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________________ ( २३४ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र सूत्र १४७ : तए णं सा दोवई देवी तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा समाणी तं भवणं असोगवणियं च अपच्चभिजाणमाणी एवं वयासी - नो खलु अम्हं एस सए भवणे, णो खलु सा अम्हं सगा असोगवणिया, तं ण णज्जइ णं अहं केणई देवेण वा, दाणवेण वा, किंपुरिसेण वा, किन्नरेण वा, महोरगेण वा, गंधव्वेण वा, अन्नस्स रण्णो असोगवणियं साहरिय' त्ति क ओहयमणसंकप्पा जाव झियाय । सूत्र १४७ : कुछ समय बाद जब द्रौपदी की नींद टूटी तो उस अपरिचित अशोकवाटिका को वह नहीं पहचान सकी और मन ही मन बोली - " यह भवन तो मेरा नहीं है, यह अशोकवाटिका भी मेरी नहीं है । जाने किस देव, दानव, किंपुरुष, किन्नर, महोरग या गन्धर्व ने मेरा अपहरण कर अन्य राजा की अशोकवाटिका में पहुँचा दिया है।" यह सोच भग्न - मनोरथ ( निराश) उदास हो वह चिन्ता में डूब गई। 147. After some time when Draupadi opened her eyes she could not recognize the surroundings and thought, "This palace is not mine, not even this garden. I don't know what god, demon, Kimpurush, Kinnar, Mahorag, or Gandharva (various demigods) has abducted me and brought me to a garden belonging to some other king." The thought broke her heart. She became dejected and started brooding. सूत्र १४८ : तए णं से पउमणाभे राया हाए जाव सव्वालंकारविभूसिए अंतेउरपरियालसंपरिवुडे जेणेव असोगवणिया, जेणेव दोवई देवी, तेणेव उवागच्छइ । उवागच्छित्ता दोवई देविं ओहयमणसंकप्पं जाव झियायमाणिं पासइ, पासित्ता एवं वयासी - ' किं णं तुमं देवाणउप्पिए ! ओहयमणसंकप्पा जाव झियाहि ? एवं खलु तुमं देवाणुप्पिए ! मम पुव्वसंगतिएणं देवेणं जम्बुद्दीवाओ दीवाओ, भारहाओ वासाओ, हत्थिणाउराओ नयराओ, जुहिट्ठिलस्स रण्णो भवणाओ साहरिया, तं मा णं तुमं देवाणुप्पिए ! ओहयमणसंकप्पा जाव झियाहि । तुमं मए सद्धिं विपुलाई भोगभोगाई जाव विहराहि । ' सूत्र १४८ : राजा पद्मनाभ स्नानादि से निवृत्त हो, वस्त्रालंकार पहन, अन्तःपुर परिवार से घिरा अशोकवाटिका में द्रौपदी के निकट आया । द्रौपदी देवी को चिन्ता मग्न देखकर वह बोला) "देवानुप्रिये ! तुम भग्न मनोरथ होकर चिन्तित क्यों हो रही हो ? मेरा पूर्वसांगतिक देव तुम्हारा हरण कर यहाँ ले आया है। अतः देवानुप्रिये ! तुम उदास, टूटे हुए मनःसंकल्प वाली होकर चिन्ता मत करो। तुम मेरे साथ विपुल भोग भोगती आनन्द से जीवन बिताओ ।" 148. King Padmanaabh got ready after taking his bath and adorning himself with his dress and ornaments. Surrounded by his personal staff he came into the garden and approached Draupadi. When he saw Draupadi worried he said, "Beloved of gods! Why are you sad and dejected? On my (234) JNĀTA DHARMA KATHANGA SŪTRA Jain Education International For Private & Personal Use Only மதி www.jainelibrary.org
SR No.007651
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages467
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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