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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र दा 5 और मैंने उनके पास पाँच अणुव्रत तथा सात शिक्षाव्रत युक्त श्रावक धर्म अंगीकार किया। किन्तु दी र साधुओं का सान्निध्य न होने से धीरे-धीरे मैं सम्यक्त्व से पतित हो मिथ्यात्वी बन गया।" 15 “गर्मी में तेले के व्रत के समय मुझे पुष्करिणी खुदवाने का विचार आया और राजाज्ञा से मैंने ट र वनखण्डों और सभाओं सहित नन्दा पुष्करिणी बनवाई। मृत्यु पश्चात्, पुष्करिणी के प्रति आसक्ति डा र के कारण, मैं यहीं मेंढक के रूप में उत्पन्न हुआ। अतः मैं अधन्य हूँ, पुण्यहीन हूँ, अकृतपुण्य हूँ। मैं 15 निर्ग्रन्थ वचन से भ्रष्ट होते-होते पूर्ण भ्रष्ट हो गया। अब मेरे लिये यही हितकर होगा कि एक बार टा
) फिर वे पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत मैं स्वयं अंगीकार करके तदनुसार जीवन बिताऊँ।" दा 15 A SHRAVAK AGAIN
___26. Once it acquired the Jatismaran Jnana it thought, “I was the SI merchant Nand Manikaar and lived in Rajagriha. During that period of time
Shraman Bhagavan Mahavir came and I became a Shramanopasak. But 15 later I did not get any opportunity to meet ascetics and consequently my righteousness faded and I became misguided.
“During a summer season while observing a three day fast I thought of constructing a pool and after seeking permission from the king I got the Nanda pool constructed. After my death I was born as a frog due to my
extreme attachment for this pool. Thus I am a wretched, ill fated, and 5 virtueless individual. I have fallen from my grace and lost my faith in the c! word of the omniscient. Now it would be good for me if I once again take the
five minor vows and seven disciplinary vows and spend the rest of my life र observing them. 15 सूत्र २७ : एवं संपेहेइ, संपेहित्ता पुव्वपडिवन्नाइं पंचाणुव्वयाइं सत्तसिक्खावयाइं आरुहेइ, टा
र आरुहित्ता इमेयारूवे अभिग्गहं अभिगिण्हइ-“कप्पइ मे जावज्जीवं छठें छठेणं अणिक्खित्तेण । 5 अप्पाणं भावमाणस्स विहरित्तए। छट्ठस्स वि य णं पारणगंसि कप्पइ मे गंदाए पोक्खरिणीए 5 परिपेरंतेसु फासुएणं ण्हाणोदएणं उम्महणालोलियाहि य वित्तिं कप्पेमाणस्स विहरित्तए।" इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हइ जावज्जीवाए छटुं छटेणं जाव विहरइ।
सूत्र २७ : यह विचार आने पर उसने बारह व्रतों को पुनः अंगीकार किया और साथ ही यह ट र अभिग्रह धारण किया-“आज से जीवन पर्यन्त मैं बेल-बेले की तपस्या से आत्मा को भावित करते डा र हुए ही जीवन बिताऊँगा। बेले के पारणे में भी नन्दा पुष्करिणी के तट भाग के प्रासुक जल द्वारा 5 स्नान कर मनुष्यों द्वारा उतारे गए मैल के इधर-उधर गिरे टुकड़ों मात्र से अपना काम चलाऊँगा।"
। ऐसा निश्चय कर वह तदनुसार तपस्या करता हुआ जीवन बिताने लगा। 5 27. Once he got the idea he immediately took the twelve vows and also a 5 resolved, “Starting from today I shall purify my soul by doing the penance of 6 (102)
JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA , SAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn
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पाएसपएण्ण्ण्ण्ण्ण्य
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