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________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ( १२४ ) stayed with her disciples at a suitable place and commenced her spiritual activities. पोट्टिला का अनुरोध सूत्र २५ : तए णं तासिं सुव्वयाणं अज्जाणं एगे संघाइए पढमाए पोरिसीए सज्झायं करे इ जाव अडाणीओ तेयलिपुत्तस्स गिहं अणुपविट्ठाओ । तए णं सा पोट्टिला ताओ अज्जाओ एज्जमाणीओ पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठा आसणाओ अब्भट्ठे, अब्भुट्टित्ता वंदइ नमसइ वंदित्ता सत्ता विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं पडिलाभेइ, पडिलाभित्ता एवं वयासी " एवं खलु अहं अज्जाओ ! तेयलिपुत्तस्स पुव्विं इट्टा कंता पिया मणुण्णा मणामा आसि, इयाणिं अणिट्टा अप्पिया, अकंता अमणुण्णा अमणामा जाया । नेच्छइ णं तेयलिपुत्ते मम नामगोयमवि सवणयाए, किं पुण दंसणं वा परिभोगं वा ? तं तुब्भे णं अज्जाओ बहुनायाओ, बहुसिक्खियाओ, बहुपढियाओ, बहूणि गामागर जाव आहिंडह, राईसर जाव गिहाई अणुविस, तं थाई भे अज्जाओ ? केइ कहिंचि चुन्नजोगे वा, मंतजोगे वा, कम्मणजोए वा, हियउड्डावणे वा, काउड्डावणे वा, आभिओगिए वा, वसीकरणे वा, कोउयकम्मे वा, भूइकम्मे वा, मूले कंदे छल्ली वल्ली सिलिया वा, गुलिया वा, ओसहे वा, भेसज्जे वा उवलद्वपुव्वे जेणाहं तेयलिपुत्तस्स पुणरवि इट्ठा भवेज्जामि । सूत्र २५ : सुव्रता आर्या के एक संघाडे ने प्रथम प्रहर में स्वाध्याय और दूसरे प्रहर में ध्यान किया। तीसरे प्रहर में भिक्षादि के लिए निकलीं और भ्रमण करती हुई साध्वियाँ तेतलिपुत्र के घर में आईं। पोट्टिला उन्हें आते देख प्रसन्न और सन्तुष्ट हुई, अपने आसन से उठ उन्हें वंदन - नमस्कार किया और यथेष्ट आहार सामग्री बहरायी। इसके बाद वह बोली “हे आर्याओ ! पहले मैं तेतलिपुत्र की इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और मणाम ( मनभावन ) थी किन्तु अब अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ और अमणाम हो गई हूँ । तेतलिपुत्र मेरा नाम भी सुनना नहीं चाहते, देखना और परिभोग करना तो दूर की बात है। हे आर्याओ ! आप तो बहुत विदान् हैं, शिक्षित हैं, अनुभवी हैं, अनेक नगर-ग्राम में भ्रमण कर चुकी हैं, अनेक राजाओं, युवराजों आदि के घरों में जा चुकी हैं। अतः आपके पास यदि कोई चूर्ण - योग, मंत्र - योग, कामण-योग, मन हरने का उपाय, शरीर को आकर्षित करने का उपाय, पराभूत करने का उपाय, वशीकरण का प्रयोग, मनमोहक हेतु अभिषेक, मंत्रित भभूत का प्रयोग अथवा सेल, कंद, छाल, बेल, घास, गोली, औषध या भेषज की जानकारी हो तो बतावें ताकि मैं फिर से तेतलिपुत्र की प्रिय हो सकूँ ।" POTTILA SEEKS HELP 25. During the first quarter of the day (three hours ) Arya Suvrata did her studies, during the second one she did her meditation, and during the third JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA ( 124 ) Fo Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007651
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages467
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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