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कचौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र
( १२३ ) डा 15 सूत्र २३ : तए णं तेयलिपुत्ते पोट्टिलं ओहयमणसंकप्पं जाव झियायमणिं पासइ, पासित्ता एवं डी र वयासी-“मा णं तुम देवाणुप्पिया ! ओहयमणसंकप्पा, तुमं णं मम महाणसंसि विपुलं असणंड 5 पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेहि, उवक्खडावित्ता बहूणं समणमाहण जाव अतिहि-किवण-ट र वणीमगाणं देयमाणी य दवावमाणी य विहराहि।" 5 तए णं सा पोट्टिला तेयलिपुत्तेणं एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्टा तेयलिपुत्तस्स एयमढें पडिसुणेइ, हा र पडिसुणित्ता कल्लाकल्लिं महाणसंसि विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं जाव उवक्खडावेइ, हा 15 उवक्खाडावेत्ता बहूणं समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगाणं देयमाणी य दवावेमाणी य विहरइ। दी
र सूत्र २३ : भग्न हृदया पोट्टिला को चिन्तामग्न देखा तो तेतलिपुत्र ने उससे कहा-“देवानुप्रिये ! डी 15 मन को दुःखी मत करो। तुम मेरी भोजनशाला में विपुल आहार सामग्री तैयार करवाकर अनेक दी
र श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि तथा याचकों को दान दिया-दिलाया करो और सुख से जीवन व्यतीत किया डा एकरो।" 5 तेतलिपुत्र के इस कथन से पोट्टिला प्रसन्न और संतुष्ट हुई। वह अपने पति की बात स्वीकार ६ र कर उसी के अनुसार आहारदान देने-दिलाने लगी और सुख से जीवन बिताने लगी। 5 23. When Tetaliputra saw her in this sad condition he said, “Beloved of दा 5 gods! Don't get dejected. You can get large quantities of food cooked in my s
kitchen and distribute it to numerous Shramans, Brahmans, guests and 3 beggars. Doing such charity you can spend your time happily." 5 This pleased Pottila. Accepting the advice of her husband she started 5 distributing food and enjoying the charitable act. र सूत्र २४ : तेणं कालेणं तेणं समएणं सुव्वयाओ नामं अज्जाओ ईरियासमियाओ जावट र गुत्तबंभयारिणीओ बहुस्सुयाओ बहुपरिवाराओ पुच्वाणुपुव्विं चरमाणीओ जेणामेव तेयलिपुरे डा र नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता, अहापडिरूवं उग्गहं ओगिण्हंति, ओगिण्हित्ता संजमेण 5 तवसा अप्पाणं भावमाणीओ विहरंति। 5 सूत्र २४ : काल के उस भाग में ईर्यासमिति आदि सभी नियमों का पालन करने वाली, ट 5 गुप्त-ब्रह्मचारिणी, बहुश्रुत और विशाल शिष्य परिवार वाली सुव्रता नाम की साध्वी एक स्थान से ई र दूसरे स्थान को विहार करती तेतलिपुर नगर में पधारी। वहाँ यथोचित अवग्रह आदि ग्रहणकर 5 उपाश्रय में ठहरी और संयम तथा तप की साधना में आत्मलीन हो रहने लगी। र 24. During that period of time a Sadhvi (female ascetic) named Suvrata, SI 2 moving from one village to another, arrived in Tetalipur town. She was an $
strict adherent of the ascetic disciplines including the discipline of movement
and celibacy. She was well read and had a large family of disciples. She IS CHAPTER-14 : TETALIPUTRA
(123) टा SAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnni
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