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LIDUDDDDDDDDDDDDDDDDDDU तेरहवाँ अध्ययन : मंडूक-द१रज्ञात
( १०१) डा 15 इमेयारूवा गंदा पुखरिणी चाउक्कोणा जाव पडिरूवा, जस्स णं पुरथिमिल्ले वणसंडे चित्तसभा र अणेगखंभसयसन्निविट्ठा तहेव चत्तारि सहाओ जाव जम्मजीविअफले।" .. 5 सूत्र २४ : नन्दा पुष्करिणी में अनेक लोग स्नानादि करते, पानी पीते, पानी भरकर ले जाते हुए 5 २ नन्द मणिकार की प्रशंसा किया करते थे और पुष्करिणी बनाने के लिए बार-बार उसे धन्यवाद देते ४
थे। (विस्तार पूर्व-सू. २० के समान) 15 24. Many visitors of the Nanda pool while indulging in various activities 12 like washing, drinking, and carrying water used to praise Nand Manikaar 5 and thank him for constructing the complex. (details as para 20). र सूत्र २५ : तए णं तस्स ददुरस्स तं अभिक्खणं अभिक्खणं बहुजणस्स अंतिए एयमझेंड र सोच्चा णिसम्म इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जेत्था-“से कहिं मन्ने मए इमेयारूवे सद्दे द 15 णिसतपुचे" त्ति कटु सुभेणं परिणामेणं जाव जाइसरणे समुप्पन्ने, पुव्वजाइं सम्मं समागच्छइ।
5 सूत्र २५ : अनेक लोगों के मुखों से इस प्रकार प्रशंसा सुन उस मेंढक को लगा जैसे उसने ये 15 शब्द पहले भी सुने हैं। इन विचारों के साथ शुभ परिणामों के कारण वह गहन विचारणा में डूबा 5
र और उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया। पूर्व जन्म की सभी घटनाएँ पूरी तरह याद हो आईं। ट 15 25. Hearing these words of praise from so many people the frog felt as if it çl Ş had heard all this earlier also. Inspired by these thoughts and the
consequent purity of attitude, it went into a state of deep contemplation that K led to its acquiring Jatismaran Jnana (the knowledge of the earlier births) 5 and it remembered the incidents from its earlier birth. र पुनः श्रावकधर्म स्वीकार र सूत्र २६ : तए णं तस्स ददुरस्स इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जेत्था-"एवं खलु अहं टा 5 इहेव रायगिहे नगरे णंदे णामं मणियारे अड्ढे। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे द र समोसढे, तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइए सत्तसिक्खावइए जाव टा पडिवन्ने। तए णं अहं अन्नया कयाई असाहुदंसणेण य जाव मिच्छत्तं विप्पडिवन्ने। तए णं अहं ८
अन्नया कयाई गिम्हकालसमयंसि जाव उवसंपज्जित्ता णं विहरामि। एवं जहेव चिंता आपुच्छणा र नंदा पुक्खरिणी वणसंडा सहाओ तं चेव सव्वं जाव नंदाए पुक्खरिणीए ददुरत्ताए उववन्ने। र तं अहो ! णं अहं अहन्ने अपुन्ने अकयपुन्ने निग्गंथाओ पावयणाओ नढे भट्ठे परिब्भटे, तं सेयं ही 15खलु ममं सयमेव पुव्वपडिवन्नाइं पंचाणुव्वयाई सत्तसिक्खावयाई उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।" डा र सूत्र २६ : जातिस्मरण ज्ञान होने से उस मेंढक के मन में विचार आया-“मैं इसी राजगृह नगर ट
में नन्द नाम का मणिकार सेठ था। काल के उस भाग में श्रमण भगवान महावीर का आगमन हुआ 8 5 CHAPTER-13 : THE FROG
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