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र तेरहवाँ अध्ययन : मंडूक-द१रज्ञात
( १०३ ) SIL 5 a two day fast followed by a day of eating and so on throughout the rest of my s 5 life. Also, on the day of eating I shall take only the fallen crumbles of slime s
shed by human beings who take bath with the clean water of this pool on its
shore." And it commenced the penance and the disciplined life immediately र after the resolve. 15 सूत्र २८ : तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा ! गुणसीलए चेइए समोसढे। परिसा रणिग्गया। तए णं णंदाए पुक्खरिणीए बहुजणो ण्हायमाणो य पियमाणो य पाणियं संवहमाणो यद 5 अन्नमन्नं एवमाइक्खइ-जाव समणे भगवं महावीरे इहेव गुणसीलए चेइए समोसढे। तं गच्छामो ण
र देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वंदामो जाव पज्जुवासामो, एयं मे इहभवे परभवे य हियाएट 15 जाव आणुगामियत्ताए भविस्सइ।
र सूत्र २८ : हे गौतम ! काल के उस भाग में मैं गुणशील चैत्य में आया और परिषद निकली। द 15 उस समय नन्दा पुष्करिणी में स्नानादि करते लोग परस्पर बातें करने लगे-"श्रमण भगवान
र महावीर का समवसरण गुणशील चैत्य में है अतः हे देवानुप्रिय ! हम चलकर उनकी वन्दनार उपासना करें। यह हमारे वर्तमान और भविष्य के लिए श्रेयस्कर होगा।" र 28. Gautam! During that period of time I arrived in the Gunasheel 2 Chaitya and a delegation of citizens came there. The citizens taking bath in
the Nanda pool talked among themselves, "Shraman Bhagavan Mahavir is 15 giving discourses in the Gunasheel Chaitya. So Beloved of gods! we should go 15 their and pay our homage. This would be beneficial for us in the present as ŞI
well as future." 15 मेंढक का वन्दनार्थ प्रस्थान 5 सूत्र २९ : तए णं तस्स ददुरस्स बहुजणस्स अंतिए एयमढं सोच्चा णिसम्म अयमेयारूवे इ र अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जेत्था-“एवं खलु समणे भगवं महावीरे जावट
समोसढे, तं गच्छामि णं वंदामि" जाव एवं संपेहेइ, संपेहित्ता णंदाओ पुक्खरिणीओ सणियं दे P सणियं उत्तरइ, उत्तरित्ता जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ताए उक्किट्ठाए । 5 ददुरगईए वीइवयमाणे वीइवयमाणे जेणेव ममं अंतिए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। र सूत्र २९ : अनेक लोगों से यह समाचार सुन और समझकर उस मेंढक के मन में विचार, ड र चिन्तन, अभिलाषा और मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ-"श्रमण भगवान महावीर यहाँ पधारे हैं, दे 5 निश्चय ही मैं भी जाऊँ और भगवान की वन्दनादि करूँ।" यह विचार आने पर वह धीरे-धीरे ड P नन्दा पुष्करिणी से बाहर निकला, राजमार्ग पर आया और अपनी तेज चाल से चलता हुआ मेरे ही E पास आने लगा।
भएण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण
LI CHAPTER-13 : THE FROG
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