी भी अन्य वृक्ष के मूलादि को खा सकते हो, उसकी छाया में विश्राम कर सकते हो ।'
" इस प्रकार घोषणा करके मुझे सूचना दो।”
THE WARNING
9. “Beloved of gods! Go to the group camp of our caravan and announce many times in loud voice
`Beloved of gods! The wilderness ahead is very large and it is seldom visited by man. In the central part of this wilderness there are trees named Nandiphal. They are green, beautiful and rich with leaves, flowers, and fruits. Their form, colour, taste, smell and shade are inviting. But, beloved of gods! Whoever eats the stock, root, bark, leaf, flower, fruit, seed, or any other part of these trees and even sits in their shade will feel pleasant for some time but later when its effect starts he will embrace sudden death. So, O beloved of gods! no one should eat the stock, root, or any other part of these trees or even sit in their shade lest he lose his life. Beloved of gods! You can eat the stock, root, or any other part of any other tree or even sit in its shade.'
“After the announcement report back to me.”
सूत्र १० : तए णं धण्णे सत्थवाहे सगडीसागडं जोएइ, जोइत्ता जेणेव नंदिफला रुक्खां तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तेसिं नंदिफलाणं अदूरसामंते सत्थनिवेस करेइ, करित्ता दोच्चं पि तच्चं पि कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - तुभे णं देवाणुप्पिया ! मम सत्थनिवेसंसि महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणा उग्घोसेमाण एवं वयह- 'एए णं देवाणुप्पिया ! ते
दिफला किण्हा जाव मणुण्णा छायाए, तं जो णं देवाणुप्पिया ! एएसिं णंदिफलाणं रुक्खाणं मूलाणि वा कंदाणि वा पुष्पाणि वा तयाणि वा पत्ताणि वा फलाणि वा जाव अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेंति; तं मा णं तुङभे जाव दूरं दूरेणं परिहरमाणा वीसमह, मा णं अकाले जीवियाओ ववरोविस्संति। अन्नेसिं रुक्खाणं मूलाणि य जाव वीसमह त्ति कट्टु घोसणं पच्चप्पिणंति ।
CHAPTER-15: THE NANDI-FRUIT
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