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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा इनन्द मणिकार की मृत्यु तथा पुनर्जन्म र सूत्र २३ : तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य कुसला य
कुसलपुत्ता य जाहे नो संचाएंति तेसिं सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायकं उवसामेत्तए ताहे ट 15 संता तंता जाव परितंता निविण्णा समाणा जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया। 5 तए णं णंदे तेहिं सोलसेहिं रोगायंकेहिं अभिभूए समाणे नंदा पोखरिणीए मुच्छिए
तिरिक्खजोणिएहिं निबद्धाउए, बद्धपएसिए अट्टदुहट्टवसट्टे कालमासे कालं किच्चा नंदाए हा B पोक्खरिणीए ददुरीए कुच्छिसि ददुरत्ताए उववन्ने। हे तए णं णंदे ददुरे गब्भाओ विणिम्मुक्के समाणे उम्मुक्कबालभावे विनायपरिणयमित्ते रजोव्वणगमणुपत्ते नंदाए पोक्खरिणीए अभिरममाणे अभिरममाणे विहरइ। हे सूत्र २३ : वे सभी चिकित्सक, वैद्य, वैद्यपुत्र आदि अपने परिश्रम से थक गये तथा एक भीड र रोग ठीक नहीं कर सकने की असफलता से खिन्न और उदास हो अपने-अपने घर लौट गए। . 15 नन्द मणिकार अपने रोगों से अभिभूत-पीड़ित हो नन्दा पुष्करिणी के प्रति अत्यधिक आसक्ति
र वाला हो गया। अत्यधिक आसक्ति के कारण उसने तिर्यंच योनि की आयुष्य व भव का बन्धन 15किया। आर्तध्यानपूर्वक मृत्यु प्राप्त कर उसी नन्दा पुष्करिणी में रही एक मेंढकी की कोख में मेंढक 15 के रूप में उसका गर्भाधान हुआ।
र नन्द मेंढक ने यथा समय जन्म लिया, धीरे-धीरे बाल्यावस्था से मुक्त हो ज्ञानवान युवावस्था को 15प्राप्त हुआ और नन्दा पुष्करिणी में क्रीड़ा करता जीवन व्यतीत करने लगा।
DEATH AND REBIRTH OF NAND MANIKAAR 12 23. After all this hard work all the doctors got tired and left thoroughly a 5 disappointed and dejected. 5. While suffering the agony of all these ailments Nand Manikaar's S
attachment for Nanda pool increased. The intensity of this attitude of 12 extreme attachment became instrumental in his acquiring the Tiryanch
Ayushya and Bhava karma (the karma responsible for a life and life-span as 5 a lower animal). He died with melancholic attitude during his last moments, 15 and his soul descended into the womb of a she-frog in the Nanda pool. 2 In due course Nand frog was born and crossing the age of infancy it
became a fully grown frog. It spent all its time playing around in the Nanda 5 pool. हे सूत्र २४ : तए णं णंदाए पोक्खरिणीए बहू जणे व्हायमाणो य पियमाणो य पाणियं डा रसंवहमाणो य अन्नमन्नस्स एवं आइक्खइ-"धन्ने णं देवाणुप्पिया ! णंदे मणियारे जस्स णं टी (100)
JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SÜTRA I
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